18-01-08 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
‘‘सच्चे स्नेही बन, सब बोझ बाप को देकर मौज का अनुभव करो, मेहनत मुक्त बनो’’
आज बापदादा अपने चारों ओर के बेफिक्र बादशाहों के संगठन को देख रहे हैं। इतनी बड़ी बादशाहों की सभा सारे कल्प में इस संगम के समय होती है। स्वर्ग में भी इतनी बड़ी सभा बादशाहों की नहीं होगी। लेकिन अब बापदादा सर्व बादशाहों की सभा को देख हर्षित हो रहे हैं। दूर वाले भी दिल के नजदीक दिखाई दे रहे हैं। आप सब नयनों में समाये हुए हो, वह दिल में समाये हुए हैं। कितनी सुन्दर सभा है, सबके चेहरों पर आज के विशेष दिवस पर अव्यक्त स्थिति के स्मृति की झलक दिखाई दे रही है। सबके दिल में ब्रह्मा बाप की स्मृति समाई हुई है। आदि देव ब्रह्मा बाप और शिव बाप दोनों ही सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं।
आज तो सवेरे दो बजे से लेकर बापदादा के गले में भिन्न-भिन्न प्रकार की मालायें पड़ी हुई थी। यह फूलों की मालायें तो कामन है। हीरों की मालायें भी कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन स्नेह के अमूल्य मोतियों की माला अति श्रेष्ठ है। हर एक बच्चे के दिल में आज के दिन स्नेह विशेष इमर्ज रहा। बापदादा के पास चार प्रकार की भिन्नभिन्न मालायें इमर्ज थी। पहला नम्बर श्रेष्ठ बच्चों की जो बाप समान बनने के श्रेष्ठ पुरूषार्थी बच्चे हैं, ऐसे बच्चे माला के रूप में बाप के गले में पिरोये हुए थे। पहली माला सबसे छोटी थी। दूसरी माला - दिल के स्नेह समीप समान बनने के पुरूषार्थी बच्चों की माला, वह श्रेष्ठ पुरूषार्थी यह पुरूषार्थी। तीसरी माला थी - जो बड़ी थी वह थी स्नेही भी, बाप की सेवा में साथी भी लेकिन कभी तीव्र पुरूषार्थी और कभी, कभी-कभी तूफानों का सामना ज्यादा करने वाली। लेकिन चाहने वाले, सम्पन्न बनने की चाहना भी अच्छी रहती है। चौथी माला थी उल्हनें वालों की। भिन्न-भिन्न प्रकार के बच्चों की मालायें अव्यक्त फरिश्ते फेस के रूप में मालायें थी। बापदादा भी भिन्न-भिन्न मालाओं को देख खुश भी हो रहे थे और स्नेह और सकाश साथ-साथ दे रहे थे। अभी आप सब अपने आपको सोचो मैं कौन? लेकिन चारों ओर के बच्चों में विशेष संकल्प वर्तमान समय दिल में इमर्ज है कि अब कुछ करना ही है। यह उमंग-उत्साह मैजारिटी में संकल्प रूप में है। स्वरूप में नम्बरवार है लेकिन संकल्प में है।
बापदादा सभी बच्चों को आज के स्नेह के दिन, स्मृति के दिन, समर्थी के दिन की विशेष दिल की दुआयें और दिल की बधाईयां दे रहे हैं। आज का विशेष दिन स्नेह का होने कारण मैजारिटी स्नेह में खोये हुए हैं। ऐसे ही पुरूषार्थ में सदा स्नेह में खोये हुए रहो। लवलीन रहो तो सहज साधन है स्नेह, दिल का स्नेह। बाप के परिचय की स्मृति सहित स्नेह। बाप के प्राप्तियों के स्नेह सम्पन्न स्नेह। स्नेह बहुत सहज साधन है क्योंकि स्नेही आत्मा मेहनत से बच जाती है। स्नेह में लीन होने के कारण, स्नेह में खोये हुए होने के कारण किसी भी प्रकार की मेहनत मनोरंजन के रूप में अनुभव होगी। स्नेही स्वत: ही देह के भान, देह के सम्बन्ध का ध्यान, देह की दुनिया के ध्यान से ऊपर स्नेह में स्वत: ही लीन रहती। दिल का स्नेह बाप के समीप का, साथ का, समानता का अनुभव कराता है। स्नेही सदा अपने को बाप की दुआओं के पात्र समझते हैं। स्नेह असम्भव को भी सहज सम्भव कर देता है। सदा अपने मस्तक पर माथे पर बाप के सहयोग का, स्नेह का हाथ अनुभव करते हैं। निश्चयबुद्धि, निश्चिंत रहते हैं। आप सभी आदि स्थापना के बच्चों को आदि के समय का अनुभव है, अभी भी सेवा के आदि निमित्त बच्चों को अनुभव है कि आदि में सभी बच्चों को बाप मिला, उस स्मृति से स्नेह का नशा कितना था! नॉलेज तो पीछे मिलती लेकिन पहला-पहला नशा स्नेह में खोये हुए हैं। बाप स्नेह का सागर है तो मैजारिटी बच्चे आदि से स्नेह के सागर में खोये हुए हैं, पुरूषार्थ की रफ्तार में बहुत अच्छे स्पीड से चले हैं। लेकिन कोई बच्चे स्नेह के सागर में खो जाते हैं, कोई सिर्फ डुबकी लगाके बाहर आ जाते हैं। इसीलिए जितना खोये हुए बच्चों को मेहनत कम लगती उतनी उन्हों को नहीं। कभी मेहनत, कभी मुहब्बत, दोनों में रहते हैं। लेकिन जो स्नेह में लवलीन रहते हैं वह सदा अपने को छत्रछाया के अन्दर रहने का अनुभव करते हैं। दिल के स्नेही बच्चे मेहनत को भी मुहब्बत में बदल लेते हैं। उन्हों के आगे पहाड़ जैसी समस्या भी पहाड़ नहीं लेकिन रूई समान अनुभव होती है। पत्थर भी पानी समान अनुभव होता है। तो जैसे आज विशेष स्नेह के वायुमण्डल में रहे तो अनुभव किया मेहनत है या मनोरंजन हुआ!
आज तो स्नेह का सबको अनुभव हुआ ना! स्नेह में खोये हुए थे? खोये हुए थे सभी! आज मेहनत का अनुभव हुआ? किसी भी बात की मेहनत का अनुभव हुआ? क्या, क्यों, कैसे का संकल्प आया? स्नेह सब भुला देता है। तो बापदादा कहते हैं सब बापदादा के स्नेह को भूलो नहीं। स्नेह का सागर मिला है, खूब लहराओ। जब भी कोई मेहनत का अनुभव हो ना, क्योंकि माया बीच-बीच में पेपर तो लेती है, लेकिन उस समय स्नेह के अनुभव को याद करो। तो मेहनत मुहब्बत में बदल जायेगी। अनुभव करके देखो। क्या है, गलती क्या हो जाती है! उस समय क्या, क्यों.. इसमें बहुत चले जाते हो। जो आया है वह जाता भी है लेकिन जायेगा कैसे? स्नेह को याद करने से मेहनत चली जायेगी क्योंकि सभी को भिन्न-भिन्न समय पर बापदादा दोनों के स्नेह का अनुभव तो है। है ना अनुभव! कभी तो किया है ना, चलो सदा नहीं है कभी तो है। उस समय को याद करो - बाप का स्नेह क्या है! बाप के स्नेह से क्या-क्या अनुभव किया! तो स्नेह की स्मृति से मेहनत बदल जायेगी क्योंकि बापदादा को किसी भी बच्चे की मेहनत की स्थिति अच्छी नहीं लगती। मेरे बच्चे और मेहनत! तो मेहनत मुक्त कब बनेंगे? यह संगमयुग ही है जिसमें मेहनत
मुक्त, मौज ही मौज में रह सकते हैं। मौज नहीं है तो कोई न कोई बोझ बुद्धि में है, बाप ने कहा है बोझ मुझे दे दो। मैंपन को भूल ट्रस्टी बन जाओ। जिम्मेवारी बाप को दे दो और स्वयं दिल के सच्चे बच्चे बन खाओ, खेलो और मौज करो क्योंकि यह संगमयुग सभी युग में से मौजों का युग है। इस मौजों के युग में भी मौज नहीं मनायेंगे तो कब मनायेंगे? बापदादा जब देखते हैं ना कि बच्चे बोझ उठाके बहुत मेहनत कर रहे हैं। दे नहीं देते, खुद ही उठा लेते। तो बाप को तो तरस पड़ेगा ना, रहम आयेगा ना। मौजों के समय मेहनत! स्नेह में खो जाओ, स्नेह के समय को याद करो। हर एक को कोई न कोई समय विशेष स्नेह की अनुभूति होती ही है, हुई है। बाप जानता है हुई है लेकिन याद नहीं करते हो। मेहनत को ही देखते रहते, उलझते रहते। अगर आज भी अमृतवेले से अब तक दिल से बापदादा दोनों अथॉरिटी के स्नेह का अनुभव किया होगा तो आज के दिन को भी याद करने से स्नेह के आगे मेहनत समाप्त हो जायेगी।
अभी बापदादा इस वर्ष में हर बच्चे को स्नेह युक्त, मेहनत मुक्त देखने चाहते हैं। मेहनत का नामनिशान दिल में नहीं रहे, जीवन में नहीं रहे। हो सकता है? हो सकता है? जो समझते हैं करके ही छोड़ना है, हिम्मत वाले हैं वो हाथ उठाओ। आज विशेष ऐसे हर बच्चे को बाप का विशेष वरदान है - मेहनत मुक्त होने का। स्वीकार है? है! फिर कुछ हो जाए तो क्या करेंगे! क्या क्यों तो नहीं करेंगे ना? मुहब्बत के समय को याद करना। अनुभव को याद करना और अनुभव में खो जाना। आपका वायदा है। बाप भी बच्चों से प्रश्न पूछते हैं, कि आप सबका वायदा है कि हम बाप द्वारा 21 जन्मों के लिए जीवनमुक्त अवस्था का पद प्राप्त कर रहे हैं, करेंगे ही, तो जीवनमुक्त में मेहनत होती है क्या? 21 जन्म में एक जन्म संगम का है। आपका वायदा 21 जन्मों का है, 20 जन्मों का नहीं है। तो अभी से मेहनत मुक्त अर्थात् जीवनमुक्त, बेफिक्र बादशाह। अभी के संस्कार आत्मा में 21 जन्म इमर्ज रहेंगे। तो 21 जन्म का वर्सा लिया है ना! या लेना है अभी? तो अटेन्शन प्लीज, मेहनत मुक्त, सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना। सिर्फ रहना नहीं, करना भी है। तभी मेहनत मुक्त रहेंगे। नहीं तो रोज कोई न कोई बोझ की बातें, मेहनत की बातें, क्या क्यों की भाषा में आयेंगी। अभी समय की समीपता को देख रहे हो। जैसे समय की समीपता हो रही है ऐसे आप सबका भी बाप के साथ समीपता का अनुभव बढ़ना चाहिए ना। बाप से आपकी समीपता समय की समीपता को समाप्त करेगी। क्या आप सभी बच्चों को आत्माओं के दु:ख अशान्ति का आवाज कानों में नहीं सुनाई देता! आप ही पूर्वज भी हो, पूज्य भी हो। तो हे पूर्वज आत्मायें, हे पूज्य आत्मायें, कब विश्व कल्याण का कार्य सम्पन्न करेंगे?
बापदादा ने समाचारों में देखा है, हर वर्ग वाले अपनी-अपनी मीटिंग करते हैं, प्लैन बनाते हैं कि विश्व कल्याण की गति को तीव्र कैसे करें? प्लैन तो बहुत अच्छे बनाते हैं, लेकिन बापदादा पूछते हैं आखिर भी कब तक? इसका उत्तर दादियां देंगी - आखिर कब तक? पाण्डव देंगे - आखिर कब तक? बाप की प्रत्यक्षता हो, यही सभी हर वर्ग के प्लैन बनाने में लक्ष्य रखते हैं। लेकिन प्रत्यक्षता होगी दृढ़ प्रतिज्ञा से। प्रतिज्ञा में दृढ़ता, कभी किसी कारण से वा बातों से दृढ़ता कम हो जाती है। प्रतिज्ञा बहुत अच्छी करते हैं, अमृतवेले अगर आप सुन सको ना, बाप तो सुनते हैं, आपके पास ऐसा अभी साइंस ने साधन नहीं दिया है जो सभी के दिल का आवाज सुन सको। बापदादा सुनते हैं, वायदों की मालायें, संकल्प करने की बातें इतनी अच्छी-अच्छी दिल खुश करने वाली होती हैं जो बापदादा कहते वाह बच्चे वाह! सुनायें क्या क्या करते हो! जब कर्म में आते हो ना, मुरली तक भी 75 परसेन्ट ठीक होते हैं। लेकिन जब कर्मयोग में आते हो उसमें फर्क आ जाता है। कुछ संस्कार कुछ स्वभाव, स्वभाव और संस्कार सामना करते हैं, उसमें प्रतिज्ञा दृढ़ के बजाए साधारण हो जाती है। दृढ़ता की परसेन्टेज कम हो जाती है।
बापदादा एक खेल बच्चों का देख मुस्कराते हैं। कौन सा खेल करते हो, बतायें क्या? बतायें तब जब इस खेल को खत्म करो। करेंगे, करेंगे? आज तो स्नेह की शक्ति है ना! करेंगे? हाथ उठाओ। हाथ सिर्फ नहीं, दिल का हाथ उठाना, करना ही पड़ेगा। फिर बापदादा थोड़ा..., थोड़ा-थोड़ा करेगा कुछ। बतायें? पाण्डव बोलो, बतायें? यह पहली लाइन बोलो बतायें? बोलो। करना पड़ेगा। बतायें? अगर हाँ है तो पहली लाईन हाथ उठाओ। यह दो लाइन वाले हाथ उठाओ। मधुबन वाले भी हाथ उठायें। दिल का हाथ है ना। अच्छा। बापदादा को तो खेल देखने में रहम आता है, मजा नहीं आता है क्योंकि बापदादा देखते हैं बच्चे अपनी बात दूसरे के ऊपर रखने में बहुत होशियार हैं। क्या खेल करते? बातें बना देते हैं। सोचते हैं कौन देखने वाला है! मैं जानूं मेरी दिल जाने। बाप तो परमधाम में, सूक्ष्मवतन में बैठा है। अगर किसको कहो कि यह नहीं करना चाहिए, तो खेल क्या करते हैं पता है? हाँ हुआ तो है लेकिन... लेकिन जरूर डालते हैं। लेकिन क्या? ऐसा था ना, ऐसा किया ना, ऐसे होता है ना, तभी हुआ, मैंने नहीं किया, ऐसे हुआ तभी | अभी इसने किया, तभी किया। नहीं तो मैं नहीं करता, तो यह क्या हुआ? अपनी महसूसता, रियलाइजेशन कम है। अच्छा, मानों उसने ऐसा किया, तभी आपने किया, चलो बहुत अच्छा। पहला नम्बर वह हुआ, दूसरा नम्बर आप हुए, ठीक है। बापदादा यह भी मान लेते हैं। आप पहला नम्बर नहीं है, दूसरा नम्बर हैं लेकिन अगर आप सोचते हो कि पहला नम्बर परिवर्तन करे तो मैं ठीक हूँगा, ठीक है? यह समझते हैं ना उस समय। मानो पहला नम्बर परिवर्तन करता है। बापदादा और सभी पहले नम्बर वाले को कहते हैं आपकी गलती है, आपको परिवर्तन करना है, ठीक है। अच्छा अगर पहले नम्बर वाले ने परिवर्तन किया, तो पहला नम्बर किसको मिलेगा? आपका तो पहला नम्बर नहीं होगा। परिवर्तन शक्ति में आपका पहला नम्बर नहीं होगा। पहला नम्बर आपने उसको दिया तो आपका कौन सा नम्बर हुआ? दूसरा नम्बर हुआ ना। अगर आपको कहें दूसरा नम्बर हैं तो मंजूर करेंगे। करेंगे? कहेंगे नहीं, ऐसे था, वैसे था, कैसे था... यह भाषा बहुत खेल में आती है। ऐसे वैसे कैसे यह खेल बन्द करके मुझे परिवर्तन होना है। मैं परिवर्तन होके दूसरे को परिवर्तन करूँ, लेकिन अगर दूसरे को परिवर्तन नहीं कर सकते हो तो शुभ भावना, शुभ कामना तो रख सकते हो! वह तो आपकी अपनी चीज़ है ना! तो हे अर्जुन मुझे बनना है। पहला विश्व के राज्यधारी लक्ष्मी-नारायण के समीप आपको आना है या दूसरे नम्बर वाले को?
बापदादा की इस वर्ष की यही आश है कि सभी ब्राह्मण आत्मायें, ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी जैसे यहाँ यह बैज लगाते हो ना, सभी लगाते हैं ना! यहाँ भी आते हो तो आपको बैज मिलता है ना, चाहे कागज का, चाहे सोने का, चाहे चांदी का। तो जैसे यहाँ बैज लगाते हो वैसे दिल में, मन में यह बैज लगाओ, मुझे परिवर्तन होना है। मुझे निमित्त बनना है। परिवर्तन के कार्य में ब्रह्मा बाप समान पहले मैं, दूसरी बातों में भले पीछे रहो, व्यर्थ बातों में। लेकिन परिवर्तन में पहले मैं। ठीक है ना! मंजूर है? तो कल अमृतवेले बापदादा देखेगा, बापदादा को देरी नहीं लगती है, स्वीच आन हुआ तो सब वर्ल्ड दिखाई देती है। तो कल अमृतवेले सभी बाप से मिलन मनायेंगे ना। तो मिलन मनाते हुए यह बैज लगाना। देखेंगे कौन बैज लगाता है प्रैक्टिकल में। ऐसे नहीं, शो के लिए नहीं लगाना है, परिवर्तन होना ही है। दृढ़ता है ना। दृढ़ हैं ना! हाथ उठाते हैं ना सभी, तो बापदादा को थोड़ा सा लगता है पता नहीं करेंगे, या नहीं करेंगे। यह भी अच्छा, यह हाथ उठाते हो तो एक सेकण्ड तो संकल्प अच्छा किया, लेकिन करके ही छोड़ना है। मुझे बदलना है, बदलकर बदलाना है। यह बदले, यह बात बदले, यह व्यक्ति बदले, यह सरकमस्टांश बदले, नहीं। मुझे बदलना है। बातें तो आयेंगी, आप ऊंचे जा रहे हो, ऊंचे स्थान पर समस्यायें भी तो ऊंची आती है ना! लेकिन जैसे आज नम्बरवार यथाशक्ति स्नेह के स्मृति का वायुमण्डल था। ऐसे अपने मन में सदा स्नेह में लवलीन रहने का वायुमण्डल सदा इमर्ज रखो।
बापदादा के पास समाचार बहुत अच्छे अच्छे आते हैं। संकल्प तक बहुत अच्छे हैं। स्वरूप में आने में यथाशक्ति हो जाते हैं।
अभी दो मिनट के लिए सभी परमात्म स्नेह, संगमयुग के आत्मिक मौज की स्थिति में स्थित हो जाओ। अच्छा - इसी अनुभव में बार-बार हर दिन में समय प्रति समय अनुभव करते रहना। स्नेह को नहीं छोड़ना। स्नेह में खो जाना सीखो। अच्छा।
सेवा का टर्न गुजरात जोन का है:- गुजरात के कुमार उठो। अच्छा है - कुमार का अर्थ ही है कि शरीर में शक्तिशाली, मन की शक्ति में भी शक्तिशाली और शरीर से भी हल्के, आत्मा में भी हल्के। तो ऐसे कुमार हो? हाथ हिलाओ, हैं? कोई बोझ की रिपोर्ट तो नहीं आयेगी। आज से गुजरात के यूथ की कोई रिपोर्ट नहीं आयेगी ना! ऐसा होगा? रिपोर्ट नहीं आयेगी या आयेगी? जो कहते हैं रिपोर्ट नहीं आयेगी वह हाथ उठाओ। हाँ फोटो निकालो। पक्का काम करना है ना। अच्छा है। बापदादा के पास एक यूथ ग्रुप का समाचार भी आया है, अच्छा पुरूषार्थ किया है, हिम्मत अच्छी रखी है, प्रोग्राम की विधि भी अच्छी है। अगर कोई और जोन वाले इस विधि को अपनाने चाहे तो बापदादा को अच्छा लगा है, प्रोग्राम जो बनाया है और अभी किया है, उसके लिए बापदादा की तरफ से अमरभव का वरदान है। अभी सभी जो भी यूथ आये हैं, सभी को पहले मैं परिवर्तन में आगे कदम उठाऊंगा, यह मंजूर है ना। पहले मैं या पहले यह? पहले मैं वाला हाथ उठाओ | देखो, आप अच्छी तरह से फोटो निकालो। बापदादा को रिजल्ट देखनी है ना। अच्छा है। यूथ सारे विश्व विद्यालय की रिजल्ट को प्रत्यक्ष कर सकते हैं। गवर्मेन्ट की प्राब्लम्स दूर कर सकते हैं, दोनों गवर्मेन्ट। आलमाइटी गवर्मेन्ट भी निर्विघ्न देखने चाहती और आजकल की गवर्मेन्ट भी निर्विघ्न भारत को देखने चाहती, लेकिन निमित्त यूथ को बनाने चाहती। तो करके दिखाना है, अमर रहना है। वायदे निभाने में भी अमर रहना। बाकी पुरूषार्थ कर रहे हैं, संकल्प किया है, आगे भी करते और कराते रहना। तो गुजरात के युवा आज से निर्विघ्न। निर्विघ्न रहेंगे ना! बहुत अच्छा।
मातायें उठो:- अच्छा है, माताओं को वरदान है क्योंकि दुनिया वाले भी यही नवीनता देखते हैं कि मातायें विश्व परिवर्तक बन गई हैं। तो मातायें सदा यह पाठ पक्का कर लो कि हमें सदैव शुभचिंतक और शुभचिंतन में रहना है। रह सकती हो? रहेंगे? कोई भी आत्मा हो, लेकिन आप शुभचिंतक रहो और सदा शुभचिंतन, व्यर्थ चिंतन नहीं। खराब चिंतन नहीं। शुभचिंतन। जो शुभचिंतन और शुभचिंतक है वही 21 जन्म के वर्से के अधिकारी बनते हैं। तो याद रखना - दो शब्द शुभचिंतक और शुभचिंतन। अच्छी संख्या है। कभी पराचिंतन नहीं करना, व्यर्थ चिंतन भी नहीं करना। यह रिजल्ट दिखायेंगी। टीचर्स सभी अपने-अपने सेन्टर्स में यह गुजरात की वरदानों को वरदान है, यह पक्का कराना और रिजल्ट देना। पराचिंतन बन्द, व्यर्थ चिंतन बन्द। शुभचिंतन और शुभचिंतक। हर आत्मा के प्रति, चाहे आपके पीछे ही पड़ा रहे, आपका उल्टा मित्र बना हआ हो। तो भी शुभचिंतन, पक्का। मातायें हाथ उठाओ | आप टीचर्स रिजल्ट देखना, हर सप्ताह इस बात की रिजल्ट देखना। देख सकती हैं ना। अच्छा।
पाण्डव उठो:- पाण्डवों की संख्या भी कम नहीं है। अच्छा पाण्डव क्या करेंगे! पाण्डवों का गायन क्या है? पाण्डव सदा पाण्डवपति के साथ और साथी रहे हैं। साथ भी रहे हैं, साथी भी रहे हैं इसीलिए पाण्डवों का टाइटिल क्या है? विजयी पाण्डव। विजय हो गई ना पाण्डवों की। कारण? परमात्मा साथ और साथी है। तो आज से दिल से मन से बाप का साथ नहीं छोड़ना है। साथ छोड़ते हैं तो माया आती है। बाप का साथ छोड़ना अर्थात् माया के आने का फाटक खोलना। जब दरवाजा खोलते हो तो वह आयेगी ना। क्यों नहीं आयेगी, 63 जन्म की पुरानी है ना। तो बाप को भूलो नहीं, भूलना माना माया का आना। तो सदा साथ रहना है और सेवा में विश्व के परिवर्तन के कार्य में सदा साथी होके रहना है। परमात्म कार्य के साथी, इसी में ही मन्सा वाचा कर्मणा अर्थात् चेहरे और चलन में साथी रहो। पसन्द है? साथ रहेंगे, साथी रहेंगे? माया का दरवाजा बन्द? डबल लॉक लगाया, सिंगल लॉक नहीं लगाना। डबल लॉक। निरन्तर सेवाधारी और निरन्तर याद। यह डबल लॉक लगाना। ठीक है? पाण्डव भी निर्विघ्न। निर्विघ्न, हाथ उठाओ। दिल से हाथ उठा रहे हो? जो दिल से उठा रहे हैं वह ज्यादा हिलाओ। देखना टीचर्स। हाथ उठा रहे हैं। अच्छा है। पड़ोसी हो ना गुजरात। मधुबन के पड़ोसी हो, तो पड़ोसी तो कमाल करेंगे ना। अच्छा।
टीचर्स और कुमारियां दोनों ही उठो:- जो भी कुमारियां हैं, वह बननी तो टीचर्स है ना। कुमारियां क्या बननी है! टीचर्स तो बननी है ना। इसलिए टीचर्स के साथ उठाया है। नौकरी करनी भी पड़ती है तो भी बापदादा कहते हैं अगर टीचर वा विश्व सेवा का लक्ष्य है, कुमारियों को तो भी हर शनिवार जब छुट्टी होती है तो सेन्टर पर रहना है। लेकिन वहाँ सेवा करनी है, ऐसे ही नहीं रहना है। सेवा का अभ्यास करना है। तो थोड़ा हिसाब किताब है तो उसे पूरा करें, अगर आवश्यक हिसाब है तो, चल नहीं सकते हैं इसलिए नौकरी करते हैं तब तो फेल हैं। सचमुच कोई कारण है, कईयों के सरकमस्टांश हैं लेकिन कईयों की दिल भी है। शनिवार और इतवार सेवा करो। इतवार के दिन पूरी सेवा करो। संस्कार डालो। सिर्फ रहने के संस्कार नहीं, सेवा के संस्कार डालो। समझो मैं सर्विसएबुल बनने के कारण आई हूँ। प्रैक्टिस करते रहो, जितना प्रैक्टिस करती रहेंगी ना, मजा आ जायेगा तो आपेही भी कोई बहाना बनाके अपने को छुड़ा सकेंगी। कुमारियां चतुर होती हैं, भोलीभाली नहीं होती हैं। इसीलिए कुमारियां अर्थात् स्व-उन्नति में हर समय कदम उठाती रहें। सिर्फ नौकरी नहीं, स्व उन्नति में अपने सरकमस्टांश अनुसार कदम आगे बढ़ाती रहें। ऐसे नहीं बस चल रही हैं, नौकरी करनी है, कब तक करेंगे, कब तक नहीं करेंगे, कुछ सोच नहीं। कुमारियां ब्रह्माकुमारी तो हो ही। सभी कुमारियां ब्रह्माकुमारी हैं। सर्विस करने वाली भी ब्रह्माकुमारी है, लेकिन ब्रह्माकुमारी वह जो विश्व कल्याण की भावना, कामना रखे। तो बापदादा देखेंगे कि कुमारियां योग्य टीचर बनी, खिटखिट वाली नहीं बनना। योग्य टीचर, क्योंकि योग्य टीचर्स की आवश्यकता है। आजकल क्या होता है, ट्रेनिंग भी कर लेती हैं, लेकिन सेन्टर पर जाते ही कोई प्राब्लम हो जाती, तो हैण्डस तो नहीं बन सकेंगी ना। कुमारी अर्थात् बापदादा के सेवा साथी और निर्विघ्न साथी। अपने को एडजेस्ट करने वाली। एडजेस्ट करने वाली हो ना कि अगेन्स्ट होने वाली हो | किसी के प्रति भी अगेन्स्ट नहीं हो, एडजस्ट हानेवाली। अच्छा तो ऐसी कुमारियां बनेंगी, हाथ उठाओ। एडजेस्ट होने वाली। सोच के हाथ उठाओ। तो सबसे मिलनसार। सबसे अपने को साथी बनाने वाली। निर्विघ्न। तब तो बहुत हैण्डस बन सकते हैं। अभी हैण्डस की कमी है, बापदादा सभी कुमारियों को कह रहा है। मददगार बनेंगी ना। जो मददगार बनेंगी वह हाथ उठाओ | लेकिन कौन-सी मददगार! निर्विघ्न मददगार। अभी उठाओ | निर्विघ्न मददगार? फिर इनएडवांस मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।
टीचर्स से:- टीचर्स भी गुजरात में बहुत हैं। अभी टीचर्स को क्या करना है? टीचर्स को अभी बेहद के वैराग्य वृत्ति का वायुमण्डल फैलाना है। चाहे सेन्टर पर, चाहे विश्व में | विश्व में भी वैराग्य वृत्ति के वायुमण्डल की आवश्यकता है क्योंकि भ्रष्टाचार पापाचार बढ़ रहा है। बिना वैराग्य वृत्ति के इन आत्माओं का कल्याण नहीं होगा। जो सन्देश देने का कार्य कर रहे हो, अच्छा कर रहे हो। बापदादा को पसन्द है लेकिन उससे सहयोगी बनते हैं, माइक बनते हैं। आप जैसे बाप के वारिस बच्चे समर्पण बच्चे कम बनते हैं। चारों ओर के सेन्टर्स पर वैराग्य वृत्ति की आवश्यकता है। वैराग्य वृत्ति सिर्फ खाने पीने पहनने की नहीं, साधनों की नहीं, लेकिन टोटल मानसिक वृत्ति, दृष्टि और कृति्ा, चारों ओर के जोन में अभी वैराग्य वृत्ति से उपराम, देहभान से उपराम वह अभी लहर चाहिए। बेहद की वैराग्य वृत्ति पहले देह भान की वैराग्य वृत्ति, देह की बातों से वैराग्य वृत्ति, देह की भावना, भाव, इससे वैराग्य वृत्ति चाहिए। तो बापदादा चारों ओर के बच्चों को यह अटेन्शन खिंचवा रहे हैं कि तीव्रगति से चाहे ब्राह्मण, चाहे सहयोगी आत्माओं में श्रेष्ठ उन्नति तब होगी जब वैराग्य वृतति का वायुमण्डल स्वयं में और सर्व में फैलायेंगे तब आवाज फैलेगा। सभी वर्ग वाले भी यही सोचते हैं प्रत्यक्षता करने चाहते हैं, प्रोग्राम भी बनाते हैं लेकिन अभी तक हुई नहीं है क्यों? कारण है चारों ओर, चाहे पाप कर्म चाहे भ्रष्टाचार, चाहे बातों में, पोजीशन में वैराग्य वृत्ति नहीं है। तो प्रत्यक्षता सहज नहीं हो सकती है। तो अभी चारों ओर बेहद की वैराग्य वृत्ति, ब्रह्मा बाप को अन्त तक देखा कितनी बेहद की वैराग्य वृत्ति रही। अपनी देह से भी वैराग्य वृत्ति। बच्चों के सम्बन्ध में भी वैराग्य वृत्ति। तो क्या करेंगे? यही लक्ष्य लक्षण में लाना। अच्छा। गुजरात वाले तो सेवा में सदा हाजिर होने वाले हैं। वृद्धि भी सेवा की अच्छी है, संख्या भी अच्छी है, अभी वारिस और माइक, ऐसे माइक निकालो जिसके आवाज का प्रभाव हो। सबके मुख से निकले, यह कहता है, यह कहता है... कुछ तो होगा। अच्छा, मुबारक हो सेवा की। निर्विघ्न सेवा की इसकी बहुत-बहुत मुबारक।
डाक्टर्स (मेडीकल) और इंजीनियर विंग :- अच्छा। दोनों ही वर्ग बहुत आवश्यक हैं। बापदादा ने दोनों ही वर्गो के प्लैन सुने। डाक्टर्स ने जो प्लैन बनाया है, अच्छा बनाया है। बापदादा को पसन्द है। मुबारक हो क्यों पसन्द है? क्योंकि सब डिटेल क्लीयर रूप से बनाया है। क्या करना है, किसको करना है, कब तक करना है, रिजल्ट क्या निकालनी है, यह सारा स्पष्ट रूप से बनाया है। बापदादा जैसे गांव वालों ने, यूथ ग्रुप ने अपना क्लीयर बनाकरके और प्रैक्टिकल किया इसलिए बापदादा इन दोनों के प्लैन और प्रैक्टिकल में भी मुबारक देते हैं, ऐसे ही डाक्टर्स ने भी जो अभी प्लैन बनाया है वह बहुत स्पष्ट बनाया है और हेल्थ का नाम सुन करके तो सभी इच्छुक होते ही हैं क्योंकि दिन प्रतिदिन नई नई बीमारियां तो निकल ही रही हैं, इलाज भी बहुत निकल रहे हैं तो बीमारियां भी बहुत निकल रही हैं और तंग हैं बीमारियों से। तो यह प्लैन देख करके सेवा सहज हो सकती है। तो अच्छी हिम्मत रखी है। सभी सहयोगी भी अच्छे अच्छे आ गये हैं और चारों ओर आवाज फैलाने का प्लैन बनाया है, एक जोन का नहीं है, सारे भारत का है, तो चारों ओर आवाज फैलने से अच्छा आवाज फैल जाता है। मुबारक हो। प्लैन को अभीप्रैक्टिकल करते चलो, सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। डाक्टर्स की संख्या भी बहुत है। अगर सारे वर्ल्ड के डाक्टर्स इकट्ठे करें तो बहुत संख्या है। काम में आयेंगे डाक्टर्स। पिछाड़ी के समय आपको बहुत सेवा करनी पड़ेगी। बहुत दु:ख खत्म करने पड़ेंगे। सब चिल्लायेंगे और आप तन और मन के डबल डाक्टर बनके सेवा करेंगे। अच्छा।
इन्जीनियर और साइंस:- दोनों ही डिपार्टमेंट बाढिया है तो ऐसा प्लैन बनाओ जिसमें जैसे साइंस प्रत्यक्ष एक्साम्प्ल दिखाती है, ऐसे ही साइलेन्स पावर के प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाओ क्योंकि आजकल सुनने के बजाए, प्रमाण देखने चाहते हैं। तो ऐसे कोई प्रमाण बनाओ, जैसे साइंस सिद्ध करके सुनाती है, साइन्स से यह प्रमाण है, फायदा हुआ है, या परिवर्तन हुआ है, ऐसे आप भी साइलेन्स शक्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण निकालो। तो लोगों में आकर्षण होगी। ठीक है ना। अभी इस वर्ष में इस रूप का कोई प्लैन बनाओ। बन सकता है, होशियार हो। बना देंगे। अच्छा। फिर भी अच्छा है। वर्गीकरण जबसे बने हैं, सेवा में वृद्धि तो हुई है। अच्छा।
डबल विदेशी:- बापदादा को बहुत अच्छा लगता है कि विदेशियों ने चतुराई बहुत की है, हर टर्न में चांस लेते हैं। और सभी कितने देशों से आये हैं! 35 देशों से आ गये हैं। तो 35 देशों का कल्याण तो हो रहा है ना। जहाँ से आप आये हो उस देश का कल्याण तो हो रहा है ना। तो यह टाइटल यथार्थ है ना, विश्व कल्याणकारी हैं। कोई भी कोना रह नहीं जाये। बापदादा ने समाचार सुना है कि विदेश में भी यही प्लैन बनाया है, कि कोई भी कोना सन्देश के बिना खाली नहीं रहे। बनाया है ना? बनाया है। तो बाप के इस विश्व कल्याणी टाइटल को आपने अच्छा प्रैक्तिकल में लाया है। पहले सिर्फ भारत कल्याणकारी था, अभी फलक से कहते हैं विश्व कल्याणकारी। तो बाप का यह टाइटल विश्व कल्याणकारी का आप डबल विदेशियों ने प्रैक्टिकल में लाया है और विदेशी एक बात में चारों ओर होशियार हैं, बतायें कौन सी? हमेशा विदेशी हाथ में हाथ देके चलते हैं। आदत है। तो डबल विदेशी बाप को हाथ में हाथ देकरके चलने वाले। हैं? हाथ में हाथ है? हाथ कौन सा है? निराकार को तो हाथ है नहीं? निराकार का हाथ है श्रीमत। तो श्रीमत पर हाथ में हाथ देकर चलने वाले हो ना। कभी थक तो नहीं जाते हो हाथ में हाथ देने में। थकते हो! थोड़ा-थोड़ा? सदा बाप के श्रीमत रूपी हाथ में हाथ अर्थात् साथी सहयोगी बनने वाले। जो बाप ने कहा वह किया। ऐसे हो ना? ऐसे हो? सामने वाले ऐसे हो? पक्का? देखना, बापदादा पोतामेल देखेगा ना! बाप ने कहा बच्चे ने किया, वह है सुपात्र बच्चा। सोचे नहीं, करूं नहीं करूं, यह तो नहीं होगा, वह तो नहीं होगा... बाप ने कहा मैंने किया, यह हैं पक्के वारिस। सोचने वाले नहीं, करने वाले। कई कहते हैं ना करेंगे, देखना करेंगे जरूर, नहीं। तुरत कर्म, वह तो तुरत दान कहते हैं लेकिन यहाँ बापदादा कहते हैं तुरत हर कर्म में फॉलो करना महापुण्य है। महापुण्य और पुण्य में भी फर्क है। जैसे भक्ति में देखा है ना जब बालि चढाते हैं तो जो झाटकू होता है उसको महाप्रसाद कहा जाता है, अगर सोच सोच के मरता है तो उसको महाप्रसाद नहीं कहा जाता है। तो श्रीमत को फौरन फॉलो करना इसको कहा जाता है महापुण्य। ठीक है। समझदार तो बहुत हो। अच्छा लगता है, यह सिन्धियों का ग्रुप भी अच्छा लगता है। मधुबन का श्रृंगार हैं ना। तो बहुत अच्छा है, तो डबल फारेनर्स डबल पुरूषार्थी। आगे ग्रुप में वरदान दिया था डबल फारेनर्स का अर्थ ही है डबल पुरूषार्थी। सोचने वाले पुरूषार्थी नहीं। अच्छा, बाकी सेवा करते हो, जहाँ से भी आये हो, सेवा अच्छी कर रहे हो, स्व पुरूषार्थ में भी अटेन्शन है और आगे तीव्र करना। पुरूषार्थ है लेकिन तीव्र करना क्योंकि समय बहुत फास्ट जा रहा है। अचानक कुछ भी हो सकता है। अच्छा। सभी को दुआयें भी हैं और दिल का यादप्यार भी है। अच्छा।
चारों ओर के योगयुक्त, युक्तियुक्त, राज़युक्त, खुद भी राज़ को जान सदा राजी करने वाले और राजी रहने वाले, सिर्फ स्वयं राजी नहीं रहना है, राजी करना भी है, ऐसे सदा स्नेह के सागर में लवलीन बच्चों को, सदा बाप समान बनने के तीव्रगति के पुरूषार्थी बच्चों को, सदा असम्भव को भी सहज सम्भव करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के साथ रहने वाले और बाप की सेवा में साथी रहने वाले ऐसे बहुत-बहुत लक्की और लवली बच्चों को आज के अव्यक्त दिवस की, अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप की यादप्यार और दिल की दुआयें, अच्छा।
आज बहुत अच्छा वतन का दृश्य था। आज बापदादा ने वतन में सभी एडवांस पार्टी वालों को बुलाया। एडवांस पार्टी ने कहा कि हम सब एडवांस पार्टी वालों का एडवांस स्टेज वालों को यादप्यार देना। तो आप एडवांस स्टेज वाले हो, वह एडवांस पार्टी वाले हैं, तो आपको बहुत यादप्यार दिया और आज बापदादा ने काफी वर्ष अव्यक्त पार्ट चलाने के निमित्त दादी को और गुल्जार को, दोनों को अपने साथ बिठाया। काफी वर्ष अव्यक्त पार्ट को हो गया है, व्यक्त की सेवा से भी अधिक अलौकिक पार्ट का चला है। तो बापदादा ने आज दोनों को बहुत-बहुत स्नेह दिया और एडवांस पार्टी वालों ने बहुत स्वागत की। बापदादा ने दोनों को बाहों का हार पहनाया, गले लगाया और दोनों के कार्य का सुनाया। दादी के लिए कहा तो दादी ने परिवार और सेवा को, साथियों को, सभी को बहुत अच्छी तरह से चलाया, निमित्त बनी चलाने के और निमित्त समझके चलाया। और गुल्जार बच्ची ने बापदादा को समाने का कार्य किया। तो दोनों का कार्य विशेष रहा इसीलिए दोनों को विशेष वतन में स्वागत की और साथ में जो आदि से आदि रत्न दादियां कहो, उन्हों की भी स्वागत की। बापदादा ने यही विशेषता सुनाई कि दोनों के कार्य में सफलता का कारण मैंपन नहीं, गुल्जार बच्ची की भी महिमा की कि निर्मल निर्मान, सेवा के निमित्त बनी और समाने की शक्ति प्रमाण, परमात्मा और आत्मा दोनों को ब्रह्मा बाप आत्मा और परमात्मा को समाने की शक्ति बाप द्वारा जो प्राप्त हुई, उसको कार्य में लगाया। दादी को जो अन्त में हाथ में हाथ देके बापदादा ने विल पावर्स की विल की उस विल पावर से कार्य निर्विघ्न चलाया, तो दोनों की विशेषता कम नहीं हैं। दोनों ने अपना अच्छा, अच्छे ते अच्छा पार्ट बजाया है और अभी भी पार्ट बजाते रहेंगे। तो बापदादा कहते हैं कि जो विशेष कार्य के निमित्त बनते हैं उनको बापदादा की और ब्राह्मणों की बधाईयां जरूर मिलती हैं। उनकी मुबारकें शुभ भावनायें, शुभ कामनायें बहुत मिलती हैं, तो दोनों का पार्ट अपना अपना रहा। लेकिन सफल रहा, सफल रहेगा। अव्यक्त पार्ट भी चल रहा है, चलता रहेगा और दादी का भी सकाश देने का, समय को समीप लाने का पार्ट अच्छा चलेगा और साथ में सभी दादियों को और दोनों के साथी बहिनें जो सेवा के निमित्त बनी, साथ में रही, बहुत अच्छा योगयुक्त हो सेवा की है, कर रही हैं उन्हों को भी बापदादा ने इमज र् किया और वरदान दिया - सदा ऐसे ही योगयुक्त राज़युक्त बनके चलते चलो। बाप की दुआओं का हाथ आपके मस्तक पर है, ऐसे वहाँ वतन में सीन चली और सभी एडवांस पार्टी वाले और जो आदि रत्न सेवा साथी रहे हैं वह सभी इमर्ज थे। उन्होंने दोनों के ऊपर आज वतन में सोने के पुष्प डाले। देखा है, सोने के फूल देखे हैं? बहुत हल्के होते हैं, भारी नहीं होते हैं जो लगें, दर्द करें, ऐसे नहीं होते हैं। बहुत हल्के से पतरे के होते हैं लेकिन बहुत रंगबिरंगी अच्छी डिजाइन के होते हैं, तो बापदादा ने आज दोनों के पार्ट की विशेषता सुनाते हुए सभी द्वारा सोने के पुष्पों की वर्षा कराई। बापदादा ने दोनों को बहुत प्यार किया। और दोनों बाबा बाबा कह रही थी, बाबा आपने कराया, बाबा आपने कराया, बाबा आपने कराया ऐसे ही गीत गा रहे थी। यह था दृश्य आज वतन का। अच्छा।
दादियों से:- आदि रत्न फिर भी आदि रत्न हैं। आदि रत्नों की रौनक ही अपनी है। अच्छा है। बापदादा ने देखा कि सभी आप जो निमित्त बने हुए हो, यह सारा ग्रुप निमित्त ही है ना तो सारा निमित्त ग्रुप अच्छा है। एक दो को सहयोग देके अभी भी चला रही हो, और अच्छा चला रही हो, बापदादा देखके दुआयें देते हैं। एक ने कहा दूसरे ने माना और कार्य सफल हो गया। रायबहादुर भी हो और कार्य कर्ता भी हो। लेकिन सब मिल करके चाहे पाण्डव निमित्त हैं, चाहे शक्तियां निमित्त हैं, लेकिन अच्छा चल रहा है, और अच्छा चलता रहेगा। यही बापदादा का वरदान है।
दादी निर्मलशान्ता से:- खुश रहती हो, खुशी में रहती हो, बीमारी में भी चिल्लाती नहीं हो यह बहुत अच्छा है। योग भी अच्छा लगा रही हो। यह बहुत अच्छा है। (दादी ने गीत गाया, खुश रहो आबाद रहो...) यह पाठ बहुत अच्छा है। अच्छा पार्ट बजा रही हो।
शान्तामणी दादी से :- अच्छा है शरीर को चलाते रहो चल जायेगा क्योंकि विल पावर है ना। इतने वर्षों की विल पावर काम में आती है। काम में लगा रही हो लगाते रहो। सेवा भी अच्छी कर रही हो।
मनोहर दादी से:- आदि रत्न सबकी नजरों में हैं। कैसे भी हो, कहाँ भी हो लेकिन सबकी नज़र में आदि रत्न आदि ही हैं। सभी आदि रत्न हैं। विल पावर है।
(दादी जानकी जी ने कहा, बाबा बहुत अच्छा है) अच्छे बच्चे भी हैं ना। अच्छे बाप ने आप समान बनाया है। अच्छा।
आज विशेष ब्रह्मा बाप ने आप एक एक को याद करते हुए बहुत बहुत बाहों की माला पहनाई। (प्रैक्टिकल करके दिखायें) प्रैक्टिकल हो नहीं सकता ना, क्योंकि एक तो नहीं है सब हैं। सभी हकदार हैं। ब्रह्मा बाप को प्यार बहुत है बच्चों से। ऐसे ही दादी को भी भूलता नहीं है। बार बार याद आता है। कैसे है? कैसे चल रहा है? ठीक चल रहा है, मुझे सुनाया करो, कैसे हो रहा है? पूछती रहती है। फिर भी सखियां तो याद आयेंगी, पाण्डव भी याद आते हैं, यही पूछती है कारोबार ठीक चल रही है। ठीक चल रही है? ठीक चल रही है ना! दादी भी खुश और ब्रह्मा बाबा उनसे ज्यादा खुश। (दादी का पार्ट क्या है!) दादी सकाश और टचिंग देकर उन्हों को तीव्र करेगी। छोटेपन से ही उनके मन में बहुत प्लैन चलेंगे। (जन्म ले लिया है?) अभी नहीं। जन्म टाइम पर लेगी ना। अभी नहीं लिया। टाइम से ही लेना आजकल के समय में यथार्थ है। लेकिन आप सबसे मिलती रहेगी, सूक्ष्म। (रमेश भाई ने सुनाया कि आपकी यादगार सोमनाथ जा रहे हैं) सन्देश तो सबको मिलता है लेकिन अभी ऐसा माइक और वारिस नहीं निकला है वह निकालो क्योंकि भक्ति के रूप से भी वो बहुत हैं, सन्देश देने का ठीक है लेकिन ऐसा कोई निमित्त बनें वह अभी पुरूषार्थ करो। निकल सकता है, मेहनत थोड़ी चाहिए क्योंकि भक्ति का प्रभाव तो है।
नारायण दादा तथा मनोज से:- खुश रहते हैं, शरीर निर्वाह की चिंता तो नहीं है! इसको है? नहीं। बेफिक्र है? कभी भी सोचना नहीं। आपका परिवार बेहद का है इसलिए बेफिक्र। कोई चिंता नहीं। (बाबा सेवा में लगा दो अभी) अच्छा राय करेंगे फिर बतायेंगे।
भूपाल भाई से:- बापदादा ने सभी को याद करके बांहों की माला पहनाई। सभी को याद करते हैं। दादी को अपनी भुजायें भी नहीं भूली हैं। बड़े तो छोड़ो लेकिन भुजायें भी नहीं भूली है।