02-11-87 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
स्व-परिवर्तन का आधार - ‘सच्चे दिल की महसूसता'
कल्पवृक्ष के हर चैतन्य पत्ते का पता रखने वाले, रहमदिल बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले
आज विश्व-परिवर्तक, विश्व-कल्याणकारी बापदादा अपने स्नेही, सहयोगी, विश्व-परिवर्तक बच्चों को देख रहे हैं। हर स्व एक परिवर्तन द्वारा विश्व-परिवर्तन करने की सेवा में लगे हुए हैं। सभी के मन में एक ही उमंग-उत्साह है कि इस विश्व को परिवर्तन करना ही है और निश्चय भी है कि परिवर्तन होना ही है अथवा यह कहें कि परिवर्तन हुआ ही पड़ा है। सिर्फ निमित्त बापदादा के सहयोगी, सहजयोगी बन वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बना रहे हैं।
आज बापदादा चारों ओर के निमित्त विश्व-परिवर्तक बच्चों को देखते हुए एक विशेष बात देख रहे थे - हैं सभी एक ही कार्य के निमित्त, लक्ष्य भी सभी का स्व-परिवर्तन और विश्व-परिवर्तन ही है लेकिन स्व-परिवर्तन वा विश्व-परिवर्तन में निमित्त होते हुए भी नम्बरवार क्यों? कोई बच्चे स्व-परिवर्तन बहुत सहज और शीघ्र कर लेते और कोई अभी-अभी परिवर्तन का संकल्प करेंगे लेकिन स्वयं के संस्कार वा माया और प्रकृति द्वारा आने वाली परिस्थितियाँ वा ब्राह्मण परिवार द्वारा चुक्तु होने वाले हिसाब-किताब श्रेष्ठ परिवर्तन के उमंग को कमज़ोर कर देते हैं और कई बच्चे परिवर्तन करने की हिम्मत में कमज़ोर हैं। जहाँ हिम्मत नहीं, वहाँ उमंग-उत्साह नहीं। और स्व-परिवर्तन के बिना विश्व-परिवर्तन के कार्य में दिल-पसन्द सफलता नहीं होती। क्योंकि यह अलौकिक ईश्वरीय सेवा एक ही समय पर तीन प्रकार के सेवा की सिद्धि है, वह तीन प्रकार की सेवा साथ-साथ कौनसी है? एक - वृत्ति, दूसरा - वायब्रेशन, तीसरा - वाणी। तीनों ही शक्तिशाली निमित्त, निर्मान और नि:स्वार्थ इस आधार से हैं, तब दिल-पसन्द सफलता होती है। नहीं तो, सेवा होती है, अपने को वा दूसरों को थोड़े समय के लिए सेवा की सफलता से खुश तो कर लेते हैं लेकिन दिल-पसन्द सफलता जो बापदादा कहते हैं, वह नहीं होती है। बापदादा भी बच्चों की खुशी में खुश हो जाते हैं लेकिन दिलाराम की दिल पर यथा-शक्ति रिजल्ट नोट जरूर होती रहती। ‘शाबास, शाबाश!' जरूर कहेंगे क्योंकि बाप की हर बच्चे के ऊपर सदा वरदान की दृष्टि और वृत्ति रहती है कि यह बच्चे आज नहीं तो कल सिद्धिस्व रूप बनने ही हैं। लेकिन वरदाता के साथ-साथ शिक्षक भी है, इसलिए आगे के लिए अटेन्शन भी दिलाते हैं।
तो आज बापदादा विश्व-परिवर्तन के कार्य की और विश्व-परिवर्तक बच्चों की रिजल्ट को देख रहे थे। वृद्धि हो रही है, आवाज चारों ओर फैल रहा है, प्रत्यक्षता का पर्दा खुलने का भी आरम्भ हो गया है। चारों ओर की आत्माओं में अभी इच्छा उत्पन्न हो रही है कि नजदीक जाकर देखें। सुनी-सुनाई बातें अभी देखने के परिवर्तन में बदल रही हैं। यह सब परिवर्तन हो रहा है। फिर भी ड्रामा अनुसार अभी तक बाप और कुछ निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं के शक्तिशाली प्रभाव का परिणाम यह दिखाई दे रहा है। अगर मैजारिटी इस विधि से सिद्धि को प्राप्त करें तो बहुत जल्दी सर्व ब्राह्मण सिद्धि-स्वरूप में प्रत्यक्ष हो जायेंगे। बापदादा देख रहे थे - दिलपसन्द, लोकपसन्द, बाप-पसन्द सफलता का आधार ‘स्व परिवर्तन' की अभी कमी है और ‘स्व-परिवर्तन' की कमी क्यों है? उसका मूल आधार एक विशेष शक्ति की कमी है। वह विशेष शक्ति है - महसूसता की शक्ति।
कोई भी परिवर्तन का सहज आधार महसूसता-शक्ति है। जब तक महसूसता-शक्ति नहीं आती, तब तक अनुभूति नहीं होती और जब तक अनुभूति नहीं तब तक ब्राह्मण जीवन की विशेषता का फाउन्डेशन मजबूत नहीं। आदि से अपने ब्राह्मण जीवन को सामने लाओ।
पहला परिवर्तन - मैं आत्मा हूँ, बाप मेरा है - यह परिवर्तन किस आधार से हुआ? जब महसूस करते हो कि ‘हाँ, मैं आत्मा हूँ, यही मेरा बाप है।' तो महसूसता अनुभव कराती है, तब ही परिवर्तन होता है। जब तक महसूस नहीं करते, तब तक साधारण गति से चलते हैं और जिस घड़ी महसूसता की शक्ति अनुभवी बनाती है तो तीव्र पुरूषार्थी बन जाते हैं। ऐसे जो भी परिवर्तन की विशेष बातें हैं - चाहे रचयिता के बारे में, चाहे रचना के बारे में, जब तक हर बात को महसूस नहीं करते कि हाँ, यह वही समय है, वही योग है, मैं भी वही श्रेष्ठ आत्मा हूँ - तब तक उमंग-उत्साह की चाल नहीं रहती। कोई के वायुमण्डल के प्रभाव से थोड़े समय के लिए परिवर्तन होगा लेकिन सदाकाल का नही होगा। महसूसता की शक्ति सदाकाल का सहज परिवर्तन कर लेगी।
इसी प्रकार स्व-परिवर्तन में भी जब तक महसूसता की शक्ति नहीं, तब तक सदाकाल का श्रेष्ठ परिवर्तन नहीं हो सकता है। इसमें विशेष दो बातों की महसूसता चाहिए। एक - अपनी कमज़ोरी की महसूसता। दूसरी - जो परिस्थिति वा व्यक्ति निमित्त बनते हैं, उनकी इच्छा और उनके मन की भावना वा व्यक्ति की कमज़ोरी या परवश के स्थिति की महसूसता। परिस्थिति के पेपर के कारण को जान स्वयं को पास होने के श्रेष्ठ स्वरूप की महसूसता में हो वि - मैं श्रेष्ठ हूँ, स्वस्थिति श्रेष्ठ है, परिस्थिति पेपर है। यह महसूसता सहज परिवर्तन करा लेगी और पास कर लेंगे। दूसरे की इच्छा वा दूसरे के स्व-उन्नति की भी महसूसता अपने स्व-उन्नति का आधार है। तो स्व-परिवर्तन - महसूसता की शक्ति बिना नहीं हो सकता। इसमें भी एक है - सच्चे दिल की महसूसता, दूसरी - चतुराई की महसूसता भी है। क्योंकि नॉलेजफुल बहुत बन गये हैं। तो समय देख अपने को सिद्ध करने के लिए, अपना नाम अच्छा करने के लिए उस समय महसूस भी कर लेंगे लेकिन उस महसूसता में शक्ति नहीं होती जो परिवर्तन कर लेंवे। तो दिल की महसूसता दिलाराम की आशीर्वाद प्राप्त कराती है और चतुराई वाली महसूसता थोड़े समय के लिए दूसरे को भी खुश कर लेते, अपने को भी खुश कर देते।
तीसरे प्रकार की महसूसता - मन मानता है कि यह ठीक नहीं है, विवेक आवाज देता है कि यह यथार्थ नहीं है लेकिन बाहर के रूप से अपने को महारथी सिद्ध करने के लिए, अपने नाम को किसी भी प्रकार से परिवार के बीच कमज़ोर या कम न करने के कारण विवेक का खून करते रहते हैं। यह विवेक का खून करना भी पाप है। जैसे आपघात महापाप है, वैसे यह भी पाप के खाते में जमा होता है। इसलिए बापदादा मुस्कराते रहते हैं और उनमें मन के डॉयलाग भी सुनते रहते हैं। बहुत सुन्दर डॉयलाग होते हैं। मूल बात - ऐसी महसूसता वाले यह समझते हैं कि किसको क्या पता पड़ता है, ऐसे ही चलता है... लेकिन बाप को पता हर पत्ते का है। सिर्फ मुख से सुनने से पता नहीं पड़ता, लेकिन पता होते भी बाप अन्जान बन भोलेपन में भोलानाथ के रूप से बच्चों को चलाते हैं। जबकि जानते हैं, फिर भोला क्यों बनते? क्योंकि रहमदिल बाप है, समझा? ऐसे बच्चे चतुरसुजान बाप से भी अथवा निमित्त आत्माओं से भी बहुत चतुर बन सामने आते हैं। इसलिए बाप रहमदिल, भोलानाथ बन जाते हैं।
बापदादा के पास हर बच्चे के कर्म का, मन के संकल्पों का खाता हर समय का स्पष्ट रहता है। दिलों को जानने की आवश्यकता नहीं है लेकिन हर बच्चे के दिल की हर धड़कन का चित्र स्पष्ट ही है। इसलिए कहते हैं कि मैं हर एक के दिल को नहीं जानता क्योंकि जानने की आवश्यकता ही नहीं, स्पष्ट है ही। हर घड़ी के दिल की धड़कन वा मन के संकल्प का चार्ट बापदादा के सामने है। बता भी सकते हैं, ऐसे नहीं कि नहीं बता सकते हैं। तिथि, स्थान, समय और क्याक् या किया - सब बता सकते हैं। लेकिन जानते हुए भी अन्जान रहते हैं। तो आज सारा चार्ट देखा।
स्व-परिवर्तन तीव्रगति से न होने के कारण - ‘सच्ची दिल के महसूसता' की कमी है। महसूसता की शक्ति बहुत मीठे अनुभव करा सकती है। यह तो समझते हो ना। कभी अपने को बाप के नूरे रतन आत्मा अर्थात् नयनों में समाई हुई श्रेष्ठ बिन्दु महसूस करो। नयनों में तो बिन्दु ही समा सकता है, शरीर तो नहीं समा सकेगा। कभी अपने को मस्तक पर चमकने वाली मस्तक-मणि,चमकता हुआ सितारा महसूस करो, कभी अपने को ब्रह्मा बाप के सहयोगी, राइट हैण्ड साकार ब्राह्मण रूप में ब्रह्मा की भुजायें अनुभव करो, महसूस करो। कभी अव्यक्त फरिश्ता स्वरूप महसूस करो। ऐसे महसूसता शक्ति से बहुत अनोखे, अलौकिक अनुभव करो। सिर्फ नॉलेज की रीति वर्णन नही करो, महसूस करो। इस महसूसता-शक्ति को बढ़ाओ तो दूसरे तरफ की कमज़ोरी की महसूसता स्वत: ही स्पष्ट होगी। शक्तिशाली दर्पण के बीच छोटा-सा दाग भी स्पष्ट दिखाई देगा और परिवर्तन कर लेंगे। तो समझा, स्व परिवर्तन का आधार महसूसता शक्ति है। शक्ति को कार्य में लगाओ, सिर्फ गिनती करके खुश न हो - हाँ, यह भी शक्ति है, यह भी शक्ति है। लेकिन स्व प्रति, सर्व प्रति, सेवा प्रति सदा हर कार्य में लगाओ। समझा? कई बच्चे कहते कि बाप यही काम करते रहते हैं क्या? लेकिन बाप क्या करे, साथ तो ले ही जाना है। जब साथ ले जाना है तो साथी भी ऐसे ही चाहिए ना। इसलिए देखते रहते हैं और समाचार सुनाते रहते कि साथी समान बन जाएं। पीछे-पीछे आने वालों की तो बात ही नहीं है, वह तो ढेर होंगे। लेकिन साथी तो समान चाहिए ना। आप साथी हो या बाराती हो? बारात तो बहुत बड़ी होगी, इसलिए शिव की बारात मशहूर है। बारात तो वैराइटी होगी लेकिन साथी तो ऐसे चाहिए ना। अच्छा।
यह ईस्टर्न जोन है। ईस्टर्न जोन क्या कर रहा है? प्रत्यक्षता का सूर्य कहाँ से उदय करेंगे? बाप में प्रत्यक्षता हुई, वह बात तो अब पुरानी हो गई। लेकिन अब क्या करेंगे? पुरानी गद्दी है - यह तो नशा अच्छा है लेकिन अब क्या करेंगे? अभी कोई नवीनता का सूर्य उदय करो जो सब के मुख से निकले कि यह ईस्टर्न जोन से नवीनता का सूर्य प्रकट हुआ! जो कार्य अभी तक किसी ने न किया हो, वह अब करके दिखाओ। फंक्शन, सेमीनार किये, आई.पी. (विशिष्ट व्यक्ति) की सेवा की, अखबारों में डाला - यह तो सभी करते लेकिन नवीनता की कुछ झलक दिखाओ। समझा?
बाप का घर सो अपना घर है। आराम से सब पहुँच गये हैं। दिल का आराम स्थूल आराम भी दिला देता है। दिल का आराम नहीं तो आराम के साधन होते भी बेआराम होते। दिल का आराम है अर्थात् दिल में सदा राम साथ में है, इसलिए कोई भी परिस्थिति में आराम अनुभव करते हो। आराम है ना, कि आनाजाना बेआराम लगता है? फिर भी मीठे ड्रामा की भावी समझो। मेला तो मना रहे हो ना। बाप से मिलना, परिवार से मिलना - यह मेला मनाने की भी मीठी भावी है। अच्छा।
सर्वशक्तिशाली श्रेष्ठ आत्माओं को, हर शक्ति को समय पर कार्य में लाने वाले सर्व तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को, सदा स्व-परिवर्तन द्वारा सेवा में दिलपसन्द सफलता पाने वाले दिलखुश बच्चों को, सदा दिलाराम बाप के आगे सच्ची दिल से स्पष्ट रहने वाले सफलता-स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को दिलाराम बापदादा का दिल से यादप्यार और नमस्ते।
विदाई के समय
मुख्य भाई-बहिनों के साथ - बापदादा सभी बच्चों को समान बनाने की शुभ भावना से उड़ाने चाहते हैं। निमित्त बने हुए सेवाधारी बाप-समान बनने ही हैं, कैसे भी बाप को बनाना ही है क्योंकि ऐसे-वैसे को तो साथ ले ही नहीं जायेंगे। बाप की भी तो शान है ना। बाप सम्पन्न हो और साथी लंगड़ा या लूला हो तो सजेगा नहीं। लूले-लंगड़े बाराती होंगे, साथी नहीं। इसलिए शिव की बारात सदा लूली-लंगड़ी दिखाई गई है क्योंकि कुछ कमज़ोर आत्मायें धर्मराजपुरी में पास होने लायक बनेंगी।
सर्व के सहयोग से सुखमय संसार कार्यक्रम के बारे में - यह तो विषय ऐसी है जो स्वयं सभी सहयोग देने की आफर करेंगे। सहयोग से फिर सम्बन्ध में भी आयेंगे। इसलिए आपे ही आफर होगी। सिर्फ शुभ-भावना, शुभ-कामना-सम्पन्न सेवा में सेवाधारी आगे बढ़ें। शुभ भावना का फल प्राप्त नहीं हो - यह हो ही नहीं सकता। सेवाधारियों के शुभ भावना, शुभ कामना की धरनी सहज फल देने के निमित्त बनेगी। फल तैयार है, सिर्फ धरनी तैयार होने की थोड़ी-सी देरी है। फल तो फटाफट निकलेंगे लेकिन उसके लिए योग्य धरनी चाहिए। अभी वह धरनी तैयार हो रही है।
वैसे सेवा तो सभी की करनी आवश्यक है लेकिन फिर भी जो विशेष सत्तायें हैं, उनमें से समीप नहीं आये हैं। चाहे राज्य सत्ता वालों की सेवा हुई है या धर्म सत्ता वालों की हुई है, लेकिन सहयोगी बनकर के सामने आयें, समय पर सहयोगी बनें - उसकी आवश्यकता है। उसके लिए तो शक्तिशाली बाण लगाना पड़ेगा। देखा जाता है कि शक्तिशाली बाण वही होता है जिसमें सर्व आत्माओं के सहयोग की भावना हो, खुशी की भावना हो, सद्भावना हो। इससे हर कार्य सहज सफल होता है। अभी जो सेवा करते हो, वह अलग-अलग करते हो। लेकिन जैसे पहले जमाने में कोई कार्य करने के लिए जाते थे तो सारे परिवार की आशीर्वाद लेकर के जाते थे। वह आशीर्वाद ही सहज बना देती है। तो वर्तमान सेवा में यह एडीशन (अभिवृद्धि) चाहिए। तो कोई भी कार्य शुरू करने के पहले सभी की शुभ भावनायें, शुभ कामनायें लो, सर्व के सन्तुष्टता का बल भरो, तब शक्तिशाली फल निकलेगा।
अभी इतनी मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है। सब खोखले हुए पड़े हैं। मेहनत करने की जरूरत नहीं। फूँक दो और उड़कर यहाँ आ जाएँ - ऐसे खोखले हैं। और आजकल तो सब समझ रहे हैं कि और कोई पावर चाहिए जो कन्ट्रोल कर सके - चाहे राज्य को, चाहे धर्म को। अन्दर से ढूँढ़ रहे हैं। सिर्फ ब्राह्मण आत्माओं की सेवा की विधि में अन्तर चाहिए, वही मन्त्र बन जायेगा। अभी तो मन्त्र चलाओ और सिद्धि हो। 50 वर्ष मेहनत की। यह सब भी होना ही था, अनुभवी बन गये। अभी हर कार्य में यही लक्ष्य रखो कि ‘सर्व के सहयोग से सफलता' - ब्राह्मणों के लिए यह टॉपिक है। बाकी दुनिया वालों के लिए टॉपिक है - ‘सर्व के सहयोग से सुखमय संसार'। अच्छा।
अब तो आप सबके सिद्धि का प्रत्यक्ष रूप दिखाई देगा। कोई बिगड़ा हुआ कार्य भी आपकी दृष्टि से, आपके सहयोग से सहज हल होगा जिसके कारण भक्ति में धन्य-धन्य करके पुकारेंगे। यह सब सिद्धियाँ भी आपके सामने प्रत्यक्ष रूप में आयेंगी। कोई सिद्धि के रीति से आप लोग नहीं कहेंगे कि ‘हाँ, यह हो जायेगा', लेकिन आपका डायरेक्शन स्वत: सिद्धि प्राप्त कराता रहेगा। तब तो प्रजा जल्दी-जल्दी बनेगी, सब तरफ से निकल कर आपकी तरफ आयेंगे। यह सिद्धि का पार्ट अभी चलेगा। लेकिन पहले इतने शक्तिशाली बनो जो सिद्धि को स्वीकार न करो, तब यह प्रत्यक्षता होगी। नहीं तो, सिद्धि देने वाले ही सिद्धि में फँस जाएँ तो फिर क्या करेंगे? तो यह सब बातें यहाँ से ही शुरू होनी हैं। बाप का जो गायन है कि वह सर्जन भी है, इंजीनियर भी है, वकील भी है, जज भी है - इसका प्रैक्टिकल सब अनुभव करेंगे, तब सब तरफ से बुद्धि हटकर एक तरफ जायेगी। अभी तो आपके पीछे भीड़ लगने वाली है। बापदादा तो यह दृश्य देखते हैं और कभी-कभी अब के दृश्य देखते हैं - बहुत फर्क लगता है। आप हो कौन, वह बाप जानता है! बहुत-बहुत वण्डरफुल पार्ट होने हैं, जो ख्याल- ख्वाब में भी नहीं हैं। सिर्फ थोड़ा रूका हुआ है, बस। जैसे पर्दा कभी-कभी थोड़ा अटक जाता है ना। झण्डा भी लहराते हो तो कभी अटक जाता है। ऐसे अभी थोड़ा-थोड़ा अटक रहा है। आप जो है, जैसे हो - बहुत महान हो। जब आपकी विशेषता प्रत्यक्ष होगी तब तो इष्ट बनेंगे। आखिर तो भक्त माला भी प्रत्यक्ष होगी ना। लेकिन पहले ठाकुर सजकर तैयार हों तब तो भक्त आयें ना। अच्छा।
पार्टियों से मुलाकात
आप सभी श्रेष्ठ आत्मायें सबकी प्यास बुझाने वाले हो ना? वह है स्थूल जल और आपके पास है - ‘ज्ञान अमृत'। जल अल्पकाल की प्यास बुझाए तृप्त आत्मा बना देता है। तो सर्व आत्माओं को अमृत द्वारा तृप्त करने के निमित्त बने हुए हो ना। यह उमंग सदा रहता है? क्योंकि, प्यास बुझाना - यह महान पुण्य है। प्यासे की प्यास बुझाने वाले को पुण्य आत्मा कहते हैं। आप भी महान पुण्य आत्मा बन सभी की प्यास बुझाने वाले हो। जैसे प्यास से मनुष्य तड़फते हैं, अगर पानी न मिले तो प्यास से तड़फेंगे ना। ऐसे, ज्ञान-अमृत न मिलने से आत्मायें दु:ख-अशान्ति में तड़फ रही हैं। तो उनको ज्ञान अमृत देकर प्यास बुझाने वाली पुण्य आत्मायें हो। तो पुण्य का खाता अनेक जन्मों के लिए जमा कर रहे हो ना? एक जन्म में ही अनेक जन्मों का खाता, अनेक जन्मों के लिए जमा कर रहे हो ना? एक जन्म में ही अनेक जन्मों का खाता जमा होता है। तो आपने इतना जमा कर लिया है ना? इतने मालामाल बन गये जो औरों को भी बाँट सकते हो! अपने लिए भी जमा किया और दूसरों को भी देने वाले दाता बने। तो सदा यह चेक करो कि सारे दिन में पुण्यात्मा बने, पुण्य का कार्य किया या सिर्फ अपने लिए ही खाया-पिया मौज किया? जमा करने वाले को समझदार कहा जाता है, जो कमाये और खाये उसको समझदार नहीं कहेंगे। जैसे भोजन खाने के लिए फुर्सत निकालते हो क्योंकि आवश्यक है, ऐसे यह पुण्य का कार्य करना भी आवश्यक है। तो सदा की पुण्य आत्मा हो, कभी-कभी की नहीं। चांस मिले तो करें, नहीं। चांस लेना है। समय मिलेगा नहीं, समय निकालना है। तब जमा कर सकेंगे। इस समय जितना भी भाग्य की लकीर खींचने चाहो, उतना खींच सकते हो क्योंकि बाप भाग्य-विधाता और वरदाता है। श्रेष्ठ नॉलेज की कलम बाप ने अपने बच्चों को दे दी है। इस कलम से जितनी लम्बी लकीर खींचनी चाहो, खींच सकते हो। अच्छा।