24-09-92 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सत्य और असत्य का विशेष अन्तर
स्नेह में समायी हुई सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को यथार्थ सत्य की पहचान देते हुए अव्यक्त बापदादा बोले -
आज दिलाराम बाप अपने सर्व बच्चों के दिल की आश पूर्ण करने के लिए मिलन मनाने आये हैं। अव्यक्त रूप में तो सदा सर्व बच्चे मिलन मनाते रहते हैं। फिर भी व्यक्त शरीर द्वारा अव्यक्त मिलन मनाने की शुभ आश रखते हैं। इसलिए बाप को भी अव्यक्त से व्यक्त में आना पड़ता है। बापदादा इस समय चारों ओर देश-विदेश के बच्चों को देख रहे हैं-मन से मधुबन में हैं। आप साकार में हो और अनेक बच्चे अव्यक्त रूप से मिलन मना रहे हैं। बापदादा भी सर्व बच्चों के स्नेह का रिटर्न दे रहे हैं। जहाँ भी हैं लेकिन याद द्वारा बाप के समीप दिल में हैं। सबके स्नेह के साज़ बापदादा सुन रहे हैं। बाप जानते हैं कि बच्चों के लिए सिवाए बाप के और कोई याद करने वाला है नहीं और बाप को भी सिवाए बच्चों के और कोई है नहीं। सदा इसी स्मृति में रहते हैं कि मैं बाबा का और बाबा मेरा। यही स्मृति सहज भी है और समर्थ बनाने वाली है। ऐसा स्मृतिस्वरूप स्नेही बच्चा साकार में तो क्या लेकिन स्वप्न में भी कभी असमर्थ हो नहीं सकता। असमर्थ होना अर्थात् ‘मेरा बाबा’ के बजाए कोई और ‘मेरापन’ आता है। एक मेरा बाबा-यह है मिलन मनाना। अगर ‘एक’ के बजाए ‘दो’ मेरा हुआ तो क्या हो जाता? वह है मिलना और वह है झमेला।
कई बच्चे समझते हैं-बाबा तो मेरा है ही लेकिन और भी एक-दो को मेरा कहना ही पड़ता है। कहते हैं-और कोई नहीं, सिर्फ एक आधार चाहिए। लेकिन वायदा क्या है-एक बाप दूसरा न कोई या एक बाप एक और? भोले बन जाते हो। उस एक में अनेक समाये हुए होते हैं, इसलिए झमेला हो जाता है। इस पुरानी दुनिया में भी ऐसे खिलौने मिलते हैं जो बाहर से एक दिखाई देता है लेकिन एक में एक होता है। एक खोलते जाओ तो दूसरा निकलेगा, दूसरा खोलेंगे तो तीसरा निकलेगा। यह भी ऐसा ही खिलौना है। दिखाई एक देता लेकिन अन्दर समाये हुए अनेक हैं। और जब झमेले में चले गये तो मिलन मनाना कैसे हो सकता? झमेले में ही लगे रहेंगे या मिलन मनायेंगे? सिर्फ वो नहीं सोचो। सिवाए एक बाप के संकल्प में भी अगर कोई आत्मा को वा प्रकृति के साधन को मेरा सहारा स्वीकार किया तो यह आटोमेटिक ईश्वरीय मशीनरी बहुत फास्ट गति से कार्य करती है। जिस सेकेण्ड अन्य को सहारा बनाया, उसी सेकण्ड मन-बुद्धि का बाप से किनारा हो जाता है। सत्य बाप से किनारा होने के कारण बुद्धि असत्य को सत्य, रांग को राइट मानने लगती है, उल्टी जजमेंट देने लगती है। कितना भी कोई समझायेगा कि यह राइट नहीं है, लेकिन वह यथार्थ को, सत्य को भी असत्य की शक्ति से समझाने वाले को रांग सिद्ध करेगा। यह सदा याद रखो कि आजकल ड्रामा अनुसार असत्य का राज्य है और असत्य के राज्य-अधिकारी प्रेजीडेंट रावण है। उसके कितने शीश हैं अर्थात् असत्य की शक्ति कितनी महान है! उसके मन्त्री-महामन्त्री भी बड़े महान हैं। उसके जज और वकील भी बड़े होशियार हैं। इसलिए उल्टी जजमेन्ट की पॉइंट्स बहुत वैराइटी और बाहर से मधुर रूप की देते हैं। इसलिए सत्य को असत्य सिद्ध करने में बहुत होशियार होते हैं।
लेकिन असत्य और सत्य में विशेष अन्तर क्या है? असत्य की जीत अल्पकाल की होती है क्योंकि असत्य का राज्य ही अल्प-काल का है। सत्यता की हार अल्पकाल की और जीत सदाकाल की है। असत्य के अल्पकाल के विजयी उस समय खुश होते हैं। जितना थोड़ा समय खुशी मनाते वा अपने को राइट सिद्ध करते, तो समय आने पर असत्य के अल्पकाल का समय समाप्त होने पर जितनी असत्यता के वश मौज मनाई, उतना ही सौ गुणा सत्यता की विजय प्रत्यक्ष होने पर पश्चाताप करना ही पड़ता है। क्योंकि बाप से किनारा, स्थूल में किनारा नहीं होता, स्थूल में तो स्वयं को ज्ञानी समझते हैं लेकिन मन और बुद्धि से किनारा होता। और बाप से किनारा होना अर्थात् सदाकाल की सर्व प्राप्तियों के अधिकार से सम्पन्न के बजाए अधूरा अधिकार प्राप्त होना। कई बच्चे समझते हैं कि असत्य के बल से असत्य के राज्य में विजय की खुशी वा मौज इस समय तो मना लें, भविष्य किसने देखा। कौन देखेगा-हम भी भूल जायेंगे, सब भूल जायेंगे। लेकिन यह असत्य की जजमेंट है। भविष्य वर्तमान की परछाई है। बिना वर्तमान के भविष्य नहीं बनता। असत्य के वशीभूत आत्मा वर्तमान समय भी अल्पकाल के सुख के नाम, मान, शान के सुखों के झूले में झूल सकती है और झूलती भी है, लेकिन अतीन्द्रिय अविनाशी सुख के झूले में नहीं झूल सकती। अल्पकाल के शान, मान और नाम की मौज मना सकते हैं लेकिन सर्व आत्माओं के दिल के स्नेह का, दिल की दुआओं का मान नहीं प्राप्त कर सकते। दिखावा मात्र मान पा सकते हैं लेकिन दिल से मान नहीं पा सकते। अल्पकाल का शान मिलता है लेकिन बाप से सदा दिलतख्तनशीन का शान अनुभव नहीं कर सकते। असत्य के साथियों द्वारा नाम प्राप्त कर सकते हैं लेकिन बापदादा के दिल पर नाम नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि बापदादा से किनारा है। भविष्य की बात तो छोड़ो, वह तो अन्डरस्टुड है। लेकिन वर्तमान सत्यता और असत्यता की प्राप्ति में कितना अन्तर है? एक दूसरा मेरा बनाया अर्थात् असत्य का सहारा लिया। कितना झमेला हुआ! कहने में तो कहेंगे - और कुछ नहीं, सिर्फ कभी-कभी थोड़ा सहारा चाहिए। लेकिन वायदा तोड़ना अर्थात् झमेले में पड़ना। क्या ऐसा वायदा किया है - एक मेरा बाबा और कभी-कभी दूसरा? दूसरा भी एलाउ है? यह लिखा था क्या? चाहे अल्पकाल के नाम-मान-शान का सहारा लो, चाहे व्यक्ति का लो, चाहे वैभव का लो, जब दूसरा न कोई तो फिर दूसरा कहाँ से आया? यह असत्य के राज्य के झमेले में फंसाने की चतुराइयां हैं। जैसे बाप कहते हैं ना - मैं जो हूँ, जैसा हूँ, वैसा मुझे नम्बरवार जानते हैं। ऐसे असत्य के राज्य-अधिकारी ‘रावण’ को भी जो है, जैसा है, वैसे सदा नहीं जानते हो। कभी भूल जाते हो, कभी जानते हो। राज्य-अधिकारी है तो यह ताकत कम होगी! चाहे झूठा हो, चाहे सच्चा हो लेकिन राज्य तो है ना। इसलिए अपने को चेक करो, दूसरे को नहीं।
आजकल दूसरों को चेक करने में सब होशियार हो गये हैं। बापदादा कहते हैं-अपना चेकर बनो और दूसरे का मेकर बनो। लेकिन करते क्या हो? दूसरे का चेकर बन जाते हो और बातें बनाने में मेकर बन जाते हो। बापदादा रोज़ की हर एक बच्चे की कौन सी कहानियाँ सुनते हैं? बहुत बड़ा किताब है कहानियों का। तो अपने को चेक करो। दूसरे को चेक करने लगते हो तो लम्बी कथायें बन जाती हैं और अपने को चेक करेंगे तो सब कथायें समाप्त हो एक सत्य जीवन की कथा प्रैक्टिकल में चलेगी। सभी कहते हैं-बाबा, आप से बहुत प्यार है! सिर्फ कहते हो वा करते भी हो, क्या कहेंगे? कभी कहते हो, कभी करते हो। बाप के प्यार का प्रत्यक्ष सबूत बाप ने दे दिया। जो हो, जैसे हो-मेरे हो। लेकिन अभी बच्चों को सबूत देना है। क्या सबूत देना है? बाप कहते हैं-जो हो, जैसे हो-मेरे हो। और आप क्या कहेंगे? जो है वह सब आप हो। ऐसे नहीं-थोड़ा-थोड़ा और भी है। बाप से प्यार है लेकिन कभी-कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में आ जाते हैं। अच्छा!
चारों ओर के यथार्थ सत्य को परखने वाले, सच्चे बाप के सच्चे बच्चों को, सर्व स्नेह में समाए हुए श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व सदा वायदे को निभाने वाली समर्थ आत्माओं को, सर्व यथार्थ परखने वाली शक्तिशाली आत्माओं को, सर्व याद और सेवा में निर्विघ्न रहने वाले, सदा साथ और समीप रहने वाले बच्चों को याद, प्यार और नमस्ते।
दादियों से मुलाकात
जितना जो सेवा के निमित्त बनता है उतना ही दिल का हजार गुणा स्नेह सेवा के साथ अनुभव होता है। इसलिए जिम्मेवारी, जिम्मेवारी नहीं लगती, खेल लगता है। खेल तो नया ही देखना अच्छा होता है। पुराना खेल क्या देखेंगे। जब वृक्ष का विस्तार होता है तभी सार (बीज) प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। विस्तार सार को प्रत्यक्ष करता है। मजा आता है ना। विश्व के तख्तनशीन होने के पहले सेवा के तख्तनशीन बनना होता है। जो जितनी सेवा के तख्तनशीन बनता है उतना ही विश्व के तख्तनशीन बनता है। बेहद की सेवा का तख्त मिला है ना। अच्छा मेकअप किया है। अच्छा है मधुबन में रहना। ये सभी मधुबन में रहने वाले हैं। मधुबन की सीट मिली है ना। तो मधुबन है सेवा का तख्त, बेहद की सेवा का तख्त। अच्छा ग्रुप है। अच्छी सेवा चल रही है ना।
पर्यावरण अभियान प्रति सन्देश
सेवा का प्रत्यक्षफल है आत्माओं को अनुभूति कराना, सन्देश के साथ अनुभूति कराना। यही सेवा का प्रत्यक्षफल है। सन्देश देना तो कब भी (भविष्य में भी) जान सकते हैं लेकिन ‘अनुभूति’ प्रत्यक्षफल है। इसकी आवश्यकता है जो सिवाए आप लोगों के कोई करा नहीं सकता। सुनाने वाले अनेक हैं, अनुभव कराने वाले सिर्फ आप हो। अच्छा!
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात
ग्रुप नं. 1
दु:ख की लहर से मुक्त होने के लिये कर्मयोगी बनकर कर्म करो
सभी अपने को श्रीमत पर चलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? नाम ही है श्रीमत। श्री का अर्थ है श्रेष्ठ। तो श्रेष्ठ मत पर चलने वाले श्रेष्ठ हुए ना। यह रूहानी नशा, बेहद का नशा रहता है ना। या कभी-कभी हद का नशा भी आ जाता है? इसलिये सदा अपने को देखो-चलते-फिरते कोई भी कार्य करते बेहद का रूहानी नशा रहता है? चाहे कर्म मजदूरी का भी हो, साधारण कर्म करते अपने श्रेष्ठ नशे को भूलते तो नहीं हो? घर में रहने वाली, घर की सेवा करने वाली साधारण मातायें हैं-यह याद रहता है या जगत माता हूँ, जगत का कल्याण करने के निमित्त यह कार्य कर रही हूँ-यह याद रहता है? जिसे यह रूहानी नशा होगा उसकी निशानी क्या होगी? वह खुशी में रहेगा, कोई भी कर्म करेगा लेकिन कर्म के बन्धन में नहीं आयेगा, न्यारा और प्यारा होगा। कर्म के बन्धन में आना अर्थात् कर्म में फंसना और जो न्यारा-प्यारा होता है वह कर्म करते भी कर्म के बन्धन में नहीं आता, कर्मयोगी बन कर्म करता है। अगर कर्म के बन्धन में आयेंगे तो खुशी गायब हो जायेगी। क्योंकि कर्म अच्छा नहीं होगा। लेकिन कर्मयोगी बनकर कर्म करने से दु:ख की लहर से मुक्त हो जायेंगे। सदा न्यारा होने के कारण प्यारे रहेंगे। तो समझा, कैसे रहना है? कर्मबन्धन मुक्त। कर्म का बन्धन खींचे नहीं, मालिक होकर कर्म करायें। मालिक न्यारा होता है ना। मालिक होकर कर्म कराना-इसे कहा जाता है बन्धन-मुक्त। ऐसी आत्मा सदा स्वयं भी खुश रहेगी और दूसरों को भी खुशी देगी। ऐसे रहते हो? सुनते तो बहुत हो, अभी ज् सुना है वह करना है। करेंगे तो पायेंगे। अभी-अभी करना, अभी-अभी पाना।
माताओं को कभी दु:ख की लहर आती है? कभी मन से रोती हो? मन का रोना तो सबको आ सकता है। तो श्रीमत है-सदा खुश रहो। श्रीमत यह नहीं है कि कभी-कभी रो लो। बहुतकाल मन से वा आंखों से रोया, रावण ने रूलाया ना। लेकिन अभी बाप के बने हो खुशी में नाचने के लिये, रोने के लिये नहीं। रोना खत्म हो गया। दु:ख की लहर-यह भी रोना है। यह मन का रोना हो गया। सुखदाता के बच्चे सदा सुख में झूलते रहो। दु:ख की लहर आ नहीं सकती। भूल जाते हो तब आती है। इसलिये अभूल बनो। अभी जो भी कमजोरी हो उसे महायज्ञ में स्वाहा करके जाना। साथ में लेकर नहीं जाना, यहाँ ही स्वाहा करके जाओ। स्वाहा करना आता है ना। दृढ़ संकल्प करना अर्थात् स्वाहा करना। अच्छा! सभी की आश पूरी हुई। यह भी भाग्यवान हो जो ऐसे मिलते रहते हो। आगे चलकर क्या होता है.....। यह भी भाग्य जितना मिलता है उतना लेते चलो। उड़ते जाओ। यही याद रखना कि महान हैं और महान बनाना है।
ग्रुप नं. 2
सर्व शक्तियों को समय पर कार्य में लगाना अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान बनना
शक्तियों का पूजन देखकर क्या स्मृति में रहता है? अपने को चेक करते हो-जैसे शक्तियों को अष्ट भुजाधारी दिखाते हैं तो हम भी अष्ट शक्तिवान, मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ। ये अष्ट तो निशानी मात्र हैं लेकिन हैं तो सर्व शक्तियाँ। शक्तियों का नाम सुनते, शक्तियों का पूजन देखते सर्व शक्तियों की स्मृति आती है या सिर्फ देखकर के खुश हो? जड़ चित्रों में कितनी कमाल भर देते हैं! तो चैतन्य का ही जड़ बनता है ना। तो चैतन्य में हम कितने कमाल के बने हैं अर्थात् श्रेष्ठ बने हैं! तो यह खुशी होती है कि यह हमारा यादगार है! या देवियों का है? देवियों के साथ गणेश की भी पूजा होती है ना। तो प्रैक्टिकल में ऐसे बने हैं तब तो यादगार बना है। सदैव अपने को चेक करो कि सर्व शक्तियाँ अनुभव होती हैं? बाप ने तो दी लेकिन मैंने कितनी ली, धारण की और धारण करने के बाद समय पर वो शक्ति काम में आती है? अगर समय पर कोई चीज काम में नहीं आये तो वह होना, न होना, एक ही बात है। कोई भी चीज़ रखते ही हैं समय पर काम में आने के लिये। अगर समय पर काम में नहीं आई तो क्या कहेंगे? है वा नहीं है, एक ही बात हुई ना। तो बाप ने दी लेकिन हमने कितनी ली-यह चेक करो। जब प्रैक्टिकल में काम में आये तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिवान। शक्ति काम में नहीं आवे और कहें मास्टर सर्वशक्तिवान, यह शोभता नहीं है। एक भी शक्ति कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी। कोई भी समय उसी शक्ति का पेपर आ जाये तो पास होंगे या फेल होंगे? अगर नहीं होगी तो फेल होंगे, होगी तो पास होंगे। माया भी जानती है-इसके पास इस शक्ति की कमी है। तो वही पेपर आता है। इसलिये एक भी शक्ति कम नहीं होनी चाहिये। समझा? ऐसे नहीं-शक्तियाँ तो आ गई, एक कम हुई तो क्या हर्जा है। एक में ही हर्जा है। एक ही फेल कर देगी। सूर्यवंशी में आना है तो फुल पास होना पड़ेगा ना। फुल पास होने का अर्थ ही है मास्टर सर्वशक्तिवान बनना।
माताओं में सहन शक्ति है? या थोड़ा-थोड़ा क्रोध आ जाता है? पाण्डवों को क्रोध या रोब आता है? सहन शक्ति की कमी है तब ही आयेगा ना। सर्व शक्तियों में सहन शक्ति भी तो शक्ति है ना। एक भी शक्ति कम हुई तो फुल पास होंगे या अधूरे पास होंगे? इसलिये सर्व शक्तियों को चेक करो। परसेन्टेज भी कम न हो। ऐसे नहीं-थोड़ा क्रोध आया, ज्यादा नहीं आया। यदि थोड़ा भी आ गया तो उसको फेल कहेंगे और आदत पड़ जायेगी थोड़ा-थोड़ा फेल होने की तो फुल पास कैसे होंगे? इसलिये एक भी शक्ति की कमी न हो। ऐसे अलबेले नहीं रहना कि एक थोड़ी कम है, बढ़ जायेगी। बहुत समय की कमी समय पर धोखा दे देगी। इसलिए मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनो। सर्व शक्तियों को कार्य में लगाते चलो और उड़ते चलो। समझा?
ग्रुप नं. 3
तेरे को मेरे में बदलना ही ब्राह्मण जीवन है
सभी अपने को “एक बल एक भरोसा” ऐसे अनुभव करते हो? “एक बाबा दूसरा न कोई” यह पक्का है ना। या बाबा भी है तो बच्चे भी हैं, सम्बन्धी भी हैं? जब बच्चे हैं, पति है, सासू-ससुर हैं-इतने सारे हैं तो एक कैसे हुआ? सामने हैं, देख रहे हैं, सेवा कर रहे हैं, फिर एक कैसे हुआ? ये मेरे नहीं हैं लेकिन बाप ने सेवा के लिये दिये हैं-ऐसी दृष्टि-वृत्ति रखने से एक ही याद रहेगा। चाहे कितने भी हों, कौन भी हों, लेकिन सभी बाप के बच्चे हैं और हमको सेवा के लिये ये आत्मायें मिली हैं। सासू नहीं है लेकिन सेवा के लिये आत्मा है-ऐसी वृत्ति रहती है? बच्ची को बच्ची नहीं समझते, मेरी कन्या है, मेरी कन्या का कल्याण करो-ऐसे नहीं कहते हो। बाप ने सेवा अर्थ निमित्त बनाया है। घर में नहीं रहे हुए हो लेकिन सेवा-स्थान पर रहे हुए हो। मेरा सब तेरा हो गया। मेरा कुछ नहीं, शरीर भी मेरा नहीं। जब मेरा है ही नहीं तो बॉडी-कॉन्सेस कैसे हो सकता है। मेरे में ही आकर्षण होती है। जब मेरा समाप्त हो जाता है तो मन और बुद्धि को अपनी तरफ खींच नहीं सकते हैं। ब्राह्मण जीवन अर्थात् मेरे को तेरे में बदलना। तो बार-बार यह चेक करो कि तेरा, मेरा तो नहीं बन गया। अगर मेरापन नहीं होगा, तेरा ही है तो डबल लाइट होंगे। अगर थोड़ा भी बोझ अनुभव करते हो तो समझो-मेरापन मिक्स हो गया है। भक्ति में कहते हैं कि सब-कुछ तेरा। ब्राह्मण जीवन में कहना नहीं है, करना है। यह करना सहज है ना। बोझ देना सहज होता है या लेना सहज होता है? तेरा कहना माना बोझ देना और मेरा कहना माना बोझ लेना। तो अभी एक बल एक भरोसा। बस, एक ही एक। एक लिखना सहज है ना। तो यह तेरा-तेरा कहने वाला ग्रुप है। अच्छा!
ग्रुप नं. 4
पूज्य वह जिसकी आंख बाप के सिवाए कहाँ भी न डूबे
सदा यह नशा रहता है कि हम कल्प-कल्प की सर्वश्रेष्ठ पूज्य आत्मायें बनते हैं? कितनी बार आपकी पूजा हुई है? पूज्य आत्मा हूँ-यह पूज्यपन की अनुभूति क्या होती है? निशानी क्या है? नशा है, खुशी है-वह तो ठीक है। लेकिन कौनसा संस्कार ऐसा है जिससे समझते हो-मैं ही पूज्य था? जो पूज्य आत्मायें हैं उनकी विशेषता क्या है? किस विशेषता के आधार पर कोई पूज्य बनता है? लौकिक में भी देखो-किसको कहते हैं कि यह तो पूज्य है। पूज्य आत्मा की निशानी है-वह कभी भी किसी भी वस्तु के पीछे, व्यक्ति के पीछे झुकेगा नहीं। सब उसके आगे झुकेंगे लेकिन वह झुकेगा नहीं। नम्रता से झुकना-वह अलग चीज है। लेकिन झुकना अर्थात् प्रभावित होना। पूज्य के आगे सब झुकते हैं, पूज्य नहीं झुकता है। तो किसी भी प्रकार के व्यक्ति या वैभव की आकर्षण झुका लेवे-यह पूज्य की निशानी नहीं है। तो यह चेक करो कि कभी भी, किसी भी आकर्षण में मन और बुद्धि झुकती तो नहीं है, प्रभावित तो नहीं होते हो? सिवाए एक बाप के और कहाँ भी मन और बुद्धि का झुकाव नहीं। पूज्य अर्थात् झुकाने वाला, न कि झुकने वाला।
जो कल्प-कल्प का पूज्य होगा उसकी निशानी क्या होगी? सिवाए बाप के, और कहाँ भी आंख नहीं डूबेगी। यह बहुत अच्छा है, यह बहुत अच्छी चीज है-नहीं। पूज्य आत्माओं के आगे स्वयं सब व्यक्ति और वैभव झुकते हैं। जो इष्ट देव होते हैं, भक्त लोग स्वयं बढ़िया ते बढ़िया अच्छी चीज इष्ट के आगे भेंट चढ़ायेंगे। इष्ट उन चीजों पर प्रभावित नहीं होगा लेकिन वो चीजें स्वयं उसके आगे झुकेंगी। तो पूज्य की निशानी है-एक बाप के सिवाए कहाँ भी मन-बुद्धि का झुकाव नहीं। रिगॉर्ड और चीज है, प्यार और चीज है, नम्रता और चीज है लेकिन प्रभावित होना और चीज है। तो पूज्य आत्मा थे और बार-बार बनेंगे। यह निशानी अपने अन्दर चेक करो। कभी भी किसी भी संस्कार के वश आत्मा वशीभूत हो जाती है तो यह भी झुकना हुआ। मानो कोई ब्राह्मण आत्मा, पूज्य आत्मा कहे कि आज क्रोध के वश हो गई, लोभ के वश हो गई, अभिमान के वश हो गई-तो यह झुकना हुआ या झुकाना हुआ? तो पूज्य कभी झुकता नहीं। पूज्य के आगे सब आकर्षित होकर स्वयं आते हैं, पूज्य किसी के पीछे आकर्षित नहीं होता। तो यह निशानी देखो। अगर कभी-कभी झुकाव हो जाता है तो पूजा भी कभी-कभी होगी, सदा नहीं होगी। पूज्य में भी नम्बर होते हैं। वैरा-यटी होती है ना। कोई पूज्य सदा पूजे जाते हैं और कोई-कोई की कभी पूजा होती है, कोई की विधिपूर्वक होती है और कोई की काम-चलाऊ पूजा होती है। मन्दिरों में भी फर्क होता है ना। तो यहाँ भी ऐसे है। जो विधिपूर्वक श्रीमत को अपनाते नहीं, काम-चलाऊ, चलो अमृतवेले उठना है, बैठना है, कोई देखे नहीं, कोई कहे नहीं कि यह उठा नहीं, फिर चाहे बाप से मिलन मनाये या निद्रा से मिलन मनाये। यह काम-चलाऊ हो गया ना। अमृतवेले उठा, बैठा लेकिन विधिपूर्वक नहीं। तो मूर्ति को भी बिठा देते हैं लेकिन पूजा विधिपूर्वक नहीं होती है। लगाव तब होता है जब झुकाव होता है। बिना लगाव के झुकाव नहीं होता। आज के भक्तों का भी चाहे अल्पकाल की प्राप्ति की तरफ लगाव हो, तभी झुकाव होता है। आजकल पूज्य की तरफ लगाव नहीं है, अल्पकाल की प्राप्ति के तरफ लगाव है। लेकिन प्राप्ति कराने वाली पूज्य आत्मायें हैं, इसलिये झुकते उनकी तरफ ही हैं। तो समझा, पूज्य की निशानी क्या है? कल्प-कल्प की श्रेष्ठ पूज्य आत्मायें सदा स्वयं को सम्पन्न अनुभव करेंगी। जो सम्पन्न होता है उसकी आंख किसमें भी नहीं जाती। पूज्य आत्मा सम्पन्न होने के कारण सदा ही अपने रूहानी नशे में रहेगी। उनके मन-बुद्धि का झुकाव कहाँ भी नहीं होगा- न देह के सम्बन्ध में, न देह के पदार्थ में। सबसे न्यारा और सबसे प्यारा। ब्राह्मण जीवन का मजा जीवन्मुक्त स्थिति में है। न्यारा अर्थात् मुक्त। संस्कार के ऊपर भी झुकाव नहीं। जब कहते हो क्या करूँ, कैसे करूँ-तो उस समय जीवन्मुक्त हुए या जीवन-बन्ध?करना नहीं चाहते थे लेकिन हो गया-यह है जीवन-बन्ध बनना। इच्छा नहीं थी लेकिन अच्छा लग गया, शिक्षा देनी थी लेकिन क्रोध आ गया-यह है जीवन-बन्ध स्थिति। ब्राह्मण अर्थात् जीवन्मुक्त। कभी भी किसी बंधन में बंध नहीं सकते। अच्छा!
ग्रुप नं. 5
संगठन में रहते भी न्यारा और प्यारा रहना ही फॉलो फादर करना है
यह वैरायटी ग्रुप है। सबसे अच्छे ते अच्छा ग्रुप किसको कहा जायेगा, उसकी विशेषता क्या होगी? सबसे अच्छा ग्रुप वह है जो ग्रुप में रहते हुए भी निर्विघ्न रहे, सन्तुष्ट रहे। कोई अकेला निर्विघ्न रहता है, यह कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन बड़े संगठन में भी हो और निर्विघ्न भी हो। तो आप सभी संगठन में रहते निर्विघ्न रहते हो? कितना भी हंगामा हो लेकिन स्वयं अचल हो-ऐसे ग्रुप के हो? जैसे बाप अकेला तो नहीं है ना, परिवार वाला है। सबसे बड़े ते बड़ा परिवार बाप का है और जितना बड़ा परिवार उतना ही न्यारा और सर्व का प्यारा है। जितनी सेवा उतना न्यारा। तो फॉलो फादर करने वाले हो ना। इसीलिये आप सबका यादगार यहाँ अचलघर बना हुआ है। कितना भी कोई हिलावे, हिलेंगे नहीं। एक तरफ एक डिस्टर्ब करे, दूसरी तरफ दूसरा डिस्टर्ब करे-तो क्या करेंगे? कोई सैलवेशन नहीं मिले, फिर हलचल होगी? कोई इन्सल्ट कर दे, फिर हलचल होगी? अचल अर्थात् चारों ओर कितना भी कोई हिलाने की कोशिश करे लेकिन संकल्प में भी अचल।
देखो, अच्छे हो तब तो बापदादा ने पसन्द करके अपना बनाया है। अच्छे हैं और सदा अच्छे रहेंगे। अच्छा-अच्छा समझने से अच्छे हो ही जाते हैं। बापदादा हरेक बच्चे में विशेषता ही देखते हैं। विशेषता देखते, वर्णन करते-करते विशेष बन ही जायेंगे। कल थे, आज हैं और कल फिर बनेंगे। ‘आज’ और ‘कल’ में सारा ड्रामा आ गया। जितना-जितना सम्पूर्ण बनते जायेंगे तो यह स्मृति स्पष्ट होती जायेगी। जितनी स्मृति स्पष्ट होती है उतना नेचुरल नशा रहता है। अच्छा! चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों को डबल नशे में रहने की मुबारक! एक याद का नशा, एक सेवा का नशा-डबल नशा है ना। अच्छा है, हिम्मत बच्चों की, मदद बाप की। ऑस्ट्रेलिया के बच्चे भी जो चाहे वो कर सकते हैं। सिर्फ कभी गुप्त हो जाते हैं, कभी प्रत्यक्ष हो जाते हैं। लेकिन हिम्मत और मदद के भी पात्र हैं। अच्छा, सभी को याद।
ग्रुप नं. 6
हर ब्राह्मण ब्रह्मा बाप का दर्पण बने-यही है बाप की श्रेष्ठ आश
मधुबन निवासियों को कितने प्रत्यक्षफल मिलते हैं? मधुबन की विशेषता क्या है जो और कहाँ नहीं मिलती? श्रेष्ठ कर्मभूमि पर रहने वाले सदा फॉलो फादर करते हैं। मधुबन की श्रेष्ठता तो यह है कि ब्रह्मा बाप की विशेष कर्मभूमि है। तो मधुबन निवासी जो भी कर्म करते हैं वो फॉलो फादर करते हैं। कर्मभूमि में विशेषता कर्म की है। तो कर्म में फॉलो है? जो भी अमृतवेले से लेकर रात तक कर्म करते हो उसमें फॉलो फादर है? मधुबन निवासियों को और एक्स्ट्रा कर्मभूमि की याद का बल है। वह कर्म में दिखाई देता है वा देना है, क्या कहेंगे? आप अपने में देखते हो? एक-एक कदम सामने लाओ-उठना-बैठना, चलना, बोलना, सम्बन्ध-सम्पर्क में आना-सबमें ब्रह्मा बाप के कर्म को फॉलो है? कर्मभूमि का फायदा तो यही है ना। तो इतना लाभ ले रहे हो? शक्तियाँ क्या समझती हैं? कर्मभूमि का लाभ जितना मधुबन ले सकता है, उतना औरों को लेने आना पड़ता है और आपको मिला हुआ है। वरदान-भूमि है, कर्मभूमि है। तो हर कर्म वरदान योग्य है जो कोई भी देखे तो मुख से वरदान निकले? इसको कहेंगे वरदान-भूमि का वरदान लेना। चाहे साधारण कर्म कर रहे हों लेकिन साधारण कर्म में विशेषता दिखाई दे। यही मधुबन की विशेषता है ना। इसमें सर्टिफिकेट लेना है। आज इन्कम-टैक्स का सर्टिफिकेट मिला है ना। तो मधुबन वालों ने कौनसा सर्टिफिकेट लिया है? लेने वाले अधिकारी तो हो ही। विशेष ब्रह्मा बाप की अपने कर्मभूमि में रहने वालों के प्रति यह विशेष श्रेष्ठ आश है कि मधुबन का एक-एक ब्राह्मण आत्मा, श्रेष्ठ आत्मा हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म का दर्पण हो। तो दर्पण में क्या दिखाई देता है? यही दिखाई देता है ना। अगर आप दर्पण में खड़े होंगे तो हू-ब-हू आप ही दिखाई देंगे या दूसरा? तो ब्रह्मा बाप के कर्म आपके कर्म के दर्पण में दिखाई दें। भाग्यवान हो-यह तो सदा सभी कहते भी हैं और हैं भी। लेकिन हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दें। यह सर्टिफिकेट कौन लेगा और कब लेंगे? लेना तो है ना। या ले लिया है? जिसने यह सर्टिफिकेट ले लिया है कि हर कर्म में ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दे रहे हैं, उनका बोल, ब्रह्मा का बोल समान, उठना-बैठना, देखना, चलना-सब समान। ऐसा सर्टिफिकेट लिया है? जिसको लेना है वो हाथ उठाओ। यह भी अच्छा है। कहने से पहले करके दिखायेंगे। लेकिन यह लक्ष्य रखो कि हर कर्म बाप समान हो। ब्रह्मा बाप को फॉलो करना तो सहज है ना। निराकारी बनना अर्थात् सदा निराकारी स्थिति में स्थित होना। उसके बजाय कर्म में फॉलो करना उससे सहज है। तो ब्रह्मा बाप तो सहज काम दे रहा है, मुश्किल नहीं। तो सभी लक्ष्य रखो कि मधुबन में जहाँ देखें, जिसको देखें-ब्रह्मा बाप के कर्म दिखाई दें। कर्म में सर्वव्यापी ब्रह्मा कर सकते हो। जहाँ देखें ब्रह्मा समान! हो सकता है ना।
मधुबन की महिमा अर्थात् मधुबन निवासियों की महिमा। मधुबन की दीवारों की महिमा नहीं है, मधुबन निवासियों की महिमा है। मधुबन की महिमा चारों ओर से रोज सुनते हो ना। मधुबन निवासियों की महिमा जो होती है वह किसकी है? आप सबकी है ना। नशा तो रहता है कि हम मधुबन निवासी हैं। जैसे यह नशा है वैसे यह नशा भी प्रत्यक्ष दिखाई दे कि यह ब्रह्मा बाप के समान फॉलो फादर करने वाले हैं। अच्छा! सभी सन्तुष्ट हो? कुछ सैलवेशन चाहिये? सैलवेशन की भूमि में बैठे हो। कितने बेफिक्र बैठे हो! शरीर की मेहनत करते हो, और तो सब बना बनाया मिलता है। जो शरीर की मेहनत नहीं करते हैं उनको एक्सरसाइज की मेहनत कराते हैं। आप तो लक्की हो ना जो एक्सरसाइज नहीं करना पड़े। हाथ-पांव चलते रहते हैं। जितना जो हार्ड वर्क (कठिन परिश्रम) करता है उतना वह सेफ है-माया से भी और शरीर की व्याधियों से भी। बुद्धि तो बिजी रहती है ना। और फालतू तो कुछ नहीं चलेगा। तो जो सदा बिज़ी रहते हैं वे बहुत लक्की हैं। इसलिये अपने को फ्री नहीं करना। चलो, बहुत समय कर लिया, अब फ्री हो जायें। बिज़ी रहना खुशनसीब की निशानी है। खुशनसीब हो ना। अपने को सदा बिज़ी रखना। अच्छा! मधुबन निवासियों को पहला चांस मिला है। यह भी लक्क है। अभी बापदादा को करके दिखाना। समझा?