11-04-86   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर बनाने की युक्ति

अव्यक्त बापदादा बोले

आज तकदीर बनाने वाले बापदादा सभी बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर देख रहें हैं। तकदीरवान सभी बने हैं, लेकिन हर एक के तकदीर के तस्वीर की झलक अपनी-अपनी है। जैसे कोई भी तस्वीर बनाने वाले तस्वीर बनाते हैं तो कोई तस्वीर हजारों रूपयों के दाम की अमूल्य होती है, कोई साधारण भी होती है। यहाँ बापदादा द्वारा मिले हुए भाग्य को, तकदीर को तस्वीर में लाना अर्थात् प्रैक्टिकल जीवन में लाना है। इसमें अन्तर हो जाता है। तकदीर बनाने वाले ने एक ही समय और एक ने ही सभी को तकदीर बाँटी। लेकिन तकदीर को तस्वीर में लाने वाली हर आत्मा भिन्न-भिन्न होने के कारण जो तस्वीर बनाई है उसमें नम्बरवार दिखाई दे रहे हैं। कोई भी तस्वीर की विशेषता नयन और मुस्कराहट होती है। इन दो विशेषताओं से ही तस्वीर का मूल्य होता है। तो यहाँ भी तकदीर के तस्वीर की यही दो विशेषतायें हैं। नयन अर्थात् रूहानी विश्व-कल्याणी, रहम दिल, पर-उपकारी दृष्टि। अगर दृष्टि में यह विशेषतायें है तो भाग्य की तस्वीर श्रेष्ठ है। मूल बात है दृष्टि और मुस्कराहट, चेहरे की चमक। यह है सदा सन्तुष्ट रहने की - सन्तुष्टता और प्रसन्नता की झलक। इसी विशेषताओं से सदा चेहरे पर रूहानी चमक आती है। रूहानी मुस्कान अनुभव होती है। यह दो विशेषतायें ही तस्वीर का मूल्य बढ़ा देती हैं। तो आज यही देख रहे थे। तकदीर की तस्वीर तो सभी ने बनाई है। तस्वीर बनाने की कलम बाप ने सबको दी है। वह कलम है - श्रेष्ठ स्मृति, श्रेष्ठ कर्मों का ज्ञान। श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ संकल्प अर्थात् स्मृति। इस ज्ञान की कलम द्वारा हर आत्मा अपने तकदीर की तस्वीर बना रही है, और बना भी ली है। तस्वीर तो बन गई है। नैन चैन भी बन गये हैं। अब लास्ट टचिंग है सम्पूर्णताकी। बाप समान बनने की। डबल विदेशी चित्र बनाने ज्यादा पसन्द करते हैं ना। तो बापदादा भी आज सभी की तस्वीर देख रहें हैं। हरेक अपनी तस्वीर देख सकते हैं ना कि कहाँ तक तस्वीर मूल्यवान बनी है। सदा अपनी इस रूहानी तस्वीर को देख इसमें सम्पूर्णता लाते रहो। विश्व की आत्माओं से तो श्रेष्ठ भाग्यवान कोटों में कोई, कोई में भी कोई अमूल्य वा श्रेष्ठ भाग्यवान तो हो ही। लेकिन एक है श्रेष्ठ दूसरे हैं श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ। तो श्रेष्ठ बने हैं वा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बने हैं! यह चेक करना है। समझा!

अब डबल विदेशी रेस करेंगे ना! आगे नम्बर लेना है वा आगे वालों को देख खुश होना है! देख-देख खुश होना भी आवश्यक है, लेकिन स्वयं पीछे होकर नहीं देखो, साथ-साथ होते दूसरों को भी देख हर्षित हो चलो। स्वयं भी आगे बढ़ो और पीछे वालों को भी आगे बढ़ाओ। इसी को ही कहते हैं -पर-उपकारी। यह पर-उपकारी बनना इसकी विशेषता है - स्वार्थ भाव से सदा मुक्त रहना। हर परिस्थिति में, हर कार्य में हर सहयोगी संगठन में जितना नि:स्वार्थ-पन होगा, उतना ही पर-उपकारीहोगा। स्वयं सदा भरपूर अनुभव करेगा। सदा प्राप्ति स्वरूप की स्थिति में होगा। तब पर-उपकारी की लास्ट स्टेज अनुभव कर और करा सकेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा लास्ट समय की स्थिति में उपराम और पर-उपकारयह विशेषता सदा देखी। स्व के प्रति कुछ भी स्वीकार नहीं किया। न महिमा स्वीकार की, न वस्तु स्वीकार की। न रहने का स्थान स्वीकार किया। स्थूल और सूक्ष्म - सदा पहले बच्चे। इसको कहते हैं -पर-उपकारी। यही सम्पन्नता की सम्पूर्णता की निशानी है। समझा!

मुरलियाँ तो बहुत सुनी। अब मुरलीधर बन सदा नाचते और नचाते रहना है। मुरली से - साँप के विष को भी समाप्त कर लेते हैं। तो ऐसा मुरलीधर हो जो किसी का कितना भी कड़वा स्वभाव संस्कार हो - उसको भी वश कर दे अर्थात् उससे मुक्त कर नचा दे। हर्षित बना दे। अभी यह रिजल्ट देखेंगे कि कौन-कौन ऐसे योग्य मुरलीधर बनते हैं। मुरली से भी प्यार है, मुरलीधर से भी प्यार है लेकिन प्यार का सबूत है - जो मुरलीधर की शुभ आशा है, हर बच्चे प्रति वह प्रैक्टिकल में दिखाना। प्यार की निशानी है - जो कहा वह करके दिखाना। ऐसे मास्टर मुरलीधर हो ना! बनना ही है, अब नहीं बनेंगे तो कब बनेंगे! करेंगे, यह ख्याल नहीं करो। करना ही है। हर एक यही सोंचे कि हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा! हमको करना ही है। बनना ही है। कल्प की बाजी जीतनी ही है। पूरे कल्प की बात है। तो फर्स्ट डिवीजन मे आना है, यह दृढ़ता धारण करनी है। कोई नई बात कर रहे हो क्या! कितना बार की हुई बात को सिर्फ लकीर के ऊपर लकीर खींच रहे हो! ड्रामा की लकीर खींची हुई है। नई लकीर भी नहीं लगा रहे हो, जो सोचो कि पता नहीं, सीधी होगी वा नहीं। कल्प-कल्प की बनी हुई प्रालब्ध को सिर्फ बनाते हो। क्योंकि कर्मों के फल का हिसाब है। बाकी नई बात क्या है! यह तो बहुत पुरानी है। हुई पड़ी है। यह है अटल निश्चय। इसको दृढ़ता कहते हैं। इसको तपस्वी मूर्त कहते हैं। हर संकल्प में दृढ़ता माना - ‘तपस्या। अच्छा!

बापदादा हाइएस्ट होस्ट भी है और गोल्डन गेस्ट भी है। होस्ट बनकर भी मिलते हैं, गेस्ट बन कर आते हैं। लेकिन गोल्डन गेस्ट है। चमकीला है ना। गेस्ट तो बहुत देखे - लेकिन गोल्डन गेस्टनहीं देखा। जैसे चीफ गेस्ट को बुलाते हो तो वह थैंक्स देते हैं। तो ब्रह्मा बाप ने भी होस्ट बन इशारे दिये और गेस्ट बन सबको मुबारक दे रहें हैं। जिन्होंने पूरी सीजन में सेवा की उन सबको गोल्डन गेस्टके रूप में बधाई दे रहे हैं। सबसे पहली मुबारक किसको? निमित्त दादियों को। बापदादा, निर्विघ्न सेवा के समाप्ति की मुबारक दे रहे हैं। मधुबन निवासियों को भी निर्विघ्न हर्षित बन मेहमान निवाजी करने की विशेष मुबारक दे रहे हैं। भगवान भी मेहमान बन आया तो बच्चे भी। जिसके घर में भगवान मेहमान बनकर आवे वह कितने भाग्यशाली हैं! रथ को भी मुबारक हैं क्योंकि यह पार्ट बजाना भी कोई कम बात नहीं। इतनी शक्तियों को, इतना समय प्रवेश होने पर धारणा करना यह भी विशेष पार्ट है। लेकिन यह समाने की शक्ति का फल है। आप सबको मि्ाल रहा है। तो समाने की शक्ति की विशेषता से बापदादा की शक्तियों को समानायह भी विशेष पार्ट कहो वा गुण कहो। तो सभी सेवाधारियों मे यह भी सेवा का पार्ट बजाने वाली निर्विघ्न रही। इसके लिए मुबारक हो, और पद्मापद्म थैंक्स। डबल विदेशियों को भी डबल थैंक्स। क्योंकि डबल विदेशियों ने मधुबन की शोभा कितनी अच्छी कर दी। ब्राह्मण परिवार के श्रृंगार डबल विदेशी हो। ब्राह्मण परिवार में देश वालों के साथ विदेशी भी हैं। तो पुरूषार्थ की भी मुबारक और परिवार का श्रृंगार बनने की भी मुबारक। मधुबन और परिवार का श्रृंगार बनने की भी मुबारक। मधुबन परिवार की विशेष सौगात हो। इसलिए डबल विदेशियों को डबल मुबारक दे रहे हैं। चाहे कहाँ भी हैं। सामने तो थोड़े है लेकिन चारों ओर के भारतवासी बच्चों को और डबल विदेशी बच्चों को बड़ी दिल से मुबारक दे रहे हैं। हर एक ने बहुत अच्छा पार्ट बजाया। अब सिर्फ एक बात रही है - समान और सम्पूर्णता की। दादियाँ भी अच्छी मेहनत करती। बापदादा, दोनों का पार्ट साकार में बजा रहीं हैं। इसलिए बापदादा दिल से स्नेह के साथ मुबारक देते हैं। सबने बहुत अच्छा पार्ट बजाया। आलराउण्ड सब सेवाधारी चाहे छोटी-सी साधारण सेवा है लेकिन वह भी महान है। हर एक ने अपना भी जमा किया और पुण्य भी किया। सभी देश-विदेश के बच्चों के पहुँचने की भी विशेषता, मुबारक योग्य है। सब महारथियों ने मिलकर सेवा का श्रेष्ठ संकल्प प्रैक्टिकल में लाया और लाते ही रहेंगे। सेवा में जो निमित्त है उन्हों को भी तकलीफ नही देनी चाहिए। अपने अलबेलेपन से किसको मेहनत नहीं करानी चाहिए। अपनी वस्तुओं को सम्भालना यह भी नॉलेज है। याद है ना ब्रह्मा बाप क्या कहते थे? रूमाल खोया तो कभी खुद को भी खो देगा। हर कर्म में श्रेष्ठ और सफल रहना इसको कहते - नॉलेजफुल। शरीर की भी नॉलेज, आत्मा की भी नॉलेज। दोनों नॉलेज हर कर्म में चाहिए, शरीर के बिमारी की भी नॉलेज चाहिए। मेरा शरीर किस विधि से ठीक चल सकता है? ऐसे नहीं - आत्मा तो शक्तिशाली है, शरीर कैसा भी है। शरीर ठीक नहीं होगा तो योग भी नहीं लगेगा। फिर शरीर अपनी तरफ खींचता है। इसलिए नॉलेजफुल में यह सब नॉलेज आ जाती है। अच्छा -’’

कुछ कुमारियों का समर्पण समारोह बापदादा के सामने हुआ - बापदादा सभी विशेष आत्माओं को बहुत सुन्दर सजाये देख रहे हैं। दिव्य गुणों का श्रृंगार कितना बढ़िया, सभी को शोभनिक बना रहा है। लाइट का ताज कितना सुन्दर चमक रहा है। बापदादा अविनाशी श्रृंगारी हुई सूरतों को देख रहें हैं। बापदादा को बच्चों का यह उमंग-उत्साह का संकल्प देख खुशी होती है। बापदादा ने सभी को सदा के लिए पसन्द कर लिया। आपने भी पक्का पसन्द कर लिया है ना! दृढ़ संकल्प का हथियाला बँध गया। बापदादा के पास हरेक के दिल के स्नेह का संकल्प सबसे जल्दी पहुँचता है। अभी संकल्प में भी यह श्रेष्ठ बन्धन ढीला नहीं होगा। इतना पक्का बाँधा है ना! कितने जन्मों का वायदा किया? यह ब्रह्मा बाप के साथ सदा सम्बन्ध में आने का पक्का वायदा है और गैरन्टी है कि सदा भिन्न नाम, रूप, सम्बन्ध में 21 जन्म तक तो साथ रहेंगे ही। तो कितनी खुशी है, हिसाब कर सकती हो? इसका हिसाब निकालने वाला कोई नहीं निकला है। अभी ऐसे ही सदा सजे सजाये रहना, सदा ताजधारी रहना और सदा खुशी में हंसते-गाते रूहानी मौज में रहना। आज सभी ने दृढ़ संकल्प किया ना - कि कदम-कदम पर रखने वाले बनेंगे। वह तो स्थूल पाँव के ऊपर पाँव रखती है लेकिन आप सभी संकल्प रूपी कदम पर कदम रखने वाले! जो बाप का संकल्प वह बच्चों का संकल्प - ऐसा संकल्प किया? एक कदम भी बाप के कदम के सिवाए यहाँ वहाँ का न हो। हर संकल्प समर्थ करना अर्थात् बाप के समान कदम के पीछे कदम रखना। अच्छा!

विदेशी भाई-बहनों से - जैसे विमान में उड़ते-उड़ते आये ऐसे बुद्धि रूपी विमान भी इतना ही फास्ट उड़ता रहता है ना? क्योंकि वह विमान सरकमस्टान्स के कारण नहीं भी मिले लेकिन बुद्धि रूपी विमान सदा साथ है और सदा शक्तिशाली है तो सेकण्ड में जहाँ चाहें वहाँ पहुच जाएँ। तो इस विमान के मालिक हो ना। सदा यह बुद्धि का विमान एवररेडी हो अर्थात् सदा बुद्धि की लाइन क्लीयर हो। बुद्धि सदा ही बाप के साथ शक्तिशाली हो तो जब चाहेंगे तब सेकण्ड में पहुँच जायेंगे। जिसका बुद्धि का विमान पहुँचता है उसका वह भी विमान चलता है। बुद्धि का विमान ठीक नहीं तो वह विमान भी नहीं चलता। अच्छा!

पार्टियों से

1. सदा अपने को राजयोगी श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? राजयोगी अर्थात् सर्व-कर्म-इन्द्रियों के राजा। राजा बन कर्म-इन्द्रियों को चलाने वाले, न कि कर्म-इन्द्रियों के वश चलने वाले। जो कर्म-इन्द्रियों के वश चलने वाले हैं उनको प्रजायोगी कहेंगे, राजयोगी नहीं। जब ज्ञान मिल गया कि यह कर्म-इन्द्रियाँ मेरे कर्मचारी हैं, मैं मालिक हूँ, तो मालिक कभी सेवाधारियों के वश नहीं हो सकता। कितना भी कोई प्रयत्न करे लेकिन राजयोगी आत्मायें सदा श्रेष्ठ रहेंगी। सदा राज्य करने के संस्कार अभी राजयोगी जीवन में भरने हैं। कुछ भी हो जाए - यह टाइटिल अपना सदा याद रखना कि - मैं राजयोगी हूँ। सर्वशक्तिवान का बल है, भरोसा है तो सफलता अधिकार रूप में मिल जाता है। अधिकार सहज प्राप्त होता है, मुश्किल नहीं होता। सर्व शक्तियों के आधार से हर कार्य सफल हुआ ही पड़ा है। सदा फखुर रहे कि मैं दिलतख्तनशीन आत्मा हूँ। यह फखुर अनेक फिकरों से पार कर देता है। फखुर नहीं तो फिकर ही फिकर है। तो सदा फखुर में रह वरदानी बन वरदान बाँटते चलो। स्वयं सम्पन्न बन औरों को सम्पन्न बनाना है। औरों को बनाना अर्थात् स्वर्ग के सीट का सर्टीफिकेट देते हो। कागज का सर्टीफिकेट नहीं, अधिकार का!

2. हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले, अखुट खज़ाने के मालिक बन गये। ऐसे खुशी का अनुभव करते हो! क्योंकि आजकल की दुनिया है ही - धोखेबाज। धोखेबाज दुनिया से किनारा कर लिया। धोखे वाली दुनिया से लगाव तो नहीं! सेवा अर्थ कनेक्शन दुसरी बात है लेकिन मन का लगाव नहीं होना चाहिए। तो सदा अपने को तुच्छ नहीं, साधारण नहीं लेकिन श्रेष्ठ आत्मा हैं, सदा बाप के प्यारे हैं, इस नशे में रहो। जैसा बाप वैसे बच्चा - कदम पर कदम रखते अर्थात् फालो करते चलो तो बाप समान बन जायेंगे। समान बनना अर्थात् सम्पन्न बनना। ब्राह्मण जीवन का यही तो कार्य है।

3. सदा अपने को बाप के रूहानी बगीचे के रूहानी गुलाब समझते हो! सबसे खुशबू वाला पुष्प गुलाबहोता है। गुलाब का जल कितने कार्यों में लगाते हैं, ‘रंग-रूपमें भी गुलाब सर्व प्रिय है। तो आप सभी रूहानी गुलाब हो। आपकी रूहानी खुशबू औरों को भी स्वत: ही आकर्षण करती है। कहाँ भी कोई खुशबू की चीज़ होती है तो सबका अटेन्शन स्वत: ही जाता है तो आप रूहानी गुलाबों की खुशबू विश्व को आकर्षित करने वाली है, क्योंकि विश्व को इस रूहानी खुशबू की आवश्यकता है। इसलिए सदा स्मृति में रहे कि -मैं अविनाशी बगीचे का अविनाशी गुलाब हूँ।कभी मुरझाने वाला नहीं। सदा खिला हुआ। ऐसे खिले हुए रूहानी गुलाब सदा सेवा में स्वत: ही निमित्त बन जाते हैं। याद की, शक्तियों की, गुणों की यह सब खुशबू सबको देते रहो। स्वयं बाप ने आकर आप फूलों को तैयार किया है तो कितने सिकीलधे हो!

4. सदा अपने को डबल लाइट अनुभव करते हो? जो डबल लाइट रहता है वह सदा उड़ती कला का अनुभव करता है। क्योंकि जो हल्का होता है वह सदा ऊँचा उड़ता है, बोझ वाला नीचे जाता है। तो डबल लाइट आत्मायें अर्थात् सर्व बोझ से न्यारे बन गये। बाप का बनने से 63 जन्मों का बोझ समाप्त हो गया। सिर्फ अपने पुराने संकल्प वा व्यर्थ संकल्प का बोझ न हो। क्योंकि कोई भी बोझ होगा तो ऊँची स्थिति में उड़ने नहीं देगा। तो डबल लाइट अर्थात् आत्मिक स्वरूप में स्थित होने से हल्का-पन स्वत: हो जाता है। ऐसे डबल लाइट को ही फरिश्ताकहा जाता है। फरिश्ता कभी किसी भी बन्धन में नहीं बँधता। तो कोई भी बँधन तो नहीं है! मन का भी बन्धन नहीं। जब बाप से सर्वशक्तियाँ मिल गई तो सर्व शक्तियों से निर्बन्धन बनना सहज है। फरिश्ता कभी भी इस पुरानी दुनिया के, पुरानी देह के आकर्षण में नहीं आता। क्योंकि है ही डबल लाइट। तो सदा ऊँची स्थिति में रहने वाले। उड़ती कला में जाने वाले फरिश्तेहैं, यही स्मृति अपने लिए वरदान समझ, समर्थ बनते रहना।

अच्छा – ओमशान्ति