15-12-07 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘समय के महत्व को जान, कर्मों की गुह्य गति का अटेन्शन रखो, नष्टोमोहा, एवररेडी बनो’’
आज सर्व खज़ानों के दाता, ज्ञान का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, सर्व गुणों का खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्पों का खज़ाना देने वाला बापदादा अपने चारों ओर के खज़ाने के बालक सो मालिक अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। अखण्ड खज़ानों के मालिक बाप सभी बच्चों को सर्व खज़ानों से सम्पन्न कर रहा है। हर एक को सर्व खज़ाने देते हैं। किसको कम, किसको ज्यादा नहीं देते क्योंकि अखण्ड खज़ाना है। चारों ओर के बच्चे बापदादा के नयनों में समाये हुए हैं। सभी खज़ानों से भरपूर हर्षित हो रहे हैं। आजकल के समय प्रमाण सबसे अमूल्य श्रेष्ठ खज़ाना है - पुरूषोत्तम संगम का समय क्योंकि इस संगम पर ही सारे कल्प की प्रालब्ध बना सकते हो। इस छोटे से युग का एक सेकण्ड प्राप्तियों और प्रालब्ध के प्रमाण एक सेकण्ड की वैल्यु एक वर्ष के समान है। इतना यह अमूल्य समय है। इस समय के लिए ही गायन है - अब नहीं तो कब नहीं क्योंकि इस समय ही परमात्म पार्ट नूंधा हुआ है। इसलिए इस समय को हीरे तुल्य कहा जाता है। सतयुग को गोल्डन एज कहा जाता है। लेकिन इस समय, समय भी हीरे तुल्य है और आप सब बच्चे भी हीरे तुल्य जीवन के अनुभवी आत्मायें हो | इस समय ही बहुतकाल की बिछुड़ी हुई आत्मायें परमात्म मिलन, परमात्म प्यार, परमात्म नॉलेज, परमात्म खज़ानों के प्राप्ति के अधिकारी बनते हैं। सारे कल्प में देव आत्मायें, महान आत्मायें हैं लेकिन इस समय परमात्म ईश्वरीय परिवार है। इसलिए जितना इस वर्तमान समय का महत्व है, इस महत्व को जान, जितना अपने को श्रेष्ठ बनाने चाहे उतना बना सकते हैं। आप सब भी इस महान युग के परमात्म भाग्य को प्राप्त करने वाले पदमापदम भाग्यवान हो ना! ऐसे अपने श्रेष्ठ भाग्य के रूहानी नशे और भाग्य को जानते, अनुभव कर रहे हो ना! खुशी होती है ना! दिल में क्या गीत गाते हो? वाह मेरा भाग्य वाह! क्योंकि इस समय के श्रेष्ठ भाग्य के आगे और कोई भी युग में ऐसा श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त हो नहीं सकता।
तो बोलो, सदा अपने भाग्य को स्मृति में रखते हर्षित होते हो ना! होते हो? जो समझते हैं कि सदा हर्षित होते हैं, कभी-कभी वाले नहीं, जो सदा हर्षित रहते हैं वह हाथ उठाओ। सदा, सदा....। अण्डरलाइन करना सदा। अभी टी.वी. में आपका फोटो आ रहा है। सदा वालों का फोटो आ रहा है। मुबारक हो। मातायें उठायें, शक्तियां उठायें, डबल फारेनर्स...। क्या शब्द याद रखेंगे? सदा। कभी-कभी वाले तो पीछे आने वाले हैं।
बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि समय की रफ्तार बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। समय की गति को जानने वाले अपने को चेक करो कि मास्टर सर्वशक्तिवान हमारी गति तीव्र है? पुरूषार्थ तो सब कर रहे हैं लेकिन बापदादा क्या देखने चाहते? हर बच्चा तीव्र पुरूषार्थी, हर सबजेक्ट में पास विद आनर है वा सिर्फ पास है? तीव्र पुरूषार्थी के लक्षण विशेष दो हैं - एक - नष्टोमोहा, दूसरा - एवररेडी। सबसे पहले नष्टोमोहा, इस देहभान, देह-अभिमान से है तो और बातों में नष्टोमोहा होना कोई मुश्किल नहीं है। देह-भान की निशानी है वेस्ट, व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय, यह चेकिंग स्वयं ही अच्छी तरह से कर सकते हो। साधारण समय वह भी नष्टोमोहा होने नहीं देता। तो चेक करो हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर कर्म, सफल हुआ? क्योंकि संगमयुग पर विशेष बाप का वरदान है, सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। तो अधिकार सहज अनुभूति कराता है। और एवररेडी, एवररेडी का अर्थ है- मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में समय का आर्डर हो अचानक तो एवररेडी और अचानक ही होना है। जैसे अपनी दादी को देखा अचानक एवररेडी। हर स्वभाव में, हर कार्य में इजी रहे हैं। सम्पर्क में इजी, स्वभाव में इजी, सेवा में इजी, सन्तुष्ट करने में इजी, सन्तुष्ट रहने में इजी। इसीलिए बापदादा समय की समीपता का बार-बार इशारा दे रहा है। स्व-पुरूषार्थ का समय बहुत थोड़ा है, इसलिए अपने जमा के खाते को चेक करो। तीन विधियां खज़ानों को जमा करने की पहले भी बताई हैं, फिर से सुना रहे हैं। उन तीनों विधियों को स्वयं चेक करो। एक है – स्वयं के पुरूषार्थ से प्रालब्ध का खज़ाना जमा करना। प्राप्तियों का खज़ाना जमा करना। दूसरा है- सन्तुष्ट रहना, इसमें भी सदा शब्द एड करो और सर्व को सन्तुष्ट करना, इससे पुण्य का खाता जमा होता है। और यह पुण्य का खाता अनेक जन्मों के प्रालब्ध का आधार रहता है। तीसरा है - सदा सेवा में अथक, नि:स्वार्थ और बड़ी दिल से सेवा करना, इससे जिसकी सेवा करते हैं उनसे स्वत: ही दुआयें मिलती हैं। यह तीन विधियां हैं, स्वयं का पुरूषार्थ, पुण्य और दुआ। यह तीनों खाते जमा हैं? तो चेक करो क्योंकि अगर अचानक कोई भी पेपर आ जाए, क्योंकि आजकल के समय अनुसार प्रकृति के हलचल की छोटी-छोटी बातें कभी भी आ सकती हैं। इसलिए कर्मो के गति का नॉलेज विशेष अटेन्शन में रहे। कर्मो की गति बड़ी गुह्य है। जैसे ड्रामा का अटेन्शन रहता, आत्मिक स्वरूप का अटेन्शन रहता, धारणाओं का अटेन्शन रहता, ऐसे ही कर्मो की गुह्य गति का भी अटेन्शन आवश्यक है। साधारण कर्म, साधारण समय, साधारण संकल्प इससे प्रालब्ध में फर्क पड़ जाता है। इस समय आप सभी जो पुरूषार्थी हैं वह श्रेष्ठ विशेष आत्मायें हैं, साधारण आत्मायें नहीं हो। विश्व कल्याण के निमित्त, विश्व परिवर्तन के निमित्त बनी हुई आत्मायें हो। सिर्फ अपने को परिवर्तन करने वाले नहीं हो, विश्व के परिवर्तन के जिम्मेवार हो। इसलिए अपने श्रेष्ठ स्वमान के स्मृति स्वरूप बनना ही है।
बापदादा ने देखा सभी का बापदादा और सेवा से अच्छा प्यार है। सेवा का वातावरण चारों ओर कोई न कोई प्लैन प्रमाण चल रहा है। साथ-साथ अभी समय के प्रमाण विश्व की आत्मायें जो दु:खी, अशान्त हो रही हैं उन आत्माओं को दु:ख अशान्ति से छुड़ाने के लिए अपनी शक्तियों द्वारा सकाश दो। जैसे प्रकृति का सूर्य सकाश से अंधकार को दूर कर रोशनी में लाता। अपनी किरणों के बल से कई चीजों को परिवर्तन करता। ऐसे ही मास्टरज्ञानसूर्य अपने प्राप्त हुए सुख-शान्ति की किरणों से, सकाश से दुख-अशान्ति से मुक्त करो | मन्सा सेवा से, शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करो। तो अभी मन्सा सेवा करो। जैसे वाचा सेवा का विस्तार किया है, वैसे मन्सा सकाश द्वारा आत्माओं में, जो आपकी टॉपिक रखी है, हैप्पी और होप, यह फैलाओ, हिम्मत दिलाओ, उमंग-उत्साह दिलाओ। बाप का वर्सा, इन बातों से मुक्ति तो दिलाओ। अभी आवश्यकता सकाश देने की ज्यादा है। इस सेवा में मन को बिजी रखो तो मायाजीत विजयी आत्मा स्वत: ही बन जायेंगे | बाकी छाटी- छाटी बातें तो साइडसीन हैं | साइडसीन में कुछ अच्छा भी आता है, कुछ बुरी चीज़ें भी आती हैं। तो साइडसीन को क्रास कर मंज़िल पर पहुंचना होता है। साइडसीन देखने के लिए साक्षीदृष्टा की सीट पर सेट रहो, बस। तो साइडसीन मनोरंजन हो जायेगी।
तो एवररेडी हो ना? कल भी कुछ हो जाए, एवररेडी हैं? पहली लाइन एवररेडी है? कल भी हो जाए तो? टीचर्स तैयार हैं तो अच्छा। यह वर्ग वाले तैयार हैं। जितने भी वर्ग आये हो, एवररेडी। सोचना। देखना दादियां, देख रही हो सब हाथ हिला रहे हैं। अच्छा है, मुबारक हो। अगर नहीं भी हैं ना तो आज की रात तक हो जाना। क्योंकि समय आपका इन्तजार कर रहा है। बापदादा मुक्ति का गेट खोलने का इन्जार कर रहा है। एडवांस पार्टी आपका आह्वान कर रही है। क्या नहीं कर सकते हो? मास्टर सर्वशक्तिवान तो हो ही। दृढ़ संकल्प करो यह करना है, यह नहीं करना है, बस। नहीं करना है, तो दृढ़ संकल्प से ‘नहीं’ को ‘नहीं’ करके दिखाओ। मास्टर तो हो ही ना! अच्छा।
अभी पहली बार कौन आये हैं? जो पहली बार आये हैं वह हाथ उठाओ। ऊंचा हाथ उठाओ, हिलाओ। इतने आये हैं। अच्छा है। जो भी पहले बारी आये हैं उनको पदमगुणा मुबारक है, मुबारक है। बापदादा खुश होते हैं, कि कल्प पहले वाले बच्चे फिर से अपने परिवार में पहुंच गये। इसलिए अभी पीछे आने वाले कमाल करके दिखाना। पीछे रहना नहीं, पीछे आये हो लेकिन पीछे नहीं रहना। आगे से आगे रहना। इसके लिए तीव्र पुरूषार्थ करना पड़ेगा। हिम्मत है ना! हिम्मत है? अच्छा है। हिम्मते बच्चे मददे बापदादा और परिवार है। अच्छा है क्योंकि बच्चे घर का श्रृंगार हो। तो जो भी आये हैं वह मधुबन के श्रृंगार हैं। अच्छा।
सेवा का टर्न भोपाल जोन का है:- अच्छा, बहुत आये हैं। (झण्डियां हिला रहे हैं) अच्छा है गोल्डन चांस तो मिला है ना। अच्छा जो भी सेवा के निमित्त आये हुए हैं इनमें से सभी ने सेवा का जो बल है, फल है, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति का, वह अनुभव किया? किया? अभी भले हाँ के लिए झण्डी हिलाओ, जिसने किया हो। अच्छा अभी तो अतीन्द्रिय सुख का अनुभव किया, यह सदा रहेगा? या थोड़ा समय रहेगा? जो दिल से प्रॉमिस करता है, देखा देखी हाथ नहीं उठाना, जो दिल से समझता है कि मैं इस प्राप्ति को सदा कायम रखूंगा, विघ्न विनाशक बनूंगा, वह झण्डी हिलाओ भले। अच्छा। देखो, आप टी.वी. में आ रहे हो फिर यह टी.वी. का फोटो भेजेंगे। अच्छा। यह चांस जो रखा है वह बहुत अच्छा है। चांस लेते भी खुशी से हैं और टर्न बाई टर्न सभी को खुली दिल से छुट्टी भी मिल जाती है आने की। अच्छा, अभी कमाल क्या करेंगे? (2008 में आपको प्रत्यक्ष करके दिखायेंगे) अच्छा है, एक दो को सहयोग देकर इस वायदे को पूरा करना। जरूर करेंगे। मास्टर सर्वशक्तिवान के लिए कोई भी वायदा निभाना, कोई बड़ी बात नहीं है। सिर्फ दृढ़ता को साथी बनाके रखना। दृढ़ता को नहीं छोड़ना क्योंकि दृढ़ता सफलता की चाबी है। तो जहाँ दृढ़ता होगी वहाँ सफलता है ही है। ऐसे है ना! करके दिखायेंगे। बापदादा को भी खुशी है, अच्छा है। देखो कितनों को चांस मिलता है। आधा क्लास तो सेवा करने वालों की तरफ का होता है। अच्छा है। देखो साकार बाबा के होते हुए बहुत अच्छा पार्ट बजाया है, पहला-पहला म्युजियम इसने (महेन्द्र भाई ने) तैयार किया था। तो देखो, साकार बाप की दुआयें सारे जोन को हैं। अभी कोई नवीनता करके दिखायेंगे। अभी बहुत समय हो गया है, कोई नई इन्वेन्शन नहीं निकाली है। वरगीकरण भी अभी पुराना हो गया है। प्रदर्शनियां, मेला, कांफ्रेंस, स्नहे मिलन यह सब हो गये हैं | अभी कोई नई बात निकालो | शोर्ट और स्वीट , खर्चा कम आरै सेवा ज्यादा। रायबहादुर हो ना! तो रायबहादुर नई राय निकालो। जैसे प्रदर्शनी निकली, फिर मेला निकला, फिर वर्गीकरण निकला, ऐसे कोई नई इन्वेन्शन निकालो। देखेंगे कौन निमित्त बनता है। अच्छा है, हिम्मत वाले हैं इसीलिए बापदादा हिम्मत रखने वालों को सदा एडवांस में मदद की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा। इस ग्रुप में 5 विंग वाले आये हैं।
एज्युकेशन विंग, एडमिनिस्ट्रेटर्स विंग, बिजनेस विंग, यूथ विंग, स्पोर्टस विंग:- अच्छा है हर एक विंग अपने अपने वर्ग की सेवा कर रहे हैं और उमंग से करते हैं। हर एक रेस भी करते हैं, एक दो की विंग से रेस भीअच्छी कर रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों के उमंग-उत्साह को देख बार-बार बच्चों पर मुहब्बत के फूल बरसाते हैं। थोड़ी सी मेहनत करते हैं लेकिन मुहब्बत में करते हैं इसलिए हर एक वर्ग एक दो से आगे जा रहा है। एज्युकेशन कितना अच्छा कार्य है। अभी जैसे गांव वालों ने कहाँ कहाँ, कोई गांव जो है उसको लेकरके गांव में आलराउण्ड सेवा की है, डाक्टर्स ने भी प्रैक्टिकल की है, हार्ट वालों ने अच्छा किया है। ऐसे एज्युकेशन वाले कोई स्कूल को अपना बनाओ। सारा स्कूल, कॉलेज इस आध्यात्मिक नॉलेज को माने | पढ़ाई तो नहीं छोड़ेंगे ना लेकिन आध्यात्मिक नॉलेज को एड करें सब क्लासेज में। एडाप्ट करो ऐसी कोई स्कूल या कॉलेज। हो सकता है। (युनिवार्सिटी, कॉलेज तथा स्कूलों में इस वर्ष विशेष सेवा के प्लैन बनायें हैं) रिजल्ट सुनाना, अच्छा है। रिजल्ट प्रैक्टिकल आयेगी तो और भी करेंगे ना। ऐसे सभी वर्ग बिजनेस वाले, एक बिजनेस का ग्रुप निकालें, यूथ वाले सभी तरफ से विशेष रिजल्ट का ग्रुप निकालें। जो भी वर्ग हैं, वह प्रैक्टिकल एक ग्रुप रिजल्ट का दिखाये। पहले लिखत में ले आना। यह वी.आई. पीज की लिस्ट लेकर आये हैं। (भोपाल से) ऐसे ग्रुप बनाओ। ग्रुप बनाके अभी अलग अलग शहरों में हैं, और जो भी भिन्न भिन्न शहरों में हैं उसका एक बारी संगठन करो। भिन्न भिन्न स्थान के एक स्थान पर इकटठा करो उनको और उमंग दिलाओ, आगे बढ़ाओ। हर एक को ग्रुप बनाना ही चाहिए। अभी थोड़े निकाले हैं और भी निकलेंगे। कोई आपस में बैठकर यह राय करो कैसे हर एक वर्ग का ग्रुप बनें और वह समझे, ग्रुप समझे हमारी जिम्मेवारी है। कहाँ भी प्रोग्राम हो तो विशेष ग्रुप को सहयोग देना ही चाहिए। ग्रुप बनाओ, 5-5, 6-6 का, हर स्थान पर उनको पहुंचना चाहिए। उनसे सेवा लो तो उनको खुशी होगी और आगे बढ़ेंगे। अच्छा यूथ वर्ग का कुछ आया है, स्कूलों में अच्छी सेवा की है, बापदादा ने देखा समाचार सुना है। अच्छा है एक ग्रुप बनाओ विशेष। उन्हों का नाम ही हो सेवाधारी ग्रुप, सहयोगी ग्रुप, सर्विसएबुल ग्रुप। जितने भी अच्छे निकल सकें वह बनाओ। अच्छा, तो सभी वर्ग वालों को बापदादा मुबारक दे रहा है, सभी अच्छी सेवा कर रहे हैं और अभी अगले वर्ष अपने ग्रुप का नाम ले आना। हर एक ले आवें और अपने तरफ उस ग्रुप का संगठन करके फिर नाम देना। पक्के हों। कोई वारिस होगा कोई माइक होगा, दोनों प्रकार के ग्रुप में हो सकते हैं। (स्प्रोर्टस विंग के भी हैं, बहुत अच्छे प्लैन स्पोर्टस् परसन की सेवा के बनाये हैं) प्रैक्टिकल में करना। (बिजनेस विंग की भी प्रदर्शनी बनाई है) अच्छा है, मुबारक हो। अगर सेवा की वृद्धि का प्लैन्स चलता रहेगा तो यह भी वायब्रेशन फैलता है, यह भी आत्माओं को पहुंचता है। एक द्वारा 10 को पहुंचता है। बापदादा ने तो सुनाया कि सेवा में अच्छी रूचि भी रख रहे हैं और आगे भी बढ़ रहे हैं। लेकिन... लेकिन है स्व उन्नति, स्व परिवर्तन, स्व के अटेन्शन की सेवा। दोनों का बैलेन्स चाहिए। वह बैलेन्स अभी बनता जा रहा है। वह बैलेन्स जरूर अटेन्शन में रखो। आपका बैलेन्स होगा और विश्व में नारा लगेगा। अभी कुछ न कुछ क्रान्ति होनी ही है। अच्छा। (यूथ विंग की तरफ से स्व-उन्नति का प्लैन बनाया है) अच्छा है। कोई न कोई नवीनता करते रहो।
डबल विदेशी 30 देशों से आये हैं:- अच्छा - आपका यह तो नाम प्रसिद्ध हो गया है, डबल फारेनर्स। अभी डबल पुरूषार्थी यह नाम रखें? डबल पुरूषार्थी, रखें? पक्का। डबल पुरूषार्थ करेंगे? करने वाले हैं। अच्छा। एक एक्साम्पल दिखाओ कि फारेन में कोई भी विघ्न नहीं आवे। न मन्सा संकल्प का, न वाणी का, न बोल का, न सम्बन्धसम्पर्क का। बापदादा सभी भारत के जोन को भी कहता है, डबल विदेशियों को तो कह रहा है लेकिन भारत के सभी जोन को भी कहते हैं कोई ऐसा एक्जैम्पुल बनाओ जो सभी जोन और सब डबल विदेशी निर्विघ्न, निरविकल्प, निरव्यर्थ संकल्प हों। करो रेस। हर एक जोन रेस करे, फारेन भी तो एक जोन हो गया ना। उसको बापदादा बहुत प्राइज देगा। पूरे जोन में विघ्न का नाम निशान न हो। एक-दो को सहयोग देंगे तो हो जायेगा। जहाँ भी कुछ हो वहाँ एक दो के सहयोगी बनके भी उन्हें निर्विघ्न बनाओ। हिम्मत दो। उमंग-उल्हास दो। ऐसा नक्शा बापदादा देखने चाहते हैं। जैसे सेवा में करके दिखाया ना। जो भी एरिया रही हुई है उसको पूरा करके दिखा रहे हैं, दिखाया भी है तो जैसे सेवा में प्रैक्टिकल करके दिखाया, बापदादा खुश है। हर एक जोन ने सेवा का कोई न कोई प्रोग्राम बनाया है, फारेन वालों ने भी बनाया है, प्रैक्टिकल किया है, ऐसे स्व पुरूषार्थ का भी प्लैन बनाओ। एक दो के सहयोगी बनो। जैसे अपने को सहयोगी निर्विघ्न बनाने का अटेन्शन रखते हो, वैसे सारे जोन में सभी सेन्टर्स में अटेन्शन हो। उसमें देखें कौन नम्बरवन आता है। हो सकता है या मुश्किल है? जोन वाले उठो। उठो। जोन के बड़े आये हैं, रमेश, बृजमोहन भी उठो, यह मधुबन भी उसमें हैं। मधुबन तो पहला नम्बर है ना। तो यह हो सकता है? हो सकता है? आप (निर्वैर भाई) बोलो, हो सकता है? थोड़ा मुश्किल लगता है? (आपका संकल्प है तो कुछ भी मुश्किल नहीं है) चलो पुरूषार्थ शुरू करो, सभी जोन अपना ग्रुप बनाओ, जो भी आपके सहयोगी हैं, उनका ग्रुप बनाओ, प्लैन बनाओ, फिर शुरू करो, फिर देखेगे रिजल्ट क्या है। ग्रुप जरूर बनाना पड़ेगा। इसमें क्या है, पहले आपकी दीदी थी, बुजुर्ग थी, जगहजगह पर चक्कर लगाती थी। बस में, यह थ्रीव्हीलर भी नहीं थी, बसों में आधा-आधा घण्टे ठहरके हर छोटे-छोटे स्थान में चक्कर लगाती थी। वह आजकल कम है। ऐसा ग्रुप बनाओ जो चक्कर लगाता ही रहे, उमंग-उत्साह लाता रहे। कोई न कोई प्लैन बनाओ क्योंकि समय की पुकार है, जल्दी करो, जल्दी करो। और अचानक होना है। इसलिए मीटिंग में कोई न कोई प्लैन बनाओ। कैसे करें, कया करें? वह डिटेल बनाओ। डबल फारेनर्स भी बनाना। देखें कौन नम्बरवन जाता है।
डबल फारेनर्स जब भी मधुबन के संगठन में आते हो तो मधुबन के संगठन में रौनक हो जाती है क्योंकि इन्टरनैशनल संगठन हो जाता है, नहीं तो सिर्फ भारत का संगठन होता है। तो बापदादा को अभी देख करके खुशी होती है कि हर सीजन के टर्न में डबल विदेशी होते ही हैं। यह प्रोग्रेस अच्छी की है। और बापदादा का विशेष प्यार तो है ही क्यों? भारतवासी त्याग करते हैं लेकिन आपका डबल त्याग है। आपका कल्चर भी अलग है। भारत का कल्चर तो वही होता है। इसीलिए बापदादा को खुशी होती है तो अभी अनुभव करते हैं कि हम भारत के थे, भारत के रहने वाले हैं। आगे तो भारत ही होना है ना। यह अमेरिका, लण्डन नहीं होगा। यह सब पिकनिक के स्थान बन जायेंगे। बाकी जो भी होगा एक ही भारत। तो अभी यह अनुभव करते हैं कि हम सेवा के लिए विदेश में गये हैं। आप सोचो अभी भी 30 स्थानों से आये हैं, सीजन जब थी फारेन की तो कितने तरफ के थे? (90 देशों के आये थे) तो सोचो, 90 देशों की भाषा अगर इन्डिया की बहिनें सीखें और सेवा करें तो योग लगायेंगे या भाषा सीखेंगे? इसीलिए आपको भिन्न भिन्न देश में सेवा के लिए भेजा गया है। परमानेंट एड्रेस आपकी कौन सी है? पता है। परमानेंट एड्रेस कौन सी? मधुबन कि लण्डन अमेरिका? मधुबन है? बोलो, परमानेंट एड्रेस मधुबन है, पक्का है? सेवा के लिए गये हो। घर मधुबन है, सेवा स्थान अलग-अलग है। इन्डिया में भी अलग अलग है ना, कोई महाराष्ट्र में है, कोई राजस्थान में है, यह सेवार्थ है। तो डबल विदेशी अभी टाइटल ही रखो डबल पुरूषार्थी | डबल विदेशी नहीं डबल पुरूषार्थी । अच्छा।
ट्रेनिंग की कुमारियां:- यह भी झण्डियां लेकर आई हैं, अच्छी पहचान हो जाती है। अच्छा, ट्रेनिंग हो गई? पक्की हो गई? या थोड़ी-थोड़ी कच्ची? पक्की? अभी वहाँ जाके ट्रेनिंग जो की है, उसका सबूत रूप दिखायेंगे ना। दिखायेंगी? कि कहेंगी क्या करें, हो गया... माया आ गई...। ऐसे तो नहीं कहेंगे। विजयी। सदा विजयी का तिलक लगाके जा रही हो। कभी भी कोई आपसे पूछे आपका हालचाल क्या है? क्या कहेंगी? अच्छे ते अच्छा कहेंगी। अभी झण्डियां हिलाओ। अच्छा। तो हर मास जो इन्चार्ज है ना दादी, उनको ओ.के. ओ.के का लिखना। बड़ा पत्र नहीं लिखना, यह हो गया, यह कह गया नहीं। ओ.के. या बीच में कुछ हुआ तो लकीर डाल दो बस। क्योंकि टाइम नहीं होता है पढ़ने का। शार्टकट या ओ.के., अगर कोई गड़बड़ हुई तो ओ.के. के बीच में लकीर लगाना बस। ठीक है अभी रिजल्ट देखेंगे। जो ग्रुप होके गये हैं, उनकी रिजल्ट आई है? रतनमोहिनी कहाँ है, (रिजल्ट आती रहती है) रिजल्ट जरूर आनी चाहिए। नहीं तो क्या है, ढीली हो जायेंगी। हर मास रिजल्ट आनी चाहिए। छोटा सा कार्ड भेजना। बड़ा कागज नहीं लेना, खर्चा नहीं करना। लेकिन रिजल्ट आवे जरूर, तभी पता पड़े कि ट्रेनिंग से फायदा क्या है। इतना महल बनाया है आपके लिए। सारे शान्तिवन में सबसे बढ़िया स्थान ट्रेनिंग का है। तो बापदादा और मधुबन निवासियों ने, आपसे प्यार है उसका सबूत दिया है, अभी आपको सबूत देना है। ठीक है। रिपोर्ट लिखते रहना, मास में एक बार। ज्यादा नहीं लिखना। अच्छा। बापदादा खुश है क्योंकि विश्व के सामने तो टीचर्स ही रहती हैं ना। टीचर्स विजयी तो सेन्टर विजयी। सेन्टर विजयी तो जोन विजयी और जोन विजयी तो विश्व विजयी। इसलिए यह पुरूषार्थ पक्का करना। ठीक है। अच्छा।
अभी एक सेकण्ड में सभी बहुत मीठी मीठी स्वीट साइलेन्स की स्टेज के अनुभव में खो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा।
चारों ओर के सर्व तीव्र पुरूषार्थी, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा सफलता को प्राप्त करने वाले, सदा विजय के तिलकधारी, बापदादा के दिल तख्तधारी, डबल ताजधारी, विश्व कल्याणकारी, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान करने वाले परमात्म प्यार में पलने वाले ऐसे सर्व श्रेष्ठ बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दिल की दुआयें और नमस्ते।
दादियों से:- बच्चे हाजिर हैं, तो बाप तो हाजिर है ही। न बाप बच्चों से दूर हो सकता, न बच्चे बाप से दूर हो सकते। वायदा है साथ हैं, साथ चलेंगे, आधाकल्प ब्रह्मा बाप के साथ रहेंगे। (दादी जानकी जी ने कहा, वह भी तो समाया हुआ साथ में है) आपकी यह अनुभूति ठीक है। अभी तो गैरेन्टी है लेकिन जब राज्य करेंगे तो नहीं आयेंगे। कोई देखने वाला भी चाहिए ना। (ऊपर मन कैसे लगेगा) ड्रामा में पार्ट है। ब्रह्मा बाप तो साथ है ना। देखो, ड्रामा क्या करता है? अच्छा है सब एक दो को सम्मान देते, स्वमान में रहते, चल रहे हो, चलते रहो। हाँ यह भी साथी हैं ही (मनोहर दादी और शान्तामणी दादी) थोड़ी तबियत है, कोई हर्जा नहीं। शुरू से निमित्त बने हैं स्थापना के तो स्थापना अभी पूरी नहीं हुई है ना, तो साथी हैं ना। (अंकल आंटी ने यादप्यार भेजा है)| कहो बापदादा आपसे भी ज्यादा पदमगुणा याद करता है। अच्छे हैं। अच्छा। अपना रिटर्न अच्छा दे रहे हैं। अच्छा। (दादी निर्मलशान्ता ने भी याद भेजी है।) (भाकी पहनते समय जानकी दादी ने कहा कि दादी की भाकी याद आती है) दादी आपके साथ है ही।
डा.अशोक मेहता से:- देखो, यह तो शरीर का बर्थ डे मनाया, बहुत अच्छा किया। लेकिन आपका अलौकिक बर्थ भी न्यारा और प्यारा है। और अच्छा है, यह भी जो बर्थ डे मनाया, तो यह सच्चे दिल से जो सेवा की है उसका रिटर्न मिल रहा है। दूसरों ने मिलके खास मनाया ना। तो यह सेवा का रिटर्न मिला। और अलौकिक जन्म में भी सेवा, सोशल सेवा विश्व में प्रसिद्ध करने की सेवा के निमित्त बने हो। जब से ग्लोबल हॉस्पिटल बनी तब से आबू का वायुमण्डल परिवर्तन हो गया। और सभी इन्ट्रेस्ट लेते हैं कि यह सिर्फ आध्यात्मिक सेवा नहीं करते लेकिन सोशल वर्क भी करते और हेल्थ का भी करते हैं, तो यह प्रभाव बदलते बदलते सेवा बढ़ती गई है। तो निमित्त बने ना। तो कितनी दुआयें हैं? बहुत दुआयें मिली हैं। दुआओं का खज़ाना भरपूर है। अभी स्व पुरूषार्थ का जो खाता है, उसमें ज्यादा थोड़ा एडीशन करो, दुआयें और पुण्य का खाता ठीक है स्व पुरूषार्थ का जो खाता है उसमें थोड़ा और तीव्र करो। नम्बर लेना है ना। ले सकते हैं। अच्छा है आलराउण्डर है। हेल्थ में भी, वेल्थ में सहयोग में भी। अच्छा पार्ट बजा रहे हैं। यह भी साथी हैं। (सिरिन बहन से) निमित्त यह बनी। आपके उमंग से यह भी आ गये। सारी फैमिली अच्छी है। साक्षी भी है और साथी भी है। अच्छा पार्ट बजाया है, बापदादा खुश है। यह भी बहुत अच्छा पार्ट बजा रही है। बापदादा तो देखते रहते हैं ना। बहुत युक्तियुक्त पार्ट बजा रही हो।
(डा.जैन, दादी जी के डाक्टर बापदादा से मिलने आये हैं):- अच्छा रोज पढ़ाई पढ़ते हो? रोज मुरली लेके भी पढ़ो। पढ़ तो सकते हैं ना। जो ड्युटी कर रहे हो ना कनेक्शन में, वह ठीक है। इसमें प्रोग्रेस करते जाओ। (दादी हमारी ठीक है) वह तो बहुत-बहुत ठीक है। निमित्त बनी हुई है ना, विशेषता है पार्ट बजाने की। वह तो अवतार की रीति से पैदा होगी। (सफलता के लिए वरदान दो) कोई भी काम शुरू करो पहले विशेष याद करो फिर कार्य करो तो सफलता है ही है।
एम.पी.(भोपाल) के मिनिस्टर, जज तथा अन्य मेहमान बापदादा से मिल रहे हैं:- कोई भी सेवा कर रहे हो, बहुत अच्छा लेकिन अभी विश्व परिवर्तन के कार्य में सहयोगी हो? हैं? यह संकल्प किया है कि विश्वपारिवर्तन में सदा सहयोगी रहेंगे। यह संकल्प किया? क्योंकि आप लोग आत्माओं की सेवा बहुत सहज कर सकते हो। कैसे कर सकते हो? आपके सम्पर्क में एक दिन में कितने लोग आते हैं? सम्पर्क में आते हैं ना! और कुछ भी नहीं करो लेकिन जो अपना कार्ड छपाते हो ना, कार्ड तो छपाते हो ना, परिचय का। उसके पीछे कोई न कोई ज्ञान का स्लोगन लिखो और उसमें यह लिखो - अगर टेन्शनफ्री होना है तो यह एड्रेस है, कोई सेन्टर की एड्रेस लिखो। तो आपकी सेवा हो जायेगी। जिसको रूचि होगी वह आपेही आयेगा। तो घर बैठे सेवा कर सकते हो। कर सकते हो ना। इसमें मुश्किल तो नहीं है ना? क्योंकि ईश्वरीय कार्य में अंगुली देना इससे बड़ा पुण्य प्राप्त होता है। उसकी निशानी है गुरूद्वारे में देखो बड़े बड़े वी.आई.पी. भी सेवा करने जाते हैं? क्यों? जुत्तियां भी सम्भाल के रखते हैं। क्योंकि पुण्य प्राप्त होता है। तो यह तो डायरेक्ट ईश्वर के कार्य में सहयोगी बनना, कितना पुण्य है और पुण्य की पूंजी साथ में जायेगी और कुछ नहीं जायेगा। तो अपने पुण्य का खाता जमा करते रहो। स्नेही, सहयोगी बनते रहो। अभी शिव शक्ति होके रहो। शिव परमात्मा साथ है। शिव शक्ति। सदा खुश रहना, कभी भी खुशी नहीं गंवाना। (महेन्द्र जी से) अच्छा ग्रुप है। सिर्फ इन्हों को कनेक्शन में रखते हुए आगे बढ़ाते रहो।
आंध्र प्रदेश के वी.आई.पीज से:- यह तो अनुभव करते हो कि हम ईश्वरीय परिवार के सहयोगी साथी हैं। सहयोगी हैं? देखो, परमात्म कार्य में सहयोगी बनना, यह कितना पुण्य है। क्योंकि जितना सहयोगी बनेंगे, अपने लिए पुण्य जमा करेंगे। समझते हैं? और पुण्य की पूंजी साथ चलेगी और सब यहाँ रह जायेगा। तो जितना हो सके उतना अपने पुण्य की पूंजी इकट्ठी करो। तो जन्म-जन्म यह पुण्य काम आयेगा क्योंकि ईश्वरीय कार्य है ना। तो जैसे ईश्वर अविनाशी है ना वैसे उनके कार्य में सहयोगी बनना वह भी अविनाशी है। तो सहयोग देते रहना। स्वपरिवर्तन और विश्व परिवर्तन। कुछ भी हो जाए खुशी कभी नहीं गंवाना। सदा खुश रहना। अच्छा। सदा अपने को परमात्मा के याद से शक्तिशाली बनाना। शिव शक्ति हैं। चारदीवार वाली माता नहीं, शिव शक्ति हो। यह निश्चय रखना।
जस्टिस ईश्वरैय्या (युगल से):- खुश हैं। खुशी जायेगी तो नहीं? कभी नहीं जाये, सदा खुश रहना। खुशनसीब हो जो साथ मिला है। तो खुश रहना। परमात्म कार्य में लग गया तो वह कार्य क्या है? यह तो पक्का है, विजयी है। जो भी ईश्वरीय कार्य में सहयोगी बनता है उसको अन्दर खुशी की अनुभूति होती है। तो खुशी होती है ना। क्योंकि अविनाशी बाप द्वारा आटोमेटिक प्राप्ति होती है तो सदा खुशनसीब हो। खुशनसीब हैं और खुशी देने वाले हैं। ठीक है। अच्छा है।