31-03-16 ओम्
शान्ति “अव्यक्त
बापदादा”
मधुबन
‘‘हर बच्चे के
दिल का प्यार, उनकी स्थिति उनके रूप से (फेस से) दिखाई देता
है, हर एक भिन्न-भिन्न सम्बन्ध के प्यार से मिलन मना रहे हैं,
मनाते रहेंगे’’
ओम् शान्ति। इस चैतन्य दीपकों
के संगठन को देख बापदादा बहुत खुश हो रहे हैं। कहाँ-कहाँ से
एक-एक दीपक दीपराज से मिलने आये हैं। दीपराज कितने बड़े दीपकों
के संगठन को देख खुश हो रहे हैं, वाह दीप वाह! एक दो को देख
देख मुस्करा रहे हैं क्योंकि यह मिलन, एक दो साथी आपस में
मिलें और कितने समय के बाद मिलते हैं। तो यह मिलन जो है, इस
मिलन की बहुत श्रेष्ठ वैल्यु है। वैसे भी आपस में मिलते हैं,
बात करते हैं, मुरली सुनते हैं, खाना खाते हैं, रूहरिहान भी
करते हैं, लेकिन यह मिलना कितना प्यारा लगता है क्योंकि संगठन
ही चलते फिरते दीपराज और दीपराज के बच्चे, दोनों का आपस में
मिलना। बच्चे कहते बाबा, ओ बाबा! और बाबा कहते हाँ बच्चे, मीठे
बच्चे।
आज तो बाप आपके लिए ही आये हैं
इसलिए इसका नाम ही दीपावली रखा है। दीपकों का मिलन। एक- एक
दीपक की, अगर आप ध्यान से बैठके टाइम लेके देखो तो हर एक के
फेस से कितनी मीठी मीठी बातें मन में आती हैं। एक-एक का फेस
बहुत कुछ बातें मन की अभी इस समय दिल में जो भी है वह कईयों की
तो बाहर लिखत में दिखाई दे रही है क्योंकि बाप के सामने दिखाई
दे वह समय बहुत कम मिलता है। चाहे फारेन हो, चाहे इन्डिया हो
लेकिन बाप के दिल में बच्चे, बच्चों के दिल में बाबा। यह मिलन
बहुत स्नेह का स्वरूप देखना हो तो मधुबन में देखो। अभी हर एक
की दिल में कौन ? बाबा के दिल में
बच्चे, बच्चों की दिल में बाबा। कितना सुन्दर मिलन है। वैसे तो
हर एक बच्चे का मुख अन्दर ही अन्दर मुख में जो बातें कर रहे
हैं उनका रिकार्ड तो भर रहा है लेकिन अभी उनके फेस के रिकार्ड
में स्पष्ट रूप से आ भी रहा है और मिलन भी हो रहा है। अभी
इकठ्ठा एक टाइम पर इतनों से तो मिल ही
रहे हैं लेकिन यह दिल का मिलन बाप और बच्चे के रूप में,
साथी के रूप में, सखा और सखी के रूप में कितना प्यारा है। गीत
है ना आपका, तुम्हीं हो माता, तुम्हीं हो पिता....सब कुछ हो।
तो आप यहाँ आ करके देखो जिस समय हर एक
बच्चे के दिल में यह याद का स्वरूप आता है, आप सोचो तो जब हर
एक के चेहरे पर वह मिलन का रूप आता है तो कितना प्यारा लगता
होगा! वैसे तो हर एक के दिल में चलते फिरते, कार्य करते भी
दिलाराम दिल में दिखाई दे रहा है। लेकिन यह मिलना थोड़े समय का
मिलन है यह, लेकिन कितना प्यारा है। हर एक के दिल में विशेष
यही है मेरा बाबा। वाह बाबा वाह! आपने हर बच्चे को अपने दिल का
कोना दे ही दिया है। हर एक के दिल में देखो अगर ऐसा दिल का
नक्शा खींचने वाला हो तो बहुत आपको वन्डर दिखाई देगा - कोई किस
रूप में, कोई किस रूप में, एक को ही याद कर रहे हैं।
यह सभा तो छोड़ो लेकिन इस समय
चाहे यहाँ चाहे सेन्टर्स पर सभी बच्चों के दिल में कौन दिखाई
देता है, मैजॉरिटी। और हर एक की अभी की शक्ल अगर फोटो निकालो
तो कितनी खुश दिल है। बाप और बच्चों का यह मिलन दिल को राहत
देने वाला है। अगर पूछें किससे भी, आपके दिल में कौन? तो क्या
कहेगा? मेरा बाबा। मीठा बाबा। मेरे दिल का दिलवर। और हर एक की
शक्ल फोटो निकालो तो शक्ल में फर्क है। हर एक के दिल के आवाज
से, हर एक की दिल बोल रही है, वह क्या बोल रही है? है सभी का
भाव एक ही लेकिन भिन्न-भिन्न बोल में बोल रहे हैं। सभी की दिल
का एक ही आवाज है, दिल का राजा आ गया। हर एक की दिल देखो, कोई
ऐसा फोटोग्राफर अभी निकला नहीं है, लेकिन बाप की दिल में हर एक
बच्चा कैसे समाया हुआ है, वह सीन अगर आप भी देखो तो देखते ही
रह जाओ क्योंकि यहाँ अभी इस समय दिल का अन्दर का नक्शा सबका
प्रत्यक्ष रूप में है। अगर एक-एक उस रूप से जो दिल में है,
दिखाई देवे तो बहुत आपको आश्चर्य लगेगा, कोई किस रूप में, कोई
किस रूप में, किस समय, भिन्न-भिन्न पो॰ज में मिलन मना रहे हैं,
वह देखने योग्य है। वहाँ ही एक बच्चे के रूप में है तो दूसरा
माँ-बाप के रूप में है, सखा रूप में है, भिन्न-भिन्न रूप में
है और हर एक अपने रूप के नशे में बहुत लगे हुए हैं। कोई मेरा
बाबा कह रहा, तो कोई मेरा दिल का हार, भिन्न-भिन्न रूप से, जो
भिन्न-भिन्न सम्बन्ध प्यार के होते हैं ना वह हर एक के दिल के
फेस में प्रत्यक्ष दिखाई देता है। तो आप सोचो हर एक के दिल का
फोटो प्रत्यक्ष देख बापदादा को कितना अच्छा लगता होगा! इस
साधारण रूप में नहीं लेकिन साधारण रूप के भी दिल में किस रूप
से याद कर रहे हैं उसी रूप से दिखाई दे रहा है। तो बोलो, कितना
अच्छा लगता होगा! दिल की फोटो, यह फेस तो दिखाई देता ही नहीं
है।
तो बापदादा कभी-कभी साकार रूप
में इमर्ज हुए, क्लास के रूप में दिखाई देता है, बैठे तो अभी
हर एक जो संगमयुग का रूप है उसमें ही हैं लेकिन अगर उसके अन्दर
का रूप देखने चाहो तो वह भी स्पष्ट दिखाई देता है। हर एक की
दिल खुशी के झूले में झूल रही है। बापदादा भी हर एक का साधारण
रूप नहीं देख रहा है लेकिन सम्बन्ध के स्वरूप में बाप और बच्चे
के स्वरूप में, ऐसे नहीं इमर्ज करे तो साधारण ही आये लेकिन दिल
के प्यार का स्वरूप प्रत्यक्ष है। तो आप देखिये सबके दिल का
पूरा-पूरा हाल, अभी इस सभा में दिखाई दे रहा है। तो बापदादा को
कितना प्यार, हर एक के दिल का गहरा रूप देख कितना एक-एक के
प्रति स्नेह प्रत्यक्ष दिखाई देता है। किसी भी कोने में बैठे
हैं, अभी कोना कहाँ और हम कहाँ लेकिन हर एक का चेहरा बापदादा
के समीप ही दिखाई देता है। कोई भी ची॰ज बड़ा रूप करके देखो
सामने और नेचुरल रूप में देखो तो कितना फर्क पड़ता है। तो
बापदादा जब भी आते हैं तो आपका वही ओरीज्नल रूप देखते हैं और
दिल से क्या निकलता है? वाह बच्चे वाह! थोड़ा सा टाइम सम्मुख का
मिलता है, बात तो फिर भी दिल में ही कर सकते हैं लेकिन दिल की
बातें दिल में कर लेते हैं, सम्मुख जैसे बात करते हैं तो
सम्मुख का जो अनुभव है, खुशी है, दिल का समाना है, यह अनुभव
कितना दिल को प्यारा लगता है। भले कोई लास्ट में बैठा है लेकिन
दिल में याद जितनी जिसकी पक्की है, वह ऐसे ही महसूस कर रहा है
तो बाबा का साथी बनके बैठा हूँ। तो साथीपन और साक्षीपन, दोनों
ही रूप दिखाई दे रहे हैं। हर एक के दिल का अनुभव अपना अपना है।
कहते तो सभी यह है कि बाबा की याद बहुत अच्छी अनुभव कर रहे हैं
लेकिन अनुभव में भी भिन्न-भिन्न रूप हैं। मैजॉरिटी दिल में
संगम का रूप ही मिलन में प्यारा लगता है क्योंकि ओरीज्नल
फीलिंग आती है। बाप और बच्चे का मिलन बहुत प्यारा लगता है। भले
लास्ट में बैठे हैं यहाँ हिसाब से, लेकिन हैं सब दिल में।
दिलाराम और बच्चों की दिल, यह मिलन कितना प्यारा है। तो हर एक
अभी कहाँ बैठे हो? कुर्सी पर? हर एक
अपने प्यार के नम्बर अनुसार उसी जगह पर बैठे हैं। तो बताओ कैसी
सभा लगती होगी? हर एक के दिल का चित्र इस समय क्या है? वह
चित्र दिल का हर एक का अभी बाहर के रूप में दिखाई दे रहा है।
कितनी अच्छी सभा लग रही होगी। हर एक के दिल का चित्र है। सभी
का चेहरा बड़ा सुन्दर, काले काले का नहीं, स्नेह में समाये हुए
का मेकप हो जाता है तो आप बताओ क्या सभा लगती होगी? तो ऐसी सभा
बाप देख सकता है, सेकण्ड में बाप के आगे जो उसकी स्थिति है उसी
अनुसार रूप दिखाई देगा। और सभा बहुत सुन्दर लग रही है। कोई
गोरा है, कोई काला है क्या है, लेकिन बाबा को लगन वाला वह
चित्र ही न॰जर आ रहा है। लगन का चित्र बस फेस में ही आप देख
लो। हर एक का फेस वर्तमान समय के मन की लगन के स्वरूप का
प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है।
बापदादा तो यह देखते हैं कि समय
अनुसार माताओं की संख्या कम नहीं आती। वह और ही ज्यादा आती है।
चाहे टांग में थोड़ा कुछ भी है लेकिन उन्हों को कोई टांगे
स्पेशल मिल जाती हैं। तो बापदादा को ऐसे बच्चों के बीच कितना
अच्छा लगता है। वाह! भक्ति में इनको भिन्न-भिन्न रूप में
दिखाते हैं। बापदादा भी जब यह दिन आता है तो बच्चों को बहुत
एक-एक को देखता है। और बच्चे भी उसी स्नेह के रूप में दिखाई
देते हैं। हर एक के दिल से वाह बाबा वाह! वाह बाबा वाह! का गीत
सुनाई देता है। और बाप को बच्चों के भिन्न-भिन्न रूप में गीत
बहुत अच्छे सुर में सुनाई देता है। कोई कैसा दिखाई दे, कोई
कैसा नहीं। एक ही सा॰ज में, एक ही लगन के रूप में दिखाई दे रहा
है। आप सबके चेहरे कुछ तो बदलते हैं, हैं तो वही चेहरे लेकिन
जो अन्दर का प्यार का स्वरूप है वह दिखाई दे रहा है। तो
बापदादा को भी आने में, बच्चों को ज्यादा तकलीफ होती होगी
लेकिन मन की मौज वह और ही जो दूर-दूर से अपने दिल की लगन से
आते हैं उनके चेहरे देख बापदादा दिल में ही बात कर लेते हैं।
अभी इतने स्पीकर तो नहीं लग
सकते, दिल का स्पीकर लग सकता है। सभी मिल तो लेते हैं ना! सभी
कहते हैं भले कुछ भी हो लेकिन मिलते तो हैं ना! आपको क्या लगता
है? इतने में सुख आता है? आता है? चाहना तो यही होगी बहुत टाइम
हो। लेकिन बापदादा देखते हैं और ड्रामानुसार यही हो सकता है कि
बापदादा हर एक को अपने चाहना अनुसार, क्योंकि चाहना भी इतने सब
आप बैठे हो हर एक की चाहना अपनी अपनी होगी। लेकिन प्यार का
मिलन चाहे 10 मिनट है, वह 10 मिनट नहीं लगता, एक हिसाब से थोड़ा
भी लगता, एक हिसाब से बहुत लगता। तो बापदादा भी एक-एक बच्चे को
देख खुश भी होते हैं देखो कहाँ कहाँ-कोने में बैठे हैं। लेकिन
यह भी है कि इतने टाइम में भी खुश हो जाते हैं, बाहर से नहीं
दिल से क्योंकि और कुछ हो ही नहीं सकता ना! बहुत कोशिश की कि
हर एक चाहता है कुछ समय हमको मिले, चाहना तो यह बढ़ती जायेगी यह
तो बापदादा भी समझते हैं लेकिन ना से यह भी पसन्द करते हैं। ना
से हाँ तो हुई।
आप लोगों को मुश्किल तो नहीं
लगती! गर्मी के दिन हैं और
गर्मी में आना जाना, माना पहले एक पानी
आता है गर्मी का, पीछे मिलन होता है।
साधन भी अपनाते हैं लेकिन कलियुग है ना, कलियुग में सब साधन
मिलें यह असम्भव हैं। हाँ हम सम्पन्न हो जायेंगे और समाप्ति भी
हो जायेगी। लेकिन वह एक मिनट का मिलना भी बहुत प्यारा लगता है।
और बाप भी एक दिन में इतने बच्चों से मिल लेता है, तो बाप को
भी अच्छा लगता है। ना से तो यह अच्छा है क्योंकि
अगर ज्यादा करें तो फिर जैसे ऐसे मिले जैसे दूर से क्योंकि बाबा
को भी तो बच्चे प्यारे हैं ना! तो एक के लिए इतनों से मिलना,
है तो बहुत मिलने का प्यारा समय लेकिन फिर भी मिलन तो है ना।
नाम क्या रखेंगे? बाबा से मिलके आये, चाहे कैसे भी मिलके आये।
बापदादा भी समझते हैं कि आजकल के जमाने में
गर्मी सर्दी यह अपना आना मिलना यह जैसे चलता आता है वैसे
बढ़ता जाता है और चलता रहता है। पहले यह सभायें इतनी बड़ी-बड़ी
होती थी! अभी तो कामन लगता है। एक ही सभा में कितने शहर वाले
अपने-अपने स्थान से मिलते हैं। अपने स्थान से एक जगह
इकठ्ठे तो हुए हो ना। फिर भी कोशिश तो
करते हैं जितना टाइम यहाँ बाबा के सामने बैठते हो
इकठ्ठे तो हर एक को अपना साधन भी हो
सकता है। बाबा को पसन्द तो आता है कि खुले मैदान में हो लेकिन
खुले मैदान में सुनना, समझना यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है। अभी
जबकि समय अभी नजदीक आ रहा है समाप्ति का लेकिन फिर भी मिलन तो
हो जाता है ना। इतना दूर दूर, कितना दूर से मिल रहे हैं। और
बाप को भी अच्छा लगता है सिर्फ धैर्य से जैसे प्रोग्राम मिलता
है वैसे ही चलें। बाप जब देखता है ना बच्चे थोड़े हलचल में आ गये
हैं तो दिल में लगता तो है! लेकिन बाप और बच्चों का मिलन यह
छूटता भी नहीं है। तो सभी जो भी अभी आये हैं, कितना कष्ट मिला
या नहीं मिला, अच्छा मिला या थोड़ी तकलीफ हुई, बापदादा सभी से
मिल रहे हैं। जो थोड़ी बहुत तकलीफ भी हुई होगी तो उसका भी
प्रबन्ध होगा तो करेंगे जरूर। हर एक समझता है हम भी मिलके आयें,
वह भी प्रबन्ध देखो थोड़ा सार्विस को आगे बढ़ाओ। जो निमित्त बनी
हुई आत्मायें हैं उनकी सेवा करके इनको बढ़ा सकते हैं लेकिन
हिम्मत वाला चाहिए वह। नहीं तो थोड़ा चार छ: पुलिस वाला आयेगा
तो दूसरे दिन सभी डरेंगे, इसीलिए ऐसा हंगामा भी नहीं करना है।
सरकार नारा॰ज नहीं होवे। होती तो फिर भी होगी! परन्तु ऐसा नहीं,
सुख के साधन भी हैं। और कौन हैं आपमें जो समझे इस रीति से मिलना
जो है वह भी अच्छा है, जो समझते हैं यह भी अच्छा है जो चल रहा
है, वह हाथ उठाना। सभी ने उठाया है। आप सोचेंगे और भी अच्छा हो
सकता है लेकिन सब कुछ देखना पड़ता है। हमारी देखो, दादी है कितनी
एज है। भले इनसे भी बड़े होंगे। क्योंकि आज की सभा में ऐसे
बुजुर्ग-बुजुर्ग दिखाई दे रहे हैं। पसन्द है ना आप लोगों को। न
चाहते भी पसन्द है। चाहते नहीं हो ऐसे, लेकिन करना ही पड़ता है।
और बापदादा समझते हैं कि
अपना राज्य जब होगा तब
इतने साधन होंगे जो हम यू॰ज नहीं कर सकेंगे, इतने होंगे और जब
होने चाहिए तब हर एक सोचता है कि अगर यह प्रबन्ध होता तो बहुत
अच्छा! और बापदादा
से जब बच्चे मिलते हैं तो एक- एक से मिलना तो बहुत मुश्किल है
लेकिन सभी से दृष्टि लेते हैं और देते हैं। यह भी अच्छा जो इतने
हाल भी आपको मिले हैं! बाप तो
मिला ना! चाहे थोड़ी गर्मी सहन करनी पड़ी।
या सुनने में थोड़ा कम आया। यह होता है लेकिन यह भी धीरे-धीरे
ठीक तो कर रहे हैं और करते भी रहेंगे। लेकिन बाप और बच्चों का
मिलना तो है ही कि समझते हो इससे नहीं मिले तो अच्छा!
नहीं। बाप को भी तो याद आते हैं
ना बच्चे। ऐसे नहीं कि बाप को याद नहीं आते। बाप को भी याद आते
हैं, बहुत दिन हुए हैं बच्चे मिले नहीं है, लेकिन देखना पड़ता
है। लेकिन जब भी बाबा मिलते हैं बच्चों से तो बहुत प्यारे लगते
हैं। थोड़ी गर्मी, पसीना थोड़ा देना पड़ता
है लेकिन बाबा के आगे वह क्या ची॰ज! भक्ति में क्या कुछ करते
हैं, यह तो ज्ञान है। आराम तो मिलता है ना। बैठे तो ठीक हो ना
सभी। भले आराम से लेटे हुए नहीं हो लेकिन बैठे तो ठीक हो ना।
और ऐसा ही होना चाहिए अगर लेटने का करेंगे तो आधा तो परमधाम
में चले जायेंगे। तो बापदादा को भी जब आना होता है ना, तो बहुत
न॰जारे सामने आते हैं। यह तो होंगे ही फिर भी प्रकृति भी हम
लोगों को अच्छा सहारा देती है। जहाँ बस स्टैण्ड नहीं है ना, वहाँ
बस स्टैण्ड बना रहे हैं। जहाँ कहाँ मुश्किल है तो कोशिश कर रहे
हैं कि सब ठीक हो जाए। लेकिन चाहिए दिल की लगन और थोड़ा सा बस
स्टैण्ड में ठहरना, आयेंगे तो भी दूर बैठेंगे। जैसे अभी लास्ट
में जो बैठे हैं उन्हों को क्या दिखाई देगा! लेकिन सब अच्छे
ड्रामानुसार मिलन मना रहे हैं और मनाते रहेंगे। पसन्द है ना!
इतने बैठे, ऐसे बैठें। तो पसन्द हैं! सोचेंगे इस पर भी। यह
झण्डे लहरा रहे हैं, क्योंकि बिचारों को ऐसे थोड़ा आने-जाने में
मुश्किल होता होगा ना। फिर भी दिल बड़ी है। जितने गरीब हैं, उतनी
दिल बड़ी है। अच्छा। अभी यह भी समाप्ति करनी पड़ती है।
सेवा का टर्न यू.पी.
बनारस और पश्चिम नेपाल का है, 13 हजार यू.पी. से आये हैं और
टोटल 27 हजार आये हैं:-
ज्यादा करके यू.पी. आई है। यहाँ अच्छा दिखाई दे रहा है। हम
लोगों ने बहुत मेहनत की आप लोग तो सुखी में आये हो। हम लोगों
के दिनों में तो स्कूटर भी नहीं थे। यह धीरे धीरे आये हैं। तो
सभी खुश है ना। खुश हैं, खुश होके मिलते रहेंगे।
डबल विदेशी 50 देशों से
900 आये हैं:-
तकलीफ तो होती होगी। हम लोगों ने जब शुरू किया तो कैसी हालत थी
लेकिन अभी धीरे-धीरे समझ में आ गया। पसन्द है ना यह। यह ऐसे
चले तो भी पसन्द है ना! अच्छा। तो सभी समझदार तो हैं ही। समझ
सकते हैं, कहने की जरूरत भी नहीं है। जैसा समय महंगाई में बढ़ता
जाता है उसी अनुसार प्रबन्ध किया जाता है। अटेन्शन है कि सहज
जितना हो सके उतना होवे। लेकिन कोई न कोई कारण आते हैं जिसके
कारण थोड़ा पैसा बढ़ाना पड़ता है फिर भी बाबा हमारे साथ है जो हम
लोगों को सैलवेशन गवर्मेन्ट भी देती है।
अच्छा है ना, आपको पसन्द है! सब
आराम से मिलते भी और मिल करके जायेंगे। घर में जायेंगे तो खाना
पीना दोनों टाइम मिलेगा। बाकी जो भी कोई सहूलियत हो सकती है तो
अपना विचार दे दो। क्यों नहीं हुआ, क्यों नहीं हुआ! यह जोर
नहीं दो। जितना हो सकेगा उतना आपकी बात मानी जायेगी।
दादियों से:-
सभी बाबा को कहते हैं कि ऐसा सहज करो जो किसी को मुश्किल नहीं
लगे! सभी बाबा कहते हैं और हो जायेगा। (दादी जानकी को अपने पास
बिठाया) आप एक का आराम से बैठना माना सबका बैठना। प्रोग्राम तो
आप लोग ही बनायेंगे ना। आप ही मालिक हो ना।
(मोहिनी बहन का 75वां
जन्म दिन मनाया जा रहा है, मोहिनी बहन ने बापदादा को सुन्दर
माला पहनाई, बापदादा ने मोहिनी बहन को माला पहनाई):-
जो भी बना रहे हैं, वह जनरल में
भी यू॰ज कर रहे हैं। कोई उल्हना आया तो नहीं है। धीरे-धीरे जो
भी कठिनाई है ना, वह खत्म करेंगे। अटेन्शन देंगे।
तीनों भाईयों ने बापदादा
को गुलदस्ता दिया:-
सब ठीक हो। जैसे जैसे मीटिंग करते जाते हो वैसे-वैसे थोड़ा
स्पष्ट होता जाता है। (पूना जगदम्बा भवन का प्लैन बापदादा को
दिखाया) (बृजमोहन भाई ने सीडी की ओपनिंग कराई)
ईशू बहन से:-
तबियत ठीक है ना!
(एस.डी.एम. साहेब और
एस.पी. साहेब बापदादा से मिल रहे हैं):- अभी मिल लिये ना।
(बहुत अच्छा सहयोग देते हैं) देश का काम है ना। सबको करना
चाहिए। देश का काम है कोई ब्रह्माकुमारी पसर्नल नहीं करती हैं।
अच्छा। अभी सभी मिले। अभी
आगे चलके भी मिलन होता रहेगा। जैसे प्रोग्राम बनाते हैं वैसे
बनाना।