05-02-09   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘अव्यक्त बापदादा’’ मधुबन ‘‘सेवा करते डबल लाइट स्थिति द्वारा फरिश्तेपन की अवस्था में रहो अशरीरी बनने का अभ्यास करो’’

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के तीन रूप देख रहे हैं - जैसे बाप के तीन रूप जानते हो, ऐसे बच्चों के भी तीन रूप देख रहे हैं। जो इस संगमयुग का लक्ष्य और लक्षण है, पहला स्वरूप ब्राह्मण, दूसरा फरिश्ता, तीसरा देवता। ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। तो वर्तमान समय अभी विशेष क्या लक्ष्य सामने रहता है? क्योंकि फरिश्ता बनने के बिना देवता नहीं बन सकते। तो वर्तमान समय और स्वयं के पुरूषार्थ प्रमाण अभी लक्ष्य यही है फरिश्ता। संगमयुग के सम्पन्न स्वरूप फरिश्ता सो देवता बनना है। फरिश्ते की परिभाषा जानते भी हो, फरिश्ता अर्थात् पुरानी दुनिया के सम्बन्ध, संस्कार, संकल्प से हल्का हो। पुराने संस्कार सबमें हल्के हों। सिर्फ अपने संस्कार स्वभाव संसार में हल्कापन नहीं, लेकिन फरिश्ता अर्थात् सर्व के सम्बन्ध में आते सर्व के स्वभाव संस्कार में हल्कापन। इस हल्केपन की निशानी क्या है? वह फरिश्ता आत्मा सर्व के प्यारे होंगे। कोई कोई के प्यारे नहीं, सर्व के प्यारे। जैसे बाप, ब्रह्मा बाप को हर एक समझता है मेरा है। मेरा बाबा कहते हैं। ऐसे फरिश्ता अर्थात् सर्व के प्रिय। कई बच्चे सोचते हैं कि ब्रह्मा बाबा तो ब्रह्मा ही था, लेकिन आप सबने आप समान ब्राह्मण आत्माओं में देखा कि आप सबकी प्यारी दादी, जिसको सभी प्यार से अनुभव करते रहे कि मेरी दादी है। सर्व तरफ स्वभाव, संस्कार और इस पुराने संसार में रहते न्यारी और प्यारी, सब हक से कहते हमारी दादी। तो कारण क्या? स्वयं स्वभाव, संस्कार में हल्के। सबको मेरापन अनुभव कराया। तो एक्जैम्पुल रहा। जगत अम्बा का भी देखा लेकिन कई सोचते हैं वह तो जगत अम्बा थी ना। लेकिन दादी आप ब्राह्मण परिवार जैसी साथी थी। उनके मुख से सदैव अगर पुरूषार्थ सुनते वा पूछते तो उनके मुख में एक ही शब्द रहा - ‘‘अब कर्मातीत बनना है।’’ कर्मातीत की लगन में औरों को भी यही शब्द बार-बार याद दिलाती रही। तो हर ब्राह्मण का अभी लक्ष्य और लक्षण विशेष यही रहना चाहिए, है भी लेकिन नम्बरवार है। यही लगन हो अब फरिश्ता बनना ही है। फरिश्ता अर्थात् इस देह, साकार देह से न्यारा, सदा लाइट के देहधारी। फरिश्ता अर्थात् इस कर्मेन्द्रियों के राजा।

बापदादा ने पहले भी सुनाया कि सारे सृष्टि चक्र के अन्दर एक ही बापदादा है जो फलक से कहते हैं कि मेरा एक एक बच्चा राजा बच्चा है। स्वराज्य अधिकारी है। तो फरिश्ता अर्थात् स्वराज्य अधिकारी। ऐसा स्वराज्य अधिकारी आत्मा, लाइट के स्वरूपधारी। कोई भी ऐसे लाइट के डबल हल्केपन की स्थिति में स्थित होंके अगर कोई को भी मिलते हैं तो उनके मस्तक में आत्मा ज्योति का भान चलते फिरते भी दिखाई देगा। अभी यह तीव्र पुरूषार्थ का लक्ष्य और लक्षण सदा इमर्ज रखो। जैसे ब्रह्मा बाप में देखा अगर कोई भी मिलता, दृष्टि लेता तो बात करते-करते क्या दिखाई देता? और लास्ट में अनुभव किया कि ब्रह्मा बाप ज्यादा बात करते-करते भी मीठी अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाता। दूसरे को भी चाहे कितना भी सर्विस समाचार हो, लेकिन सेकण्ड में अशरीरीपन का अनुभव कराते रहे और बार-बार कोई भी मुरली में चेक करो, बार-बार मैं अशरीरी आत्मा हूँ, आत्मा का पाठ एक ही मुरली में कितने बार याद दिलाता रहा। तो अभी समय अनुसार छोटी-छोटी विस्तार की बातें, स्वभाव-संस्कार की बातें अशरीरी अवस्था से दूर कर देती हैं। अभी परिवर्तन चाहिए।

बापदादा ने देखा सेवा में रिजल्ट अच्छी हो रही है, सेवा के लिए मैजारिटी को उमंग-उत्साह है, प्लैन भी बनाते रहते हैं लेकिन सेवा के साथ, सन्देश देना यह भी आवश्यक है और बापदादा ने आज भी भिन्न-भिन्न वर्ग की, भिन्न-भिन्न स्थान की सेवा की अच्छी रिजल्ट देखी लेकिन अशरीरीपन का वायुमण्डल मेहनत कम और प्रभाव ज्यादा डालता है। सुना हुआ अच्छा तो लगता है, लेकिन वायुमण्डल से अशरीरीपन की दृष्टि से अनुभव करते हैं और अनुभव भूलता नहीं है। तो फरिश्तेपन की धुन अभी सेवा में विशेष एडीशन करो। कोई न कोई शान्ति का, खुशी का, सुख का, आत्मिक प्रेम का अनुभव कराओ। चलन में प्यार प्रेम और जो खातिरी करते हो, सम्बन्ध से, परिवार से वह तो अनुभव करके जाते हैं लेकिन अतीन्द्रिय सुख की फीलिंग, शान्ति का रूहानी नशा अभी वायुमण्डल और वायब्रेशन द्वारा विशेष अटेन्शन में रखो। विशेष अनुभव कराओ, कोई न कोई अनुभव कराओ। जैसे सिस्टम में प्रभावित होके जाते हैं ऐसी सिस्टम परिवार के प्यार की और कहाँ भी नहीं मिलती, ऐसे अभी कोई न कोई शक्ति का, कोई न कोई प्राप्ति का अनुभव करके जायें। अभी 70-72 वर्ष पूरे हो रहे हैं, इस समय में रिजल्ट में क्या देखा! मेहनत की है, लेकिन अभी तक ब्रह्माकुमारियां काम कर रही हैं, ब्रह्माकुमारियों का ज्ञान अच्छा है। देने वाला कौन! चलाने वाला कौन! सोर्स कौन! बाबा शब्द आप सबका सुन करके कहते भी हैं बाबा है इन्हों का, लेकिन मेरा वही बाबा है, बाप की प्रत्यक्षता अभी गुप्त रूप में है। बाबा बाबा कहते हैं, लेकिन मेरा बाबा, मैं बाबा का, बाबा मेरा, यह कोटों में कोई निकलता है।

तो संगमयुग का लक्ष्य क्या है? हम सब आत्माओं का बाप आ गया, वर्सा तो बाप द्वारा मिलेगा ना! वह प्रभाव फरिश्ता अवस्था से वायुमण्डल फैलेगा। इन्हों की दृष्टि से लाइट मिलती है, इन्हों की दृष्टि में रूहानियत की लाइट नज़र आती है, तो अभी तीव्र पुरूषार्थ का यही लक्ष्य रखो मैं डबल लाइट फरिश्ता हूँ, चलते फिरते फरिश्ता स्वरूप की अनुभूति को बढ़ाओ। अशरीरीपन के अनुभव को बढ़ाओ। सेकण्ड में कोई भी संकल्पों को समाप्त करने में, संस्कार स्वभाव में डबल लाइट। कई बच्चे कहते हैं हम तो हल्के रहते हैं लेकिन हमको दूसरे जानते नहीं हैं। लेकिन ऐसे डबल लाइट फरिश्ता, डबल लाइट उसकी लाइट छिप सकती है। छोटी सी स्थूल लाइट टार्च हो या माचिस की तीली हो लाइट कहाँ भी जलेगी, छिपेगी नहीं और यह तो रूहानी लाइट है तो अपने वायुमण्डल से उन्हों को अनुभव कराओ कि यह कौन हैं! चाहे जगदम्बा चाहे दादी ने कहा नहीं कि मुझे जानते नहीं हैं। अपने वायुमण्डल से सर्व की प्यारी। इसीलिए दादी का मिसाल देते हैं क्योंकि ब्रह्मा बाप के लिए भी सोचते हैं ब्रह्मा बाबा में तो शिवबाबा था, शिव बाप के लिए भी सोचते कि वह तो है ही निराकार, न्यारा और निराकार, हम तो स्थूल शरीरधारी हैं। इतने बड़े संगठन में रहने वाले हैं, हर एक के संस्कार के बीच में रहने वाले हैं, संस्कार को मिलाना अर्थात् फरिश्ता बनना। संस्कार को देख कई बच्चे दिलशिकस्त भी हो जाते हैं, बाबा बहुत अच्छा, ब्रह्मा बाप बहुत अच्छा, ज्ञान बहुत अच्छा, प्राप्तियां बहुत अच्छी, लेकिन संस्कार स्वभाव मिलाना अर्थात् सर्व के प्यारे बनना। कोई कोई के प्यारे नहीं, क्योंकि कई बच्चे कहते हैं कि कोई कोई से प्यार विशेषता को देख करके भी हो जाता है। इनका भाषण बहुत अच्छा है, इसमें फलानी विशेषता बहुत अच्छी है, वाणी बहुत अच्छी है, फरिश्ता बनने में यह विघ्न आता है। प्यारा भले बनाओ, लेकिन मैं आत्मा न्यारी हूँ, न्यारी स्टेज से प्यारा बनाओ। विशेषता से प्यारा नहीं। यह इसका गुण मुझे बहुत अच्छा लगता है ना वह धारण भले करो लेकिन इसके कारण सिर्फ प्यारा बनना वह रांग है। फरिश्ता सभी का प्यारा। हर एक कहे मेरा, अपनापन, ऐसी फरिश्ते अवस्था में विघ्न दो चीज़ें डालती हैं। एक तो देह भान, वह तो नेचुरल सबको अनुभव है, 63 जन्म का फिर फिर देहभान प्रगट हो जाता है और दूसरा है देह अभिमान, देह भान और देह अभिमान, ज्ञान में जितना आगे जाते हैं, तो स्वयं के प्रति भी कभी कभी देह अभिमान आ जाता है, वह अभिमान नीचे गिराता है, देह- अभिमान क्या आता है? जो भी कोई विशेषता है ना, उस विशेषता के कारण अभिमान रहता है, मैं कोई कम हूँ, मेरा भाषण सबको पसन्द आता है। मेरी सेवा का प्रभाव पड़ता है, कोई भी कला मेरी हैंडलिंग बहुत अच्छी है, मेरा कोर्स कराना बहुत अच्छा। कोई न कोई ज्ञान में आगे बढ़ने में, सेवा में आगे बढ़ने में यह अभिमान अपने प्रति भी आता और दूसरे के गुण या कला, या विशेषता प्रति भी प्यार हो जाता। लेकिन याद कौन आयेगा? देहभान ही याद आयेगा ना, फलाना बुद्धि का बहुत अच्छा है, मेरी हैंडलिंग बहुत अच्छी है, यह अभिमान सेवा वा पुरूषार्थ में आगे बढ़ने वालों को अभिमान के रूप में आता है। तो यह भी चेक करना है, और अभिमान वाले को अभिमान है इसको चेक करने का साधन है, अभिमान वाले को जरा भी कोई ने अपमान किया, उसके विचार का, उसकी राय का, उसकी कला का, उसकी हैंडलिंग का अपमान बहुत जल्दी महसूस होगा। और अपमान महसूस हुआ, उसकी और सूक्ष्म निशानी क्रोध का अंश पैदा होता है, रोब। वह फरिश्ता बनने नहीं देता। तो वर्तमान समय के हिसाब से बापदादा फिर से इशारा दे रहा है, अपना संगमयुग का लास्ट स्वरूप फरिश्ता अब जीवन में प्रत्यक्ष करो, साकार में लाओ। फरिश्ता बनने से अशरीरी बनना बहुत सहज हो जायेगा। अपनी चेकिंग करो, सूक्ष्म रूप में भी लगाव कोई विशेषता या अपनी या और किसकी, अभिमान तो नहीं है? कई बच्चों की छोटी सी बात भी होगी ना, तो अवस्था नीचे ऊपर हो जाती है। दिलखुश, चेहरा खुश उसके बजाए या चिंतन वाला चेहरा या चिंता वाला चेहरा, और चलते चलते दिलशिकस्त भी हो जाते। दिलखुश के बजाए दिलशिकस्त। तो समझा, अब अपने संगमयुग की लास्ट स्टेज फरिश्तेपन के संस्कार इमर्ज करो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, फॉलो फादर करना है ना। बात करते करते लास्ट में कई बच्चों को अनुभव है, सुनाने आये समाचार लेकिन समाचार से परे, आवाज से परे स्थिति का अनुभव किया हुआ देखा है। बातों का समाचार सुनाने, बहुत प्लैन बनाकर आते यह बताऊंगा, यह बताऊंगा, यह पूछूंगा लेकिन सामने आते क्या बोलना था वही भूल जाता। तो यह है फरिश्ता अवस्था। तो क्या आज पाठ पक्का किया? मैं कौन? फरिश्ता। किसी बातों से, किसी विशेषताओं से, अपनी विशेषता से, देह अभिमान से परे डबल लाइट फरिश्ता क्योंकि फरिश्ता बनने के बिना देवता का ऊंचा पद नहीं मिलेगा। सतयुग में तो आ जायेंगे, क्योंकि बच्चे बने हैं, वर्सा तो मिलेगा लेकिन श्रेष्ठ पद नहीं। जो वायदा है सदा साथ रहेंगे, साथ साथ राज्य करेंगे, तख्त पर भले नहीं बैठे लेकिन राज्य अधिकारी बनें, वहाँ की राज्य सभा देखी है ना। जो भी राज्य सभा के अधिकारी हैं, वह तिलक और ताजधारी, राज्य तिलक, राज्य की निशानी ताज। तो बहुत समय से स्वराज्य अधिकारी, बीच-बीच में नहीं। बहुत समय के स्वराज्य अधिकारी तख्त पर भले नहीं बैठे लेकिन रॉयल फैमिली के अधिकारी बन जाते हैं। अच्छा।

अच्छा आज जो पहली बारी आये हैं वह उठो। अच्छा। पौनी सभा तो उठी हुई है। अच्छा जो भी पहली बारी आये हैं उन सभी को बाप से साकार में मिलने की, पहले बारी की जन्म की मुबारक हो। बापदादा का सभी आये हुए बच्चों को यही वरदान है कि आये, टूलेट के समय हैं लेकिन नये आये हुए बच्चों प्रति एक विशेष वरदान है कि कभी भी यह संकल्प नहीं करना कि हम आगे कैसे जा सकते? टूलेट आने वालों को अभी तो लेट में आये हो टूलेट में नहीं आये हो। और अभी आप सबको विशेष बापदादा और निमित्त बने हुए ब्राह्मण परिवार के भाई बहिनों की विशेष सहयोग की भावना है कि अगर आप थोड़े समय को एक एक सेकण्ड को सफल करने का, क्योंकि थोड़े समय में बहुत पाना है, एक सेकण्ड भी व्यर्थ नहीं गंवाना, कर्मयोगी बनके चलना, कर्म नहीं छोड़ना है लेकिन कर्म में योग एड करते, कर्म और योग का बैलेन्स रखना है। तो बैलेन्स रखने वाले को ब्लैसिंग एकस्ट्रा मिलती है। तो जो भी लेट में आये हो, टूलेट अभी आगे लगना है, आपको चांस है, थोड़े समय में बहुत पुरूषार्थ कर सकते हो। बापदादा वरदान देते हैं कि हिम्मते बच्चे मददे बाप है ही।

सेवा का टर्न गुजरात का है:- अच्छा गुजरात के जो नये पहली बारी आये हैं वह उठो। जो बाप से पहले बारी मिलने आये हैं गुजरात के, हाथ हिलाओ। (गुजरात से 6 हजार आये हैं) अच्छा हुआ, आ तो गये। अपना मधुबन बापदादा का मधुबन तो देखा। इसकी भी मुबारक हो। अच्छा। अभी सभी गुजरात के उठो। बापदादा शुरू से गुजरात को मधुबन का कमरा समझते हैं। सबसे नजदीक सहयोगी, स्नेही और अभी वर्तमान समय बापदादा ने देखा रिजल्ट में तो जो बापदादा ने होमवर्क दिया था, कि हर एक जोन आपस में मिलके जोन को निर्विघ्न बनाने का प्रोग्राम बनाके और निर्विघ्न बनाओ, तो बापदादा ने देखा सभी जोन अपने अपने रूप में करते होंगे लेकिन गुजरात ने हर मास में रिकार्ड दिखाया, हर मास में टापिक और समाचार की लेन देन इससे संगठन में उमंग आता है। अलग अलग पुरूषार्थ करते हैं ना उससे अगर संगठन में नियम प्रमाण, कायदेमुजीब प्रोग्राम रखते हैं तो उससे अटेन्शन अच्छा होता है। निर्विघ्न बने या नहीं बनें वह रिजल्ट अभी आनी चाहिए कि इस प्रोग्राम चलते किस किस में अन्तर आया है, क्लास चले, यह तो मुबारक है। टापिक निकाली है यह भी मुबारक है लेकिन प्रैक्टिकल में अन्तर क्या आया है, वह रिजल्ट अभी आनी चाहिए। बाकी बापदादा मुबारक देते हैं कि होमवर्क को बुद्धि में रख पुरूषार्थ किया है, तो पुरूषार्थ का बाबा बधाई दे रहा है। ऐसे ही छोटे छोटे ग्रुप बनाओ, जैसे देखा है बापदादा ने तो यह वर्गीकरण का जो ग्रुप बनाते हैं, तो ग्रुप टर्न बाई टर्न आपस में भी मिलते रहते और छोटा ग्रुप होने के कारण आपस में लेन देन कर सकते हैं, बाकी वर्गीकरण वाले भी बहुत आये हैं। उन्हों को भी बापदादा यही कह रहे हैं, कि जैसे सर्विस के प्लैन बनाते हो, रिजल्ट में बापदादा ने देखा, तीन चार की रिजल्ट भी आई है लेकिन जैसे सेवा का प्लैन बनाते हो और उसको प्रैक्टिकल में करते हो, और प्रैक्टिकल में जो सहयोगी बने हैं, सहयोगी कम बने हैं, स्नेही बने हैं, तो जैसे वह रिजल्ट निकालते हो, वैसे हर वर्ग को धारणा के लिए अपने वर्ग को निर्विघ्न बनाने के लिए भी अटेन्शन देना चाहिए। कोई कोई करते हैं, धारणा का प्वाइंट भी रखते हैं लेकिन रिजल्ट किया नहीं किया, वृद्धि है या नहीं है, परिवर्तन हुआ या नहीं हुआ, वह रिजल्ट भी आनी चाहिए। क्या रिजल्ट रही? परिवर्तन का कोई ऐसा दृष्टान्त दिखाना चाहिए। जैसे सेवा पर अटेन्शन देते हो तो सेवा वृद्धि को तो पाई है ना, बापदादा खुश है लेकिन अभी धारणा के ऊपर अटेन्शन और चाहिए। क्योंकि अन्त में सेवा चाहेंगे तो भी नहीं कर सकेंगे, अभी कर ली सो कर ली, उस समय फरिश्ता लाइफ या अशरीरी बनने का सेकण्ड में बिन्दु लगाने का यही काम में आना है। और अचानक होना है। इसका अभ्यास अगर सेवा भी की, लेकिन इसका अभ्यास कम होगा, सेवा में ही लगे रहे, सेवा में लगना है लेकिन दोनों का बैलेन्स चाहिए। बापदादा बार-बार इशारा दे रहा है कि अचानक होना है और ऐसी सरकमस्टांश में होना है इसीलिए बाप को उल्हना कोई नहीं दे कि आपने बताया नहीं। बार-बार भिन्न-भिन्न ईशारे दे रहे हैं। सेवा का फल मिलता है, सेवा की मार्क्स, क्योंकि चार सबजेक्ट हैं ना तो सेवा की सबजेक्ट की मार्कस मिलेंगी लेकिन और तीन सबजेक्ट, अगर एक सबजेक्ट में आपने मार्कस ले ली और तीन में कम ली तो नम्बर क्या मिलेगा? चार ही में फर्स्ट नम्बर आना चाहिए। यह बापदादा की हर बच्चों के प्रति शुभ आश है। तो बाप की आशाओं के सितारे कौन हैं? हाथ उठाओ। बाप की आशाओं के सितारे हो तो बापदादा की यही सबसे बड़ी आश है कि चार ही सबजेक्ट में नम्बर अच्छा हो। नहीं तो पास विद आनर में नहीं आयेंगे। महारथी उसको कहा जाता है जो चार ही सबजेक्ट में अच्छे नम्बर ले। कहने में भले महारथी महारथी आता है, लेकिन अगर नम्बर नहीं लेते तो बापदादा के उम्मीदों के तारे हैं, आशाओं के तारे नहीं। तो बनना क्या है? उम्मीदों के सितारे? आशाओं के सितारे, सफलता के सितारे। तो गुजरात अच्छा लक्ष्य तो रखा है। लेकिन रिजल्ट बापदादा को भेज देना क्योंकि आपको देख करके फिर औरों को भी उमंग आयेगा, कि इस संगठन से फायदा क्या हुआ। प्लैन तो अच्छा है और रेग्युलर करते आये हैं, इसकी मुबारक भी है। ठीक है। मुबारक भी है और होमवर्क भी है। दोनों है। अच्छा।

इस ग्रुप में 5 वर्ग की मीटिंग है:- (बिजनेस महिला समाज सेवा ट्रांसपोट और ग्राम विकास) अच्छा सभी ने अपनी निशानी रखी है। अभी जिसने जो कुछ निशानियां बनाई है ना, उसका एक एक सामने आवे। बोर्ड है या सिम्बल है। एक दो आ जाओ। सब आगे आओ। यह भी अच्छा है। अभी ऐसे सामने फेश करो। अच्छा। अच्छा किया है। यह भी एक एकस्ट्रा उमंग-उत्साह भरने का साधन है। अभी प्लेन किसने नहीं देखा हो तो प्लेन तो देख लिया। (ट्रांसपोर्ट वालों ने फ्लैक्स पर प्लेन बनाया है) अपने प्लेन में तो चढ़ते हो ना! इसमें तो टिकेट खर्च करनी पड़ेगी और आपका प्लेन, मन और बुद्धि का प्लेन सेकण्ड में कहाँ से कहाँ तीन लोकों में पहुंच सकता है। मेहनत अच्छी की है। अच्छा।

सभी को खुशी होती है ना, अच्छा कौन से विंग्स हैं। अच्छा बिजनेस वाले हाथ उठाओ। अच्छा यह बिजनेस वाले और ट्रांसपोर्ट, ट्रांसपोर्ट दोनों ही ट्रांसपोर्ट ने हाथ उठाया। दोनों ही उठाओ। अच्छा। महिलायें। अच्छा। इनकी निशानी बता रही है। बाबा की अभी एक बात प्रैक्टिकल में लाना रह गई है, वह ग्रुप कहाँ भी इकठ्ठा करो। मानों जोन में इकठ्ठा  करो या दो तीन जोन जो नजदीक हैं उसमें जो वी.आई.पी स्नेही, आया गया वह नहीं लेकिन स्नेही है कनेक्शन में है और रिलेशन रख रहा है, रिलेशन यह है, जो रोज मुरली सुनने नहीं भी आता है, तो फोन में भी सुनता रहे, वरदान सुने, स्लोगन सुने, और जो लास्ट में मुरली का सार होता है, वह चलते फिरते फोन में भी सुने, कनेक्शन रखे। ऐसे नहीं 6 मास के बाद बुलाओ तो आ गया। कनेक्शन में रहे तो रिलेशन पक्का होगा। कनेक्शन ऐसा होता है जो खींचता है। जब वर्गीकरण होगा तब आयेगा, एक साल के बाद उसको रिलेशन नहीं कहा जाता। नजदीक का रिलेशन हो, अपनी प्रेजन्ट मार्क तो डाले। फोन में ही डाले, लेकिन मैं हूँ, यह प्रेजन्ट मार्क तो डाले। और जितना हो सके उतना जोन या दो तीन जोन मिलके, जहाँ नजदीक पड़ता हो आने जाने में, 6 मास में 3 मास में एक संगठन तो करो। और एक दो में पहले अपने अपने जोन में करो, दो तीन नजदीक वाले मिलके करो और फिर एक बारी सबको इकठ्ठा एक स्थान पर करें तो परिचय भी हो जावे ना, कौन कौन अनुभव कर रहा है, मानों डाक्टर्स हैं, अभी देखें तो इतने बड़े बड़े डाक्टर्स भी अभ्यास कर रहे हैं तो प्रभाव तो पड़ता है ना। ऐसे ही सभी वर्ग वालों को एक दो को देख करके प्रभाव पड़ता है। यह भी चल रहे हैं, यह भी चल रहे हैं और एक दो का अनुभव सुनते हैं तो भी प्रभाव पड़ता है। तो अभी दूसरा टर्न आपका आवे उसमें यह रिजल्ट बताना। कितने बार संगठन किया, कहाँ कहाँ किया, कितने आये, उसकी रिजल्ट। यह तो सहज है ना। सहज है या मुश्किल है? सब वर्ग करेंगे ना। दूसरे भी सुनेंगे। अच्छा।

डबल विदेशी भाई बहिनें:- (80 देशों से आये हैं) अच्छा है, यह जो प्रोग्राम बनाया है, मधुबन में सबका संगठन हो, यह बापदादा को बहुत पसन्द है क्योंकि मधुबन में आने से परिवार कितना बड़ा है! सेवायें चारों ओर कैसे हो रही हैं! भारत वाले फारेन की सेवा से लाभ उठाते कि फारेन में यह कर रहे हैं, हम भी करें और फारेन वाले इन्डिया के समाचार सुनकर अपने स्थान में जहाँ हो सकता है, वहाँ फायदा लेते हैं और फारेन के फारेन में मिलना, मुश्किल है, मधुबन में डबल फायदा है। बापदादा से मिलना भी हो जाता और परिवार से मिलना भी हो जाता। तो अभी कुछ समय से कायदे प्रमाण मधुबन में मीटिंग या छोटे छोटे संगठन यह बापदादा को बहुत पसन्द आया और प्लैन भी अच्छे- अच्छे बनाते रहे हो और प्रैक्टिकल में भी कर रहे हो, इसकी भी हर साल वृद्धि देखक्र बापदादा चारों ओर के डबल फारेनर्स को बधाईयां देते हैं, बधाईयां देते हैं। और अभी जितना-जितना संगठन होता रहा है ना, तो उससे एक दो का अनुभव सुनने से कईयों को अनुभव द्वारा भी बल मिलता है। मानों कोई दिलशिकस्त हो जाता है तो दूसरे का अनुभव सुनता, तो यह सदा खुशमिजाज रहता है इसकी शक्ल कभी मुरझाये नहीं, दिलखुश। तो एक दो का अनुभव सुनने से उल्हास में आ जाते। एक दो का अनुभव कम नहीं होता है, हर एक को ड्रामानुसार कोई न कोई विशेषता बाप द्वारा मिली हुई है। तो वह अनुभव सुनने से उमंग आता है, यह कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता! कभी भी दिल छोटी नहीं करना। बड़ी दिल, बड़ा बाबा। छोटा बाबा है क्या, बड़े ते बड़ा बाबा है, तो बच्चों की दिल सदा बड़ी। बापदादा का स्लोगन है बड़ी दिल सच्ची दिल, साफ दिल तो हर मुराद हांसिल। जो भी किचड़ा आवे ना, किचड़े की दुनिया है ना, तो कभी वायुमण्डल में किचड़ा उड़के आ जाता है लेकिन किचड़ा अपने पास नहीं रखो। जैसे स्थूल कमरे में सोते हो और किचड़ा हो जाए तो क्या होता है, सफाई नहीं करो तो मच्छर हो जाते हैं, फिर बीमारियां होती हैं, तो यह भी अगर मन में कोई भी बात रख ली, निकाला नहीं तो वह वृद्धि को पाती रहती। बस बाबा, मेरा बाबा कहो तो हाजिर बाबा, बंधा हुआ है। बच्चा, बाप का बच्चा, भगवान का बच्चा, याद करे मेरा बाबा और बाबा हाजर नहीं हो, यह हो नहीं सकता। आपके पास बाप को बांधने की रस्सी है! क्या है? दिल का प्यार। कईयों को बाप से प्यार है, नहीं है यह नहीं कहेंगे, लेकिन दो प्रकार का प्यार है - एक है नॉलेज के आधार से, मैं आत्मा हूँ, शरीर तो हूँ ही नहीं और आत्मा का बाप परमात्मा ही है और परमात्मा ज्योति के सिवाए और कोई सबका परमात्मा हो ही नहीं सकता। तो बाप बाप तो है, ज्योति स्वरूप है, सहयोग देता है, लेकिन हर समय दिल के स्नेह से मेरा बाबा निकले ऑटोमेटिकली। साथी बनाया जाता है समय के लिए, आईवेल के लिए साथी काम में आता है, तो आपने बाप को कम्बाइन्ड रखा है, साथी बनाया है तो समय पर साथ लो। स्नेह से याद करो, एक है नॉलेज के आधार से स्नेह, एक है दिल के प्यार से स्नेह। तो चेक करो दिल का प्यार है? प्यार वाले को भूलना मुश्किल है। रिवाजी चीज़ देखो, सुगर वालों को मीठा मना है, और उसका प्यार है मीठे से, तो मीठा याद आता है, भूलता है? डाक्टर की दवाई करेंगे लेकिन मीठा खायेंगे। तो चीज़ से प्यार है तो कहने से भी नहीं छोड़ते हैं और यह तो बाप है, सर्व प्राप्ति का अनुभव कराने वाला है। सभी सुन रहे हैं ना। भले निमित्त फारेनर्स हैं लेकिन सभी सुन रहे हैं, तो अभी चेक करो कि दिल का प्यार है? खुदा को दोस्त बनाया है? दोस्त किसलिए बनाते हैं? बाप से भी दोस्त से ज्यादा प्यार होता है। तो खुदा दोस्त बनाया है ना! कोई भी बात आवे, बाबा आप सम्भालो। छोटे बच्चे बन जाओ, बड़े नहीं बनो। तो बाप ले लेगा। प्यार की रस्सी से ऐसा बांधके रखो जो हिल नहीं सके। समझा! सभी ने समझा ना! कई बार कहते हैं बाबा आज मुझे बाबा भूल गया। बापदादा को सुनके कितना आश्चर्य लगता होगा! भूल गया! 63 जन्म भूले, अभी भी भूल गये। एक जन्म और छोटा सा जन्म! 21 फुल जन्म भूल गये, अभी भी भूलना रहा हुआ है क्या? इसीलिए अभी माया की चतुराई को समझ जाओ। माया की कभी-कभी खातिरी भी कर देते हैं। कहते हैं हम समय पर तैयार हो जायेंगे। अभी तो टाइम पड़ा है ना थोड़ा! अभी टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है ना! हम हो जायेंगे और माया भी सहारा देकरके, खातिरी देकरके चाय पानी पीती रहती है। बाप को फॉलो फादर करने के बजाए, माया को फॉलो कर लेते हैं। पुरूषार्थी हैं ना, सम्पूर्ण थोड़ेही बने हैं, यह तो होता ही है ना! यह है माया के फॉलोअर बनना। तो अभी बापदादा कभी भी चक्र लगाने आये तो सदा शक्ल देखे तो कैसी शक्ल देखे! कभी कभी शक्ल अच्छी नहीं होती है। सोच में, सोच बहुत करते हैं। क्या करूं, यह करूं, नहीं करूं, फायदा होगा, ठीक होगा, सोचते बहुत हैं। बाप को फॉलो करो, ब्रह्मा बाप पहुंच गया ना! ज्यादा सोचते क्यों हो? सिर्फ फॉलो फादर। व्यर्थ संकल्प आते हैं, लहर आ जाती है। यह सिर्फ फारेनर्स को नहीं सुना रहे हैं, सबको सुना रहे हैं।

(विदेश के डेविड भाई से) बापदादा ने देखा भी और जाना भी कि बच्चे को उमंग-उत्साह बहुत है। अभी उमंग- उत्साह को प्रैक्टिकल में लाने में सहयोगी बन करके सहयोग लेते रहेंगे सहयोग देते रहेंगे तो आगे जा सकते हो। उमंग उत्साह कभी ढीला नहीं करना बातें आयेंगी। लेकिन उमंग उत्साह के पंख ढीले नहीं करना। उड़ते रहना। पंख है उड़ने के लिए। उमंग-उल्हास जरा भी कम हुआ तो ऊंचा उड़ नहीं सकते। बात चली जाती है लेकिन खुशी नहीं जाये उमंग उत्साह नहीं जाये। बाकी बापदादा ने देखा उमंग अच्छा है अब सदा कायम रखना। जम्प दे सकते हो।

फिलीपीन्स की सहानी बहन से - यह तो पुरानी है। अच्छे हैं। सेवा करके साथ लाई है। अच्छे हैं सुना ना उमंग-उत्साह कब नहीं छोड़ना। उड़ते रहना। कोई भी बात आये आप उड़ जाओ बात नीचे रह जायेगी आप ऊपर हो जायेंगी। अच्छा।

चारों ओर के दिलखुश, दिल सच्ची, दिल साफ वालों को हर संकल्प, मुराद हांसिल। इसका अर्थ है जो भी संकल्प किया उसकी सफलता प्राप्त होना। तो ऐसे तीनों विशेषता, बड़ी दिल, साफ दिल और सच्ची दिल वाले, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा देख पदमगुणा से भी ज्यादा खुश होते हैं और ऑटोमेटिक गीत बजता है, वाह! वाह मेरे बच्चे वाह! सदा मुबारक के पात्र बच्चे वाह! सदा बाप को साथी बनाके चलने वाले, हाथ में हाथ मिलाके, हाथ है श्रीमत, तो सदा हाथ में हाथ मिलाके उड़ने वाले, चलना तो खत्म हुआ, उड़ने वाले, श्रीमत को हर कदम में ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाले और सोचो नहीं, करूं नहीं करूं, ठीक होगा, नहीं होगा, पता नहीं पसन्द आयेगा, नहीं आयेगा। फॉलो करो, ब्रह्मा बाप ने क्या किया, जो बाप ने किया वह राइट है, सोचने की जरूरत नहीं। फॉलो करना तो सहज है ना। सोचने की क्या जरूरत। फिर माथा भारी हो जाता है। फिर कहते हैं आज मुझे पता नहीं क्या हुआ है, भारी भारी हो गया है। क्योंकि कोई न कोई बात पर सोचने लग जाते हैं।

तो सभी चारों ओर के बच्चों को बापदादा के दिल की दुआयें और पदमगुणा बधाईयां हो। जो शिव रात्रि पर अपनी सेवा में रहेंगे, उन्हों को अभी से शिवरात्रि आपके बर्थ डे की दुआयें और मुबारक दे रहे हैं और आने वाले अथवा जो पत्र ईमेल भेजते हैं उन्हों का सेकण्ड से भी कम समय में बापदादा के पास पहुंच जाता है। उन्हों को भी और बापदादा की प्यासी आत्मायें, बांधेलियां जो मार को भी गले का हार बना देती हैं, ऐसी आत्माओं को भी यादप्यार और नये-नये स्नेही आत्मायें जो अभी निकल रही हैं, लेकिन कम। स्नेही और सहयोगी डबल होना चाहिए। तो चारों ओर के सभी युवा, वृद्ध, बच्चे, मातायें, पाण्डव, सभी को इनएडवांस आपके, बाप के बर्थ डे की मुबारक हो। अच्छा।

दादियों से:- सभी नम्बरवन हैं ना! कभी भी नम्बरवार में नहीं आना नम्बरवन। बाप के बनके नम्बरवार हो गये तो क्या बड़ी बात है! नम्बरवन। नम्बरवन आओ लेकिन निमित्त और निर्माण बन नम्बरवन। (निर्मलशान्ता दादी की याद दी है)

दादी शान्तामणि से:- हिम्मत में नम्बरवन है इसीलिए बापदादा हिम्मते बच्चे मददे बाप खुश होते हैं।

रमेश भाई से:- (रमेश भाई का आज 75 वां जन्म दिन है) जन्म दिन की मुबारक हो। अच्छा है। इस जन्म दिन पर कुछ न कुछ बापदादा को देना है जो भी जो समझो अच्छा।

डबल विदेशी बड़ी बहिनों से:- देखो ड्रामानुसार जो निमित्त बने हुए हैं, सब भारत के ही हैं। (जयन्ती बहन से) इसका भी भारत में जन्म हुआ, डायरेक्ट ब्रह्मा बाप द्वारा भारत में जन्म हुआ। पहले पहले सेवास्थान पर बाबा ने भेजा। तो सब देखो, क्योंकि आपका फाउण्डेशन पक्का है ना, पालना भी तो ली है ना। चाहे पीछे आई लेकिन पालना डायरेक्ट ली है, यह भाग्य है। आप (जयन्ती बहन) और रजनी, रजनी का भी भाग्य है। फोन पर भी मुरली सुनती थी। (मुरली भाई) पार्ट दोनों बजाये लेकिन इस तरफ चला तो बहुत मजबूत है। (गायत्री बहन ने भी याद भेजी है)

(सभी बड़ी बहनों से) अच्छा है संगठन में शोभता है। और जब आप सब आते हो तो अच्छा लगता है ना। कई फायदे हैं, बाप से मिलना, आपस में लेन देन करना और सर्विस की नवीनता लाना। यह बहुत अच्छा है क्योंकि अपने-अपने यहाँ सेवा तो करते हो लेकिन एक दो के अनुभव सुनने से उमंग आता है। बापदादा खुश है।

सरला दीदी से: ठीक है ना। हिम्मत अच्छी रखी है मेहनत की है फल निकल आयेगा। अच्छा है।

डाक्टर अशोक मेहता तथा रथ की (दादी गुल्जार की) सेवा करने वाली सभी बहिनों से:- अच्छा है रथ को तैयार कर दिया इसकी मुबारक हो। सभी दिल से दुआयें दे रहे हैं आपको। अच्छा है। और डॉक्टर्स की भी सेवा हो जाती है। वह भी समीप आ रहे हैं। बहुत अच्छा। यह सब सेवा बहुत अच्छी करती हैं मुबारक हो। अच्छा। मुबारक हो मुबारक हो मुबारक हो।

विदाई के समय:- हर एक बाप का बच्चा बाप को प्यारे ते प्यारा है। इसीलिए सिर्फ विधिपूर्वक सभी को तो बिठा नहीं सकते, लेकिन आप सभी स्टेज पर भी हो, स्टेज से भी नजदीक दिल में बैठे हो। थोड़ा सा रखना पड़ता है थोड़ा। लेकिन एक एक बाप को प्यारा है, एक दो से प्यारा है। तो बापदादा की नज़र सिर्फ नजदीक नहीं जाती है, लास्ट तक जा रही है। एक एक समझे हम बाबा के सामने बैठे हैं। बापदादा सम्मुख सामने बैठने की दृष्टि दे रहा है। अच्छा।