18-01-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मन्सा शक्ति तथा निर्भयता की शक्ति
वृक्षपति बाप अपने आदि रत्नों प्रति बोले
आज वृक्षपति अपने नये वृक्ष के फाउण्डेशन बच्चों को देख रहे हैं। वृक्षपति अपने वृक्ष के तना को देख रहे हैं। सभी वृक्षपति की पालना के पले हुए श्रेष्ठ फलस्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। आदि देव अपने आदि रत्नों को देख रहे हैं। हर एक रत्न की महानता, विशेषता अपनी-अपनी है। लेकिन हैं सभी नई रचना के निमित्त बने हुए विशेष आत्मायें। क्योंकि बाप को पहचानने में, बाप के कार्य में सहयोगी बनने में निमित्त बने और अनेकों के आगे एक्जैम्पुल बने हैं। दुनिया को न देख, नई दुनिया बनाने वाले को देखा। अटल निश्चय और हिम्मत का प्रमाण दुनिया के आगे बनकर दिखाया। इसलिए सभी विशेष आत्मायें हो। विशेष आत्माओं को विशेष रूप से संगठित रूप में देख बापदादा भी हर्षित होते हैं और ऐसे बच्चों की महिमा के गीत गाते हैं। बाप को पहचाना और बाप ने, जो भी हैं, जैसे भी हैं, पसन्द कर लिया। क्योंकि दिलाराम को पसन्द है - सच्ची दिल वाले। दुनिया का दिमाग न भी हो लेकिन बाप को दुनिया के दिमागी पसन्द नहीं, दिल वाले पसन्द है। दिमाग तो बाप इतना बड़ा दे देता है जिससे रचयिता को जानने से रचना के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज जान लेते हो। इसलिए बापदादा पसन्द करते हैं - दिल से। नम्बर भी बनते हैं सच्ची साफ दिल के आधार से। सेवा के आधार से नहीं। सेवा में भी सच्ची दिल से सेवा की वा सिर्फ दिमाग के आधार से सेवा की! दिल का आवाज दिल तक पहुँचता है, दिमाग का आवाज दिमाग तक पहुँचता है। आज बापदादा दिल वालों की लिस्ट देख रहे थे। दिमाग वाले नाम कमाते हैं, दिल वाले दुआयें कमाते हैं। तो दो मालायें बन रही थीं। क्योंकि आज वतन में एडवांस में गई हुई आत्मायें इमर्ज थी। वह विशेष आत्मायें रूह-रूहान कर रही थीं। मुख्य रूह-रूहान क्या होगी? आप सभी ने भी विशेष आत्माओं को इमर्ज किया ना! वतन में भी रूह-रूहान चल रही थी कि ‘समय और सम्पूर्णता’ दोनों में कितना अन्तर रह गया है? नम्बर कितने तैयार हुए हैं? नम्बर तैयार हुए हैं या अभी होने हैं? नम्बरवार सब स्टेज पर आ रहे हैं ना। एडवांस पार्टी पूछ रही थी - कि अभी हम तो एडवांस का कार्य कर रहे हैं लेकिन हमारे साथी हमारे कार्य में विशेष क्या सहयोग दे रहे हैं? वह भी माला बना रहे हैं। कौन-सी माला बना रहे हैं? कहाँ-कहाँ किस-किस का नई दुनिया के आरम्भ करने का जन्म होगा। वह निश्चित हो रहा है। उन्हों को भी अपने कार्य में विशेष सहयोग - सूक्ष्म शक्तिशाली मन्सा का चाहिए। जो शक्तिशाली स्थापना के निमित्त बनने वाली आत्मायें हैं वह स्वयं भल पावन हैं लेकिन वायुमण्डल व्यक्तियों का, प्रकृति का तमोगुणी है। अति तमोगुणी के बीच अल्प सतोगुणी आत्मायें कमल पुष्प समान हैं। इसलिए आज रूह-रूहान करते आपकी अति स्नेही श्रेष्ठ आत्मायें मुस्कराते हुए बोल रही थीं कि क्या हमारे साथियों को इतनी बड़ी सेवा की स्मृति है वा सेन्टरों में ही बिजी हो गये हैं वा जोन में बिजी हो गये हैं?
इतना सारा प्रकृति परिवर्तन का कार्य, तमोगुणी संस्कार वाली इतनी आत्माओं का विनाश किसी भी विधि से होगा लेकिन अचानक के मृत्यु, अकाले मृत्यु, समूह रूप में मृत्यु, उन आत्माओं के वायब्रशेन कितने कितने तमोगुणी होंगे, उसको परिवर्तन करना और स्वयं को भी ऐसे खूनी नाहक वायुमण्डल के वायब्रेशन से सेफ रखना और उन आत्माओं को सहयोग देना - क्या इस विशाल कार्य के लिए तैयारी कर रहे हो? या सिर्फ कोई आया, समझाया और खाया, इसी में ही तो समय नहीं जा रहा है? वह पूछ रहे थे। आज बापदादा उन्हों का सन्देश सुना रहे हैं। इतना बेहद का कार्य करने के निमित्त कौन हैं? जब आदि में निमित्त बने हो तो अन्त में भी परिवर्तन के बेहद के कार्य में निमित्त बनना है ना। वैसे भी कहावत है - ‘जिसने अन्त किया उसने सब कुछ किया’। गर्भ महल भी तैयार करने हैं। तब तो नई रचना का, योगबल का आरम्भ होगा। योगबल के लिए मन्सा शक्ति की आवश्यकता है। अपनी सेफ्टी के लिए भी मन्सा शक्ति साधन बनेगी। मन्सा शक्ति द्वारा ही स्वयं की अन्त सुहानी बनाने के निमित्त बन सकेंगे। नहीं तो साकार सहयोग समय पर सरकमस्टांस प्रमाण न भी प्राप्त हो सकता है। उस समय मन्सा शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प शक्ति, एक के साथ लाइन क्लीयर नहीं होगी तो अपनी कमज़ोरियाँ पश्चाताप के रूप में भूतों के मिसल अनुभव होंगी। क्योंकि स्मृति में कमज़ोरी आने से भय - भूत की तरह अनुभव होगा। अभी भले कैसे भी चला लेते हो लेकिन अन्त में भय अनुभव होगा। इसलिए अभी से बेहद की सेवा के लिए, स्वयं की सेफ्टी के लिए मन्सा शक्ति और निर्भयता की शक्ति जमा करो, तब ही अन्त सुहाना और बेहद के कार्य में सहयोगी बन बेहद के विश्व के राज्य अधिकारी बनेंगे। अभी आपके साथी, आपके सहयोग का इन्तजार कर रहे हैं। कार्य चाहे अलग-अलग है लेकिन परिवर्तन के निमित्त दोनों ही हैं। वह अपनी रिजल्ट सुना रहे थे।
एडवांस पार्टी वाले कोई स्वयं श्रेष्ठ आत्माओं का आह्वाहन करने के लिए तैयार हुए हैं और हो रहे हैं, कोई तैयार कराने में लगे हुए हैं। उन्हों का सेवा का साधन है - मित्रता और समीपता के सम्बन्ध। जिससे इमर्ज रूप में ज्ञान चर्चा नहीं करते लेकिन ज्ञानी तू आत्मा के संस्कार होने के कारण एक दो के श्रेष्ठ संस्कार, श्रेष्ठ वायब्रेशन और सदा होली और हैपी चेहरा एक दो को प्रेरणा देने का कार्य कर रहा है। चाहे अलग-अलग परिवार में हैं लेकिन किसी न किसी सम्बन्ध वा मित्रता के आधार पर एक दो के सम्पर्क में आने से आत्मा नॉलेजफुल होने के कारण यह अनुभूति होती रहती है कि यह अपने हैं वा समीप के हैं। अपनेपन के आधार से एक दो को पहचानते हैं। अभी समय समीप आ रहा है इसलिए एडवांस पार्टी का कार्य तीव्रगति से चल रहा है। ऐसी लेन-देन वतन में हो रही थी। विशेष जगत-अम्बा सभी बच्चों के प्रति दो मधुर बोल, बोल रही थी। दो बोल में सभी को स्मृति दिलाई - ‘‘सफलता का आधार सदा सहनशक्ति और समाने की शक्ति है, इन विशेषताओं से सफलता सदा सहज और श्रेष्ठ अनुभव होगी।’’ औरों का भी सुनायें क्या? आज चिटचैट का दिन विशेष मिलने का रहा तो हर एक अपने अनुभव का वर्णन कर रहे थे। अच्छा और किसका सुनेंगे? (विश्व किशोर भाऊ का) वह वैसे भी कम बोलता है लेकिन जो बोलता है वह शक्तिशाली बोलता है। उसका भी एक ही बोल में सारा अनुभव रहा कि किसी भी कार्य में सफलता का आधार - ‘‘निश्चय अटल और नशा सम्पन्न’’। अगर निश्चय अटल है तो नशा स्वत: ही औरों को भी अनुभव होता है। इसलिए निश्चय और नशा सफलता का आधार रहा। यह है उसका अनुभव। जैसे साकार बाप को सदा निश्चय और नशा रहा कि मैं भविष्य में विश्व महाराजन बना कि बना। ऐसे विश्वकिशोर को भी यह नशा रहा कि मैं पहले विश्व महाराजन का पहला प्रिन्स हूँ। यह नशा वर्तमान और भविष्य का अटल रहा। तो समानता हो गई ना। जो साथ में रहे उन्होंने ऐसा देखा ना।
अच्छा - दीदी ने क्या कहा? दीदी रूह-रूहान बहुत अच्छी कर रही थी। वह कहती है कि आपने सभी को बिना सूचना दिये क्यों बुला लिया। छुट्टी लेकर तैयार हो जाती। आप छुट्टी देते थे? बापदादा बच्चों से रूह-रूहान कर रहे थे - देह सहित देह के सम्बन्ध, देह के संस्कार सबके सम्बन्ध, लौकिक नहीं तो अलौकिक तो हैं। अलौकिक सम्बन्ध से, देह से, संस्कार से ‘नष्टोमोहा’ बनने की विधि, यही ड्रामा में नूंधी हुई है। इसलिए अन्त में सबसे नष्टोमोहा बन अपनी ड्यूटी पर पहुँच गई। चाहे विश्व किशोर का पहले थोड़ा-सा मालूम था लेकिन जिस समय जाने का समय रहा उस समय वह भी भूल गया था। यह भी ड्रामा में नष्टोमोहा बनने की विधि नूँधी हुई थी जो रिपीट हो गई। क्योंकि कुछ अपनी मेहनत और कुछ बाप ड्रामा अनुसार कर्मबन्धन मुक्त बनाने में सहयोग भी देता है। जो बहुत काल के सहयोगी बच्चे रहे हैं, ‘एक बाप दूसरा न कोई’ इस मेन सबजेक्ट में पास रहे हैं, ऐसे एक बाप अनुभव करने वालों को बाप विशेष एक ऐसे समय सहयोग जरूर देता है। कई सोचते हैं कि क्या यह सब कर्मातीत हो गये, यही कर्मातीत स्थिति है? लेकिन ऐसे आदि से सहयोगी बच्चों को एक्स्ट्रा सहयोग मिलता है। इसलिए कुछ अपनी मेहनत कम भी दिखाई देती हो लेकिन बाप की मदद उस समय अन्त में एक्स्ट्रा मार्क्स दे पास विद आनर बना ही देती है। वह गुप्त होता है - इसलिए क्वेश्चन उठते हैं- कि क्या ऐसा हुआ? लेकिन यह सहयोग का रिटर्न है। जैसे कहावत है ना - ‘आईवेल में काम आता है’। तो जो दिल से सहयोगी रहे हैं उन्हों को ऐसे समय पर एक्स्ट्रा मार्क्स रिटर्न के रूप में प्राप्त होती है। समझा - इस रहस्य को? इसलिए नष्टोमोहा की विधि से एक्स्ट्रा मार्क्स की गिफ्ट से सफलता को प्राप्त कर लिया। समझा - पूछते रहे हो ना कि आखिर क्या है? सो आज यह रूह-रूहान सुना रहे हैं। अच्छा - दीदी ने क्या कहा? उसका अनुभव तो सभी जानते भी हो। वह यही बोल, बोल रही थी कि ‘सदा बाप और दादा की अँगुली पकड़ो या अँगुली दो। चाहे बच्चा बना के अँगुली पकड़ो, चाहे बाप बनाकर अँगुली दो। दोनों रूप से हर कदम में अँगुली पकड़ साथ का अनुभव कर चलना, यही मेरे सपालता का आधार है। तो यही विशेष रूह-रूहान चली। आदि रत्नों के संगठन में वह कैसे मिस होगी इसलिए वह भी इमर्ज थी। अच्छा - वह रही एडवांस पार्टी की बातें, आप क्या करेंगे?
एडवांस पार्टी अपना काम कर रही है। आप एडवांस फोर्स भरो। जिससे परिवर्तन करने के कार्य का कोर्स समाप्त हो जाए। क्योंकि फाउण्डेशन है। फाउण्डेशन ही बेहद के सेवाधारी बन, बेहद के बाप को प्रत्यक्ष करेंगे। प्रत्यक्षता का नगाड़ा, एक ही साज में बजेगा - ‘मिल गया, आ गया।’ ! अभी तो बहुत काम पड़ा है। आप समझ रहे हो कि पूरा हो रहा है। अभी तो वाणी द्वारा बदलने का कार्य चल रहा है। अभी वृत्ति द्वारा वृत्तियाँ बदलें, संकल्प द्वारा संकल्प बदल जाएं। अभी यह रिसर्च तो शुरू भी नहीं की है। थोड़ा-थोड़ा किया तो क्या हुआ? यह सूक्ष्म सेवा स्वत: ही कई कमज़ोरियों से पार कर देगी। जो समझते हैं कि यह कैसे होगा। वह जब इस सेवा में बिजी रहेंगे तो स्वत: ही वायुमण्डल ऐसा बनेगा जो अपनी कमज़ोरियाँ स्वयं को ही स्पष्ट अनुभव होंगी और वायुमण्डल के कारण स्वयं ही शर्मशार हो परिवर्तित हो जायेंगे। कहना नहीं पड़ेगा। कहने से तो देख लिया। इसलिए अभी ऐसा प्लैन बनाओ। जिज्ञासु और ज्यादा बढ़ेगे इसकी चिंता नहीं करो। मदोगरी भी बहुत बढ़ेगी। इसकी भी चिंता नहीं करो। मकान भी मिल जायेंगे इसकी भी चिंता नहीं करो। सब सिद्धि हो जायेगी। यह विधि ऐसी है जो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे। अच्छा –
शक्तियाँ बहुत हैं, आदि में निमित्त ज्यादा शक्तियाँ बनी। गोल्डन जुबली में भी शक्तियाँ ज्यादा रही हैं। पाण्डव थोड़े गिनती के हैं। फिर भी पाण्डव हैं। अच्छा है, हिम्मत रख आदि में सहन करने का सबूत तो यही आदि रतन हैं। विघ्न विनाशक बन निमित्त बन, निमित्त बनाने के कार्य में अमर रहें हैं। इसलिए बापदादा को भी अविनाशी, अमर भव के वरदानी बच्चे सदा प्रिय हैं। और यह आदि रतन स्थापना के, आवश्यकता के समय के सहयोगी हैं। इसलिए ऐसे निमित्त बनने वाली आत्माओं को, आईवेले पर सहयोगी बनने वाली आत्माओं को, ऐसी कोई भी वेला मुश्किल की आती है तो बापदादा भी उन्हें उसका रिटर्न देता है। इसलिए आप सभी जो भी ऐसे समय पर निमित्त बने हो उसकी यह एकस्ट्रा गिफ्ट ड्रामा मे नूंधी हुई है। इसलिए एक्स्ट्रा गिफ्ट के अधिकारी हो। समझा - माताओं के फुरी-फुरी बूंद-बूंद तालाब से स्थापना का कार्य आरम्भ हुआ और अभी सफलता के समीप पहुँचा। माताओं के दिल की कमाई है, धन्धे की कमाई नहीं। दिल की कमाई एक हजार के बराबर है। स्नेह का बीज डाला है इसलिए स्नेह के बीज का फल फलीभूत हो रहा है। है तो साथ पाण्डव भी। पाण्डवों के बिना भी तो कार्य नहीं चलता लेकिन ज्यादा संख्या शक्तियों की है। इसलिए 5 पाण्डव लिख दिये हैं। फिर भी प्रवृत्ति को निभाते न्यारे और बाप के प्यारे बन हिम्मत और उमंग का सबूत दिया है इसलिए पाण्डव भी कम नहीं हैं। शक्तियों का सर्वशक्तिवान गाया हुआ है तो पाण्डवों का पाण्डवपति भी गाया है। इसलिए जैसे निमित्त बने हो ऐसे निमित्त बने हो ऐसे सदा स्मृति में रख आगे बढ़ते चलो। अच्छा –
सदा पद्मापद्म भाग्य के अधिकारी, सदा सफलता के अधिकारी, सदा स्वयं को श्रेष्ठ आधारमूर्त समझ सर्व का उद्धार करने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’
दादियों से - घर का गेट कौन खोलेगा? गोल्डन जुबली वाले या सिल्वर जुबली वाले, ब्रह्मा के साथ गेट तो खोलेंगे ना! या पीछे आयेंगे? साथ जायेंगे तो सजनी बनकर जायेंगे और पीछे जायेंगे तो बराती बनकर जायेंगे। सम्बन्धी भी तो बराती कहे जायेंगे। नजदीक तो हैं लेकिन कहा जायेगा - बारात आई हैं। तो कौन गेट खोलेगा? गोल्डन जुबली वाले सा सिल्वर जुबली वाले? जो घर का गेट खोलेंगे वही स्वर्ग का गेट भी खोलेंगे। अभी वतन में आने की किसको मना नहीं है। साकार में तो फिर भी बन्धन है समय का सरकमस्टांस का। वतन में आने के लिए तो कोई बन्धन नहीं। कोई नहीं रोकेगा, टर्न लगाने की भी जरूरत नहीं। अभ्यास से ऐसा अनुभव करेंगे जैसे यहाँ शरीर में होते हुए एक सेकण्ड में चक्कर लगाकर वापस आ गये जो अन्त: वाहक शरीर से चक्र लगाने का गायन है। यह अन्तर की आत्मा वाहन बन जाती है। तो ऐसे अनुभव करेंगे जैसे बिल्कुल बटन दबाया, विमान उड़ा, चक्र लगाके आ गये और दूसरे भी अनुभव करेंगे कि यह यहाँ होते हुए भी नहीं है। जैसे साकार में देखा ना - बात करते-करते भी सेकण्ड में है और अभी नहीं है। अभी-अभी है, अभी-अभी नहीं है। यह अनुभव किया ना। ऐसे अनुभव किया ना! इसमें सिर्फ स्थूल विस्तार को समेटने की आवश्यकता है। जैसे साकार में देखा - इतना विस्तार होते हुए भी अन्तिम स्टेज क्या रही? विस्तार को समेटने की, उपराम रहने की। अभी-अभी स्थूल डारेक्शन दे रहे हैं और अभी-अभी अशरीरी स्थिति का अनुभव करा रहे हैं। तो यह समेटने की शक्ति की प्रत्यक्षता देखी! जो आप लोग भी कहते थे कि बाबा यहाँ है या नहीं हैं! सुन रहे हैं या नहीं सुन रहे हैं। लेकिन वह तीव्रगति ऐसी होती है, जो कार्य मिस नहीं करेंगे। आप बात सुना रहे हो तो बात मिस नहीं करेंगे। लेकिन गति इतनी तीव्र है जो दोनों ही काम एक मिनट में कर सकते है। सार भी कैच कर लेंगे और चक्र भी लगा लेंगे। ऐसे भी अशरीरी नहीं होंगे जो कोई बात कर रहा है, आप कहो कि सुना ही नहीं। गति फास्ट हो जाती है। बुद्धि इतनी विशाल हो जाती है जो एक ही समय पर दोनों कार्य करते हैं। यह तब होता जब समेटने की शक्ति यूज करो। अभी प्रवृत्ति का विस्तार हो गया है। उसमें रहते हुए यही अभ्यास फरिश्ते पन का साक्षात्कार करायेगा! अभी एक-एक छोटी-छोटी बात के पीछे यह जो मेहनत करनी पड़ती है - वह स्वतः ही ऊँच जाने से यह छोटी बातें व्यक्त भाव की अनुभव होंगी। ऊँचे जाने से नीचा पन अपने आप छूट जायेगा। मेहनत से बच जायेंगे। समय भी बचेगा, और सेवा भी फास्ट होगी, नहीं तो कितना समय देना पड़ता है! अच्छा –
“सिल्वर जुबली में आई हुई टीचर्स बहनों के प्रति अव्यक्त महावाक्य”
सभी ने सिल्वर जुबली मनाई! बनना तो गोल्डन एजड है, सिल्वर तो नहीं बनना है ना! गोल्डन एजड बनने के लिए इस वर्ष क्या प्लैन बनाया है? सेवा का प्लैन तो बनाते ही हो लेकिन स्व-परिवर्तन और बेहद का परिवर्तन - उसके लिए क्या प्लैन बनाया है? यह तो अपने-अपने स्थान का प्लैन बनाते हो, यह करेंगे। लेकिन आदि निमित्त हो तो बेहद के प्लैन वाले हो। ऐसे बुद्धि में इमर्ज होता है कि हमें इतने सारे विश्व का कल्याण करना है, यह इमर्ज होता है? या समझते हो कि यह तो जिनका काम है वही जानें! कभी बेहद का ख्याल आता है या अपने ही स्थानों का ख्याल रहता है? नाम ही है विश्व-कल्याणकारी, फलाने स्थान के कल्याणकारी तो नहीं कहते। लेकिन बेहद सेवा का क्या संकल्प चलता है? बेहद के मालिक बनना हैं ना, स्टेट के मालिक तो नहीं बनना है। सेवाधारी निमित्त आत्माओं में जब यह लहर पैदा हो तब वह लहर औरों में भी पैदा होगी। अगर आप लोगों में यह लहर नहीं होगी तो दूसरों में आ नहीं सकती। तो सदा बेहद के अधिकारी समझ, बेहद का प्लैन बनाओ। पहली मुख्य बात है -किसी भी प्रकार के हद के बन्धन में बंधे हुए तो नहीं हैं ना! बन्धन मुक्त ही बेहद की सेवा में सफल होंगे। यहाँ ही यह प्रत्यक्ष होता जा रहा है और होता रहेगा। तो इस वर्ष में क्या विशेषता दिखायेंगे? दृढ़ संकल्प तो हर वर्ष करते हो। जब भी कोई ऐसा चांस बनता है उसमें भी दृढ़ संकल्प तो करते भी हो, कराते भी हो। तो दृढ़ संकल्प लेना भी कामन हो गया है। कहने में दृढ़ संकल्प आता है लेकिन होता है - संकल्प। अगर दृढ़ होता तो दुबारा नहीं लेना पड़ता। ‘दृढ़ संकल्प’ यह शब्द कामन हो गया है। अभी कोई भी काम करते है तो कहते ऐसे ही हैं कि हाँ, दृढ़ संकल्प करते हैं लेकिन ऐसा कोई नया साधन निकालो जिससे सोचना और करना समान हो। प्लैन और प्रैक्टिकल दोनों साथ हों। प्लैन तो बहुत हैं लेकिन प्रैक्टिकल में समस्यायें भी आती हैं, मेहनत भी लगती है, सामना करना भी पड़ता है, यह तो होगा और होता ही रहेगा। लेकिन जब लक्ष्य है तो प्रैक्टिकल में सदा आगे बढ़ते रहेंगे। अभी ऐसा प्लैन बनाओ जो कुछ नवीनता दिखाई दे। नहीं तो हर वर्ष इकट्ठे होते हो, कहते हो वैसे का वैसा ही है। एक दो को वैसा ही देखते। मनपसन्द नहीं होता। जितना चाहते हैं उतना नहीं होता। वह कैसे हो? इसके लिए - ‘ओटे सो अर्जुन’। एक भी निमित्त बन जाता है तो औरों में भी उमंग उत्साह तो आता ही है। तो इतने सभी इकट्ठे हुए हो, ऐसा कोई प्लैन प्रैक्टिकल का बनाओ। थ्योरी के भी पेपर्स होते हैं, प्रैक्टिकल के भी होते हैं। यह तो है कि जो आदि से निमित्त बने हैं उन्हों का भाग्य तो श्रेष्ठ है ही। अभी नया क्या करेंगे?
इसके लिए विशेष अटेन्शन - हर कर्म करने के पहले यह लक्ष्य रखो कि मुझे स्वयं को सम्पन्न बनाए सैम्पुल बनाना है। होता क्या है कि संगठन का फायदा भी होता है तो नुकसान भी होता है। संगठन में एक दो को देख अलबेलापन भी आता है और संगठन में एक दो को देख करके उमंग उत्साह भी आता है, दोनों होता है। तो संगठन को अलबेलेपन से नहीं देखना है। अभी यह एक रीति हो गई है, यह भी करते हैं, यह भी करते हैं, हमने भी किया तो क्या हुआ! ऐसे चलता ही हैं। तो यह संगठन में अलबेलेपन का नुकसान होता है। संगठन से श्रेष्ठ बनने का सहयोग लेना वह अलग चीज़ है। अगर यह लक्ष्य रहे - कि मुझे करना है। मुझे करके औरों को कराना है। फिर उमंग उत्साह रहेगा करने का भी और कराने का भी। और बार-बार इस लक्ष्य को इमर्ज करें। अगर सिर्फ लक्ष्य रखा तो भी वह मर्ज हो जाता है। इसीलिए प्रैक्टिकल नहीं होता। तो लक्ष्य को समय प्रति समय इमर्ज करो। लक्ष्य और लक्षण भी बार-बार मिलाते चलो। फिर शक्तिशाली हो जायेंगे। नहीं तो साधारण हो जाता है। अभी इस वर्ष हर एक यही समझे कि हमें ‘सिम्पल और सैम्पल’ बनना है। यह सेवा की प्रवृत्ति वृद्धि को तो पाती रहती है लेकिन यह प्रवृत्ति उन्नति में विघ्न रूप नहीं बननी चाहिए। अगर उन्नति में विघ्न रूप बनती है तो उसे सेवा नहीं कहेंगे। अच्छा - है तो बहुत बड़ा झुण्ड! जब एक इतना छोटा-सा एटम बाम्ब भी कमाल कर दिखाता है तो यह इतने आत्मिक बाम्बस क्या नहीं कर सकते हैं! स्टेज पर तो आने वाले आप लोग हो ना। गोल्डन जुबली वाले तो हो गये बैकबोन लेकिन प्रैक्टिकल में स्टेज पर तो आने वाले आप हो। अभी ऐसा कुछ करके दिखाओ। - जैसे गोल्डन जुबली के निमित्त आत्माओं का स्नेह का संगठन दिखाई देता है और उस स्नेह के संगठन ने प्रत्यक्षफल दिखाया - सेवा की वृद्धि, सेवा में सफलता। ऐसे ही ऐसा संगठन बनाओ जो किले के रूप में हो। जैसे गोल्डन जुबली वाली निमित्त दीदियाँ, दादियाँ जो भी हैं उन्होंने जब स्नेह और संगठन की शक्ति का प्रत्यक्षफल दिखाया तो आप भी प्रत्यक्षफल दिखाओ। तो एक दो के समीप आने के लिए समान बनना पड़ेगा। संस्कार भिन्न-भिन्न तो हैं भी और रहेंगे भी। अभी जगदम्बा को देखो और ब्रह्मा को देखो - संस्कार भिन्न-भिन्न ही रहे। अभी जो भी निमित्त दीदी-दादियाँ हैं, संस्कार एक जैसे तो नहीं लेकिन संस्कार मिलाना - यह है स्नेह का सबूत। यह नहीं सोचो कि संस्कार मिलें तो संगठन हो, यह नहीं। संस्कार मिलाने से संगठन मजबूत बन ही जाता है। अच्छा - यह भी हो ही जायेगा। सेवा एक है लेकिन निमित्त बनना, निमित्त भाव में चलना - यही विशेषता है। यही तो हद निकलनी है ना? इसके लिए सोचा न? तो सबको चेन्ज करें। एक सेन्टर वाले दूसरे सेन्टरों में जाने चाहिए। सभी तैयार हो? आर्डर निकलेगा। आपका तो हैंडसअप हैं ना? बदलने में फायदा भी है। इस वर्ष यह नई बात करें ना। नष्टोमोहा तो होना ही पड़ेगा। जब त्यागी तपस्वी बन गये तो यह क्या है? त्याग ही भाग्य है। तो भाग्य के आगे यह क्या त्याग है! आफर करने वालों को आफरीन मिल जाती है। तो सभी बहादुर हो! बदली माना बदली। कोई को भी कर सकते हैं। हिम्मत है तो क्या बड़ी बात है। अच्छा तो इस वर्ष यह नवीनता करेंगे। पसन्द हैं ना! जिन्होंने एवररेडी का पाठ आदि से पढ़ा हुआ है उनमें यह भी अन्दर ही अन्दर बल भरा हुआ होता है। कोई भी आज्ञा पालन करने का बल स्वतः ही मिलता है तो सदा आज्ञाकारी बनने का बल मिला हुआ है, अच्छा - सदा श्रेष्ठ भाग्य है और भाग्य के कारण सहयोग प्राप्त होता ही रहेगा। समझा!
2. सेवा वर्तमान और भविष्य दोनों को ही श्रेष्ठ बनाती है। सेवा का बल कम नहीं है। याद और सेवा दोनों का बैलन्स चाहिए। तो सेवा उन्नति का अनुभव करायेगी। याद में सेवा करना नैचुरल हो। ब्राह्मण जीवन की नेचर क्या है? याद में रहना। ब्राह्मण जन्म लेना अर्थात् याद का बन्धन बांधना। जैसे वह ब्राह्मण जीवन में कोई न कोई निशानी रखते हैं- तो इस ब्राह्मण जीवन की निशानी है - ‘याद’। याद में रहना नैचुरल हो। इसलिए याद अलग की, सेवा अलग की, नहीं। दोनों इकट्ठे हों। इतना टाइम कहाँ है जो याद अलग करो, सेवा अलग करो।। इसलिए याद और सेवा सदा साथ है ही। इसी में ही अनुभवी भी बनते हैं, सफलता भी प्राप्त करते हैं। अच्छा –
सिलवर जुबली में आये हुए भाई-बहिनों प्रति अव्यक्त बापदादा का मधुर सन्देश
रजत जयन्ति के शुभ अवसर पर रूहानी बच्चों के प्रति स्नेह के सुनहरे पुष्प “सारे विश्व में ऊँचे से ऊँचे महायुग के महान पार्टधारी, युग परिवर्तक बच्चों को श्रेष्ठ सुहावने जीवन की मुबारक हो। सेवा में वृद्धि के निमित्त बनने के विशेष भाग्य की मुबारक हो। आदि से परमात्म स्नेही और सहयोगी बनने की, सैम्पल बनने की मुबारक हो। समय के समस्याओं के तूफान को तोफा समझ, सदा विघ्न-विनाशक बनने की मुबारक हो।
बापदादा सदा अपने ऐसे अनुभवों के खज़ानों से सम्पन्न सेवा के फाउण्डेशन बच्चों को देख हर्षित होते हैं और बच्चों के साहस के गुणों की माला सिमरण करते हैं। ऐसे लकी और लवली अवसर पर विशेष सुनहरे वरदान देते सदा एक बन, एक को प्रत्यक्ष करने के कार्य में सफल भव! रूहानी जीवन में अमर भव! प्रत्यक्ष फल और अमर फल खाने के पद्म भाग्यवान भव!”