17-11-94   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


हर गुण व शक्ति के अनुभवों में खो जाना अर्थात् खुशनसीब बनना

आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार स्वरूप बच्चों से मिलन मना रहे हैं। बाप का भी प्यार बच्चों से अति है और बच्चों का भी प्यार बाप से अति है। ये प्यार की डोर बच्चों को भी खींचकर लाती है और बाप को भी खींच कर लाती है। बच्चे जानते हैं कि ये परमात्म­प्यार कितना सुखदायी है। अगर एक सेकण्ड भी प्यार में खो जाते हो तो अनेक दु:ख भूल जाते हैं। सुख के झूले में झूलने लगते हो। ऐसा अनुभव है ना? बापदादा देख रहे हैं कि दुनिया के हिसाब से आत्मायें कितनी साधारण हैं लेकिन भाग्य कितना श्रेष्ठ है! जो सारे कल्प में, चाहे कोई धर्म आत्मा हो, महान आत्मा हो, लेकिन ऐसा श्रेष्ठ भाग्य न तो किसी को प्राप्त है, न हो सकता है। तो अति साधारण और अति श्रेष्ठ भाग्यवान! बापदादा को साधारण आत्मायें ही पसन्द हैं - क्यों? बाप स्वयं भी साधारण तन में आते हैं। कोई राजा के तन में या रानी के तन में नहीं आते। कोई धर्मात्मा, महात्मा के तन में नहीं आते। साधारण तन में स्वयं भी आते हैं और बच्चे भी साधारण ही आते हैं। आज का करोड़पति भी साधारण है। साधारण बच्चों में भावना है। और बाप को भावना चाहिये, देह भान वाले नहीं चाहिए। जितना बड़ा होगा उतना भावना नहीं होगी लेकिन भान होगा। तो बाप को भावना का फल देना है और भावना साधारण आत्माओं में होती है। नामीग्रामी आत्माओं के पास न भावना है, न समय है। तो बाप देख रहे हैं कि कितने साधारण और कितने श्रेष्ठ भावना का फल प्राप्त कर रहे हैं। इसलिये ड्रामानुसार संगमयुग में साधारण बनना- ये भी भाग्य की निशानी है। क्योंकि संगम पर ही भाग्यविधाता भाग्य की श्रेष्ठ लकीर खींच रहे हैं और साथ­साथ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी बच्चों को दे दिया है। कलम मिली है ना? भाग्य की लकीर खींचना आता है? कितनी लम्बी लकीर खींची है? छोटी­मोटी तो नहीं खींच ली? जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो। खुली छुट्टी है और सभी को छुट्टी है। चाहे नये हो, चाहे पुराने हो, सप्ताह कोर्स किया, बाप को पहचाना और बाप भाग्य की कलम दे देता है। यही परमात्म प्यार है। प्यार की निशानी क्या होती है? जो जीवन में चाहिये वह अगर कोई किसको देता है तो वही प्यार की निशानी है। तो बाप के प्यार की निशानी है - जो जीवन में चाहिये वो सर्व कामनायें पूर्ण कर देते हैं। सुख­शान्ति तो चाहिये ना! अगर कोई वस्तु एक­दो को देते हैं तो उससे सुख मिलता है ना? तो बाप सुख क्या देता लेकिन सुख का भण्डार आप सबको बना देते हैं। सुख का भण्डार है ना! पूरा स्टॉक है या एक कमरा, दो कमरा है! भण्डार है। जैसे बाप सुख का सागर है, नदी और तलाव नहीं है, सागर है, तो बच्चों को भी सुख के भण्डार का मालिक बना देता है। कोई सुख की कमी है क्या? कोई अप्राप्ति है? फिर यह नहीं कहना कि थोड़ी­सी शक्ति दे दो! ‘दे दिया’। ‘दे दो’ कहने की आवश्यकता ही नहीं है। बाप ने दे दिया है, सिर्फ उसको कार्य में लगाने की विधि चाहिये। और विधि भी बाप द्वारा अनेक प्रकार की मिलती है। सिर्फ उसको समय प्रति समय कार्य में लगाते नहीं हो इसीलिये होते हुए भी उसका लाभ नहीं ले सकते। कितना बड़ा भाग्य है! और कितना सहज मिला है! कोई मेहनत की है क्या? एक टांग पर खड़ा तो नहीं होना पड़ा ना? या सेकण्ड के दर्शन के लिए क्यू में खड़े हो-ऐसे तो नहीं है ना। आराम से बैठे हो ना। नीचे भी फोम पर बैठे हो। आराम से ही सहज श्रेष्ठ भाग्य बना रहे हो। यह नशा है ना? सभी नशे से कहेंगे कि भाग्य विधाता हमारा है। जब भाग्य विधाता आपका हो गया तो भाग्य किसको देगा?

भाग्य विधाता को अपना बनाया अर्थात् भाग्य के अधिकार को प्राप्त कर लिया। जिसको नशा है वो सदा यही अनुभव करते हैं कि भाग्य मेरा नहीं होगा तो किसका होगा? क्योंकि भाग्य विधाता ही मेरा है। इतना नशा है या कभी­कभी चढ़ता है, कभी उतरता है? संगम का समय ही कितना छोटा­सा है। और आप मैजारिटी तो सब नये हो। कितना थोड़ा समय मिला है! लेकिन ड्रामा में विशेष इस संगमयुग की ये विशेषता है कि कोई भी नया हो या पुराना हो, नये को भी गोल्डन चांस है-नम्बर आगे लेने का। तो नयों में उमंग है या समझते हो हमारे से आगे तो बहुत हैं, हम तो आये ही अभी हैं....। नहीं, ये खुली छुट्टी है - जितना आगे बढ़ना चाहें उतना बढ़ सकते हैं - सिर्फ अभ्यास पर अटेन्शन हो। कोई­कोई पुराने अलबेले हो जाते हैं और आप नये अलबेले नहीं होना तो आगे बढ़ जायेंगे। नम्बर ले लेंगे। नम्बर लेना है ना? फर्स्ट नम्बर नहीं, फर्स्ट डिविजन। फर्स्ट नम्बर तो ब्रह्मा बाप निश्चित हो गये ना। लेकिन फर्स्ट डिविजन में जितने चाहे उतने आ सकते हैं। तो सभी किस डिविजन में आयेंगे? सभी फर्स्ट में आयेंगे तो सेकण्ड में कौन आयेगा? मातायें किसमें आयेगी? फर्स्ट में आयेंगी? बहुत अच्छा। ‘आना ही है’ - यह दृढ़ निश्चय भाग्य को निश्चित कर देता है। पता नहीं.... आयेंगे, नहीं आयेंगे...., पता नहीं आगे चलकर कोई माया आ जाये..., माया बड़ी चतुर है - ऐसे व्यर्थ संकल्प कभी भी नहीं करना। जब सर्वशक्तिमान् साथ है तो माया तो उसके आगे पेपर टाइगर है। इसलिये घबराना नहीं। ‘पता नहीं’ का संकल्प कभी नहीं करना। मास्टर नॉलेजफुल बन हर कर्म करते चलो। साथ का अनुभव सदा ही सहज और सेफ रखता है। साथ भूल जाते हैं तो मुश्किल हो जाता है। लेकिन सभी का वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे - यही वायदा है ना? कि अकेले रहेंगे, अकेले जायेंगे? तो साथ का अनुभव बढ़ाओ। जानते हो कि साथ हैं, मानते भी हो लेकिन फर्क क्या पड़ता है? जानते भी हो, मानते भी हो लेकिन समय पर उसी प्रमाण चलते नहीं हो। माया का फोर्स ये जो कोर्स है उसको भुला देता है। लेकिन क्या माया बहुत बलवान है? वह बलवान है या आप बलवान हो? या कभी माया बलवान, कभी आप बलवान? आपकी कमज़ोरी माया है, और कुछ नहीं है। आपकी कमज़ोरी माया बनकर सामने आती है। जैसे शरीर की कमज़ोरी बीमारी बनकर सामने आती है ना, ऐसे आत्मा की कमज़ोरी माया बन करके सामना करती है। तो न कमज़ोर बनना है, न माया आनी है। लक्ष्य ही है - मायाजीत जगतजीत। कितने बार विजयी बने हो? अनगिनत बार, फिर भी घबरा जाते हो! कोई नई बात होती है तो कहा जाता है - नई बात थी ना, मुझे पता नहीं था इसीलिये घबरा गये। लेकिन एक तरफ कहते हो अनेक बार विजयी बने हैं। फिर क्यों घबराते हो? बाप का प्यार ही ये है कि हर बच्चा श्रेष्ठ आत्मा बन राज्य अधिकारी बने। प्रजा अधिकारी तो नहीं बनना है ना? तो राज्य अधिकारी अर्थात् हर कर्मेन्द्रिय जीत। अगर अपनी कर्मेन्द्रियों के ऊपर, मन­बुद्धि­संस्कार के ऊपर विजय नहीं तो प्रजा पर क्या राज्य करेंगे! अगर ऐसे राजे बने जो अपने ऊपर विजय नहीं पा सकते तो सतयुग भी कलियुग बन जायेगा। इसीलिये ये चेक करो कि मन­बुद्धि­संस्कार कन्ट्रोल में हैं? मन आपको चलाता है या आप मन को चलाने वाले हो? जब ये कम्पलेन्ट करते हो कि मेरा मन आज लगता नहीं, मेरा मन आज भटक रहा है तो ये मनजीत हुए? आज मन उदास है, आज मन और आकर्षण की तरफ जा रहा है - ये विजयी के संकल्प हैं? तो जो स्वयं पर विजय नहीं पा सकते हैं वो विश्व पर कैसे विजय प्राप्त करेंगे? इसलिये चेक करो कर्मेन्द्रिय जीत, मन जीत कहाँ तक बने हैं? अगर फर्स्ट डिविजन में आना है तो इस लक्षण से लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो।

बापदादा ने देखा कि बच्चे उमंग­उत्साह में भी रहते हैं, ज्ञान की जीवन अच्छी भी लगती है, ज्ञान सुनना­सुनाना इसमें भी अच्छे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन चलते­चलते अगर कमज़ोरी आती है तो उसका कारण क्या है? विशेष कारण है कि जो कहते हो, जो सुनते हो, उस एक­एक गुण का, शक्ति का, ज्ञान के पॉइन्ट्स का अनुभव कम है। मानो सारे दिन में स्वयं भी वा दूसरे को भी कितने बार कहते हो - मैं आत्मा हूँ, आप आत्मा हो, शान्त स्वरूप हो, सुख स्वरूप हो, कितने बार स्वयं भी सोचते हो और दूसरों को भी कहते हो। लेकिन चलते फिरते आत्मिक अनुभूति, ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, शान्त स्वरूप की अनुभूति, वो कम होती है। सुनना­कहना ज्यादा है और अनुभूति कम है। लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की होती है तो उस अनुभव में खो जाओ। जब कहते हो शान्त स्वरूप तो स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शान्ति की अनुभूति हो। एक­एक गुण का वर्णन करते हो, शक्तियों का वर्णन करते हो लेकिन शक्ति वा गुण समय पर अनुभव में आये। कई तो बोलते भी रहते हैं कि सहनशक्ति धारण करनी चाहिये, सहनशीलता अच्छी है, लेकिन अनुभूति नहीं होती। अनुभूति की कमी होने के कारण जितना चाहते हो उतना पा नहीं सकते। अगर सभी से पूछें कि जितना पुरूषार्थ होना चाहिये उतना है तो थोड़े हाँ कहेंगे। तो जितना मिल रहा है उतना जीवन में वा कर्म में अनुभव हो। सिर्फ सोचने में अनुभव नहीं हो लेकिन चलन में, कर्म में - शक्तियाँ, गुण स्वयं को भी अनुभव हो, दूसरों को भी अनुभव हो। कहते ही हो कि ज्ञान स्वरूप हैं। तो वह स्वरूप दिखाई देना चाहिये ना? और स्वरूप सदा होता है। स्वरूप कभी­कभी नहीं होता है। अज्ञानकाल की जीवन में यदि किसी का क्रोधी स्वरूप होता है तो जब भी कोई बात होगी तो वो स्वरूप दिखाई देता है, छिपता नहीं है। चाहे छोटी बात हो या बड़ी बात हो लेकिन जिसका जो स्वरूप होता है वह दिखाई देता है। स्वयं को भी अनुभव होता है और दूसरे को भी अनुभव होता है। क्या कहते हैं - ये है ही क्रोधी, इसका संस्कार ही क्रोध का है। तो संस्कार दिखाई देता है ना। ऐसे ये ज्ञान स्वरूप, शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप अनुभव में आये। तो अनुभवीमूर्त - ये है श्रेष्ठ पुरूषार्थ की निशानी। तो अनुभव को बढ़ाओ। जो कहा वो अनुभव किया? अगर अनुभव नहीं होता है तो उसका कारण ये है कि जो समय प्रति समय विधि मिलती है उस विधि के ऊपर अटेन्शन कम है? जितनाज्ञान को, शक्तियों को, गुणों को रिवाइज करते रहेंगे तो रियलाइज सहज होगा। रिवाइज नहीं करते तो रियलाजेशन भी कम है। सुना, बहुत अच्छा। लेकिन चलते फिरते रिवाइज होना चाहिये। जैसे दुनिया वाले कहते हैं कि कर्म ही योग है। कर्म ­ योग अलग नहीं मानते। कर्म ही योग मानते हैं। कर्म से योग लगाना, इसी को ही कर्मयोग समझते हैं। लेकिन कर्म और योग दोनों का बैलेन्स चाहिये। कर्म में बिजी रहना योग नहीं है। कर्म करते योग का अनुभव होना चाहिये। कर्म में बिजी हो जाते हैं तो कर्म ही श्रेष्ठ हो जाता है, योग किनारे हो जाता है। चलते­चलते यही अलबेलापन आता है। तो कर्म में योग का अनुभव होना-इसको कहा जाता है कर्मयोगी। मूल बात है अनुभवी स्वरूप बनो। एक­एक गुण के अनुभव में खो जाओ। शक्ति स्वरूप बन जाओ। आपके स्वरूप से शक्तियाँ दिखाई दें। अभी भी देखो, अगर कोई में कोई विशेष शक्ति होती है तो उसके लिये कहते हो - ये बहुत सहनशील स्वरूप है, इसमें समाने की शक्ति बहुत दिखाई देती है। तो कोई में दिखाई देती है, कोई में नहीं और कभी दिखाई देती है, कभी नहीं तो अटेन्शन कम हुआ ना। तो हर शक्ति, हर गुण, हर ज्ञान की पॉइन्ट्स आपके स्वरूप में अनुभव करें और वो तब होगा जब पहले स्वयं को अनुभव होगा। अगर स्वयं अनुभवी होगा तो दूसरे को उससे स्वत: ही अनुभव होगा। और जब अनुभव करते हो तो कितनी खुशी होती है! एक सेकण्ड भी अगर किसी गुण वा शक्ति का अनुभव होता है तो कितनी खुशी बढ़ जाती है और जब सदा अनुभवी स्वरूप होंगे तो सदा चेहरे पर खुशी की झलक, खुशनसीब की झलक अनुभव होगी। तो अनुभव को बढ़ाओ। विधि तो स्पष्ट है ना? अच्छा, सभी खुशनसीब तो हो ही लेकिन विशेष खुशी मनाने आये हो। तो सबको खुशी मिली है?

सब आराम से रहे हुए हो? मन आराम में है तो तन को आराम मिल ही जाता है। ये तो होना ही है, जितना स्थान बढ़ायेंगे उतना कम होना ही है। ये भावी है, उसको क्या करेंगे। और अच्छा है, रिहर्सल हो जाती है, जहाँ बिठाओ, जैसे बिठाओ, जैसे सुलाओ, इसकी रिहर्सल हो जाती है। तो पट में सोना अच्छा है, पटराजा बन गये ना। शास्त्र में तो पटरानी और पटराजा का बड़ा गायन है, आप तो बहुत सहज बन गये। कोई तकलीफ है? बापदादा और निमित्त आत्मायें सोचती तो यही हैं कि सब आराम से रहें लेकिन अगर ज्यादा संख्या में भी आराम लगता है तो खुशी की बात है। जहाँ भी रहे हुए हो, वहाँ खुश हो? कोई तकलीफ नहीं है, और बुलायें? सिर्फ एक सूचना चली जाये कि जो आना चाहे वो आ जाये, तो क्या करना पड़ेगा? अखण्ड तपस्या करनी पड़ेगी। खुशी की खुराक खाओ और अखण्ड योग करो फिर तो सभी आ सकते हैं। करेंगे? थक नहीं जायेगे, भूख नहीं लगेगी, सात दिन नहीं खायेंगे? सात दिन खाना नहीं मिलेगा! बापदादा ऐसा हठ कराना नहीं चाहते। सहजयोगी हो ना।

ये परमात्म मिलन कम भाग्य नहीं है! ये परमात्म मिलन का श्रेष्ठ भाग्य कोटो में कोई आप आत्माओं को ही मिलता है। अच्छा! मिल लिया ना! भक्ति में तो जड़ चित्र मिलता है और यहाँ चैतन्य में बाप बच्चों से मिलते भी हैं, रूहरिहान भी करते हैं। तो ये भाग्य कोई कम है! फिर भी आप सब लक्की हो, समय की गति बदलती जाती है। अभी फिर भी आराम से बैठकर सुन रहे हो। आगे चलकर वृद्धि होगी तो बदलेगा ना, फिर भी आप लक्की हो क्योंकि टूलेट के टाइम पर नहीं आये हो। लेट के टाइम पर आये हो। तो सब खुश हो? अच्छा, कौन­से कौन­से जोन आये हैं?

महाराष्ट्र:­ महाराष्ट्र वाले सदा विशेष सन्तुष्ट मणियाँ हैं - इस वरदान को स्वरूप में लाना। और फिर बापदादा दूसरे ग्रुप में पूछेंगे कि महाराष्ट्र ने सन्तुष्टता का स्वरूप दिखाया? तो सदा सन्तुष्ट मणि हैं, असन्तुष्टता का नामय्निशान नहीं। तो अभी इसमें नम्बर लेना। रिजल्ट बताना कि इस 6 मास में कोई असन्तुष्ट रहा क्या या सन्तुष्ट किया? स्वयं भी सन्तुष्ट दूसरे भी सन्तुष्ष्ट। तो महाराष्ट्र को ये पसन्द है? अगर कोई आपको असन्तुष्ट करे तो क्या करेंगे? फिर तो असन्तुष्ट होंगे ना। करने वाले ने असन्तुष्ट कर दिया तो आप क्या करेंगे? शीतलता धारण करेंगे। वो सेक दे रहा है और आप शीतल रहेंगे? थोड़ा­थोड़ा असन्तुष्ट होंगे? देखना। वो असन्तुष्ट करे और आप सन्तुष्टता का जल डालो, वो आग जलाये आप पानी डालो। ये तो कर सकते हो या नहीं? तो रिजल्ट देखेंगे। तो महाराष्ट्र अर्थात् सन्तुष्ट रहने वाले और सन्तुष्ट करने वाले।

तामिलनाडु:­ तामिलनाडु क्या करेगा? तामिलनाडु सदा सुखदाता के बच्चे मास्टर सुख दाता हैं। कोई दु:ख भी दे तो उसको सुख में परिवर्तन कर लेंगे। तो 6 मास की रिजल्ट देखेंगे। ऐसे ताली नहीं बजाना। रिजल्ट के समय भी ताली बजे, ऐसा करना। तो तामिलनाडु भी रेस अच्छी कर रहे हैं। सेवा में आगे बढ़ रहे हैं। प्रकृति को भी तामिलनाडु अच्छा लगता है। वहाँ प्रकृति भी वार करती है। तामिलनाडु वाले क्या बनेंगे? मास्टर सुखदाता। अब देखेंगे महाराष्ट्र आगे जाता है या तामिलनाडु आगे जाता है? लक्ष्य तो सभी का यही है कि सबसे आगे जाना है और जा सकते हैं। कोई मुश्किल बात नहीं है।

इस्टर्न जोन (बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, नेपाल):­

पांच नदियां मिलकर इस्टर्न जोन बना है। तो इस्टर्न जोन क्या करके दिखायेंगे? सदा स्वयं कम्बाइन्ड स्वरूप, मास्टर सर्वशक्तिमान अनुभव करेंगे। सबसे ज्यादा विस्तार ईस्टर्न जोन का है। देखो, नेपाल भी इस्टर्न में आ गया, इस्टर्न में फॉरेन भी आ गया तो कितना बड़ा है। बड़ा जोन है तो बड़ा ही दिखायेंगे ना। इस्टर्न जोन महान लक्की जोन है। क्यों लक्की है? क्योंकि ब्रह्मा बाप की कर्म भूमि और प्रवेशता भूमि है। इसलिये सदा कम्बाइन्ड स्वरूप में रहने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मायें हैं - ये प्रैक्टिकल में दिखायेंगे ना। सेकण्ड भी अलग नहीं होना। कम्बाइन्ड कभी अलग नहीं होता। सदा साथ और सदा साथ रहकर औरों को भी साथ में मिलाने वाला। समझा? अभी देखेंगे कि नम्बर कौन लेते हैं? अभी तो नाम का नम्बर है ना फिर काम का नम्बर आयेगा।

यू.पी.:­ लौकिक कहावत में यू.पी.की विशेषता है कि यू.पी. वाले ‘पहले आप, पहले आप’ का मन्त्र ज्यादा पढ़ते हैं। लेकिन आप ब्राह्मण कौन­सा मन्त्र पढ़ते हो? पहले बाप। हर बात में पहले बाप। बाप याद आया तो सब कुछ आ गया। तो हर कर्म में पहले बाप की याद हो। इसलिये यू.पी. वाले सदा मस्तक में पदमपति, पदमापदम भाग्य की लकीर वाले। सदा मस्तक में ये पदमापदम भाग्यवान की लकीर चमकती हुई दिखाई दे। इसमें यू.पी. वाले नम्बर लेंगे ना? सदा भाग्यवान भव। अच्छा, स्थापना में दिल्ली का भी पार्ट है तो यू.पी. का भी विशेष पार्ट है। इसलिये विशेष भाग्यवान आत्मायें हैं।

इन्दौर:­ इन्दौर वाले क्या करेंगे? इन्दौर वाले विशेष महादानी हैं। सदा अपने कर्म द्वारा, बोल द्वारा महादानी। दान करने वाले हो। लेने वाले नहीं, देने वाले। तो महादानी हैं? दान करना आता है ना? जो महादानी होते हैं वही वरदानी होते हैं। तो वरदान लेने वाले और औरों को वरदान देने वाले - महादानी और मास्टर वरदानी। कोई कैसा भी हो वरदान दो, महादानी बनो - यही विशेषता है। तो इन्दौर वाले क्या करेंगे? वरदानी बनेंगे। कोई गाली भी देंगे तो वरदानी बनेंगे ना। कोई इन्सल्ट करेंगे तो क्या करेंगे? वरदानी बनेंगे कि उस समय थोड़ा शक्ल बदली करेंगे? थोड़ी शक्ल बदली नहीं होगी? वरदान देंगे! वो गाली देवे, आप वरदान देंगे! फिर तो बहुत पास हो गये, अभी से ही पास हो गये।

कर्नाटक:­ कर्नाटक वाले क्या करेंगे? सदा अपने को पुण्य आत्मायें समझ पुण्य करते रहेंगे। कर्नाटक वालों के पुण्य की पुंजी सदा जमा होगी। तो पुण्यात्मायें बन पुण्य की पूंजी जमा करने वाले और पुण्यात्मा बन औरों को भी पुण्यात्मा बनाने वाले। तो कर्नाटक वाले क्या हैं? पुण्यात्मायें। पाप तो खत्म हो गये ना। कर्नाटक वालों ने पाप का खाता खत्म कर दिया ना? कि थोड़ा­थोड़ा रखा है? सारा खत्म। तब तो पुण्य आत्मा बने हैं ना। तो पुण्यात्मायें हैं और सदा पुण्यात्मायें रहेंगे और औरों को भी पुण्यात्मा बनायेंगे। बनाने में तो होशियार हो ना। कर्नाटक की वृद्धि बहुत जल्दी होती है ना। सबसे ज्यादा किस जोन की संख्या है? (महाराष्ट्र की) अच्छा है, जैसा नाम है वैसा काम है। अच्छा!

डबल विदेशी:­ डबल विदेशी बहुत होशियार हैं। कौन­सी होशियारी करते हैं? भागने में होशियार हैं! और भाग्य लेने और भाग्य देने में भी होशियार हैं! थोड़ा लेने वाले नहीं हैं, पूरा लेने वाले हैं। भाग्य लेने में होशियार हैं? डबल विदेशियों की विशेषता है कि हर बात में डबल हिस्सा लेते हैं। भारत वालों में भी हिस्सा लेते हैं तो अपने में भी हिस्सा लेते हैं। और विदेश वालों को विशेष अव्यक्त पालना की अनुभूति का वरदान विशेष है। तो अनुभव स्वयं भी करते हैं और ड्रामानुसार डबल विदेशियों को बापदादा द्वारा भी अव्यक्त पालना का विशेष वरदान मिला है। लेकिन लेने में भी आगे हैं। इसलिये बापदादा डबल याद­प्यार देते हैं। इन्हों के आगे जाने का एक विशेष कारण है। ऐसे ही वरदान नहीं मिला है, कोई कारण से मिलता है। तो इन्हों की विशेषता यह है कि जो भी होगा, अच्छा होगा या बुरा होगा, स्पष्टवादी हैं। अन्दर एक, बाहर दूसरे नहीं हैं। जो अन्दर है, वो बाहर है। तो स्पष्ट होने के कारण जल्दी में आगे कदम उठा लेते हैं। छिपाने वाले नहीं हैं। तो यह स्पष्टवादी बनने के कारण विशेष अव्यक्त पालना के वरदान के अधिकारी बने हैं और बनते रहेंगे। समझा!

तो आप भी जितने स्पष्टवादी होंगे उतने अनुभव ज्यादा करेंगे। स्पष्टवादी बनना अर्थात् सहज श्रेष्ठ बनना। ये वरदान स्वत: ही मिल जाता है।

आन्ध्रप्रदेश:­ आन्ध्रा में भी सेन्टर्स तो बहुत हैं ना। आन्ध्रा वाले क्या करेंगे? आन्ध्रा वाले कमाल करने वाले हैं। (बीच में ही ताली बजा दी) इससे ही सिद्ध होता है कि कमाल करने में होशियार हैं। तो आन्ध्रा वालों को यही कमाल करनी है कि सदा डबल लाइट बन उड़ना है और उड़ाना है। उड़ती कला और औरों का भी भला। स्वयं भी उड़ती कला और औरों की भी उड़ती कला में सबसे आगे जाना है। अपने भी बोझ को सेकण्ड में समाप्त करने वाले और दूसरों के भी बोझ को समाप्त कर उड़ाने वाले। अभी उड़ती कला की कमाल आन्ध्रा को दिखानी है। हिम्मत है? तो 6 मास में पूरे आन्ध्रा जोन में कोई भी विघ्न नहीं आना चाहिये। हो सकता है? अभी हाँ नहीं करते, खिटखिट है क्या? मिटा नहीं सकते? तो आन्ध्रा को प्राइज लेनी चाहिये। 6 मास के बाद आन्ध्रा वाले प्राइज लेंगे?

6 मास के बाद सभी को प्राइज देंगे। जो वरदान मिला है, उसमें जो सब पास होंगे उनको प्राइज मिलेगी। पहले पास होंगे फिर प्राइज मिलेगी। तो फुल पास होना है। फिर यह नहीं कहना कि क्या करें, चाहता नहीं था, हो गया..., भाषा बदली कर देना - हो ही नहीं सकता। इतना निश्चय है? अच्छा है। नये कमाल करके दिखायेंगे ना। तो बाप कहेंगे पुराने तो पुराने, नये समान बाप होंगे। तो आगे जाने के लिए ये वरदान लेना है ना।

अच्छा, बाकी मधुबन निवासी और ज्ञान सरोवर। बापदादा ने पहले भी कहा तो आबू में सबका याद­प्यार देने के लिये पांच मुखी ब्रह्मा है, ब्रह्मावत्स हैं। एक मधुबन है और दूसरा ज्ञान सरोवर है, तीसरा हॉस्पिटल है, चौथा तहलटी है और पांचवा आबू निवासी। तो पांच मुखी ब्रह्मावत्स। पांचों को बापदादा सदा उमंग­उत्साह के पंखों से उड़ने वाले और औरों को भी उड़ाने वाले-ऐसा विशेष वरदान वा याद­प्यार दे रहे हैं। तो मधुबन निवासियों को विशेष उमंग­उत्साह के पंख सदा लगे हुए रहते हैं। उमंग­उत्साह के पंख कभी कमज़ोर नहीं होते। इसका प्रूफ है ज्ञान सरोवर में पंख लग गये हैं ना। जो भी देखता है वो क्या कहता है? कमाल है। तो उमंग­उत्साह के पंख का प्रैक्टिकल प्रूफ है ज्ञान सरोवर। आप समझते हो इतने में इतना बड़ा बन सकता है? कॉमन कोई सोच सकता है? तो ज्ञान सरोवर वाले या मधुबन वाले उमंग­उत्साह के पंखों से उड़ाने वाले भी हैं और उड़ने वाले भी हैं। बापदादा ज्ञान सरोवर के सेवाधारियों को विशेष दुआओं भरी याद­प्यार दे रहे हैं। विशेषता है कि निश्चयबुद्धि हैं। कितना भी कोई हिलाता है, डेट पर तैयार होगा? नहीं हो सकता! लेकिन ज्ञान सरोवर वाले निश्चयबुद्धि नम्बरवन हैं। ज्ञान सरोवर वाले हाथ उठाओ। बहुत हैं। अच्छा, हमारे विशेष सेवाधारी भी आये हुए हैं। अच्छे हैं, सबकी हिम्मत, सबका उत्साह, कार्य को आगे बढ़ा रहा है, इसलिये बापदादा प्यार की मसाज करते रहते हैं। मधुबन वाले अर्थात् सदा ताजा भोजन करने वाले। फैक्स द्वारा या टाइप द्वारा खाने वाले नहीं, ताजा माल खाने वाले। मधुबन वाले शरीर से नीचे हैं, (हाल फुल होने कारण पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) मन से बापदादा के सामने ऊपर हैं। ऐसे तो चारों ओर के बच्चों के दिल की टी.वी. खुली हुई है, उसमें देख रहे हैं। चाहे देश, चाहे विदेश के, सभी बच्चे अव्यक्त रूप से मिलन मना रहे हैं। तो देखो आप विशेष लक्की हो जो पहला चांस आप लोगों को मिला है। अच्छा-सभी सन्तुष्ट हो ना? सन्तुष्ट हो और रहेंगे भी। अच्छा!

चारों ओर के सर्वश्रेष्ठ भाग्य विधाता के भाग्यवान आत्माओं को, सदा मनजीत­जगतजीत के निश्चय और नशे में रहने वाले, सदा हर गुण, शक्ति और ज्ञान के अनुभवी आत्मायें, सदा बाप को साथ रखने वाले कम्बाइन्ड स्वरूप आत्मायें, सदा श्रेष्ठ भाग्य की लकीर को सहज श्रेष्ठ बनाने वाले, ऐसे अति समीप और श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद­प्यार और नमस्ते।