09-01-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
निश्चयबुद्धि की निशानियाँ - निश्चित विजयी और सदा निश्चिन्त स्थिति का अनुभव
आज सर्व बच्चों के रक्षक और शिक्षक बापदादा अपने सभी ब्राह्मण बच्चों के फाउण्डेशन को देख रहे थे। ये तो सभी जानते हो कि वर्तमान श्रेष्ठ जीवन का फाउण्डेशन निश्चय है। जितना निश्चय रूपी फाउण्डेशन पक्का है उतना ही आदि से अब तक सहज योगी, निर्मल स्वभाव, शुभ भावना की वृत्ति और आत्मिक दृष्टि सदा नेचुरल रूप में अनुभव होती है। हर समय चलन और चेहरे से उनकी झलक अनुभव होती है क्योंकि ब्राह्मण जीवन में सिर्फ जानना नहीं है कि ‘मैं ये हूँ और बाप ये है’, लेकिन जानने का अर्थ है जो जानते हैं वो मानना और चलना।
बापदादा देख रहे थे कि जो भी बच्चे अपने को ब्राह्मण कहलाते हैं वो सभी ये फलक से कहते हैं कि हम निश्चयबुद्धि हैं। तो बापदादा सभी निश्चयबुद्धि बच्चों से पूछते हैं, जब आप सभी कहते हो कि हम निश्चयबुद्धि विजयी हैं तो कभी विजय, कभी हार क्यों होती है? जब कभीकभी थोड़ी हलचल होती है तो क्या उस समय निश्चय खत्म हो जाता है? जब निश्चयबुद्धि सदा हो तो विजयी सदा हो कि बीचबीच में घुटका और झुटका होता है? निश्चय का फाउण्डेशन चारों ओर से मजबूत है या चारों ओर के बजाय कभी एक ओर कभी दो ओर ढीले हो जाते हैं? कोई भी चीज़ को मजबूत किया जाता है तो चारों ओर से टाइट किया जाता है ना। अगर एक साइड भी थोड़ासा हलचल वाला हो तो हिलेगा ना! तो चारों प्रकार का निश्चय अर्थात् बाप में, आप में, ड्रामा में और ब्राह्मण परिवार में निश्चय। ये चार ही तरफ के निश्चय को जानना नहीं लेकिन मानकर चलना। अगर जानते हैं लेकिन चलते नहीं हैं तो विजय डगमग होती है। जिस समय विजय हलचल में आती है, तो चेक करना कि चारों तरफ से कौनसा तरफ हलचल में है? बापदादा देखते हैं कि कई बच्चों को बाप में पूरा निश्चय है, इसमें पास हैं लेकिन अपने आपमें जो निश्चय चाहिए उसमें अन्तर पड़ जाता है। जानते भी हैं, कहते भी हैं कि मैं ये हूँ, मैं ये हूँ, लेकिन जो जानते हैं, मानते हैं वो स्वरूप में, चलन में, कर्म में हो-इसमें ही अन्तर पड़ जाता है। एक तरफ सोचते हैं कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान् हूँ, विश्व कल्याणकारी हूँ, दूसरे तरफ छोटीसी परिस्थिति पर विजय नहीं प्राप्त कर सकते। हैं तो मास्टर सर्वशक्तिमान् लेकिन ये परिस्थिति बहुत बड़ी है, ये बात ही ऐसी है! तो क्या ये निश्चय है कि सिर्फ जानना है लेकिन मानकर चलना नहीं? कहते वा सोचते हैं कि मैं विश्व कल्याणकारी हूँ लेकिन विश्व को तो छोड़ो, स्व कल्याण में भी कमज़ोर होते हैं। अगर उस समय उन्हें कहो कि क्या स्वयं को परिवर्तन कर स्व कल्याणकारी नहीं बन सकते? तो जवाब देते हैं कि हैं तो विश्व कल्याणकारी लेकिन स्व कल्याण बहुत मुश्किल है! ये बात बदलना मुश्किल है! तो विश्व कल्याणकारी कहेंगे या कमज़ोर? तो स्व में भी परिस्थिति प्रमाण, समय प्रमाण, सम्बन्धसम्पर्क प्रमाण निश्चय स्वरूप में आये, ऐसे निश्चय बुद्धि की विजय हुई ही पड़ी है। जैसे सभी को ये पक्का निश्चय है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, इसके लिए कोई दुनिया के वैज्ञानिक भी आपको हिलाने की कोशिश करें कि आत्मा नहीं शरीर हो, तो मानेंगे नहीं और ही उसको मनायेंगे। तो जैसे ये पक्का है कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ और कौनसी आत्मा हूँ, ये भी पक्का है, ऐसे निश्चयबुद्धि की विजय भी इतनी निश्चित है। हार असम्भव है और विजय निश्चित है। और ये भी निश्चित है कि बातें भी अन्त तक आनी हैं। लेकिन उसमें विजयी बनने के लिए एक ही समय पर चारों ही तरफ का निश्चय पक्का चाहिये। तीन में निश्चय है और एक में नहीं है तो विजय निश्चित नहीं है लेकिन मेहनत से विजय होगी। निश्चित विजय वाले को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
कई बार कई कहते हैं बापदादा तो बहुत अच्छा, वो तो पक्का है कि बाप है और हम बच्चे हैं, हमारा बाप से ही सम्बन्ध है लेकिन दैवी परिवार में खिटखिट होती है, उसमें निश्चय डगमग हो जाता है इसीलिये परिवार को छोड़ देते हैं, हल्का कर देते हैं। तो एक साइड ढीला हो गया ना। बिना परिवार के माला में कैसे आयेंगे? माला कब बनती है? जब दाना दाने से मिलता है और एक ही धागे में पिरोये हुए होते हैं। अगर अलगअलग धागे में अलग अलग दाना हो तो उसको माला नहीं कहेंगे। तो परिवार है माला। अगर परिवार को छोड़कर तीन निश्चय पक्के हैं तो भी विजय निश्चित नहीं है। चलो परिवार की खिटखिट से किनारा कर लो, बाप का सहारा हो, परिवार का किनारा हो, तो चलेगा? काम तो बाप से है या भाइयों से है? बाप से काम है, वर्सा बाप से मिलना है, भाईबहनों से क्या मिलेगा? लेकिन ब्राह्मण जीवन में यही न्यारापन है कि धर्म और राज्य दोनों की स्थापना होती है, सिर्फ धर्म की नहीं। और धर्म पितायें सिर्फ धर्म की स्थापना करते हैं, बाप की विशेषता है धर्म और राज्य की स्थापना करना। तो राज्य में एक राजा क्या करेगा? बहुत अच्छा तख्त भी हो, ताज भी हो, क्या करेगा? राजधानी भी चाहिये ना? तो राजधानी अर्थात् ब्राह्मण परिवार सो राज परिवार। इसलिए ब्राह्मण परिवार में हर परिस्थिति में निश्चयबुद्धि, तब राज्यभाग्य में भी सदा राज्य अधिकारी होंगे। तो ऐसे नहीं समझना-कोई बात नहीं, परिवार से नहीं बनती है, बाप से तो बनती है! ड्रामा अगर भूल जाता है तो बाप तो याद रहता ही है! लेकिन कोई भी कमज़ोरी एक ही समय पर होती है, स्व स्थिति अर्थात् स्वय्निश्चय भी अगर कमज़ोर होता है तो विजय निश्चित के बजाय हलचल में आ जाती है। तो बापदादा निश्चय के फाउण्डेशन को चेक कर रहे थे। क्या देखा?
सदा चार ही प्रकार का निश्चय एक समय पर साथ नहीं रहता, कभी रहता कभी हिलता इसलिये सदा विजयी का अनुभव नहीं कर पाते हैं। फिर सोचते हैं-होना तो ये चाहिये लेकिन पता नहीं क्यों नहीं हुआ? किया तो बहुत मेहनत, सोचा तो बहुत अच्छा.... लेकिन सोचना और होना इसमें अन्तर पड़ जाता है। इसका अर्थ ही है कि निश्चय के चारों तरफ मजबूत नहीं हैं। और हंसी की बात तो ये है कि ड्रामा भी कह रहे हैं, है तो ड्रामा, है तो ड्रामा.... लेकिन अच्छी तरह से हिल भी रहे हैं। कभी संकल्प में हिलते, कभी बोल तक भी हिल जाते, कभी कर्म तक भी आ जाते। उस समय क्या लगता होगा, दृश्य सामने लाओ, ड्रामाड्रामा भी कह रहे हैं और हिलडुल भी रहे हैं! लेकिन निश्चयबुद्धि की निशानी है निश्चित विजयी। अगर विधि ठीक है तो सिद्धि प्राप्त न हो, ये हो नहीं सकता। तो जब भी कोई भी कार्य में विजय प्राप्त नहीं होती है तो समझ लो कि निश्चय की कमी है। चारों ओर चेक करो, एक ओर नहीं।
और बात, निश्चयबुद्धि की निशानी जैसे निश्चित विजय है वैसे निश्चिन्त होंगे। कोई भी व्यर्थ चिन्तन आ ही नहीं सकता। सिवाए शुभ चिन्तन के व्यर्थ का नामय्निशान नहीं होगा। ऐसे नहीं, व्यर्थ आया, भगाया। निश्चयबुद्धि के आगे व्यर्थ आ नहीं सकता। क्योंकि क्यों, क्या, और कैसे-ये व्यर्थ होता है। जब ड्रामा के राज को जानते हैं, आदिमध्यअन्त को जानने वाले हैं तो जो ड्रामा के आदिमध्यअन्त को जानने वाले हैं वो छोटीसी बात के आदिमध्यअन्त को नहीं जान सकते! न जानने के कारण क्यों, क्या, कैसे, ऐसे-ये व्यर्थ संकल्प चलते हैं। अगर ड्रामा में अटल निश्चय है, नॉलेजफुल भी हैं, पॉवरफुल भी हैं तो व्यर्थ संकल्प हिलाने की हिम्मत भी नहीं रख सकते। परन्तु जब हिलते हैं तो सोचते हैं पता नहीं क्या हो गया! तो बापदादा हंसते हैं कि ड्रामा के आदिमध्यअन्त को जान लिया, अपने 84 जन्म को जान लिया और एक बात को नहीं जानते! बड़े होशियार हो! होशियारी दिखाते हो ना समय प्रति समय! कल्प वृक्ष के सभी पत्तों को जानते हो कि नहीं? सभी वृक्ष के फाउण्डेशन में बैठे हो या 7-8 बैठे हैं? तो जड़ में बैठे हुए वृक्ष को जानते हो? पत्तेपत्ते को जानते हो और ये पता नहीं कैसे? तो निश्चय की निशानियाँ निश्चिन्त स्थिति, इसका अनुभव करो। होगा, नहीं होगा, क्या होगा, कर तो रहे हैं, देखें क्या होता है-इसको निश्चिन्त नहीं कहेंगे। और फिर बाप के आगे ही फरियाद करते हैं-आप मददगार हो ना, आप रक्षक हो ना, आप ये हो ना, आप ये हो ना....। फरियाद करना अर्थात् अधिकार गँवाना। अधिकारी फरियाद नहीं करेंगे-ये कर लो ना, ये हो जाये ना। तो निश्चयबुद्धि अर्थात् निश्चिन्त। तो ये प्रैक्टिकल निशानियाँ अपने आपमें चेक करो। ऐसे अलबेले नहीं रह जाना-हम तो हैं ही निश्चयबुद्धि। कौनसा निश्चय कमज़ोर है वो चेक करो और चेंज करो। सिर्फ चेक नहीं करना। बापदादा ने कहा था ना चेकर के साथ मेकर भी हो। सिर्फ चेकर नहीं। चेक करने का अर्थ ही है सेकण्ड में चेंज होना। लेकिन चेक करो और चेंज नहीं करो तो बहुत काल से स्वयं में दिलशिकस्त के संस्कार पक्के होते जायेंगे और जो बहुतकाल के संस्कार हैं वही अन्त में अवश्य सामना करते रहेंगे। कोई सोचे अन्त में तो मैं सिवाए बाप के और कुछ नहीं सोचूँगा। लेकिन हो नहीं सकता। बहुतकाल का अभ्यास चाहिये। नहीं तो एक सेकण्ड सोचेंगे-शिवबाबा शिवबाबा शिवबाबा.... और दूसरे सेकण्ड माया कहेगी-नहीं, तुम्हारे में शक्ति नहीं है, तुम हो ही कमज़ोर, तो युद्ध चलती रहेगी। यदि निश्चिन्त नहीं होंगे तो ब्राह्मण जीवन के अन्तकाल का जो लक्ष्य वर्णन करते हो वो सहज कैसे होगा और अगर अन्त तक ये व्यर्थ संकल्प होंगे तो वही भूतों के, यमदूतों के रूप में आयेंगे। और कोई यमदूत नहीं आते हैं, ये व्यर्थ संकल्प अपनी कमज़ोरियाँ, यही यमदूत के रूप में आते हैं। यमदूत क्या करते हैं? डराते हैं। और दूसरों के लिये कहेंगे विमान में जायेंगे अर्थात् उड़ती कला से पार हो जायेंगे। कोई विमान आदि नहीं हैं लेकिन उड़ती कला का अनुभव है। इसलिये पहले से ही चेक करके चेंज करो। कब तक करेंगे? बापदादा को खुश तो कर देते हैं-करेंगे, प्रतिज्ञा भी लिख देते हैं लेकिन वो कागज तक रहती हैं या जीवन तक?
अच्छा - आज मधुबन निवासियों का भी टर्न है। मधुबन वालों से तो विशेष बापदादा का स्नेह है। सबसे है लेकिन फिर भी थोड़ासा विशेष मधुबन निवासियों से है क्योंकि निमित्त हैं। फिर भी देखो आप आते हैं, खातिरी तो ठीक करते हैं ना। मधुबन वाले खातिरी करने में पास हैं ना। मेहमानय्निवाजी करना ही महानता है। जिसको मेहमानय्निवाजी करना आता है, वो महान हो ही जाता है। सिर्फ खानेपीने से नहीं लेकिन दिल के स्नेह की मेहमानय्निवाजी, वो सबसे श्रेष्ठ है। चाहे पिकनिक कितनी भी वरा लो लेकिन दिल का स्नेह नहीं मिला तो कहेंगे कुछ नहीं मिला। तो मधुबन वाले दिल के स्नेह सहित मेहमानय्निवाजी करते हैं। करते हो ना कि कोई नीचेऊपर करेंगे तो कहेंगे बापदादा ने ऐसे ही कहा? ऐसे नहीं करना। स्नेह के सागर के बच्चे हो ना, कब तक स्नेह देंगे? नहीं। गागर के बच्चे नहीं, सागर के बच्चे, बेहद।
सबके पास स्नेह का स्टॉक है ना? माताओं के पास भी है, कुमारियों के पास भी है, पाण्डवों के पास भी है। सागर है या थोड़ा है? तो कभी क्रोध तो नहीं करते होंगे ना? जब स्नेह के सागर हैं तो क्रोध कहाँ से आया? किसके संस्कारों को जानकर सेटिस्फाय करते हो ना। चाहे वो रांग है लेकिन आप तो नॉलेजफुल हो ना, आप तो जानते हो ना कि ये क्या है लेकिन उस समय क्या कहते हैं-इसने ऐसे किया ना, इसीलिये हमने भी किया। रांग से रांग हो गया तो क्या कमाल की? उसने रांग किया और आपने उसका रेसपॉन्ड भी रांग ही दिया। कई कहते हैं ना क्रोध एक बारी करते हैं तो कुछ नहीं होता, बारबार करता रहता है! तो जानते हो कि जिसका स्वभाव ही क्रोध का है तो वो क्रोध नहीं करेगा तो क्या करेगा? उसका काम है क्रोध करना और आपका काम है स्नेह देना या क्रोध करना? वो 10 बारी करे तो आप एक बारी तो जवाब देंगे ना? नहीं देंगे तो वो 20 बारी करेगा, फिर क्या करेंगे? तो इतनी सहनशक्ति है या उसने 10 किया, आपने आधा किया कोई हर्जा नहीं? उसने झूठ बोला, आपने क्रोध किया, तो क्या ठीक हुआ? फिर बड़े बहादुरी से कहते हैं-झूठ बोला ना, इसीलिये क्रोध आ गया। लेकिन झूठ बोलना तो अच्छा नहीं लगा और क्रोध करना अच्छा है! तो स्नेह के सागर के मास्टर स्नेह के सागर। मास्टर स्नेह के सागर के नयन, चैन, वृत्ति, दृष्टि में जरा भी और कोई भाव नहीं आ सकता। यदि थोड़ाथोड़ा जोश आ गया तो क्या उसको स्नेह का सागर कहेंगे कि लोटा है? चाहे कुछ भी हो जाये, सारी दुनिया क्यों नहीं आप पर क्रोध करे लेकिन मास्टर स्नेह के सागर दुनिया की परवाह नहीं करेंगे। बेपरवाह बादशाह हो। जो परवाह थी वो पा लिया। अभी इन व्यर्थ बातों से बेपरवाह बादशाह। चेकिंग की परवाह करो, चेंज होने की परवाह करो, लेकिन व्यर्थ में बेपरवाह। कर सकते हो कि बच्चा, पोत्रा, धोत्रा, धोत्री.... थोड़ासा क्रोध करेगा, थोड़ासा नीचेऊपर करेगा, तो स्नेह के बजाय और भावना भी आ जायेगी? दफतर में जायेंगे, बिजनेस में जायेंगे, नौकर ऐसा मिल जायेगा, वायुमण्डल ऐसा मिल जायेगा.... लेकिन व्यर्थ से बेपरवाह बादशाह। समर्थ में बेपरवाह नहीं होना। कई उल्टा भी उठा लेते हैं, जहाँ मर्यादा होगी वहाँ कहेंगे बापदादा ने कहा ना कि बेपरवाह बादशाह बन जाओ। लेकिन मर्यादाओं में बेपरवाह नहीं। आपका टाइटल है मर्यादा पुरूषोत्तम। ये मर्यादायें ही ब्राह्मण जीवन के कदम हैं। अगर कदम पर कदम नहीं रखा तो मंज़िल कैसे मिलेगी? ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रखो। तो ये मर्यादायें ही कदम हैं। अगर इस कदम में थोड़ा भी नीचेऊपर होते हो तो मंज़िल से दूर हो जाते हो और फिर मेहनत करनी पड़ती है। और बापदादा को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती, कहते हैं सहज योगी और करते हैं मेहनत। तो अच्छा लगता है क्या? अच्छा।
(बापदादा ने ड्रिल कराई) एवररेडी हो? अभीअभी बापदादा कहें सब इकट्ठे चलो तो चल पड़ेंगे? कि सोचेंगे कि फोन करें, टेलीग्राम करें कि हम जा रहे हैं? टेलीफोन के ऊपर लाइन नहीं लगेगी? आपके घर वाले सोचेंगे कहाँ गये फिर? सेकण्ड में आत्मा चल पड़ी-है तो अच्छा ना कि याद आयेगा कि अभी तो एक सब्जेक्ट में कमज़ोर हूँ? अच्छा, यह याद आयेगा कि चीजों को सिर्फ ठिकाने लगाकर आऊं? सिर्फ इतल्ला करके आऊं कि हम जा रहे हैं? यह सोच थोड़ाथोड़ा चलेगा? नहीं। सभी बंधनमुक्त बनेंगे। अभी से चेक करो कि कोई सोने का, चांदी का धागा तो नहीं है? लोहा मोटा होता है तो दिखाई देता है लेकिन ये सोना और चांदी आकर्षित कर लेता है। एवररेडी का अर्थ ही है ऑर्डर हुआ और चल पड़ा। इतना मेरेपन से मुक्त हो? सबसे बड़ा मेरापन सुनाया ना कि देहभान के साथ देहअभिमान के सोनेचांदी के धागे बहुत हैं। इसलिये सूक्ष्म बुद्धि से, महीन बुद्धि से चेक करो कि कोई भी अल्पकाल का नशा ये धागा बन करके रोकने के निमित्त तो नहीं बनेगा? मोटी बुद्धि से नहीं सोचना कि मेरा कुछ नहीं है, कुछ नहीं है। फॉलो करने में सदा ब्रह्मा बाप को फॉलो करो। सर्व प्रति गुणग्राहक बनना अलग चीज़ है लेकिन फॉलो फादर। कई हैं जो भाईबहनों को फॉलो करने लगते हैं लेकिन वो फॉलो किसको करते हैं? वो फॉलो ब्रह्मा बाप को करते हैं और आप फिर उनको करते! डायरेक्ट क्यों नहीं करते? सभी ब्रह्मा कुमार हो ना? कि फलाने भाई कुमार, फलानी बहन कुमार? यह तो नहीं? फॉलो फादर गाया हुआ है या फॉलो ब्रदर्स सिस्टर? विशेषता देखो, लेकिन फॉलो फादर। रिगार्ड रखो लेकिन गाइड एक बाप है। कोई भाईबहन गाइड नहीं बन सकता। गाइड एक है। गॉड गाइड है और साकार एग्जाम्पल ब्रह्मा बाप है। बस। तो फॉलो फादर करते हो कि सोचते हो कि ब्रह्मा को तो देखा ही नहीं, जाना ही नहीं, तो कैसे फॉलो करें? जानते नहीं हो, देखा नहीं है? टीचर्स को देखा, भाईबहनों को देखा, बाप को देखा ही नहीं-ऐसे तो नहीं सोचते? कोई भी निमित्त हैं लेकिन निमित्त बनाया किसने? अपने आप ही तो निमित्त नहीं बने ना? बाप ने बनाया। तो फिर बाप याद आयेगा ना?
अच्छा। सभी अच्छी तरह से सेट हो गये हैं। सोनाखाना ठीक है? कि बहुत दूर कोने में भेज दिया है? भक्ति मार्ग में तो यात्राओं में कितना पैदल करते हो और आप अगर दूर भी रहते हो तो लेने के लिए बस आती है। आराम से आते हो ना? और ब्रह्मा बाप के आगे तो यह कोचकुर्सियाँ भी नहीं थी। अभी तो देखो, कोच और कुर्सियों वाले हो गये। कितने आराम से बैठे हो। बापदादा भी जानते हैं कि पुराने शरीर हैं तो पुराने शरीरों को साधन चाहिये। लेकिन ऐसा अभ्यास जरूर करो कि कोई भी समय साधन नहीं हो तो साधना में विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। जो मिला वो अच्छा। अगर कुर्सा मिली तो भी अच्छा, धरनी मिली तो भी अच्छा। सब आराम से रहे हुए हो कि खटिया चाहिये? घरों में तो खटिया पर सोते हो ना, यहाँ भी खटिया मिली तो क्या बात हुई! चेंज चाहिये ना। चेंज के लिये कितना खर्चा करके जाते हैं। वहाँ खटिया पर सोते हो, यहाँ पट पर सोते हो, चेंज हो गई ना। ये तो सुना दिया कि जितना साधन बढ़ायेंगे उतनी संख्या डबल, ट्रिबल बढ़ेगी। तो ये तो चलना ही है। अभी ज्ञान सरोवर बना रहे हैं फिर दूसरे वर्ष कहेंगे ज्ञान सरोवर छोटा हो गया। ये तो होना ही है। क्योंकि सेवा को समाप्त भी करना है या चलते रहना है? सम्पन्न करके समाप्त करना है। तो सम्पन्न तब होगी जब कम से कम 9 लाख की माला बनाओ। अच्छा।
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल अच्छा, ये कितनी माला लायेंगे? लाख, दो, तीन, कितनी? (4 लाख) 4 लाख लायेंगे! फिर तो अच्छा है, और जोन मौज मनाये और पंजाब माला बनाये। अच्छा, ऐसा कौनसा जोन है जो अभी 50 हजार तक पहुँचा हो? कोई भी जोन में 50 हजार नहीं हैं। तो कम से कम हर जोन 50 हजार तो बनाये। पंजाब की संख्या कितनी है? (12 हजार) अच्छी बात है, 4 लाख का लक्ष्य रखा है। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू कश्मीर 4 तो हैं, तो चार एकएक लाख बनाये तो क्या बड़ी बात है। लेकिन कब तक बनायेंगे? सतयुग के आदि तक या अभी? पंजाब वाले समीपता को समीप लाने वाले हैं। सम्पूर्णता समीपता का आधार है। तो पंजाब की विशेषता है स्वयं को सम्पूर्ण बनाये अन्तिम समय को समीप लाने वाले। हिम्मत है? जितना जितना स्वयं को सम्पन्न बनाते जायेंगे उतना सम्पूर्णता और समीपता नजदीक आ जायेगी। तो सदा समीप रहने वाले और सदा समय को समीप लाने वाले। देखो, पंजाब वालों ने एक विजय तो प्राप्त कर ली, वायुमण्डल को परिवर्तन कर लिया। आतंकवादियों का वायुमण्डल तो बदला अभी अंत लाने में भी इतने बहादुर बनो। पंजाब माना बहादुर। शरीर में भी, आत्मा में भी। तो सदा यह याद रखना कि-सम्पूर्णता द्वारा समाप्ति के समय को समीप लाने वाले हैं, समीप रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं। जो बाप समान होंगे वो ही समीप रहेंगे । तो ऐसे समीप रहने वाली आत्मायें हो। इसी स्मृति के समर्थी से सदा आगे बढ़ते चलो। समझा? अच्छा!
बाम्बे, नागपुर, पूना, जलगांव (महाराष्ट्र) - महाराष्ट्र वाले कितनी माला तैयार करेंगे? (5 लाख) महाराष्ट्र में बाम्बे भी है और बाम्बे को नरदेसावर का टाइटल है तो सिर्फ पैसे में थोड़ेही नरदेसावर होंगे, माला के मणके बनाने में भी नरदेसावर। तो महाराष्ट्र पांच लाख बनायेंगे! कोई ख्याल नहीं करना कि 9 लाख तो पूरे हो गये! पंजाब वाले चार लाख लायेंगे और महाराष्ट्र पांच लाख लायेगा। फिर छांट छूट भी तो होगी ना? कोई त्रेता की प्रजा होगी, कोई सतयुग की होगी, इसलिये इतने भले बनाओ। महाराष्ट्र की महानता अर्थात् सदा विजयी। महानता है ही विजय में। तो सदा निर्विघ्न स्थिति द्वारा सदा विजयी आत्मायें। विजय निश्चित है ऐसे निश्चय बुद्धि विजयी। क्योंकि आप विजयी नहीं बनेंगे तो और कौन बनेगा? बनना ही है। तो महाराष्ट्र प्रजा भी महान बनायेंगे। छोटीमोटी नहीं बनाना। और पंजाब बहादुर बनाना, कमज़ोर नहीं।
कर्नाटक - अच्छा कर्नाटक वाले कितनी माला बनायेंगे? (दो लाख) अच्छा है, कर्नाटक वालों को स्नेह का जादू बहुत जल्दी लगता है। ज्ञान समझे, नहीं समझे, लेकिन स्नेह में नम्बरवन। भाषा के कारण ज्ञान समझेंगे आधा, लेकिन स्नेह में नम्बरवन। देखो, स्नेह की निशानी है कि सेन्टर बहुत खोलते जाते हैं, सिर्फ एडीशन ये करना कि निर्विघ्न प्रजा बनानी है और निर्विघ्न राजधानी बनानी है। तो कर्नाटक वालों को क्या याद रखना है-निर्विघ्न राज्य अधिकारी और निर्विघ्न साथी बनाना। वृद्धि में बहुत अच्छे हैं लेकिन सिर्फ बैलेन्स रखना-जितना स्नेह उतना ही निर्विघ्न स्थिति। दोनों के बैलेन्स से सदा स्वत: ही कर्नाटक वालों को ब्लैसिंग मिलती रहेगी। तो कर्नाटक वाले अण्डरलाइन करना-निर्विघ्न वृद्धि। अच्छा।
गुजरात - गुजरात के ऊपर बापदादा का, दादियों का अधिकार बहुत है। कोई भी काम पड़ता है तो गुजरात पर अधिकार रखते हैं। तो गुजरात की विशेषता क्या हुई? सेवा में भी अधिकारी। जो सेवा में अधिकारी हैं वो राज्य में तो अधिकारी बनेंगे ही। देखो, सेवा में हाँ जी, हाँ जी करते हैं तो राज्य में क्या होगा? जी हजूर, जी हजूर। तो सहयोग देने में नम्बरवन हैं क्योंकि ड्रामानुसार नजदीक का भाग्य मिला हुआ है। अभी अगर गुजरात को कहें कि सभी भले एकएक बस तैयार करके पहुँच जायें तो कितनी बसें आयेंगी? बहुत आ जायेंगी ना! तो एवररेडी संख्या तो है ना! महाराष्ट्र को, दूर वालों को बुलाओ तो दूर के कारण मुश्किल होता है। लेकिन गुजरात को तो भाग्य है। और सेवा में जिम्मेदारी उठाने वाले भी अच्छेअच्छे हैं। पूछपूछ करने वाले नहीं हैं। जिम्मेदारी उठाने में अच्छे हैं। तो ये भी ड्रामा में भाग्य स्वत: ही प्राप्त है, जो रेडी हो जाते हैं, जितनों को ऑर्डर करते हैं आ जाते हैं। (दादी से) अभी देखो मेले के लिए आप निश्चिन्त हो ना। क्योंकि गुजरात ने जिम्मेदारी उठाई। तो बापदादा भी जिम्मेदारी का ताज पहनने वाले बच्चों को देखकर खुश होते हैं।
भोपाल - भोपाल की संख्या कितनी है? (5 हजार) बहुत थोड़ी है। तो क्या करेंगे? पांच हजार के आगे एक बिन्दी लगायेंगे। अच्छी प्रजा लायेंगे ना! अच्छा है, सदा विधि द्वारा सहज वृद्धि को प्राप्त करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें। जल्दी वृद्धि को प्राप्त करेंगे ना? फिर भी सेवा के साधन अच्छे हैं। अगर दोचार माइक तैयार कर लो तो बिन्दी लगना कोई मुश्किल नहीं होगी और चांस है। देखो सेन्ट्रल वाले समय मुश्किल देते हैं और स्टेट वाले समय सहज देते हैं, सम्बन्धसम्पर्क में सहज आ सकते हैं इसलिये माइक तैयार करो। तो माइक तैयार करने से उनके पीछे अनेक आत्मायें सहज आ जाती हैं। एक के आवाज से अनेकों का कल्याण हो सकता है। उन्हों को सिर्फ स्नेही, सम्पर्क वाले नहीं बनाओ लेकिन नजदीक सम्बन्धी बनाओ। तो भोपाल वाले माइक तैयार करके लायेंगे? कि हुए ही पड़े हैं? ला सकते हो, मार्जिन अच्छी है। सम्बन्ध है लेकिन थोड़ा और सम्बन्ध नजदीक का हो। तो सदा श्रेष्ठ विधि द्वारा वृद्धि को प्राप्त करने वाले। समझा, क्या विशेषता है? सहज वृद्धि करने वाले। अच्छा।
राजस्थान - राजस्थान में आबू वाले भी हैं कि अलग हैं? ये सेन्ट्रल है, वो सेन्टर है। मुख्य केन्द्र राजस्थान में है, ये तो कमाल है राजस्थान की। लाइट हाउस तो राजस्थान में ही हुआ ना। अभी सेन्ट्रल में हो गया लाइट हाउस और सेन्टर्स पर क्या है? लाइट है या लाइट हाउस है? जयपुर लाइट है या लाइट हाउस है? कितनी जगह लाइट दिया है? लाइट हाउस का काम क्या होता है? चारों ओर लाइट देना या सिर्फ आसपास लाइट देना? चारों ओर लाइट देते हैं ना। तो राजस्थान को चारों ओर राजस्थान में लाइट देना है। जगाया तो है, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर.... आदि में जगाया तो है लेकिन अभी लाइट से लाइट हाउस बनाओ। राजस्थान में एक भी एरिया खुश्क नहीं रह जाये। राजस्थान को वैसे कहते हैं बड़ा खुश्क है लेकिन ब्राह्मण जीवन में सबसे हराभरा राजस्थान। जो कहते हैं ना राजस्थान में रेत है तो रेत के बजाए सोने के महल हो जायेंगे। होना तो है ना! तो रेती को सोना बनाओ। राजस्थान क्या करेगा? सोने जैसी आत्मायें तैयार करेंगे और सोने के महल तैयार करेंगे। देखो, देहली में राजधानी बनेगी तो राजस्थान कितना नजदीक है। तो वहाँ भी बनेंगे ना। तो राजस्थान मिट्टी को सोना बनायेगा। इतना उमंग है ना? राजस्थान को परिस्तान बनाने वाले। चारों ओर परिस्तान की खुशबू दिखाई दे। संख्या भी बढ़ाओ और संख्या के साथसाथ माइक भी तैयार करो। हर एक स्टेट के सहज माइक निकाल सकते हैं। चाहे छोटा माइक हो, चाहे बड़ा हो, चलो बड़ा नहीं तो छोटा ही सही। देखो राजस्थान के माइक ने कमाल तो किया ना। आज ज्ञान सरोवर में माइक ने ही काम किया ना। तो हर स्टेट को महाराष्ट्र, कर्नाटक.... जो भी हैं, सभी स्टेट को माइक तैयार करने चाहिये। और एकएक स्टेट के माइक अगर सभी मिल जायेंगे तो संगठन बन जायेगा और संगठन का आवाज सहज फैलेगा। तो राजस्थान वाले माला भी तैयार करना और माइक भी। अच्छा।
आगरा - आगरा वाले क्या करेंगे? जैसे आगरा में मिट्टी का, इंटों का ताजमहल आकर्षित करता है वैसे आगरा में ये प्रसिद्ध हो जाये कि यहाँ ताजमहल तो है लेकिन ताजधारी भी गुप्त वेश में हैं। सिर्फ ताजमहल देखने नहीं आयें लेकिन यहाँ ताजधारी कौन हैं-वो भी देखने आयें। आपको ढूंढे कि कहाँ हैं? इतनी ताजधारी आत्माओं की आकर्षण हो। उन्हों को वायब्रेशन आये कि यहाँ कोई श्रेष्ठ आत्मायें गुप्त हुए वेश में है। जैसे द्वापर में जो ऋषिमुनि सतोप्रधान स्थिति में थे तो दूर से ही प्रभाव पड़ता था ना, ढूँढ करके उन्हों के पास पहुँचाते थे। वो खुद तो नहीं बुलाते थे। तो जब ऋषिमुनि आत्मिक ज्ञान वाले आकर्षित कर सकते हैं तो परमात्म ज्ञानी क्या नहीं कर सकते! तो हर एक अपने को ऐसा ताजधारी अर्थात् जिम्मेदार समझे, कि मेरी जिम्मेदारी है-लोगों को आकर्षित कर बाप का बनाना। अपना नहीं बनाना, बाप का बनाना। तो आगरा वाले यह नवीनता दिखाओ, जो सबकी नजर जाये। समझा? हीरे तैयार करो। ताज में झूठे हीरे हैं ना। आप सच्चे हीरे तैयार करो। अच्छा!
नेपाल - नेपाल को देश भी कहते हैं तो विदेश भी कहते हैं। डबल फायदा उठाते हैं। जब फारेनर्स का टर्न होता तो कहते हैं हम फारेनर्स हैं, जब इण्डिया का टर्न होता है तो कहते हैं हम इण्डियन हैं। डबल चांस लेते हैं। अच्छा है। नेपाल के भी कई लोग भावना वाले बहुत हैं। प्यार से सुनने वाले अच्छे हैं। नेपाल की धरनी में भी भावना अच्छी है। और दूसरी विशेषता देखी है कि ज्यादा बातों में कम जाते हैं, अपने में मस्त रहते हैं। खिटखिट कम करते हैं। इसीलिये वृद्धि भी अच्छी हो रही है और क्वालिटी भी अच्छी है। बहुत अच्छी नहीं कहेंगे लेकिन अच्छी है। नेपाल वालों ने भी माइक नहीं तैयार किया है। सहयोगी हैं, समय पर सहयोग दे देते हैं लेकिन समीपसम्बन्ध में लाने से बुलन्द आवाज होगा। अभी छोटासा आवाज होता है तो सिर्फ नेपाल में ही फैलता है, बस। बुलन्द आवाज करने वाले तैयार करो। अगर हर स्टेट के माइक दोतीन, दोतीन भी तैयार हो जायें तो क्या रौनक नहीं होगी? फिर आप लोगों को सेवा करने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप लाइट हो जायेंगे, वो माइक हो जायेंगे। आप सिर्फ लाइट देते रहेंगे। अभी लाइट भी देते हो तो माइक भी बनते हो। फिर माइक वो बनेंगे और आप लाइट देते रहेंगे। तो सेवा में नया मोड़ लाओ। नवीनता लाओ। इसके लिये ये प्रोग्राम रखा है ना कि विदेश से भी हर देश से आवें, यहाँ के भी हर स्टेट से आवें। लेकिन माइक तैयार करो तो माइक की दरबार हो जायेगी। और इतने माइक इकट्ठे हो जायेंगे तो आवाज भी बुलन्द होगा। तो ऐसे नवीनता का प्रोग्राम करो। अभी माइक तैयार करके फिर डेट फिक्स करो। लेकिन कोई भी कोना, कोई भी स्टेट रहनी नहीं चाहिये। अगर कहाँ भी आवाज बुलन्द करना होता है तो चारों ओर माइक लगाते हो ना, चारों ओर माइक लगने से आवाज बड़ा हो जाता है। सभी माइक एक ही आवाज बोलें तो चारों ओर से एक ही आवाज निकलेगा-यही प्रत्यक्षता का झण्डा है। तो अभी तैयारी करो। तो सभी जोन वाले सिर्फ इसमें खुश नहीं होना कि हमको भी वरदान मिला लेकिन जाकर सेवा करना। देहली वालों को पहले करना है। देहली, बाम्बे दोनों ही नाम बाला करने वाले हैं। तो ऐसी कमाल करो जो सबके मुख से यही निकले कि सचमुच परिवर्तक आप ही हो। ये भी हैं, नहीं, ये ही हैं। अभी कहते हैं ये भी हैं, वो भी हैं, ये भी अच्छे हैं। ये ही अच्छे हैं-जब ये आवाज निकले तब झण्डा लहरायेगा। अनेक हैं, नहीं। एक हैं। तो सभी जोन वाले ऐसा करने के लिए तैयार हो ना? कोई मन्सा सेवा करो, कोई वाचा करो। मन्सा सेवा तो सभी कर सकते हो ना? तो वायब्रेशन फैलाओ। वाणी से नहीं तो मंसा से योगदान दो। सबकी अंगुली चाहिये। समझा? अच्छा।
डबल विदेशी - डबल विदेशी अर्थात् दूरदेशी और दूरांदेशी। भारत में जो मैसेज देने वाले होते हैं उनको दरवेश भी कहते हैं। तो डबल विदेशी दूरांदेश बुद्धि वाले अच्छे हैं। दूरांदेश बुद्धि अर्थात् हर परिस्थिति, हर बात को आदिमध्यअन्त तीनों कालों से जानने और देखने वाले। जिसको दूसरे शब्दों में कहेंगे त्रिकालदर्शी। तो जो भी कार्य करें त्रिकालदर्शी होकर करें। एक काल नहीं देखें। तीनों ही कालों को जानने, समझने और समझकर चलने वाले। इसको कहते हैं दूरांदेश बुद्धि, दूरांदेशी दृष्टि। तो जो तीनों काल को जानकर करते हैं वो कभी भी भटकेंगे नहीं। तीनों कालों को जानकर करने वाले सदा ही विजयी होंगे। सहज विजयी। मेहनत के बाद विजयी नहीं। मेहनत करके विजय प्राप्त होती है तो मेहनत में आधा मौज तो खत्म हो जाती है। और जो सहज विजय होती है उसमें नशा, खुशी, मौज-सब होती है। तो डबल विदेशी त्रिकालदर्शी हो? कि एकदर्शी हो? जल्दीजल्दी में एक काल देखकर तो नहीं कर लेते? त्रिकालदर्शी अर्थात् सोचसमझ कर कार्य करने वाले। जल्दीजल्दी में सिर्फ वर्तमान देखकर कर लिया तो धोखा खा लेते हैं। लेकिन त्रिकालदर्शी बनकर कार्य करते तो सदा सफलता सहज मिलती है। तो सहज सफलता प्राप्त करने वाले त्रिकालदर्शी अर्थात् दूरांदेशी बुद्धि वाले। समझा।
मधुबन निवासी - (बापदादा ने आबू के भिन्नभिन्न स्थानों पर सेवा में उपस्थित भाईबहिनों से हाथ उठवाया) देखो, पीस पार्क भी कम नहीं है। लण्डन अमेरिका सबको भूल जाता है। जो पीस पार्क देखते हैं तो कॉपी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन कितनी भी कॉपी करें, रूहानियत की झलक तो आ नहीं सकती, प्यार की झलक तो आ नहीं सकती। तो मेहनत का फल मिल रहा है। मेहनत तो अच्छी की है। प्यार से मेहनत की है ना। सिर्फ पानी नहीं दिया है लेकिन प्यार का पानी दिया है इसीलिये वायुमण्डल न्यारा और प्यारा है। औरज्ञान सरोवर वाले भी बहुत प्यार से मेहनत कर रहे हैं। अच्छी रिजल्ट है। और निश्चयबुद्धि सबसे नम्बरवन हैं। कितना भी कोई जाकर हिलाता है-नहीं तैयार होगा, नहीं तैयार होगा, जितना वो ना करते हैं उतना ये हाँ करते हैं। इसलिये निश्चय की विजय होती है। तैयार होना ही है, बाप को आना ही है। इसलिये मुबारक हो निश्चय की। अच्छा। तलहटी वाले भी मौज में आ गये हैं, मेला मनाने की तैयारी कर रहे हैं। अच्छा है, रौनक तो चाहिये ना। कोई नवीनता चाहिये ना। ओम् शान्ति भवन के हाल में तो सदा बैठते ही हो। लेकिन नवीनता भी चाहिये ना। और कितनी आत्माओं का संकल्प पूरा हो जायेगा। उल्हने कम हो जायेंगे। तो तलहटी में ठीक तैयारी हो रही है? बड़ी बात तो नहीं लगती? खुशी में मुश्किल भी सहज हो जाती है। अच्छा। आबू निवासी क्या कर रहे हैं? सहयोग का साथ दे रहे हैं। कभी भी कोई कार्य होता है तो आबू निवासी कार्य कर लेते हैं। अच्छा है, म्युजियम भी अच्छी सेवा कर रहा है, म्युजियम वाले बच्चे भी मेहनत अच्छी करते हैं। म्युजियम तो चलताफिरता एक सेवा का स्थान है। इस म्युजियम ने भी वि्ातने सेवाकेन्द्र खोले होंगे। कितनी आत्माओं की धरनी परिवर्तन कर दी है। यहाँ का प्रभाव वहाँ स्थानों पर भी काम में आता है। क्योंकि यहाँ आने वाले फ्री होते हैं तो बुद्धि फ्री होने के कारण प्रभाव अच्छा पड़ता है फिर वही वहाँ काम में आता है। तो म्युजियम की सेवा भी कम नहीं है। सभी स्थानों की सेवा अच्छी है। यहाँ (ओम् शान्ति भवन में) भी जो ग्रुप समझाते हैं, वो भी अच्छी सेवा है। तो सब जगह सेवा सहज होती जाती है, प्रभाव पड़ता जाता है। अच्छा है।
अच्छा, मधुबन वाले क्या करेंगे? मधुबन वाले सदा ही अपने को आधारमूर्त और उदाहरणमूर्त समझो। साकार कर्म में मधुबन निवासी उदाहरण हैं और आधारमूर्त भी हैं। क्योंकि जो भी रूहानी साधन चाहिये वो सब तो मधुबन से ही जाते हैं। इसलिये मधुबन वाले ये नहीं समझें कि हम मधुबन के कमरे में हैं या पाण्डव भवन के अन्दर रहते हैं लेकिन हर कर्म में, हर संकल्प में, हर बोल में आधारमूर्त हो। हर एक जो विशेषता देखते हैं कर्म में, वाणी में, वो प्रैक्टिकल मधुबन में ही देखते हैं। तो सदा हर समय आधारमूर्त भी हो और उदाहरणमूर्त भी हो। चाहे अच्छा करते हो तो भी उदाहरण बनते हो और मिक्स करते हो तो भी उदाहरण। उदाहरण सभी मधुबन का ही देते हैं। इसीलिये इतना जिम्मेदारी का बड़ा ताज मधुबन निवासियों को पड़ा हुआ है। अच्छा-संगम भवन के थोड़े हैं लेकिन सेवा बहुत अथक करते हैं। संगम निवासी भागदौड़ का काम अच्छा करते हैं।
अच्छा - हॉस्पिटल का क्या हालचाल है? हॉस्पिटल बहुत अच्छा है कि अच्छा है? देखो हॉस्पिटल की विशेषता क्या है? वैसे सोचते हैं कि पेशेन्ट कोई नहीं हो, और हॉस्पिटल सोचती है कि पेशेन्ट आवें। अगर पेशेन्ट नहीं आते तो उदास हो जाते हैं। पेशेन्ट को पेशन्स में लाते हैं। तो हॉस्पिटल में सिर्फ पेशेन्ट नहीं लेकिन पेशन्स धारण करने वाले पेशेन्ट भी आते हैं। अच्छा है, सबसे ज्यादा हॉस्पिटल का फायदा ब्राह्मणों को है। एम्बुलेन्स में बैठे और पहुँच गये। अच्छी मदद है। एक तो ब्राह्मणों को मदद है और दूसरा जो लोग समझते हैं कि ये कुछ नहीं करते हैं वो समझते हैं कि हाँ ये करते हैं, बहुत करते हैं। हॉस्पिटल ने सेवा बढ़ाई ना। ‘कुछ नहीं’ को ‘करते हैं’ में परिवर्तन कर लिया। ऐसे है ना। अच्छा है, हॉस्पिटल वाले अगर फुर्सत मिलती है तो मंसा सेवा बहुत करो। उससे फुर्सत नहीं मिलेगी। अच्छा।
चारों ओर के सर्व निश्चयबुद्धि श्रेष्ठ आत्मायें, सदा निश्चित विजयी आत्मायें, सदा निश्चिन्त आत्मायें, सदा श्रेष्ठ विधि द्वारा वृद्धि करने के निमित्त बनने वाली विशेष आत्मायें, सदा एक बाप एक बल एक भरोसे में अचलअडोल रहने वाले समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से: (दादी जी बाम्बे अहमदाबाद तथा जानकी दादी पूना सेवा पर गई थी) चक्कर लगाकर आई। सन्तुष्टता दिलाने वाली सन्तुष्ट मणियाँ हो। तो सन्तुष्ट मणियाँ जहाँ भी जायेंगी तो सन्तुष्ट करेंगी ना! चाहे तन वालों को, चाहे मन वालों को, दोनों प्रकार से सन्तुष्ट करते हैं। इसीलिये बापदादा सदा सन्तुष्ट मणियाँ कहते हैं। (सभी की याद दी) अच्छा है। याद का टोकरा भरकर आये हैं। कदम में पदम भरे हुए हैं। इसलिये आपके चक्कर लगाने से अनेकों के चक्कर समाप्त हो जाते हैं। जिनको जो चाहिये वो मिल जाता है। इसलिये अनेकों के व्यर्थ चक्कर खत्म हो जाते हैं। ऐसे ही अनुभव होता है ना? दादियों में सबका प्यार है ना। जो भी निमित्त हैं उन्हों में प्यार है। (दादी जानकी) अच्छा है, दृढ़ निश्चय से सब ठीक हो जाता है। कितने भी कड़े संस्कार हो लेकिन जहाँ दृढ़ता है वहाँ सब एकदम मोम के समान खत्म हो जाते हैं।
जगदीश भाई से - अब क्या करेंगे नवीनता? (विशाल प्रोग्राम माइक बनाने का) एक बारी इकट्ठा सभी कोने से आवाज आये तो बुलन्द हो। हाँ जी, हाँ जी करते चलो और सबका हाँ जी हो ही जाना है। विदेश वाले देश वालों को कहे हाँ जी और देश वाले विदेश वालों को कहे हाँ जी। तो जहाँ हाँ जी होगा वहाँ हुआ ही पड़ा है।
साधन बहुत अच्छा है सिर्फ बालक और मालिक बनना आ जाये। समय पर बालक, समय पर मालिक। सभी को बनना आता है? कि जिस समय बालक बनना है उस समय मालिकपन आ जाता है? तो बापदादा देखेंगे कि हाँ जी का पाठ किसने पक्का किया है? सभी करते हैं, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन कार्य के टाइम देखेंगे। अच्छा!
(दादी चन्द्रमणी इलाहाबाद कुम्भ मेले में जा रही हैं) आपको सीट बहुत अच्छी मिली है, चक्कर लगाते रहो, मौज मनाते रहो। और दूसरों को भी मौज में लाते रहो।
अच्छा, पाण्डव और शक्तियाँ दोनों का संगठन अच्छा है। शक्ति के बिना पाण्डव नहीं चलते, पाण्डवों के बिना शक्तियाँ नहीं चल सकतीं। दोनों की आवश्यकता आदि से अन्त तक रही है और रहेगी।
अच्छा-जो भी जहाँ से भी आये हो, सब अच्छे ते अच्छे भाग्यवान हो, श्रेष्ठ हो, बाप के प्यारे हो। चाहे विदेश से आये हो, चाहे देश से आये हो, हर एक बाप का प्यारा है। सभी बाप का श्रृंगार हो। बिना आपके बाप कुछ नहीं कर सकता। इसलिये बापदादा भी कहते हैं पहले बच्चे। तो हरेक समझता है कि मैं प्यारा हूँ? एक ही बेहद का बाप सबको प्यार दे सकता है। आत्मायें नहीं दे सकती, बाप दे सकता है। क्योंकि बेहद है। तो हर एक समझता है मैं बाप का प्यारा हूँ। नाम लेवें, नहीं लेवें लेकिन प्यारे सब हैं। अच्छा!