31-12-93 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
नये वर्ष में सदा उमंग-उत्साह में उड़ना और सर्व के प्रति महादानी, वरदानी बन व्यर्थ को समाप्त करना
नव जीवन दे उड़ती कला में उड़ाने वाले, नव युग के रचयिता शिवबाबा अपने आधारमूर्त बच्चों प्रति बोले-
आज नव युग नई सृष्टि के रचता बापदादा अपने नवयुग के आधारमूर्त बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा के साथ-साथ आप सभी बच्चे सदा सहयोगी हो, इसलिये आप ही आधारमूर्त हो। दुनिया के हिसाब से आज का दिन वर्ष का संगम है। पुराना वर्ष जा रहा है और नया वर्ष आ रहा है। ये है वर्ष का संगम दिन और आप बैठे हो बेहद के संगमयुग पर। आप सभी नव वर्ष के साथ-साथ नव युग की सभी को मुबारक देते हो। एक दिन की मुबारक नहीं, लेकिन नव युग के अनेक जन्मों की मुबारक देते हो। इस संगम पर अच्छी तरह से अनुभव करते हो कि इस समय हम ब्राह्मण आत्माओं की नई जीवन है। नई जीवन में आ गये हो ना। ब्राह्मणों का संसार ही नया है। अमृतवेले से देखो तो नई रीत, नई प्रीत है। पुरानी दुनिया की दिनचर्या और नये जीवन ब्राह्मण जीवन की दिनचर्या में कितना अन्तर है! सब नया हो गया-स्मृति नई, वृत्ति नई, दृष्टि नई, सब बदल गया ना। और नई जीवन कितनी प्यारी लगती है! वैसे भी नई चीज़ सबको प्यारी लगती है। पुरानी चीज़ छोड़ना चाहते हैं और नई चीज़ लेना चाहते हैं। तो इस समय का यह छोटा-सा नया संसार है। संसार भी नया और संस्कार भी नये। इसलिये दुनिया वाले भी नये वर्ष को धूमधाम से मनाते हैं।
मनाने का अर्थ है उमंग-उत्साह में आना। उत्साह होता है, इसीलिये मनाने के दिन को उत्सव कहा जाता है। उत्साह से ही एक-दो को बधाइयां वा मुबारक देते हैं वा ग्रीटिंग्स देते हैं। आप ब्राह्मण आत्माओं के लिये हर दिन उत्सव है। सदा उत्सव अर्थात् उमंग-उत्साह में रहते हो। यह उमंग-उत्साह ही ब्राह्मण जीवन है। दुनिया की रीति प्रमाण विशेष दिन को मनाते हो, आज मनाने के लिये इकठ्ठे हुए हो ना। लेकिन आपका नव युग नई जीवन का उमंग-उत्साह सदा ही है। ऐसे नहीं कि 2 तारीख हो जायेगी तो उमंग-उत्साह खलास हो जायेगा, एक मास हो गया तो और खत्म हो जायेगा। हर दिन उमंग-उत्साह बढ़ता जाता है, कम नहीं होता। ऐसे है ना? कि अपने-अपने स्थान पर जायेंगे तो उत्साह खत्म हो जायेगा? हर घड़ी उमंग-उत्साह की है। क्योंकि उमंग-उत्साह ही आप ब्राह्मणों की उड़ती कला के पंख है। इस उमंग-उत्साह के पंखों से सदा उड़ते रहते हो। अगर कार्य अर्थ कर्म में भी आते हो फिर भी उड़ती कला की स्थिति से कर्मयोगी बन कर्म में आते हो। तो उड़ती कला वाले हो ना, तो बिना पंखों के तो उड़ नहीं सकते। यह उमंग-उत्साह उड़ती कला के पंख सदा साथ हैं। यह उमंग-उत्साह आप ब्राह्मणों के लिये बड़े से बड़ी शक्ति है। नीरस जीवन नहीं है। दुनिया वाले तो कहेंगे कि क्या करें, रस नहीं है, नीरस है, बेरस है और आप क्या कहेंगे उमंग-उत्साह का रस है ही है। कभी दिलशिकस्त नहीं हो सकते हो। सदा दिल खुश। कैसी भी मुश्किल बात हो, लेकिन उमंग-उत्साह मुश्किल को सहज कर देता है। उत्साह तूफान को भी तोहफा बना देता है, पहाड़ को भी राई नहीं लेकिन रूई बना देता है। उत्साह किसी भी परीक्षा वा समस्या को मनोरंजन अनुभव कराता है। इसलिये उमंग-उत्साह में रहने वाले नव युग के आधारमूर्त नव जीवन वाले ब्राह्मण आत्मायें हो। अपने को जानते हो। मानते भी हो या सिर्फ जानते हो? क्या कहेंगे? जानते भी हैं, मानते भी हैं और उसी में चलते भी हैं। सदा यह उत्साह रहता है कि कल्प पहले भी हम ही थे, अब भी हैं और अनेक बार हम ही बनेंगे। तो अविनाशी उत्साह हो गया ना। थे, हैं और सदा होंगे-तीनों काल का हो गया ना। पास्ट, प्रेजन्ट और फ्युचर-तीन काल हो गये। तो अविनाशी हो गया ना। बापदादा देख रहे थे कि अविनाशी उमंग-उत्साह में रहने वाली आत्मायें नम्बरवार हैं या सब नम्बरवन हैं?जब हैं ही निश्चयबुद्धि विजयी तो विजयी तो जरूर नम्बरवन होंगे ना, नम्बरवार थोड़ेही होंगे।
तो सदा नव जीवन के इस उत्साह में उड़ते चलो क्योंकि आप आधारमूर्त हो। सिर्फ अपने जीवन के लिये आधार नहीं हो लेकिन विश्व के सर्व आत्माओं के आधारमूर्त हो। आपकी श्रेष्ठ वृत्ति से विश्व का वातावरण परिवर्तन हो रहा है। आपके पवित्र दृष्टि से विश्व की आत्मायें और प्रकृति - दोनों पवित्र बन रही हैं। आपके दृष्टि से सृष्टि बदल रही है। आपके श्रेष्ठ कर्मों से श्रेष्ठाचारी दुनिया बन रही है। तो कितनी जिम्मेवारी है! विश्व की जिम्मेवारी का ताज पहना हुआ है ना? कि कभी भारी लगता है तो उतार देते हो? क्या करते हो? जो डबल लाइट रहते हैं उनको ये जिम्मेवारी का ताज भी सदा लाइट (हल्का) अनुभव होगा, भारी नहीं लगेगा। इस समय के ताजधारी भविष्य के ताजधारी बनते हैं। तो नये वर्ष में क्या करेंगे? अव्यक्त वर्ष भी मनाया, अव्यक्त वर्ष अर्थात् फरिश्ता बन गये, कि अभी बनना है? फरिश्ते क्या करते हैं?
अव्यक्त का अर्थ ही है फरिश्ता। वर्ष पूरा किया तो फरिश्ता बने ना, कि नहीं? अव्यक्त वर्ष अभी लम्बा कर दें? दो वर्ष का एक वर्ष बना दें? अभी और आगे बढ़ना है ना। अव्यक्त वर्ष मनाया, अब फरिश्ता बनकर क्या करेंगे?
सदा हर दिन, हर समय महादानी और वरदानी बनना है। तो यह वर्ष महादानी वरदानी वर्ष मनाओ। जो भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उस आत्मा को महादानी बन कोई न कोई शक्ति का, ज्ञान का, गुण का दान देना ही है। तीनों खज़ाने कितने भरपूर हो गये हैं! ज्ञान का खज़ाना भरपूर है, कि थोड़ा कम है? मास्टर नॉलेजफुल हो ना। तो ज्ञान का खज़ाना भी है, शक्तियों का खज़ाना भी है और गुणों का खज़ाना भी है। तीनों में सम्पन्न हो, कि एक में सम्पन्न हो, दो में नहीं? वर्तमान समय आत्माओं को तीनों की बहुत आवश्यकता है। सारे दिन में कोई न कोई दान देना ही है, चाहे ज्ञान का, चाहे शक्तियों का, चाहे गुणों का, लेकिन देना ही है। महादानी आत्माओं का बिना दान दिये हुए कोई भी दिन न हो। ऐसे नहीं, वर्ष पूरा हो जाये और कहो हमें तो चान्स नहीं मिला। चान्स लेना भी अपने ऊपर है कि चान्स देने वाला दे तब चान्स ले सकते हैं या स्वयं भी चांस ले सकते हैं लेना आता है? कि कोई देवे तो लेना आता है? कोई चान्स नहीं देगा तो क्या करेंगे? देखते, सोचते रहेंगे? सारे दिन में चाहे ब्राह्मण आत्माओं के, चाहे अज्ञानी आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में तो आते ही हो ना, जिसके भी सम्बन्ध-सम्पर्क में आओ उनको कोई न कोई दान अर्थात् सहयोग दो। दान शब्द का रूहानी अर्थ है सहयोग देना। तो रोज महादानी वा वरदानी बन वरदान कैसे देंगे? वरदान देने की विधि क्या है? आपके जड़ चित्र तो अभी तक वरदान दे रहे हैं। तो वरदान देने की विधि है-जो भी आत्मा सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उनको अपने स्थिति के वायुमण्डल द्वारा और अपने वृत्ति के वायब्रेशन्स द्वारा सहयोग देना अर्थात् वरदान देना। कैसी भी आत्मा हो, गाली देने वाली भी हो, निन्दा करने वाली हो लेकिन अपनी शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा, वृत्ति द्वारा, स्थिति द्वारा ऐसी आत्मा को भी गुण दान या सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। अगर कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आपके सामने आये तो आग में तेल डालेंगे या पानी डालेंगे? पानी डालेंगे ना कि थोड़ा तेल का भी छींटा डालेंगे? अगर क्रोधी के आगे आपने मुख से क्रोध नहीं किया, मुख से तो शान्त रहे लेकिन आंखों द्वारा, चेहरे द्वारा क्रोध की भावना रखी तो भी तेल के छींटे डाले। क्रोधी आत्मा परवश है, रहम के शीतल जल द्वारा वरदान दो। तो ऐसे वरदानी बने हो? कि जिस समय आवश्यकता है उस समय सहनशक्ति का तीर नहीं चलता है? अगर समय पर कोई भी अमूल्य वस्तु कार्य में नहीं लगी तो उसको अमूल्य कहा जायेगा? अमूल्य अर्थात् समय पर मूल्य कार्य में लगे। तो इस वर्ष क्या करेंगे? महादानी, वरदानी बनो। चैतन्य में संस्कार भरते हो तब तो जड़ चित्रों द्वारा भी वरदानी मूर्त बनते हो। संस्कार तो अभी भरने है ना, कि जिस समय मूर्ति बनेगी उस समय भरेंगे?
महादानी-वरदानी मूर्त बनने से व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जायेगा। क्योंकि जो महादानी हैं, वरदानी हैं, दूसरे को देने वाले दाता हैं तो दाता का अर्थ ही है समर्थ। समर्थ होगा तब तो देगा। तो जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जाता है। समर्थ स्थिति है स्विच ऑन होना। जैसे इस स्थूल लाइट का स्विच ऑन करना अर्थात् अन्धकार को समाप्त करना, ऐसे समर्थ स्थिति अर्थात् स्विच ऑन करना। तो स्विच ठीक है या कभी ठीक, कभी लूज हो जाता है या फ्यूज हो जाता है? ऑन करना तो आता है ना। आजकल तो छोटे-छोटे बच्चे भी स्विच ऑन करने में होशियार होते हैं। टी.वी. का स्विच ऑन कर देते हैं ना। तो स्विच ऑन होने से एक-एक व्यर्थ संकल्प को समाप्त करने की मेहनत से छूट जायेंगे। अव्यक्त फरिश्तों का यही श्रेष्ठ कार्य है। और क्या नवीनता करेंगे? अव्यक्त वर्ष में अपना चार्ट रखा था कि कभी रखा, कभी नहीं रखा? कभी-कभी वाले बने या सदा वाले बनें? कभी-कभी वाले ज्यादा हैं।
इस नये वर्ष में नया चार्ट रखना। क्या नया चार्ट रखेंगे? चार सब्जेक्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो। तो इस वर्ष का यही चार्ट रखना कि चारों ही सब्जेक्ट में-चाहे ज्ञान में, चाहे योग में, धारणा में, सेवा में, हर सब्जेक्ट में हर रोज कोई न कोई नवीनता लानी है। ज्ञान अर्थात् समझदार बनना, समझ देना और समझदार बन चलना। ज्ञान में भी नवीनता का अर्थ है जो अपने में कमी है उसको धारण किया तो नवीनता हुई ना। ना से हाँ हुई तो नया हुआ ना। इसी रीति से योग के प्रयोग में हर रोज कोई न कोई नया अनुभव करो। योग में बहुत अच्छे बैठे, बहुत अच्छा योग लगा, लेकिन नवीनता क्या हुई? परसेन्टेज बढ़ना भी नवीनता है। आज अगर आपकी परसेन्टेज योग की 50% है और कल 50 से वृद्धि हो गई तो नवीनता हो गई। ऐसे नहीं कि एक ही मास में 50-50 लगाते जाओ। तो चारों ही सब्जेक्ट में स्व के प्रगति में नवीनता, विधि में नवीनता, प्रयोग में नवीनता, औरों को सहज योगी बनाने में और परसेन्टेज बढ़ना माना नवीनता। किसको दु:ख दिया, किसको क्रोध किया-यह तो कॉमन चार्ट है। यह तो आपकी जो रॉयल प्रजा है वह भी रखती है। आप रॉयल प्रजा हो वा राजा हो? तो नवीनता से स्वत: ही तीव्र पुरूषार्थ के समीपता की अनुभूति होती रहेगी। समझा क्या चार्ट रखना है? और हर तीन मास में रोज का नहीं यहाँ भेजना, काम बढ़ जायेगा। इस वर्ष तो आपको इकॉनामी भी करनी है ना। यह वर्ष विशेष इकॉनॉमी का है। एक नामी और इकॉनामी। ज्ञान सरोवर बना रहे हो तो सबमें इकॉनामी करना। सब खज़ानों में, समय में भी, संकल्प में भी, सम्पत्ति में भी, सबमें इकॉनामी। तो हर तीन मास का स्वयं ही साक्षी हो कर चार्ट चेक करके शॉर्ट में अपना समाचार देना। हर तीन मास में देखना-प्रगति है या जैसे हैं वैसे ही हैं? गिरती कला में तो जाना नहीं। लेकिन ऐसा भी नहीं कि जैसा है, वैसा ही हो। पुरूषार्थ में मिडगेट नहीं बनना। मिडगेट अच्छा लगेगा! ऐसे नहीं कहना कि चाहते तो थे लेकिन क्या करें. . .! क्या-क्या नहीं कहना। ब्राह्मणों की यह भाषा है-क्या करें, कैसे करें, ऐसा करें तो क्या. . . लेकिन दूसरों को भी सहयोग दो कि ऐसे करो। समझा क्या चार्ट रखना है? अब देखेंगे कौन-कौन क्या-क्या करता है?
बापदादा स्नेह के कारण नाम एनाउन्स नहीं करते हैं। किसने क्या-क्या किया, जानते तो हैं ना। आजकल टी.वी. का फैशन है बापदादा के पास भी टी.वी. है। बापदादा जानते हैं जो पिछले वर्ष काम दिया वो किसने कितना किया?नाम एनाउन्स करें-हाफ कास्ट कितने रहे, फुल कॉस्ट कितने रहे?
तो इस वर्ष महादानी-वरदानी मूर्त स्वयं प्रति भी और सर्व प्रति भी बनो और हर रोज कोई न कोई नवीनता अर्थात् प्रोग्रेस अवश्य करो। तो ये हुआ स्व के पुरूषार्थ के प्रति। सेवा में क्या करेंगे? सेवा में भी नवीनता लानी है ना। मेले भी बहुत कर लिये, प्रदर्शनियां तो अनगिनत कर लीं, सेमीनार-कोन्फेरेंस भी बहुत की, अभी आवाज बुलन्द करने वाले माइक तो तैयार करने ही हैं लेकिन उसकी विधि क्या है? वैसे पहले भी सुनाया है लेकिन किया कम है। सेवा की रिजल्ट में देखा गया है कि बड़े निमित्त आत्माओं को समीप लाने के पहले चाहे कोई नेता है, चाहे कोई बड़े इन्डस्ट्रियलिस्ट हैं, चाहे कोई बड़े ऑफीसर हैं, लेकिन उन्हों को समीप लाने का साधन है उन्हों के सेक्रेटरी को अच्छी तरह से समीप लाओ। आप लोग बड़ों के ऊपर टाइम देते हो। वो अच्छा-अच्छा कहकर फिर सो जाते हैं। उन्हों को फिर जगाने के लिये इतना टाइम तो मिलता नहीं, न वो देते हैं, न आप जा सकते हो, इसलिये सेक्रेटरी जो होते हैं वो बदलते भी नहीं हैं, बड़े तो सब बदल भी जाते हैं। आज एक मिनिस्टर की सेवा करते हो और कल वो प्रजा बन जाता है। सेक्रेटरी काफी सहयोगी बन सकते हैं। तो किसी भी वर्ग की सेवा में इस वर्ष विशेष सेक्रेटरी, मैनेजर्स या प्राइवेट असिस्टेन्ट जो भी शक्तिशाली हों, बड़ों के समीप हों, उन आत्माओं की सेवा विशेष करो।
दूसरी बात, पहले भी इशारा दिया है कि वर्तमान समय ‘कम खर्चा और नाम बाला’ उसकी विधि है कि जो भी छोटी या बड़ी संस्थायें हैं, एसोसिएशन्स हैं उन्हों से सम्बन्ध-सम्पर्क रखो, बनी-बनाई स्टेज पर नाम बाला करो। कम खर्चा, नाम बाला। करते हो लेकिन और तीव्र गति से। हर देश में या हर गांव में या हर जिले में जो भी भिन्न-भिन्न प्रकार के एसोसिएशन्स हैं या बहुत वर्ग के कार्य करने वाले हैं, कोन्फेरेंस करने वाले हैं या सम्मेलन करते हैं तो बनी-बनाई स्टेज पर सन्देश दो। तो समय और मेहनत, दोनों बच जायेंगी। अभी इसको तीव्र गति में लाओ। चेक करो कि जिस देश के या जिस स्थान के निमित्त बने हैं उस स्थान की कोई भी संस्था वंचित नहीं रह जाये। क्योंकि वर्तमान समय वायुमण्डल परिवर्तन हो गया है। अभी डर कम है, स्नेह ज्यादा है, अच्छा मानते हैं। अच्छा बनते नहीं हैं लेकिन अच्छा मानते हैं। इसलिये इस दो प्रकार की सेवा को और अन्डरलाइन करो तो सहज माइक तैयार हो जायेंगे। नया वर्ष शुरू किया है तो नया विधि और विधान भी चाहिये ना।
इस नये वर्ष का अमृतवेले सदा यह स्लोगन इमर्ज करना कि ‘‘सदा उमंग-उत्साह में उड़ना है और दूसरों को भी उड़ाना है।’’ बीच-बीच में चेक करना। ऐसे नहीं कि अमृतवेले चेक करो और सारा दिन मर्ज कर दो। फिर रात को सोचो कि आज का दिन तो ऐसे ही रहा। नहीं, बीच-बीच में चेक करो, इमर्ज करो कि उमंग-उत्साह के बजाय कोई और रास्ते पर तो नहीं चले गये? उड़ती कला के बजाय और किसी कला ने तो अपने तरफ आकर्षित नहीं किया? अच्छा!
चारों ओर के नव जीवन अनुभव करने वाले सर्व ब्राह्मण बच्चों को, सदा नव युग के आधारमूर्त श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा संकल्प, बोल और कर्म द्वारा महादानी-वरदानी आत्माओं को, सदा स्वयं की स्थिति द्वारा औरों की परिस्थिति को भी सहज बनाने वाली समर्थ आत्माओं को, सदा हर दिन स्वयं में प्रगति अर्थात् नवीनता अनुभव करने वाले समीप आत्माओं को, सदा एकनामी और इकॉनामी करने वाले बाप समान समीप आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दादियों से मुलाकात: -
निमित्त आत्मायें हर समय प्रत्यक्षफल खाने वाली। भविष्य तो आपके लिये निश्चित है ही , वह तो होना ही है। लेकिन प्रत्यक्ष फल कितना प्यारा है! अभी-अभी किया और अभी-अभी श्रेष्ठ प्राप्ति की अनुभूति करते ही रहते हो। सबसे श्रेष्ठ प्रत्यक्ष फल है-समीपता का अनुभव होना और समीपता की निशानी है-समान बनना। प्रत्यक्ष फल खाने वाले हो इसीलिये सदा हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी हो। कोई भी पूछेगा कैसे हो तो क्या कहेंगे? कहेंगे हेल्दी भी हैं, वेल्दी भी हैं और हैप्पी भी हैं। तो जैसे साकार दुनिया में आजकल कहते हैं ना कि फल खाओ तो तन्दरूस्त रहेंगे। हेल्दी रहने का साधन फल बताते हैं। और आप तो हर सेकण्ड प्रत्यक्ष फल खाते ही रहते हो, मिलता ही रहता है। तो सदा एवरहेल्दी हैं ही। बापदादा ने सुनाया था ना अगर ब्राह्मण बच्चों से कोई पूछे-क्या हाल है तो क्या कहेंगे? खुशहाल है। और चाल क्या है? फरिश्तों की चाल। फरिश्तों की चाल है और खुशहाल है। (सभा से पूछते हुए) सभी ऐसे हो ना या कभी कोई हालचाल में फर्क पड़ जाता है? एक-दो से मिलते हैं तो क्या पूछते हैं? ‘क्या हालचाल है?’ तो ब्राह्मण अर्थात् खुशहाल और फरिश्तों की चाल में सदा उड़ने वाले। तो नये वर्ष में हर सेकण्ड, हर संकल्प में खुशहाल रहना है। बेहाल नहीं, खुशहाल। नाचो, गाओ। नाचना, गाना आता है ना। तो गाओ और नाचो और क्या करना है? ब्रह्मा भोजन खाओ और नाचो और गाओ। कहाँ भी हो लेकिन याद में बनाते हो, याद में खाते हो तो ब्रह्मा भोजन है। तो ठीक है? सब अच्छे से अच्छा है।
अच्छा, डबल विदेशी डबल खुश होते हैं क्या? ऐसे नहीं-खुश भी बहुत हो और फिर कभी उदास भी बहुत हो जाओ, ऐसे नहीं करना। इस वर्ष में उदास या अकेलापन या व्यर्थ भाव लाना ही नहीं है। तब तो नई दुनिया को समीप लायेंगे ना। अच्छा! नये वर्ष में नया उमंग है, नया उत्साह है। अभी सभी को ऐसे नचाते-गाते रहना। अच्छा! हर समय मुबारक है ना। अविनाशी मुबारक। अच्छा!
महादानी-वरदानी
मूर्त बनने से व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जायेगा। क्योंकि दाता का अर्थ ही है समर्थ। जो महादानी हैं, वरदानी हैं, दूसरे को देने वाले दाता हैं वो समर्थ होगें। जहाँ समर्थ है वहाँ व्यर्थ स्वत: ही खत्म हो जाता है।
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात
ग्रुप नं. 1
याद की छत्रछाया में रहो तो मायाजीत बन जायेंगे
सभी सदा अपने को बाप की छत्रछाया में रहने वाले अनुभव करते हो? बाप की याद ही छत्रछाया है। जितना याद में रहते हैं उतना ही साथ का भी अनुभव होता है। छत्रछाया में रहने वाले अर्थात् सदा सेफ रहने वाले। जब संकल्प से भी छत्रछाया से बाहर निकलते हो तब माया का वार होता है। छत्रछाया में रहना अर्थात् मायाजीत विजयी बनना। तो सभी मायाजीत हो या कभी हार, कभी जीत है? मातायें क्या समझती हो? हार जीत का खेल तो नहीं करते हो ना? सभी छत्रछाया में रहने वाले सदा मायाजीत हैं। ये आपका ही यादगार है। मर्यादा अर्थात् याद की लकीर के अन्दर रहने से कोई की हिम्मत नहीं-अन्दर आने की। याद की लकीर से निकले तो माया तो है ही होशियार। आप होशियार हो या माया होशियार है? कभी हार नहीं होती? सदा विजयी आत्माओं का यादगार क्या है? विजय माला विजयी रत्नों की यादगार है। अनेक बार विजयी बने हैं तब तो यादगार बना है ना। अनेक बार के विजयी हैं-इस स्मृति से सदा समर्थ रहेंगे। जब अनेक बार किया हुआ कार्य है तो क्वेश्चन नहीं उठेगा कि कैसे करें, क्या करें। कोई नई बात तो है ही नहीं। कोई नई बात सुनी जाती है या करनी होती है तो क्वेश्चन उठता है-ऐसे करें, कैसे करें..। तो आपकी आत्मा में अनगिनत बार करने के संस्कार भरे हुए हैं। क्या होगा-ये संकल्प नहीं, लेकिन अच्छा ही हुआ पड़ा है। बाबा कहा और बाप के साथ का अनुभव उसी सेकेण्ड, उसी संकल्प में होता ही है। सेकण्ड की बात है। इतनी शक्ति है ना। मास्टर सर्वशक्तिमान का अर्थ ही है कि शक्तियां जमा हैं तब मास्टर सर्वशक्तिमान हो। क्या भी हो जाये, कैसी भी परिस्थिति आ जाये लेकिन मास्टर सर्वशक्तिमान हैं और सदा रहेंगे कि ऐसे कहेंगे कि इतनी बात तो सोची नहीं थी, ऐसा भी होता है क्या! ऐसे तो नहीं कहेंगे? क्योंकि माया भी जानती है कि कोई ऐसे नये रूप से आयें जो विचलित हों लेकिन किसी भी रूप में, कैसी भी परिस्थिति आये, मास्टर सर्वशक्तिमान कभी हलचल में नहीं आ सकते। बात बड़ी नहीं, आप बड़े से बड़े हो। यह नशा है ना? सिर्फ बढ़ते रहना, न ठहरना, न पीछे रहना। आगे- आगे उड़ते जाना। उड़ती कला वाले हो ना या कभी-कभी थोड़ी ठहरती कला भी अच्छी लगती है? चलते-चलते, उड़ते-उड़ते थक जाते हो तो ठहर जाते हो! तो सदा उड़ने वाले, कोई माया की स्टेशन पर रूकने वाले नहीं। कभी कुछ माया की वस्तु आकर्षित करे और स्टेशन पर उतर जाओ तो! सभी पक्के हो? हिम्मत अच्छी है। हिम्मत रखेंगे तो मदद मिलेगी। अपना राज्य तो नहीं है ना कि ऑर्डर करो और चलो। दूसरे के राज्य में अपना राज्य स्थापन कर रहे हो। ये तो नशा है ना कि अपना राज्य आया कि आया! लक्ष्मी-नारायण का राज्य आयेगा कि आपका राज्य आयेगा? आप सभी का राज्य होगा। जो अपनी चीज़ होती है उसका नशा जरूर रहता है। ये अपना राज्य है। कभी भी दिल में ऐसा संकल्प नहीं आयेगा कि पता नहीं, राजा बनूँगा या प्रजा बनूँगा? राजा तो बनेंगे लेकिन प्रजा बनाई है? इतने सारे राजा बनेंगे तो प्रजा भी तो इतनी चाहिये। तो बापदादा भी बच्चों का निश्चय और नशा देख खुश होते हैं। इस नये साल में कुछ भी हो जाए लेकिन यह तीव्र पुरूषार्थ नहीं छोड़ना। ऐसे पक्के रहना। यह पत्र नहीं लिखना कि क्या करें.. माया आ गई.. ये हो गया... ये कर लिया..क्या पत्र लिखेंगे? बस, दो अक्षर ही लिखो-ध्.ख्. लम्बे-चौड़े पत्र नहीं लिखो। मैं भी खुश और सभी मेरे से खुश, बस यही लाइन लिखो। क्योंकि और भी सर्टीफिकेट दे ना, या सिर्फ स्वयं ही कहो कि मैं ठीक हूँ! अच्छा!
ग्रुप नं. 2
परमात्म प्यार ही ब्राह्मण जीवन का आधार है, न्यारे बनो तो इस प्यार के पात्र बन जायेंगे
सभी अपने को प्रवृत्ति में रहते न्यारे और प्यारे अनुभव करते हो? कि प्रवृत्ति में रहने से प्रवृत्ति के प्यारे हो जाते हो, न्यारे नहीं हो सकते हो? जो न्यारा रहता है वही हर कर्म में प्रभु प्यार अर्थात् बाप के प्यार का अनुभव करता है। अगर न्यारे नहीं रहते तो परमात्म प्यार का अनुभव भी नहीं करते और परमात्म प्यार ही ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है। वैसे भी कहा जाता है कि प्यार है तो जीवन है, प्यार नहीं तो जीवन नहीं। तो ब्राह्मण जीवन का आधार है ही परमात्म प्यार और वह तब मिलेगा जब न्यारे रहेंगे। लगाव है तो परमात्म प्यार नहीं। न्यारा है तो प्यार मिलेगा। इसीलिये गायन है जितना न्यारा उतना प्यारा। वैसे स्थूल रूप में लौकिक जीवन में अगर कोई न्यारा हो जाये तो कहेंगे कि ये प्यार का पात्र नहीं है। लेकिन यहाँ जितना न्यारा उतना प्यारा। जरा भी लगाव नहीं, लेकिन सेवाधारी। अगर प्रवृत्ति में रहते हो तो सेवा के लिये रहते हो। कभी भी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्म बन्धन है .. लेकिन सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्म-बन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता रहता है। बाप ने डायरेक्शन दिया है उसी श्रीमत पर रहे हुए हो, अपने हिसाब किताब से नहीं। कर्मबन्धन है या सेवा का बन्धन है .. उसकी निशानी है अगर कर्म बन्धन होगा तो दु:ख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो दु:ख की लहर नहीं आयेगी, खुशी होगी। तो कभी भी किसी भी समय अगर दु:ख की लहर आती है तो समझो कर्मबन्धन है। कर्मबन्धन को बदलकर सेवा का बन्धन नहीं बनाया है। परिवर्तन करना नहीं आया है। विश्व सेवाधारी हैं, तो विश्व में जहाँ भी हो तो विश्व सेवा अर्थ हो। यह पक्का याद रहता है या कभी कर्मबन्धन में फंस भी जाते हो? सेवाधारी कभी फंसेगा नहीं। वो न्यारा और प्यारा रहेगा। समझते तो हो कि न्यारे रहना है लेकिन जब कोई परिस्थिति आती है तो उस समय न्यारे रहो। कोई परिस्थिति नहीं है, उस समय तो लौकिक में भी न्यारे रहते हो। लेकिन अलौकिक जीवन में सदा ही न्यारे। कभी-कभी न्यारे नहीं, सदा ही न्यारे। कभी-कभी वाले तो राज्य भी कभी-कभी करेंगे। सदा राज्य करना है तो सदा न्यारा भी रहना है ना। इसलिए सदा शब्द को अन्डरलाइन करो। सब संस्कार अभी भरने हैं। अगर अभी कभी-कभी के संस्कार भरे तो वही भरे हुए संस्कार ही काम करेंगे। जैसे रिकॉर्ड भरते हैं तो अगर थोड़ा भी नीचे ऊपर भर दिया तो वैसे ही भर जायेगा ना। तो संगम पर ही 84 जन्मों के श्रेष्ठ राज्य करने के ऊंचे पद के संस्कार भरते हो इसलिए अभी से हर पुरूषार्थ की सबजेक्ट में सदा शब्द देखो। चल रहे हैं, कर रहे हैं... नहीं, चल रहे हैं लेकिन किस गति से चल रहे हैं, कर रहे हैं लेकिन कैसा कर्म कर रहे हैं? यह तो चेक करना है ना।
तो न्यारे रहने की निशानी है-प्रभु प्यार की अनुभूति और जितना प्यार होता है उतना अलग नहीं होंगे, सदा साथ रहेंगे, प्यार उसको ही कहा जाता है जो साथ रहे। तो परमात्म प्यार अर्थात् सदा परमात्म साथ हो। कभी अपने को अकेले तो नहीं समझते हो? बाप साथ है ना। जब बाप साथ है तो बोझ अपने ऊपर नहीं उठाओ। बोझ बाप को देकर हल्के हो जाओ। बोझ रखते हो तो परेशान होते हो। हल्के रहो तो उड़ते रहेंगे। सब-कुछ बाप के हवाले कर दो। जब कुछ है ही नहीं तो बोझ काहे का? कुछ रखा है तभी बोझ है, तभी परेशानी है। बाप के हवाले नहीं किया है, थोड़ा छिपाकर, जेबखर्च रख लिया है क्या? जेब खर्च होता है तो कभी-कभी काम में आ जाता है। तो माताओं ने जेबखर्च रखा है? वैसे भी माताओं की आदत होती है-साड़ी में गठरी बांध कर रख लेती हैं। साड़ी के कोने में भी बांध लेती हैं। तो अच्छी तरह से देखो कहाँ छिपाकर रखा तो नहीं है? बाप के हवाले कर लिया अर्थात् नष्टोमोहा हो गये? पाण्डव नष्टोमोहा हैं? अच्छा नष्टो क्रोध हैं? नष्टो रोब हैं या थोड़ा-थोड़ा रोब आ जाता है? अधिकारी समझते हैं तो रोब आ जाता है। तो सिर्फ नष्टोमोहा नहीं, नष्टोक्रोध भी होना है। रोब भी नहीं। निर्मान। तो इस वर्ष क्या करेंगे? थोड़ा-थोड़ा रोब को छुट्टी देंगे? साल पूरा हुआ, रोब भी पूरा हुआ कि कभी-कभी उसको दोस्त बना लेंगे? काम की चीज़ नहीं है ना। ऐसे तो नहीं रोब तो करना पड़ेगा ना!
तो नष्टोमोहा अर्थात् न्यारा और प्यारा। रहते हुए भी न्यारा। तो मातायें सभी हिम्मत वाली हो? इस वर्ष में मोह नहीं आयेगा? मोह तो आधा कल्प का साथी है, ऐसे कैसे चला जायेगा! देख लिया ना नष्टोमोहा बनने से क्या होता और मोह रखने से क्या होता? तो देखेंगे अभी इस नये वर्ष में क्या कमाल करते हैं?
ग्रुप नं. 3
टाइटल की स्मृति से उसी स्थिति में स्थित होने का अनुभव करो
अपने को सदा स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा अनुभव करते हो? स्व का दर्शन अर्थात् स्व की पहचान। अच्छी तरह से स्व को पहचान लिया कि मैं कौन हूँ? अपने को अच्छी तरह से पहचाना है? सिर्फ मैं आत्मा हूँ-यह जानना ही जानना नहीं है लेकिन मैं कौन-सी आत्मा हूँ? ये स्मृति रहती है? आपके कितने टाइटल हैं? (बहुत हैं) तो टाइटल याद रहते हैं या भूल जाते हैं? कभी याद रहते हैं, कभी भूल जाते हैं? माया हार भी खिलाती रहे और कहते रहो कि मैं महावीर हूँ, ऐसे तो नहीं? क्योंकि जो टाइटल बाप द्वारा मिले हैं वह हैं ही स्थिति में स्थित होने के लिये। तो जैसे टाइटल याद आये वैसी स्थिति बन जाये। वैसी स्थिति बनती है या हिलती रहती है? जैसे लौकिक दुनिया में अगर कोई टाइटल मिलता है तो टाइटल के साथ-साथ वह सीट भी मिलती है ना। समझो जज का टाइटल मिला, तो वह जज की सीट भी मिलेगी ना। अगर जज की सीट पर नहीं बैठे तो कौन मानेगा कि ये जज है। अगर स्थिति नहीं है और सिर्फ बुद्धि में वर्णन करते रहते हो कि मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ, मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ और परदर्शन भी हो रहा है तो सीट पर सेट नहीं हुए ना। तो जो टाइटल स्मृति में लाते हो वैसी समर्थ स्थिति अवश्य चाहिये-तब कहेंगे कि हाँ यह स्वदर्शन चक्रधारी है, यह हीरो एक्टर है। एक्ट साधारण हो और कहे कि यह हीरो एक्टर है तो कौन मानेगा? और सदा ये याद रखो कि ये टाइटल देने वाला कौन? दुनिया में कितना भी बड़ा टाइटल हो लेकिन आत्मा, आत्मा को देगी। चाहे प्रेजीडेन्ट है या प्राइम मिनिस्टर है, लेकिन है कौन? आत्मा है ना। संगम पर स्वयं बाप बच्चों को टाइटल देते हैं। कितना नशा चाहिये! यह रूहानी नशा रहता है? देहभान का नशा नहीं। क्रोध कर रहे हैं और कहे कि मैं तो हूँ ही नूरे रत्न, ऐसा नशा नहीं। ऐसे तो नहीं करते हो? मातायें क्या करती हैं? घर में खिटखिट कर रहे हो और कहो कि हम तो हैं ही बाबा की अचल-अडोल आत्मायें! ऐसे तो नहीं करते? तो सदा अपने भिन्न-भिन्न टाइटल्स को स्मृति में रखो और उस स्थिति में स्थित होकर चलो फिर देखो कितना मजा आता है।
स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् सदा मायाजीत। स्वदर्शन चक्रधारी के आगे माया हिम्मत नहीं रख सकती। तो कभी-कभी माया आती है या चली गई? तो माया हार खाकर जाती है या हार खिला कर जाती है? माया से हार होती है? स्वदर्शन चक्र का गायन कल्प पहले का भी गाया हुआ है। तो स्वदर्शन चक्र के आगे कोई ठहर नहीं सका। तो कल्प पहले स्वदर्शन चक्रधारी कौन बने थे? आप थे या दूसरे कोई थे? कल्प पहले भी थे, और अब भी हैं और सदा आप ही होंगे। ये आपका पक्का अनुभव है ना?
अच्छा, ये वेरायटी ग्रुप है। लेकिन इस समय सभी कौन हो? कहाँ के हो? राजस्थान के हो, कर्नाटक के हो? या मधुबन के हो? आप सबकी ओरीजिनल एड्रेस कौन-सी है? माउण्ट है? मधुबन वाले हो ना। ये तो सेवा के कारण अलग-अलग स्थान पर गये हो। आत्मा के नाते एड्रेस है परमधाम और ब्राह्मण आत्मा के नाते से एड्रेस है मधुबन। तो खुशी है ना कि हम मधुबन वाले हैं! कहीं भी सेवा अर्थ हो लेकिन अपना असली एड्रेस भूलते हैं क्या! चाहे कलकत्ता में भी रहने वाले हों लेकिन कहेंगे ओरीजिनल हम राजस्थान के हैं। तो ब्राह्मण अर्थात् मधुबन निवासी। और ऐसे समझने से कभी भी अपने हद के सेवा-स्थान से लगाव नहीं होगा। तो सदैव प्रवृत्ति में रहते लक्ष्य रखो कि सेवा-स्थान पर सेवा के लिये हैं। जहाँ भी रहते हो वहाँ का वातावरण सेवा-स्थान जैसा बनाया है कि सेन्टर का वातावरण और है, घर का वातावरण और है? थोड़ा-थोड़ा मेरापन आ जाता है? कभी भी यह गृहस्थी का घर है, प्रवृत्ति है, ऐसे नहीं सोचो। प्रवृत्ति का अर्थ ही है पर-वृत्ति में रहने वाले, पर अर्थात् मेरापन नहीं। बाप का है तो पर-वृत्ति। ऐसे रहते हो कि बनाने की कोशिश कर रहे हो! क्या विनाश तक कोशिश करेंगे? कोई भी आये तो अनुभव करे कि ये न्यारे और प्रभु के प्यारे हैं। क्योंकि अभी अलौकिक हो गये ना। तो वातावरण भी लौकिक नहीं, अलौकिक। अलौकिक अर्थात् लौकिक से न्यारा। अभी देखेंगे नये वर्ष में नवीनता लाने में कौन नम्बर आगे लेते हैं? सभी नम्बरवन बनेंगे। कहना और करना-दोनों ही समान हो। ऐसे नहीं, कहे बहुत और करे थोड़ा। कहना और करना समान-इसी को ही ब्राह्मण कहा जाता है।
ग्रुप नं. 4
तीनों काल अच्छे से अच्छा होना ही ब्राह्मण जीवन की जन्म-पत्री है
अपने को नव जीवन अर्थात् ब्राह्मण जीवन वाली आत्मायें अनुभव करते हो? सभी ब्राह्मण आत्मायें हो? तो नये जीवन में आपकी जन्म पत्री बदल गयी है या थोड़ी-थोड़ी पुरानी भी है? तो ब्राह्मणों की जन्म पत्री क्या है? आदि देवी-देवता हो और अभी बी.के. हो ना, पक्के? तो आपकी रोज की जन्म पत्री क्या है? गुरूवार अच्छा है, बुद्धवार अच्छा नहीं है, क्या कहेंगे? (हर दिन अच्छा है) तो जन्म पत्री बदल गयी ना। ब्राह्मणों की जन्म पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छा है। जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत-बहुत अच्छा। सिर्फ कहने मात्र नहीं लेकिन ब्राह्मण जीवन की जन्म पत्री सदा ही अच्छे से अच्छी है। सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींची हुई है। अपने तकदीर की लकीर देखी है? अच्छी है ना? कितने जन्मों की गैरेन्टी है? 21 या 84 जन्म? 84 जन्म में तो विदेशी बन गये। (सर्विस अर्थ बने) बहुत अच्छा उत्तर दिया। डबल विदेशी इसलिये बने कि विदेश में सेवा हो रही है। आपको भारत सेवाधारी नहीं कहते हैं, विश्व सेवाधारी कहते हैं। कोई भी स्थान नहीं छूटना चाहिये। इसलिये अलग-अलग स्थान पर पहुँचे हो। अगर आप लोग अपने देश में नहीं होते तो भारत से कहाँ तक जा सकते थे? इसलिये सेवा अर्थ पहुँच गये हैं। ये नशा रहता है? तो सेवा करते हो ना? क्योंकि ब्राह्मण जीवन का लक्ष्य ही है याद और सेवा। याद के बिना भी रह नहीं सकते और सेवा के बिना भी रह नहीं सकते। याद और सेवा ऐसे नेचुरल हो जाये जैसे शरीर में श्वास नेचुरल है और कितनी आवश्यक है। ऐसे ब्राह्मण जीवन में याद और सेवा नेचुरल और आवश्यक है।
बहुत भाग्यवान हो जो भाग्यविधाता ने आपके भाग्य की रेखा श्रेष्ठ बना दी। भाग्यविधाता को अपना बना लिया। बनाया है ना! सभी क्या कहेंगे? ‘हमारा बाबा’। ‘मेरा’ तो कभी भूलता नहीं है। बापदादा डबल विदेशियों को देखकर खुश होते हैं कि कितना दूर-दूर रहते भी बाप के समीप पहुँच गये। देह से तो दूर हो लेकिन दिल से कितने समीप हो! सदा कहाँ रहते हो? बाप के दिल तख्त पर। सबसे महत्व दिल का होता है ना। अगर किसी से प्यार होता है तो कहेंगे दिल में समाये हुए हो। और आप लोग भी जब यादप्यार भेजते हो तो हार्ट ही भेजते हो ना। तो समीप रहना अर्थात् दिल तख्तनशीन होना। सभी दिल तख्तनशीन हैं कि कोई बांहों में हैं, कोई गले में हैं? दिल को ही दिल तख्त कहा जाता है। जो अभी दिल तख्तनशीन होते हैं वही विश्व के राज्य के तख्तनशीन बनते हैं। तो डबल विदेशी भी राज्य सिंहासन पर बैठेंगे ना? अच्छा। हिम्मत अच्छी है। हिम्मत का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाना है। सदा हिम्मत से आगे उड़ते रहना।
ग्रुप नं. 5
सर्व खज़ाने सफल करना ही सफलता प्राप्त करने का सहज साधन है
सभी अपने को सफलता मूर्त अनुभव करते हो? सफलता ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार है-ऐसे अनुभव करते हो? सदा सफलता सहज रहे उसका साधन वा सबसे सहज विधि क्या है? निश्चय में भी मेहनत करनी पड़ती है, साथ निभाने में भी मेहनत करनी पड़ती है। सबसे सहज साधन है - सर्व खज़ानों को सफल करते जाओ तो सफलता आपेही आपके आगे आयेगी। सफल करना ही सफलता प्राप्त करना है। तो सफल करना आता है? अच्छा, समय को सफल करते हो तो उसकी सफलता आपको क्या मिलती है? जो यहाँ समय सफल करते हैं उन्हें सतयुग, त्रेता तो क्या लेकिन सारे कल्प का समय या तो राज्य अधिकारी बनते हो या पूज्य अधिकारी बनते हो। यहाँ एक जन्म के समय को सफल करते हो तो कितने जन्म के लिए समय सफल हो जाता है। वैसे जो भी खज़ाने मिले हैं उन खज़ानों को सफल करते जाओ। कितने खज़ाने हैं! तो सारे दिन में सभी खज़ाने सफल करते हो या कभी कोई करते हो, कभी कोई करते हो?
इस वर्ष में क्या करेंगे? सभी खज़ाने यूज़ करेंगे ना। क्योंकि जितना सफल करेंगे उतना बढ़ता जायेगा। यहाँ कम नहीं होते हैं, बढ़ते हैं। तो सभी अपने को सन्तुष्ट मणियां समझते हो? कभी असन्तुष्ट नहीं होते हो? क्योंकि ब्राह्मण जीवन का सबसे बड़े से बड़ा खज़ाना है सन्तुष्ट रहना। जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ सब-कुछ है। तो जहाँ सर्व प्राप्तियां हैं वहाँ सन्तुष्टता होगी ही।
(रात्रि 12 बजे बापदादा ने मोमबत्तियां जलाई तथा केक काटी, फिर सभी से मिलते हुए नये वर्ष की मुबारक दी)
यह ग्रुप तो लकी है ही जो दिल से भी नजदीक हो और नयनों के भी नजदीक बैठे हो। वैसे भी बापदादा ने कहा कि सभी सन्तुष्टता के रत्न हो। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो, इसका गीत कौन सा गाते हो? पाना था वह पा लिया। अच्छा, यू.के.को क्या वरदान है? ओ.के.। तो ओ.के.हैं? औरों को भी ओ.के.बनाते हो या स्वयं रहते हो? अभी इस वर्ष में हर रोज किसी न किसी प्रकार से महादानी, वरदानी बनना है तो सदा दूसरों की भी सेवा करते रहना। लण्डन निवासी वा यू.के.निवासी श्रेष्ठ भाग्यवान हैं जो विशेष आत्माओं की पालना मिलती रहती है। और सबसे पहले तुरत दान महापुण्य मुरली भी लण्डन में पहुंचती है।
अनेक समाचार ऐसे होते हैं जो भारत वालों को नहीं पहुँचते हैं लेकिन लन्दन में पहुँचते हैं। क्योंकि लन्दन फॉरेन का पहला-पहला सेन्टर खुलने का निमित्त बना। तो अभी लन्दन वाले क्या करेंगे? सब सब्जेक्ट में नम्बरवन।
फिर भी बापदादा सभी विदेश में सेवा करने वालों को मुबारक देते हैं कि मेहनत और उमंग अच्छी है। हिम्मत के कारण सफलता मिल रही है और आगे बढ़ते ही रहेंगे। हिम्मत सदा साथ रखना। जहाँ हिम्मत है वहाँ बाप की मदद है ही।
बापदादा ने विदाई के समय सभी बच्चों को नये वर्ष की मुबारक दी
चारों ओर के सर्व बच्चों के नये वर्ष के उमंग-उत्साह के याद-प्यार और अच्छी-अच्छी गिफ्ट भी पाई। बापदादा सभी बच्चों को, पद््मापदम भाग्यवान आत्माओं को पद््मापदम गुना याद-प्यार दे रहे हैं। इस संगमयुग की और नई दुनिया की दोनों की मुबारक दे रहे हैं। जैसे नये वर्ष के आरम्भ में उत्सव मनाते भी हैं और साथ-साथ एक-दो में मुख भी मीठा करते हैं। तो आप सभी कौन-सी मिठाई खिलायेंगे? हर समय, हर दिन सभी को दिलखुश मिठाई खिलाते रहना। ये मीठा तो सभी खा सकते हैं ना। खाते भी रहना और खिलाते भी रहना। सदा जिस भी आत्मा से सम्पर्क-सम्बन्ध में आओ तो पहले मुस्कराते मिलना और फिर दिलखुश मिठाई खिलाकर मिलते रहना। और गिफ्ट क्या देंगे? गुणों की गिफ्ट देना, शक्तियों की गिफ्ट देना। आपके पास बहुत गिफ्ट हैं ना। स्टॉक है? तो खूब गिफ्ट बांटते रहना। सदा उमंग-उत्साह में उड़ते रहना और उड़ाते रहना। नये वर्ष की गुडमोर्निंग।
अच्छा, ओम् शान्ति।