03-04-97   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


पुराने संस्कारों को खत्म कर अपने निजी संस्कार धारण करने वाले एवररेडी बनो

आज बापदादा अपने चारों ओर से विश्व के बाप के लव में लवलीन और लक्की बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के भाग्य पर बाप को भी नाज़ है कि मेरे बच्चे वर्तमान समय इतने महान हैं जो सारे कल्प में चाहे देवता स्वरूप में, चाहे धर्म नेताओं के रूप में, चाहे महात्माओं के रूप में, चाहे पदमपति आत्माओं के रूप में किसी का भी इतना भाग्य नहीं है जितना आप ब्राह्मणों का भाग्य है। तो अपने ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा स्मृति में रखते हो? सदा यह अनहद गीत मन में गाते रहते हो कि वाह भाग्य विधाता बाप और वाह मुझ श्रेष्ठ आत्मा का भाग्य! यह भाग्य का गीत सदा आटोमेटिक बजता रहता है? बाप बच्चों को देख-देख सदा हर्षित होते हैं। बच्चे भी हर्षित होते हैं लेकिन कभी-कभी बीच में अपने भाग्य को इमर्ज करने के बजाए मर्ज कर देते हैं। जब बाप देखते हैं कि बच्चों के अन्दर अपने सौभाग्य का नशा, निश्चय मर्ज हो जाता है तो क्या कहेंगे? ड्रामा। लेकिन बापदादा सभी बच्चों को सदा ही भाग्य के स्मृति स्वरूप देखने चाहते हैं। आप भी सभी चाहते यही हैं `लेकिन'.. बीच में आ जाता है। किसी से भी पूछो तो सब बच्चे यही लक्ष्य रख करके चल रहे हैं कि मुझे बाप समान बनना ही है। लक्ष्य बहुत अच्छा है। जब लक्ष्य श्रेष्ठ है, बहुत अच्छा है फिर कभी इमर्ज रूप, कभी मर्ज रूप क्यों? कारण क्या? बापदादा से इतने अच्छे-अच्छे वायदे भी करते हैं, रूहरिहान भी करते हैं फिर भी लक्ष्य और लक्षण में अन्तर क्यों? तो बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि कारण क्या है? वैसे तो आप सब जानते हैं, नई बात नहीं है फिर भी बापदादा रिवाइज कराते हैं।

बापदादा ने देखा तीन बातें हैं - एक है सोचना, संकल्प करना। दूसरा है बोलना, वर्णन करना और तीसरा है कर्म में प्रैक्टिकल अनुभव में और चलन में लाना, कर्म में लाना। तो तीनों का समान बैलेन्स कम है। जब बैलेन्स होता है तो निश्चय और नशा इमर्ज होता है और जब बैलेन्स कम है तो निश्चय और नशा मर्ज हो जाता है। रिजल्ट में देखा गया कि सोचने की गति बहुत अच्छी भी है और फास्ट भी है। बोलने में रफ्तार और नशा वह भी 75 परसेन्ट ठीक है। बोलने में मैजारिटी होशियार भी हैं लेकिन प्रैक्टिकल चलन में लाने में टोटल मार्क्स कम हैं। तो दो बातों में ठीक हैं लेकिन तीसरी बात में बहुत कम हैं। कारण? जब संकल्प भी अच्छा है, बोल भी बहुत सुन्दर रूप में हैं फिर प्रैक्टिकल में कम क्यों होता है? कारण क्या, जानते हो? हाँ या ना बोलो। जानते बहुत अच्छा हैं। अगर किसी को भी कहेंगे इस टापिक पर भाषण करो या क्लास कराओ तो कितना अच्छा क्लास करायेंगे! और बड़े निश्चय, नशे, फलक से भाषण भी करेंगे, क्लास भी करायेंगे। कराते हैं। बापदादा सबके क्लासेज़ सुनते हैं क्या-क्या बोलते हैं। मुस्कुराते रहते हैं, वाह! वाह बच्चे वाह!

मूल बात है - बापदादा ने पहले भी सुनाया है यह रिवाइज कोर्स चल रहा है। तो बाप कहते हैं कि कारण एक ही है, ज्यादा भी नहीं है, एक ही कारण है और बापदादा समझते हैं कि कारण को निवारण करना मुश्किल भी नहीं है, बहुत सहज है। लेकिन सहज को मुश्किल बना देते हैं। मुश्किल है नहीं, बना देते हैं, क्यों? नशा मर्ज हो जाता है। एक ही कारण है जो भी धारणा की बातें सुनते हो, करते भी हो, चाहे शक्तियों के रूप में, चाहे गुणों के रूप में, धारणा की बातें बहुत अच्छी-अच्छी करते हो, इतनी अच्छी करते हो जो सुनने वाले चाहे अज्ञानी, चाहे ज्ञानी सुनकर बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहकर खूब तालियां बजाते हैं, बहुत अच्छा कहा। लेकिन, कितने बार `लेकिन' आया? यह `लेकिन' ही विघ्न डाल देता है। `लेकिन' शब्द समाप्त होना अर्थात् बाप समान-समीप आना और बाप के समीप आना अर्थात् समय को समीप लाना। लेकिन अभी तक `लेकिन' शब्द कहना पड़ता है। बाप को अच्छा नहीं लगता, लेकिन कहना ही पड़ता है। तो कारण क्या? जो भी कहते हो, धारण भी करते हो, धारणा के रूप से धारण करते हो और वह धारणा किसकी थोड़ा समय, किसकी ज्यादा समय भी चलती है लेकिन धारणा प्रैक्टिकल में सदा बढ़ती चले उसके लिए यही मुख्य बात है कि जैसे द्वापर से लेकर अन्तिम जन्म तक जो भी अवगुण वा कमजोरियां हैं उसकी धारणा संस्कार रूप में बन गई हैं और संस्कार बनने के कारण मेहनत नहीं करना पड़ता। छोड़ना भी चाहते हैं, अच्छा नहीं लगता है फिर भी कहते हैं क्या करें, मेरा संस्कार ऐसा है। आप बुरा नहीं मानना, मेरा संस्कार ऐसा है। संस्कार बना कैसे? बनाया तभी तो बना ना! तो जब द्वापर से यह उल्टे संस्कार बन गये, जिससे आप समय पर मजबूर भी होते हो फिर भी कहते हो क्या करें, संस्कार हैं। तो संस्कार सहज, न चाहते हुए भी प्रैक्टिकल में आ जाते हैं ना! किसी को क्रोध आ जाता है, थोड़े समय के बाद कहते हैं आप बुरा नहीं मानना, मेरा संस्कार है। क्रोध को संस्कार बनाया, अवगुण को संस्कार बनाया और गुणों को संस्कार क्यों नहीं बनाया है? जैसे क्रोध अज्ञान की शक्ति है और ज्ञान की शक्ति शान्ति है। सहन शक्ति है। तो अज्ञान की शक्ति क्रोध को बहुत अच्छी तरह से संस्कार बना लिया है और यूज़ भी करते रहते हो फिर माफी भी लेते रहते हो। माफ कर देना, आगे से नहीं होगा। और आगे और ज्यादा होता है। कारण? क्योंकि संस्कार बना दिया है। तो बापदादा एक ही बात बच्चों को बार-बार सुनाते हैं कि अभी हर गुण को, हर ज्ञान की बात को संस्कार रूप में बनाओ।

ब्राह्मण आत्माओं के निजी संस्कार कौन से हैं? क्रोध या सहनशक्ति? कौन सा है? सहनशक्ति, शान्ति की शक्ति यह है ना! तो अवगुणों को तो सहज ही संस्कार बना दिया, कूट-कूट कर अन्दर डाल दिया है जो न चाहते भी निकलता रहता है। ऐसे हर गुण को अन्दर कूट-कूट कर संस्कार बनाओ। मेरा निज़ी संस्कार कौन सा है? यह सदा याद रखो। वह तो रावण की जायदाद संस्कार बना दिया। पराये माल को अपना बना लिया। अब बाप के खज़ाने को अपना बनाओ। रावण की चीज़ को सम्भाल कर रखा है और बाप की चीज़ को गुम कर देते हो, क्यों? रावण से प्यार है! रावण अच्छा लगता है या बाप अच्छा लगता है? कहेंगे तो सभी बाप अच्छा लगता है, यही मन से कह रहे हैं ना? लेकिन जो अच्छा लगता है उसकी बात निश्चय की स्याही से दिल में समा जाती है। जब कोई रावण के संस्कार के वश होते हैं और फिर भी कहते रहते हैं - बाबा आपसे मेरा बहुत प्यार है, बहुत प्यार है। बाप पूछते हैं कितना प्यार है? तो कहते हैं आकाश से भी ज्यादा। बाप सुनकरके खुश भी होते हैं कि कितने भोले बच्चे हैं। फिर भी बाप कहते हैं कि बाप का सभी बच्चों से वायदा है - कि दिल से अगर एक बार भी ''मेरा बाबा`` बोल दिया, फिर भले बीच-बीच में भूल जाते हो लेकिन एक बार भी दिल से बोला ''मेरा बाबा``, तो बाप भी कहते हैं जो भी हो, जैसे भी हो मेरे ही हो। ले तो जाना ही है। सिर्फ बाप चाहते हैं कि बराती बनकर नहीं चलना, सज़नी बनकर चलना। सुनकर के तो सभी बहुत खुश हो रहे हैं। अपने ऊपर हंसी भी आ रही है।

अभी सुनने के समय अपने ऊपर हंसते हो ना! अपने ऊपर हंसी आती है और जब जोश करते हो तब लाल, पीले हो जाते हो। लेकिन बाप ने रिजल्ट में देखा कि बच्चों में एक विशेषता बहुत अच्छी है, कौन सी? पवित्रता में रहना, इसके लिए कितना भी सहन करना पड़ा है, कितना भी आपोजीशन करने वाले सामने आये हैं लेकिन इस बात में 75 परसेन्ट अच्छे हैं। कोई-कोई गसिया (गपोड़ा) भी लगाते हैं लेकिन फिर भी 75 परसेन्ट ने इस बात में पास होकर दिखलाया है। अब उसके बाद दूसरा सबजेक्ट कौन सा आता है? क्रोध। देह-भान तो टोटल है ही। लेकिन देखा गया है कि क्रोध की सबजेक्ट में बहुत कम पास हैं। ऐसे समझते हैं कि शायद क्रोध कोई विकार नहीं है, यह शस्त्र है, विकार नहीं है। लेकिन क्रोध ज्ञानी तू आत्मा के लिए महाशत्रु है। क्योंकि क्रोध अनेक आत्माओं के सम्बन्ध, सम्पर्क में आने से प्रसिद्ध हो जाता है और क्रोध को देख करके बाप के नाम की बहुत ग्लानी होती है। कहने वाले यही कहते हैं, देख लिया ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को। क्रोध के बहुत रूप हैं। एक तो महान रूप आप अच्छी तरह से जानते हो, दिखाई देता है - यह क्रोध कर रहा है। दूसरा - क्रोध का सूक्ष्म स्वरूप अन्दर में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा होती है। इस स्वरूप में जोर से बोलना या बाहर से कोई रूप नहीं दिखाई देता है, लेकिन जैसे बाहर क्रोध होता है त् क्रोध अग्नि रूप है ना, वह अन्दर खुद भी जलता रहता है और दूसरे को भी जलाता है। ऐसे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा - यह जिसमें है, वह इस अग्नि में अन्दर ही अन्दर जलता रहता है। बाहर से लाल, पीला नहीं होता, लाल पीला फिर भी ठीक है लेकिन वह काला होता है। तीसरा क्रोध की चतुराई का रूप भी है। वह क्या है? कहने में समझने में ऐसे समझते हैं वा कहते हैं कि कहाँ-कहाँ सीरियस होना ही पड़ता है। कहाँ-कहाँ ला उठाना ही पड़ता है - कल्याण के लिए। अभी कल्याण है या नहीं वह अपने से पूछो। बापदादा ने किसी को भी अपने हाथ में ला (Law) उठाने की छुट्टी नहीं दी है। क्या कोई मुरली में कहा है कि भले ला उठाओ, क्रोध नहीं करो? ला उठाने वाले के अन्दर का रूप वही क्रोध का अंश होता है। जो निमित्त आत्मायें हैं वह भी ला उठाते नहीं हैं, लेकिन उन्हों को ला रिवाइज कराना पड़ता है। ला कोई भी नहीं उठा सकता लेकिन निमित्त हैं तो बाप द्वारा बनाये हुए ला को रिवाइज करना पड़ता है। निमित्त बनने वालों को इतनी छुट्टी है, सबको नहीं।

आज बापदादा थोड़ा आफीशियल शिक्षा दे रहे हैं, प्यार से उठाना क्योंकि बापदादा बच्चों के लिखे हुए, किये हुए वायदे देखकर, सुनकर मुस्कुराते रहते हैं। अभी बापदादा ने जो सुनाया कि हर गुण को निजी संस्कार बनाओ। अन्डरलाइन किया? तो अभी से यह कहना - कि शान्त स्वरूप में रहना, सहनशील बनना - यह तो मेरा संस्कार बन गया है। फिर बापदादा जब मिलन मनाने आये, तो इसे अपना निजी संस्कार बनाकर बापदादा के आगे इन 5-6 मास में दिखाना। इसलिए आज रिजल्ट सुना रहे हैं। क्रोध की रिपोर्ट बहुत आती है। छोटा-बड़ा, भिन्न-भिन्न रूप से क्रोध करते हैं। अभी बापदादा ज्यादा नहीं खोलते हैं लेकिन कहानियां बहुत मजे की हैं। इसलिए आज से क्रोध को क्या करेंगे? विदाई देंगे? (सभी ने ताली बजाई) देखो, ताली बजाना बहुत सहज है लेकिन क्रोध की ताली नहीं बजे। बापदादा अभी यह बार-बार सुनने नहीं चाहते हैं फिर भी रहम पड़ता है तो सुन लेते हैं। तो अब से यह नहीं कहना कि बाबा वायदा तो किया लेकिन.... फिर-फिर आ गया, क्या करें! चाहते नहीं हैं, आ जाता है। आप ही माया को समझा दो, क्रोध को समझा दो। तो यह पुरूषार्थ भी बाप करे और प्रालब्ध बच्चे लेंगे? यह भी मेहनत बाप करे? तो ऐसा वायदा नहीं करना, जो फिर 5 मास के बाद रिजल्ट देखें। भले आप बताओ नहीं बताओ, बाप के पास तो पहुंचती है। ऐसी रिजल्ट न हो - क्या करें, हो जाता है, सरकमस्टांश ऐसे आते हैं, बात बहुत बड़ी हो गई ना! बाप को भी समझाने की कोशिश करते हैं, बड़े होशियार हैं। कहते हैं बाबा छोटी-मोटी बातें हम पार कर लेते हैं, यह बात ही बड़ी थी ना! अभी दोष किस पर रखा? बात पर। और बात क्या करती है? आई और गई। 5 हजार वर्ष के बाद फिर बात आयेगी। जो 5 हजार वर्ष के बाद बात आनी है, उस पर दोष रख देते हैं। ऐसे नहीं करना। क्या करूं...! यह संकल्प में भी नहीं लाना। बापदादा क्रोध के लिए क्यों विशेष कह रहा है? क्योंकि अगर क्रोध को आपने विदाई दे दी तो इसमें लोभ, इच्छा सब आ जाता। लोभ सिर्फ पैसे और खाने का नहीं होता है, भिन्न-भिन्न प्रकार की, चाहे ज्ञान की, चाहे अज्ञान की कोई भी इच्छा - यह भी लोभ है। तो क्रोध को खत्म करने से लोभ स्वत: खत्म होता जायेगा, अहंकार भी खत्म हो जायेगा। अभिमान आता है ना - मैं बड़ा, मैं समझदार, मैं जानता हूँ - यह क्या अपने को समझते हैं! तब क्रोध आता है। तो अभिमान और लोभ यह भी साथ-साथ विदाई ले लेंगे। इसीलिए बापदादा विशेष लोभ के लिए न कह करके क्रोध को अन्डरलाइन करा रहा है। तो संस्कार बनायेंगे? अभी सब हाथ उठाओ और सबका फोटो निकालो। (सबने हाथ उठाया) अभी थोड़ी सी मुबारक देते हैं, बहुत नहीं और जब फिर से रिजल्ट देखेंगे फिर वतन के देवतायें भी, स्वर्ग के देवतायें भी आपके ऊपर वाह, वाह के पुष्प गिरायेंगे।

आज से हर एक अपने में देखे - दूसरे का नहीं देखना। दूसरे की यह बातें देखने के लिए मन की आंख बंद करना। यह आंखें तो बंद कर नहीं सकते ना, लेकिन मन की आंख बन्द करना - दूसरा करता है या तीसरा करता है, मुझे नहीं देखना है। बाप इतना भी फोर्स देकर कहते हैं कि अगर कोई विरला महारथी भी कोई ऐसी कमजोरी करे तो भी देखने के लिए और सुनने के लिए मन को अन्तर्मुखी बनाना। हंसी की बात सुनायें - बापदादा आज थोड़ा स्पष्ट सुना रहे हैं, बुरा तो नहीं लगता है। अच्छा-एक और भी स्पष्ट बात सुनाते हैं। बापदादा ने देखा है कि मैजारिटी समय प्रति समय, सदा नहीं कभी-कभी महारथियों की विशेषता को कम देखते और कमजोरी को बहुत गहराई से देखते हैं और फॉलो करते हैं। एक दो से वर्णन भी करते हैं कि क्या है, सबको देख लिया है। महारथी भी करते हैं, हम तो हैं ही पीछे। अभी महारथी जब बदलेंगे ना तो हम बदल जायेंगे। लेकिन महारथियों की तपस्या, महारथियों के बहुतकाल का पुरूषार्थ उन्हों को एडीशन मार्क्स दिलाकर भी पास विद आनर कर लेती है। आप इसी इन्तजार में रहेंगे कि महारथी बदलेंगे तो हम बदलेंगे तो धोखा खा लेंगे इसलिए मन को अन्तर्मुखी बनाओ। समझा। यह भी बापदादा बहुत सुनते हैं, देख लिया... देख लिया। हमारी भी तो आंखे हैं ना, हमारे भी तो कान हैं ना, हम भी बहुत सुनते हैं। लेकिन महारथियों से इस बात में रीस नहीं करना। अच्छाई की रेस करो, बुराई की रीस नहीं करो, नहीं तो धोखा खा लेंगे। बाप को तरस पड़ता है क्योंकि महारथियों का फाउन्डेशन निश्चय, अटूट-अचल है, उसकी दुआयें एक्स्ट्रा महारथियों को मिलती हैं। इसलिए कभी भी मन की आंख को इस बात के लिए नहीं खोलना। बंद रखो। सुनने के बजाए मन को अन्तर्मुखी रखो। समझा।

आज गर्म-गर्म हलुआ खिलाया है। लेकिन निजी संस्कार बनाओ। मेहनत करते हो, वह भी बापदादा को अच्छा नहीं लगता। बापदादा ने बच्चों का एक वन्डरफुल चित्र देखा। वह चित्र देखेंगे। सुनना चाहते हैं कि बहुत हलुआ खा लिया? कमाल का चित्र है। बापदादा को भी कमाल लगती है। वह चित्र क्या देखा? कि बच्चे कहते एक हैं और करते दूसरा हैं। मुख से कह रहे हैं - हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे, राम सीता नहीं, लक्ष्मी-नारायण और करते क्या हैं? कहते तो हैं लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। कहने वालों के मुख में गुलाबजामुन। लेकिन करते क्या हैं? पूछो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे पक्का? कहते हैं हाँ 100 परसेन्ट लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। लेकिन चित्र क्या दिखाते हैं? त्रेता वाले राम के समान युद्ध करते रहते हैं। तीर कमान हाथ में सदा ही है। कहते हैं लक्ष्मी-नारायण बनेंगे लेकिन प्रैक्टिकल में त्रेतायुगी राम समान युद्ध करते रहते हैं। सदा आधा समय युद्ध में, आधा समय योग में। सभी नहीं, लेकिन बहुत हैं। तो बापदादा को यह चित्र देख करके वन्डरफुल चित्र लगता है। जो कहते हो, जो अच्छा-अच्छा सोचते हो वह करना ही है। उसकी सहज विधि सुनाई कि ओरिजिनल निजी संस्कार को इमर्ज करो। संस्कार से स्वत: ही कर्म हो ही जाता है। मेहनत कम सफलता ज्यादा होती है, मेहनत से बच जायेंगे। जैसे आधाकल्प जब विश्व के मालिक बनते हो तो कई प्रकार की मेहनत से स्वत: ही छूट जाते हो। ऐसे इस समय निजी संस्कार बनाने से सहज मेहनत से छूट जायेंगे। समय प्रति समय कमान उठाने की, युद्ध करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। निरन्तर योगी, सहज योगी, कर्मयोगी, राजयोगी स्वत: ही बन जायेंगे। योग लगाना नहीं पड़ेगा लेकिन हर सेकण्ड, हर समय योगी जीवन स्वत: ही होगी। तो ऐसे ही चाहते हो ना?

ज्ञान, योग, धारणा और सेवा इन चारों सबजेक्ट का सार दो शब्द हैं। एक - बाप ही मेरा संसार है। दूसरा - हर गुण, हर शक्ति मेरा निज़ी संस्कार है। तो दो शब्द याद रखना - संसार और संस्कार। मुश्किल है क्या? थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? जब बात आ जाती है फिर तो मुश्किल है? लेकिन बात आपके आगे क्या है? बात बड़ी या बाप बड़ा? कौन बड़ा है? लेकिन उस समय बात बड़ी लगती है। बापदादा के पास ऐसे समय के बच्चों के फोटो बहुत हैं। म्यूजियम लगा हुआ है। कभी आना तो देखना। अपना ही फोटो देख लेना। लेकिन अभी समाप्ति समारोह मनाओ। जब आप यह समाप्ति समारोह मनायेंगे तब विश्व परिवर्तन का समारोह आपके सामने आयेगा।

और एक बात सुनायें, सुनने के लिए तैयार हो? बालक मालिक होते हैं ना! तो मालिक से आर्डर लेकर फिर सुनाना होता है। बेहद का हाल है ना। देखो जैसे रूण्ड माला दिखाई है ना। वैसे यहाँ आकर देखो तो रूण्ड माला ही लगती है। सिर्फ आपको फेस दिखाई देगा, बस। तो बेहद के हाल में बापदादा भी आज खुली दिल से बेहद की बातें बता रहे हैं। कल का दिन कौन सा था?(बुद्धवार) तो बुद्धवार की बात है। आज तो सभी रात का खेल देखकर थोड़ा थके हुए थे। थोड़ा सा परेशानी तो हुई ना। (रात को तूफान के साथ बरसात हुई) लेकिन लास्ट समय में तो बहुत कुछ होने वाला है। अगर थोड़ी सी रिहर्सल कर ली तो अच्छा है। थोड़ी रिहर्सल होनी चाहिए। बैग बैगेज समेटना और भागना, दौड़ना - यह तो एक्सरसाइज कराई। वैसे तो बूढ़ी-बूढ़ी मातायें भागती नहीं हैं लेकिन रात को बिस्तर और अटैची लेकर तो भागी। इसलिए यह भी खेल है। एक्सरसाइज तो हो गई ना। टांगे तो चली। यह छोटी-मोटी रिहर्सल तो फाइनल के आगे कुछ भी नहीं है। यह भी अभ्यास होना चाहिए। बापदादा ने कहा है एवररेडी रहो। इसमें भी एवररेडी, बारिस पड़ी सेकण्ड में चल पड़े। कोई डिस्टर्ब हुए? सेकण्ड में सेट हो गये। बापदादा भी समझते हैं जब तक पक्का नहीं बना है तब तक बच्चे कम आवें। लेकिन जितना ही कम कहते हैं उतना ही बढ़ता जाता है। लाल झण्डी दिखाते भी हैं - नहीं आओ, फिर भी आ जाते हो तो देखो खेल। बापदादा को बच्चों का स्नेह देखकर खुशी होती है और सदा यही बच्चों को कहते हैं - आओ बच्चे, आओ। नहीं आओ, कैसे कहेंगे! कह सकते हैं? तो सभी जितने भी आये हो, खुशी से आये हो और खुशी लेकर जाना और टोली के साथ-साथ पहले खुशी बांटना - उसके साथ टोली बांटना। अच्छा।

कल की बात सुनाते हैं। कल वतन में एडवांस पार्टी इमर्ज हुई थी। बापदादा से रूहरिहान कर रहे थे और बापदादा से पूछ रहे थे कि हमें जिस सेवा के अर्थ निमित्त बनाकर भेजा है, वह सेवा कब शुरू होगी? बापदादा ने क्या जवाब दिया होगा? वह बार-बार यही कह रहे थे कि हमें एडवांस पार्टी में जो जन्म दिलाया है, वह विशेष कार्य के लिए दिलाया है और मैजारिटी अच्छे ते अच्छे योगी तू आत्मायें, ज्ञानी तू आत्मायें, महावीर भी बहुत एडवांस पार्टी में गये हैं और जो दूसरे साथ में गये हैं, उन्हों में भी मैजारिटी ऐसी आत्मायें गई हैं जो स्नेही और गुप्त योगी हैं। मिक्स तो सबमें होते हैं लेकिन आपके हिसाब से जिसको महारथी नहीं कहें, मैजारिटी साधारण कहते हो, वह भी स्नेह के कारण योग में अच्छे पावरफुल रहे हैं। और विशेष योग की सबजेक्ट में आगे रहने वाली ऐसी आत्मायें, योगबल से जन्म देने के निमित्त बन नई सृष्टि की स्थापना करेंगी। तो वह पूछ रहे थे कि कब हमारी सेवा शुरू होगी? इसमें भी कुछ आत्माओं का, जो गई हैं अलग पार्ट भी है। सभी का एक जैसा नहीं है लेकिन मैजारिटी का नई सृष्टि के स्थापना का पार्ट बना हुआ है। तो रूहरिहान चल रही थी। बापदादा ने तो मुस्कुराते हुए उन्हों को दूसरी-दूसरी बातों में बिज़ी कर दिया क्योंकि कब का रेसपान्ड बापदादा को अकेला नहीं करना है, आप सभी को करना है। जब आप कहेंगे एवररेडी, तब उन्हों की सेवा आरम्भ होगी। इसीलिए विनाश का समय कभी भी फिक्स नहीं होना है। अचानक होना है। बापदादा ने पहले से ही इशारा दे दिया है, उस समय नहीं उल्हना देना कि बाबा थोड़ा इशारा तो देते। अचानक होना है, एवररेडी रहना है। इसके लिए एक निमित्त महारथी को एक्जैम्पल बनाया (दादी चन्द्रमणी को)। है तो सब ड्रामा अनुसार लेकिन कोई विशाल सेवा का एक्जैम्पल भी बनता है। इसलिए क्या करेंगे? जब बापदादा मिले तो सब मन से कहना, कागज का वायदा या मुख का वायदा नहीं, मन से वायदा करके दिखाना कि ''हम सब पुराने संस्कार खत्म कर अपने निजी संस्कार धारण करने वाले एवररेडी आत्मायें हैं।`` ठीक है? करेंगे? छोटी-छोटी बातें खत्म करो। ऐसे लगता है जैसे 60 साल का बुजुर्ग और बच्चे माफिक गेंद से खेले। अच्छा नहीं लगता। गेंद क्या, मिट्टी से खेलते हो। देह- अभिमान की मिट्टी से खेलते हो। अभी ज्ञान रत्नों से खेलो, गुणों से खेलो, शक्तियों से खेलो, मिट्टी से नहीं। किसी भी प्रकार का देह-अभिमान, मिट्टी से खेलना है। सुना! वतन का समाचार सुना!

आप सभी की यज्ञ माता, सरस्वती माता उसने विशेष सभी बच्चों को यादप् यार दिया है। दिया तो सभी ने है लेकिन विशेष यज्ञ माता ने आप सबके लिए बहुत-बहुत दिल से यादप्यार दिया है और यही महामन्त्र याद कराया कि अब घर चलने की तैयारी करो। किनारे सारे छोड़ो, चलो, उड़ो। यज्ञ माता से प्यार है ना! अच्छा।

आज बहुत बातें सुनाई हैं। अभी एक सेकण्ड में एकदम मन और बुद्धि को बिल्कुल प्लेन कर एक बाप से सर्व संबंधों का, बाप ही संसार है - चाहे व्यक्ति सम्बन्ध, चाहे प्राप्तियां, यही संसार है .... तो एक ही बाप संसार है, इस बाप की याद में, इस रूप में, इस रस में, इस अनुभव में लवलीन हो जाओ। (बापदादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) अच्छा।

आज टीचर्स भी आई है ना। हाथ उठाओ टीचर्स। जो खास प्रोग्राम प्रमाण भट्ठी में आई हैं वह हाथ उठाओ। विशेष टीचर्स प्रति, बापदादा सदा खुश होते हैं कि चाहे बड़ी, चाहे छोटी लेकिन अपने जीवन के लिए फैंसला करने में बहुत ही अच्छे अपने जज बने हैं, जो फट से अपने जीवन का फैंसला किया कि मुझे यही सेवा की जीवन व्यतीत करनी है। यह वायदा सभी टीचर्स ने किया है ना? या कभी-कभी सोचती हैं कि सोचा नहीं था ऐसा होगा, पहले पता होता तो नहीं करते। ऐसे तो नहीं सोचते? यहाँ एक गीत बजाते हो, बाहर का है या आप लोगों का है, एक गीत बजाते हो उसमें बाप को कहते हो - आपके फूलों से भी प्यार तो कांटों से भी प्यार। यह गाती हो? यह मन में धारणा है? कांटों से प्यार है तो कांटे तो चुभते भी हैं ना। अगर कांटे को प्यार से सम्भाल से उठाओ तो कांटे भी प्यारे लगते हैं और अलबेले पन में कांटे को हाथ लगाओ तो नाराजगी का खून भी निकलता है। तो ऐसे तो नहीं हो ना? आप तो प्यार करने वाले हो ना। छोटी-छोटी बातें, छोटे-छोटे कांटे हैं। लेकिन आपको तो कांटों से भी प्यार है क्योंकि कांटे अर्थात् छोटी-छोटी बातें अनुभवी बहुत बनाती हैं।

बापदादा को इस ग्रुप से जो अभी आये हैं और आने वाले भी हैं, उनसे बड़ों से भी ज्यादा प्यार है। क्यों प्यार है? क्योंकि नाम छोटी है लेकिन सेवा बड़ी करते हो। देखो, प्रदर्शनी कौन समझाते हैं, बड़े समझाते हैं या आप समझाती हो? कोर्स कौन कराता है, भाषण अच्छे-अच्छे कौन करता है? आप लोग ही तो करते हो। तो बापदादा, नाम छोटे है लेकिन सेवा में आपको बड़ों से भी बड़े समझते हैं। सिर्फ घबराना नहीं, घबराना काम कमजोरों का। आप तो बहुत बहादुर हो, महावीर हो, इसीलिए घबराओ नहीं। दिल छोटी कभी नहीं करो, बड़ी दिल। बड़े बाप के बच्चे हैं ना। छोटे बाप के बच्चे हैं क्या! तो छोटी दिल नहीं। न छोटी दिल करो न छोटी-छोटी बातों में घबराओ। सदा यह स्लोगन याद रखो कि देखने में छोटे हैं लेकिन काम बड़ा करके दिखायेंगे। बड़ों के सहयोगी बनेंगे। बड़ों को आंख नहीं दिखायेंगे लेकिन सहयोगी बन विश्व में नाम बाला करेंगे। ऐसी टीचर्स हैं? जो समझती हैं ऐसा ही करते हैं और करेंगे - वह हाथ उठाओ। यह तो बहुत हैं बहादुर। हाथ उठाना बहुत सहज है, देखना! फिर भी बापदादा आपके भाग्य पर खुश होते हैं। आपका भी बाप से बहुत प्यार है ना! तो बाप का भी आपसे बहुत प्यार है, सिर्फ छोटी दिल नहीं करना। कोमल नहीं बनना, महावीर बनना। कभी भी चेहरे पर कमजोरी का, कोमलता का चिन्ह न हो। निर्माणता अलग चीज़ है, कोमलता अलग चीज़ है। निर्माण भले बनो, कोमल नहीं बनो। कोमल कहते हैं जो पानी का फल हो। ऐसे लगाओ पानी और बह जाये उसको कहते हैं कोमल। तो कोमल नहीं बनना, कमाल करके दिखाना। बातें तो बड़ों के सामने भी आती हैं, आपके सामने भी आती हैं लेकिन आप और ही ऐसे समझो कि हम एक्जैम्पल बनकर दिखायेंगे। हम ज्ञान और योग में आगे हैं और रहेंगे। बातों की परवाह नहीं करो। कभी भी हर्षितमुख चेहरा बदलना नहीं चाहिए। सदा मन, तन मुस्कुराता रहे। समझा! कमाल करके दिखायेंगी? कभी भी मन मुरझाये नहीं, मुस्कुराता रहे। हो सकता है?

टीचर्स बोलो-हाँ जी? हाँ जी बोल रही हो या ना जी? मन से बोल रही हो या मुख से? देखो, बापदादा ने विशेष मिलने के लिए प्रोग्राम रखा। तो सदा मुस्कुराते रहना तभी आपके पूज्य स्वरूप में यादगार बन जायेगा। सब खुश हैं? बापदादा मिला, बातें की? अभी जो भट्ठी हो उसमें इस ग्रुप की सभी टीचर्स नम्बरवन हो, सेकण्ड नम्बर नहीं हो, सेकण्ड ग्रुप का नाम है, आप सेकण्ड नहीं हो। तो जो सेकण्ड ग्रुप आया है वह सब बात में नम्बरवन हो। अच्छा।

टीचर्स सिकीलधी हैं ना? सेवा तो बहुत करती हैं ना, दिन रात लगी हुई तो हैं। ऐसे ही जो भी यहाँ शान्तिवन में वा मधुबन में, ज्ञान सरोवर में, हॉस्पिटल में, संगम भवन में सेवा पर हैं, सभी तरफ के सेवाधारियों को बापदादा प्यार की मसाज़ कर रहे हैं। जो भी जहाँ सेवा कर रहे हैं, वह सभी अपने को प्यार की अपने हाथ में मसाज़ अनुभव करना। नाम कितनों का लेंगे। देखो आप सबकी सेवा है। आप आये तो सेवाधारियों को सेवा का भाग्य दिया। तो पहले तो आप हो। अगर आने वाले आते नहीं तो सेवाधारी किसकी सेवा करते। तो महत्व तो आपका भी है ना! अच्छा।

चारों ओर के सर्व बापदादा के लवलीन आत्मायें, सर्व बाप के सेवाधारी आत्मायें, सर्व सहज पुरूषार्थ को अपनाने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बाप समान बनने के लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाली, बाप के समीप आत्माओं को बापदादा का बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते।

अच्छा-डबल फॉरेनर्स ठीक हैं? हाथ हिलाओ। बहुत अच्छा-देखो, डबल फॉरेनर्स हो तो बैठने के लिए भी डबल हाल चाहिए। इसीलिए आपको यह डबल, ट्रिबल हाल में बिठाया है। डबल फॉरेनर्स को अच्छा लगता है? बापदादा को भी बेहद अच्छी लगती है। लेकिन यह बेहद भी हद हो गई है। अभी से छोटा हो गया है। अभी क्या करेंगी? देखो लास्ट तक फुल बैठे हैं। वृद्धि तो होनी है। अच्छा।

डबल फॉरेनर्स इस सीजन में खुश हैं? ज्ञान सरोवर में खुश हैं? देखो, डबल फॉरेनर्स, डबल भाग्यवान हो, सब दादियां आपके लिए ज्ञान सरोवर में आती हैं, आपको आने की मेहनत नहीं करनी पड़ती, वहाँ ही पहुंच जाती हैं। सिकीलधे हो ना। तो सिकीलधे को मेहनत नहीं दी जाती है। तो आपके पास सभी दादियां, दादे आते हैं तो अच्छा लगता है ना। सिर्फ डबल फॉरेनर्स की सीजन में तो अपने आपको ही देखते हो, कभी भारत वालों को भी तो देखो, इसीलिए अभी मिक्स किया है। अच्छा लगता है मिक्स या अलग? अच्छा। आखिर तो अभी डबल विदेशी हो लेकिन ओरिजिनल तो भारत के हो ना कि विदेश के हो? भारत के हो ना! राज्य कहाँ करेंगे, अमेरिका में, लण्डन में या भारत में? भारत में ही करेंगे ना। इसीलिए भारत और विदेश का संगम है। बापदादा तो आपको इसी रूप में देखते हैं कि आदि भारतवासी हैं और अभी भी भारत में ही रहेंगे, भारतवासी बनेंगे। अच्छा। ओम् शान्ति।

जगदीश भाई तथा अन्य मुख्य भाईयों से

सेवा में पहला सेवा के निमित्त बनना और सेवा में सरेन्डर होना - ये आपका विशेष पार्ट है। अच्छा है चारों का अपना-अपना पार्ट है। सभी की विशेषता आपनी-अपनी है।

सभी की विशेषता आवश्यक है ना। इनकी विशेषता भी आवश्यक है, आपकी भी आवश्यक है। जैसे बहुत चीजें मिला के अच्छी बन जाती हैं ना टेस्टी, तो ऐसे सभी की विशेषता मिलकर सेवा में टेस्ट आ जाती है।

सभी की विशेषता चाहिए। बहुत अच्छा। दादियों ने कहा और पाण्डवों ने माना - ये बहुत अच्छी बात है, जब भी बुलायें हां-जी, हाँ-जी। आपके संगठन के आधार पर सारा दैवी परिवार चलता है। इसलिए जैसे दादियां निमित्त हैं, वैसे आप भी निमित्त हो। जिम्मेवार हो। हैं या नहीं हैं? सब बात में समझो हम सब सेवा के साथी हैं, यह 10-12 नहीं हैं लेकिन एक हैं, इसमें यज्ञ का शान है। बाप-दादा सभी को एवररेडी देखकर बहुत खुश हैं, कार्य तो बढ़ने ही हैं। कम तो होने नहीं हैं। संगठन की शक्ति बहुत वायुमण्डल को पावर देता है। राइट हैण्ड तो आप लोग हो ना! विशेष राइटहैण्ड हो। ठीक है ना? सोच में तो नहीं हो? नहीं। निमित्त हैं निमित्त बन अंगुली लास्ट तक देनी है। अच्छा।

सब ठीक हैं। सेवा में सफलता है ही ना? वृद्धि भी हो रही है और विधि भी स्पष्ट हो रही है। सहज है ना?

(मोहिनी बहन अमेरिका का समाचार सुना रही हैं) दिल का प्यार ले आया है क्योंकि बापदादा जानते हैं जितना सेवा से प्यार है उतना बाप से भी दिल का प्यार है। तो दिल का प्यार दिल तक पहुंचाता है। बहुत अच्छा किया। यह उड़ती कला की निशानी है। जैसे स्थूल में उड़करके आये ना। तो यह उड़ना, उड़ती कला की विधि को सिद्ध करता है। अच्छी रफतार ठीक है।

वेदान्ती बहन से:- आप छत्रछाया के बीच में हो। सेवा अच्छी चल रही है। डोंट केयर।

सुदेश बहन से:- सभी को प्यार से चलाओ। पहले इन्हों को ठीक करेंगी फिर होगा। पहले इन आत्माओं को पक्का करो और ही एक्स्ट्रा पावरफुल स्टेज से। ठीक।

चक्रधारी बहन से:- रशिया तो अच्छा है। रिजल्ट अच्छी है। धरनी भी अच्छी है। रशिया की धरनी अच्छी है इसीलिए फल जल्दी निकलता है।

जो इस समय शान्तिवन की सेवा में हाजिर हैं वह हाथ उठाओ। इन्दौर वाले हाथ उठाओ। । अच्छी सेवा कर रहे हो, उमंग और उत्साह से सेवा कर रहे हो और अनेकों की दुआयें प्राप्त कर रहे हो। ऐसे ही सदा सेवा में दुआयें लेते रहना।

अशोक मेहता के बच्चे से:- लक्की है ना? ब्राह्मण परिवार के प्यारे हो। देखो लौकिक परिवार में भी लकी, अलौकिक परिवार में भी लकी। अभी क्या करेगें जाकर? आज क्या पाठ पढ़ा? (गुस्सा कम करेंगे)तो यहाँ गुस्सा छोड़कर जा रहे हो। जब भी गुस्सा आवे ना तो यह हाल इमर्ज करना। बहुत अच्छा। ऐसे ही खिले हुए रूहे गुलाब बनना।