31-03-86 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सर्वशक्ति-सम्पन्न बनने तथा वरदान पाने का वर्ष
सर्वशक्तिवान वरदाता शिव बाबा बोले
आज सर्व खज़ानों के मालिक, अपने मास्टर बच्चों को देख रहे हैं। बालक सो मालिक, कहाँ तक बने हैं यह देख रहे हैं। इस समय जो श्रेष्ठ आत्मायें सर्व शक्तियों के सर्व खज़ानों के मालिक बनते हैं वह मालिकपन के संस्कार भविष्य में भी विश्व के मालिक बनाते हैं। तो क्या देखा? बालक तो सभी हैं, बाबा और मैं यह लगन सभी बच्चों में अछी लग गई है। बालक पन का नशा तो सभी में हैं लेकिन बालक सो मालिक अर्थात् बाप समान सम्पन्न। तो बालकपन की स्थिति और मालिकपन की स्थिति इसमें अन्तर देखा। मालिकपन अर्थात् हर कदम स्वत: ही सम्पन्न स्थिति में स्वयं का होगा और सर्व प्रति भी होगा। इसको कहते हैं मास्टर अर्थात् ‘बालक सो मालिक’। मालिकपन की विशेषता - जितना ही मालिक उतना ही विश्व-सेवाधारी के संस्कार सदा इमर्ज रूप में हैं। जितना ही मालिकपन का नशा उतना ही साथ-साथ विश्व-सेवाधारी का नशा। दोनों की समानता हो। यह है बाप समान मालिक बनना। तो यह रिजल्ट देख रहे थे कि बालक और मालिक दोनों स्वरूप सदा ही प्रत्यक्ष कर्म में आते हैं वा सिर्फ नॉलेज तक हैं! लेकिन नॉलेज और प्रत्यक्ष कर्म में अन्तर है। कई बच्चे इस समानता में बाप समान प्रत्यक्ष कर्म रूप में अच्छे देखे। कई बच्चे अभी भी बालकपन में रहते हैं लेकिन मालिकपन के उस रूहानी नशे में बाप समान बनने की शक्तिशाली स्थिति में कभी स्थित होते हैं और कभी स्थित होने के प्रयत्न में समय चला जाता है।
लक्ष्य सभी बच्चों का यही श्रेष्ठ है कि बाप समान बनना ही है। लक्ष्य शक्तिशाली है। अब लक्ष्य को संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लाना है। इसमें अन्तर पड़ जाता है। कोई बच्चे संकल्प तक समान स्थिति में स्थित रहते हैं। कोई संकल्प के साथ वाणी तक भी आ जाते हैं। कभी-कभी कर्म में भी आ जाते हैं। लेकिन जब सम्बन्ध, सम्पर्क में आते, सेवा के सम्बन्ध में आते, चाहे परिवार के सम्बन्ध में आते, इस सम्बन्ध और सम्पर्क में आने में परसेन्टेज कभी कम हो जाती है। बाप समान बनना अर्थात् एक ही समय संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध सबमें बाप समान स्थिति में रहना। कोई दो में रहते कोई तीन में रहते। लेकिन चारों ही स्थिति जो बताई उसमें कभी कैसे, कभी कैसे हो जाते हैं। तो बापदादा का बच्चों के प्रति सदा अति स्नेही भी हैं। स्नेह का स्वरूप सिर्फ अव्यक्त का व्यक्त रूप में मिलना नहीं है। लेकिन स्नेह का स्वरूप है - समान बनना। कई बच्चे ऐसे सोचते हैं कि बापदादा निर्मोही बन रहें हैं। लेकिन यह निर्मोही बनना नहीं है। यह विशेष स्नेह का स्वरूप है।
बापदादा पहले से ही सुना चुके हैं कि बहुतकाल की प्राप्ति के हिसाब का समय अभी बहुत कम है। इसलिए बापदादा बच्चों को सदा बहुतकाल के लिए विशेष दृढ़ता की तपस्या द्वारा स्वयं को तपाना अर्थात् मजबूत करना, परिपक्व करना इसके लिए यह विशेष समय दे रहें हैं। वैसे तो गोल्डन जुबली में भी सभी ने संकल्प किया कि समान बनेंगे। विघ्न विनाशक बनेंगे। समाधान स्वरूप बनेंगे। यह सब वायदे बाप के पास चित्रगुप्त के रूप में हिसाब के खाते में नूँधे हुए हैं। आज भी कई बच्चों ने दृढ़ संकल्प किया। समर्पण होना अर्थात् स्वयं को सर्व प्राप्तियों में परिपक्व बनाना। समर्पणता का अर्थ ही है संकल्प बोल कर्म और सम्बन्ध इन चारों में ही बाप समान बनना। पत्र जो लिख कर दिया वह पत्र वा संकल्प सूक्ष्मवतन में बापदादा के पास सदा के लिए रिकार्ड में रह गया। सबकी फाइल्स वहाँ वतन में हैं। हर एक का यह सकंल्प अविनाशी हो गया।
इस वर्ष बच्चों के दृढ़ता की तपस्या से हर संकल्प को अमर, अविनाशी बनाने के लिए, स्वयं से बार-बार दृढ़ता के अभ्यास से रूह-रूहान करने के लिए, रियलाइजेशन करने के लिए और रीइनकारनेट स्वरूप बन फिर कर्म में आने के लिए इस स्थिति को सदाकाल के लिए और मजबूत करने के लिए, बापदादा यह समय दे रहें हैं। साथ-साथ विशेष रूप में शुद्ध संकल्प की शक्ति से जमा का खाता और बढ़ाना है। शुद्ध संकल्प की शक्ति का विशेष अनुभव अभी और अन्तर्मुखी बन करने की आवश्यकता है। शुद्ध संकल्पों की शक्ति सहज व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर दूसरों के प्रति भी शुभ भावना, शुभ कामना के स्वरूप से परिवर्तन कर सकते हैं। अभी इस शुद्ध संकल्प के शक्ति का विशेष अनुभव अभी व्यर्थ संकल्पों को सहज समाप्त कर देती है। न सिर्फ अपने व्यर्थ संकल्प लेकिन आपके शुद्ध संकल्प दूसरों के प्रति भी शुभ भावना, शुभ कामना के स्वरूप से परिवर्तन कर सकते हैं। अभी इस शुद्ध संकल्प के शक्ति की स्वयं के प्रति भी स्टाक जमा करने की बहुत आवश्यकता है। मुरली सुनना यह लगन तो बहुत अच्छी है। मुरली अर्थात् खज़ाना। मुरली की हर प्वाइंट को शक्ति के रूप में जमा करना यह है - शुद्ध संकल्प शक्ति को बढ़ाना। शक्ति के रूप मे हर समय कार्य में लगाना। अभी इस विशेषता का विशेष अटेन्शन रखना है। शुद्ध संकल्प की शक्ति के महत्त्व को अभी जितना अनुभव करते जायेगे उतना मन्सा सेवा के भी सहज अनुभवी बनते जायेंगे। पहले तो स्वयं के प्रति शुद्ध संकल्पों की शक्ति जमा चाहिए। और फिर साथ-साथ आप सभी बाप के साथ विश्व कल्याणकारी आत्मायें, विश्व परिवर्तक आत्मायें हो। तो विश्व के प्रति भी यह शुद्ध संकल्पों की शक्ति द्वारा परिवर्तन करने का कार्य अभी बहुत रहा हुआ है। जैसे वर्तमान समय ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूपधारी बन शुद्ध संकल्प की शक्ति से आप सबकी पालना कर रहे हैं। सेवा की वृद्धि के सहयोगी बन आगे बढ़ा रहे हैं। यह विशेष सेवा - शुद्ध संकल्प के शक्ति की चल रही है। तो ब्रह्मा बाप समान अभी इस विशेषता को अपने में बढ़ाने का, तपस्या के रूप में अभ्यास करना है। तपस्या अर्थात् दृढ़ता सम्पन्न अभ्यास। साधारण को तपस्या नहीं कहेंगे तो अभी तपस्या के लिए समय दे रहे हैं। अभी ही क्यों दे रहे हैं? क्योंकि यह समय आपके बहुतकाल में जमा हो जायेगा। बापदादा सभी को बहुतकाल की प्राप्ति कराने के निमित्त हैं। बापदादा सभी बच्चों को बहुतकाल के राज्य भाग्य अधिकारी बनाना चाहते हैं। तो बहुतकाल के राज्य भाग्य के अधिकारी बनाना चाहते हैं। तो बहुत काल का समय बहुत थोड़ा है। इसलिए हर बात के अभ्यास को ‘तपस्या’ के रूप में करने के लिए यह विशेष समय दे रहे हैं। क्योंकि समय ऐसा आयेगा - जिसमें आप सभी को दाता और वरदाता बन थोड़े समय में अनेकों को देना पड़ेगा। तो सर्व खज़ानों के जमा का खाता सम्पन्न बनाने के लिए समय दे रहे हैं।
दूसरी बात - विघ्न विनाशक का, समाधान स्वरूप का जो वायदा किया है तो विघ्न विनाशक स्वयं के प्रति भी और सर्व के प्रति भी बनने का विशेष दृढ़ संकल्प और दृढ़ स्वरूप दोनों हो। सिर्फ संकल्प नहीं लेकिन स्वरूप भी हो। तो इस वर्ष बाप दादा एकस्ट्रा चांस दे रहे हैं। जिसको भी यह विघ्न विनाशक बनने का विशेष भाग्य लेना है वह इस वर्ष में ले सकते हैं। इस वर्ष को विशेष वरदान है। लेकिन वरदान लेने के लिए विशेष दो अटेन्शन देने पड़ेगे। एक तो सदा बाप समान देने वाले बनना है, लेने की भावना नहीं रखनी है। रिगार्ड मिले, स्नेह मिले तब स्नेही बनें, व रिगार्ड मिले तब रिगार्ड दें, नहीं। दाता के बच्चे बन मुझे देना है। लेने की भावना नहीं रखना। श्रेष्ठ कर्म करते हुए दूसरे तरफ से मिलना चाहिए यह भावना नहीं रखना। श्रेष्ठ कर्म का फल श्रेष्ठ होता ही है। यह नॉलेज आप जानते हो लेकिन करने समय यह संकल्प नहीं रखना। एक तो वरदान लेने के पात्र बनने के लिए सदा ‘दाता बन करके रहना’ और दूसरा ‘विघ्न विनाशक बनना है’, तो समाने की शक्ति सदा विशेष रूप में अटेन्शन में रखना। स्वयं प्रति भी समाने की शक्ति आवश्यक है। सागर के बच्चे हैं, सागर की विशेषता है ही समाना। जिसमें समाने की शक्ति होगी वही शुभ भावना, कल्याण की कामना कर सकेंगे। इसलिए दाता बनना, समाने के शक्ति स्वरूप सागर बनना। यह दो विशेषतायें सदा कर्म तक लाना। कई बार कई बच्चे कहते हैं - सोचा तो था कि यही करेंगे लेकिन करने में बदल गया। तो इस वर्ष में चारों ही बातों में एक ही समय समानता का विशेष अभ्यास करना है। समझा। तो एक बात खज़ानों को जमा करने का और दाता बन देने का संस्कार नैचुरल रूप में धारण हो जाए उसके लिए समय दे रहें हैं। और विघ्न विनाशक बनना और बनाना। इसमें सदा के लिए अपना नम्बर निश्चित करने का चांस दे रहें हैं। कुछ भी हो - स्वयं तपस्या करो, और किसका विघ्न समाप्त करने में सहयोगी बनो। खुद कितना भी झुकना पड़े लेकिन यह झुकना सदा के लिए झूलों में झूलना है। जैसे श्रीकृष्ण को कितना प्यार से झुलाते रहते हैं। ऐसे अभी बाप तुम बच्चों को अपनी गोदी के झूले में झुलायेंगे और भविष्य में रत्न जड़ित झूलों में झूलेंगे, और भक्ति में पूज्य बन झुले में झूलेंगे। तो ‘झुकना-मिटना यह महानता है।’ मैं क्यों झुकूँ, यह झुकें, इसमें अपने को कम नहीं समझो। यह झुकना महानता है। यह मरना, मरना नहीं, अविनाशी प्राप्तियों में जीना है। इसलिए सदा विघ्न विनाशक बनना और बनाना है। इसमें फर्स्ट डिवीजन में आने का जिसको चांस लेना हो वह ले सकते हैं। यह विशेष चांस लेने के समय का बापदादा महत्व सुना रहें हैं। तो समय के महत्व को जान तपस्या करना।
तीसरी बात - समय प्रमाण जितना वायुमण्डल अशान्ति और हलचल का बढ़ता जा रहा है उसी प्रमाण बुद्धि की लाइन बहुत क्लीयर होनी चाहिए। क्योंकि समय प्रमाण ‘टचिंग और कैचिंग’ इन दो शक्तियों की आवश्यकता है। एक तो बापदादा के डायरेक्शन को बुद्धि द्वारा कैच कर सको। अगर लाइन क्लीयर नहीं होगी तो बाप के डायरेक्शन साथ मनमत भी मिक्स हो जाती। और मिक्स होने के कारण समय पर धोखा खा सकते हैं। जितनी बुद्धि स्पष्ट होगी उतना बाप के डायरेक्शन को स्पष्ट कैच कर सकेंगे। और जितना बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी, उतना स्वयं की उन्नति प्रति, सेवा की वृद्धि प्रति और सर्व आत्माओं के दाता बन देने की शक्तियाँ सहज बढ़ती जायेंगी और टचिंग होगी इस समय इस आत्मा के प्रति सहज सेवा का साधन वा स्व-उन्नति का साधन यही यथार्थ है। तो वर्तमान समय प्रमाण यह दोनों शक्तियों की बहुत आवश्यकता है। इसको बढ़ाने के लिए एक नामी और एकानामी वाले बनना। एक बाप दूसरा न कोई। दूसरे का लगाव और चीज़ है। लगाव तो रांग है ही है लेकिन दूसरे के स्वभाव का प्रभाव अपनी अवस्था को हलचल में लाता है। दूसरे का संस्कार बुद्धि को टक्कर में लाता है। उस समय बुद्धि में बाप है या संस्कार है? चाले लगाव के रूप में बुद्धि को प्रभावित करे चाहे टकरावट के रूप में बुद्धि को प्रभावित करे लेकिन बुद्धि की लाइन सदा क्लीयर हो। एक बाप दूसरा न कोई - इसको कहते हैं एक नामी। और एकानामी क्या है? सिर्फ स्थूल धन की बचत को एकानामी नहीं कहते। वह भी जरूरी है लेकिन समय भी धन है, संकल्प भी धन है, शक्तियाँ भी धन हैं, इस सबकी एकानामी। व्यर्थ नहीं गँवाओ। एकनामी करना अर्थात् जमा का खाता बढ़ाना। एकनामी और एकानामी के संस्कार वाले यह दोनों शक्तियाँ (टचिंग और कैचिंग) का अनुभव कर सकेंगे। और यह अनुभव विनाश के समय नहीं कर सकेंगे, यह अभी से अभ्यास चाहिए। तब समय पर इस अभ्यास के कारण अन्त में श्रेष्ठ मत और गति को पा सकेंगे। आप समझो कि अभी विनाश का समय कुछ तो पड़ा है। चलो 10 वर्ष ही सही। लेकिन 10 वर्ष के बाद फिर यह पुरूषार्थ नहीं कर सकेंगे। कितनी भी मेहनत करो, नहीं कर सकेंगे। कमज़ोर हो जायेंगे। फिर अन्त युद्ध में जायेगी। सफलता में नहीं। त्रेतायुगी तो नहीं बनना है न! मेहनत अर्थात् तीर कमान। और सदा मुहब्बत में रहना, खुशी में रहना अर्थात् मुरलीधर बनना, सूर्यवंशी बनना। मुरली नचाती है और तीर कमान निशाना लगाने के लिए मेहनत कराता है। तो कमान धारी नहीं, मुरली वाला बनना है। इसलिए पीछे कोई उल्हना नहीं देना कि थोड़ा-सा फिर से एकस्ट्रा समय दे दो। चांस दे दो वा कृपा कर लो। यह नहीं चलेगा। इसलिए पहले से सुना रहें हैं। चाहे पीछे आया है या आगे लेकिन समय के प्रमाण तो सभी को लास्ट स्टेज पर पहुँचने का समय है। तो ऐसी फास्ट गति से चलना पड़े। समझा!
चौथी बात- चारों ओर चाहे देश, चाहे विदेश में कई ऐसे छोटे-छोटे स्थान हैं। इस समय के प्रमाण साधारण हैं लेकिन मालामाल बच्चे हैं। तो ऐसे भी कई हैं जो निमित्त बने बच्चों को अपनी तरफ चक्कर लगाने की आशा बहुत समय से देख रहे हैं। लेकिन आश पूर्ण नहीं हो रही है। वह भी बापदादा आश पूरी कर रहे हैं। विशेष महारथी बच्चों को प्लैन बनाकर चारों ओर जिन्हों की आशा के दीपक बने हुए रखे हैं, वह जगाने जाना है। आशा के दीपक जगाने हैं इसलिए भी बापदादा विशेष समय दे रहें हैं। सभी महारथी मिलकर भिन्न-भिन्न एरिया बाँट, गांव के बच्चे, जिन्हों के पास समय कारण नहीं जा सके हैं उन्हों की आश पूरी करनी है। मुख्य स्थानों पर तो मुख्य प्रोग्राम्स के कारण जाते ही हैं। लेकिन जो छोटे-छोटे स्थान हैं उन्हों के यथाशक्ति प्रोग्राम ही बड़े प्रोग्राम हैं। उन्हों की भावना ही सबसे बड़ा फंक्शन है। बापदादा के पास ऐसे कई बच्चों की बहुत समय की आर्जिया फाइल में पड़ी हुई हैं। यह फाइल भी बापदादा पूरा करना चाहते हैं। महारथी बच्चों को चक्रवर्ती बनने का विशेष चांस दे रहें हैं। फिर ऐसे नहीं कहना - सब जगह दादी जावे। नहीं। अगर एक ही दादी सब तरफ जावे फिर तो 5 वर्ष लग जाएँ। और फिर 5 वर्ष बापदादा न आवे यह मंजूर है? बापदादा की सीजन यहाँ हो और दादी चक्र पर जाए यह भी अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए महारथियों का प्रोग्राम बनाना। जहाँ कोई नहीं गया है वहाँ जाने का बनाना और विशेष इस वर्ष जहाँ भी जावे तो एक दिन बाहर की सेवा, एक दिन ब्राह्मणों की तपस्या का प्रोग्राम - यह दोनों प्रोग्राम जरूर हों। सिर्फ फंक्शन में जाए भाग-दौड़ कर नहीं आना है। जितना हो सके ऐसा प्रोग्राम बनाओ जिसमें ब्राह्मणों की विशेष रिफ्रेशमेंट हो। और साथ-साथ ऐसा प्रोग्राम हो जिससे वी.आई.पीज का भी सम्पर्क हो जाए। लेकिन शार्ट प्रोग्राम हो। पहले से ही ऐसा प्रोग्राम बनावें जिसमें ब्राह्मणों को भी विशेष उमंग उत्साह की शक्ति मिले। निर्विघ्न बनने का हिम्मत उल्लास भरे। तो चारों ओर का चक्र का प्रोग्राम बनाने के लिए भी विशेष समय दे रहे हैं। क्योंकि समय प्रमाण सरकमस्टांस भी बदल रहे हैं और बदलते रहेंगे। इसलिए फाइल को खत्म करना है। तो बापदादा विशेष क्या देखने चाहते हैं, वह फिर से रिवाइज करते –
1. सदा स्वयं को, सर्व को सन्तुष्ट करने वाले ‘सन्तुष्ट मणियाँ’ बनना है। 2. स्वयं के पुरूषार्थ प्रति वा सेवा के प्रति वा संगठन में एक दो के प्रति सदा विशाल बुद्धि। हद की बुद्धि में नहीं आना। मैं यह चाहती, मेरा तो यह विचार है, यह विशालता नहीं है। जहाँ मैजारिटी वेरीफाय करते, निमित्त बने हुए वेरीफाय करते, तो यह है - ‘विशाल बुद्धि’। जहाँ मैजारिटी, वहाँ मैं, यह संगठन की शक्ति बढ़ाना। इसमें यह बड़ाई नहीं दिखाओ कि मेरा विचार तो बहुत अच्छा है। भल कितना भी अच्छा हो लेकिन जहाँ संगठन टूटता है वह अच्छा भी साधारण हो जायेगा। संगठन की शक्ति बढ़ाने की विशालता हो। इसमें कुछ अपना विचार त्यागना भी पड़े तो इस त्याग में ही भाग्य है। यह सदा स्मृति में रखो कि अगर यहाँ संगठन से अलग रहेंगे तो वहाँ विश्व की रायल फैमली में नहीं आयेंगे। अभी का संगठन 21 जन्मों के समीप सम्बन्ध में लायेगा। इसलिए संगठन की शक्ति को बढ़ाना - यह पहला ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ कार्य है। इसमें ही सफलता है। इसलिए इसमें विशाल बुद्धि बनो। बेहद के बनो। सिर्फ अपने तरफ रजाई नहीं खीचो। दूसरे को भी दो तो वह आपको दे देगा। नहीं तो वह भी थोड़ा-थोड़ा देकर फिर पूरा खींच लेगा। 3. तीसरी बात - ‘प्रसन्नता’। सन्तुष्टता और विशालता का प्रत्यक्ष स्वरूप हर ब्राह्मण आत्मा के चेहरे पर, मन पर प्रसन्नता की निशानी दिखाई दे। प्रश्नचित नहीं लेकिन प्रसन्नचित। चेहरे पर संकल्प और स्वरूप की अविनाशी प्रसन्नता। तो ‘सन्तुष्टता, विशालता और प्रसन्नता’ यह है 18 अध्याय की समाप्ति। समझा! अब इस रिजल्ट की तपस्या करो। एक दो को नहीं देखना यह तो करता नहीं फिर मैं क्यों करूँ। नहीं। मुझे करके दिखाना है। मुझे निमित्त बन वातावरण में वायब्रेशन फैलाना है। समझा!
इसका भाव यह नहीं कि बाप का स्नेह नहीं। और ही विशेष स्नेह है। और विशेष बापदादा 18 जनवरी पर आकर आधी रिजल्ट सुनायेंगे। सीजन चालू नहीं होगी लेकिन 18 जनवरी पर मुरली चलाने आयेंगे। 18 और 21 यह दो डेट्स विशेष हैं। यह अव्यक्त दिवस का यादगार अव्यक्त बापदादा मनाने आयेंगे। अलग मिलने का नहीं। सिर्फ मुरली चलायेंगे, टोली देंगे। क्योंकि फिर भी साकार वतन है ना। हद की दुनिया में रहने करने की भी हद रखनी पड़ती है। जैसे बाप देह के बन्धन में आता है। आपको भी नियमों के बन्धनों में आना पड़ेगा। वतन में सब निर्बन्धन हैं। भट्टियाँ आदि भी चाहें यहाँ रखो चाहे वहाँ जाकर कराओ। वह स्थान के प्रमाण बापदादा स्वतन्त्रता दे रहें हैं। जिसमें भी ज्यादा संख्या रिफ्रेश हो सके ऐसा प्रोग्राम बनाना है। भले मधुबन का वातावरण अपना है लेकिन महारथी जहाँ जाते वहाँ भी मधुबन का वातावरण बनाते हैं। जंगल को मंगल बना सकते तो सेन्टर को मधुबन नहीं बना सकते! मधुबन की तो अविनाशी महानता है वह कभी कम नहीं हो सकती। क्योंकि यहाँ महान आत्मा और परम-आत्मा के बहुतकाल की शक्तिशाली वायब्रेशनस कण-कण में भरे हुए हैं। कण-कण में परमात्मा नही लेकिन वायब्रेशनस भरे हुए हैं। मधुबन की महानता और भी बढ़ती जायेगी। जैसे अमेरिका का व्हाइट हाउस मशहूर है। तो यह विश्व का पीस हाउस-मधुबन प्रसिद्ध होगा। सभी की नजर इस तरफ जायेगी। चाहे पहुँच न भी सकें लेकिन अटेन्शन जरूर जायेगा। आकर्षण होगी, बुद्धि द्वारा भी अनुभव करने की कोशिश करेंगे। ऐसे समय पर यह शक्तियाँ काम आयेंगी। उन्हों को संकल्प की शक्ति का सहयोग दे, संकल्प शक्ति के विमान द्वारा मधुबन पहुँचा सको। आपसे इस विमान की माँगनी करेंगे। इतनी शक्ति शुभ श्रेष्ठ संकल्पों की जमा करो जो कईयों का पर-उपकार कर सको। बहुत काल के वरदान का पूरा-पूरा लाभ उठाना। समझा!
यह लास्ट चांस नहीं फास्ट चांस है। जो किसी भी बात का बिना स्वार्थ के, दिल से त्याग करता है उसका भाग्य बहुत होता। स्वार्थ के त्याग का उतना भाग्य नहीं होता। नि:स्वार्थ त्याग का भाग्य बहुत बड़ा है। बापदादा तो सभी बच्चों को एक दो से आगे देखते हैं। नम्बर जानते हुए भी अभी नम्बरवार नहीं देखते। अभी सबको नम्बरवन की नजर से देखते। क्योंकि अभी भी लास्ट से फर्स्ट होने का चांस है। लेकिन समय थोड़ा है। बापदादा को सभी बच्चों प्रति यही श्रेष्ठ भावना और श्रेष्ठ कामना रहती। सदा फास्ट और फर्स्ट देखते। सुनाया था ना - अभी सीटी नहीं बजी है। सब चेयर के लिए दौड़ लगा रहे हैं। जब सीटी बजेगी फिर नम्बरवार कहेंगे। बापदादा सभी का स्नेह सम्पन्न स्वागत कर रहें हैं। अच्छा -
चारों ओर के सर्व स्नेही बच्चों को, सदा दिलतख्त नशीन बच्चों को, सदा सन्तुष्टता की झलक दिखाने वाले बच्चों को, सदा प्रसन्नता की पर्सनैलिटी में रहने वाले बच्चों को, सदा बेहद विशाल दिल, बेहद की विशाल बुद्धि धारण करने वाली, विशाल आत्माओं को बापदादा का स्नेह सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।’’
विदेश सेवा पर उपस्थित टीचर्स प्रति
निमित्त सेवाधारी बच्चों को बापदादा सदा ‘समान भव’ के वरदान से आगे बढ़ाते रहते हैं। बापदादा सभी पाण्डव चाहे शक्तियाँ, जो भी सेवा के लिए निमित्त हैं, उन सबको विशेष ‘पद्मापद्म भाग्यवान श्रेष्ठ आत्मायें’ समझते हैं। सेवा का प्रत्यक्ष फल खुशी और शक्ति, यह विशेष अनुभव तो करते ही हैं। अभी जितना स्वयं शक्तिशाली लाइट हाउस, माइट हाउस बन सेवा करेंगे उतना जल्दी चारों ओर प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। हर एक निमित्त सेवाधारी को विशेष सेवा की सफलता के लिए दो बातें ध्यान में रखनी हैं - एक बात- सदा संस्कारों को मिलाने की यूनिटी का, हर स्थान से यह विशेषता दिखाई दे। दूसरासदा हर निमित्त सेवाधारियों को पहले स्वयं को यह दो सर्टीफिकेट देने हैं। एक ‘एकता’, दूसरा ‘सन्तुष्टता’। संस्कार भिन्न-भिन्न होते ही हैं और होंगे भी लेकिन संस्कारों को टकराना या किनारा करके स्वयं को सेफ रखना - यह अपने ऊपर है। कुछ भी हो जाता है तो अगर कोई का संस्कार ऐसा है तो दूसरा ताली नहीं बजावे। चाहे वह बदलते है या नहीं बदलते है लेकिन आप तो बदल सकते हो ना? अगर हरेक अपने को चेन्ज करे, समाने की शक्ति धारण करे तो दूसरे का संस्कार भी अवश्य शीतल हो जायेगा। तो सदा एक दो में स्नेह की भावना से, श्रेष्ठता की भावना से सम्पर्क में आओ, क्योंकि निमित्त सेवाधारी - बाप के सूरत का दर्पण हैं। तो जो आपकी प्रैक्टिकल जीवन है वही बाप के सूरत का दर्पण हो जाता है। इसलिए सदा ऐसे जीवन रूपी दर्पण हो - जिसमें बाप - जो है जैसा है वैसा दिखाई दे। बाकी मेहनत बहुत अच्छी करते हो, हिम्मत भी अच्छी है। सेवा की वृद्धि उमंग भी बहुत अच्छा है। इसलिए विस्तार को प्राप्त कर रहे हो। सेवा तो अच्छी है, अभी सिर्फ बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए प्रत्यक्ष जीवन का प्रमाण सदा दिखाओ। जो सभी एक ही आवाज से बोलें कि यह ज्ञान की धारणाओं में तो एक हैं लेकिन संस्कार मिलाने में भी नम्बरवन हैं। ऐसे भी नहीं कि यह इन्डिया की टीचर अलग हैं, फारेन की टीचर अलग हैं। सभी एक हैं। यह तो सिर्फ सेवा के निमित्त बनें हुए हैं, स्थापना में सहयोगी बनें हैं और अभी भी सहयोग दे रहें हैं, इसलिए स्वत: ही सबमें विशेष पार्ट बजाना पड़ता है। वैसे बापदादा व निमत्त आत्माओं के पास विदेशी वा देशी में कोई अन्तर नहीं है। जहाँ जिसकी सेवा की विशेषता है, फिर चाहे कोई भी हो, वहाँ उसकी विशेषता से लाभ लेना होता है। बाकी एक दो को रिगार्ड देना यह भी ब्राह्मण कुल की मर्यादा है। स्नेह लेना और रिगार्ड देना। विशेषता को महत्व दिया जाता है, न कि व्यक्ति को। बापदादा के लिए और ही जो पीछे-पीछे आते हैं वह विशेष स्नेह के पात्र हैं। जैसे छोटे बच्चे होते हैं तो उनको एक्स्ट्रा प्यार दिया जाता है। आप तो छोटे नहीं हो, बड़े हो फिर भी बापदादा के पास सेवाधारियों के लिए सदा रिगार्ड है, क्योंकि साथी हैं ना! अगर आप लोग सेवा के निमित्त नहीं बनते तो बाप को कौन जानता! बापदादा - आप राइट हैण्डस के बिना स्थापना नहीं कर सकते। इसलिए तो देखो दूर-दूर से चुनकर राइट हैण्ड बना लिए। इसीलिए ब्रह्मा की भुजायें बहुत गाई हुई हैं। तो आप सब राइट हैण्डस हो ना? लेफ्ट हैण्ड तो नहीं! लेफ्ट हैण्ड वह जिसको बापदादा कहते हैं पछड़माल। राइटहैण्ड अर्थात् सदा राइटियस कार्य करने वाले, सदा अपने राइट अधिकार के रूहानी नशे में रहने वाले। ऐसे हो ना? चाहे कुछ भी हो बापदादा को पसन्द हो, बस इसी खुशी में रहो। अच्छा - बापदादा देखते हैं छोटी छोटियों ने कमाल अच्छी की है। स्थिति में बड़ी हो, स्थिति में छोटी नहीं हो। फिर भी त्याग तो कम नहीं किया है! त्याग की मुबारक। इसलिए बापदादा डबल विदेशी, डबल भाग्यवान, डबल ताजधारी सब डबल कहते हैं। तो सर्टीफिकेट भी डबल है ना। अच्छा - डबल विदेशी 108 की माला में कितने आयेंगे? सब आयेंगे तो डबल माला करनी पड़ेगी। एक युगल दाने के बजाए सभी युगल दाने बनाने पड़ेंगे। यह तो भक्ति के 108 हैं, आप तैयार हो जाओ तो बापदादा युगल दानों की माला बनायेंगे। यह लिमिट 108 ही फिक्स नहीं हैं और बढ़ सकते हैं। यह तो सिर्फ नम्बर दिखाये हैं। इसलिए 108 की हद नहीं रखो - रेस करो। वह भक्ति की माला यह प्रैक्टिकल की माला है। अभी यह वर्ष मेकप करने को दिया है इसलिए लगाओ जम्प। माला के नम्बर बदली हो सकते हैं, इसकी कोई बात नहीं। अच्छा - अभी यह रिकार्ड दिखाओ कि पूरा एक साल कोई भी समस्या स्वरूप नहीं बनेंगे, समाधान स्वरूप रहेंगे। फिर भिùयाँ करायेंगे, समस्या में समय नहीं देंगे। भारत में पहले जब सेवा शुरू हुई तो परखने में, सेट करने में टाइम लगा। अभी समझ गये हैं तो सहज हो गया है। जब भी कोई परिस्थिति आती है तो उस समय बुद्धि की लाइन क्लीयर चाहिए तो टचिंग होगी कि किस विधि से इसको ठीक करें। सिर्फ उस समय स्वयं घबरा नही जाओ। स्वयं शक्ति रूप में रहो तो दूसरा स्वत: ही हल्का हो जायेगा। उसका वार नहीं हो सकेगा। सदा ही सेफ रहेंगे। फिर भी एक दो में नजदीक हो, जो अनुभवी हैं उनसे राय सलाह भी कर सकते हो। एक बात जरूर करो - जो भी सेन्टर पर रहते हो वह आपस में सारे दिन में एक टाइम लेन-देन जरूर करो। नहीं तो एक, एक तरफ रहता है दूसरा दूसरे तरफ। उससे परिवार के प्यार की महसूसता नहीं आती है। और स्वयं में वह स्नेह की शक्ति नहीं होगी तो दूसरों को भी बाप के स्नेही नहीं बना सकेंगे। इसलिए एक दो को जरूर पूछो क्या है - कैसे हो? कोई बीमार है, कोई मन की तकलीफ है, कोई शरीर की तकलीफ है तो पूंछने से वह समझेंगे कि हमारा भी कोई है। कोई भी सेवा का प्लैन भी बनाते हो तो दोनों तीनों मिलकर, चाहे छोटी भी हो, तो भी उससे ‘हाँ जी’ करायेंगे तो वह भी खुश हो जायेगी। वह भी समझेगी की इसमें मेरा हाथ है, और विशेष जो सर्विसएबुल सलाह देने वाले हैं उन्हों की भी मीटिंग जरूर करनी चाहिए, क्योंकि उनके सहयोग के बिना आप भी क्या कर सकेंगे? स्नेह और शक्ति का बैलेन्स रखते हुए हैन्डिल करो और आगे बढ़ो। अच्छा!