07-11-95 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘बापदादा की विशेष पसन्दगी और ज्ञान का फाउण्डेशन - पवित्रता’’
आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार के स्वरूप बच्चों से मिलने आये हैं। सभी बच्चों के अन्दर बाप का प्यार समाया हुआ है। प्यार सभी बच्चों को दूर से समीप ले आता है। भक्त आत्मा थे तो बाप से कितना दूर थे। इसलिए चारों ओर ढूंढते रहते थे और अभी इतना समीप हो जो हर एक बच्चा निश्चय और फ़लक से कहते हैं कि मेरा बाबा मेरे साथ है। साथ है या ढूँढना पड़ता है - इस तरफ है, उस तरफ है? तो कितना समीप हो गया! कोई भी पूछे परमात्मा कहाँ है? तो क्या कहेंगे? मेरे साथ है। फ़लक से कहेंगे कि अब तो बाप भी मेरे बिना रह नहीं सकता। तो इतने समीप, साथी बन गये हो। आप भी एक सेकण्ड भी बाप के बिना नहीं रह सकते हो। लेकिन जब माया आती है तब कौन साथ होता है? उस समय बाप अगर साथ है तो माया आ सकती है? लेकिन न चाहते भी बीच-बीच में बच्चे बाप से आंख मिचौली का खेल कर देते हैं। बापदादा बच्चों का यह खेल भी देखते रहते हैं कि बच्चे एक तरफ कह रहे हैं मेरा बाबा, मेरा बाबा और दूसरे तरफ किनारा भी कर लेते हैं। अगर अभी यहाँ ऐसे किनारा करेंगे तो आपको देख नहीं सकेंगे ना। तो आप भी माया की तरफ़ ऐसे कर लेते हो। बाप को देखने की दृष्टि बन्द हो जाती है और माया को देखने की दृष्टि खुल जाती है। तो आंख मिचौली खेल कभी-कभी खेलते हो? बाप फिर भी बच्चों के ऊपर रहमदिल बन माया से किसी भी ढंग से किनारा करा लेता है। वो बेहोश करती और बाप होश में लाता है कि तुम मेरे हो। बन्द आंख याद के जादू से खोल देते हैं।
बापदादा पूछते हैं कि सभी का प्यार कितने परसेन्ट में है? तो सभी कहते हैं - 100 परसेन्ट से भी ज्यादा है। पद्मगुणा प्यार है। ऐसा कहते हो ना? अच्छा जिसका पद्मगुणा से कम है, करोड़ है, लाख है, हज़ार है, सौ है, वो हाथ उठाओ। (कोई ने नहीं उठाया) अच्छा, सभी पक्के हैं! बापदादा फिर दूसरा क्वेश्चन करेंगे, फिर नहीं बदलना। अच्छा, ये तो बहुत खुशखबरी सुनाई कि पद्मगुणा प्यार है।
अभी बाप पूछते हैं कि प्यार का सबूत क्या होता है? (समान बनना) तो समान बने हो? (नहीं) फिर पद्मगुणा से तो कम हो गया। आप सभी कहेंगे कि अभी सम्पूर्ण बनने में थोड़ा-सा टाइम पड़ा है इसलिए हो जायेंगे - ऐसे? लेकिन अगर प्यार वाला कहता है कि तुम प्यार के पीछे जान कुर्बान कर लो तो वो जान देने के लिए भी तैयार होते हैं। बापदादा जान तो लेते नहीं हैं क्योंकि जान से तो सेवा करनी है। लेकिन एक बात पर बापदादा को थोड़े समय के लिए आश्चर्य करना पड़ता है। आश्चर्य करना नहीं चाहिए, वो तो आपको भी कहते हैं, लेकिन बापदादा को आश्चर्य करना पड़ता है, पार्ट बजाते हैं। जान कुर्बान छोड़ो लेकिन प्यार की निशानी है न्योछावर होना, जो कहे वो करना। तो बाप सिर्फ एक बात में न्योछावर होना देखना चाहते हैं। बातें अनेक हैं, लेकिन बाप अनेक को नहीं लेते सिर्फ एक बात में न्योछावर होना है। उसके लिए हाथ उठा लेते हैं, प्रतिज्ञा भी कर लेते हैं लेकिन प्रतिज्ञा करने के बाद भी करते रहते हैं वो क्या? हर एक स्वयं समझते हैं कि मेरा बार-बार बाप से किनारा होने का मूल संस्कार या मूल कमज़ोरी क्या है। हर एक अपनी मूल कमज़ोरी को जानते हो ना? तो वो कमज़ोरी जानते हुए भी न्योछावर क्यों नहीं करते हो? 63 जन्म की साथी है इसीलिए उससे प्यार है?
प्यार का अर्थ ही है जो प्यार वाला पसन्द करे वो करना। अगर मानो प्यार करने वाला एक बात कहता है और वो दूसरा कुछ करते हैं तो क्या हो जाता है? प्यार होता है या झगड़ा होता है? उस समय प्यार कहेंगे कि अच्छी तरह से लाठी उठाकर एक-दो को लगायेंगे? तो बाप को क्या पसन्द है? बापदादा कहते हैं कि समान बनने में तो कई बातें हैं। ब्रह्मा बाप की विशेषताएं देखो और ब्रह्मा बाप समान ही बनना है तो कितनी बड़ी लिस्ट है! उसके लिए भी बापदादा कहते हैं चलो कोई बात नहीं। एक-दो बात कम है तो भी हर्जा नहीं। लेकिन जो मूल फाउण्डेशन है, जो ब्रह्मा बाप वा ज्ञान का आधार है वो क्या है? ब्रह्मा बाबा शिव बाप की विशेष पसन्दगी क्या है? (पवित्रता, अन्तर्मुखता, निश्चयबुद्धि, सच्चाई-सफाई)। वास्तव में फाउण्डेशन है - पवित्रता। लेकिन पवित्रता की परिभाषा बहुत गुह्य है। पवित्रता जहाँ होगी वहाँ निश्चय, सच्चाई-सफ़ाई, ये सब आ जाता है। लेकिन बापदादा देखते हैं कि पवित्रता की गुह्य भाषा, पवित्रता का गुह्य रहस्य अभी बुद्धि में पूरा स्पष्ट नहीं है। व्यर्थ संकल्प चलना या चलाना, अपने अन्दर भी चलता है और दूसरों को भी चलाने के निमित्त बनते हैं। तो व्यर्थ संकल्प - क्या ये पवित्रता है? तो फिर संकल्प की पवित्रता का रहस्य सभी को प्रैक्टिकल में लाना चाहिए ना। वैसे देखा जाये तो पांचों ही विकार, चाहे काम हो, चाहे मोह हो, सबसे नम्बरवन है काम और लास्ट में है मोह। लेकिन कोई भी विकार जब आता है तो पहले संकल्प में आता है। व्यर्थ संकल्प क्रोध भी पैदा करता है तो काम अर्थात् व्यर्थ दृष्टि, किसी आत्मा के प्रति अगर व्यर्थ दृष्टि भी जाती है तो उस समय पवित्रता नहीं मानी जायेगी। तो यह व्यर्थ संकल्प बाप के प्यार के पीछे न्योछावर क्यों नहीं करते? कर सकते हो? (हाँ जी) हाँ जी कहना बहुत सहज है। लेकिन बापदादा के पास तो सबका चार्ट रहता है ना। अभी तक पांच ही विकारों के व्यर्थ संकल्प मैजारिटी के चलते हैं। फिर चाहे कोई भी विकार हो। ये क्यों, ये क्या, ऐसा होना नहीं चाहिए, ऐसा होना चाहिए....... या कॉमन बात बापदादा सुनाते हैं कि ज्ञानी आत्माओं में या तो अपने गुण का, अपनी विशेषता का अभिमान आता है या तो जितना आगे बढ़ते हैं उतना अपनी किसी भी बात में कमी को देख करके, कमी अपने पुरूषार्थ की नहीं लेकिन नाम में, मान में, शान में, पूछने में, आगे आने में, सेन्टर इन्चार्ज बनाने में, सेवा में, विशेष पार्ट देने में - ये कमी, ये व्यर्थ संकल्प भी विशेष ज्ञानी आत्माओं के लिए बहुत नुकसान करता है। और आजकल ये दो ही विशेष व्यर्थ संकल्प का आधार है। तो आप जब सेवा पर जाओ तो एक दिन की दिनचर्या नोट करना और चेक करना कि एक दिन में इन दोनों में से चाहे अभिमान या दूसरे शब्दों में कहो अपमान - मेरे को कम क्यों, मेरा भी ये पद होना चाहिए, मेरे को भी आगे करना चाहिए, तो ये अपमान समझते हो ना। तो ये दो बातें अभिमान और अपमान - यही दो आजकल व्यर्थ संकल्पो का कारण है। इन दोनों को अगर न्योछावर कर दिया तो बाप समान बनना कोई मुश्किल नहीं है। तो क्या न्योछावर करने की शक्ति है? अच्छा, कितने समय में? अभी आज नवम्बर है ना, नया साल आयेगा तो दो मास हो जायेगा ना! नये साल में वैसे भी नया खाता रखा जाता है, तो हर एक चाहे टीचर, चाहे विद्यार्था हैं, चाहे महारथी हैं, चाहे प्यादा हैं। ऐसे नहीं कि ये तो महारथियों के लिए है, हम तो हैं ही छोटे! राज्य-भाग्य लेने के टाइम तो कोई नहीं कहेगा कि मैं छोटा हूँ, उस समय तो कहेंगे कि सेकण्ड नारायण मुझे ही बना दो। तो हर एक को सिर्फ दो शब्द अपना समाचार देना है और उस पोस्ट के ऊपर विशेष ये लिखना- ‘‘अवस्था का पोतामेल’’। तो वो पोस्ट अलग हो जायेगी। और अन्दर लिखना कि व्यर्थ संकल्प किस परसेन्टेज में न्योछावर हुए? 50 परसेन्ट या 100 परसेन्ट न्योछावर हुए? बस एक लाइन लिखना, लम्बा-चौड़ा नहीं लिखना। जो लम्बा-चौड़ा लिखेंगे उसको पहले ही फाड़ देंगे। तो तैयार हो? ज़ोर से बोलो - हाँ जी या ना जी? जो समझते हैं कि इसमें हिम्मत चाहिए, टाइम भी चाहिए, तो अभी से हाथ उठा लो तो आपको पहले से ही छुट्टी है। कोई है या पीछे लिखेंगे - पुरूषार्थ तो बहुत किया लेकिन हुआ नहीं। ऐसे तो नहीं लिखेंगे? पक्के हैं? अच्छा।
बापदादा ने देखा कि प्यार मधुबन तक तो ले आता है। लेकिन इसी प्यार से पहुँचना कहाँ है? बाप समान बनना है ना! तो जैसे मधुबन में भागते-भागते आते हो ना, मेरा नाम ज़रुर लिखो, मेरा नाम ज़रुर लिखो। और नहीं लिखते तो टीचर को थोड़ी आंख भी दिखा देते हो। तो जैसे मधुबन के लिए प्यार में भागते हो, आते हो ऐसे ही पुरूषार्थ करो कि मेरा नाम बाप समान बनने में पहले हो। तो ये पवित्रता का फाउण्डेशन पक्का करो। ब्रह्मा बाप ने पवित्रता के कारण, एक नवीनता के कारण गालियाँ भी खाईं। तो पवित्रता फाउण्डेशन है और फाउण्डेशन का ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना ये तो एक कॉमन बात है लेकिन अभी आगे बढ़े हो तो बचपन की स्टेज नहीं है, अभी तो वानप्रस्थ स्थिति में जाना है। मैं ब्रह्मचारी तो रहता हूँ, पवित्रता तो है ही, सिर्फ इसमें खुश नहीं हो जाओ। वैसे तो अभी दृष्टि-वृत्ति में पवित्रता को और भी अण्डरलाइन करो लेकिन मूल फाउण्डेशन है अपने संकल्प को शुद्ध बनाओ, ज्ञान स्वरूप बनाओ, शक्ति स्वरूप बनाओ। संकल्प में कमज़ोरी बहुत है। क्या करें, कर नहीं सकते हैं, पता नहीं क्या हो गया..... क्या ये पवित्रता की शक्ति है? पवित्र आत्मा कहेगी - क्या करें, हो गया, हो जाता है, चाहते तो नहीं हैं लेकिन.....? ये कौन-सी आत्मा है? पवित्र आत्मा बोलती है कि कमज़ोर आत्मा बोलती है? त्रिकालदर्शी आत्मायें हो। जब क्यों, क्या कहते हो, तो बापदादा कहते हैं इन्हों को जिज्ञासु के आगे ले जाओ, उनको चित्र समझाते हैं कि 84 जन्मों को हम जानते हैं। समझाते हो 84 जन्म और करते हो अभी क्या और क्यों? जब जानते हो तो जानने वाला क्या, क्यों करेगा? वो जानता है कि ये इसलिए होता है। क्या का जवाब स्वयं ही बुद्धि में आयेगा कि माया के प्रभाव के परवश है। चाहे महारथी हो, चाहे प्यादा हो। अगर महारथी से भी ग़लती होती है तो उस समय वो महारथी नहीं है, परवश है। तो परवश वाला कहाँ भी लहर में लहरा जाता है लेकिन आप उस रूप में देखते हो कि ये महारथी होकर कर रहा है! उस समय महारथी नहीं, परवश है। समझा, नये साल में क्या करना है? व्यर्थ के समाप्ति का नया खाता। ठीक है? पक्का? कि कोई न कोई कारण बतायेंगे। अगर कारण होगा तो कोई नया प्लैन बतायेंगे। अभी नहीं बतायेंगे। अभी बतायेंगे तो आप कोई रीज़न निकाल लेंगे। कारण नहीं निवारण। समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप।
अभी प्रकृति भी थक गई है। प्रकृति की भी ताकत सारी खत्म हो गई है। तो प्रकृति भी आप प्रकृतिपति आत्माओं को अर्जा कर रही है कि अभी जल्दी करो। अभी देरी नहीं करो। अच्छा!
बापदादा को भी तन को चलाना पड़ता है। चले, नहीं चले, लेकिन चलाना तो पड़ता है। क्योंकि बाप का बच्चों से प्यार है। तो इतने प्यार वाली आत्मायें आवें और बाप रूहरिहान नहीं करे तो कैसे होगा! तो जबरदस्ती भी चलाना ही पड़ता है। अच्छा, सभी खुश हैं? बाप मिला - सन्तुष्ट हैं ना?
इस्टर्न
कितना अन्दाज़ आये हैं? (550) तो साढ़े पांच सौ आये हो ना तो साढ़े को निकाल देना बाकी रहा पांच, तो पांचों पर विजय पहला नम्बर इस्टर्न ज़ोन होना चाहिए। (सभी ने तालियां बजाई) लिखने के टाइम भी ताली बजाना। नम्बरवन। वैसे तो इस्टर्न ब्रह्मा बाबा का प्रवेशता का भी पहला नम्बर है। तो बाप समान बनने में, बाप के प्यार के पीछे न्योछावर करने में भी इस्टर्न को पहला नम्बर लेना है। सभी टीचर्स हाँ कर रही हैं तो स्टूडेण्ट को भी करना पड़ेगा। इस्टर्न की टीचर्स उठो। सभी टीचर्स वायदा करते हो कि समझते हो कि पता नहीं क्या होगा! देखना टी.वी. में आ रहा है। इस्टर्न तो नम्बरवन होना ही है।
बम्बई, महाराष्ट्र
बाम्बे क्या करेगा? महाराष्ट्र क्या करेगा? सोलापुर भी है, जलगांव भी है। कोई भी पुर हो लेकिन बापदादा कहते हैं कि सोलापुर नहीं, सोला सम्पूर्ण। कोल्हापुर है, सोलापुर है, कई पुर हैं तो उन्हों को तो याद आना चाहिए कि हम पूर तो हैं सिर्फ सम्पूर्ण आगे एड करना। ठीक है सोलापुर। सोलापुर वाली टीचर्स हाथ उठाओ। अभी क्या होगा? सोलापुर या सोला सम्पूर्ण? हिम्मत है कि कहेंगे कि हम तो छोटी टीचर्स हैं। छोटी सुभान अल्लाह। समझा? अच्छा जलगांव और उदगीर। तो जलगांव क्या करेगा? अपने व्यर्थ विकल्पों को जल में खत्म कर देगा। एकदम खत्म। जल में हो गया खत्म। तो क्या करेंगे? विकल्पों को जलमय करना। कोई विकल्प रहे नहीं। जैसे कहाँ-कहाँ जलमय होता है ना तो एक भी निशानी नहीं रहती। ऐसे आप समाप्त कर लेना। ठीक है? अच्छा, बाम्बे वाले क्या करेंगे? आजकल बहुत बड़े-बड़े बॉम्ब निकाले हैं। दीपावली में देखा होगा ना, इतने बॉम्ब इकट्ठे जलाते हैं जो लाइन की लाइन खत्म। तो बाम्बे वाले अनेक विकल्पों की लाइन को एक तीली लगाना और सारे के सारे खत्म हो जायें। बॉम्बे वाली टीचर्स उठो। अच्छा! तीली तो है ना? अच्छी पॉवरफुल तीली है? कि तीली लगी फिर बुझ जायेगा। दृढ़ संकल्प की तीली से फटाफट। एक के पीछे एक, एक के पीछे एक खत्म। सभी खुश हो जायेंगे। अच्छा।
तामिलनाडु
तामिलनाडु क्या करेगा? तामिलनाडु में डांस बहुत अच्छी करते हैं। कोई भी दादियाँ जाती हैं तो अच्छी-अच्छी डांस दिखाते हैं। जैसे शास्त्रों में शंकर के लिए दिखाते हैं, नृत्य करते-करते सारा विनाश कर दिया। तो डांस करते-करते क्या करेंगे? भिन्न-भिन्न प्रकार से सभी विघ्नों का विनाश। जैसे डांस वे भिन्न-भिन्न पोज़ रखते हो ना ऐसे एक-एक विकल्प को अच्छी तरह से, ऐसे खत्म करना जो नाम-निशान भी नहीं रहे। ठीक है? तामिलनाडु, तामिलनाडु की टीचर्स उठो। अच्छा। तामिलनाडु की टीचर्स बहुत आई हैं। टीचर्स को भी मिलने का चांस मिलता है। बापदादा को टीचर्स वैसे बहुत प्यारी लगती हैं। इसमें तो ताली बजा दी लेकिन वैसे के पीछे ऐसे भी है। वैसे तो टीचर्स को बापदादा एकदम समान दृष्टि से देखते हैं कि ये बाप समान हैं, निमित्त हैं लेकिन जब ऐसी-वैसी उल्टी डांस कर देती हैं, जो मन को नहीं भाती है, कभीकभी ऐसी डांस करते हैं तो सब कहते हैं बन्द करो, बन्द करो। तो जब टीचर्स ऐसा कुछ करती हैं तो बापदादा की, खास ब्रह्मा बाबा की आंखे नीचे हो जाती हैं। इतना टीचर्स को अटेन्शन रखना चाहिए। टाइटल तो टीचर्स को बहुत अच्छा है, बैज भी बहुत जल्दी पहन लेते हो। लेकिन टीचर का अर्थ ही है बाप समान। विशेष ब्रह्मा बाबा टीचर्स को दिल से प्यार करते हैं लेकिन कभी-कभी दृष्टि नीचे भी करनी पड़ती है। तो ऐसे नहीं करना। बाकी अच्छा है, तामिलनाडु ने विस्तार अच्छा किया है और एक विशेषता ये भी है कि हैण्ड्स भी अपने निकालते जाते और सेवा भी बढ़ाते जाते। तो ये भी अच्छी बात है। हैण्ड्स तैयार भी करना और सेवा भी बढ़ाना - दोनों ही करना।
आन्ध्र प्रदेश
आन्ध्र प्रदेश में एक विशेषता ब्राह्मण परिवार की है जो वहाँ से एक लाडला बच्चा निकला राजु, तो उस एक ने एक एग्ज़ाम्पल बन अनेक वी.आई.पी., आई.पी. की सर्विस कर सैम्पल बनाया। सेवा बहुत होती है लेकिन इसने हिम्मत रख करके एक एग्ज़ाम्पल स्थापन किया और वैसे भी आन्ध्र में वी.आई.पी., आई.पी. ज्यादा ही हैं। चाहे वो किसी भी देश में चले जाते हैं लेकिन आन्ध्र के आई.पी., वी.आई.पी. चारों ओर बहुत होते हैं। तो आन्ध्र ने जैसे एक एग्ज़ाम्पल तैयार किया, ऐसे ये विकल्प विनाश का एग्ज़ाम्पल भी आन्ध्र को दिखाना है। तैयार हैं? आन्ध्रा वाली टीचर्स उठो। अच्छा, टीचर्स तो बहुत हैं। अभी ये भी एग्ज़ाम्पल दिखायेंगे। देखो कितना अच्छा रत्न निकला और एडवांस पार्टी में भी अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। तो करेंगे ना! खिटखिट नहीं होनी चाहिए। खिटखिट खत्म। विजय का झण्डा हर सेवाकेन्द्र पर लहराये। ये नहीं बापदादा सुने कि फलाने सेन्टर पर खिटखिट है इसलिए फलानी दादी को भेजो। ये नहीं होना चाहिए। ऐसे थोड़ा-थोड़ा बीचबी च में खेल करते है। अभी खत्म। पहले टीचर्स खत्म करेंगी तभी वायब्रेशन्स फैलेगा। ये सूक्ष्म वायब्रेशन्स है। आप समझेंगे एक ने किया ना, सभी को क्या पता? लेकिन वायब्रेशन ऐसी चीज़ है जो न पता होते भी...। मैंने सिर्फ किया, नहीं। मैंने सभी बाबा के सेवाकेन्द्रों का वायब्रेशन खराब किया। इतनी ज़िम्मेवारी हर एक टीचर के ऊपर है। बैज पहनना तो बहुत अच्छा है। अच्छा भी लगता है। सभी एक जैसा बैज पहन कर बैठती हैं तो अच्छा लगता है लेकिन बैज की लाज रखना। अच्छा!
कर्नाटक
बैंगलोर आया है। बैंगलोर की विशेषता है कि जगदम्बा सरस्वती माँ ने बैंगलोर में बहुत-बहुत सेवा कर बीज डाला है। बाम्बे और बैंगलोर में किया है। तो बाम्बे को और बैंगलोर को जगदम्बा माँ के बीज का सदा फल देना है। और देखा जाये तो बैंगलोर के जो विशेष सेवाधारी हैं वो हैं भी जगदम्बा के पालना के फल। तो बैंगलोर वालों को, जैसे जगदम्बा सम्पूर्ण बन भिन्न नाम-रूप में सेवा के निमित्त है, ऐसे जगदम्बा का नाम बाला करना है। वैसे बैंगलोर का वायुमण्डल दुनिया के हिसाब से भी औरों से कुछ अच्छा है। सेवा भी है बहुत। अभी सेवा को निरव्यर्थ संकल्प बनाना-ये बैंगलोर का काम है। समझा? बैंगलोर की टीचर्स उठो। अच्छा है, निर्विघ्न बनाना है ना? कि थोड़ी-थोड़ी खिटखिट अच्छी लगती है? तो नम्बरवन जगदम्बा की पालना का फल बैंगलोर को अवश्य देना है। समझा?
राजस्थान
राजस्थान क्या करेगा? राजस्थान की एक सेवा बहुत काल से बापदादा ने कही है लेकिन हुई नहीं। राजस्थान की मिनिस्ट्री को बहुत समीप लाना चाहिए। चाहे मिनिस्टर हो, चाहे सेक्रेटरी, लेकिन एक बार राजस्थान को कमाल करके दिखानी चाहिए। चाहे किसकी भी मदद लो। सभी मदद देंगे। लेकिन राजस्थान की गवर्नमेंट के विशेष ऑफिसर्स का एक कम से कम 20-25 का ग्रुप लाना चाहिए। क्योंकि राजस्थान का प्रभाव सारे इण्डिया पर पड़ता है। जैसे दिल्ली की सेवा वर्ल्ड में नाम बाला करती है। चाहे जिज्ञासु बने, नहीं बने, लेकिन राजस्थान के इतने लोग यहाँ इकट्ठे होकर आये, तो यहाँ के जो छोटे-मोटे ऑफिसर्स हैं उनका भी कुछ दिमाग खुले। अभी मॉरीशियस का आ गया, और राजस्थान? तो राजस्थान को यह सेवा किसी भी रीति से करनी चाहिए। चाहे किसी से भी मदद लो, ग्रुप बनाओ। जहाँ से कहेंगे वहाँ से मदद मिलेगी। लेकिन एक बारी आबू वालों की आँख खुलनी चाहिए और वो ही ऑफिसर्स यहाँ भाषण करें, अनुभव सुनायें तो आबू वाले देखो पीछे-पीछे.....। नहीं तो एक तरफ सेवा होती और दूसरे तरफ आबू वाले मज़ाक करते रहते हैं। तो राजस्थान को बापदादा की ये एक आशा पूर्ण करनी है। मुश्किल है क्या? फिर यहाँ लड्डु बांटेंगे। जो भी होंगे ना उनके मुख में लड्डु पड़ेगा। चाहे उदयपुर हो, चाहे जोधपुर, .. जहाँ कार्य बढ़ता है वहाँ के लोग बहुत सहयोगी होने चाहिए। अभी देखो दिल्ली के ऑफिसर राजस्थान के ऑफिसर को हिम्मत देकर ठीक कर रहे हैं और वहाँ के बिल्कुल हिलते नहीं हैं। तो करो कमाल। आबू वाले भी प्लैन बनाओ। बापदादा समझते हैं कि जब तक आबू वाले अच्छा नहीं कहते, चाहे अखबार में, चाहे मुख से नहीं बोलते तब तक सेवा की रिज़ल्ट पर्दे के अन्दर है। प्रत्यक्ष नहीं होती। तो राजस्थान के बड़े लोग छोटों को भी ठीक कर देंगे। परमात्म कार्य और इतने छोटे ऑफिसर परमात्म कार्य के बीच में विघ्न रूप बनें तो ये हैं तो चींटी ना। तो अभी कुछ हिलें। कमाल करके दिखाओ। प्लैन बनाओ। एक बार इन तीन-चार मुख्य स्थानों की सेवा लगकर करनी चाहिए। ऐसे नहीं, जब काम पड़ा तो काम के टाइम भागते हैं और काम पूरा हुआ तो खत्म। वैसे तो राजस्थान के ब्राह्मणों को बहुत नशा है ना कि राजस्थान में ही मुख्य केन्द्र है। ये राजस्थान का लक है लेकिन अभी इसी नशे से यह करके दिखाना। चारों ओर फैल जाये कि राजस्थान का सम्मेलन है। राजस्थान का योग शिविर है। फिर देखो आपके ये व्यापारी वगैरह सब आपेही कहेंगे हम भी बैठें। अच्छा, तो राजस्थान यह कमाल करेगा। क्यों, हेड क्वार्टर की ज़िम्मेवारी राजस्थान पर है। बहुत बड़ा ताज पड़ा है। अच्छा! पाण्डव भी कुछ हिम्मत करेंगे ना, हिम्मत करके दिखाओ। अच्छा। राजस्थान की टीचर्स सामने बैठी हैं, ये तो बहुत टीचर्स हैं। ये एक-एक टीचर एक-एक आई.पीज़. को ला सकती हैं। एक-एक को तो लाओ तो भी 20-25 का ग्रुप बन जायेगा। बहुत अच्छी-अच्छी टीचर्स हैं। अच्छा।
आगरा
आगरा वाले क्या कर रहे हैं? आगरा वालों ने भी कोई नई कमाल करके दिखाई नहीं है। होनी तो है ना! सारे विश्व में बाप का नाम बाला तो होना ही है। लेकिन जो निमित्त बनता है उसको एक्स्ट्रा मार्क मिल जाती हैं। उसका पद, जितनी सेवा की उस अनुसार एड होकर मार्कस जमा होती जाती हैं। समझो साधारण है लेकिन सेवा निर्विघ्न है, तो सेवा की मार्क्स एडीशन होने से साधारण राजा से आगे नम्बर में आ जाते हैं। और आगे-आगे जाते आखिर विश्व महाराजा के रॉयल फैमिली में आ जाते हैं। तो ये करना है ना! आगरा भी कमाल करेगा। बापदादा को तो सदा ही सभी बच्चों में आशायें रहती हैं और वो भी आशाओं के दीपक जगे हुए। हर एक बच्चा जगे हुए आशाओं के दीपक हैं। तो कमाल करके दिखाना। देखेंगे, ये कितने समय में कमाल करते हैं। ठीक है ना? अच्छा।
डबल विदेशी
डबल विदेशी क्या करेंगे? डबल कमाल करेंगे। डबल विदेशियों की ये विशेषता अच्छी है कि सेवा के बिना उन्हों को चैन नहीं आता, मज़ा नहीं आता। उनको सेवा बहुत चाहिए। और उमंग-उत्साह से चाहे टाइम कम मिलता है, थक भी जाते हैं, स्थूल काम करते हैं, लेकिन फिर भी सेवा के लिए एवररेडी रहते हैं, सेवा के लिए बुलावा हो तो बैठेंगे या भागेंगे? भागेंगे। तो सेवा का उमंग-उत्साह यही आप डबल विदेशी आत्माओं की सेफ्टी का साधन है। सेवा में लगे हुए हो तो माया से भी बचे हुए हो। माया भी देखती है कि इन्हों को फुरसत नहीं है इसलिए वो भी वापस चली जाती है। और दूसरी बात अपने पुरूषार्थ में सच्चाई से अपनी चेकिंग अच्छी करते हैं, वो सच्चाई बापदादा के पास पहुँचती है। और सच्चाई बापदादा को प्रिय है। इसलिए सच्चाई के फलस्वरूप बापदादा द्वारा विशेष मदद भी मिलती है। चाहे कोई कमज़ोरी आ भी जाती है लेकिन बाप और सेवा से प्यार होने के कारण वो भी एक्स्ट्रा हिम्मत की मदद दिलाते हैं। समझा? अच्छा! सभी तरफ के हैं। मौरिशियस ने तो कमाल की। क्योंकि कोई भी विदेशी वी.आई.पी. या आई.पी. इण्डिया में आकर अपने देश से यहाँ का प्रोग्राम सेट करे और कराये-ये एक एक्जैम्पुल मॉरिशियस ने दिखाया। दरवाजा खोल दिया, वी.आई.पी., आई.पी. का। तो मॉरिशियस वालों को मुबारक। कहते हैं, बड़े तो बड़े छोटे शुभान अल्लाह। तो मॉरिशियस ने शुभान अल्लाह करके दिखाया। बहुत अच्छा, मुबारक। अच्छा!
मधुबन, ज्ञान सरोवर, हॉस्पिटल, तलहटी
हर एक अपना नाम समझे। बापदादा अभी मधुबन में तो आते ही रहेंगे। तो हर एक चाहे मधुबन हो, चाहे डबल मधुबन, चाहे उपसेवाकेन्द्र हैं, चाहे गीता पाठशालायें हैं, सभी को बापदादा की याद-प्यार मिल रही है और मिलती रहेगी।
नेपाल
(नेपाल का नाम भूल गये) तो नेपाल भूलने का अर्थ है कि आप गुप्त महारथी हो। छिपे हुए रूस्तम हो। नेपाल तो बापदादा को सदा प्यारा है। क्योंकि नेपाल में गवर्नमेंट की सेवा सहज और अच्छी है भी और होती भी रहेगी। आखिर नेपाल का राजा भी आना ही है। अच्छा, सेवा अच्छी है। हिम्मत वाली टीचर्स हैं। इसने (राज बहन ने) नया जन्म लेकर सेवा का सबूत दिया। शीला को भी खास याद देना। अच्छा।
चारों ओर के पद्मगुणा प्रेम स्वरूप आत्माओं को, सदा स्वयं को निर्विकल्प बनाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा बाप और निर्विघ्न सेवा वे लगन में मग्न रहने वाली आत्माओं को, सदा बाप के स्नेह में न्योछावर होने वाले सभी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
अच्छा! सब खुश! कोई नाराज़ तो नहीं हुआ - मैं नहीं मिला? राज़ को जानने वाले कभी नाराज़ नहीं होते।
दादियों से
देखो आप आदि रत्नों में सभी का प्यार के साथ-साथ शुद्ध मोह बढ़ता जाता है। सभी देखते हैं कि आदि रत्न ठीक हैं तो सब ठीक हैं। तो आप लोगों में सबका शुद्ध मोह बढ़ गया है। बापदादा इन दोनों (चन्द्रमणी दादी, रतनमोहनी दादी) के ऊपर भी खुश हैं। ज्ञान सरोवर की जिम्मेवारी सभांली है। जिम्मेवारी तो क्या, खेल है। भारीपन है क्या? खेल हल्का होता है ना? तो जिम्मेवारी क्या है? खेल है। तो बापदादा खुश है कि समय पर सहयोगी बने हैं और आदि से सहयोगी रहे हैं। आदि से हाँ जी करने वाले हैं - यही साकार बाप का आप सबको विशेष वरदान है। ब्रह्मा बाबा को ‘ना’ शब्द कभी अच्छा नहीं लगता। ये तो मालूम है, अनुभवी हैं।
(ईशू बहन से) इसने आदि से अब तक बहुत अच्छा पार्ट बजाया है। और आपकी (दादी की) तो विशेष सहयोगी है। कोई भी बात में सुनने-सुनाने वाली बहुत अच्छी है क्योंकि गम्भीर रहती है। ये गम्भीरता का गुण बहुत आगे बढ़ाता है। कोई भी बात बोल दी ना, समझो अच्छा किया और बोल दिया तो आधा खत्म हो जाता है, आधा फल खत्म हो गया, आधा जमा हो गया। और जो गम्भीर होता है उसका फुल जमा होता है। कहते हैं ना-देखो जगदम्बा गम्भीर रही, चाहे सेवा स्थूल में आप लोगों से कम की, आप लोग ज्यादा कर रहे हो लेकिन ये गम्भीरता के गुण ने फुल खाता जमा किया है। कट नहीं हुआ है। कई करते बहुत हैं लेकिन आधा, पौना कट हो जाता है। करते हैं, कोई बात हुई तो पूरा कट हो जाता है या थोड़ी बात भी हुई तो पौना कट हो जाता है। ऐसे ही अपना वर्णन किया तो आधा कट हो जाता है। बाकी बचा क्या? तो जब जगदम्बा की विशेषता - जमा का खाता ज्यादा है। गम्भीरता की देवी है। ऐसे और सभी को गम्भीर होना चाहिए, चाहे मधुबन में रहते हैं, चाहे सेवाकेन्द्र में रहते हैं लेकिन बापदादा सभी को कहते हैं कि गम्भीरता से अपनी मार्क्स इकट्ठी करो, वर्णन करने से खत्म हो जाती हैं। चाहे अच्छा वर्णन करते हो, चाहे बुरा। अच्छा अपना अभिमान और बुरा किसका अपमान कराता है। तो हर एक गम्भीरता की देवी और गम्भीरता का देवता दिखाई दे। अभी गम्भीरता की बहुत-बहुत आवश्यकता है। अभी बोलने की आदत बहुत हो गई है क्योंकि भाषण करते हैं ना तो जो भी आयेगा वो बोल देंगे। लेकिन प्रभाव जितना गम्भीरता का पड़ता है इतना वाणी का नहीं पड़ता। अच्छा।
(बापदादा को गुलदस्ते भेंट किये) –
ये गुलदस्ते तो क्या हैं, आप एक-एक रूहानी गुलाब सबसे प्यारे हो।
(प्रसिद्ध गायक ओमव्यास जी ने नये गीतों की कैसेट का विमोचन बाबा से कराया) - अच्छा है, ड्रामा ने निमित्त बनाया है और निमित्त बनना ही भाग्य की निशानी है। तो भाग्य बना रहे हो और बनाते ही रहेंगे। अच्छा-ओम् शान्ति।