05-12-17    ओम् शान्ति    ‘‘अव्यक्त बापदादा’’    मधुबन


ओम शान्ति। सभी महारथी बच्चे बाबा की लगन में मगन हैं और सभी बच्चे प्रेम में कितना लीन है। यह बाप और बच्चों का मिलन बहुत बहुत अमूल्य है। बाबा को सभी इतना याद करते हैं, जैसे मोती माला में समा जाता हैं। ऐसे सब बच्चे स्नेह के धागे में पिरोये हुए हैं। हर एक बच्चा अपने मन में क्या-क्या बोल रहे हैं वह तो वह जानें। लेकिन हम यही जानते हैं कि हर एक बच्चा इस समय ऐसे स्नेह में समाये हुए हैं जैसे मोती हार में समाया हुआ होता है। हर एक के मन और मुख से यही निकल रहा है वाह मेरे दिल में समाने वाले विशेष मोती वाह! इस समय हर एक अपने को वह मोती समझते हैं जो बाबा के ह्दय में समाया हुआ है। कैसे चमक रहा है, उनकी चमक ही सभी को चमका रही है। तो बापदादा यही बच्चों का बाप से मिलन का न॰जारा देख-देख खुश हो रहे हैं। वाह बच्चे वाह! बच्चों के दिल में बाप है, बाप की दिल में बच्चे हैं। यह दृश्य समाने वाला बहुत मधुर है। एक-एक अपने दिल में क्या-क्या अनुभव कर रहे हैं, वह तो आप सभी अनुभव में लीन हो और सभी एक दो को देख हार्षित हो रहे हो।

निर्वैर भाई ने बाबा से पूछा - बाबा अभी वर्ष 2017 पूरा हो रहा है, नया वर्ष आने वाला है तो नये वर्ष में सभी के दिल में क्या उमंग होना चाहिए?

सभी कितने हार्षित हो रहे हैं। यह वर्ष है ही ‘‘स्नेह का वर्ष’’। सभी स्नेह में समाने का अनुभव करेंगे। सभी के दिलों में स्नेह का हीरा चमक रहा है। वह एक-एक हीरा अपना अनुभव करा रहा है। अगर कोई भी आके देखे तो समझे कि यह आत्मायें कहाँ से आई हैं, इन्हों के चेहरों पर तो पता नहीं कौन सी झलक है, जो खींच रही है। बाप को भगवान मानते हैं लेकिन बाप, भगवान और बच्चे कैसे आपस में मिलते हैं, वह देखा नहीं है। आप तो भगवान और बच्चे कैसे मिलते हैं, उसका अनुभव कर रहे हो, यह मिलन अनोखा है। हर एक मन में यही गीत आ रहा है - हमने देखा, हमने पाया शिव भोला भगवान। वह कितना मीठा है, वर्णन करने जैसा ही नहीं है, समाने जैसा है। बाबा और बच्चे दोनों का मिलन, यही मिलन बहुत मधुर है, हर एक एक दो को देख करके हार्षित हो रहे हैं।

बाबा 22 हजार आये हैं, पंजाब और राजस्थान की सेवा का टर्न है:- यह मिलन जो अभी हो रहा है, यह राजस्थान और पंजाब का है। एक-एक रतन इसमें कितने वैल्युबुल हैं। एक दो को देख करके भी कितनी खुशी, कितना उमंग उत्पन्न हो रहा है। सभी की दिल कह रही है वाह, वाह! यह वाह क्यों निकलता हैं, क्योंकि स्वयं बाबा ने, भगवान ने बच्चे ढूंढे और बच्चों को ऐसा योग्य बनाया जो कोई भी देखता है तो उनके मुख से आटोमेटिक गीत निकलता है वाह प्रभु के बच्चे वाह! वाह बाबा वाह, सबके दिल से क्या निकलता है, वाह बाबा वाह! वाह मिलन वाह! अच्छा।


15-12-06   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘स्मृति स्वरूप, अनुभवी मूर्त बन सेकण्ड की तीव्रगति से परिवर्तन कर पास विद ऑनर बनो’’

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों में तीन विशेष भाग्य की रेखायें मस्तक में चमकती हुई देख रहे हैं। सभी के मस्तक भाग्य की रेखाओं से चमक रहे हैं। एक है परमात्म पालना के भाग्य की रेखा। दूसरी है श्रेष्ठ शिक्षक द्वारा शिक्षा के भाग्य की रेखा। तीसरी है सतगुरू द्वारा श्रीमत के भाग्य की रेखा। वैसो भाग्य आपका अथाह है फिर भी आज यह विशेष तीन रेखायें देख रहे हैं। आप भी अपने मस्तक में चमकती हुई रेखायें अनुभव कर रहे हो ना! सबसे श्रेष्ठ है परमात्म प्यार के पालना की रेखा। जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो परमात्म पालना भी ऊंचे ते ऊंची है। यह पालना कितने थोड़ों को प्राप्त होती है, लेकिन आप सब इस पालना के पात्र बने हो। यह पालना सारे कल्प में आप बच्चों को एक ही बार प्राप्त होती है। अब नहीं तो कब प्राप्त नहीं हो सकती। यह परमात्म पालना, परमात्म प्यार, परमात्म प्राप्तियां कोटों में कोई आत्माओं को ही अनुभव होती हैं। आप सभी तो अनुभवी हो ना! अनुभव है? पालना का भी अनुभव है, पढ़ाई का भी और श्रीमत का भी। अनुभवी मूर्त हो। तो सदा अपने मस्तक में यह भाग्य का सितारा चमकता हुआ दिखाई देता है, सदा? कि कभी चमकता हुआ सितारा डल भी हो जाता है क्या! ढीला नहीं होना चाहिए। अगर चमकता हुआ सितारा ढीला होता है, उसका कारण क्या है? जानते हो?

बापदादा ने देखा है कि कारण यह होता है, स्मृति स्वरूप नहीं बने हो। सोचते हो मैं आत्मा हूँ, लेकिन सोचता स्वरूप बनते हो, स्मृति स्वरूप कम बनते हो। जब तक स्मृति स्वरूप सदा नहीं बनते तो स्मृति ही समर्थी दिलाती है। स्मृति स्वरूप ही समर्थ स्वरूप है। इसलिए भाग्य का सितारा कम चमकता है। अपने आपसे पूछो कि ज्यादा समय सोच स्वरूप बनते हो वा स्मृति स्वरूप बनते हो? सोच स्वरूप बनने से सोचते बहुत अच्छा हो, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ, मैं यह हूँ.... लेकिन स्मृति न होने के कारण सोचते, व्यर्थ संकल्प साधारण संकल्प भी मिक्स हो जाते हैं। वास्तव में देखा जाए तो आपका अनादि स्वरूप स्मृति सो समर्थ स्वरूप है। सोचने वाला नहीं, स्वरूप है। और आदि में भी इस समय के स्मृति स्वरूप की प्रालब्ध प्राप्त होती है। तो अनादि और आदि स्मृति स्वरूप है और इस समय अन्त में संगम समय पर भी स्मृति स्वरूप बनते हो। तो आदि अनादि और अन्त तीनों कालों में स्मृति स्वरूप हो। सोचना स्वरूप नहीं हो। इसलिए बापदादा ने पहले भी कहा कि वर्तमान समय अनुभवी मूर्त बनना श्रेष्ठ स्टेज है। सोचते हो आत्मा हूँ, परमात्म प्राप्ति है, लेकिन समझना और अनुभव करना इसमें बहुत अन्तर है। अनुभवी मूर्त कभी भी न माया से धोखा खा सकता, न दु:ख की अनुभूति कर सकता। यह जो बीच-बीच में माया के खेल देखते हो, या खेल खेलते भी हो, उसका कारण है अनुभवी मूर्त की कमी है। अनुभव की अथॉरिटी सबसे श्रेष्ठ है। तो बापदादा ने देखा कि कई बच्चे सोचते हैं लेकिन स्वरूप की अनुभूति कम है। आज की दुनिया में मैजॉरिटी आत्मायें देखने और सुनने से थक गये हैं लेकिन अनुभव द्वारा प्राप्ति करने चाहते हैं। तो अनुभव कराना, अनुभवी ही करा सकता है। और अनुभवी आत्मा सदा आगे बढ़ती रहेगी, उड़ती रहेगी क्योंकि अनुभवी आत्मा में उमंग-उत्साह सदा इमर्ज रूप में रहता है। तो चेक करो हर प्वाइंट के अनुभवी मूर्त बने हैं? अनुभव की अथॉरिटी आपके हर कर्म में दिखाई देती है? हर बोल, हर संकल्प अनुभव की अथॉरिटी से है या सिर्फ समझने के आधार पर है? एक है समझना, दूसरा है अनुभव करना। हर सबजेक्ट में, ज्ञान की प्वाइंट्स वर्णन करना, वह तो बाहर के स्पीकर भी बहुत स्पीच कर लेते हैं। लेकिन हर प्वाइंट का अनुभवी स्वरूप बनना, यह है ज्ञानी तू आत्मा। योग लगाने वाले बहुत हैं, योग में बैठने वाले बहुत हैं, लेकिन योग का अनुभव अर्थात् शक्ति स्वरूप बनना और शक्ति स्वरूप की परख यह है कि जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता है, उस समय उस शक्ति को आह्वान कर निर्विघ्न स्वरूप बन जाए। अगर एक भी शक्ति की कमी है, वर्णन है लेकिन स्वरूप नहीं है तो भी समय पर धोखा खा सकते हैं। चाहिए सहनशक्ति और आप यूज करो सामना करने की शक्ति, तो योगयुक्त अनुभवी स्वरूप नहीं कहेंगे। चार ही सबजेक्ट में स्मृति स्वरूप वा अनुभवी स्वरूप की निशानी क्या होगी? स्थिति में निमित्त भाव, वृत्ति में सदा शुभ भाव, आत्मिक भाव, नि:स्वार्थ भाव। वायुमण्डल में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा निर्माण भाव, वाणी में सदा निर्मल वाणी। यह विशेषतायें अनुभवी मूर्त की हर समय नेचुरल नेचर होगी। नेचुरल नेचर। अभी कई बच्चे कभी-कभी कहते हैं कि हम चाहते नहीं हैं यह करें लेकिन मेरी पुरानी नेचर है। नेचर नेचुरल काम वही करती है, सोचना नहीं पड़ता, लेकिन नेचर नेचुरल काम करती है। तो अपने को चेक करो- मेरी नेचुरल नेचर क्या है? अगर कोई भी पुरानी नेचर अंश मात्र भी है, तो हर समय वह कार्य में आते-आते पक्का संस्कार बन जाता है। उसको समाप्त करने के लिए पुरानी नेचर, पुराना स्वभाव, पुराना संस्कार को समाप्त करने के लिए चाहते हो लेकिन कर नहीं पाते हो, उसका कारण क्या है? नॉलेजफुल तो सबमें बन गये हो, लेकिन जो चाहते हो होना नहीं चाहिए लेकिन हो जाता है, कारण क्या है? परिवर्तन करने की शक्ति कम है। मैजॉरिटी में दिखाई देता है कि परिवर्तन की शक्ति, समझते हैं, वर्णन भी करते हैं, अगर सभी को परिवर्तन शक्ति की टॉपिक पर लिखने के लिए कहें या भाषण करने के लिए कहें तो बापदादा समझते हैं सभी बहुत होशियार हैं, बहुत अच्छा भाषण भी कर सकते हैं, लिख भी सकते हैं और दूसरा कोई आता है उसको समझाते भी बहुत अच्छा है - कोई हर्जा नहीं, परिवर्तन कर लो। लेकिन स्वयं में परिवर्तन करने की शक्ति और वर्तमान समय के महत्व को जानते हुए परिवर्तन करने में समय नहीं लगाना चाहिए। सेकण्ड में परिवर्तन की शक्ति, क्योंकि जब समझते हो - होना नहीं चाहिए, समझते हुए भी अगर परिवर्तन नहीं कर पाते हो, उसका कारण है - सोचते हो लेकिन स्वरूप नहीं बने हो।

सोचना स्वरूप ज्यादा सारे दिन में बनते हो, स्मृति सो समर्थ स्वरूप वह मैजॉरिटी कम है। अभी तीव्रगति का समय है, तीव्र पुरूषार्थ का समय है, साधारण पुरूषार्थ का समय नहीं है, सेकण्ड में परिवर्तन का अर्थ है - स्मृति स्वरूप द्वारा एक सेकण्ड में निर्विकल्प, व्यर्थ संकल्प निवृत्त हो जाए, क्यों? समय को समाप्ति को समीप लाने वाले निमित्त हो। तो अभी के समय के महत्व प्रमाण जब जानते भी हो कि हर कदम में पदम समाया हुआ है, तो बढ़ाने का तो बुद्धि में रखते हो लेकिन गवॉने का भी तो बुद्धि में रखो। अगर कदम में पदम बनता भी है तो कदम में पदम गंवाते भी तो हो, या नहीं? तो अभी मिनट की बात भी गई, दूसरों के लिए कहते हो वन मिनट साइलेन्स में रहो लेकिन आप लोगों के लिए सेकण्ड की बात होनी चाहिए। जैसे हाँ और ना सोचने में कितना टाइम लगता है? सेकण्ड। तो परिवर्तन शक्ति इतनी फास्ट चाहिए। समझा ठीक है, नहीं ठीक है, ना ठीक को बिन्दी और ठीक को प्रैक्टिकल में लाना है। अभी बिन्दी के महत्व को कार्य में लगाओ। तीन बिन्दियों को तो जानते हो ना! लेकिन बिन्दी को समय पर कार्य में लगाओ। जैसे साइंस वाले सब बात में तीव्रगति कर रहे हैं, और परिवर्तन की शक्ति भी ज्यादा कार्य में लगा रहे हैं। तो साइलेन्स की शक्ति वाले अभी लक्ष्य रखो अगर परिवर्तन करना है, नॉलेजफुल हो तो अभी पावरफुल बनो, सेकण्ड की गति से। कर रहे हैं, हो जायेंगे... कर लेंगे...., नहीं। हो सकता है या मुश्किल है? क्योंकि लास्ट समय सेकण्ड का पेपर आना है, मिनट का नहीं, तो सेकण्ड का अभ्यास बहुतकाल का होगा तब तो सेकण्ड में पास विद आनर बनेंगे ना! परमात्म स्टूडेन्ट हैं, परमात्म पढ़ाई पढ़ रहे हैं, तो पास विद ऑनर बनना ही है ना! पास मार्क्स लिया तो क्या हुआ। पास विद ऑनर। क्या लक्ष्य रखा है? जो समझते हैं पास विद ऑनर बनना है वह हाथ उठाओ, पास विद ऑनर, ऑनर शब्द अण्डरलाइन करना। अच्छा।

तो अभी क्या करना पड़ेगा? मिनट मोटर तो कामन है, सेकण्ड का काम है अभी। हाँ पंजाब वाले, सेकण्ड का मामला है अभी। इसमें नम्बरवन कौन होगा? पंजाब। क्या बड़ी बात है। जितना फलक से कहते हो, बहुत अच्छा कहते हो, फलक से कहते हो, बापदादा जब सुनते हैं बहुत खुश होते हैं, कहते हो - क्या बड़ी बात है, बापदादा साथ है। तो साथ तो अथॉरिटी है, तो क्या करना है अभी? तीव्र बनना पड़ेगा अभी। सेवा तो कर रहे हो, और सेवा के बिना और करेंगे भी क्या? खाली बैठेंगे क्या? सेवा तो ब्राह्मण आत्माओं का धर्म है, कर्म है। लेकिन अभी सेवा के साथ-साथ समर्थ स्वरूप, जितना सेवा का उमंग-उत्साह दिखाया है, बापदादा खुश है, मुबारक भी देते हैं। लेकिन जैसे सेवा का ताज मिला है ना, ताज पहना हुआ है देखो कितना अच्छा लग रहा है। अभी स्मृति स्वरूप बनने का ताज पहनके दिखाना। यूथ ग्रुप है ना! तो कमाल क्या करेंगे? सेवा में भी नम्बरवन और समर्थ स्वरूप में भी नम्बरवन। सन्देश देना भी ब्राह्मण जीवन का धर्म और कर्म है लेकिन अभी बापदादा इशारा दे रहा है कि परिवर्तन की मशीनरी तीव्र करो। नहीं तो पास विद आनर होने में मुश्किल हो जायेगा। बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। सोचा और किया। सिर्फ सोचना स्वरूप नहीं बनो, समर्थ स्मृति सो समर्थ स्वरूप बनो। व्यर्थ को तीव्र गति से समाप्त करो। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म, व्यर्थ समय और सम्बन्ध-सम्पर्क में भी व्यर्थ विधि, रीति सब समाप्त करो। जब ब्राह्मण आत्मायें तीव्रगति से यह स्व के व्यर्थ की समाप्ति करेंगे तब आत्माओं की दुआयें और अपने पुण्य का खाता तीव्रगति से जमा करेंगे।

सेवा का टर्न पंजाब का है:- आधा क्लास तो पंजाब है। बहुत अच्छा किया है। सेवा में एवररेडी बन पहुंच गये हो, इसकी मुबारक है। अच्छा, पंजाब वाले क्या कोई नया प्लैन बना रहे हैं? जो किसने नहीं किया हो, कोई ऐसा प्लैन टच होता है? होता है। सुबह को हो जायेगा। ऐसा करके दिखाओ, जो सब ब्राह्मण थैंक्स भी दें, मुबारक भी दें, वाह! वाह! के गीत भी गायें। अभी तक जो किया है, वह तो कर ही रहे हैं, अच्छा कर रहे हैं। बापदादा सेवा के समाचार सुनते रहते हैं और सुनकर दिल में दिल का प्यार भी देते हैं। अभी कुछ और नवीनता करके दिखाओ। पंजाब को शेर कहा जाता है ना। तो ऐसी कोई गजघोर करके दिखाओ जो सबकी नज़र बापदादा की तरफ सहज ही आ जाए। हो जायेगा। बापदादा को संकल्प है, पंजाब कोई नवीनता करेगा ही। अभी भी गोल्डन चांस मिला है, सेवा का गोल्डन चांस लिया और हर साल लेते भी रहते हैं और अच्छे हिम्मत उमंग से सभी मिल करके कर भी रहे हैं। संख्या तो बहुत अच्छी आई है। अच्छे-अच्छे महावीर हैं। देखो ब्रह्मा बाप का भी पंजाब से प्यार रहा तो पंजाब में पहुंच गये थे। तो ब्रह्मा बाप का भी विशेष प्यार देखा। सभी महारथियों का भी पंजाब में पांव पड़ा है। कोई ऐसी नवीनता करके दिखाओ। कर सकते हैं। पंजाब की पांच नदियां मशहूर हैं। बापदादा तो देख रहे हैं कि अच्छे ब्रह्मा बाप की पालना वाले भी हैं। तो पालना का रिटर्न तो देना पड़ेगा ना। अच्छा है बापदादा की बहुत बढ़िया उम्मींद है पंजाब में। करेंगे ना! कोई ऐसा कार्य करके दिखाओ जो सबकी नज़र बाप की तरफ पड़ जाए। है पाण्डवों में हिम्मत है? पाण्डव हिम्मत वाले हैं? अच्छा है, माताओं की संख्या भी काफी है, टीचर्स भी बहुत हैं। अच्छा - प्लैन बनाना आपस में। पाण्डव प्लैन बनाना। कमाल का प्लैन बनाना। अच्छा।