10-11-87   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


शुभचिन्तक-मणि बन विश्व को चिन्ताओं से मुक्त करो

अपने रूहानी पर्सनैलिटी सम्पन्न शुभचिन्तक-मणियों को सेवाओं के प्रोग्राम की सफलता का फाउण्डेशन बताते हुए रत्नागर बापदादा बोले

आज रत्नागर बाप अपने चारों ओर के विशेष शुभ-चिन्तक मणियों को देख रहे हैं। रत्नागर बाप की मणियाँ विश्व में अपनी शुभ-चिंतक किरणों से प्रकाश कर रही हैं। क्योंकि आज की इस आर्टीफिशियल चमक वाले विश्व में सर्व आत्माएं चिन्तामणी हैं। ऐसे अल्पकाल की चमकने वाली चिन्तामणियों को आप शुभ-चिंतक मणियाँ अपने शुभ-चिंतन की शक्ति द्वारा परिवर्तन कर रही हो। जैसे सूर्य की किरणें दूर-दूर तक अंधकार को मिटाती हैं, ऐसे आप शुभां चतक मणियों की शुभ संकल्प रूपी चमक कहो, किरणें कहो - विश्व के चारों ओर फैल रही हैं। आजकल कई आत्माएं समझती हैं कि कोई स्प्रिचुअल लाइट गुप्त रूप में अपना कार्य कर रही है। लेकिन ये लाइट कहाँ से ये कार्य कर रही है, वो जान नहीं सकते। कोई है - यहाँ तक टचिंग होनी शुरू हो गई है। आखिर ढूँढ़ते-ढूँढ़ते स्थान पर पहुँच ही जायेंगे। तो यह टचिंग आप शुभ-चिंतक मणियों के श्रेष्ठ संकल्प की चमक है। बापदादा हरेक बच्चे के मस्तक द्वारा मणि की चमक को देखते हैं। क्योंकि नम्बरवार चमकने वाले हैं। हैं सभी शुभ-चिंतक मणियाँ लेकिन चमक नम्बरवार है।

शुभ-चिंतक बनना - यही सहज रूप की मंसा सेवा है जो चलते-फिरते हर ब्राह्मण आत्मा वा अन्जान आत्माओं के प्रति कर सकते हो। आप सबके शुभां चतक बनने के वायब्रेशन वायुमण्डल को वा चिन्तामणि आत्मा की वृत्ति को बहुत सहज परिवर्तन कर देंगे। आज के मनुष्य आत्माओं के जीवन में चारों ओर से चाहे व्यक्तियों द्वारा, चाहे वैभव द्वारा - व्यक्तियों में स्वार्थ भाव होने के कारण, वैभवों में अल्पकाल की प्राप्ति होने के कारण - थोड़े समय के लिये श्रेष्ठ प्राप्ति की अनुभूति होती है लेकिन अल्पकाल की खुशी थोड़े समय के बाद चिन्ता में बदल जाती है। अर्थात् वैभव वा व्यक्ति चिन्ता मिटाने वाले नहीं - चिन्ता उत्पन्न कराने के निमित्त बन जाते हैं। ऐसे कोई न कोई चिन्ता में परेशान आत्माओं को शुभ-चिन्तक आत्माएं बहुत थोड़ी दिखाई देती हैं। शुभ-चिन्तक आत्माओं के थोड़े समय का सम्पर्क भी अनेक चिन्ताओं को मिटाने का आधार बन जाता है। तो आज विश्व को शुभ-चिन्तक आत्माओं की आवश्यकता है, इसलिए आप शुभ-चिन्तक मणियाँ वा आत्माएं विश्व को अति प्रिय हैं। जब सम्पर्क में आ जाते हैं तो अनुभव करते हैं कि ऐसे शुभ-चिन्तक दुनिया में कोई दिखाई नहीं देते।

शुभ-चिन्तक सदा रहें - इसका विशेष आधार है - शुभ-चिन्तन' जिसका सदा शुभ-चिन्तन रहता, अवश्य वह शुभ-चिन्तक है। अगर कभी-कभी व्यर्थ चिन्तन व पर-चिन्तन होता है तो सदा शुभ-चिन्तक भी नहीं रह सकते। शुभि चन्तक आत्माएं औरो के भी व्यर्थ चिन्तन, पर-चिन्तन को समाप्त करने वाले हैं। तो हर एक श्रेष्ठ सेवाधारी अर्थात् सदा शुभ-चिन्तक मणि का शुभ-चिन्तन का शक्तिशाली खज़ाना सदा भरपूर होगा। भरपूरता के कारण ही औरों के प्रति शुभ-चिन्तक बन सकते हैं। शुभ-चिन्तक अर्थात् सर्व ज्ञान-रत्नों से भरपूर। और ऐसा ज्ञान-सम्पन्न दाता बन औरों के प्रति सदा शुभ-चिन्तक बन सकता है। तो चेक करो कि सारे दिन में ज्यादा समय सम्पन्नता के नशे में रहता है, इसलिये शुभ-चिन्तक स्वरूप द्वारा दूसरों प्रति देता जाता और भरता जाता। पर-चिन्तन और व्यर्थ चिन्तन वाला सदा खाली होने के कारण अपने को कमज़ोर अनुभव करेगा, इसलिए शुभ-चिन्तक बन औरों को देने के पात्र नहीं बन सकता। वर्तमान समय सर्व की चिन्ता मिटाने के निमित्त बनने वाली शुभ-चिन्तक मणियों की आवश्यकता है जो चिन्ता के बजाए शुभ-चिन्तन की विधि के अनुभवी बना सकें। जहाँ शुभ-चिन्तन होगा वहाँ चिन्ता स्वत: समाप्त हो जाएगी। तो सदा शुभ-चिन्तक बन गुप्त सेवा कर रहे हो ना?

ये जो बेहद की विश्व-सेवा प्लान बनाया है, इस प्लान को सहज सफल बनाने का आधार भी शुभ-चिन्तक स्थिति' है। वैराइटी प्रकार की आत्माएं सम्बन्ध-सम्पर्क में आयेंगी। ऐसी आत्माओं के प्रति शुभ-चिन्तक बनना अर्थात् उन आत्माओं को हिम्मत के पंख देना है। क्योंकि सर्व आत्माएं चिन्ता की चिता पर रहने के कारण अपने हिम्मत, उमंग, उत्साह के पंख कमज़ोर कर चुकी हैं। आप शुभ-चिन्तक आत्माओं की शुभ-भावना उन्हों के पंखों में शक्ति भरेगी और आप की शुभ-चिन्तक भावनाओं के आधार से उड़ने लगेंगे अर्थात् सहयोगी बनेंगे। नहीं तो, दिलशिकस्त हो गये हैं कि बैटर वर्ल्ड (सुखमय संसार) बनाना हम आत्माओं की क्या शक्ति है? जो स्वयं को ही नहीं बना सकते तो विश्व को क्या बनायेंगे? विश्व को बदलना बहुत मुश्किल समझते हैं। क्योंकि वर्तमान सर्व सत्ताओं की रिजल्ट देख चुके हैं, इसलिये मुश्किल समझते हैं। ऐसी दिलशिकस्त आत्माओं को, चिन्ता की चिता पर बैठी हुई आत्माओं को आपकी शुभ-चिन्तक- शक्ति दिलशिकस्त से दिलखुश कर देगी। जैसे, डूबे हुए मनुष्य को तिनके का सहारा भी दिल खुश कर देता है, हिम्मत में ले आता है। तो आपकी शुभि चन्तक स्थिति उन्हों को सहारा अनुभव होगी, जलती हुई आत्माओं को शीतल जल की अनुभूति होगी।

सर्व का सहयोग प्राप्त करने का आधार भी शुभ-चिन्तक स्थिति है। जो सर्व के प्रति शुभ-चिन्तक हैं, उनको सर्व से सहयोग स्वत: ही प्राप्त होता ही है। शुभि चन्तक भावना औरों के मन में सहयोग की भावना सहज और स्वत: उत्पन्न करेगी। शुभ चिन्तक आत्माओं के प्रति हरेक को दिल का स्नेह उत्पन्न होता है और स्नेह ही सहयोगी बना देता है। जहाँ स्नेह होता है, वहाँ समय, सम्पत्ति, सहयोग सदा न्यौछावर करने के लिये तैयार हो जाते हैं। तो शुभ चिंतक स्नेही बनायेगा और स्नेह सब प्रकार के सहयोग में न्यौछावर बनायेगा। इसलिये, सदा शुभ-चिन्तन से सम्पन्न रहो, शुभ-चिन्तक बन सर्व को स्नेही, सहयोगी बनाओ। शुभ-चिन्तक आत्मा सर्व की सहज सर्टिफकेट ले सकती है। शुभ-चिन्तक ही सदा प्रसन्नता की पर्सनैलिटी में रह सकता है, विश्व के आगे विशेष पर्सनैलिटी वाले बन सकते हैं। आजकल पर्सनैलिटी वाली आत्मायें सिर्फ नामीग्रामी बनती हैं अर्थात् नाम बुलन्द होता है लेकिन आप रूहानी पर्सनैलिटी वाले सिर्फ नामीग्रामी अर्थात् गायन-योग्य नहीं लेकिन गायन-योग्य के साथ पूज्नीय योग्य भी बनते हो। कितने भी बड़े धर्म-क्षेत्र में, राज्य-क्षेत्र में, साइंस के क्षेत्र में पर्सनैलिटी वाले प्रसिद्ध हुए हैं लेकिन आप रूहानी पर्सनैलिटी समान 63 जन्म पूजनीय नहीं बने हैं। इसलिये यह शुभ-चिन्तक बनने की विशेषता है। सर्व को जो प्राप्ति होती है - खुशी की, सहारे की, हिम्मत के पंखों की, उमंग-उत्साह की - यह प्राप्ति की दुआयें, आशीर्वादें किसको अधिकारी बच्चे बना देती हैं और कोई भक्त आत्मा बन जाते हैं। इसलिये अनेक जन्म के पूज्य बन जाते हैं। शुभ-चिन्तक अर्थात् बहुतकाल की पूज्य आत्माएं।

इसलिये, यह विशाल कार्य आरम्भ करने के साथ-साथ जैसे और प्रोग्राम बनाते हो, उसके साथ-साथ स्व के प्रति प्रोग्राम बनाओ कि:-

*सदा के लिये हर आत्मा के प्रति, और अनेक प्रकार की भावनाएं परिवर्तन कर एक शुभ-चिन्तक भावना सदा रखेंगे।

*सर्व को स्वयं से आगे बढ़ाने, आगे रखने का श्रेष्ठ सहयोग सदा देते रहेंगे।

*बैटर वर्ल्ड अर्थात् श्रेष्ठ विश्व बनाने के लिये सर्व प्रति श्रेष्ठ कामना द्वारा सहयोगी बनेंगे।

*सदा व्यर्थ-चिन्तन, पर-चिन्तन को समाप्त कर अर्थात् बीती बातों को बिन्दी लगाये, बिन्दी अर्थात् मणि बन सदा विश्व को, सर्व को अपनी श्रेष्ठ भावना, श्रेष्ठ कामना, स्नेह की भावना, समर्थ बनाने की भावना की किरणों से रोशनी देते रहेंगें।

यह स्व का प्रोग्राम सारे प्रोग्राम के सफलता का फाउण्डेशन है। इस फाउन्डेशन को सदा मजबूत रखना। तो प्रत्यक्षता का आवाज स्वत: ही बुलन्द होगा। समझा? सभी, कार्य के निमित्त हो ना। जब विश्व को सहयोगी बनाते हैं, तो पहले तो आप निमित्त हो। छोटे, बड़े, बीमार हो या स्वस्थ हो, महारथी, घोड़ेसवार - सभी सहयोगी हैं। प्यादे तो हैं ही नहीं। तो सभी की अँगुली चाहिए। हरेक ईंट का महत्त्व है। कोई फाउण्डेशन की ईंट है, कोई ऊपर दीवार की है लेकिन एक-एक ईंट महत्त्व वाली है। आप सभी समझते हो कि हम प्रोग्राम कर रहे हैं या समझते हो प्रोग्राम वाले बनाते हैं, प्रोग्राम बनाने वालों का प्रोग्राम है? हमारा प्रोग्राम कहते हो ना। तो बापदादा बच्चों के विशाल कार्य को, प्रोग्राम को देख हर्षित हैं। देश-विदेश में विशाल कार्य का उमंग-उत्साह अच्छा है। हरेक ब्राह्मण आत्मा के अन्दर विश्व की आत्माओं के लिये रहम है, तरस है कि हमारे सर्व भाई-बहनें बाप की प्रत्यक्षता का आवाज सुनें कि बाप अपना कार्य कर रहा है। समीप आवें, सम्बन्ध में आवें, अधिकारी बनें, पूज्य देवता बनें या 33 करोड़ नाम गायन करने वाले ही बनें लेकिन आवाज जरूर सुनें। ऐसा उमंग है ना? अभी तो 9 लाख ही नहीं बनाएं हैं। तो समझा, अपना प्रोग्राम है। अपनापन ही अपने प्रोग्राम में अपना विश्व बनायेगा। अच्छा।

आज पाँच तरफ की पार्टियाँ आई हैं। त्रिवेणी कहते हैं लेकिन ये पाँच वेणी हो गई। पाँच तरफ की नदियाँ सागर में पहुँच गई हैं। तो नदी और सागर का मेला श्रेष्ठ मेला है। सभी नये-पुराने खुशी में नाच रहे हैं। जब ना-उम्मीद से उम्मीद हो जाती तो और खुशी होती है। पुरानों को भी अचानक चान्स मिला है तो और ज्यादा खुशी होती है। सोच कर बैठे थे - पता नहीं कब मिलेंगे? अभी मिलेंगे - यह तो सोचा भी नहीं था। कब' से अब' हो जाता है तो खुशी का अनुभव और न्यारा होता है। अच्छा। आज विदेश वालों को भी विशेष यादप्यार दे रहे हैं। विशेष सेवाधारी (जयन्ति बहन) आई है ना। विदेश-सेवा अर्थ पहले निमित्त बनी ना। वृक्ष को देख बीज याद आता है। बीजरूप परिवार यह निमित्त बना विदेश सेवा के लिए। तो पहले निमित्त परिवार को याद दे रहे हैं।

विदेश के सर्व निमित्त बने सेवाधारी बच्चे सदा बाप को प्रत्यक्ष करने के प्रयत्न में उमंग-उत्साह से दिन-रात लगे हुए हैं। उन्हों को बार-बार यही आवाज कानों में गूँजता है कि विदेश के बुलन्द आवाज से भारत में बाप को प्रत्यक्ष करना है। यह आवाज सदा सेवा के लिये कदम आगे बढ़ाता रहता है। विशेष सेवा के उमंग-उत्साह का कारण है - बाप से दिल से प्यार, स्नेह है। हर कदम में, हर घड़ी मुख में बाबा-बाबा' शब्द रहता है। जब भी कोई कार्ड अथवा गिफ्ट भेजेंगे तो उसमें दिल (हार्ट) का चित्र जरूर बनाते हैं। इसका कारण है कि दिल में सदा दिलाराम है। दिल दी है और दिल ली है। देने और लेने में होशियार हैं। इसलिये दिल का सौदा करने वाले, दिल से याद करने वाले अपनी निशानी दिल' ही भेजते हैं और यही दिल की याद वा दिल का स्नेह दूर होते भी मैजारिटी को समीप का अनुभव कराता है। सबसे विशेष विशेषता बापदादा यही देखते कि ब्रह्मा बाप से अति स्नेह है। बाप और दादा के गुह्य राज़ को बहुत सहज अनुभव में लाते हैं। ब्रह्मा बाबा की साकार पालना का पार्ट न होते भी अव्यक्त पालना का अनुभव अच्छा कर रहे हैं। बाप और दादा दोनों का सम्बन्ध अनुभव करना - इस विशेषता के कारण अपनी सफलता में बहुत सहज बढ़ते जा रहे हैं। तो हरेक देश वाले अपना-अपना नाम पहले समझें। हरेक बच्चा अपना नाम समझते हुए बापदादा का यादप्यार स्वीकार करना। समझा?

प्लैन तो बना ही रहे हैं। देश, विदेश की रीति में थोड़ा-बहुत अन्तर तो होता है लेकिन प्रीत के कारण रीति का अन्तर भी एक ही लगता है। विदेश का प्लैन वा भारत का प्लैन, लेकिन प्लैन तो एक ही है। सिर्फ तरीका थोड़ा-बहुत कहाँ परिवर्तन करना भी पड़ता है। देश और विदेश का सहयोग इस विशाल कार्य को सदा ही सफलता को प्राप्त कराता ही रहेगा। सफलता तो सदा बच्चों के साथ है ही। देश का उमंग-उत्साह और विदेश का उमंग-उत्साह - दोनों का मिलकर कार्य को आगे बढ़ा रहा है और सदा ही आगे बढ़ता रहेगा। अच्छा।

भारत के चारों ओर के सदा स्नेही, सहयोगी बच्चों के स्नेह, सहयोग का शुभ संकल्प, शुभ आवाज बापदादा के पास सदा पहुँचता रहता है। देश, विदेश एक दो से आगे है। हरेक स्थान की विशेषता अपनी-अपनी है। भारत बाप की अवतरण भूमि है और भारत प्रत्यक्षता का आवाज बुलन्द करने के निमित्त भूमि है। आदि और अन्त भारत में ही पार्ट हैं। विदेश का सहयोग भारत में प्रत्यक्षता करायेगा और भारत की प्रत्यक्षता का आवाज विदेश तक पहुँचेगा। इसलिए, भारत के बच्चों की विशेषता सदा श्रेष्ठ है। भारत वाले स्थापना के आधार बने। स्थापना के आधारमूर्त भारत के बच्चे हैं, इसलिए भारतवासी बच्चों के भाग्य का सभी गायन करते हैं। याद और सेवा में सदा उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते ही रहेंगे। इसलिये भारत के हर एक बच्चे अपने-अपने नाम से बापदादा का यादप्यार स्वीकार करना। तो देश-विदेश के बेहद बाप के बेहद सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

(1) सभी राज-ऋषि हो ना? राज अर्थात् अधिकारी और ऋषि अर्थात् तपस्वी। तपस्या का बल सहज परिवर्तन कराने का आधार है। परमात्म-लगन से स्वयं को और विश्व को सदा के लिये निर्विघ्न बना सकते हैं। निर्विघ्न बनना और निर्विघ्न बनाना - यही सेवा करते हो ना। अनेक प्रकार के विघ्नों से सर्व आत्माओं को मुक्त करने वाले हो। तो जीवनमुक्ति का वरदान बाप से लेकर औरों को दिलाने वाले हो ना। निर्बन्धन अर्थात् जीवनमुक्त।

(2) हिम्मते बच्चे मददे बाप। बच्चों की हिम्मत पर सदा बाप की मदद पद्मगुणा प्राप्त होती है। बोझ तो बाप के ऊपर है। लेकिन ट्रस्टी बन सदा बाप की याद से आगे बढ़ते रहो। बाप की याद ही छत्रछाया है। पिछला हिसाब सूली है लेकिन बाप की मदद से काँटा बन जाता है। परिस्थितियाँ आनी जरूर हैं क्योंकि सब कुछ यहाँ ही चुक्तु करना है। लेकिन बाप की मदद काँटा बना देती है, बड़ी बात को छोटा बना देती है क्योंकि बड़ा बाप साथ है। सदा निश्चय से आगे बढ़ते रहो। हर कदम में ट्रस्टी। ट्रस्टी अर्थात् सब कुछ तेरा, मेरा-पन समाप्त। गृहस्थी अर्थात् मेरा। तेरा होगा तो बड़ी बात, छोटी हो जायेगी और मेरा होगा तो छोटी बात, बड़ी हो जायेगी। तेरा-पन हल्का बनाता है और मेरा-पन भारी बनाता है। तो जब भी भारी अनुभव करो तो चेक करो कि कहाँ मेरा-पन तो नहीं? मेरे को तेरे में बदली कर दो तो उसी घड़ी हल्के हो जायेंगे, सारा बोझ एक सेकण्ड में समाप्त हो जायेगा।

(3) सदा अपने को बाप की छत्रछाया में रहने वाली विशेष आत्माएं अनुभव करते हो? जहाँ बाप की छत्रछाया है, वहाँ सदा माया से सेफ रहेंगे। छत्रछाया के अन्दर माया आ नहीं सकती। मेहनत से स्वत: ही दूर हो जायेंगे। सदा मौज में रहेंगे। क्योंकि जब मेहनत होती है, तो मेहनत मौज अनुभव नहीं कराती। जैसे, बच्चों की पढ़ाई जब होती है तो पढ़ाई में मेहनत होती है ना। जब इम्तिहान के दिन होते हैं तो बहुत मेहनत करते हैं, मौज से खेलते नहीं हैं। और जब मेहनत खत्म हो जाती है, इम्तिहान खत्म हो जाते हैं तो मौज करते हैं। तो जहाँ मेहनत है, वहाँ मौज नहीं। जहाँ मौज है, वहाँ मेहनत नहीं। छत्रछाया में रहने वाले अर्थात् सदा मौज में रहने वाले। क्योंकि यहाँ पढ़ाई ऊंची पढ़ते हो लेकिन ऊंची पढ़ाई होते हुए भी निश्चय है कि हम विजयी हैं ही, पास हुए पड़े हैं। इसलिये मौज में रहते हैं। कल्प-कल्प की पढ़ाई है, नयी बात नहीं है। तो सदा मौज में रहो और दूसरों को भी मौज में रहने का सन्देश देते रहो, सेवा करते रहो। क्योंकि सेवा का ही फल इस समय भी और भविष्य में भी खाते रहेंगे। सेवा करेंगे तब तो फल मिलेगा।

(4) अपने को सदा डबल लाइट अनुभव करते हो? डबल अर्थात् फरिश्ता और फरिश्ते की निशानी है - उनका कोई भी देह और देहधारियों से रिश्ता नहीं अर्थात् मन का लगाव नहीं। तो सदा फरिश्ते होकर हर कार्य करते हो? क्योंकि फरिश्तों का पाँव सदा ही ऊँचा रहता है, धरनी पर नहीं रहता। धरनी से ऊँचा अर्थात् देह-भान की स्मृति से ऊँचा। ऐसे फरिश्ते बने हो? देह और देह की दुनिया दोनों का अनुभव अच्छी तरह से कर लिया है ना? तो जब अनुभव कर लिया तो अनुभव करने के बाद अभी फिर से देह व देह की दुनिया में बुद्धि जा सकती है? देह और देह की दुनिया की स्मृति से ऊँचा रहने वाले फरिश्ते बनो। फरिश्ते अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त। तो सब बन्धन समाप्त हुए या अभी समाप्त करेंगे? दुनिया वालों को तो कहते हो कि अब नहीं तो कब नहीं।' यह पहले अपने को कहते या दूसरों को ही? दूसरों को कहना अर्थात् पहले अपने को कहना। जब किसी से बात करते हो तो पहले कौन सुनता है? पहले अपने कान सुनते हैं ना। तो किसी को भी कहना अर्थात् पहले अपने आप को कहना। तो सदा हर कार्य में अब' करने वाले आगे बढ़ेंगे। अगर कब' पर छोड़ेंगे तो नम्बर आगे नहीं ले सकेंगे, पीछे नम्बर में आयेंगे।

(5) सभी अपने को सदा स्वदर्शन-चक्रधारी समझते हो? स्व का दर्शन हो गया है ना? आत्मा का इस सृष्टि-चक्र में क्या-क्या पार्ट है, उनको जानना अर्थात् स्वदर्शन-चक्रधारी बनना। स्वदर्शन-चक्रधारी आत्मा सदा माया से मुक्त है। स्वदर्शन-चक्रधारी ही बाप के प्रिय हैं क्योंकि ज्ञानी तू आत्मा बन गये ना। स्व के चक्र को जानना अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा बनना। जो स्वदर्शन चक्रधारी हैं, उनके आगे माया ठहर नहीं सकती। वह सहज ही माया को समाप्त कर देते हैं। तो सभी स्वदर्शन-चक्रधारी हो या कभी-कभी चक्र गिर जाता है? ज्ञान को बुद्धि में धारण करना अर्थात् स्वदर्शन-चक्र चलाना। स्वदर्शन चक्र ही भविष्य में चक्रवर्ती राजा बनायेगा'। तो यह वरदान सदा याद रखना।