16-12-2000 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
साक्षात् ब्रह्मा बाप समान कर्मयोगी फरिश्ता बनो तब साक्षात्कार शुरू हो
आज ब्राह्मण संसार के रचता बापदादा अपने ब्राह्मण संसार को देख-देख हर्षित हो रहे हैं। कितना छोटा सा प्यारा संसार है। हर एक ब्राह्मण के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक रहा है। नम्बरवार होते हुए भी हर एक के सितारे में भगवान को पहचानने और बनने के श्रेष्ठ भाग्य की चमक है। जिस बाप को ऋषि, मुनि, तपस्वी नेती-नेती कहके चले गये, उस बाप को ब्राह्मण संसार की भोली-भाली आत्माओं ने जान लिया, पा लिया। यह भाग्य किन आत्माओं को प्राप्त होता है? जो साधारण आत्मायें हैं। बाप भी साधारण तन में आते हैं, तो बच्चे भी साधारण आत्मायें ही पहचानती हैं। आज की इस सभा में देखो, कौन बैठे हैं? कोई अरब-खरबपति बैठे हैं? साधारण आत्माओं का ही गायन है। बाप गरीब-निवाज गाया हुआ है। अरब- खरबपति निवाज नहीं गाया हुआ है। बुद्धिवानों का बुद्धि क्या किसी अरब-खरबपति की बुद्धि को नहीं पलटा सकता? क्या बड़ी बात है! लेकिन ड्रामा का बहुत अच्छा कल्याणकारी नियम बना हुआ है, परमात्म कार्य में फुरी-फुरी (बूंद-बूंद) तलाव होना है। अनेक आत्माओं का भविष्य बनना है। 10-20 का नहीं, अनेक आत्माओं का सफल होना है। इसीलिए गायन है - ‘बूँद-बूँद से तलाब’। आप सभी जितना तन-मन- धन सफल करते रहते हो उतना ही सफलता के सितारे बन गये हो। सभी सफलता के सितारे बने हो? बने हो या अभी बनना है, सोच रहे हो? सोचो नहीं। करेंगे, देखेंगे, करना तो है ही....यह सोचना भी समय गँवाना है। भविष्य और वर्तमान की प्राप्ति गँवाना है।
बापदादा के पास कोई-कोई बच्चों का एक संकल्प पहुँचता है। बाहर वाले तो बिचारे हैं लेकिन ब्राह्मण आत्मायें बिचारे नहीं, विचारवान हैं, समझदार हैं। लेकिन कभी-कभी कोई-कोई बच्चों में एक कमज़ोर संकल्प उठता है, बतायें। बतायें? सभी हाथ उठा रहे हैं, बहुत अच्छा। कभी-कभी सोचते हैं कि क्या विनाश होना है या होना नहीं है! 99 का चक्कर भी पूरा हो गया, 2000 भी पूरा होना ही है। अब कब तक? बापदादा सोचते हैं - हँसी की बात है कि विनाश को सोचना अर्थात् बाप को विदाई देना क्योंकि विनाश होगा तो बाप तो परमधाम में चले जायेंगे ना! तो संगम से थक गये हैं क्या? हीरे तुल्य कहते हो और गोल्डन को ज्यादा याद करते हो, होना तो है लेकिन इन्तजार क्यों करते? कई बच्चे सोचते हैं सफल तो करें लेकिन विनाश हो जाए कल परसों तो, हमारा तो काम में आया ही नहीं। हमारा तो सेवा में लगा नहीं। तो करें, सोच कर करें। हिसाब से करें, थोड़ा-थोड़ा करके करें। यह संकल्प बाप के पास पहुँचते हैं। लेकिन मानों आज आप बच्चों ने अपना तन सेवा में समर्पण किया, मन विश्व-परिवर्तन के वायब्रेशन में निरन्तर लगाया, धन जो भी है, है तो प्राप्ति के आगे कुछ नहीं लेकिन जो भी है, आज आपने किया और कल विनाश हो जाता है तो क्या आपका सफल हुआ या व्यर्थ गया? सोचो, सेवा में तो लगा नहीं, तो क्या सफल हुआ? आपने किसके प्रति सफल किया? बापदादा के प्रति सफल किया ना? तो बापदादा तो अविनाशी है, वह तो विनाश नहीं होता! अविनाशी खाते में, अविनाशी बापदादा के पास आपने आज जमा किया, एक घण्टा पहले जमा किया, तो अविनाशी बाप के पास आपका खाता एक का पदमगुणा जमा हो गया। बाप बंधा हुआ है, एक का पदम देने के लिए। तो बाप तो नहीं चला जायेगा ना! पुरानी सृष्टि विनाश होगी ना! इसीलिए आपका दिल से किया हुआ, मजबूरी से किया हुआ, देखादेखी में किया हुआ, उसका पूरा नहीं मिलता है। मिलता जरूर है क्योंकि दाता को दिया है लेकिन पूरा नहीं मिलता है। इसलिए यह नहीं सोचो - अच्छा, अभी विनाश तो 2001 तक भी दिखाई नहीं देता है, अभी तो प्रोग्राम बन रहे हैं, मकान बन रहे हैं। बड़े-बड़े प्लैन बन रहे हैं, तो 2001 तक तो दिखाई नहीं देता है, दिखाई नहीं देगा। कभी भी इन बातों को अपना आधार बनाके अलबेले नहीं होना। अचानक होना है। आज यहाँ बैठे हैं, घण्टे के बाद भी हो सकता है। होना नहीं है, डर नहीं जाओ कि पता नहीं एक घण्टे के बाद क्या होना है! सम्भव है। इतना एवररेडी रहना ही है। शिवरात्रि तक करना है, यह सोचो नहीं। समय का इन्तजार नहीं करो। समय आपकी रचना है, आप मास्टर रचता हो। रचता - रचना के अधीन नहीं होता है। समय रचना आपके ऑर्डर पर चलने वाली है। आप समय का इन्तजार नहीं करो, लेकिन अभी समय आपका इन्तजार कर रहा है। कई बच्चे सोचते हैं, 6 मास के लिए बापदादा ने कहा है तो 6 मास तो होगा ही। होगा ही ना! लेकिन बापदादा कहते हैं यह हद की बातों का आधार नहीं लो, एवररेडी रहो। निराधार, एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति। चैलेन्ज करते हो एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति का वर्सा लो। तो क्या आप एक सेकण्ड में स्वयं को जीवनमुक्त नहीं बना सकते हैं? इसलिए इन्तजार नहीं, सम्पन्न बनने का इन्तजाम करो।
बापदादा को बच्चों के खेल देख करके हँसी भी आती है। कौन से खेल पर हंसी आती है? बतायें क्या? आज मुरली नहीं चला रहे हैं, समाचार सुना रहे हैं। अभी तक कई बच्चों को खिलौनों से खेलना बहुत अच्छा लगता है। छोटी-छोटी बातों के खिलौने से खेलना, छोटी बात को अपनाना, यह समय गँवाते हैं। यह साइडसीन्स हैं। भिन्नभिन्न संस्कार की बातें वा चलन यह सम्पूर्ण मंज़िल के बीच में साइडसीन्स हैं। इसमें रूकना अर्थात् सोचना, प्रभाव में आना, समय गँवाना, रूचि से सुनना, सुनाना, वायुमण्डल बनाना.... यह है रूकना, इससे सम्पूर्णता की मंज़िल से दूर हो जाते हैं। मेहनत बहुत, चाहना बहुत ‘‘बाप समान बनना ही है’’, शुभ संकल्प, शुभ इच्छा है लेकिन मेहनत करते भी रूकावट आ जाती है। दो कान हैं, दो आँखें हैं, मुख है तो देखने में भी आता, सुनने में भी आता, बोलने में भी आता, लेकिन बाप का बहुत पुराना स्लोगन सदा याद रखो - ‘देखते हुए नहीं देखो, सुनते हुए नहीं सुनो। सुनते हुए नहीं सोचो, सुनते हुए अन्दर समाओ, फैलाओ नहीं।’ यह पुराना स्लोगन याद रखना जरूरी है क्योंकि दिन-प्रतिदिन जो भी सभी के जैसे पुराने शरीर के हिसाब चुक्तू हो रहे हैं, ऐसे ही पुराने संस्कार भी, पुरानी बीमारियाँ भी सबकी निकलके खत्म होनी है, इसीलिए घबराओ नहीं कि अभी तो पता नहीं और ही बातें बढ़ रही हैं, पहले तो थी नहीं। जो नहीं थी, वह भी अभी निकल रही हैं, निकलनी हैं। आपके समाने की शक्ति, सहन करने की शक्ति, समेटने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति का पेपर है। क्या 10 साल पहले वाले पेपर आयेंगे क्या? बी.ए. के क्लास का पेपर, एम.ए. के क्लास में आयेगा क्या? इसलिए घबराओ नहीं, क्या हो रहा है। यह हो रहा है, यह हो रहा है.. खेल देखो। पेपर तो पास हो जाओ, पास-विद्-आनर हो जाओ।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि पास होने का सबसे सहज साधन है, बापदादा के पास रहो, जो आपके काम का नजारा नहीं है, उसको पास होने दो, पास रहो, पास करो, पास हो जाओ। क्या मुश्किल है? टीचर्स सुनाओ, मधुबन वाले सुनाओ। मधुबन वाले हाथ उठाओ। होशियार हैं मधुबन वाले आगे आ जाते हैं, भले आओ। बापदादा को खुशी है। अपना हक लेते हैं ना? अच्छा है, बापदादा नाराज़ नहीं है, भले आगे बैठो। मधुबन में रहते हैं तो कुछ तो पास खातिरी होनी चाहिए ना! लेकिन पास शब्द याद रखना। मधुबन में नई-नई बातें होती हैं ना, डाकू भी आते हैं। कई नई-नई बातें होती हैं, अभी बाप जनरल में क्या सुनायें, थोड़ा गुप्त रखते हैं लेकिन मधुबन वाले जानते हैं। मनोरंजन करो, मूंझो नहीं। या है मूंझना, या है मनोरंजन समझकर मौज में पास करना। तो मूंझना अच्छा है या पास करके मौज में रहना अच्छा है? पास करना है ना! पास होना है ना! तो पास करो। क्या बड़ी बात है? कोई बड़ी बात नहीं। बात को बड़ा करना या छोटा करना, अपनी बुद्धि पर है। जो बात को बड़ा कर देते हैं, उनके लिए अज्ञानकाल में भी कहते हैं कि यह रस्सी को सांप बनाने वाला है। सिन्धी भाषा में कहते हैं कि ‘‘नोरी को नाग’’ बनाते हैं। ऐसे खेल नहीं करो। अभी यह खेल खत्म।
आज विशेष समाचार तो सुनाया ना, बापदादा अभी एक सहज पुरूषार्थ सुनाते हैं, मुश्किल नहीं। सभी को यह संकल्प तो है ही कि ‘बाप समान बनना ही है।’ बनना ही है, पक्का है ना! फारेनर्स बनना ही है ना? टीचर्स बनना है ना? इतनी टीचर्स आई हैं! वाह! कमाल है टीचर्स की। बापदादा ने आज खुशखबरी सुनी, टीचर्स की। कौन सी खुशखबरी है, बताओ। टीचर्स को आज गोल्डन मैडल (बैज) मिला है। जिसको गोल्डन मैडल मिला है, हाथ उठाओ। पाण्डवों को भी मिला है? बाप की हमजिन्स तो रहनी नहीं चाहिए। पाण्डव ब्रह्मा बाप की हमजिन्स हैं। (उन्हों को और प्रकार का गोल्डन मैडल मिला है) पाण्डवों को रायल गोल्ड मैडल है। गोल्डन मैडल वालों को बापदादा की अरब-खरब बारी मुबारक है, मुबारक है, मुबारक है।
बापदादा, जो देश-विदेश में सुन रहे हैं, और गोल्डन मैडल मिल चुका है, वह सभी भी समझें हमें भी बापदादा ने मुबारक दी है, चाहे पाण्डव हैं, चाहे शक्तियाँ हैं, किसी भी कार्य के निमित्त बनने वालों को खास यह दादियाँ, परिवार में रहने वालों को भी कोई विशेषता के आधार पर गोल्डन मैडल देती हैं। तो जिसको भी जिस भी विशेषता के आधार पर चाहे सरेण्डर के आधार पर, चाहे कोई भी सेवा में विशेष आगे बढ़ने वाले को दादियों द्वारा भी गोल्डन मैडल मिला है, तो दूर बैठे सुनने वालों को भी बहुत-बहुत मुबारक है। आप सब दूर बैठकर मुरली सुनने वालों के लिए, गोल्डन मैडल वालों के लिए एक हाथ की ताली बजाओ, वह आपकी ताली देख रहे हैं। वह भी हँस रहे हैं, खुश हो रहे हैं।
बापदादा सहज पुरूषार्थ सुना रहे थे - अभी समय तो अचानक होना है, एक घण्टा पहले भी बापदादा अनाउन्स नहीं करेगा, नहीं करेगा, नहीं करेगा! नम्बर कैसे बनेंगे? अगर अचानक नहीं होगा तो पेपर कैसे हुआ? पास विद आनर का सर्टीफिकेट, फाइनल सर्टीफिकेट तो अचानक में ही होना है। इसलिए दादियों का एक संकल्प बापदादा के पास पहुँचा है। दादियाँ चाहती हैं कि अभी बापदादा साक्षात्कार की चाबी खोले, यह इन्हों का संकल्प है। आप सब भी चाहते हो? बापदादा चाबी खोलेंगे या आप निमित्त बनेंगे? अच्छा, बापदादा चाबी खोले, ठीक है। बापदादा हाँ जी करते हैं, (ताली बजा दी) पहले पूरा सुनो। बापदादा को चाबी खोलने में क्या देरी है, लेकिन करायेगा किस द्वारा? प्रत्यक्ष किसको करना है? बच्चों को या बाप को? बाप को भी बच्चों द्वारा करना है क्योंकि अगर ज्योतिबिन्दु का साक्षात्कार भी हो जाए तो कई तो बिचारे..., बिचारे हैं ना! तो समझेंगे ही नहीं कि यह क्या है। अन्त में शक्तियां और पाण्डव बच्चों द्वारा बाप को प्रत्यक्ष होना है। तो बापदादा यही कह रहे हैं कि जब सब बच्चों का एक ही संकल्प है कि बाप समान बनना ही है, इसमें तो दो विचार नहीं हैं ना! एक ही विचार है ना। तो ब्रह्मा बाप को फालो करो। अशरीरी, बिन्दी ऑटोमेटिकली हो जायेंगे। ब्रह्मा बाप से तो सबका प्यार है ना! सबसे ज्यादा देखा गया है, वैसे तो सभी का है लेकिन फारेनर्स का ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है। इस नेत्र द्वारा देखा नहीं है लेकिन अनुभव के नेत्र द्वारा फारेनर्स ने मैजॉरिटी ब्रह्मा बाबा को देखा है और बहुत प्यार है। ऐसे तो भारत की गोपिकायें, गोप भी हैं फिर भी बापदादा फारेनर्स की कभी-कभी अनुभव की कहानियाँ सुनते हैं, भारतवासी थोड़ा गुप्त रखते हैं, वह ब्रह्मा बाबा के प्रति सुनाते हैं तो उन्हों की कहानियाँ बापदादा भी सुनते हैं और औरों को भी सुनाते हैं, मुबारक हो फारेनर्स को। लंदन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, एशिया, रशिया, जर्मनी... मतलब तो चारों ओर के फारेनर्स को जो दूर बैठे भी सुन रहे हैं, उन्हों को भी बापदादा मुबारक देते हैं, खास ब्रह्मा बाबा मुबारक दे रहे हैं। भारत वालों का थोड़ा गुप्त है, प्रसिद्ध इतना नहीं कर सकते हैं, गुप्त रखते हैं। अभी प्रत्यक्ष करो। बाकी भारत में भी बहुत अच्छे-अच्छे हैं। ऐसी गोपिकायें हैं, अगर उन्हों का अनुभव आजकल के प्राइममिनिस्टर, प्रेजीडेंट भी सुनें तो उनकी आँखों से भी पानी आ जाए। ऐसे अनुभव हैं लेकिन गुप्त रखते हैं इतना खोलते नहीं हैं, चांस भी कम मिलता है। तो बापदादा यह कह रहे हैं कि ब्रह्मा बाप से सबका प्यार तो है, इसीलिए तो अपने को क्या कहलाते हो? ब्रह्माकुमारी या शिव कुमारी? ब्रह्माकुमारी कहलाते हो ना, तो ब्रह्मा बाप से प्यार तो है ही ना। तो चलो अशरीरी बनने में थोड़ी मेहनत करनी भी पड़ती है लेकिन ब्रह्मा बाप अभी किस रूप में है? किस रूप में है? बोलो? (फरिश्ता रूप में है) तो ब्रह्मा से प्यार अर्थात् फरिश्ता रूप से प्यार। चलो बिन्दी बनना मुश्किल लगता है, फरिश्ता बनना तो उससे सहज है ना! सुनाओ, बिन्दी रूप से फरिश्ता रूप तो सहज है ना! आप एकाउन्ट का काम करते बिन्दी बन सकते हो? फरिश्ता तो बन सकते हो ना! बिन्दी रूप में कर्म करते हुए कभी-कभी व्यक्त शरीर में आ जाना पड़ता है लेकिन बापदादा ने देखा कि साइंस वालों ने एक लाइट के आधार से रोबट बनाया है, सुना है ना! चलो देखा नहीं सुना तो है! माताओं ने सुना है? आपको चित्र दिखा देंगे। वह लाइट के आधार से रोबट बनाया है और वह सब काम करता है। और फास्ट गति से करता है, लाइट के आधार से। और साइंस का प्रत्यक्ष प्रमाण है। तो बापदादा कहते हैं क्या साइलेन्स की शक्ति से, साइलेन्स की लाइट से आप कर्म नहीं कर सकते? नहीं कर सकते? इन्जीनियर और साइंस वाले बैठे हैं ना! तो आप भी एक रूहानी रोबट की स्थिति तैयार करो। जिसको कहेंगे रूहानी कर्मयोगी, फरिश्ता कर्मयोगी। पहले आप तैयार हो जाना। इन्जीनियर हैं, साइंस वाले हैं तो पहले आप अनुभव करना। करेंगे? कर सकते हैं? अच्छा, ऐसे प्लैन बनाओ। बापदादा ऐसे रूहानी चलते फिरते कर्मयोगी फरिश्ते देखने चाहते हैं। अमृतवेले उठो, बापदादा से मिलन मनाओ, रूह-रूहान करो, वरदान लो। जो करना है वह करो। लेकिन बापदादा से रोज अमृतवेले ‘कर्मयोगी फरिश्ता भव’ का वरदान लेके फिर कामकाज में आओ। यह हो सकता है?
आप लोगों की डिपार्टमेंट (एकाउन्ट की) सबसे दिमाग चलाने वाली है, हो सकता है? मधुबन वाले हाथ उठाओ। जो समझते हैं हो सकता है वह बड़ा हाथ उठाओ। मधुबन की बहनों ने उठाया! मधुबन का वायब्रेशन तो चारों ओर फैलेगा ही। इसमें फरिश्ते स्वरूप में कर्मयोगी, डबल लाइट, लाइट के शरीर से, लाइट बन कर्म कर रहे हैं। बोलो तो भी फरिश्ते रूप में, काम करो फरिश्ते रूप में। जिससे काम है वही एक सुने दूसरा सुने ही नहीं। वातावरण क्यों बनता है?
बापदादा ने देखा है कोई भी छोटी बात का वातावरण बनने का कारण जो बात करते हैं ना, वह ऐसे करते हैं जो जिसका उस बात से सम्बन्ध ही नहीं है, उनके भी कानों में पड़ती है। उनका भी व्यर्थ संकल्प चलना शुरू हो जाता है। इसलिए फरिश्ता अर्थात् जिसका काम वही सुने। जितना काम है उतना ही बोले, कहानी बनाके नहीं बोले। कथा नहीं करो। कथा हमेशा मिक्स भी होती है और लम्बी भी होती है। तो ब्रह्मा बाप के प्यार का रिटर्न है - ब्रह्मा बाप समान कर्मयोगी फरिश्ता भव।
बापदादा यही कह रहे हैं - इस स्थिति की धरनी तैयार करो तो बापदादा साक्षात बाप बच्चों द्वारा साक्षात्कार अवश्य करायेगा। ‘साक्षात् बाप और साक्षात्कार’ - यह दो शब्द याद रखना। बस हैं ही फरिश्ते। सेवा भी करते हैं, ऊपर की स्टेज से फरिश्ते आये, सन्देश दिया फिर ऊपर चले गये अर्थात् ऊँची स्मृति में चले गये।
अभी समय अनुसार जैसे कहाँ-कहाँ पानी के प्यासी हैं, ऐसे वर्तमान समय शुद्ध, शान्तिमय, सुखमय वायब्रेशन के प्यासी हैं। फरिश्ते रूप से ही वायब्रेशन फैला सकते हो। फरिश्ता अर्थात् सदा ऊँच स्थिति में रहने वाले। फरिश्ता अर्थात् पुराने संसार और पुराने संस्कार से नाता नहीं। अभी संसार परिवर्तन आप सबके संस्कार परिवर्तन के लिए रूका हुआ है।
इस नये वर्ष में लक्ष्य रखो - संस्कार परिवर्तन, स्वयं का भी और सहयोग द्वारा औरों का भी। कोई कमज़ोर है तो सहयोग दो, न वर्णन करो, न वातावरण बनाओ। सहयोग दो। इस वर्ष की टॉपिक ‘‘संस्कार परिवर्तन’’। फरिश्ता संस्कार, ब्रह्मा बाप समान संस्कार। तो सहज पुरूषार्थ है या मुश्किल है? थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? कभी भी कोई बात मुश्किल होती नहीं है, अपनी कमज़ोरी मुश्किल बनाती है। इसीलिए बापदादा कहते हैं ‘‘हे मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चे, अभी शक्तियों का वायुमण्डल फैलाओ।’’ अभी वायुमण्डल को आपकी बहुत-बहुत-बहुत आवश्यकता है। जैसे आजकल विश्व में पोल्यूशन की प्राबलम है, ऐसे विश्व में एक घड़ी मन में शान्ति सुख के वायुमण्डल की आवश्यकता है क्योंकि मन का पोल्यूशन बहुत है, हवा की पोल्यूशन से भी ज्यादा है। अच्छा।
चारों ओर के बापदादा समान बनना ही है, लक्ष्य रखने वाले, निश्चय बुद्धि विजयी आत्माओं को, सदा पुराने संसार और पुराने संस्कार को दृढ़ संकल्प द्वारा परिवर्तन करने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं को, सदा किसी भी कारण से सरकमस्टांश से स्वभाव-संस्कार से, कमज़ोर साथियों को, आत्माओं को सहयोग देने वाले, कारण देखने वाले नहीं, निवारण करने वाले ऐसे हिम्मतवान आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप के स्नेह का रिटर्न देने वाले कर्मयोगी फरिश्ते आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
सेवा का टर्न पंजाब का है, पंजाब वालों का ब्रह्मा बाप से अच्छा प्यार है।
अच्छा है, ब्रह्मा बाप की पालना भी ली है, तो जैसे आजकल प्राइज देने का प्रोग्राम बना रहे हैं, तो बापदादा समझते हैं कि जैसे कल्चर आफ पीस में नम्बरवन प्राइज कोई भी जोन वाले ने लिया है, सेन्टर ने लिया है, ऐसे यह कर्मयोगी फरिश्ते स्वरूप की स्टेज में नम्बरवन प्राइज पंजाब लेवे। हो सकता है? पंजाब वाले हाथ उठाओ। लेंगे फर्स्ट प्राइज? पंजाब वाले जो फर्स्ट प्राइज लेंगे वह एक हाथ की ताली बजाओ। पंजाब की टीचर्स एक हाथ की ताली बजाओ। बहुत समय बैठे हो, ड्रिल करो, उठो। और सेन्टर से जो मुख्य पाण्डव हैं वह भी उठो। फर्स्ट प्राइज लेंगे? अच्छा, अभी देखेंगे तीन प्राइज कौन लेता है। फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड, तीन प्राइज बापदादा देंगे। कितने टाइम में प्राइज देंगे? (दादी ने कहा मई तक) (बापदादा पंजाब की अचल बहन से पूछ रहे हैं? (6 मास में पूरा पुरूषार्थ रहेगा) टीचर्स बताओ 6 मास चाहिए? जिसको 6 मास चाहिए वह हाथ उठाओ। अच्छा बाकी को क्या चाहिए 12 मास? कम समय चाहिए। चलो बापदादा लास्ट मार्च में पेपर लेगा? फिर परसेन्टेज में हो या फाइनल हो, उस अनुसार प्राइज देंगे। ठीक है ना! मार्च में लास्ट टर्न में। (अभी लास्ट टर्न शिवरात्रि पर है) फरवरी एन्ड या मार्च बात एक ही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सिर्फ पंजाब तैयार हो, सभी जोन, सभी सेन्टर को तैयार होना है। हो सकता है पंजाब से आगे कोई फर्स्ट से भी आगे जाए ए वन। इसलिए सभी जोन का पेपर लेंगे? मधुबन भी जोन है, ऐसे नहीं समझना हम जोन में नहीं है। पहले मधुबन। अच्छा।
जगदीश भाई से:- ठीक है ना! (ज्यादा तो आप जानते हैं) अच्छा है। अभी नेचरल साधन से ही ठीक है। सेवा तो आपने आदि से बहुत की है, (फर्ज अदा किया है अपना भाग्य बनाया है) अभी भी चाहे शरीर द्वारा ज्यादा नहीं कर सकते, लेकिन जिन आत्माओं ने जिस सेवा के निमित्त बन सेवा की इन्वेन्शन के निमित्त बने हैं, उन्हों को उस सेवा की सफलता के शेयर जमा होते हैं। जैसे प्रदर्शनी की इन्वेन्शन हुई, तो उस द्वारा क्वान्टिटी को सन्देश मिल रहा है, मेला हुआ यह भी क्वान्टिटी की सेवा, वी.आई.पी आता है तो कोई कोई, लेकिन कांफ्रेंस हुई तो कांफ्रेंस की सेवा से स्पीच की आकर्षण से वी.आई.पी. आते हैं उन्हों की सेवा होती है, लेकिन उसमें भी कोई- कोई। अभी जो वर्गाकरण की सेवा हो रही है, इसमें भिन्न-भिन्न वर्ग के वी.आई.पी. का आना हो रहा है और वर्गाकरण की सेवा से नजदीक सहयोग में भी आते हैं, क्यों? एक तो 15 वर्ग हैं, विस्तार है। तो 15 वर्ग ही अलग-अलग सेवा कर रहे हैं, अलग- अलग वी.आई.पी. को इन्वाइट करते हैं और दूसरा 2-3 दिन रहने का साधन मिलता है। कांफ्रेंस में आते हैं लेकिन वी.आई.पी. जो हैं वह भाषण करके मैजारिटी चले जाते हैं फिर भी साधन है, आकर्षण है, वी.आई.पी को स्पीच करने की। तो जिन्होंने भी जो भी इन्वेन्शन की है, निमित्त बने हैं उनको उनकी सेवा का शेयर मिलता है। इसलिए आप फिकर नहीं करो कि मैं सेवा नहीं कर सकता, नहीं, सेवा हो रही है। भिन्न-भिन्न सेवा के निमित्त बने ना। यह (रमेश भाई) प्रदर्शनी के बने, वह (निर्वैर भाई) सीढ़ी के बने, कोई न कोई सेवा के निमित्त बने, कोई कांफ्रेंस के निमित्त बनते हैं और दादियाँ तो सभी में हैं। आप विंग्स के निमित्त हैं। दादियों की भी छत्रछाया है। हाँ विदेश में भी सेवा की। तो फाउण्डेशन डालने में मेहनत होती है। इसलिए फिकर नहीं करो आपका शेयर इकठ्ठा हो रहा है। थोड़ा फ़िकर है। (बाबा को प्रत्यक्ष नहीं किया है, यह फ़िकर है) यह वायुमण्डल से हो जायेगा। समय इन्तजार कर रहा है, पर्दा खुलने के लिए। अभी इस वर्ष में फरिश्ता रूप बन जाएँ, चारों ओर साक्षात्कार शुरू हो जायेंगे। देखेंगे यह कौन आया, यह ब्रह्मा बाबा को जैसे पहले-पहले देखा, ऐसे ब्रह्मा बाप के साथ-साथ आप पाण्डव शक्तियों को देखेंगे। ढ़ूँढ़ेंगे यह कौन हैं, कहाँ हैं। पहली-पहली आत्मा निकली हो दिल्ली सेवा में। और आते ही सेवा शुरू कर दी, पहला-पहला किताब याद है कौन-सा लिखा था? कुम्भ के मेले के लिए लिखा था। तो आते ही सेवा की है ना! इसलिए आपको फल मिलेगा। तो करो डांस। गणपति डांस, करो। (जगदीश भाई ने गणपति डांस की)
अच्छा है, निमित्त सेवा है लेकिन भाग्य की लकीर लम्बी खींच रही है। (तनजानिया से जगदीश भाई के लिए नेचरोपैथी की डाक्टर आई है) अच्छा है निमित्त बनने का गोल्डन चांस मिला है। ऐसे अनुभव करती हो?
अच्छा है, सहयोग देना, सहयोगी बनना अर्थात् स्वयं का खाता बढ़ाना। अच्छा- ओम् शान्ति।
मुरली दादा, रजनी बहन से (जयन्ती बहन के लौकिक मात-पिता) –
बापदादा का हाथ और साथ सदा आदि से है और अन्त तक है ही है। (दादी जानकी कह रही हैं कभी-कभी दिल छोटी कर देते हैं) नहीं। बापदादा का हाथ और साथ दोनों के ऊपर है ही। क्यों? कारण? आपके शेयर का खाता बहुत बड़ा है। जो कन्यादान किया है उसकी सेवा का शेयर आपके खाते में जमा है, इसलिए खुश रहो। बेफकर बादशाह। बेफकर बापदादा हैं ना! सहयोग मिलता रहेगा। अच्छा। कोई फ़िकर नहीं करो, बापदादा कोई-न-कोई को निमित्त बनाता है। बहुत अच्छा किया।