05-12-84   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सम्पूर्ण काम जीत अर्थात् हद की कामनाओं से परे

सर्व की मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाले शिव बाबा बोले-

आज बापदादा अपनी सर्वश्रेष्ठ भुजाओं को देख रहें हैं। सभी भुजायें स्नेह और शक्ति द्वारा विश्व को परिवर्तन के कार्य में लगी हुई हैं। एक की सब भुजायें हैं। इसलिए सबके अन्दर एक ही लगन है, कि अपने ईश्वरीय परिवार के अपने ही भाई-बहनें जो बाप को और अपने असली परिवार को न जानने के कारण बच्चे होते हुए भी भाग्य विधाता बाप से भाग्य प्राप्त करने से वंचित हैं - ऐसे भाग्य से वंचित आत्माओं को सुरजीत करें। कुछ न कुछ अधिकार की अंचली द्वारा उन्हों को भी बाप के परिचय से परिचित करें। क्योंकि आप सभी सारी वंशावली के बड़े हो। तो बड़े बच्चे बाप समान गाये जाते हैं। इसलिए बड़ों को छोटे अनजान भाई बहनों प्रति रहम और प्यार स्वत: ही आता है। जैसे हद के परिवार के बड़ों को परिवार के प्रति सदा ध्यान रहता है, ऐसे तुम बेहद के परिवार के बड़ों को ध्यान रहता है ना! कितना बड़ा परिवार है। सारा बेहद का परिवार सामने रहता है? सभी प्रति रहम की किरणें, रूहानी आशीर्वाद की किरणें, वरदान की किरणें फैलाने वाले मास्टर सूर्य हो ना! जैसे सूर्य जितना स्वयं ऊँचा होगा तो चारों ओर किरणें फैलायेगा। नीचे होने से चारों ओर किरणें नहीं फैला सकते हैं। ऐसे आप ऊँचे ते ऊँचे बाप समान ऊँची स्थिति में स्थित होते तब ही बेहद की किरणें फैला सकते हो अर्थात् बेहद के सेवाधारी बन सकते हो। सभी ऐसे बेहद के सेवाधारी हो ना। सर्व आत्माओं की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले कामधेनु हो ना! सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले अब तक अपने मन की कामनायें पूर्ण करने में बिजी तो नहीं हो? अपने मन की कामनायें पूर्ण नहीं होंगी तो औरों की मनोकामानायें कैसे पूर्ण करेंगे? सबसे बड़े ते बड़ी मनोकामना बाप को पाने की थी। जब वह श्रेष्ठ कामना पूर्ण हो गई तो उस श्रेष्ठ कामना में सर्व छोटी-छोटी हद की कामनायें समाई हुई हैं। श्रेष्ठ बेहद की कामना के आगे और कोई हद की कामनायें रह जाती हैं क्या? यह हद की कामनायें भी माया से सामना नहीं करा सकती। यह हद की कामना बेहद की स्थिति द्वारा बेहद की सेवा करा नहीं सकती। हद की कामनायें भी सूक्ष्म रूप से चेक करो -मुख्य काम विकार के अंश वा वंश हैं। इसलिए कामना वश सामना नहीं कर सकते। बेहद की मनोकामना पूर्ण करने वाले नहीं बन सकते। काम जीत अर्थात् हद की कामनाओं जीत। ऐसी मनोकामनायें पूर्ण करने वाली विशेष आत्मायें हो। मन्मनाभवकी स्थिति द्वारा मन की हद की कामनायें पूर्ण कर अर्थात् समाप्त कर औरों की मनोकामनायें पूर्ण कर अर्थात् समाप्त कर औरों की मनोकामनायें पूर्ण करने का अभी समय है। तृप्त आत्मायें ही औरों की कामनायें पूर्ण कर सकेंगी। अभी वाणी से परे स्थिति में स्थित रहने की वानप्रस्थ अवस्था में कामना जीत अर्थात् सम्पूर्ण काम जीत के सैम्पुल विश्व के आगे बनो। आपके छोटे-छोटे भाई-बहिनें यही कामना लेकर आप बड़ों की तरफ देख रहे हैं। पुकार रहे हैं कि हमारी मनोकामनायें पूर्ण करो। हमारी सुख-शान्ति की इच्छायें पूर्ण करो। तो आप क्या करेंगे? अपनी इच्छायें पूर्ण करेंगे वा उन्हों की पूर्ण करेंगे? सभी को दिल से, कहने से नहीं या वायुमण्डल के संगठन की मर्यादा प्रमाण नहीं, दिल से यह श्रेष्ठ नारा निकले कि - ‘‘इच्छा मात्रम् अविद्या’’

कई बच्चे बड़े चतुर हैं। चतुर सुजान से भी चतुराई करते हैं। होती हद की इच्छा है और फिर कहेंगे ऐसे ऐसे। यह शुभ इच्छा है, सेवा प्रति इच्छा है। होती अपनी इच्छा है लेकिन बाहर का रूप सेवा का बना देते हैं। इसलिए बापदादा मुस्कराते हुए, जानते हुए, देखते हुए, चतुराई समझते हुए भी कई बच्चों को बाहर से ईशारा नहीं देते। लेकिन ड्रामा अनुसार ईशारा मिलता जरूर है। वह कैसे? हद की इच्छायें पूर्ण होते हुए रूप प्राप्ति का होता लेकिन अन्दर एक इच्छा और इच्छाओं को पैदा करती रहती है। इसलिए मन की उलझन के रूप में ईशारा मिलता रहता है। बाहर से कितना भी कोई हद की प्राप्ति में खाता पीता गाता रहे लेकिन यह मन की उलझन को छिपाने का साधन करते। अन्दर मन तृप्त नहीं होगा। अल्पकाल के लिए होगा लेकिन सदाकाल की तृप्त अवस्था वा यह दिल का गीत कि बाप मिला संसार मिला’, यह नहीं गा सकता। वह बाप को भी कहते हैं - आप तो मिले लेकिन यह भी जरूर चाहिए। यह चाहिए-चाहिए की चाहना की तृप्ती नहीं होगी। समय प्रमाण अभी सबका एक ‘‘इच्छा मात्रम् अविद्या’’ का आवाज़ हो तब औरों की इच्छायें पूर्ण कर सकेंगे। अभी थोड़े समय में आप एक-एक श्रेष्ठ आत्मा को विश्व चैतन्य भण्डार अनुभव करेगा। भिखारी बन आयेंगे। यह आवाज़ निकलेगा कि आप ही भरपूर भण्डार हो। अभी तक ढूँढ रहे हैं कि कोई हैं, लेकिन वह कहाँ हैं, कौन हैं यह स्पष्ट समझ नहीं सकते। लेकिन अभी समय का ऐरो’ (तीर) लगेगा। जैसे रास्ते दिखाने के चिन्ह होते हैं ना। ऐरो दिखाता है कि यहाँ जाओ। ऐसे सभी को यह अनुभूति होगी कि यहाँ जाओ। ऐसे भरपूर भण्डार बने हो ? समय भी आपका सहयोगी बनेगा। शिक्षक नहीं, सहयोगी बनेगा। बापदादा समय के पहले सब बच्चों को सम्पन्न स्वरूप में भरपूर भण्डार के रूप में, इच्छा मात्रम् अविद्या, तृप्त स्वरूप में देखना चाहता है। क्योंकि अभी से संस्कार नहीं भरेंगे तो अन्त में संस्कार भरने वाले बहुत काल की प्राप्ति के अधिकारी नहीं बन सकते। इसलिए विश्व के लिए विश्व आधार मूर्त हो। विश्व के आगे जहान के नूर हो। जहान के कुल दीपक हो। जो भी श्रेष्ठ महिमा है - सर्व श्रेष्ठ महिमा के अधिकारी आत्मायें अब विश्व के आगे अपने सम्पन्न रूप में प्रत्यक्ष हो दिखाओ। समझा।

सभी आये हुए विशेष सेवाधारी बच्चों को विशेष स्नेह स्वरूप से बापदादा स्नेह की स्वागत कर रहे हैं। राइटहैण्ड बच्चों को समानता की हैण्डशेक कर रहे हैं। भले पधारे। अच्छा –

सभी विश्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले, सदा सम्पन्न तृप्त आत्माओं को, विश्व के आधार मूर्त, हर समय विश्व कल्याण की श्रेष्ठ कामना में स्थित रहने वाले, विश्व के आगे मास्टर विश्व रक्षक बन सर्व की रक्षा करने वाले, सर्व श्रेष्ठ महान आत्माओं को बापदादा का याद प्यार औन नमस्ते।’’

मीटिंग में आये हुए भाई बहिनों से - सेवाधारी बच्चों ने सेवा के प्लैन्स मन में तो बना लिये होंगे, बाकी मीटिंग के संगठन में साकार में लाने के लिए वर्णन करेंगे। जो भी सेवायें चल रही हैं, हर सेवा अच्छे ते अच्छी कहेंगे। जैसे समय समीप आ रहा है, समय सभी की बुद्धियों को हलचल में ला रहा है। ऐसे समय प्रमाण ऐसा शक्तिशाली प्लैन बनाओ जो धरनियों पर हल चले, हमेशा बीज डालने के पहले हल चलाते हैं ना! हल चलाने में क्या होता? हलचल होती है और उसके बाद जो बीज डालते हैं वह सहज सफलता को पाता है। ऐसे अभी यह हलचल का हल चलाओ। कौन-सी हलचल का? जैसे आज सुनाया -’’कोई हैं’’ यह तो सब समझते हैं लेकिन यही हैं और यह एक ही हैं, यह हलचल का हल नहीं चला है। अभी और भी हैं, यह भी हैं यहाँ तक पहुँचे हैं लेकिन यह एक ही हैं, अभी ऐसा तीर लगाओ। इस टचिंग के साथ ऐसी आत्मायें आपके सामने आयें। जब ऐसी हलचल हो तब ही प्रत्यक्षता हो। इसकी विधि क्या है? जैसे सब विधि चलती रहती है, भिन्न-भिन्न प्रोग्राम करते रहते हो। कांफ्रेंस भी करते हो तो दूसरों की स्टेज पर भी जाते हो, अपनी स्टेज भी बनाते हो। योग शिविर भी कराते हो। यह सभी साधन समीप तो लायें हैं और जो शंकाये थीं उन शंकाओं की निवृति भी हुई है। समीप भी आ गये। लेकिन अभी वर्से के अधिकार के समीप आवें। वाह-वाह करने वाले तो बने, अभी वारिस बनें। अभी ऐसा कोई आवाज़ बुलन्द हो कि यही सच्चा रास्ता दिखाने वाले हैं, बाप से मिलाने वाले हैं। बचाने वाले हैं, भगाने वाले नहीं। तो अभी उसकी विधि, वातावरण ऐसा हो। स्टेज की रूपरेखा भी ऐसी हो और सभी का संकल्प भी एक ही हो। वातावरण का प्रभाव शक्तिशाली होना चाहिए। प्यार का तो होता है लेकिन शान्ति और शक्ति उसमें और थोड़ा एडीशन करो। दुनिया के हिसाब से तो शान्ति भी अनुभव करते हैं, लेकिन ऐसा शान्ति का तीर लगे जो शान्ति सागर के सिवाए रह नहीं सकें। यह आपके संग का रंग तो उतने समय तक अच्छा लगता है लेकिन रंग में रंग जाएं और यही रंग उन्हों को खींचता रहे, समीप लाता रहे, सम्बन्ध में लाता रहे वह पक्का रंग लगाओ। सुनाया ना - अभी तक जो किया है वह अच्छे ते अच्छा किया है लेकिन अभी सोना तैयार किया है, अभी नग डालने हैं। आज की दुनिया में प्रत्यक्ष प्रमाण चाहिए। तो प्रत्यक्ष प्रमाण शान्ति और शक्ति का अनुभव हो। चाहे एक घड़ी के लिए हो लेकिन अनुभव ऐसी चीज़ है जो अनुभव की शक्ति समीप सम्बन्ध में जरूर लायेगी। तो प्लैन तो बनायेंगे ही। बाकी बापदादा बच्चों के हिम्मत, उमंग-उत्साह पर खुश हैं। सेवा के शौक में रहने वाले बच्चे हैं। सेवा की लगन अच्छी है। संकल्प भी सभी का चलता जरूर है कि अभी कुछ नवीनता होनी चाहिए। नवीनता लाने के लिए, पहले तो सभी का एक संकल्प होना चाहिए। एक ने सुनाया और सभी ने स्वीकार किया। एक संकल्प में सदा दृढ़ हों। अगर एक ईट भी हिलती है तो पूरी दीवार को हिला देती है। एक का भी संकल्प इसमें थोड़ा-सा कारणे अकारणे सरकमस्टांस प्रमाण हल्का होता है तो सारा प्रोग्राम हल्का हो जाता है। तो ऐसे अपने को दृढ़ संकल्प में लाके, करना ही है, सबका सहयोग मिलना ही है, फिर ट्रायल करो। वैसे बापदादा सेवा से खुश हैं। ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन अभी सोने में नग भरेंगे तो दूर से आकर्षण करेंगे।

विदेश में भी बच्चे हिम्मत अच्छी रख रहे हैं। वह खुद भी आपस में हंसते रहते हैं कि माइक हमारा पहुँचा, आवाज़ भी हुआ लेकिन थोड़ी आवाज़ वाला आया। बड़ी आवाज़ वाला नहीं। फिर भी इतने तक तो पहुंच गये हैं। हिम्मत तो अच्छी करते हैं। अच्छा –

अभी आपका पूज्य स्वरूप प्रत्यक्ष होना चाहिए। पूज्य है, पूजा करने वाले नहीं। यही हमारे ईष्ट हैं, पूर्वज हैं, पूज्य हैं, यहाँ से ही सर्व मनाकामनायें पूर्ण होनी हैं, अभी यह अनुभूति हो। सुनाया ना - अभी अपने हद के संकल्प वा कामनायें समाप्त होनी चाहिए, तब ही यह लहर फैलेगी। अभी भी थोड़ा-थोड़ा मेरा-मेरा है। मेरे संस्कार, मेरा स्वभाव यह भी समाप्त हो जाए। बाप का संस्कार सो मेरा संस्कार। ओरिजनल संस्कार तो वह है ना। ब्राह्मणों का परिवर्तन ही विश्वपरिवर्त न का आधार है। तो क्या करेंगे अभी? भाषण जरूर करना है लेकिन आप भाषा में आओ और वह भाषा से परे चले जाएँ। ऐसा भाषण हो। बोलना तो पड़ेगा ना। आप आवाज़ में आओ, वे आवाज़ से परे चले जाएँ। बोल नहीं हो लेकिन अनुभव भरा हुआ बोल हो। सभी में लहर फैल जाए। जैसे कभी कोई ऐसी बात सुनाते हैं तो कभी हंसने की, कभी रोने की, कभी वैराग की लहर फैल जाती है वह टैम्प्रेरी होता है लेकिन फिर भी फैलती है ना। ऐसे अनुभूति होने का लहर फैल जाए। होना तो यही है। जैसे शुरू में स्थापना की आदि में एक ओम की ध्वनि शुरू होती थी और कितने साक्षात्कार में चले जाते थे। लहर फैल जाती थी। ऐसे सभा में अनुभूतियों की लहर फैल जाए। किसको शान्ति की, किसको शक्तियों को अनुभूति हो। यह लहर फैले। सिर्फ सुनने वाले न हो लेकिन अनुभव की लहर हो। जैसे झरना बह रहा हो तो जो भी झरने के नीचे आयेगा उसको शीतलता का, फ्रेश होने का अनुभव होगा ना! ऐसे वह भी शान्ति, शक्ति, प्रेम, आनंद, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करते जाएं। आज भी साइंस के साधन गर्मीसर्दी की अनुभूति कराते हैं ना। सारे कमरे में ही वह लहर फैल जाती है। तो क्या यह इतनी शिव-शक्तियाँ, पाण्डव, मास्टर शान्ति, शक्ति सबके सागर...यह लहर नहीं फैला सकते! अच्छा –

कितनी विशाल बुद्धि वाले इकट्ठे हुए हैं। शक्ति सेना भी बहुत है। मधुबन में एक ही समय पर इतनी श्रेष्ठ आत्मायें आ जाएँ, यह कोई कम बात नहीं है। अभी तो आपस में भी साधारण हो, तो साधारण बात लगती है। एक-एक कितनी महान आत्मायें हो। इतनी महान आत्माओं का संगठन तो सारे कल्प में ऐसा नहीं हो सकता। कोई एक-एक का महत्व कम नहीं है। अभी तो आपस में भी एक दो को साधारण समझते हो, आगे चल एक दो को विशेषता प्रमाण विशेष आत्मा समझेंगे। अभी हल्की-हल्की बातें नोट ज्यादा होती हैं, विशेषतायें कम। बैठकर सोचो तो एक-एक कितने भक्तों के पूर्वज हो। सभी इष्ट देव और देवियाँ हो ना। एक-एक इष्ट देव के कितने भक्त होंगे? कम हस्तियाँ तो नहीं हो ना! एक मूर्ति का भी इतना महत्व होता, इतने इष्ट देव इकट्ठे हो जाएँ तो क्या हो जाए! शक्तिशाली हो। परन्तु आपस में भी छिपाया है तो विश्व से भी छिपे हो। वैसे एक-एक का मूल्य अनगिनत है। बापदादा तो जब बच्चों के महत्व को देखते हैं तो नाज़ होता है कि एक-एक बच्चा कितना महान है। अपने को भी कभी समझते हो कभी नहीं। वैसे हो बहुत महान। साधारण हस्ती नहीं हो! थोड़ी-सी प्रत्यक्षता होगी फिर आपको भी मालूम पड़ेगा कि हम कौन हैं! बाप तो उसी महानता से देखते हैं। बाप के आगे तो सब प्रत्यक्ष है ना। अच्छा - एक क्लास यह भी करना कि एक-एक की महानता क्या है। अच्छा –