01-03-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


होली मनाना अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र बनकर संस्कार मिलन मनाना

आज बापदादा चारों ओर के अपने होलीएस्ट और हाइएस्ट बच्चों को देख रहे हैं। विश्व में सबसे हाइएस्ट ऊँचे-ते-ऊँचे श्रेष्ठ आत्मायें आप बच्चों के सिवाए और कोई है? क्योंकि आप सभी ऊँचे-ते-ऊँचे बाप के बच्चे हैं। सारे कल्प में चक्र लगाकर देखो तो सबसे ऊँचे मर्तबे वाले और कोई नज़र आते हैं? राज्य-अधिकारी स्वरूप में भी आपसे ऊँचे राज्य अधिकारी बने हैं? फिर पूजन और गायन में देखो जितनी पूजा विधिपूर्वक आप आत्माओं की होती है उससे ज्यादा और किसी की है? वण्डरफुल राज़ ड्रामा का कितना श्रेष्ठ है जो आप स्वयं चैतन्य स्वरूप में, इस समय अपने पूज्य स्वरूप को नॉलेज के द्वारा जानते भी हो और देखते भी हो। एक तरफ आप चैतन्य आत्मायें हैं और दूसरे तरप् आपके जड़ चित्र पूज्य रूप में हैं। अपने पूज्य स्वरूप को देख रहे हो ना? जड़ रूप में भी हो और चैतन्य रूप में भी हो। तो वण्डरफुल खेल है ना! और राज्य के हिसाब से भी सारे कल्प में निर्विघ्न, अखण्ड-अटल राज्य एक आप आत्माओं का ही चलता है। राजे तो बहुत बनते हैं लेकिन आप विश्वराज़न वा विश्वराजन की रॉयल फैमिली सबसे श्रेष्ठ है। तो राज्य में भी हाइएस्ट, पूज्य रूप में भी हाइएस्ट और अब संगम पर परमात्म-वर्से के अधिकारी, परमात्म मिलन के अधिकारी, परमात्म-प्यार के अधिकारी, परमात्म-परिवार की आत्मायें और कोई बनती हैं? आप ही बने हो ना? बन गये हो या बन रहे हो? बन भी गये और अब तो वर्सा लेकर सम्पन्न बन बाप के साथ-साथ अपने घर में भी चलने वाले हैं। संगम का सुख, संगमयुग की प्राप्तियाँ, संगमयुग का समय सुहाना लगता है ना! बहुत प्यारा लगता है। राज्य के समय से भी संगम का समय प्यारा लगता है ना? प्यारा है या जल्दी जाने चाहते हो? फिर पूछते क्यों हो कि बाबा विनाश कब होगा? सोचते हो ना - पता नहीं विनाश कब होगा? क्या होगा? हम कहाँ होंगे? बापदादा कहते हैं जहाँ भी होंगे - याद में होंगे, बाप के साथ होंगे। साकार में या आकार में साथ होंगे तो कुछ नहीं होगा। साकार में कहानी सुनाई है ना। बिल्ली के पूंगरे भट्ठी में होते हुए भी सेफ रहे ना! या जल गये? सब सेफ रहे। तो आप परमात्म बच्चे जो साथ होंगे वह सेफ रहेंगे। अगर और कहाँ बुद्धि होगी तो कुछ-न-कुछ सेक लगेगा, कुछ-न-कुछ प्रभाव होगा। साथ में कम्बाइण्ड होंगे, एक सेकण्ड भी अकेले नहीं होंगे तो सेफ रहेंगे। कभी-कभी कामकाज़ या सेवा में अकेले अनुभव करते हो? क्या करें अकेले हैं, बहुत काम है! फिर थक भी जाते हैं। तो बाप को क्यों नहीं साथी बनाते! दो भुजा वालों को साथी बना देते, हज़ार भुजा वाले को क्यों नहीं साथी बनाते। कौन ज्यादा सहयोग देगा? हज़ार भुजा वाला या दो भुजा वाला?

संगमयुग पर ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी अकेले नहीं हो सकते। सिर्फ जब सेवा में, कर्मयोग में बहुत बिजी हो जाते हो ना तो साथ भी भूल जाते हो और फिर थक जाते हो। फिर कहते हो थक गये, अभी क्या करें! थको नहीं, जब बापदादा आपको सदा साथ देने के लिए आये हैं, परमधाम छोड़कर क्यों आये हैं? सोते, जागते, कर्म करते, सेवा करते, साथ देने के लिए ही तो आये हैं। ब्रह्मा बाप भी आप सबको सहयोग देने के लिए अव्यक्त बनें। व्यक्त रूप से अव्यक्त रूप में सहयोग देने की रफ्तार बहुत तीव्र है, इसलिए ब्रह्मा बाप ने भी अपना वतन चेंज कर दिया। तो शिव बाप और ब्रह्मा बाप दोनों हर समय आप सबको सहयोग देने के लिए सदा हाज़र हैं। आपने सोचा बाबा और सहयोग अनुभव करेंगे। अगर सेवा, सेवा, सेवा सिर्फ वही याद है, बाप को किनारे बैठ देखने के लिए अलग कर देते हो, तो बाप भी साक्षी होकर देखते हैं, देखें कहाँ तक अकेले करते हैं। फिर भी आने तो यहाँ ही हैं। तो साथ नहीं छोड़ो। अपने अधिकार और प्रेम की सूक्ष्म रस्सी से बाँधकर रखो। ढीला छोड़ देते हो। स्नेह को ढीला कर देते हो, अधिकार को थोड़ा सा स्मृति से किनारा कर देते हो। तो ऐसे नहीं करना। जब सर्वशक्तिवान साथ का आफर कर रहा  है तो ऐसी आफर सारे कल्प में मिलेगी? नहीं मिलेगी ना? तो बापदादा भी साक्षी होकर देखते हैं, अच्छा देखें कहाँ तक अकेले करते हैं!

तो संगमयुग के सुख और सुहेजों को इमर्ज रखो। बुद्धि बिजी रहती है ना तो बिजी होने के कारण स्मृति मर्ज हो जाती है। आप सोचो सारे दिन में किसी से भी पूछें कि बाप याद रहता है या बाप की याद भूलती है? तो क्या कहेंगे? नहीं। यह तो राइट है कि याद रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहता है या मर्ज रहता है? स्थिति क्या होती है? इमर्ज रूप की स्थिति या मर्ज रूप की स्थिति, इसमें क्या अन्तर है? इमर्ज रूप में याद क्यों नहीं रखते? इमर्ज रूप का नशा शक्ति, सहयोग, सफलता बहुत बड़ी है। याद तो भूल नहीं सकते क्योंकि एक जन्म का नाता नहीं है, चाहे शिव बाप सतयुग में साथ नहीं होगा लेकिन नाता तो यही रहेगा ना! भूल नहीं सकता है, यह राइट है। हाँ कोई विघ्न के वश हो जाते हो तो भूल भी जाता है लेकिन वैसे जब नेचरल रूप में रहते हो तो भूलता नहीं है लेकिन मर्ज रहता है। इसलिए बापदादा कहते हैं - बार-बार चेक करो कि साथ का अनुभव मर्ज रूप में है या इमर्ज रूप में? प्यार तो है ही। प्यार टूट सकता है? नहीं टूट सकता है ना? तो प्यार जब टूट नहीं सकता तो प्यार का फायदा तो उठाओ। फायदा उठाने का तरीका सीखो।

बापदादा देखते हैं प्यार ने ही बाप का बनाया है। प्यार ही मधुबन निवासी बनाता है। चाहे अपने स्थान पर कैसे भी रहें, कितना भी मेहनत करें लेकिन फिर भी मधुबन में पहुँच जाते हैं। बापदादा जानते हैं, देखते हैं, कई बच्चों को कलियुगी सरकमस्टांश होने के कारण टिकिट लेना भी मुश्किल है परन्तु प्यार पहुँचा ही देता है। ऐसे है ना? प्यार में पहुँच जाते हैं लेकिन सरकमस्टांश तो दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जाते हैं। सच्ची दिल पर साहेब राज़ी तो होता ही है। लेकिन स्थूल सहयोग भी कहाँ-न-कहाँ कैसे भी मिल जाता है। चाहे डबल फॉरेनर्स हों, चाहे भारतवासी, सबको यह बाप का प्यार सरकमस्टांश की दीवार पार करा लेता है। ऐसे है ना? अपने-अपने सेन्टर्स पर देखो तो ऐसे बच्चे भी हैं जो यहाँ से जाते हैं, सोचते हैं पता नहीं दूसरे वर्ष आ सकेंगे या नहीं आ सकेंगे लेकिन फिर भी पहुंच जाते हैं। यह है प्यार का सबूत। अच्छा।

आज होली मनाई? मना ली होली? बापदादा तो होली मनाने वाले  होली हंसों को देख रहे हैं। सभी बच्चों का एक ही टाइटल है होलीएस्ट। द्वापर से लेकर किसी भी धर्मात्मा या महात्मा ने सर्व को होलीएस्ट नहीं बनाया है। स्वयं बनते हैं लेकिन अपने फॉलोअर्स को, साथियों को होलीएस्ट, पवित्र नहीं बनाते और यहाँ पवित्रता ब्राह्मण जीवन का मुख्य आधार है। पढ़ाई भी क्या है? आपका स्लोगन भी है ‘‘पवित्र बनो-योगी बनो’’। स्लोगन है ना? पवित्रता ही महानता है। पवित्रता ही योगी जीवन का आधार है। कभी-कभी बच्चे अनुभव करते हैं कि अगर चलते-चलते मन्सा में भी अपवित्रता अर्थात् वेस्ट वा निगेटिव, परचिन्तन के संकल्प चलते हैं तो कितना भी योग पावरफुल चाहते हैं, लेकिन होता नहीं है क्योंकि ज़रा भी अंशमात्र संकल्प में भी किसी प्रकार की अपवित्रता है तो जहाँ अपवित्रता का अंश है वहाँ पवित्र बाप की याद जो है, जैसा है वैसे नहीं आ सकती। जैसे दिन और रात इकठ्ठा नहीं होता। इसीलिए बापदादा वर्तमान समय पवित्रता के ऊपर बार-बार अटेन्शन दिलाते हैं। कुछ समय पहले बापदादा सिर्फ कर्म में अपवित्रता के लिए इशारा देते थे लेकिन अभी समय सम्पूर्णता के समीप आ रहा है इसलिए मन्सा में भी अपवित्रता का अंश धोखा दे देगा। तो मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध-सम्पर्क सबमें पवित्रता अति आवश्यक है। मन्सा को हल्का नहीं करना क्योंकि मन्सा बाहर से दिखाई नहीं देती है लेकिन मन्सा धोखा बहुत देती है। ब्राह्मण जीवन का जो आन्तरिक वर्सा सदा सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप, मन की सन्तुष्टता है, उसका अनुभव करने के लिए मन्सा की पवित्रता चाहिए। बाहर के साधनों द्वारा या सेवा द्वारा अपने आपको खुश करना - यह भी अपने को धोखा देना है।

बापदादा देखते हैं कभी-कभी बच्चे अपने को इसी आधार पर अच्छा समझ, खुश समझ धोखा दे देते हैं, दे भी रहे हैं। दे देते हैं और दे भी रहे हैं, यह भी एक गु¿ राज़ है। क्या होता है, बाप दाता है, दाता के बच्चे हैं, तो सेवा युक्तियुक्त नहीं भी है, मिक्स है, कुछ याद और कुछ बाहर के साधनों वा खुशी के आधार पर है, दिल के आधार पर नहीं लेकिन दिमाग के आधार पर सेवा करते हैं तो सेवा का प्रत्यक्ष फल उन्हों को भी मिलता है; क्योंकि बाप दाता है और वह उसी में ही खुश रहते हैं कि वाह हमको तो फल मिल गया, हमारी अच्छी सेवा है। लेकिन वह मन की सन्तुष्टता सदाकाल नहीं रहती और आत्मा योगयुक्त पावरफुल याद का अनुभव नहीं कर सकती, उससे वंचित रह जाते। बाकी कुछ भी नहीं मिलता हो, ऐसा नहीं है। कुछ-न-कुछ मिलता है लेकिन जमा नहीं होता। कमाया, खाया और खत्म। इसलिए यह भी अटेन्शन रखना। सेवा बहुत अच्छी कर रहे हैं, फल भी अच्छा मिल गया, तो खाया और खत्म। जमा क्या हुआ? अच्छी सेवा की, अच्छी रिज़ल्ट निकली, लेकिन वह सेवा का फल मिला, जमा नहीं होता। इसलिए जमा करने की विधि है - मन्सा, वाचा, कर्मणा - पवित्रता। फाउण्डेशन पवित्रता है। सेवा में भी फाउण्डेशन पवित्रता है। स्वच्छ हो, साफ हो। और कोई भी भाव मिक्स नहीं हो। भाव में भी पवित्रता, भावना में भी पवित्रता। होली का अर्थ ही है - पवित्रता। अपवित्रता को जलाना। इसीलिए पहले जलाते हैं फिर मनाते हैं और फिर पवित्र बन संस्कार मिलन मनाते हैं। तो होली का अर्थ ही है - जलाना, मनाना। बाहर वाले तो गले मिलते हैं लेकिन यहाँ संस्कार मिलन, यही मंगल मिलन है। तो ऐसी होली मनाई या सिर्फ डांस कर ली? गुलाबजल डाल दिया? वह भी अच्छा है खूब मनाओ। बापदादा खुश होते हैं गुलाबजल भले डालो, डांस भले करो लेकिन सदा डांस करो। सिर्फ 5-10 मिनट की डांस नहीं। एक-दो में गुणों का वायब्रेशन फैलाना - यह गुलाबजल डालना है। और जलाने को तो आप जानते ही हो, क्या जलाना है! अभी तक भी जलाते रहते हो। हर वर्ष हाथ उठाकर जाते हैं, बस दृढ़ संकल्प हो गया। बापदादा खुश होते हैं, हिम्मत तो रखते हैं। तो हिम्मत पर बापदादा मुबारक भी देते हैं। हिम्मत रखना भी पहला कदम है। लेकिन बापदादा की शुभ आशा क्या है? समय की डेट नहीं देखो। 2 हज़ार में होगा, 2001 में होगा, 2005 में होगा, यह नहीं सोचो। चलो एवररेडी नहीं भी बनो इसको भी बापदादा छोड़ देते हैं, लेकिन सोचो बहुतकाल के संस्कार तो चाहिए ना! आप लोग ही सुनाते हो कि बहुतकाल का पुरूषार्थ, बहुतकाल के राज्य-अधिकारी बनाता है। अगर समय आने पर दृढ़ संकल्प किया, तो वह बहुतकाल हुआ या अल्पकाल हुआ? किसमें गिनती होगा? अल्पकाल में होगा ना! तो अविनाशी बाप से वर्सा क्या लिया? अल्पकाल का। यह अच्छा लगता है? नहीं लगता है ना! तो बहुतकाल का अभ्यास चाहिए, कितना काल है वह नहीं सोचो, जितना बहुतकाल का अभ्यास होगा, उतना अन्त में भी धोखा नहीं खायेंगे। बहुतकाल का अभ्यास नहीं तो अभी के बहुतकाल के सुख, बहुतकाल की श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव से भी वंचित हो जाते हैं। इसलिए क्या करना है? बहुतकाल करना है? अगर किसी के भी बुद्धि में डेट का इन्तजार हो तो इन्तज़ार नहीं करना, इन्तज़ाम करो। बहुतकाल का इन्तज़ाम करो। डेट को भी आपको लाना है। समय तो अभी भी एवररेडी है, कल भी हो सकता है लेकिन समय आपके लिए रूका हुआ है। आप सम्पन्न बनो तो समय का पर्दा अवश्य हटना ही है। आपके रोकने से रूका हुआ है। राज्य-अधिकारी तो तैयार हो ना? तख़्त तो खाली नहीं रहना चाहिए ना! क्या अकेला विश्वराजन तख़्त पर बैठेगा! इससे शोभा होगी क्या? रॉयल फैमिली चाहिए, प्रजा चाहिए, सब चाहिए। सिर्फ विश्वराजन तख़्त पर बैठ जाए, देखता रहे कहाँ गई मेरी रॉयल फैमिली। इसलिए बापदादा की एक ही शुभ आशा है कि सब बच्चे चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, जो भी अपने को ब्रह्माकुमारी या ब्रह्माकुमार कहलाते हैं, चाहे मधुबन निवासी, चाहे विदेश निवासी, चाहे भारत निवासी - हर एक बच्चा बहुतकाल का अभ्यास कर बहुतकाल के अधिकारी बनें। कभी-कभी के नहीं। पसन्द है? एक हाथ की ताली बजाओ। पीछे वाले होशियार हैं, अटेन्शन से सुन रहे हैं। बापदादा पीछे वालों को अपने आगे देख रहा है। आगे वाले तो हैं ही आगे। (मेडीटेशन हाल में बैठकर मुरली सुन रहे हैं) नीचे वाले बापदादा के सिर के ताज होकर बैठे हैं। वह भी ताली बजा रहे हैं। नीचे वालों को त्याग का भाग्य तो मिलना ही है। आपको सम्मुख बैठने का भाग्य है और उन्हों के त्याग का भाग्य जमा हो रहा है। अच्छा बापदादा की एक आश सुनी! पसन्द है ना! अभी अगले वर्ष क्या देखेंगे? ऐसे ही फिर भी हाथ उठायेंगे! हाथ भले उठाओ, दो-दो उठाओ परन्तु मन का हाथ भी उठाओ। दृढ़ संकल्प का हाथ सदा के लिए उठाओ।

बापदादा एक-एक बच्चे के मस्तक में सम्पूर्ण पवित्रता की चमकती हुई मणी देखने चाहते हैं। नयनों में पवित्रता की झलक, पवित्रता के दो नयनों के तारे, रूहानियत से चमकते हुए देखने चाहते हैं। बोल में मधुरता, विशेषता, अमूल्य बोल सुनने चाहते हैं। कर्म में सन्तुष्टता, निर्माणता सदा देखने चाहते हैं। भावना में - सदा शुभ भावना और भाव में सदा आत्मिक भाव, भाई-भाई का भाव। सदा आपके मस्तक से लाइट का, फरिश्ते पन का ताज दिखाई दे। दिखाई देने का मतलब है अनुभव हो। ऐसे सजे सजाये मूर्त्त देखने चाहते हैं। और ऐसी मूर्त्त ही श्रेष्ठ पूज्य बनेगी। वह तो आपके जड़ चित्र बनायेंगे लेकिन बाप चैतन्य चित्र देखने चाहते हैं। अच्छा –

चारों ओर के सदा बापदादा के साथ रहने वाले, समीप के सदा के साथी, सदा बहुतकाल के पुरूषार्थ द्वारा बहुतकाल का संगमयुगी अधिकार और भविष्य राज्य-अधिकार प्राप्त करने वाले अति सेन्सीबुल आत्मायें, सदा अपने को शक्तियों, गुणों से सजे-सजाये रखने वाले, बाप की आशाओं के दीपक आत्मायें, सदा स्वयं को होलीएस्ट और हाइएस्ट स्थिति में स्थित रखने वाले बाप समान अति स्नेही आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

सर्व विदेश वा देश में दूर बैठे हुए भी सम्मुख अनुभव करने वालों को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत यादप्यार।

दादी जी

से बापदादा आपको सदा मुबारकें बहुत देते हैं। तन की दुआयें भी देते हैं, मन का साथ भी देते हैं और सेवा के साथी भी बनते हैं। ऐसे अनुभव होता है? तन की दुआयें भी बहुत मिलती हैं। यह दवाई बहुत अच्छी मिल रही है। बाकी हिसाब-किताब तो ब्रह्मा बाप ने भी चुक्तू किया तो सबको करना है। सब सूली से कांटा हो जाता है, बाकी दुआयें बहुत मिलती हैं। परिवार द्वारा भी तो बापदादा द्वारा भी। अमृतवेले से लेकर रात तक बापदादा दुआओं से मालिश करते रहते हैं। ऐसे अनुभव होता है ना? आप नहीं चल रही हैं, चलाने वाला चला रहा है, इसीलिए अथक हैं। अच्छा।

स्पेशल दुआयें हैं। (दादी जानकी से) स्पेशल दुआयें हैं ना? सब निमित्त बनने वालों को स्पेशल दुआयें मिलती हैं। आप फॉरेनर्स से क्या चाहती हो? (सभी बापदादा के गले में पिरो जायें) यह तो बहुत कुछ चाहती हैं, आप भी बहुत कुछ करते हो ना! यह प्यार की पालना दे रही हैं, इतना अटेन्शन रखना - यही दिल का प्यार है। जिससे प्यार होता है ना उसकी कमी देख नहीं सकते। (बापदादा ने दादी, दादी जानकी को साथ में बिठाया)

यह दादियाँ जो हैं ना - यह बाप के बड़े भाई हैं। तो भाई तो साथ बैठते हैं ना? अच्छी मेहनत नहीं लेकिन मुहब्बत अच्छी करते हैं। बापदादा भी निमित्त बनने वालों को और जो करने वाले हैं उन्हों को देखकर खुश होते हैं। आप भी कम नहीं हो। और यह भी कम नहीं हैं। अच्छा।

(शान्तिवन से यहाँ अच्छा लगता है) लेकिन अनेक वंचित रह जायेंगे। सभी भाई-बहनों का ख्याल तो रखना है ना। यह तो होली का चांस आपको मिल गया है।

विदेशी भाई-बहनों से

पहला चांस डबल फॉरेनर्स को मिला है। देखो सबका डबल फॉरेनर्स से कितना प्यार है। पहला चांस आपको ही मिला है। अच्छा है, बापदादा सेवा में वृद्धि का उमंग-उत्साह देख खुश होता है। बापदादा वतन में भी आपकी मीटिंग्स, प्लैन, प्रोग्राम, रूह-रूहान सब कुछ देखते हैं। अच्छा चांस भी मिलता है। हर साल फॉरेन में इतना संगठन तो नहीं हो सकता है। यहाँ एक तो कितना बेहद का बड़ा परिवार है, यह देखने को मिलता है, सबका परिचय हो जाता है। और दूसरा पावरफुल पालना भी मिलती है, प्यार भी मिलता है। और बीच बीच में थोड़ी सी स्ट्रिक्ट की आँख दिखाना भी ज़रूरी है। अटेन्शन है लेकिन अटेन्शन को अन्डरलाइन हो जाता है। ऐसे अनुभव करते हो जो मधुबन में पालना मिलती है तो अण्डरलाइन तो होती है ना! और समीप भी आते हैं।

बापदादा को डबल फॉरेनर्स की, मैजारिटी की एक विशेषता वर्तमान समय की बहुत अच्छी लगती है, एक तो जो बार-बार समथिंग-समथिंग कहते थे ना, वह अभी मैजारिटी का कम है। पहले तो छोटी-छोटी बात में कहते थे समथिंग, समटाइम। लेकिन अभी अच्छे हिम्मत वाले बन आगे बढ़ रहे हैं। बचपन पूरा हुआ है, कहाँ-कहाँ पुरूषार्थ में यूथ हैं और कहाँ-कहाँ वानप्रस्थ के नज़दीक हैं। तो यूथ वालों को अभी भी थोड़ी लहर आती है। आयु में यूथ नहीं, पुरूषार्थ में। फिर भी पहले और अभी में अन्तर है। अभी नॉलेज़फुल हो गये हैं। समझ गये हैं - क्या करना है, कैसे चलना है, इसके नॉलेज़फुल बन गये हैं। बाकी क्या रहा है? अभी पावरफुल बनना है, उसमें अण्डरलाइन करो। सेन्टर भी बढ़ते जाते हैं। हिम्मत रखकर सेन्टर खोलते अच्छे हैं। जो सभी सेन्टर्स सम्भालते हैं, सेन्टर पर रहते हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा - तो सेन्टर पर रहने वाले वा निमित्त बनने वाले कभी थकावट होती है? थोड़ी-थोड़ी होती है? थोड़ा टाइम होती है फिर ठीक हो जाते हैं। अच्छा है, देखो आप लोगों को एक विशेष लिफ्ट है सेवा की। भारत में तो पहले ट्रेनिंग करते हैं फिर ट्रायल पर रहती फिर टीचर बनती और आप लोग सीधा ही सेन्टर इन्चार्ज बन जाते। तो यह चांस तो अच्छा है ना। डबल काम करते हैं। हिम्मत के कारण आगे बढ़ रहे हो और बढ़ते रहेंगे। जॉब भी करते, सेन्टर भी सम्भालते, थक कर आते फिर थोड़े टाइम में अपने को रिफ्रेश कर फिर सेन्टर सम्भालते, यह देख करके बापदादा को कभी-कभी दिल में विशेष प्यार आता है। डबल बिजी हो गये ना। लेकिन डबल कार्य करने का डबल फायदा भी होता है। सेवा करना अर्थात् अपने पुण्य का खाता जमा करना और जितना नि:स्वार्थ, युक्तियुक्त सेवा भाव से सेवा करते हैं, उतनी पुण्य की पूंजी जमा करते हो। और वही पुण्य की पूंजी, खज़ाना साथ में ले जायेंगे। उस पुण्य की कमाई आधाकल्प की कमाई हो जायेगी। तो पुण्य आत्मायें अच्छी हो। मैं निमित्त सेवाधारी पुण्य आत्मा हूँ, यह स्मृति छोटे-छोटे पापों से मुक्त कर देती है। तो सदा चेक करो कि आज के दिन मन्सा द्वारा या सेवा द्वारा कितने पुण्य जमा किये? और पुण्य के आधार से छोटी-छोटी बातें कितनी समाप्त हो गई? खर्च कितना हुआ और बचत कितनी हुई? अगर बार-बार विघ्न आते हैं और उसको मिटाने के लिए गुण और शक्तियों का खर्च करते हैं तो वह कितना हुआ? और योगयुक्त अवस्था से बाप को साथी बनाकर सेवा करने में पुण्य का खाता कितना जमा हुआ? सबसे बड़े से बड़े मल्टीमिलियनेर आप हो। एक दिन में देखो कितनी कमाई करते हो? इतनी कमाई न फॉरेन में कोई कर सकता है, न भारत में कर सकता है। तो मल्टी मल्टी लगाते जाओ जैसे हिसाब में बिन्दी लगाओ तो बढ़ जाता है ना। एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता है और दो बिन्दी लगाओ तो 100 हो जाता है और लगाओ तो हजार हो जाता है, बिन्दी की कमाल है। तो आप ऐसे बिन्दी लगाते जाओ, मल्टी मल्टी मल्टी-मिल्युनर हो जाओ।

अच्छा - सब ठीक हो? पाण्डव ठीक हैं? बहुत अच्छा। बापदादा को भी नाज़ है कि विश्व में जहाँ भी जाओ बाप के बच्चे हैं। आप लोगों को भी नशा होता है ना जिस देश में भी जाओ तो क्या कहेंगे? हमारा घर है। ऐसे लगता है ना कितने घर हो गये हैं आपके? इतने घर किसके होंगे? सभी कहते हो बाबा का घर है, बाबा के घर में जा रहे हैं। कितने लाडले हो गये हो। इसीलिए सदा खुश। स्वप्न में भी दु:ख की लहर नहीं आवे। स्वप्न भी आवें तो खुशी के। उदासी के नहीं, थकावट के नहीं, मूंझने वाले नहीं। खुशी के। तो ऐसे है? ऐसे खुश रहो जो आपका खुशी का चेहरा देख रोने वाले भी खुश हो जाएं। ऐसी खुशी है ना? रोने वाले को हँसा सकते हो ना! चेहरा बदली नहीं हो। कभी ऐसा, कभी ऐसा नहीं। सदा मुस्कराता रहे। अच्छा - कितने परसेन्ट रिफ्रेश हुए? 100 परसेन्ट या 90 परसेन्ट? 101 परसेन्ट अच्छा।

अच्छा - दूसरे वर्ष जब आयेंगे तो 101 होगा या नीचे जायेगा या ऊपर जायेगा? सभी का ऊपर जायेगा! जो समझते हैं देखेंगे, जाने के बाद पता  पड़ेगा। चाहते तो ऐसे हैं लेकिन देखेंगे, वह हाथ उठाओ। ऐसे कोई है। फर्स्ट टाइम वाले हाथ उठाओ। अच्छा...।

दूसरा ग्रुप - आबू निवासी,सेवाधारी,हॉस्पिटल निवासी तथा पार्टियों से

सभी अपने श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित होते हैं? सदा हर्षित। कभी-कभी तो नहीं? सभी कहते हैं बाप मिला सब कुछ मिला। जब सब मिला, तो जहाँ सर्व प्राप्ति हैं, वहाँ सदा खुशी है ही। ऐसे है ना? खुशी कम तब होती है जब कोई अप्राप्ति है। तो कोई अप्राप्ति है क्या? तो सदा खुश। खुशी अपनी खुराक है। तो खुराक को कोई छोड़ता है क्या? तो सदा खुश रहने वाले, औरों को भी खुशी बांटते हैं। जब भी आपको कोई देखे तो खुशी की झलक दिखाई दे। ऐसे अनुभव करते हो? बापदादा सदा हर बच्चे को खुशनसीब की नज़र से देखते हैं। खुशनसीब हैं और खुशमिजाज हैं। कभी चेहरा बदली तो नहीं होता? थोड़ा सा सोच में, थोड़ा सा कनफ्युज़ चेहरा तो नहीं होता है ना! या थोड़ा-थोड़ा हो जाते हो? कनफ्युज़ होते हो? हाँ हाँ कह रहे हो? कभी-कभी होते हैं। कभी-कभी भी नहीं। बाप के बच्चे सदा एकरस रहते हैं। कभी किस रस में, कभी किस रस में, नहीं। एकरस, सदा खुश। ठीक है ना? अभी नहीं बदलना। आज के दिन इसको जला दो। खत्म। कुछ भी हो, बाप साथ है, मूंझने की क्या बात है। कनफ्युज़ होने की क्या बात है। बाप के साथ का सहयोग लो, अकेले समझते हो तो मौज के बजाए मूंझ जाते हो। तो मूंझना नहीं। ठीक है ना? अभी भी मूंझेंगे। (नहीं) अभी नहीं मूंझ रहे हो, मौज में हो इसलिए कहते हो कि नहीं मूंझेंगे! कुछ भी हो जाए लेकिन मौज नहीं जाए। ठीक है ना या मौज चली जायेगी? मौज नहीं जानी चाहिए। सेवा का बल है तो उस बल को कार्य में लगाओ। सिर्फ सेवा नहीं करो लेकिन सेवा का बल जो बाप से मिलता है, उसको काम में लगाओ। सिर्फ सेवा कर रहे हैं, सेवा कर रहे हैं तो थक जाते हो, मूंझ भी जाते हो लेकिन बाप के साथ का अनुभव, जहाँ बाप है वहाँ मौज ही मौज है। तो साथ को इमर्ज करो, सुनाया ना - याद करते हो लेकिन साथ को यूज़ नहीं करते, इसीलिए मूंझ जाते हो। संगमयुग मौजों का युग है या मूंझने का युग है? मौज का है तो फिर मूंझते क्यों हो? अभी अपने जीवन की डिक्शनरी से मूंझना शब्द निकाल दो। निकाल लिया? पक्का। या थोड़ा-थोड़ा दिखाई देगा? एकदम मिटा दो। परमात्मा के बच्चे और मौज में नहीं रहे तो और कौन रहेगा और कोई है क्या? तो सदा मौज ही मौज है। सभी अपनी ड्यूटी पर खुश हो? या थोड़ा-थोड़ा ड्यूटी में खिटखिट है? कुछ भी हो जाए, यह पेपर पास करना है। बात नहीं है, पेपर है। तो पेपर पास करने में खुशी होती है ना। क्लास आगे बढ़ते हैं ना! तो बात हो गई, समस्या आ गई यह नहीं सोचो। पेपर आया पास हुआ, मौज मनाओ। जब बच्चे पेपर पास करके आते हैं तो कितने मौज में होते हैं, मूंझते हैं क्या! यह पेपर तो आयेंगे। पेपर ही अनुभव में आगे बढ़ाते हैं, इसलिए सदा मौज में रहने वाले। सेवाधारी नहीं लेकिन मौज में रहने वाले। सदा यह अपना टाइटल याद करो। हॉस्पिटल के सेवाधारी हैं, नहीं, मौज में रहने वाले सेवाधारी हैं। अच्छा।

डाक्टर्स तो मौज में रहते हो ना? पेशेन्ट को मौज दिलाने वाले। बहुत अच्छा। (बापदादा सभी से हाथ उठवाकर मिल रहे हैं।)

सभी बहुत-बहुत पुण्य का खाता जमा कर रहे हो। वैरायटी गुलदस्ता सबसे प्यारा लगता है। वैरायटी की सदा शोभा होती है, सुन्दरता होती है, इसलिए प्यारा लगता है। तो स्थान अनेक हैं लेकिन हैं सब एक। एक ही लक्ष्य है, एक ही मत है और एक ही बाप है, एक ही परिवार है और अवस्था भी एकरस। एकरस है ना? और रस में नहीं जाना, माया खा जायेगी। इसलिए एकरस रहना। माया को भी आपसे प्यार है ना। 63 जन्मों का प्यार है। लेकिन आप जानते हो कि माया से प्यार रखना है या बाप से? तो जहाँ बाप होगा वहाँ माया नहीं आयेगी। माया भाग जायेगी, हिम्मत ही नहीं होगी बाप के नजदीक आने की। कोई भी परिस्थिति आवे तो दिल से बाबा कहा, परिस्थिति भागी। अनुभव है ना! भगाना आता है या बिठाना आता है? उसको बिठाना नहीं। भगाओ, दूर से भगाओ। आ जावे फिर निकालने की मेहनत करो, वह भी नहीं करना। दूर से ही भगाओ। बाप का हाथ पकड़ लो तो देखेगी यह तो बाप का हाथ पकड़ा हुआ है तो भाग जायेगी। तो सदा मायाजीत। ठीक है ना! देखो आज नजदीक में तो बैठे हो ना। चांस तो मिला ना। अभी तो नहीं कहेंगे हमको तो कभी चांस नहीं मिला। मिल गया ना? बड़ा परिवार है तो बांटकर मिलता है। अच्छा तो सब खुशराजी। बापदादा का शब्द याद है ना - सदा। कभी कभी वाले नहीं, सदा। हॉस्पिटल वाले भी अच्छी मेहनत कर रहे हैं। हॉस्पिटल का कार्य भी बढ़ रहा है। अच्छा।

तीसरा ग्रुप—मधुबन निवासी भाई-बहनों से

मधुबन निवासी अर्थात् कर्म में मधुरता और वृत्ति में बेहद का वैराग्य। वन में क्या होता है? बेहद का वैराग्य होता है ना! तो मधुबन निवासी अर्थात् एकस्ट्रा गिफ्ट के अधिकारी। गिफ्ट है ना! कितने निश्चिंत हो। अपनी ड्युटी बजाई और मौज में रहे। मदोगरी करनी है, जिज्ञासुओं को सम्भालना है, इससे तो फ्री हैं ना! ज्यादा में ज्यादा 8 घण्टा ड्यूटी। कम ही है। इतफाक कभी एक्स्ट्रा देनी पड़ती होगी। लेकिन और जिम्मेवारी तो नहीं है ना। चलो बिजली वाले को बिजली की जिम्मेवारी या जो भी ड्यूटी है, एक ही ड्युटी है ना। अनेक तो नहीं है। तो 8 घण्टा तो ड्यूटी के लिए बापदादा ने दिया है, कभी 12 घण्टा भी हो जाता होगा, तो भी 8 घण्टा आराम, अच्छा 12 घण्टा ड्यूटी तो भी 4 घण्टा तो बचता है। 12 घण्टा से ज्यादा तो ड्यूटी होगी नहीं। 12 घण्टे में तो सारा दिन आ गया। फिर कभी रात को करनी पड़ती होगी तो दिन में हल्का होगा। तो कम से कम 4 घण्टा पावरफुल योग रहता है? निरन्तर याद तो है ही लेकिन पावरफुल याद वह कम से कम 4 घण्टे है? तो मधुबन निवासियों को स्पेशल अटेन्शन रखना है कि हमें चारों ओर पावरफुल याद के वायब्रेशन फैलाने हैं क्योंकि आप ऊँचे-ते-ऊँचे स्थान पर बैठे हो। स्थान तो ऊँचा है ना! इससे ऊँचा तो कोई है नहीं। तो ऊँची टावर जो होती है, वह क्या करती है? सकाश देती है ना! लाइट माइट फैलाते हैं ना। तो कम से कम 4 घण्टे ऐसे समझो हम ऊंचे ते ऊंचे स्थान पर बैठ विश्व को लाइट और माइट दे रहा हूँ। यह तो आपको अच्छी तरह से अनुभव है कि मधुबन का वायब्रेशन चाहे कमजोरी का, चाहे पावर का - दोनों ही बहुत जल्दी फैलता है। अनुभव है ना! मधुबन में सुई भी गिरती है तो वह आवाज भी पहुंचता है क्योंकि मधुबन निवासियों की तरफ सबका अटेन्शन होता है। मधुबन वाले समझो विजय प्राप्त करने और कराने के निमित्त हैं। मधुबन की महिमा कितनी सुनते हो! मधुबन के गीत भी गाते हो ना। तो मधुबन के दीवारों की महिमा है या मधुबन निवासियों की महिमा है! किसकी महिमा है? आप सबकी। तो ऐसे अपनी जिम्मेवारी समझो। सिर्फ अपना काम किया, ड्यूटी पूरी की यह जिम्मेवारी नहीं। मधुबन का वायुमण्डल चारों ओर वायुमण्डल बनाता है। बापदादा को खुशी है कि आपस में संगठन बनाकर उन्नति के प्लैन वा रूहरिहान करते हैं। यह बहुत अच्छा है, इसको छोड़ना नहीं। संगठन में लाभ होता है और सारा दिन समझो कर्मणा किया, थोड़ा समय भी आपस में उन्नति की रूहरिहान करने से चेंज हो जाते हैं। उमंग-उत्साह भी बढ़ता है। तो बापदादा को यह अच्छा लगता है, जो ग्रुप बनाकर बैठते हो उसको हल्का नहीं करो और पावरफुल बनाओ। मिस भी नहीं करना चाहिए। आप समझो हमारे में तो ताकत है, हमने तो सब कुछ कर लिया है, नहीं। सहयोग देना भी सेवा है। बैठने की जरूरत नहीं हो, लेकिन बैठना - यह बहुत सेवा है। बापदादा ने समाचार सुना है, अच्छा है। इसको और बढ़ाओ। मुरली तो सुनते हो लेकिन मुरली सुनने के बाद कर्मणा में चले जाते हो तो बीच-बीच में कर्म कान्सेस भी हो जाते हो। कुछ योग लगाते हो, कुछ कर्म कान्सेस हो जाते हो। लेकिन आपस में ऐसी रूहरिहान करना - यह एक दो को रिफ्रेश करना है। वायुमण्डल को पावरफुल बनाना है। तो इस खुशखबरी पर बाबा बहुत खुश है।

अभी सबको कम से कम 4 घण्टे का चार्ट दादी को देना चाहिए। पसन्द है? 4 से 6 हो जाए तो कम नहीं करना। 6 हो जाए, 8 हो जाए बहुत अच्छा।  लेकिन कम से कम 4 घण्टा, इकठ्ठा नहीं मिले कोई हर्जा नहीं। 5 मिनट 10 मिनट पावरफुल स्टेज बनाओ - टोटल में 4 घण्टा होना चाहिए। चाहे आधा घण्टा मिलता है, चाहे 5 मिनट मिलता है लेकिन जमा 4 घण्टा होना चाहिए। हो सकता है? जो समझते हैं हो सकता है वह हाथ उठाओ। अच्छा यह तो सभी एवररेडी हैं। बापदादा खुश है, हिम्मत बहुत अच्छी है। बापदादा एकस्ट्रा मदद देगा, हिम्मत नहीं हारना। हिम्मत रखेंगे तो परिवार की भी मदद, बड़ों का भी मन से सहयोग मिलेगा। और बापदादा तो एक का पदमगुणा देता ही है। तो सबको पसन्द है? अच्छा - 4 घण्टे से कम नहीं करना। एक दिन अगर 4 घण्टे नहीं हो तो दूसरे दिन 6 घण्टे करके 4 घण्टे पूरे करना। कर सकते हो? देखो, सोच समझकर हाँ करो। अभी प्रभाव में आकर हाँ नहीं करो। कर सकते हैं? (दादी से) देख रही हो ना। सभी ने हाथ उठाया है। इन्हों को तो मुबारक का इनाम है। एडवांस में मुबारक है। इनाम को छोड़ना नहीं। बहुत अच्छा।

बापदादा तो मधुबन निवासियों को सदा नयनों के सामने देखते हैं। नूरे रत्न देखते हैं। मधुबन निवासी बनना कोई छोटी सी बात नहीं है। मधुबन निवासी बनना अर्थात् अनेक गिफ्ट के अधिकारी बनना। देखो, स्थूल गिफ्ट भी मधुबन में बहुत मिलती है ना! और कितना स्वमान मिलता है। अगर मधुबन वाला कहाँ भी जाता है तो किस नजर से सभी देखते हैं? मधुबन वाला आया है। तो इतना अपना स्वमान सदा इमर्ज रखो। मर्ज नहीं, इमर्ज। ठीक है ना?

अभी बापदादा चार्ट पूछते रहेंगे? 15-15 दिन के बाद चार्ट की रिजल्ट देखेंगे। ठीक है ना! चार्ट में देना - हाँ या ना। ऊपर तारीख लिखना और नीचे हाँ ना, हाँ ना। बस दो या 3 या 4 घण्टा पावरफुल याद रही। बस, ज्यादा नहीं लिखना। पढ़ने का टाइम नहीं मिलता है ना। मधुबन निवासियों से सभी का प्यार है और आप लोगों को कितनी दुआयें मिलती हैं। जो आई.पी. भी आते हैं, योग शिविर में आते हैं, कांफ्रेंस में आते हैं तो मधुबन की सेवा देख करके दुआयें तो देते हैं ना। हर एक के दिल से निकलता है - वाह सेवाधारी वाह! तो दुआयें भी तो जमा हो रही हैं। तो कमाल करके दिखाना। मधुबन वालों का रिकार्ड 4 घण्टे का जरूर हो, ज्यादा भी हो तो और अच्छा। यही प्रवृत्ति वालों को, सेन्टर वालों को, सभी को पावरफुल बनायेगा। निमित्त आप बनो। अच्छा। खुशराजी हैं, यह पूछने की आवश्यकता है? या खुश रहते ही हो, पूछने की आवश्यकता है? खुश तो सभी हैं ही। सभी के चेहरे देखो, सभी के दांत निकले हुए हैं। बहुत अच्छे हो। अपनी विशेषता देखो और उसको कार्य में लगाओ।

विशेष मधुबन की बहिनों से बात कर रहे हैं। बापदादा सब देखते हैं। बापदादा से कुछ छिपता नहीं है। अन्दर का भी देखता है, तो बाहर का भी देखता है। मधुबन की बहिनें विशेष अपनी-अपनी विशेषता को कार्य में लगाओ। हर एक में विशेषतायें हैं, ऐसे नहीं कोई विशेषता नहीं है। सभी में हैं। सिर्फ उसको कार्य में लगाने से वृद्धि को प्राप्त होती जायेंगी। औरों की भी विशेषता देखो और अपनी विशेषता कार्य में लगाओ। कम नहीं हैं। सभी क्या बुलाते हैं! मधुबन की बहिनें। मधुबन नाम आने से ही कितनी खुशी हो जाती है। तो मधुबन की बहिनें कम नहीं हैं। सभी के दुआओं की पात्र हो। पुण्य का खाता जितना बनाने चाहो उतना बना सकते हो। चांस है। समय को जितना सफल करने चाहो उतना कर सकते हो। चांस तो है ना! या चांस नहीं मिलता है? चांस आपेही लो, चांस ऐसे नहीं मिलेगा। कोई कहे हाँ यह करो, नहीं। चांस लो। चांस लेने से क्या बन जायेंगे? चांसलर। मधुबन वाले भाग्यवान तो हैं ही लेकिन अपने भाग्य को कार्य में लगाओ। समझा। बहिनें हैं सिकीलधी और भाई हैं बहुत। सिकीलधी हैं ना! बहुत अच्छा है। अभी 4 घण्टे में पहला नम्बर बहिनें आनी चाहिए। ऐसे नहीं कहना - यह हो गया ना। यह होना नहीं चाहिए ना! यह नहीं। करना ही है। पक्का! इन्हों की फोटो निकालो।

अच्छा। ओम् शान्ति।