15-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सस्ता सौदा और बचत का बजट
ज्ञान रत्नों के सागर अपने सौदागर बच्चों प्रति बोले
रत्नागर बाप अपने बड़े ते बड़े सौदा करने वाले सौदागर बच्चों को देख मुस्करा रहे हैं। सौदा कितना बड़ा और करने वाले सौदागर दुनिया के अन्तर में कितने साधारण, भोले-भाले हैं। भगवान से सौदा करने वाली कौन आत्मायें भाग्यवान बनीं! यह देख मुस्करा रहे हैं। इतना बड़ा सौदा एक जन्म का जो 21 जन्म सदा मालामाल हो जाते। देना क्या और लेना क्या है! अनगिनत पद्मों की कमाई वा पद्मों का सौदा कितना सहज करते हो। सौदा करने में समय भी वास्तव में एक सेकण्ड लगता है। और कितना सस्ता सौदा किया? एक सेकण्ड में और एक बोल में सौदा कर लिया। दिल से माना - ‘मेरा बाबा’। इस एक बोल से इतना बड़ा अनगिनत खज़ाने का सौदा कर लेते हो। सस्ता सौदा है ना! न मेहनत है, न महंगा है। न समय देना पड़ता है। और कोई भी हद के सौदे करते तो कितना समय देना पड़ता। मेहनत भी करनी पड़ती और मंहगा भी दिनप्रतिदिन होता ही जाता है। और चलेगा कहाँ तक? एक जन्म की भी गारन्टी नहीं। तो अब श्रेष्ठ सौदा कर लिया है वा अभी सोच रहे हो कि करना है? पक्का सौदा कर लिया है ना? बापदादा अपने सौदागर बच्चों को देख रहे हैं। सौदागरों की लिस्ट में कौन-कौन नामीग्रामी हैं। दुनिया वाले भी नामीग्रामी लोगों की लिस्ट बनाते हैं ना। विशेष डायरेक्टरी भी बनाते हैं। बाप की डायरेक्टरी में किन्हों के नाम हैं? जिनमें दुनिया वालों की आँख नहीं जाती उन्होंने ही बाप से सौदा किया और परमात्म नयनों के सितारे बन गये, नूरे रतन बन गये। ना उम्मीद आत्माओं को विशेष आत्मा बना दिया। ऐसा नशा सदा रहता है? परमात्म डायरेक्टरी के विशेष वी.आई.पी. हम हैं। इसलिए ही गायन है - भोलों का भगवान। है चतुरसुजान लेकिन पसन्द भोले ही आते हैं। दुनिया की बाहरमुखी चतुराई बाप को पसन्द नहीं। उन्हों का कलियुग में राज्य हैं। जहाँ अभी-अभी लखपति अभी-अभी कखपति हैं। लेकिन आप सभी सदा के लिए पद्मापद्पति बन जाते हो। भय का राज्य नहीं। निर्भय हैं।
आज की दुनिया में धन भी है और भय भी हैं। जितना धन उतना भय में ही खाते, भय में ही सोते। और आप बेफिकर बादशाह बन जाते। निर्भय बन जाते हो। भय को भी भूत कहा जाता है। आप उस भूत से भी छूट जाते हो। छूट गये हो ना। कोई भय है? जहाँ मेरापन होगा वहाँ भय जरूर होगा। मेरा बाबा। सिर्फ एक ही शिवबाबा है जो निर्भय बनाता है। उनके सिवाए कोई भी सोना-हिरण भी अगर मेरा है तो भी भय है। तो चेक करो मेरा-मेरा का संस्कार ब्राह्मण जीवन में भी किसी भी सूक्ष्म रूप में रह तो नहीं गया है? सिलवर जुबिली, गोल्डन जुबिली मना रहे हो ना। चांदी वा सोना, रीयल तभी बनता है जब आग में गलाकर जो कुछ मिक्स होता है उसको समाप्त कर देते हैं। रीयल सिलवर जुबली, रीयल गोल्डन जुबली है ना। तो जुबली मनाने के लिये रीयल सिल्वर, रीयल गोल्ड बनना ही पड़ेगा। ऐसे नहीं जो सिलवर जुबली वाले हैं वह सिलवर ही हैं। यह तो वर्षों के हिसाब से सिलवर जुबली कहते हैं। लेकिन हो सभी गोल्डन एज के अधिकारी, गोल्डन एज वाले। तो चेक करो रीयल गोल्ड कहाँ तक बने हैं? सौदा तो किया लेकिन आया और खाया। ऐसे तो नहीं? इतना जमा किया जो 21 पीढ़ी सदा सम्पन्न रहें? आपकी वंशावली भी मालामाल रहे। न सिर्फ 21 जन्म लेकिन द्वापर में भी भक्त आत्मा होने के कारण कोई कमी नहीं होगी। इतना धन द्वापर में भी रहता है जो दान-पुण्य अच्छी तरह से कर सकते हो। कलियुग के अन्त में भी देखो, अन्तिम जन्म में भी भिखारी तो नहीं बने हो ना! दाल-रोटी खाने वाले बने ना। काला धन तो नहीं है लेकिन दाल-रोटी तो है ना। इस समय की कमाई इकट्ठे किया है जो अन्तिम जन्म में दाल-रोटी खाते हो! इतना बचत का हिसाब रखते हो! बजट बनाना आता है? जमा करने में होशियार हो ना! नहीं तो 21 जन्म क्या करेंगे? कमाई करने वाले बनेंगे या राज्य अधिकारी बन राज्य करेंगे? रायल फैमली को कमाने की जरूरत नहीं होती। प्रजा को कमाना पड़ेगा। उसमें भी नम्बर हैं। साहूकार प्रजा और साधारण प्रजा। गरीब तो होता नहीं। लेकिन रायल फैमली पुरूषार्थ की प्रालब्ध राज्य प्राप्त करती है। जन्म-जन्म रायल फैमली के अधिकारी बनते हैं। राज्य तख्त के अधिकारी हर जन्म में नहीं बनते लेकिन रायल फैमली का अधिकार जन्म-जन्म प्राप्त करते हैं। तो क्या बनेंगे? अब बजट बनाओ। बचत की स्कीम बनाओ।
आजकल के जमाने में ‘वेस्ट से बेस्ट’ बनाते हैं। वेस्ट को ही बचाते हैं। तो आप सब भी बचत का खाता सदा स्मृति में रखो। बजट बनाओ। संकल्प शक्ति, वाणी की शक्ति, कर्म की शक्ति, समय की शक्ति कैसे और कहाँ कार्य लगानी है। ऐसे न हो यह सब शक्तियाँ व्यर्थ चली जाएँ। संकल्प भी अगर साधारण हैं, व्यर्थ हैं तो व्यर्थ और साधारण दोनों बचत नहीं हुई। लेकिन गँवाया। सारे दिन में अपना चार्ट बनाओ। इन शक्तियों को कार्य में लगाया, कितना बढ़ाया! क्योंकि जितना कार्य में लगायेंगे उतना शक्ति बढ़ेगी। जानते सभी हो कि संकल्प शक्ति है लेकिन कार्य में लगाने का अभ्यास, इसमें नम्बरवार हैं। कोई फिर, न तो कार्य में लगाते न पाप कर्म में गँवाते। लेकिन साधारण दिनचर्या में न कमाया न गँवाया। जमा तो नहीं हुआ ना। साधारण सेवा की दिनचर्या वा साधारण प्रवृत्ति की दिनचर्या इसको बजट का खाता जमा होना नहीं कहेंगे। सिर्फ यह नहीं चेक करो कि यथाशक्ति सेवा भी की, पढाई भी की। किसको दुख नहीं दिया। कोई उल्टा कर्म नहीं किया। लेकिन दुख नहीं दिया तो सुख दिया? जितनी और जैसी शक्तिशाली सेवा करनी चाहिए उतनी की? जैसे बापदादा सदा डायरेक्शन देते हैं कि मैं-पन का, मेरेपन का त्याग ही सच्ची सेवा है, ऐसे सेवा की? उल्टा बोल नहीं बोला, लेकिन ऐसा बोल बोला जो किसी ना-उम्मीद को उम्मीदवार बना दिया। हिम्मतहीन को हिम्मतवान बनाया? खुशी के उमंग, उत्साह में किसको लाया? वह है जमा करना, बचत करना। ऐसे ही दो घण्टा, चार घण्टा बीत गया, वह बचत नहीं हुई। सब शक्तियाँ बचत कर जमा करो। ऐसी बजट बनाओ। यह साल बजट बनाकर कार्य करो। हर शक्ति को कार्य में कैसे लगावें यह प्लैन बनाओ। ईश्वरीय बजट ऐसा बनाओ जो विश्व की हर आत्मा कुछ न कुछ प्राप्त करके ही आपके गुण गान करे। सभी को कुछ न कुछ देना ही है। चाहे मुक्ति दो, चाहे जीवनमुक्ति दो। मनुष्य आत्मायें तो क्या प्रकृति को भी पावन बनाने की सेवा कर रहे हो! ईश्वरीय बजट अर्थात् सर्व आत्मायें प्रकृति सहित सुखी वा शान्त बन जावें। वह गवर्मेन्ट बजट बनाती है, इतना पानी देंगे, इतने मकान देंगे, इतनी बिजली देंगे। आप क्या बजट बनाते हो! सभी को अनेक जन्मों तक ‘मुक्ति और जीवनमुक्ति’ देवें। भिखारीपन से, दुख अशान्ति से मुक्त करें। आधाकल्प तो आराम से रहेंगे। उन्हों की आश तो पूर्ण हो ही जायेगी। वह लोग तो मुक्ति ही चाहते हैं ना। जानते नहीं है लेकिन मांगते तो हैं ना। तो स्वयं के प्रति और विश्व के प्रति ईश्वरीय बजट बनाओ। समझा क्या करना है! सिलवर और गोल्डन जुबली दोनों इसी वर्ष में कर रहे हो ना। तो यह महत्व का वर्ष है। अच्छा –
सदा श्रेष्ठ सौदा स्मृति में रखने वाले, सदा जमा का खाता बढ़ाने वाले, सदा हर शक्तियों को कार्य में लगाए वृद्धि करने वाले, सदा समय के महत्व को जान महान बनने और बनाने वाले ऐसे श्रेष्ठ धनवान, श्रेष्ठ समझदार बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
पार्टियों से
कुमारों से - कुमार जीवन भी लकी जीवन है। क्योंकि उल्टी सीढ़ी चढ़ने से बच गये। कभी संकल्प तो नहीं आता है - उल्टी सीढ़ी चढ़ने का! चढ़ने वाले भी उतर रहे हैं। सभी प्रवृत्ति वाले भी अपने को कुमार-कुमारी कहलाते हैं ना। तो सीढ़ी उतरे ना! तो सदा अपने इस श्रेष्ठ भाग्य को स्मृति में रखो। कुमार जीवन अर्थात् बन्धनों से बचने की जीवन। नहीं तो देखो कितने बन्धनों में होते हैं। तो बन्धनों में खिंचने से बच गये। मन से भी स्वतन्त्र, सम्बन्ध से भी स्वतन्त्र। कुमार जीवन है ही - ‘स्वतन्त्र’। कभी स्वप्न में भी ख्याल तो नहीं आता - थोड़ा कोई सहयोगी मिल जाए! कोई साथी मिल जाए! बीमारी में मदद हो जाए, ऐसे कभी सोचते हो! बिल्कुल ख्याल नहीं आता? कुमार जीवन - अर्थात् सदा उड़ते पंछी, बंधन में फँसे हुए नहीं। कभी भी कोई संकल्प न आवे। सदा निर्बन्धन हो तीव्रगति से आगे बढ़ते चलो।
कुमारियों से - कुमारियों को सेवा में आगे बढ़ने की लिफ्ट मिली हुई है। यह लिफ्ट ही श्रेष्ठ गिफ्ट है। इस गिफ्ट को यूज करना आता है ना! जितना स्वयं को शक्तिशाली बनायेंगी उतना सेवा भी शक्तिशाली करेंगी। अगर स्वयं ही किसी बात में कमज़ोर होंगी तो सेवा भी कमज़ोर होगी। इसलिए शक्तिशाली बन शक्तिशाली सेवाधारी बन जाओ। ऐसी तैयारी करती चलो। जो समय आने पर सफलता पूर्वक सेवा में लग जाओ और नम्बर आगे ले लो। अभी तो पढ़ाई में टाइम देना पड़ता है फिर तो एक ही काम होगा। इसलिए जहाँ भी हो ट्रेनिंग करते रहो। निमित्त बनी हुई आत्माओं के संग से तैयारी करती रहो। तो योग्य सेवाधारी बन जायेंगी। जितना आगे बढ़ेगी उतना अपना ही फायदा है।
सेवाधारी-टीचर्स बहनों से
1. सेवाधारी अर्थात् सदा निमित्त- निमित्त भाव-सेवा में स्वत: ही सफलता दिलाता है। निमित्त भाव नहीं तो सफलता नहीं। सदा बाप के थे, बाप के हैं और बाप के ही रहेंगे - ऐसी प्रतिज्ञा कर ली है ना? सेवाधारी अर्थात् हर कदम बाप के कदम पर रखने वाली। इसको कहते हैं - फालो फादर करने वाले। हर कदम श्रेष्ठ मत पर श्रेष्ठ बनाने वाले सेवाधारी हो ना। सेवा में सफलता प्राप्त करना यही सेवाधारी का श्रेष्ठ लक्ष्य है। तो सभी श्रेष्ठ लक्ष्य रखने वाले हो ना। जितना सेवा में वा स्व में व्यर्थ समाप्त हो जाता है उतना ही स्व और सेवा समर्थ बनती है। तो व्यर्थ को खत्म करना सदा समर्थ बनना। यही सेवाधारियों की विशेषता है। जितना स्वयं निमित्त बनी हुई आत्मायें शक्तिशाली होंगी उतनी सेवा भी शक्तिशाली होगी। सेवाधारी का अर्थ ही है - सेवा में सदा उमंग उत्साह लाना। स्वयं उमंग उत्साह में रहने वाले ही औरों को उमंग उत्साह दिला सकते हैं। तो सदा प्रत्यक्ष रूप में उमंग उत्साह दिखाई दे। ऐसे नहीं कि मैं अन्दर में तो रहती हूँ लेकिन बाहर नहीं दिखाई देता। गुप्त पुरूषार्थ और चीज़ है लेकिन उमंग उत्साह छिप नहीं सकता है। चेहरे पर सदा उमंग उत्साह की झलक स्वत: दिखाई देगी। बोले, न बोले लेकिन चेहरा ही बोलेगा, झलक बोलेगी। ऐसे सेवाधारी हो?
सेवा का गोल्डन चांस यह भी श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है। सेवाधारी बनने का भाग्य तो प्राप्त हो गया। अभी सेवाधारी नम्बरवन हैं या नम्बर टू हैं यह भी भाग्य बनाना और देखना है। सिर्फ एक भाग्य नहीं लेकिन भाग्य पर भाग्य की प्राप्ति। जितने भाग्य प्राप्त करते जाते उतना नम्बर स्वत: ही आगे बढ़ता जाता है। इसको कहते हैं - ‘पद्मापद्म भाग्यवान’। एक सबजेक्ट में नहीं सब सबजेक्ट में सफलता स्वरूप। अच्छा –
2. सबसे ज्यादा खुशी किसको है - बाप को है या आपको? क्यों नहीं कहते हो कि मेरे को है। द्वापर से भक्ति में पुकारा और अब प्राप्त कर लिया तो कितनी खुशी होगी! 63 जन्म प्राप्त करने की इच्छा रखी और 63 जन्मों की इच्छा पूर्ण हो गई तो कितनी खुशी होगी! किसी भी चीज़ की इच्छा पूर्ण होती है तो खुशी होती है ना। यह खुशी ही विश्व को खुशी दिलाने वाली है। आप खुश होते हो तो सारी विश्व खुश हो जाती है। ऐसी खुशी मिली है ना! जब आप बदलते हो तो दुनिया भी बदल जाती है। और ऐसी बदलती है जिसमें दुःख और अशान्ति का नामो-निशान नहीं। तो सदा खुशी में नाचते रहो। सदा अपने श्रेष्ठ कर्मों का खाता जमा करते चलो। सभी को खुशी का खज़ाना बाँटो। आज वे संसार में खुशी नहीं है। सब खुशी के भिखारी हैं, उन्हें खुशी से भरपूर बनाओ। सदा इसी सेवा से आगे बढ़ते रहो। जो आत्मायें दिलशिकस्त बन गई हैं उन्हों में उमंग उत्साह लाते रहो। कुछ कर सकते नहीं, हो नहीं सकता... ऐसे दिलशिकस्त हैं और आप विजयी बन विजयी बनाने का उमंग उत्साह बढ़ाने वाले हो। सदा विजय की स्मृति का तिलक लगा रहे। तिलकधारी भी हैं और स्वराज्य अधिकारी भी हैं - इसी स्मृति में सदा रहो। अच्छा –
प्रश्न - जो समीप सितारे हैं उनके लक्षण क्या होंगे?
उत्तर - उनमें समानता दिखाई देगी। समीप सितारों में बापदादा के गुण और कर्तव्य प्रत्यक्ष दिखाई देंगे। जितनी समीपता उतनी समानता होगी। उनका मुखड़ा बापदादा का साक्षात्कार कराने वाला दर्पण होगा। उनको देखते ही बापदादा का परिचय प्राप्त होगा। भले देखेंगे आपको लेकिन आकर्षण बापदादा की तरफ होगी। इसको कहा जाता है - ‘सन शोज फादर’। स्नेही के हर कदम में, जिससे स्नेह है उसकी छाप देखने में आती है। जितना हर्षित मूर्त उतना आकर्षण मूर्त बन जाते हैं। अच्छा!