21-01-87 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
स्व-राज्य अधिकारी ही विश्व-राज्य अधिकारी
राजाओं के राजा बनाने वाले भाग्यविधाता भगवान अपने बहुत काल के स्व-राज्य अधिकारी बनने के अभ्यासी बच्चों प्रति बोले
आज भाग्यविधाता बाप अपने सर्व श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा के आगे अब भी सिर्फ यह संगठन नहीं है लेकिन चारों ओर के भाग्यवान बच्चे सामने हैं। चाहे देश-विदेश के किसी भी कोने में हैं लेकिन बेहद का बाप बेहद बच्चों को देख रहे हैं। यह साकार वतन के अन्दर स्थान की हद आ जाती है, लेकिन बेहद बाप के दृष्टि की सृष्टि बेहद है। बाप की दृष्टि में सर्व ब्राह्मण आत्माओं की सृष्टि समाई हुई है। तो दृष्टि की सृष्टि में सर्व सम्मुख हैं। सर्व भाग्यवान बच्चों को भाग्यविधाता भगवान देख-देख हर्षित होते हैं। जैसे बच्चे बाप को देख हर्षित होते हैं, बाप भी सर्व बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बेहद के बाप को बच्चों को देख रूहानी नशा वा फखुर है कि एक-एक बच्चा इस विश्व के आगे विशेष आत्माओं की लिस्ट में है! चाहे 16,000 की माला का लास्ट मणका भी है, फिर भी, बाप के आगे आने से, बाप का बनने से विश्व के आगे विशेष आत्मा है। इसलिए, चाहे और कुछ भी ज्ञान के विस्तार को जान नहीं सकते लेकिन एक शब्द ‘बाबा' दिल से माना और दिल से औरों को सुनाया तो विशेष आत्मा बन गये, दुनिया के आगे महान आत्मा बन गये, दुनिया के आगे महान आत्मा के स्वरूप में गायन-योग्य बन गये। इतना श्रेष्ठ और सहज भाग्य है, समझते हो? क्योंकि बाबा शब्द है ‘चाबी'। किसकी? सर्व खज़ानों की, श्रेष्ठ भाग्य की। चाबी मिल गई तो भाग्य वा खज़ाना अवश्य प्राप्त होता ही है। तो सभी मातायें वा पाण्डव चाबी प्राप्त करने के अधिकारी बने हो? चाबी लगाने भी आती है या कभी लगती नहीं है? चाबी लगाने की विधि है - दिल से जानना और मानना। सिर्फ मुख से कहा तो चाबी होते भी लगेगी नहीं। दिल से कहा तो खज़ाने सदा हाजर हैं। अखुट खज़ाने हैं ना। अखुट खज़ाने होने के कारण जितने भी बच्चे हैं सब अधिकारी हैं। खुले खज़ाने हैं, भरपूर खज़ाने हैं। ऐसे नहीं है कि जो पीछे आये हैं, तो खज़ाने खत्म हो गये हों। जितने भी अब तक आये हो अर्थात् बाप के बने हो और भविष्य में भी जितने बनने वाले हैं, उन सबसे खज़ाने अनेकानेक गुणा ज्यादा हैं। इसलिए बापदादा हर बच्चे को गोल्डन चांस देते हैं कि जितना जिसको खज़ाना लेना है, वह खुली दिल से ले लो। दाता के पास कमी नहीं है, लेने वाले के हिम्मत वा पुरूषार्थ पर आधार है। ऐसा कोई बाप सारे कल्प में नहीं है जो इतने बच्चे हों और हर एक भाग्यवान हो! इसलिए सुनाया कि रूहानी बापदादा को रूहानी नशा है।
सभी की मधुबन में आने की, मिलने की आशा पूरी हुई। भक्ति-मार्ग की यात्रा से फिर भी मधुबन में आराम से बैठने की, रहने की जगह तो मिली है ना। मन्दिरों में तो खड़े-खड़े सिर्फ दर्शन करते हैं। यहाँ आराम से बैठे तो हो ना। वहाँ तो ‘भागो-भागो', ‘चलो-चलो' कहते हैं और यहाँ आराम से बैठो, आराम से, याद की खुशी से मौज मनाओ। संगमयुग में खुशी मनाने के लिए आये हो। तो हर समय चलते-फिरते, खाते-पीते खुशी का खज़ाना जमा किया? कितना जमा किया है? इतना किया जो 21 जन्म आराम से खाते रहो? मधुबन विशेष सर्व खज़ाने जमा करने का स्थान है क्योंकि ‘यहाँ एक बाप दूसरा न कोई' - यह साकार रूप में भी अनुभव करते हो। वहाँ बुद्धि द्वारा अनुभव करते हो लेकिन यहाँ प्रत्यक्ष साकार जीवन में भी सिवाए बाप और ब्राह्मण परिवार के और कोई नजर आता है क्या? एक ही लग्न, एक ही बातें, एक ही परिवार के और एकरस स्थिति। और कोई रस है ही नहीं। पढ़ना और पढ़ाई द्वारा शक्तिशाली बनना, मधुबन में यही काम है ना। कितने क्लास करते हो? तो यहाँ विशेष जमा करने का साधन मिलता है। इसलिए, सब भाग-भागकर पहुँच गये हैं। बापदादा सभी बच्चों को विशेष यही स्मृति दिलाते हैं कि सदा स्वराज्य अधिकारी स्थिति में आगे बढ़ते चलो। स्वराज्य अधिकारी - यही निशानी है विश्व-राज्य अधिकारी बनने की।
कई बच्चे रूह-रूहान करते हुए बाप से पूछते हैं कि ‘हम भविष्य में क्या बनेंगे, राजा बनेंगे या प्रजा बनेंगे?' बापदादा बच्चों को रेसपाण्ड करते हैं कि अपने आपको एक दिन भी चेक करो तो मालूम पड़ जायेगा कि मैं राजा बनूँगा वा साहूकार बनूँगा वा प्रजा बनूँगा। पहले अमृतवेले से अपने मुख्य तीन कारोबार के अधिकारी, अपने सहयोगी, साथियों को चेक करो। वह कौन? 1. मन अर्थात् संकल्प शक्ति। 2. बुद्धि अर्थात् निर्णय शक्ति। 3. पिछले वा वर्तमान श्रेष्ठ संस्कार। यह तीनों विशेष कारोबारी हैं। जैसे आजकल के जमाने में राजा के साथ महामन्त्री वा विशेष मन्त्री होते हैं, उन्हीं के सहयोग से राज्य कारोबार चलती है। सतयुग में मन्त्री नहीं होंगे लेकिन समीप के सम्बन्धी, साथी होंगे। किसी भी रूप में, साथी समझो वा मन्त्री समझो। लेकिन यह चेक करो - यह तीनों स्व के अधिकार से चलते हैं? इन तीनों पर स्व का राज्य है वा इन्हों के अधिकार से आप चलते हो? मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते हैं? जो चाहो, जब चाहो वैसा ही संकल्प कर सकते हो? जहाँ बुद्धि लगाने चाहो, वहाँ लगा सकते हो वा बुद्धि आप राजा को भटकाती है? संस्कार आपके वश हैं या आप संस्कारों के वश हो? राज्य अर्थात् अधिकार। राज्य-अधिकारी जिस शक्ति को जिस समय जो आर्डर करे, वह उसी विधिपूर्वक कार्य करते वा आप कहो एक बात, वह करें दूसरी बात? क्योंकि निरन्तर योगी अर्थात् स्वराज्य अधिकारी बनने का विशेष साधन ही मन और बुद्धि है। मन्त्र ही ‘मन्मनाभव' का है। योग को बुद्धियोग कहते हैं। तो अगर यह विशेष आधार स्तम्भ अपने अधिकार में नहीं हैं वा कभी हैं, कभी नहीं है; अभी-अभी हैं, अभी-अभी नहीं हैं; तीनों में से एक भी कम अधिकार में है तो इससे ही चेक करो कि हम राजा बनेंगे या प्रजा बनेंगे? बहुतकाल के राज्य अधिकारी बनने के संस्कार बहुतकाल के भविष्य राज्य- अधिकारी बनायेंगे। अगर कभी अधिकारी, कभी वशीभूत हो जाते हो तो आधा कल्प अर्थात् पूरा राज्य-भाग्य का अधिकार प्राप्त नहीं कर सकेंगे। आधा समय के बाद त्रेतायुगी राजा बन सकते हो, सारा समय राज्य अधिकारी अर्थात् राज्य करने वाले रॉयल फैमिली के समीप सम्बन्ध में नहीं रह सकते। अगर वशीभूत बारबार होते हो तो संस्कार अधिकारी बनने के नहीं लेकिन राज्य अधिकारियों के राज्य में रहने वाले हैं। वह कौन हो गये? वह हुई प्रजा। तो समझा, राजा कौन बनेगा, प्रजा कौन बनेगा? अपने ही दर्पण में अपने तकदीर की सूरत को देखो। यह ज्ञान अर्थात् नॉलेज दर्पण है। तो सबके पास दर्पण है ना। तो अपनी सूरत देख सकते हो ना। अभी बहुत समय के अधिकारी बनने का अभ्यास करो। ऐसे नहीं अन्त में तो बन ही जायेंगे। अगर अन्त में बनेंगे तो अन्त का एक जन्म थोड़ा-सा राज्य कर लेंगे। लेकिन यह भी याद रखना कि अगर बहुत समय का अब से अभ्यास नहीं होगा वा आदि से अभ्यासी नहीं बने हो, आदि से अब तक यह विशेष कार्यकर्त्ता आपको अपने अधिकार में चलाते हैं वा डगमग स्थिति करते रहते हैं अर्थात् धोखा देते रहते हैं, दु:ख की लहर का अनुभव कराते रहते हैं तो अन्त में भी धोखा मिल जायेगा। धोखा अर्थात् दु:ख की लहर जरूर आयेगी। तो अन्त में भी पश्चाताप के दु:ख की लहर आयेगी। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को फिर से स्मृति दिलाते हैं कि राजा बनो और अपने विशेष सहयोगी कर्मचारी वा राज्य कारोबारी साथियों को अपने अधिकार से चलाओ। समझा?
बापदादा यही देखते हैं कि कौन-कौन कितने स्वराज्य-अधिकारी बने हैं? अच्छा। तो सब क्या बनने चाहते हो? राजा बनने चाहते हो? तो अभी स्वराज्य- अधिकारी बने हो वा यही कहते हो बन रहे हैं, बन तो जायेंगे? ‘गे-गे' नहीं करना। ‘जायेंगे', तो बाप भी कहेंगे - अच्छा, राज्य-भाग्य देने को भी देख लेंगे। सुनाया ना - बहुत समय का संस्कार अभी से चाहिए। वैसे तो बहुत-काल नहीं है, थोड़ा-काल है। लेकिन फिर भी इतने समय का भी अभ्यास नहीं होगा तो फिर लास्ट समय यह उल्हना नहीं देना - हमने तो समझा था, लास्ट में ही हो जायेंगे। इसलिए कहा गया है - कब नहीं, अब। कब हो जायेगा नहीं, अब होना ही है। बनना ही है। अपने ऊपर राज्य करो, अपने साथियों के ऊपर राज्य करना नहीं शुरू करना। जिसका स्व पर राज्य है, उसके आगे अभी भी स्नेह के कारण सर्व साथी भी चाहे लौकिक, चाहे अलौकिक सभी ‘जी हजूर', ‘हाँ-जी' कहते हुए साथी बनकर के रहते हैं, स्नेही और साथी बन ‘हाँ-जी' का पाठ प्रैक्टिकल में दिखाते हैं। जैसे प्रजा राजा की सहयोगी होती है, स्नेही होती है, ऐसे आपकी यह सर्व कर्म-इन्द्रियाँ, विशेष शक्तियाँ सदा आपके स्नेही, सहयोगी रहेंगी और इसका प्रभाव साकार में आपके सेवा के साथियों वा लौकिक सम्बन्धियों, साथियों में पड़ेगा। दैवी परिवार में अधिकारी बन आर्डर चलाना, यह नहीं चल सकता। स्वयं अपनी कर्म-इन्द्रियों को आर्डर में रखो तो स्वत: आपके आर्डर करने के पहले ही सर्व साथी आपके कार्य में सहयोगी बनेंगे। स्वयं सहयोगी बनेंगे, आर्डर करने की आवश्यकता नहीं। स्वयं अपने सहयोग की आफर करेंगे क्योंकि आप स्वराज्य-अधिकारी हैं। जैसे राजा अर्थात् दाता, तो दाता को कहना नहीं पड़ता अर्थात् मांगना नहीं पड़ता। तो ऐसे स्वराज्य-अधिकारी बनो। अच्छा। यह मेला भी ड्रामा में नूँध था। ‘वाह ड्रामा' कर रहे हैं ना। दूसरे लोग कभी ‘हाय ड्रामा' करेंगे, कभी ‘वाह ड्रामा' और आप सदा क्या कहते हो? वाह ड्रामा! वाह! जब प्राप्ति होती हैं ना, तो प्राप्ति के आगे कोई मुश्किल नहीं लगता है। तो ऐसे ही, जब इतने श्रेष्ठ परिवार से मिलने की प्राप्ति हो रही है तो कोई मुश्किल, मुश्किल नहीं लगेगा। मुश्किल लगता है? खाने पर ठहरना पड़ता है। खाओ तो भी प्रभु के गुण गाओ और क्यू में ठहरो तो भी प्रभु के गुण गाओ। यही काम करना है ना। यह भी रिहर्सल हो रही है। अभी तो कुछ भी नहीं है। अभी तो और वृद्धि होगी ना। ऐसे अपने को मोल्ड करने की आदत डालो, जैसा समय वैसे अपने आपको चला सकें। तो पट (जमीन) में सोने की भी आदत पड़ गई ना। ऐसे तो नहीं - खटिया नहीं मिली तो नींद नहीं आई? टेन्ट में भी रहने की आदत पड़ गई ना। अच्छा लगा? ठण्डी तो नहीं लगती? अभी सारे आबू में टेन्ट लगायें? टेन्ट में सोना अच्छा लगा या कमरा चाहिए? याद है, पहले-पहले जब पाकिस्तान में थे तो महारथियों को ही पट में सुलाते थे? जो नामीग्रामी महारथी होते थे, उन्हों को हाल में पट में टिफुटी (तीन फुट) देकर सुलाते थे। और जब ब्राह्मण परिवार की वृद्धि हुई तो भी कहाँ से शुरू की? टेन्ट से ही शुरू की ना। पहले-पहले जो निकले, वह भी टेन्ट में ही रहे। टेन्ट में रहने वाले सेन्ट (महात्मा) हो गये। साकार पार्ट के होते भी टेन्ट में ही रहे तो आप लोग भी अनुभव करेंगे ना। तो सभी हर रीति से खुश हैं? अच्छा, फिर और 10,000 मंगा के टेन्ट देंगे, प्रबन्ध करेंगे। सब नहाने के प्रबन्ध का सोचते हो, वह भी हो जायेगा। याद है, जब यह हाल बना था तो सबने क्या कहा था? इतने नहाने के स्थान क्या करेंगे? इसी लक्ष्य से यह बनाया गया, अभी कम हो गया ना। जितना बनायेंगे उतना कम तो होना ही है क्योंकि आिखर तो बेहद में ही जाना है। अच्छा।
सब तरफ के बच्चे पहुँच गये हैं। तो यह भी बेहद के हाल का शृंगार हो गया है। नीचे भी बैठे हैं। (भिन्न-भिन्न स्थानों पर मुरली सुन रहे हैं) यह वृद्धि होना भी तो खुशनसीबी की निशानी है। वृद्धि तो हुई लेकिन विधिपूर्वक चलना। ऐसे नहीं, यहाँ मधुबन में तो आ गये, बाबा को भी देखा, मधुबन भी देखा, अभी जैसे चाहें वैसे चलें। ऐसे नहीं करना। क्योंकि कई बच्चे ऐसे करते हैं आजब तक मधुबन में आने को नहीं मिलता है, तब तक पक्के रहते हैं, फिर जब मधुबन देख लिया तो थोड़े अलबेले हो जाते हैं। तो अलबेले नहीं बनना। ब्राह्मण अर्थात् ब्राह्मण जीवन है, तो जीवन तो सदा जब तक है, तब तक है। जीवन बनाई है ना। जीवन बनाई है या थोड़े समय के लिए ब्राह्मण बनें हैं? सदा अपने ब्राह्मण जीवन की विशेषतायें साथ रखना क्योंकि इसी विशेषताओं से वर्तमान भी श्रेष्ठ है और भविष्य भी श्रेष्ठ है। अच्छा। बाकी क्या रहा? टोली। (वरदान) वरदान तो वरदाता के बच्चे ही बन गये। जो हैं ही वरदाता के बच्चे, उन्हों को हर कदम में वरदाता से वरदान स्वत: ही मिलता रहता है। वरदान ही आपकी पालना है। वरदानों की पालना से ही पल रहे हैं। नहीं तो, सोचो, इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति और मेहनत क्या की। बिना मेहनत के जो प्राप्ति होती है, उसको ही ‘वरदान' कहा जाता है। तो मेहनत क्या की और प्राप्ति कितनी श्रेष्ठ! जन्म-जन्म प्राप्ति के अधिकारी बन गये। तो वरदान हर कदम में वरदाता का मिल रहा है और सदा ही मिलता रहेगा। दृष्टि से, बोल से, सम्बन्ध से वरदान ही वरदान है। अच्छा।
अभी तो गोल्डन जुबली मनाने की तैयारी कर रहे हो। गोल्डन जुबली अर्थात् सदा गोल्डन स्थिति में स्थिति रहने की जुबली मना रहे हो। सदा रीयल गोल्ड, जरा भी अलाएं (खाद) मिक्स नहीं। इसको कहते हैं ‘गोल्डन जुबली'। तो दुनिया के आगे सोने के स्थिति में स्थित होने वाले सच्चे सोने प्रत्यक्ष हों, इसके लिए यह सब सेवा के साधन बना रहे हैं। क्योंकि आपकी गोल्डन स्थिति गोल्डन एज को लायेगी, स्वर्ण संसार को लायेगी जिसकी इच्छा सबको है कि अभी कुछ दुनिया बदलनी चाहिए। तो स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन करने वाली विशेष आत्मायें हो। आप सबको देख आत्माओं को यह निश्चय हो, शुभ उम्मीदें हों कि सचमुच, स्वर्ण दुनिया आई कि आई! सैम्पल को देख करके निश्चय होता है नाहाँ, अच्छी चीज़ है। स्वर्ण संसार के सैम्पल आप हो। स्वर्ण स्थिति वाले हो। तो आप सैम्पल को देख उन्हों को निश्चय हो कि ‘हाँ, जब सैम्पल तैयार हो तो अवश्य ऐसा ही संसार आया कि आया।' ऐसी सेवा गोल्डन जुबली में करेंगे ना। ना-उम्मीद को उम्मीद देने वाले बनना। अच्छा।
सर्व स्वराज्य-अधिकारी, सर्व बहुतकाल के अधिकार प्राप्त करने के अभ्यासी आत्माओं को, सर्व विश्व के विशेष आत्माओं को, सर्व वरदाता के वरदानों से पलने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ पर्सनल मुलाकात
हम हर कल्प के अधिकारी आत्मायें हैं, सिर्फ अब के नहीं, अनेक बार के अधिकारी हैं - यह खुशी रहती है? आधा कल्प बाप के आगे भिखारी बन मांगते रहे लेकिन बाप ने अब अपना बना लिया, बच्चे बन गये। बच्चा अर्थात् अधिकारी। अधिकारी समझने से बाप का जो भी वर्सा है, वह स्वत: याद रहता है। कितना बड़ा खज़ाना है! इतना खज़ाना है जो खाते खुटता नहीं है और जितना आैंरों को बाँटो उतना बढ़ता जाता है! ऐसा अनुभव है? परमात्म-वर्से के अधिकारी हैं - इससे बड़ा नशा और कोई हो सकता है? तो यह अविनाशी गीत सदा गाते रहो और खुशी में नाचते रहो कि हम परमात्मा के बच्चे परमात्म- वर्से के अधिकारी हैं। यह गीत गाते रहो तो माया सामने आ नहीं सकती, मायाजीत बन जायेंगे। यही विशेष वरदान याद रखना कि परमात्म-वर्से के अधिकारी आत्मायें हैं। इसी अधिकार से भविष्य में विश्व के राज्य का अधिकार स्वत: मिलता है। शक्तियाँ सदा खुश रहने वाली हो ना? कभी कोई दु:ख की लहर तो नहीं आती? दु:ख की दुनिया छोड़ दी, सुख के संसार में पहुँच गये। दु:ख के संसार में सिर्फ सेवा के लिए रहते, बाकी सुख के संसार में। बाप के अधिकार से सब सहज हो जाता है।
सदैव अपने को महावीर अर्थात् महान आत्मा अनुभव करते हो? महान आत्मा सदा जो संकल्प करेंगे, बोल बोलेंगे वो साधारण नहीं होगा, महान होगा। क्योंकि ऊँचे-ते-ऊँचे बाप के बच्चे भी ऊँचे, महान हुए ना। जैसे कोई आजकल की दुनिया में वी.आई.पी. का बच्चा होगा तो वह अपने को भी वी.आई.पी. समझेगा ना। तो आप से ऊँचा तो कोई है ही नहीं। तो ऐसे, ऊँचे-तो-ऊँचे बाप की सन्तान ऊँचे-ते-ऊँची आत्मायें हैं - यह स्मृति सदा शक्तिशाली बनाती है। ऊँचा बाप, ऊँचे हम, ऊँचा कार्य - ऐसी स्मृति में रहने वाले सदा बाप समान बन जाते हैं। तो बाप समान बने हो? बाप हर बच्चे को ऊँचा ही बनाते हैं। कोई ऊँचा, कोई नीचा नहीं, सब ऊँचे-ते-ऊँचे। अगर अपनी कमज़ोरी से कोई नीचे की स्थिति में रहता है तो उसकी कमज़ोरी है। बाकी बाप सबको ऊँचा बनाता है। सारे विश्व के आगे श्रेष्ठ और ऊँची आत्मायें आपके सिवाए कोई नहीं हैं, इसलिए तो आप आत्माओं का ही गायन और पूजन होता है। अभी तक गायन, पूजन हो रहा है। कभी भी कोई मन्दिर में जायेंगे तो क्या समझेंगे? कोई भी मन्दिर में मूर्ति देखकर क्या समझते हो? यह हमारी ही मूर्ति है। सिर्फ बाप नहीं पूजा जाता, बाप के साथ आप भी पूजे जाते हो। ऐसे महान बन गये! एक बार नहीं, अनेक बार बने हैं आजहाँ यह नशा होगा वहाँ माया की आकर्षण अपने तरफ आकर्षित नहीं कर सकेगी, सदा न्यारे होंगे। सभी अपने आप से सन्तुष्ट हो? जैसे बाप सुनाते हैं, वैसे ही अनुभव करते हुए आगे बढ़ना - यह है अपने आप से सन्तुष्ट रहना। ‘‘ऊँचे-ते-ऊँचे'' - यही विशेष वरदान याद रखना। याद करना सहज है या मुश्किल लगता है? सहज स्मृति स्वत: आती रहेगी। माया कहाँ रोक नहीं सकेगी, सदा आगे बढ़ते रहेंगे।
सदा अपने को हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले पद्मापद्म भाग्यवान समझते हो? जो भी कदम याद में उठाते हो, तो एक सेकण्ड की याद इतनी शक्तिशाली है जो एक सेकण्ड की याद पद्मों की कमाई जमा करने वाली है। अगर साधारण कदम उठाते हैं, याद में नहीं उठाते तो कमाई नहीं है। याद में रहकर कदम उठाने से पद्मों की कमाई है। और हर कदम में पद्म तो कितने पद्म हो गये! इसलिए पद्मापद्म भाग्यवान कहा जाता है। पद्म तो आपके आगे कुछ भी नहीं है। लेकिन इस दुनिया के हिसाब से कहने में आता है। तो जब किसी की अच्छी कमाई होती है तो उसके चेहरे की फलक ही और हो जाती है। गरीब का चेहरा भी देखो और राजकुमार का चेहरा भी देखो, कितना फर्क होगा! उसके शक्ल की झलक-फलक और गरीब के चेहरे की झलक- फलक में रात-दिन का फर्क होगा। आप तो राजाओं का भी राजा बनाने वाले बाप के डायरेक्ट बच्चे हो। तो कितनी झलक-फलक है! शक्ल में वह पद्मों की कमाई का नशा दिखाई देता है या गुप्त रहता है? रूहानी नशा, रूहानी खुशी जो कोई भी देखे तो अनुभव करे कि यह न्यारे लोग हैं, साधारण नहीं हैं। तो सदा यही वरदान स्मृति में रखना कि हम अनेक बार पद्मापद्मपति बने हैं। अच्छा।