10-12-92 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
पूर्वज और पूज्य की स्मृति में रहकर सर्व की अलौकिक पालना करो
अपने रूहानी सोशल सेवाधारी बच्चों प्रति अव्यक्त बापदादा बोले -
आज विश्व-रचता बाप अपनी श्रेष्ठ रचना को देख रहे हैं। सर्व रचना में से श्रेष्ठ रचना आप ब्राह्मण आत्मायें हो क्योंकि आप ही विश्व की पूर्वज आत्मायें हो। एक तरफ पूर्वज हो, साथ-साथ पूज्य आत्मायें भी हो। इस कल्प-वृक्ष की फाउन्डेशन अर्थात् जड़ आप ब्राह्मण आत्मायें हो। इस वृक्ष के मूल आधार-’तना’ भी आप हो। इसलिए आप सर्व आत्माओं के लिए पूर्वज हो। सृष्टि-चक्र के अन्दर जो विशेष धर्म-पिता कहलाये जाते हैं उन धर्म-पिताओं को भी आप पूर्वज आत्माओं द्वारा ही बाप का सन्देश प्राप्त होता है, जिस आधार से ही समय प्रमाण वो धर्म-पितायें अपने धर्म की आत्माओं प्रति सन्देश देने के निमित्त बनते हैं। जैसे ब्रह्मा बाप ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर है, तो ब्रह्मा के साथ आप ब्राह्मण आत्मायें भी साथी हो। इसलिए आप पूर्वज आत्मायें गाई हुई हो।
पूर्वज आत्माओं का, डायरेक्ट चाहे इन्डायरेक्ट, सर्व आत्माओं से कनेक्शन है। जैसे-वृक्ष की सर्व टाल-टालियों का सम्बन्ध जड़ से वा तना से जरूर होता है। चाहे किसी भी धर्म की छोटी वा बड़ी टाल-टालियाँ हों लेकिन सम्बन्ध स्वत: ही होता है। तो पूर्वज हुए ना। आधा कल्प राज्य-अधिकारी बनने के बाद फिर पूज्य आत्मायें बनते हो। पूज्य बनने में भी आप आत्माओं जैसी पूजा और किसी भी धर्म के आत्माओं की नहीं होती। जैसे आप पूज्य आत्माओं की विधिपूर्वक पूजा होती है, ऐसे कोई धर्म-पिता की भी पूजा नहीं होती। बाप के कार्य में जो आप ब्राह्मण साथी बनते हो, उन्हों की भी देवता वा देवी के रूप में विधिपूर्वक पूजा होती है। और कोई भी धर्म-पिता के साथी धर्म की पालना करने वाली आत्माओं की विधिपूर्वक पूजा नहीं होती, गायन होता है। स्टैच्यू (Statue) बनाते हैं लेकिन आप जैसे पूज्य नहीं बनते।
आपका गायन भी होता है तो पूजा भी होती है। गायन की विधि भी आप ब्राह्मण आत्माओं की सबसे न्यारी है। जैसे आप देवात्माओं का गायन बहुत सुन्दर रूप से कीर्तन के रूप में होता है, आरती के रूप में होता है, ऐसे अन्य आत्माओं का गायन इसी प्रकार से नहीं होता। ऐसे क्यों होता? क्योंकि आप श्रेष्ठ रचना पूर्वज और पूज्य हो। आदि आत्मायें आप ब्राह्मण आत्मायें हो क्योंकि आदि देव ब्रह्मा के सहयोगी श्रेष्ठ कार्य के निमित्त बने हो। अनादि रूप में भी परम आत्मा के अति समीप रहने वाले हो। आत्माओं का जो चित्र दिखाते हो उसमें सबसे समीप आत्मायें कौनसी दिखाते हो? उसमें आप हो। तो अनादि रूप में भी अति समीप हो जिसको डबल विदेशी कहते हैं-नियरेस्ट और डियरेस्ट। ऐसे अपने को समझते हो?
पूर्वज का क्या काम होता है? पूर्वज सभी की पालना करते हैं। बड़ों की पालना ही प्रसिद्ध होती है। तो आप सभी पूर्वज आत्मायें सर्व आत्माओं की पालना कर रहे हो? या सिर्फ अपने आने वाले स्टूडेन्ट्स की पालना करते हो? वा सम्बन्ध-सम्पर्क वाली आत्माओं की पालना करते हो? सारे विश्व की आत्माओं के पूर्वज हो वा सिर्फ ब्राह्मण आत्माओं के पूर्वज हो? जो जड़ वा तना होता है वह सारे वृक्ष के लिए होता है। वा सिर्फ अपने तना के लिए ही होता है? सब टाल-टालियों के लिए होता है ना। जड़ अथवा तना द्वारा सारे वृक्ष के पत्तों को पानी मिलता है। वा सिर्फ थोड़ी टाल-टालियों को पानी मिलता है? सबको मिलता है ना। लास्ट वाले पत्तों को भी मिलता है। इतना बेहद का नशा है? वा बेहद से हद में भी आ जाते हो? कितनी सेवा करनी है! हर एक पत्ते को पानी देना है अर्थात् सर्व आत्माओं की पालना करने के निमित्त हो।
किसी भी धर्म की आत्माओं को मिलते हो वा देखते भी हो तो ‘‘हे पूर्वज आत्मायें! ऐसे अनुभव करती हो कि यह सब आत्मायें हमारे ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर की वंशावली है, हम ब्राह्मण आत्मायें भी मास्टर ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर हैं अर्थात् पूर्वज हैं, यह सब हमारे हैं?’’ वा सिर्फ ब्राह्मण आत्मायें हमारी हैं? जब भाई-भाई कहते हैं तो आप पूर्वज आत्मायें बड़े भाई अर्थात् बाप समान हो। इस स्मृति को ही प्रैक्टिकल लाइफ में अनुभव करना है और कराना है। आप सभी पूर्वज आत्माओं की पालना का स्वरूप क्या है? लौकिक जीवन में भी पालना का आधार क्या होता है? पालना करना अर्थात् किसी को भी शक्तिशाली बनाना। किसी भी विधि से, साधन से पालना द्वारा शक्तिशाली बनाते-चाहे भोजन द्वारा, चाहे पढ़ाई द्वारा। लेकिन पालना का प्रत्यक्षस्वरूप आत्मा में शक्ति, शरीर में शक्ति आती है। तो पालना का प्रत्यक्षस्वरूप हुआ शक्तिशाली बनाना।
आप पूर्वज आत्माओं के पालना की विधि क्या है? अलौकिक पालना का स्वरूप है-स्वयं में बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियाँ अन्य आत्माओं में भरना। जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है, उसकी उस समय उस शक्ति द्वारा पालना करना-ऐसी पालना करनी आती है? पूर्वज तो हो ना। सभी पूर्वज आत्मायें हो कि छोटे हो? सभी पूर्वज हैं या कोई-कोई विशेष आत्मायें हैं? तो पूर्वजों को पालना करनी आती है ना। सिर्फ सेन्टर की पालना करते हो या सारे विश्व की आत्माओं की पालना करते हो? सिर्फ प्रवृत्ति की पालना करते हो वा विश्व की पालना करते हो? वर्तमान समय आप पूर्वज आत्माओं के पालना की सर्व आत्माओं को आवश्यकता है।
समाचार तो सब इन्ट्रेस्ट से सुनते हो कि क्या-क्या हो रहा है। (आयोध्या की घटना के बाद कई स्थानों से हिंसा के समाचार मिल रहे हैं) लेकिन पूर्वज आत्माओं ने समाचार सुनने के बाद सर्व की पालना की? अशान्ति के समय आप पूर्वज आत्माओं का और विशेष कार्य स्वत: ही हो जाता है। तो हे पूर्वज! अपने पालना की सेवा में लग जाओ। जैसे अशान्ति के समय विशेष पुलिस वा मिलेट्री समझती है कि यह हमारा कार्य है-अशान्ति को शान्त करना। ऑर्डर द्वारा पहुँच जाते हैं और ऐसे टाइम पर विशेष अटेन्शन से अपनी सेवा के लिए अलर्ट हो जाते हैं। आप सबने हलचल का समाचार तो सुना, लेकिन सेवा में अलर्ट हुए वा सुनने का ही आनन्द लिया? अपना पूर्वजपन स्मृति में आया? सभी आत्माओं की शान्ति की शक्ति से पालना की? या यही सोचते रहे-यहाँ यह हुआ, वहाँ यह हुआ? विशेष आत्माओं की ऐसे समय पर सेवा की अति आवश्यकता है। अपनी वृत्ति द्वारा, मन्सा-शक्ति द्वारा विशेष सेवा की? वा जैसे विधिपूर्वक याद में रहते हो, सेवा करते हो, उसी रीति ही किया? आप रूहानी सोशल वर्कर भी हो। तो रूहानी सोशल वर्कर ने अपनी विशेष एक्स्ट्रा सोशल सेवा की? इतनी अपनी जिम्मेवारी समझी? या प्रोग्राम मिलेगा तो करेंगे? ऐसे समय पर सेकेण्ड में अपनी सेवा पर अलर्ट हो जाना चाहिए। यही आप पूर्वज आत्माओं की जिम्मेवारी है।
अभी भी विश्व में हलचल है और यह हलचल तो समय प्रति समय बढ़नी ही है। आप आत्माओं का फर्ज है-ऐसे समय पर आत्माओं में विशेष शान्ति की, सहन शक्ति की हिम्मत भरना, लाइट-हाउस बन सर्व को शान्ति की लाइट देना। समझा, क्या करना है? अभी अपनी जिम्मेवारी वा फर्ज-अदाई और तीव्र गति से पालन करो जिससे आत्माओं को रूहानी शक्ति की राहत मिले, जलते हुए दु:ख की अग्नि में शीतल जल भरने का अनुभव करें। यह फर्ज-अदाई कर सकते हो? दूर से भी कर सकते या जब सामने आयेंगे तब करेंगे? कर तो रहे हो लेकिन अभी और जैसे हलचल तेज होती जाती है, तो आपकी सेवा भी और तेज हो। समझा, पूर्वजों की पालना क्या है? ऐसे नहीं कि पूर्वज हैं लेकिन पालना नहीं कर सकते। पूर्वज का काम ही है-पालना द्वारा शक्ति देना। श्रेष्ठ शक्तिशाली स्थिति द्वारा परिस्थिति को पार करने की शक्ति अनुभव कराओ। अच्छा!
चारों ओर के सर्व आदि देव ब्रह्मा के मददगार आदि आत्माओं को, सर्व आत्माओं के फाउन्डेशन पूर्वज आत्माओं को, सदा सर्व आत्माओं प्रति बेहद सेवा की श्रेष्ठ वृत्ति रखने वाली आत्माओं को, सर्व रूहानी सोशल सेवाधारी आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।
दादियों से मुलाकात
वर्तमान समय अशान्त आत्माओं को शान्ति देना-यही सभी का विशेष कार्य है। रहमदिल बाप के बच्चों को सर्व आत्माओं के प्रति रहम आता है ना। रहमदिल क्या करता है? रहम का अर्थ ही है-किसी भी प्रकार की हिम्मत देना, निर्बल आत्मा को बल देना। तो आत्माओं के दु:ख का संकल्प तो मास्टर सुखदाता आत्माओं के पास पहुँचता ही है। जैसे वहाँ दु:ख की लहर है, ऐसे ही विशेष आत्माओं में सेवा की विशेष लहर चले-देना है, कुछ करना है। क्या किया-वो हर एक को सेवा का एक्स्ट्रा चार्ट चेक करना चाहिए। जैसे साधारण सेवा चलती है, वो तो चलती है। लेकिन वर्तमान समय वायुमण्डल द्वारा, वृत्ति द्वारा सेवा का विशेष अटेन्शन रखो। इसी से स्व की स्थिति भी स्वत: ही शक्तिशाली हो जायेगी। ऐसी लहर फैलाई है? विश्व के राजे बनते हैं तो सर्व आत्माओं के प्रति लहर होनी है ना। वंचित कोई आत्मा न रह जाये। चाहे अन्य धर्म की आत्मायें हों लेकिन हैं तो अपनी वंशावली। चाहे कोई भी धर्म की आत्मायें हैं लेकिन जड़ तो एक ही है। यह लहर है? (नहीं है) अटेन्शन प्लीज़!
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात
ग्रुप नं. 1
व्यर्थ के प्रभाव में आने वाले नहीं, अपना श्रेष्ठ प्रभाव डालने वाले बनो
सदा अपने को पुरूषार्थ में आगे बढ़ने वाली आत्मा हूँ-ऐसे अनुभव करते हो? पुरूषार्थ में कभी भी कभी ठहरती कला, कभी उतरती कला-ऐसा नहीं होना चाहिए। कभी बहुत अच्छा, कभी अच्छा, कभी थोड़ा अच्छा-ऐसा नहीं। सदा बहुत अच्छा। क्योंकि समय कम है और सम्पूर्ण बनने की मंजिल श्रेष्ठ है। तो अपने भी पुरूषार्थ की गति तीव्र करनी पड़े। पुरूषार्थ के तीव्र गति की निशानी है कि वह सदा डबल लाइट होगा, किसी भी प्रकार का बोझ नहीं अनुभव करेगा। चाहे प्रकृति द्वारा कोई परिस्थिति आये, चाहे व्यक्तियों द्वारा कोई परिस्थिति आये लेकिन हर परिस्थिति, स्व-स्थिति के आगे कुछ भी अनुभव नहीं होगी। स्व-स्थिति की शक्ति पर-स्थिति से बहुत ऊंची है, क्यों? यह स्व है, वह पर है। अपनी शक्ति भूल जाते हो तब ही पर-स्थिति बड़ी लगती है। सदा डबल लाइट का अर्थ ही है कि लाइट अर्थात् ऊंचे रहने वाले। हल्का सदा ऊंचा जाता है, बोझ वाला सदा नीचे जाता है। आधा कल्प तो नीचे ही आते रहे ना। लेकिन अभी समय है ऊंचा जाने का। तो क्या करना है? सदा ऊपर।
शरीर में भी देखो तो आत्मा का निवास-स्थान ऊपर है, ऊंचा है। पांव में तो नहीं है ना। जैसे शरीर में आत्मा का स्थान ऊंचा है, ऐसे स्थिति भी सदा ऊंची रहे। ब्राह्मण की निशानी भी ऊंची चोटी दिखाते हैं ना। चोटी का अर्थ है ऊंचा। तो स्थूल निशानी इसीलिए दिखाई है कि स्थिति ऊंची है। शूद्र को नीचे दिखाते हैं, ब्राह्मण को ऊंचा दिखाते हैं। तो ब्राह्मणों का स्थान और स्थिति-दोनों ऊंची। अगर स्थान की याद होगी तो स्थिति स्वत: ऊंची हो जायेगी। ब्राह्मणों की दृष्टि भी सदा ऊपर रहती है। क्योंकि आत्मा, आत्माओं को देखती है, आत्मा ऊपर है तो दृष्टि भी ऊपर जायेगी। कभी भी किससे मिलते हो या बात करते हो तो आत्मा को देखकर बात करते हो, आत्मा से बात करते हो। आपकी दृष्टि आत्मा की तरफ जाती है। आत्मा मस्तक में है ना। तो ऊंची स्थिति में स्थित रहना सहज है।
जब ऐसी स्थिति हो जाती है तो नीचे की बातों से, नीचे के वायुमण्डल से सदा ही दूर रहेंगे, उसके प्रभाव में नहीं आयेंगे। अच्छा प्रभाव पड़ता है या खराब भी पड़ जाता है? अगर प्रवृत्ति में खराब वायुमण्डल हो, फिर क्या करते हो? प्रभावित होते हैं? खराब को अच्छा बनाने वाले हो या प्रभाव में आने वाले हो? क्योंकि माया भी देखती है कि-अच्छा, अंगुली तो पकड़ ली है। अंगुली के बाद हाथ पकड़ेगी, हाथ के बाद पांव पकड़ लेगी। इसलिए प्रभाव में नहीं आना। प्रभाव में आने वाले नहीं, श्रेष्ठ प्रभाव डालने वाले। तो ब्राह्मण आत्मा अर्थात् सदा डबल लाइट, ऊंचे रहने वाले। इसी स्मृति से आगे उड़ते चलो। अच्छा!
सभी खुश रहते हो ना। दु:ख की लहर तो नहीं आती? क्योंकि जो दु:खधाम छोड़ चले उनके पास दु:ख की लहर कैसे आ सकती। संगम पर दु:खधाम और सुखधाम-दोनों का ज्ञान है। दोनों के नॉलेजफुल शक्तिशाली आत्मायें हैं। गलती से भी दु:खधाम में जा नहीं सकते। सदा खुश रहने वालों के पास दु:ख की लहर कभी आ नहीं सकती। अच्छा! सेवा और स्व-उन्नति-दोनों का बैलेन्स रखो। ऐसे नहीं-सेवा में मस्त हो गये तो स्व-उन्नति भूल गये। सेवा का शौक ज्यादा है। लेकिन दोनों का बैलेन्स। समझा?
अच्छे चल रहे हैं लेकिन सिर्फ अच्छे तक नहीं रहना, और अच्छे ते अच्छे।
ग्रुप नं. 2
अनेक भावों को समाप्त कर श्रेष्ठ आत्मिक भाव धारण करो
सबसे सहज आगे बढ़ने की विधि क्या है? आगे तो सभी बढ़ रहे हो लेकिन सबसे सहज विधि कौनसी है? योग भी सहज हो जाये, उसकी विधि क्या है? सबसे सहज विधि है-’’मेरा बाबा’’। और कुछ भी याद न हो, हर समय एक ही बात याद हो -’’मेरा बाबा’’। क्योंकि मन वा बुद्धि कहाँ जाती है? जहाँ मेरापन होता है। अगर शरीर-भान में भी आते हो तो क्यों आते हो? क्योंकि मेरापन है। अगर ‘‘मेरा बाबा’’ हो जाता तो स्वत: ही मेरे तरफ बुद्धि जायेगी। सहज साधन है-’’मेरा बाबा’’। मेरापन न चाहते हुए भी याद आता है। जैसे चाहते नहीं हो कि शरीर याद आवे, लेकिन क्यों याद आता है? मेरापन खींचता है ना, न चाहते भी खींचता है। जब यह सदा निश्चय और स्मृति में रहे- ‘‘मेरा बाबा’’-तो पुरूषार्थ की मेहनत करने के बजाए स्वत: ही मेरापन खींचेगा। तो सहज साधन क्या हुआ? इसीलिए ‘एक’ को ही याद करो। ‘एक’ को ही याद करना सहज होता है।
जितना-जितना गहरा सम्बन्ध जुटा हुआ होगा उतनी याद सहज होगी और सहज बात ही निरन्तर होती है। अगर सहज नहीं होगा तो निरन्तर नहीं होगा। कोई भी मेहनत का काम निरन्तर नहीं कर सकते। सारा दिन-रात कोई को मेहनत का काम दो तो मजबूरी से करेगा, लेकिन प्यार से नहीं करेगा। तो बापदादा सहज करके देता है। सहज के कारण निरन्तर होना मुश्किल नहीं है। जो सदा इस स्मृति में रहते हैं उनकी निशानी क्या होगी? वे सदा खुश रहेंगे। क्योंकि बाप से प्राप्ति होती है। तो प्राप्ति की खुशी होती है ना। तो ‘‘मेरा बाबा’’ की स्मृति की प्रैक्टिकल निशानी ‘खुशी’ है। कोई भी बात हो जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। क्योंकि प्राप्ति के आगे वह बात क्या लगेगी? कुछ भी नहीं लगेगी। बाप का अर्थ ही वर्से की प्राप्ति है। बाप का सम्बन्ध क्यों प्यारा लगता है? क्योंकि वर्सा मिलता है। तो बाप कहना अर्थात् वर्से की याद स्वत: ही आती है। बाप मिला, वर्सा मिला-तो खुशी होगी ना। अल्पकाल की प्राप्ति की भी खुशी होती है। तो यह तो अविनाशी प्राप्ति है, इसकी खुशी भी अविनाशी होनी चाहिए। तो खुश रहते हो? या कभी-कभी रहते हो? सदा खुश रहते हो? जो अपनी चीज होती है वह कभी भूलती नहीं है। चाहे छोटी-सी चीज भी अपनी है, तो भूलेगी? तो यह ‘खुशी’ अपना खज़ाना है। बाप का खज़ाना सो अपना खज़ाना। अपनी चीज भूल नहीं सकती। तो निरन्तर योगी बनना सहज है ना। इस सहज विधि से औरों को भी सहज प्राप्ति करा सकते हो। क्योंकि जब अपने को खुशी प्राप्त होती तो दूसरों को खुशी अवश्य देंगे। जिसको कोई अच्छी चीज मिलती है तो वह दूसरों को देने बिना नहीं रह सकते।
सदा अपने को जैसे बाप न्यारा और प्यारा है, ऐसे न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? बाप सबका प्यारा क्यों है? क्योंकि न्यारा है। जितना न्यारा बनते हैं उतना सर्व का प्यारा बनते हैं। न्यारा किससे? पहले अपनी देह की स्मृति से न्यारा। जितना देह की स्मृति से न्यारे होंगे उतने बाप के भी प्यारे और सर्व के भी प्यारे होंगे। क्योंकि न्यारा अर्थात् आत्म-अभिमानी। जब बीच में देह का भान आता है तो प्यारापन खत्म हो जाता है। इसलिए बाप समान सदा न्यारे और सर्व के प्यारे बनो। आत्मा रूप में किसको भी देखेंगे तो रूहानी प्यार पैदा होगा ना। और देहभान से देखेंगे तो व्यक्त भाव होने के कारण अनेक भाव उत्पन्न होंगे-कभी अच्छा होगा, कभी बुरा होगा। लेकिन आत्मिक भाव में, आत्मिक दृष्टि में, आत्मिक वृत्ति में रहने वाला जिसके भी सम्बन्ध में आयेगा अति प्यारा लगेगा। तो सेकेण्ड में न्यारे हो सकते हो? कि टाइम लगेगा? जैसे शरीर में आना सहज लगता है, ऐसे शरीर से परे होना इतना ही सहज हो जाये। कोई भी पुराना स्वभाव-संस्कार अपनी तरफ आकर्षित नहीं करे और सेकेण्ड में न्यारे हो जाओ। सारे दिन में, बीच-बीच में यह अभ्यास करो। ऐसे नहीं कि जिस समय याद में बैठो उस समय अशरीरी स्थिति का अनुभव करो। नहीं। चलते-फिरते बीच-बीच में यह अभ्यास पक्का करो-’’मैं हूँ ही आत्मा!’’ तो आत्मा का स्वरूप ज्यादा याद होना चाहिए ना! सदा खुशी होती है ना! कम नहीं होनी चाहिए, बढ़नी चाहिए। इसका साधन बताया-मेरा बाबा। और कुछ भी भूल जाये लेकिन ‘मेरा बाबा’ यह भूले नहीं। अच्छा!
अब कोई ऐसी नई इन्वेन्शन निकालो जो ‘‘कम खर्चा बाला नशीन’’ हो। खर्चा भी कम हो, आवाज भी ज्यादा फैले। जैसे कोई समय था प्रदर्शनी की इन्वेन्शन निकाली, मेले की इन्वेन्शन निकाली। यह नवीनता थी ना। लेकिन अब तो पुरानी बात हो गई। ऐसे कोई नई इन्वेन्शन निकालो जो सभी कहें कि हमको भी ऐसे करना है। जैसे अभी शान्ति-अनुभूति की नई बात निकाली तो सब अच्छा अनुभव करते हैं ना। ऐसे सेवा की कोई नई इन्वेन्शन निकालो। कांफ्रेंस होना या मेला होना-यह अभी पुरानी लिस्ट में आ गया। तो कोई नवीनता करके दिखाना। समझा?
स्वयं को भी आगे बढ़ाओ और सेवा को भी आगे बढ़ाओ। क्योंकि सुनाया ना-अभी बेहद की सेवा करनी है! सर्व धर्म की आत्माओं को भी सन्देश पहुँचाना है। तो कितनी सेवा अभी रही हुई है! अभी तीव्र गति से सेवा को बढ़ाओ। लेकिन स्व की उन्नति पहले, बाद में सेवा। सिर्फ सेवा नहीं। स्वउन्नति और सेवा की उन्नति-जब दोनों साथ होंगी तब सेवा की सफलता अविनाशी होगी। नहीं तो थोड़े समय की सफलता होगी। अच्छा! अभी देखेंगे कि क्या नवीनता निकालते हो?
ग्रुप नं. 2
फरिश्ता बनना है तो सर्व लगाव की जंजीरों को समाप्त करो
बाप समान निराकारी और आकारी-इसी स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें अनुभव करते हो? क्योंकि शिव बाप है निराकारी और ब्रह्मा बाप है आकारी। तो आप सभी भी साकारी होते हुए भी निराकारी और आकारी अर्थात् अव्यक्त स्थिति में स्थित हो सकते हो। या साकार में ज्यादा आ जाते हो? जैसे साकार में रहना नेचुरल हो गया है, ऐसे ही मैं आकारी फरिश्ता हूँ और निराकारी श्रेष्ठ आत्मा हूँ-यह दोनों स्मृतियां नेचुरल हों। क्योंकि जिससे प्यार होता है, तो प्यार की निशानी है समान बनना। बाप और दादा-निराकारी और आकारी हैं और दोनों से प्यार है तो समान बनना पड़ेगा ना। तो सदैव यह अभ्यास करो कि अभी-अभी आकारी, अभी-अभी निराकारी। साकार में आते भी आकारी और निराकारी स्थिति में जब चाहें तब स्थित हो सकें। जैसे स्थूल कर्मेन्द्रियां आपके कन्ट्रोल में हैं। आंख को वा मुख को बंद करना चाहो तो कर सकते हो। ऐसे मन और बुद्धि को उसी स्थिति में स्थित कर सको जिसमें चाहो। अगर फरिश्ता बनने चाहें तो सेकेण्ड में फरिश्ता बनो-ऐसा अभ्यास है या टाइम लगता है? क्योंकि हलचल जब बढ़ती है तो ऐसे समय पर कौनसी स्थिति बनानी पड़ेगी? आकारी या निराकारी। साकार देहधारी की स्थिति पास होने नहीं देगी, फेल कर देगी। अभी भी देखो-किसी भी हलचल के समय अचल बनने की स्थिति फरिश्ता स्वरूप या आत्म-अभिमानी स्थिति ही है। यही स्थिति हलचल में अचल बनाने वाली है। तो क्या अभ्यास करना है? आकारी और निराकारी। जब चाहें तब स्थित हो जाए-इसके लिए सारा दिन अभ्यास करना पड़े, सिर्फ अमृतवेले नहीं। बीच-बीच में यह अभ्यास करो।
फरिश्ता सदा ही ऊपर से नीचे आता है, फिर नीचे से ऊपर उड़ जाता है। फरिश्ता सेकण्ड में ऊंचा क्यों उड़ जाता? क्योंकि उसका कोई लगाव नहीं होता-न देह से, न देह की पुरानी दुनिया से। तो चेक करो कि लगाव की कोई जंजीरें रही हुई तो नहीं हैं? अगर कोई भी लगाव की जंजीर वा धागा लगा हुआ होगा तो उड़ सकेंगे? वह रस्सी वा धागा खींचकर नीचे ले आयेगा। तो फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया से कोई रिश्ता नहीं हो। ऐसे है या थोड़ा-थोड़ा रिश्ता है? मोटे-मोटे धागे खत्म हो गये। सूक्ष्म कोई रह तो नहीं गये? बहुत महीन धागे हैं। ऐसे न हो-मोटे-मोटे को देखकर समझो कि स्वतन्त्र हो गये और जब उड़ने लगो तो नीचे आ जाओ। तो सूक्ष्म रीति से चेक करो। अंश-मात्र भी नहीं हो। सुनाया था ना कि कई बच्चे कहते हैं-इच्छा नहीं है कोई चीज की लेकिन अच्छा लगता है। तो यह क्या हुआ? अंश-मात्र हो गया ना। जो चीज़ अच्छी लगेगी वह अपनी तरफ आकर्षित करेगी ना। तो ‘इच्छा’ है मोटा धागा और ‘अच्छा’ है सूक्ष्म धागा। मोटा तो खत्म कर दिया, लेकिन सूक्ष्म है तो उड़ने नहीं देगा।
बाप से प्यार अर्थात् बाप समान बनना। रोज़ फरिश्ते की बात सुनते हो ना। सिर्फ सुनते हो या बन गये हो? बन रहे हैं या बन गये हैं? कब तक बनेंगे? विनाश तक? उससे पहले बनेंगे तो उसका हिसाब है। ऐसे नहीं-10 साल में विनाश होगा तो 9 साल के बाद एक साल में बन जाओ। ऐसे नहीं करना। बहुतकाल का चाहिए। अगर थोड़े समय का अभ्यास होगा तो थोड़े समय तो स्थित होंगे लेकिन बहुतकाल नहीं हो सकेंगे, मेहनत करनी पड़ेगी। अभी मेहनत कर लो, तो उस समय मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अगर मेहनत करते-करते चले गये तो रिजल्ट क्या होगी? कहाँ जायेंगे-सूर्यवंश में या चन्द्रवंश में? तो चेक करो और चेंज करो। जो कमी हो उसको भरते जाओ। सम्पन्न बनो। सदैव याद रखो कि बाप को प्यार का सबूत देना है-समान बनना है। सदा अपने को बाप समान बनाने का अभ्यास और तीव्र गति से बढ़ाओ। अच्छा!
ग्रुप नं. 3
सदा मालिकपन और बालकपन के नशे में रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो? जब चाहो मालिकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तो बालकपन की स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसा अनुभव है? या जिस समय बालक बनना हो उस समय मालिक बन जाते और जिस समय मालिक बनना हो उस समय बालक बन जाते? जब चाहो, जैसे चाहो वैसी स्थिति में स्थित हो जाओ-ऐसे है? क्योंकि यह डबल नशा सदा ही निर्विघ्न बनाने वाला है। जब भी कोई विघ्न आता है तो उस समय जिस स्थिति में स्थित होना चाहिए, उसमें स्थित न होने कारण विघ्न आता है।
विघ्न-विनाशक आत्मायें हो या विघ्न के वश होने वाली हो? सदैव यह स्मृति में रखो कि हमारा टाइटल ही है ‘विघ्न-विनाशक’। विघ्न-विनाशक आत्मा स्वयं कैसे विघ्न में आयेगी? चाहे कोई कितना भी विघ्न रूप बनकर आये लेकिन आप विघ्न विनाश करेंगे। सिर्फ अपने लिये विघ्न-विनाशक नहीं हो लेकिन सारे विश्व के विघ्न-विनाशक हो। विश्व-परिवर्तक हो। तो विश्व-परिवर्तक शक्तिशाली होते हैं ना। शक्ति के आगे कोई कितना भी शक्तिशाली हो लेकिन वह कमजोर बन जाता है। विघ्न को कमजोर बनाने वाले हो, स्वयं कमजोर बनने वाले नहीं। अगर स्वयं कमजोर बनते हो तो विघ्न शक्तिशाली बन जाता है और स्वयं शक्तिशाली हो तो विघ्न कमजोर बन जाता है। तो सदा अपने मास्टर सर्वशक्तिवान स्वरूप की स्मृति में रहो।
सुना तो बहुत है, बाकी क्या रहा? बनना। सुनने का अर्थ ही है बनना। तो बन गये हो? बाप भी ऐसे शक्तिशाली बच्चों को देख हर्षित होते हैं। लौकिक में भी बाप को कौनसे बच्चे प्यारे लगते हैं? जो आज्ञाकारी, फॉलो फादर करने वाले होंगे। तो आप कौन हो? फॉलो फादर करने वाले हो। फॉलो करना सहज होता है ना। बाप ने कहा और बच्चों ने किया। सोचने की भी आवश्यकता नहीं। करें, नहीं करें, अच्छा होगा, नहीं होगा-यह सोचने की भी आवश्यकता नहीं। फॉलो करना सहज है ना। हर कर्म में क्या-क्या फॉलो करो और कैसे करो-यह भी सभी को स्पष्ट है। जो हर कदम में फॉलो करने वाले हैं उनको क्या नशा रहता है? यह निश्चय का नशा रहता है कि हर कर्म में सफलता हुई ही पड़ी है। होगी या नहीं होगी-नहीं। हुई ही पड़ी है। क्योंकि कल्प पहले भी पाण्डवों की विजय हुई ना। पाण्डवों ने क्या किया? भगवान की मत पर चले अर्थात् फॉलो किया तो विजय हुई। तो वही कल्प पहले वाले हो ना। तो यह निश्चय स्वत: ही नशा दिलाता है। कोई भी बात मुश्किल नहीं लगेगी। तो सदा ही सहज और श्रेष्ठ प्राप्ति का अनुभव करते चलो। मालिक सो बालक हैं-यह डबल नशा समय प्रमाण प्रैक्टिकल में लाओ। कभी कोई खिटखिट भी हो जाये तो भी खुशी कम न हो। सदा खुश रहो। अच्छा!
ग्रुप नं. 4
सिर्फ कल्याणकारी नहीं, विश्व-कल्याणकारी बनो
अपने को सदा संगमयुगी कल्याणकारी आत्मायें अनुभव करते हो? संगमयुग एक ही इस सृष्टि-चक्र में ऐसा युग है जो चढ़ती कला का युग है। और युग धीरे-धीरे नीचे उतारते हैं। सतयुग से कलियुग में आते हो तो कितनी कलायें कम हो जाती हैं? तो सभी युगों में उतरते हो और संगमयुग में चढ़ते हो। चढ़ने के लिए भी लिफ्ट मिलती है। सभी को लिफ्ट मिली है ना। बीच में अटक तो नहीं जाती है? ऐसे तो नहीं-कभी अटक जाओ, कभी लटक जाओ। ऐसी लिफ्ट मिलती है जो कभी भी न लटकाने वाली है, न अट-काने वाली है। देखो, कितने लक्की हो जो कल्याणकारी युग में आये और कल्याणकारी बाप मिला। आपका भी ऑक्यूपेशन है विश्व-कल्याणकारी। तो बाप भी कल्याणकारी, युग भी कल्याणकारी, आप भी कल्याणकारी और आपका ऑक्यूपेशन भी विश्व-कल्याणकारी। तो कितने लक्की हो! अच्छा, यह लक्क कितना समय चलेगा? सारा कल्प या आधा कल्प? जो कहते हैं आधा कल्प, वह हाथ उठाओ। जो कहते हैं सारा कल्प, वह हाथ उठाओ। सभी राइट हो। क्योंकि आधा कल्प राज्य करेंगे, आधा कल्प पूज्य बनेंगे। तो यह भी लक्क ही है।
डबल विदेशी पूज्य बनेंगे? आपके मन्दिर हैं? देखो, एक ही देवता धर्म है जिसके 33 करोड़ गाये और पूजे जाते हैं। आप उसमें तो हो ही ना। अच्छा, आबू में अपना मन्दिर देखा है? उसमें आपकी मूर्ति है? नम्बर लगाकर आये हो कि यह मेरी है? जब बाप को फॉलो करने वाले हो, तो जैसे बाप ब्रह्मा पूज्य बनेंगे, तो फॉलो करने वाले भी अवश्य पूज्य ही बनेंगे। सारा कल्प ब्रह्मा बाप के साथ राज्य का, पूजा का और पूज्य बनने का-सब पार्ट बजायेंगे। ऐसा निश्चय है? पूजा भी ब्रह्मा बाप के साथ शुरू करेंगे। किसकी पूजा शुरू करेंगे? आपने पूजा की है? अपनी भी पूजा की है? देवताओं की पूजा की तो अपनी की ना। इसलिए गाया हुआ है-आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी। इतना ब्रह्मा बाप से प्यार है जो सदा ही साथ रहेंगे। लेकिन कौन साथ रहेगा? जो फॉलो करने वाले हैं। तो जो भी कर्म करते हो वह चेक करो कि ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ कर्म है या साधारण कर्म है? जब विशेष कर्म करने वाले बनेंगे तब ही विशेष ब्रह्मा आत्मा के साथ पार्ट बजायेंगे।
सदा मैं विश्व-कल्याणकारी आत्मा हूँ-इस स्मृति में रहने से जो भी कर्म करेंगे वह कल्याणकारी करेंगे। कल्याणकारी समझने से संगमयुग जो कल्याणकारी है वह भी याद आता है और कल्याणकारी बाप भी स्वत: याद आता है। सिर्फ कल्याणकारी नहीं, विश्व-कल्याणकारी बनना है। सबसे बड़े भाग्य की निशानी यह है जो संगमयुग पर साधारण आत्मा बने हो। अगर साहूकार होते तो बाप के नहीं बनते, सिर्फ कलियुग की साहूकारी ही भाग्य में मिलती। तो साधारण बनना अच्छा है ना। स्थूल धन से साधारण हो लेकिन ज्ञान-धन से साहूकार हो। तो खुशी है ना कि बाप ने सारे विश्व में से हमें अपना बनाया। सारा दिन खुशी में रहते हो? मुरली रोज़ सुनते हो? कभी मिस तो नहीं करते? मिस करते हो तो फॉलो फादर नहीं हुआ ना। ब्रह्मा बाप ने एक दिन भी मुरली मिस नहीं की। अच्छा!
मधुबन निवासी और ग्लोबल हॉस्पिटल वाले-दोनों ही अपनी अच्छी सेवा कर रहे हैं। ये ग्लोबल वाले शरीरों को निरोगी बनाए आत्मा को शक्तिशाली बना रहे हैं और मधुबन निवासी सभी को सन्तुष्ट करने की सेवा कर रहे हैं। दोनों की सेवा बापदादा देख हर्षित होते हैं। सेवाधारी भी अथक बन सेवा में सदा आगे बढ़ते रहते हैं। सभी को सेवा की मुबारक! सालगांव में भी अच्छी प्यार से सेवा कर रहे हैं, आपके प्यार की सेवा सफलता को समीप ला रही है। नीचे तलहटी वाले भी अच्छी सेवा कर रहे हैं। डबल विदेशी भी अच्छी सेवा कर रहे हैं। अच्छी कर रहे हैं और अच्छी रहेगी। विदेश में भी अच्छी सेवा का उमंग है। भारत और विदेश में सेवा वृद्धि को प्राप्त कर रही है और तीव्र गति से वृद्धि को प्राप्त करना ही है। अच्छा!
डबल विदेशी भाई-बहनों प्रति बापदादा का सन्देश
सब सेवा की लगन में मग्न रहने वाले हैं। स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति-दोनों का बैलेन्स बढ़ाते हुए आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ा रहे हैं। सेवा भी हो रही है और याद में भी बैठते ही हैं। लेकिन अभी बैलेन्स के ऊपर और अटेन्शन दिलाते चलो। कभी सेवा में बहुत आगे चले जाते, कभी स्व-उन्नति की भी लग्न लग जाती है। लेकिन दोनों साथ-साथ हों तो सफलता सहज और जो चाहते हैं वही हो जाती है। तो यही अटेन्शन दिलाते रहते हो ना। जिनको बैलेन्स रखना आता है वे सदा दुआए लेते हैं और दुआए देते हैं। बैलेन्स की प्राप्ति है-ब्लैसिंग। बैलेन्स वाले को ब्लैसिंग नहीं मिले-यह हो नहीं सकता। तो बैलेन्स की निशानी है-ब्लैसिंग। यदि नहीं मिलती तो बैलेन्स की कमी है। आप सभी की पालना किससे हुई? दुआओं से आगे बढ़े ना। कि मेहनत करनी पड़ी? माता, पिता और परिवार की दुआओं से सहज आगे बढ़ते गये और अभी भी दुआए मिल रही हैं। महारथियों की पालना क्या है? दुआए ना। आपको कितनी दुआए मिलती हैं! तो महारथी की पालना ही दुआए हैं। अच्छा!