20-03-17 ओम् शान्ति "अव्यक्त बापदादा" मधुबन
‘‘अपने साधारण स्वरूप को बदली कर थोड़ा समय भी संगमयुगी फरिश्ते स्वरूप का अनुभव करके देखो,
यह आपका बहुत अच्छा मुस्कराता हुआ चमकीला रूप है’’ओम शान्ति। आज बापदादा विशेष जो योगयुक्त बच्चे, सबके बीच योगयुक्त बन औरों को भी योगयुक्त बनाने वाले हैं उन्हों को देख हार्षित हो रहे हैं और दिल में ही बहुत-बहुत प्यार भरी दिल के प्यार की यादें बहुत प्यार से दे रहे हैं। बापदादा यही चाहते हैं कि इतने सब बच्चे इकठठे योग में बैठें और योग में भी ऐसी योग की स्टेज प्रैक्टिकल में हो, तो यह देख बापदादा बहुत खुश हैं। जैसे बाप देख-देख हार्षित हो रहे हैं ऐसे बच्चे भी बाप को मुस्कराते हुए देख बहुत दिल से खुश होके रेसपान्ड दे रहे हैं। अभी की सभा की रौनक बहुत अच्छी मुस्कराने वाली देख-देख, बाप भी आज बच्चों की सूरतों में प्यार की झलक देख मुस्करा रहे हैं। तो बच्चे क्या कर रहे हैं? बच्चे भी मुस्करा रहे हैं ना! बाप भी कहते हैं वाह बच्चे वाह! बच्चों की मुस्कराहट और बाप की मुस्कराहट बहुत सुन्दर दिखाई दे रही है। बापदादा जो देखने चाहते थे वह चारों ओर देख बाप भी मुस्करा रहे हैं। सारी सभा में बाप बच्चों को मुस्कराते हुए देख अभी तक दिल में मुस्करा रहे हैं। वाह बच्चे वाह! कमाल है गुप्त ताकत और उसका प्रभाव दोनों दिखाई दे रहे हैं। हर एक बाप का बच्चा ऐसे मुस्करा रहे हैं जो हर एक के मुख पर बहुत अच्छी खुशी की चमक है। हर एक का मुस्कराता हुआ चेहरा देख बाप भी कितना मीठा मुस्करा रहे हैं।
आज की सभा मैजारिटी मुस्कराते हुए बेफिक्र बादशाहों की है, जो दूर से ही मुस्कराते हुए चेहरे बहुत सुन्दर दिखाई दे रहे हैं। आप भी एक दो को इसी रूप में देख रहे हो ना! सभी एक दो को ऐसे देख रहे हैं जैसे बहुत पहचाने हुए मुस्करा रहे हैं। आज की सभा विशेष मुस्कराती हुई ज्यादा दिखाई दे रही है। क्यों? सबके मन में एक ही सा॰ज है मीठा बाबा, प्यारा बाबा.. सबके मुख के इशारे यही बोल रहे हैं ओ मीठे बाबा, प्यारे बाबा.. आज तो जैसे बाबा बहुत दिनों के बाद बच्चों की ऐसी सभा देख रहे हैं, जो हर एक से मीठे बाबा, प्यारे बाबा... यही फीलिंग आ रही है, लास्ट वाला चेहरा भी देखो तो आज इसी विधि में है।
तो आज जहाँ तक रात को जागेंगे, वहाँ तक सब एक दो को देख जैसे मीठा मुस्करा रहे हैं, आप एक एक यह बाबा का और सभा का मुस्कराता हुआ चेहरा देखो, इस कोने में आपका बैठा हुआ मुस्कराता चेहरा देख-देख सारी सभा में भी उसी का प्रभाव है। चाहे अवस्था कैसी भी हो लेकिन अभी सबका चेहरा मुस्कराता हुआ दिखाई दे रहा है। सबका चेहरा ऐसे मुस्करा रहा है जो एक सेकण्ड में सारी सभा बदल गई है। कोई कैसा भी हो लेकिन बाबा उसे बदलकर सबका वही चेहरा दिखा रहे हैं। सबकी शक्लें चमकती हुई दिखाई दे रही हैं। हर एक की शक्ल जैसे बाबा के वतन में चमकती हुई दिखाई देती है, ऐसे ही आज आप भी ऐसे चमकते हुए दीपक दिखाई दे रहे हैं। बाबा मुख से बहुत धीरे-धीरे बोल रहा है, क्या बोल रहे हैं? हर एक बच्चा ऐसे चमकती हुई सूरत और मूरत से जैसे अभी चित्र में दिखाई देते हैं, ऐसे ही चमकते हुए सितारे बहुत अच्छा चमक रहे हैं क्योंकि हर एक इस चमकते हुए सितारे की चमक बहुत सुन्दर है, क्यों? हर एक बच्चा अपने चमत्कारी सूरत में दिखाई दे रहे हैं। यह चित्र है तो आपका ही, लेकिन ऐसा चमकता हुआ सितारा अभी जैसे पहले दिखाई दे रहा था, ऐसे सफेद चमकता हुआ, साधारण रूप नहीं लेकिन चमकता हुआ फेस, वह सभा बड़ी अच्छी लग रही है। सब चमक रहे हैं, कोई भी ऐसा नहीं जिसमें चमक न हो क्योंकि अभी सब बाबा को चमकता हुआ देख रहे हैं, ऐसे ही बाप समान सारी सभा चमक रही है। जो बापदादा सुनाते हैं, सारी सभा ऐसे बैठी थी जैसे पता नहीं कोई सचमुच ऊपर से फरिश्ते इस धरनी पर पहुंच गये हैं। यह रूप आपका भी बड़ा प्यारा है क्योंकि अभी और कुछ भी नहीं है, सभी सम्पूर्ण मूर्ति हो गये हैं और यह रूप बच्चों का कईयों को दिखाई दे रहा है। सभी बहुत खुश हो रहे हैं। सभी फरिश्ते रूप में अपने को देख बहुत खुश हो रहे हैं। हमको भी (दादी को भी) बाबा आपको फरिश्ते रूप में दिखा रहा है। हर एक पूज्य समान दिखाई दे रहा है। अभी तो ज्यादा समय नहीं बैठ सकते क्योंकि सबको संगमयुगी अपना स्वरूप अच्छा चमकता हुआ दिखाई दे रहा है। तो इसी फरिश्ते रूप में एक सेकण्ड में जैसे पहले इमर्ज हुए थे, ऐसे ही फरिश्ते रूप में अभ-अभी भी दिखाई दे रहे हैं। सारी सभा यहाँ आके देखो कितने में बदल गई है। इतने ताजधारी सब कहाँ जायेंगे! जैसे अभी गुप्त मर्ज रूप में हैं, इसी को ही इमर्ज रूप में देखेंगे। सारी सभा देखो कितनी चमकीली न॰जर आ रही है। कोई टेढ़ा हो, बांका हो सब चमक रहे हैं और हर एक अपने को देखकर खुश हो रहे हैं। क्या पसन्द है? अपना चमकता हुआ फरिश्ता रूप पसन्द है ना! सेकण्ड में चमकीले बन गये। सारी सभा देखो चमकीली है। अपना ही चमकीला रूप अच्छी तरह से देख लो। ऐसा चमकीला अपना स्वरूप देख-देख बहुत खुशी हो रही है। तो यह अभी का रूप चमकने वाला, यह थोड़े समय के लिए बाबा ने इमर्ज करके दिखाया कि ऐसे आप सभी फरिश्ते हैं ही। उसी फरिश्ते रूप में बाबा ने आप सबको दिखाया। सेकण्ड में बदल गये। सारी सभा चमकीली ड्रेस में कितनी सुन्दर लग रही है। अपनी शक्ल आप देखो कितनी प्यारी लगती है क्योंकि सम्पूर्ण हैं ना। तो कितने सुन्दर लग रहे हैं। अभी साधारण रूप बदली करके फरिश्ता रूप देख रहे हो ना! आगे पीछे क्या दिखाई देता है? फरिश्ता और सारी सभा कितनी चमकती हुई दिखाई दे रही है। साधारण रूप किसका भी नहीं है, सभी का यह एक ही जैसा फरिश्ता रूप दिखाई देता है। बाकी अन्दर भले किसका कितना भी फर्क है वह तो वह खुद जाने, इसमें हम क्यों जायें। हमको तो सिर्फ अपना फरिश्ता रूप जो है, वह खास दिखाना है, एकदम फरिश्ता। तो देखो फरिश्ते रूप में जब चेंज होते हैं तो कितनी सभा बदल जाती है। वह स्वयं ही आपका फरिश्ता स्वरूप इमर्ज हो गया है। तुम्हारा ही चमकता हुआ यह स्वरूप कुछ समय आपके साथ रहेगा। तो अपना यह फरिश्ता स्वरूप पक्का हो गया! मैं फरिश्ता स्वरूपधारी हूँ, थोड़ा समय इसमें अनुभव करके देखो, कितना मीठा है।
अभी बाबा फरिश्ता भव का रूप प्रगट करता है। अभी एक सेकण्ड में फरिश्ता, एक सेकण्ड में साधारण, यह प्रैक्टिस करते-करते फरिश्ता बन ही जायेंगे। अभी फरिश्ते स्वरूप में रहना, ज्यादा समय फरिश्ते स्वरूप में, इस दुनिया में संगमयुगी फरिश्ता रूप यह कुछ समय रहेगा। यह फरिश्ता रूप कुछ समय आपके साथ रहेगा। आप भी अच्छी तरह से अनुभव करेंगे कि यह फरिश्ता रूप कितना अच्छा है। तो जितना फरिश्ता रूप में रहने चाहो उतना समय रह सकते हो लेकिन वह (सूक्ष्मवतन का) फरिश्ता रूप जो है वह अभी हमारे हाथ में नहीं है। यह फरिश्ते की लाइफ में है। अच्छा।
सेवा का टर्न गुजरात और भोपाल का है, टोटल 24 हजार आये हैं, उसमें एक हजार डबल विदेशी 75 देशों से आये हैं:- (13 हजार गुजरात और 4 हजार भोपाल वाले आये हैं):
बहुत अच्छा।
(मुन्नी बहन ने कहा बाबा आज आप बहुत अच्छी तरह सबसे मिले, बहुत अच्छी मुरली चलाई)
कई समझते हैं हमारे को लास्ट में मिला है ना, तो पता नहीं शायद देरी हो इसलिए जल्दी-जल्दी मिलाते हैं। पर ऐसा नहीं है, टाइम की बात यहाँ नहीं देखते हैं। लेकिन बाबा भी दिखाता है, अगर देरी से कोई आता है तो उनके लिए ठहरते नहीं हैं। सिवाए दादियों के। दादियां तो फाउण्डेशन हैं। अच्छा।(इन्डिया वन सोलार प्लांट का उद्घाटन बापदादा से कराया)
कुछ भी बना है, तो यज्ञ में बनाया है और इसी रीति से चलाते रहेंगे। बाकी सब ठीक हैं।
आज बापदादा ने विशेष संगमयुगी फरिश्ते स्वरूप का अनुभव करने के लिए कहा
है, उस अनुभूति के लिए विशेष ध्यान देने योग्य प्वाइंटस
1. जैसे सम्पन्नता का समय समीप आता जा रहा है, ऐसे देह-भान रहित फरिश्ता रूप की अनुभूति करो। जैसे साकार ने कर्म करते, बातचीत करते, डायरेक्शन देते, उमंग-उत्साह बढ़ाते भी देह से न्यारे, सूक्ष्म प्रकाश रूप की अनुभूति कराई। ऐसे बात करते भी आपकी दृष्टि में अलौकिकता दिखाई दे। ऐसे देहभान से न्यारे रहो जो दूसरे को भी देह का भान नहीं आये।
2. हर बात में, वृत्ति, दृष्टि, कर्म... सबमें न्यारापन अनुभव हो। यह बोल रहा है लेकिन न्यारा-न्यारा, आत्मिक प्यारा, ऐसे फरिश्तेपन की अनुभूति स्वयं भी करो और औरों को भी कराओ। ब्रह्मा बाप जो फरिश्ता रूप में आप सबका साथी है, अब उनके समान आप सभी को फरिश्ता बन परमधाम चलना है, इसके लिए मन की एकाग्रता पर अटेन्शन दो। ऑर्डर से मन को चलाओ।
3. सदैव अपना आकारी रूप, लाइट का फरिश्ता स्वरूप सामने दिखाई दे कि ऐसा बनना है और भविष्य रूप भी दिखाई दे। अब यह छोड़ा और वह लिया। जब ऐसी अनुभूति हो तब समझो कि सम्पूर्णता के समीप हैं। यह पुरूषार्था शरीर एकदम मर्ज हो जाये।
4. फरिश्ता बनना अर्थात् साकार शरीरधारी होते हुए लाइट रूप में रहना अर्थात् सदा बुद्धि द्वारा ऊपर की स्टेज पर रहना। फरिश्ते के पांव धरनी पर नहीं रहते, बुद्धि रूपी पांव सदा ऊंची स्टेज पर। फरिश्तों को ज्योति की काया दिखाते हैं। तो जितना अपने को प्रकाश स्वरूप आत्मा समझेंगे, तो चलते फिरते अनुभव करेंगे जैसे प्रकाश की काया वाले फरिश्ते बनकर चल रहे हैं।
5. फरिश्ता अर्थात् अपनी देह के भान से भी रिश्ता नहीं, देहभान से रिश्ता टूटना अर्थात् फरिश्ता। देह से नहीं, देह के भान से। देह से रिश्ता खत्म होगा तब तो चले जायेंगे, लेकिन देह-भान का रिश्ता खत्म हो। जैसे बापदादा पुराने शरीर का आधार लेते हैं लेकिन शरीर में फंस नहीं जाते हैं। ऐसे कर्म के लिए आधार लो और फिर अपने फरिश्ते स्वरूप में, निराकारी स्वरूप में स्थित हो जाओ।
6. जबकि बाप के बन गये और सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो हल्के फरिश्ते हो ही गये। इसके लिए सिर्फ एक ही शब्द याद रखो कि यह सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं। जहाँ मेरा आये वहाँ तेरा कह दो फिर कोई बोझ नहीं फील होगा।
7. फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट। फरिश्ता सदा चमकने के कारण सर्व को अपनी तरफ स्वत: आकार्षित करता है। फरिश्ता सदा ऊंचे रहते हैं। फरिश्तों को पंख दिखाते हैं क्योंकि उड़ते पंछी हैं। तो जब बाप मिला, ऊंचा स्थान मिला, ऊंची स्थिति मिली तो सदा उड़ते रहो और बेहद सेवा करते रहो।
8. फरिश्ता वही बनता जिसका देह और देह की दुनिया के साथ कोई रिश्ता नहीं। शरीर में रहते ही हैं सेवा के अर्थ, न कि रिश्ते के आधार पर। सम्बन्ध समझकर प्रवृति में नहीं रहना, सेवा समझकर रहना। कर्मबन्धन के वशीभूत होकर नहीं रहना। जहाँ सेवा का भाव है वहाँ सदा शुभ भावना रहती है, और कोई भाव नहीं, इसको कहा जाता है अति न्यारा और अति प्यारा, कमल समान।
9. फरिश्ता स्वरूप अर्थात् लाइट का आकार, जिसमें कोई व्याधि नहीं, कोई पुराने संस्कार स्वभाव का अंश नहीं, कोई देह का रिश्ता नहीं, कोई मन की चंचलता नहीं, कोई बुद्धि के भटकने की आदत नहीं - ऐसा फरिश्ता स्वरूप, प्रकाशमय काया का अनुभव करो तो देह के स्वार्था सम्बन्ध, सुख-शान्ति का चैन छीनने वाले विनाशी सम्बन्धी, मोह की रस्सियों में बांधने वाले, ऐसे अनेक सम्बन्ध स्वत: छूट जायेंगे। एक सुखदाई सम्बन्ध में ही सदा रहेंगे।
10. हम ब्राह्मण सो फरिश्ता हैं, यह कम्बाइन्ड रूप की अनुभूति विश्व के आगे साक्षात्कार मूर्त बनायेगी। ब्राह्मण सो फरिश्ता इस स्मृति द्वारा चलते-फिरते अपने को व्यक्त शरीर, व्यक्त देश में पार्ट बजाते हुए भी ब्रह्मा बाप के साथी अव्यक्त वतन के फरिश्ते, अव्यक्त रूपधारी अनुभव करेंगे। यह अव्यक्त भाव व्यक्तपन के बोल-चाल, व्यक्त भाव के स्वभाव, व्यक्त भाव के संस्कार सहज ही परिवर्तन कर देगा।
11. फरिश्ता अथार्त् दिव्यता स्वरूप। दिव्यता की शक्ति साधारणता को समाप्त कर देती है। जितनी जितनी दिव्यता की शक्ति हर कर्म में लायेंगे उतना ही सबके मन से, मुख से स्वत: ही यह बोल निकलेंगे कि यह दिव्य दर्शनीय मूर्त हैं। अनेक भक्त जो दर्शन के अभिलाषी हैं, उनके सामने आप स्वयं दिव्य दर्शन मूर्त प्रत्यक्ष होंगे तब ही सर्व आत्मायें दर्शन कर प्रसन्न होंगी।
12. फरिश्ता अर्थात् जिसकी दुनिया ही एक बाप है। निमित्त मात्र देह में हैं और देह के सम्बन्धियों से कार्य में आते हैं लेकिन लगाव नहीं। अभी-अभी देह में कर्म करने के लिए आये और अभी-अभी देह से न्यारे फारिश्ते सेकण्ड में यहाँ, सेकंड में वहाँ क्योंकि उडने वाले है। कर्म करने के लिए देह का आधार लिया और फिर ऊपर - अब यही अभ्यास बढ़ाओ।
13. फरिश्ता जीवन की विशेषता है - इच्छा मात्रम् अविद्या। देवताई जीवन में तो इच्छा की बात ही नहीं। जब ब्राह्मण जीवन सो फरिश्ता जीवन बन जाती अर्थात् कर्मातीत स्थिति को प्राप्त हो जाते तब किसी भी शुद्ध कर्म, व्यर्थ कर्म, विकर्म वा पिछला कर्म, किसी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंध सकते।
14. फरिश्ता स्थिति का अनुभव करने के लिए विशाल दिल वाले बेहद के स्मृति स्वरूप बनो। जहाँ बेहद है वहाँ कोई भी प्रकार की हद अपने तरफ आकार्षित नहीं कर सकती। कर्मातीत का अर्थ ही है - सर्व प्रकार के हद के स्वभाव-संस्कार से अतीत अर्थात् न्यारा।
15. फरिश्ता जीवन बन्धनमुक्त जीवन है। भल सेवा का बन्धन है, लेकिन इतना फास्ट गति है जो जितना भी करे, उतना करते हुए भी सदा फ्री है। जितना ही प्यारा, उतना ही न्यारा। सदा ही स्वतन्त्रता की स्थिति का अनुभव करते हैं। शरीर और कर्म के अधीन नहीं, अगर देहधारियों के सम्बन्ध में आते भी हैं तो ऊपर से आये, संदेश दिया और यह उड़ा।