20-02-86   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


उड़ती कला से सर्व का भला

सदा कल्याणकारी शिव बाबा बोले

आज विशेष डबल विदेशी बच्चों को डबल मुबारक देने आये हैं। एक दूरदेश में भिन्न धर्म में जाते हुए भी नजदीक भारत में रहने वाली अनेक आत्माओं से जल्दी बाप को पहचाना। बाप को पहचानने की अर्थात् अपने भाग्य को प्राप्त करने की मुबारक और दूसरी जैसे तीव्रगति से पहचाना वैसे ही तीव्रगति से सेवा में स्वयं को लगाया। तो सेवा में तीव्रगति से आगे बढ़ने की दूसरी मुबारक। सेवा की वृद्धि की गति तीव्र रही है और आगे भी डबल विदेशी बच्चों को विशेष कार्य अर्थ निमित्त बनना है। भारत के निमित्त आदि रत्नों ने, विशेष आत्माओं ने स्थापना के कार्य में बहुत मजबूत फाउण्डेशन बन कार्य की स्थापना की और डबल विदेशी बच्चों ने चारों ओर आवाज फैलाने की तीव्रगति की सेवा की और करते रहेंगे। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को आते ही, जन्मते ही बहुत जल्दी सेवा में आगे बढ़ने की विशेष मुबारक दे रहें हैं। थोड़े समय में भिन्न-भिन्न देशों में विस्तार सेवा का किया है, इसलिए आवाज फैलाने का कार्य सहज वृद्धि को पा रहा है। और सदा डबल लाइट बन डबल ताजधारी बनने का सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त करने का तीव्र पुरूषार्थ अवश्य करेंगे। आज विशेष मिलने के लिए आये हैं। बापदादा देख रहे हैं कि सभी की दिल में खुशी के बाजे बज रहें हैं। बच्चों की खुशी के साज, खुशी के गीत बापदादा को सुनाई देते हैं। याद और सेवा में लगन से आगे बढ़ रहे हैं। याद भी है, सेवा भी है लेकिन अभी एडीशन क्या होना है? हैं दोनों ही लेकिन सदा दोनों का बैलेन्स रहे। यह बैलेन्स स्वयं को और सेवा मे बाप की ब्लैसिंग के अनुभवी बनाता है। सेवा का उमंग उत्साह रहता है। अभी और भी सेवा में याद और सेवा का बैलेन्स रखने से ज्यादा आवाज बुलन्द रूप में विश्व में गूँजेगा। विस्तार अच्छा किया है। विस्तार के बाद क्या किया जाता है? विस्तार के साथ अभी और भी सेवा का सार ऐसी विशेष आत्मायें निमित्त बनानी हैं जो विशेष आत्मायें भारत की विशेष आत्माओं को जगायें। अभी भारत में भी सेवा की रूपरेखा, समय प्रमाण आगे बढ़ती जा रही हैं। नेतायें, धर्मनेतायें और साथ-साथ अभिनेतायें भी सम्पर्क में आ रहे हैं। बाकी कौन रहे हैं? सम्पर्क में तो आ रहे हैं, नेतायें भी आ रहे हैं लेकिन विशेष राजनेतायें उन्हों तक भी समीप सम्पर्क में आने का संकल्प उत्पन्न होना ही है।

सभी डबल विदेशी बच्चे उड़ती कला में जा रहे हो ना! चढ़ती कला वाले तो नही हो ना! उड़ती कला है? ‘उड़ती कला होना अर्थात् सर्व का भला होना।जब सभी बच्चों की एकरस उड़ती कला बन जायेगी तो सर्व का भला अर्थात् परिवर्तन का कार्य सम्पन्न हो जायेगा। अभी उड़ती कला है लेकिन उड़ती के साथ-साथ स्टेजेस है। कभी बहुत अच्छी स्टेज है और कभी स्टेज के लिए पुरूषार्थ करने की स्टेज हैं। सदा और मैजारटी की उड़ती कला होना अर्थात् समाप्ति होना। अभी सभी बच्चे जानते हैं कि उड़ती कला ही श्रेष्ठ स्थिति है। उड़ती कला ही कर्मातीत स्थिति को प्राप्त करने की स्थिति है। उड़ती कला ही देह में रहते, देह से न्यारी ओर सदा बाप और सेवा में प्यारे-पन की स्थिति है। उड़ती कला ही विधाता और वरदाता स्टेज की स्थिति है। उड़ती कला ही चलते फिरते फरिश्ता वा देवता दोनों रूप का साक्षात्कार कराने वाली स्थिति है।

उड़ती कला सर्व आत्माओं को भिखारीपन से छुड़ाए बाप के वर्से के अधिकारी बनाने वाली है। सभी आत्मायें अनुभव करेंगी कि हम सब आत्माओं के इष्ट देव वा इष्ट देवियाँ वा निमित्त बने हुए जो भी अनेक देवतायें हैं, सभी इस धरनी पर अवतरित हो गए हैं। सतयुग में तो सब सद्गति में होंगे लेकिन इस समय जो भी आत्मायें है - सर्व के सद्गतिदाता हो। जैसे कोई भी ड्रामा जब समाप्त होता है तो अन्त में सभी एक्टर्स स्टेज पर सामने आते हैं। तो अभी कल्प का ड्रामा समाप्त होने का समय आ रहा है। सारी विश्व की आत्माओं को चाहे स्वप्न में, चाहे एक सेकण्ड की झलक में, चाहे प्रत्यक्षता के चारों ओर के आवाज द्वारा यह जरूर साक्षात्कार होना है कि इस ड्रामा के हीरो पार्टधारी स्टेज पर प्रत्यक्ष हो गये। धरती के सितारे, धरती पर प्रत्यक्ष हो गये। सब अपने-अपने इष्ट देव को प्राप्त कर बहुत खुश होंगे। सहारा मिलेगा। डबल विदेशी भी इष्ट देव, इष्ट देवियों में हैं ना! या गोल्डन जुबली वाले हैं? आप भी उसमें हो या देखने वाले हो? जैसे अभी गोल्डन जुबली का दृश्य देखा। यह तो एक रमणीक पार्ट बजाया। लेकिन जब फाइनल दृश्य होगा उसमें तो आप साक्षात्कार कराने वाले होंगे या देखने वाले होंगे? क्या होंगे? हीरो एक्टर हो ना! अभी इमर्ज करो वह दृश्य कैसा होगा। इसी अन्तिम दृश्य के लिए अभी से त्रिकालदर्शी बन देखो कि कैसा सुन्दर दृश्य होगा और कितने सुन्दर हम होंगे। सजे सजाये दिव्य गुण मूर्त्त फरिश्ते सो देवता, इसके लिए अभी से अपने को सदा फरिश्ते स्वरूप की स्थिति का अभ्यास करते हुए आगे बढ़ते चलो। जो चार विशेष सब्जेक्ट हैं - ज्ञान मूर्त, निरन्तर याद मूर्त, सर्व दिव्यगुण मूर्त, एक दिव्य गुण की भी कमी होगी तो 16 कला सम्पन्न नहीं कहेंगे। 16 कला, सर्व और सम्पूर्ण यह तीनों महिमा हैं। सर्वगुण सम्पन्न कहते हो, सम्पूर्ण निर्विकारी कहते हो और 16 कला सम्पन्न कहते हो। तीनों विशेषतायें चाहिए। 16 कला अर्थात् सम्पन्न भी चाहिए, सम्पूर्ण भी चाहिए और सर्व भी चाहिए। तो यह चेक करो। सुनाया था ना कि यह वर्ष बहुतकाल के हिसाब में जमा होने का है फिर बहुतकाल का हिसाब समाप्त हो जायेगा, फिर थोड़ा काल कहने में आयेगा, बहुतकाल नहीं। बहुतकाल के पुरूषार्थ की लाइन में आ जाओ। तभी बहुतकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करने के अधिकारी बनेंगे। नहीं तो बहुत काल का राज्य भाग्य बदल कुछ कम राज्य भाग्य प्राप्त होने के अधिकारी बनेंगे। दो चार जन्म भी कम हुआ तो बहुतकाल में गिनती नहीं होगी। पहला जन्म हो और पहला प्रकृति का श्रेष्ठ सुख हो। वन-वन- वन हो। सबमें वन हो। उसके लिए क्या करना पड़ेगा? सेवा भी नम्बरवन, स्थिति भी नम्बरवन तब तो वन-वन में आयेंगे ना! तो सतयुग के आदि में आने वाले नम्बरवन आत्मा के साथ पार्ट बजाने वाले और नम्बरवन जन्म में पार्ट बजाने वाले। तो संवत भी आरम्भ आप करेंगे। पहले-पहले जन्म वाले ही पहली तारीख पहला मास पहला संवत शुरू करेंगे। तो डबल विदेशी नम्बरवन में आयेंगे ना। अच्छा - फरिश्तेपन की ड्रेस पहनने आती है ना! यह चमकीली ड्रेस है। यह स्मृति और स्वरूप बनना अर्थात् फरिश्ता ड्रेस धारण करना। चमकने वाली चीज़ दूर से ही आकर्षित करती है। तो यह फरिश्ता ड्रेस अर्थात् फरिश्ता स्वरूप दूरदूर तक आत्माओं को आकर्षित करेगी। अच्छा –

आज यू.के. का टर्न है। यू.के.वालों की विशेषता क्या है? लण्डन को सतयुग में भी राजधानी बनायेंगे या सिर्फ घूमने का स्थान बनायेंगे? है तो युनाइटेड किंगडम ना! वहाँ भी किंगडम बनायेंगे या सिर्फ किंग्स जाकर चक्र लगायेंगे? फिर भी जो नाम है, किंगडम कहते हैं। तो इस समय सेवा का किंगडम तो है ही। सारे विदेश के सेवा की राजधानी तो निमित्त है ही। किंगडम नाम तो ठीक है ना! सभी को युनाइट करने वाली किंगडम है। सभी आत्माओं को बाप से मिलाने की राजधानी है। यू.के. वालों को बापदादा कहते हैं ओ.के.रहने वाले। यू.के. अर्थात् ओ.के. रहने वाले। कभी भी किसी से भी पूछें तो ओ.के.’, ऐसे हैं ना! ऐसे तो नहीं कहेंगे - हाँ - हैं तो सही। लम्बा श्वांस उठाकर कहते हैं - हाँ। और जब ठीक होते हैं तो कहते हैं - हाँ ओ.के., ओ.के। फर्क होता है। तो संगमयुग की राजधानी, सेवा की राजधानी जिसमें राज्य सत्ता अर्थात् रायल फैमली की आत्मायें तैयार होने की प्रेरणा चारों ओर फैले। तो राजधानी में राज्य अधिकारी बनाने का राजस्थान तो हुआ ना। इसलिए बापदादा हर देश की विशेषता को विशेष रूप से याद करते हैं और विशेषता से सदा आगे बढ़ाते हैं। बापदादा कमज़ोरियाँ नहीं देखते हैं, सिर्फ इशारा देते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे कहते-कहते बहुत अच्छे हो जाते हैं। कमज़ोर हो, कमज़ोर हो कहते हो तो कमज़ोर हो जाते। एक तो पहले कमज़ोर होते हैं दूसरा कोई कह देता है तो मूर्छित हो जाते हैं। कैसा भी मूर्छित हो लेकिन उसको श्रेष्ठ स्मृति की, विशेषताओं की स्मृति की संजीवनी बूटी खिलाओ तो मूर्छित से सुरजीत हो जायेगा। संजीवनी बूटी सबके पास है ना! तो विशेषताओं के स्वरूप का दर्पण उसके सामने रखो। क्योंकि हर ब्राह्मण आत्मा विशेष है। कोटो में कोई है ना। तो विशेष हुई ना! सिर्फ उस समय अपनी विशेषता को भूल जाते हैं। उसको स्मृति दिलाने से विशेष आत्मा बन ही जायेंगे। और जितनी विशेषता का वर्णन करेंगे तो उसको स्वयं ही अपनी कमज़ोरी और ही ज्यादा स्पष्ट अनुभव होगी। आपको कराने की जरूरत नहीं होगी। अगर आप किसको कमज़ोरी सुनायेंगे तो वह छिपायेंगे। टाल देंगे, मैं ऐसा नहीं हूँ। आप विशेषता सुनाओ। जब तक कमज़ोरी स्वयं ही अनुभव न करे तब तक परिवर्तन कर नहीं सकते। चाहे 50 वर्ष आप मेहनत करते रहो। इसलिए इस संजीवनी बूटी से मूर्छित को भी सुरजीत कर उड़ते चलो और उड़ाते चलो। यही यू.के.करता है ना! अच्छा –

लंदन से और-और स्थानों पर कितने गये हैं? भारत से तो गये हैं, लंदन से कितने गये हैं? आस्ट्रेलिया से कितने गये? आस्ट्रेलिया ने भी वृद्धि की है और कहाँ-कहाँ गये? ज्ञान गंगायें जितना दूर-दूर बहती हैं उतना अच्छा है। यू.के.आस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप में कितने सेन्टर हैं? (सबने अपनी-अपनी संख्या सुनाई)

मतलब तो वृद्धि को प्राप्त कर रहे हो। अभी कोई विशेष स्थान रहा हुआ है? (बहुत हैं) अच्छा उसका प्लैन भी बना रहे हो ना? विदेश को यह लिफ्ट है कि बहुत सहज सेन्टर खोल सकते हैं। लौकिक सेवा भी कर सकते हैं और अलौकिक सेवा के भी निमित्त बन सकते हैं। भारत में फिर भी निमन्त्रण पर सेन्टर स्थापन होने की विशेषता रही है लेकिन विदेश में स्वयं ही निमन्त्रण स्वयं को देते। निमन्त्रण देने वाले भी खुद और पहुँचने वाले भी खुद तो यह भी सेवा में वृद्धि सहज होने की एक लिफ्ट मिली हुई है। जहाँ भी जाओ तो दो तीन मिलकर वहाँ स्थापना के निमित्त बन सकते हो और बनते रहेंगे। यह ड्रामा अनुसार गिफ्ट कहो, लिफ्ट कहो, मिली हुई है। क्योंकि थोड़े समय में सेवा को समाप्त करना है तो तीव्रगति हो तब तो समय पर समाप्त हो सके। भारत की विधि और विदेश की विधि में अन्तर है इसलिए विदेश में जल्दी वृद्धि हो रही है और होती रहेगी। एक ही दिन में बहुत ही सेन्टर खुल सकते हैं। चारों ओर विदेश में निमित्त रहने वाले विदेशियों को सेवा का चांस सहज है। भारत वालों को देखो वीसाभी मुश्किल मिलती है। तो यह चांस है वहाँ के रहने वाले ही वहाँ की सेवा के निमित्त बनते हैं इसलिए सेवा का चांस है। जैसे लास्ट सो फास्ट जाने का चांस है वैसे सेवा का चांस भी फास्ट मिला हुआ है इसलिए उल्हना नहीं रहेगा कि हम पीछे आये। पीछे आने वालों को फास्ट जाने का चांस भी विशेष है इसलिए हर एक सेवाधारी है। सभी सेवाधारी हो या सेन्टर पर रहने वाले सेवाधारी हैं? कहाँ भी हैं सेवा के बिना चैन नहीं हो सकती। सेवा ही चैन की निंद्रा है। कहते हैं - चैन से सोना यही जीवन है। सेवा ही चैन की निंद्रा कहो, सोना कहो। सेवा नहीं तो चैन की नींद नहीं। सुनाया ना, सेवा सिर्फ वाणी की नहीं, हर सेकण्ड सेवा है। हर संकल्प में सेवा है। कोई भी यह नहीं कह सकता - चाहे भारतवासी चाहे विदेश में रहने वाले कोई ब्राह्मण यह नहीं कह सकते कि सेवा का चांस नहीं है। बीमार है तो भी मन्सा सेवा, वायुमण्डल बनाने की सेवा, वायब्रेशन फैलाने की सेवा तो कर ही सकते हैं। कोई भी प्रकार की सेवा करो लेकिन सेवा में ही रहना है। सेवा ही जीवन है। ब्राह्मण का अर्थ ही है सेवाधारी। अच्छा –

सदा उड़ती कला सर्व का भलास्थिति में स्थित रहने वाले, सदा स्वयं को फरिश्ता अनुभव करने वाले, सदा विश्व के आगे इष्ट देव रूप में प्रत्यक्ष होने वाले देव आत्मायें, सदा स्वयं को विशेष आत्मा समझ औरों को भी विशेषता का अनुभव कराने वाले विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से

सदा स्वयं को कर्मयोगी अनुभव करते हो? कर्मयोगी जीवन अर्थात् हर कार्य करते याद की यात्रा में सदा रहे। यह श्रेष्ठ कार्य श्रेष्ठ बाप के बच्चे ही करते हैं और सदा सफल होते हैं। आप सभी कर्मयोगी आत्मायें हो ना! कर्म में रहतेन्यारा और प्यारासदा इसी अभ्यास से स्वयं को आगे बढ़ाना है। स्वयं के साथ-साथ विश्व की जिम्मेवारी सभी के ऊपर है। लेकिन यह सब स्थूल साधन हैं। कर्मयोगी जीवन द्वारा आगे बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। यही जीवन अति प्रिय जीवन है। सेवा भी और खुशी भी हो। दोनों साथ-साथ, ठीक हैं ना! गोल्डन जुबली तो सभी की है। गोल्डन अर्थात् सतोप्रधान स्थिति में स्थित रहने वाले। तो सदा अपने को इस श्रेष्ठ स्थिति द्वारा आगे बढ़ाते चलो। सभी ने सेवा अच्छी तरह से की ना! सेवा का चांस भी अभी ही मिलता है फिर यह चांस समाप्त हो जाता है। तो सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो। अच्छा