16-02-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प
भाग्य विधाता बाप अपने भाग्यवान बच्चों प्रति बोले
आज भाग्य विधाता बाप अपने चारों ओर के पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को देख रहें हैं। हर एक बच्चे के मस्तक पर भाग्य का चमकता हुआ सितारा देख हर्षित हो रहें हैं। सारे कल्प में ऐसा कोई बाप हो नही सकता जिसके इतने सभी बच्चे भाग्यवान हों। नम्बरवार भाग्यवान होते हुए भी दुनिया के आजकल के श्रेष्ठ भाग्य के आगे लास्ट नम्बर भाग्यवान बच्चा भी अति श्रेष्ठ है। इसलिए बेहद के बापदादा को सभी बच्चों के भाग्य पर नाज़ है। बापदादा भी सदा - वाह मेंरे भाग्यवान बच्चे, वाह एक लगन में मगन रहने वाले बच्चे, यही गीत गाते रहते हैं। बापदादा आज विशेष सर्व बच्चों के स्नेह और साहस, दोनों विशेषताओं की मुबारक देने आये हैं।
हर एक ने यथा योग्य स्नेह का रिटर्न सेवा मे दिखाया। एक लगन से एक बाप को प्रत्यक्ष करने की हिम्मत प्रत्यक्ष रूप मे दिखाई। अपना-अपना कार्य उमंग उत्साह से सम्पन्न किया। यह कार्य के खुशी की मुबारक बापदादा दे रहे हैं। देशविदेश के सम्मुख आने वाले वा दूर बैठे भी अपने दिल के श्रेष्ठ संकल्प द्वारा वा सेवा द्वारा सहयोगी बने हैं तो सभी बच्चों को बापदादा ‘सदा सफलता भव, सदा हर कार्य में सम्पन्न भव, सदा प्रत्यक्ष प्रमाण भव का वरदान दे रहे हैं।’ सभी स्व परिवर्तन की, सेवा में और भी आगे बढ़ने की शुभ उमंग उत्साह की प्रतिज्ञायें बापदादा ने सुनी। सुनाया था ना कि बापदादा के पास आपकी साकार दुनिया से न्यारी शक्तिशाली टी.वी. है। आप सिर्फ शरीर के एक्ट को देख सकते हो। बापदादा मन के संकल्प को भी देख सकते हैं। जो भी हर एक ने पार्ट बजाया वह सब संकल्प सहित, मन की गतिविधि और तन की गतिविधि दोनों ही देखी, सुनी। क्या देखा होगा? आज तो मुबारक देने आये हैं इसलिए और बातें आज नहीं सुनायेंगे। बापदादा और साथ में सभी आपके सेवा के साथी बच्चों ने एक बात पर बहुत खुशी की तालियाँ बजाई। हाथ की तालियाँ नहीं, खुशी की तालियाँ बजाई कि सारे संगठन में सेवा द्वारा अभी-अभी बाप को प्रत्यक्ष कर लें, अभी-अभी विश्व में आवाज फैल जाए... यह एक उमंग और उत्साह का संकल्प सभी में एक था। चाहे भाषण करने वाले, चाहे सुनने वाले, चाहे कोई भी स्थूल कार्य करने वाले, सभी में यह संकल्प खुशी के रूप में अच्छा रहा। इसलिए चारों ओर खुशी की रौनक, प्रत्यक्ष करने का उमंग, वातावरण को खुशी की लहर में लाने वाला रहा। मैजारटी खुशी और नि:स्वार्थ स्नेह, यह अनुभव का प्रसाद ले गये। इसलिए बापदादा भी बच्चों की खुशी में खुश हो रहे थे। समझा।
गोल्डन जुबली भी मना ली ना! अभी आगे क्या मनायेंगे? डायमण्ड जुबली यहाँ ही मनायेंगे या अपने राज्य में मनायेंगे? गोल्डन जुबली किसलिए मनाई? गोल्डन दुनिया लाने के लिए मनाई ना। इस गोल्डन जुबली से क्या श्रेष्ठ गोल्डन संकल्प किया? दूसरों को तो गोल्डन थाट्स बहुत सुनायें। अच्छे-अच्छे सुनायें। अपने प्रति कौन-सा विशेष सुनहरी संकल्प किया? जो पूरा वर्ष हर संकल्प हर घड़ी गोल्डन हो। लोग तो सिर्फ गोल्डन मार्निंग या गोल्डन नाइट कह देते या गोल्डन इवनिंग कहते हैं। लेकिन आप सर्वश्रेष्ठ आत्माओं की हर सेकण्ड गोल्डन हो। गोल्डन सेकण्ड हो, सिर्फ गोल्डन मार्निग या गोल्डन नाइट नहीं। हर सेकण्ड आपके दोनों नयनों में गोल्डन दुनिया और गोल्डन लाइट का स्वीट होम हो। वह गोल्डन लाइट है, वह गोल्डन दुनिया है। ऐसे ही अनुभव हो। याद है ना - शुरू-शुरू में एक चित्र बनाते थे। एक आँख में मुक्ति दूसरी आँख में जीवनमुक्ति। यह अनुभव कराना यही गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प है। ऐसा संकल्प सभी ने किया या सिर्फ दृश्य देख-देखकर खुश होते रहें। गोल्डन जुबली इस श्रेष्ठ कार्य की है। कार्य के निमित्त आप सभी भी कार्य के साथी हो। सिर्फ साक्षी हो देखने वाले नहीं, साथी हो। विश्व-विद्यालय की गोल्डन जुबली है। चाहे एक दिन का भी विद्यार्था हो। उसकी भी गोल्डन जुबली है। और ही बनी बनाई जुबली पर पहुँचे हो। बनाने की मेहनत इन्होनें की और मनाने के समय आप सब पहुँच गये। तो सभी को गोल्डन जुबली की बापदादा भी बधाई देते हैं। सभी ऐसे समझते हो ना! देखने वाले तो सिर्फ नहीं हो ना! बनने वाले हैं या देखने वाले! देखा तो दुनिया में बहुत कुछ है लेकिन यहाँ देखना अर्थात् बनना। सुनना अर्थात् बनना। तो क्या संकल्प किया? हर सेकण्ड गोल्डन हो। हर संकल्प गोल्डन हो। सदा हर आत्मा के प्रति स्नेह के, खुशी के सुनहरी पुष्प की वर्षा करते रहो। चाहे दुश्मन भी हो लेकिन स्नेह की वर्षा दुश्मन को भी दोस्त बना देगी। चाहे कोई आपको मान दे वा माने न माने। लेकिन आप सदा स्वमान में रह औरों को स्नेही दृष्टि से, स्नेही वृत्ति से आत्मिक मान देते चलो। वह माने न माने आपको लेकिन आप उसको मीठा भाई, मीठी बहन मानते चलो। वह नहीं माने, आप तो मान सकते हो ना! वह पत्थर फेंके, आप रत्न दो। आप भी पत्थर न फेंको क्योंकि आप रत्नागर बाप के बच्चे हो। रत्नों की खान के मालिक हो। मल्टी-मल्टी-मल्टीमिलिनियर हो। भिखारी नहीं हो जो सोचो - वह दे तब दूँ। यह भिखारी के संस्कार हैं। दाता के बच्चे कभी लेने का हाथ नहीं फैलाते। बुद्धि से भी यह संकल्प करना कि यह करें तो मैं करूँ, यह स्नेह दे तो मैं दूँ। यह मान देवे तो मैं दूँ। यह भी हाथ फैलाना है। यह भी रॉयल भिखारीपन है। इसमें निष्काम योगी बनो। तब ही गोल्डन दुनिया की खुशी की लहर विश्व तक पहुँचेगी। जैसे विज्ञान की शक्ति, सारे विश्व को समाप्त करने की सामग्री बहुत शक्तिशाली बनाई है। जो थोड़े समय में कार्य समाप्त हो जाए। विज्ञान की शक्ति ऐसे रिफाइन वस्तु बना रही है। आप ज्ञान की शक्ति वाले ऐसे शक्तिशाली वृत्ति और वायुमण्डल बनाओ जो थोड़े समय में चारों ओर खुशी की लहर, सृष्टि के श्रेष्ठ भविष्य की लहर, बहुत जल्दी से जल्दी फैल जाए। आधी दुनिया अभी आधा मरी हुई है। भय के मौत की शैय्या पर सोई हुई है। उसको खुशी की लहर की आक्सीजन दो। यही गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प सदा इमर्ज रूप में रहे। समझा क्या करना है? अभी और गति को तीव्र बनाना है। अब तक जो किया वह भी बहुत अच्छा किया। अभी आगे और भी अच्छे ते अच्छा करते चलो। अच्छा।
डबल विदेशियों को बहुत उमंग है। अभी हैं तो डबल विदेशियों का चांस। पहुँच भी गये हैं बहुत। समझा! अभी सभी को खुशी की टोली खिलाओ। दिल खुश मिठाई होती है ना! तो खूब दिलखुश मिठाई बाँटो। अच्छा - सेवाधारी भी खुशी में नाच रहे हैं ना! नाचने से थकावट खत्म हो जाती है। तो सेवा की या खुशी की डांस सभी को दिखाई? क्या किया? डांस दिखाई ना! अच्छा –
सर्वश्रेष्ठ भाग्यवान, विशेष आत्माओं को, हर सेकण्ड, हर संकल्प सुनहरी बनाने वाले सभी आज्ञाकारी बच्चों को, सदा दाता के बच्चे बन सर्व की झोली भरने वाले सम्पन्न बच्चों को, सदा विधाता और वरदाता बन सर्व को मुक्ति वा जीवनमुक्ति की प्राप्ति कराने वाले, सदा भरपूर बच्चों को बापदादा का सुनहरी स्नेह के सुनहरी खुशी के पुष्पों सहित यादप्यार, बधाई और नमस्ते।’’
पार्टियों से - सदा बाप और वर्सा दोनों याद रहता है? बाप की याद स्वत: ही वर्से की भी याद दिलाती है और वर्सा याद है तो बाप की स्वत: याद है। बाप और वर्सा दोनों साथ-साथ हैं। बाप को याद करते हैं - वर्से के लिए। अगर वर्से की प्राप्ति न हो तो बाप को भी याद क्यों करे! तो बाप और वर्सा यही याद - सदा ही भरपूर बनाती है। खज़ानों से भरपूर और दुख दर्द से दूर। दोनों ही फायदा हैं। दुःख से दूर हो जाते और खज़ानों से भरपूर हो जाते। ऐसी प्राप्ति सदाकाल की, बाप के बिना और कोई करा नहीं सकता। यही स्मृति सदा सन्तुष्ट, सम्पन्न बनायेगी। जैसे बाप सागर है, सदा भरपूर है। कितना भी सागर को सुखाए फिर भी सागर समाप्त होने वाला नहीं। सागर सम्पन्न है। तो आप सभी सदा सम्पन्न आत्मायें हो ना! खाली होंगे तो कहाँ लेने के लिए हाथ फैलाना पड़ेगा। लेकिन भरपूर आत्मा सदा ही खुशी के झूले में झूलती रहती है, सुख के झूले में झूलती रहती है। तो ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें बन गये। सदा सम्पन्न रहना ही है। चेक करो मिले हुए शक्तियों के खज़ाने को कहाँ तक कार्य में लगाया है!
सदा हिम्मत और उमंग के पंखों से उड़ते रहो और दूसरों को उड़ाते रहो। हिम्मत है उमंग उत्साह नहीं तो भी सफलता नहीं। उमंग है हिम्मत नहीं तो भी सफलता नहीं। दोनों साथ रहें तो उड़ती कला है। इसलिए सदा हिम्मत और उमंग के पंखों से उड़ते रहो। अच्छा।