15-12-02 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“समय प्रमाण लक्ष्य और लक्षण की समानता द्वारा बाप समान बनो”
आज चारों ओर के सर्व स्वमानधारी बच्चों को देख हार्षित हो रहे हैं। इस संगम पर जो आप बच्चों को स्वमान मिलता है उससे बड़ा स्वमान सारे कल्प में किसी भी आत्मा को प्राप्त नहीं हो सकता है। कितना बड़ा स्वमान है, इसको जानते हो? स्वमान का नशा कितना बड़ा है, यह स्मृति में रहता है? स्वमान की माला बहुत बड़ी है। एक एक दाना गिनते जाओ और स्वमान के नशे में लवलीन हो जाओ। यह स्वमान अर्थात् टाइटल्स स्वयं बापदादा द्वारा मिले हैं। परमात्मा द्वारा स्वमान प्राप्त है। इसलिए इस स्वमान के रूहानी नशे को कोई अथॉरिटी नहीं जो हिला सके क्योंकि आलमाइटी अथॉरिटी द्वारा प्राप्ति है।
तो बापदादा ने आज अमृतवेले सारे विश्व के सर्व बच्चों के तरफ चक्कर लगाते देखा कि हर एक बच्चे की स्मृति में कितने स्वमानों की माला पड़ी हुई है। माला को धारण करना अर्थात् स्मृति द्वारा उसी स्थिति में स्थित रहना। तो अपने को चेक करो - यह स्मृति की स्थिति कहाँ तक रहती है? बापदादा देख रहे थे कि स्वमान का निश्चय और उसका रूहानी नशा दोनों का बैलेन्स कितना रहता है? निश्चय है - नॉलेजफुल बनना और रूहानी नशा है - पॉवरफुल बनना। तो नॉलेजफुल में भी दो प्रकार देखे - एक हैनॉलेजफुल। दूसरे हैं नॉलेजेबुल (ज्ञान स्वरूप) तो अपने से पूछो – मैं कौन? बापदादा जानते हैं कि बच्चों का लक्ष्य बहुत ऊंचा है। लक्ष्य ऊंचा है ना, क्या ऊंचा है? सभी कहते हैं बाप समान बनेंगे। तो जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है तो बाप समान बनने का लक्ष्य कितना ऊंचा है! तो लक्ष्य को देख बापदादा बहुत खुश होते हैं लेकिन.... लेकिन बतायें क्या? लेकिन क्या...वह टीचर्स वा डबल फारेनर्स सुनेंगे? समझ तो गये होंगे। बापदादा लक्ष्य और लक्षण समान चाहते हैं। अभी अपने से पूछो कि लक्ष्य और लक्षण अर्थात् प्रैक्टिकल स्थिति समान है? क्योंकि लक्ष्य और लक्षण का समान होना - यही बाप समान बनना है। समय प्रमाण इस समानता को समीप लाओ।
वर्तमान समय बापदादा बच्चों की एक बात देख नहीं सकते। कई बच्चे भिन्न-भिन्न प्रकार की बाप समान बनने की मेहनत करते हैं, बाप की मोहब्बत के आगे मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है, जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं। जब उल्टा नशा देह-अभिमान का नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। क्या देह-अभिमान में आने में पुरूषार्थ करना पड़ता? या 63 जन्म पुरूषार्थ किया? नेचर बन गई, नेचुरल बन गया। जो अभी भी कभी-कभी ही कहते हो कि देही के बजाए देह में आ जाते हैं। तो जैसे देह-अभिमान, नेचर और नेचुरल रहा वैसे अभी देही-अभिमानी स्थिति भी नेचुरल और नेचर हो, नेचर बदलना मुश्किल होती है। अभी भी कभी-कभी कहते हो ना कि मेरा भाव नहीं है, नेचर है। तो उस नेचर को नेचुरल बनाया है और बाप समान नेचर को नेचुरल नहीं बना सकते! उल्टी नेचर के वश हो जाते हैं और यथार्थ नेचर बाप समान बनने की, इसमें मेहनत क्यों? तो बापदादा अभी सभी बच्चों की देही-अभिमानी रहने की नेचुरल नेचर देखने चाहते हैं। ब्रह्मा बाप को देखा चलते-फिरते कोई भी कार्य करते देही-अभिमानी स्थिति नेचुरल नेचर थी।
बापदादा ने समाचार सुना कि आजकल विशेष दादियां यह रूहरूहान करती हैं - फरिश्ता अवस्था, कर्मातीत अवस्था, बाप समान अवस्था नेचुरल कैसे बनें? नेचर बन जाए, यह रूहरूहान करते हो ना! दादी को भी यही बार-बार आता है ना - फरिश्ता बन जाएं, कर्मातीत बन जाएं, बाप प्रत्यक्ष हो जाए। तो फरिश्ता बनना वा निराकारी कर्मातीत अवस्था बनने का विशेष साधन है - निरहंकारी बनना। निरंहकारी ही निराकारी बन सकता है।
इसलिए बाप ने ब्रह्मा द्वारा लास्ट मन्त्र निराकारी के साथ निरहंकारी कहा। सिर्फ अपनी देह या दूसरे की देह में फंसना, इसको ही देह अहंकार या देह- भान नहीं कहा जाता है। देह अहंकार भी है, देह भान भी है। अपनी देह या दूसरे की देह के भान में रहना, लगाव में रहना - उसमें तो मैजारिटी पास हैं। जो पुरूषार्थ की लगन में रहते हैं, सच्चे पुरूषार्थी हैं, वह इस मोटे रूप से परे हैं। लेकिन देह-भान के सूक्ष्म अनेक रूप हैं, इसकी लिस्ट आपस में निकालना। बापदादा आज नहीं सुनाते हैं। आज इतना ही इशारा बहुत है क्योंकि सभी समझदार हैं। आप सब जानते हो ना, अगर सभी से पूछेंगे ना, तो सब बहुत होशियारी से सुनायेंगे। लेकिन बापदादा सिर्फ छोटा-सा सहज पुरूषार्थ बताते हैं कि सदा मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में लास्ट मन्त्र तीन शब्दों का (निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी) सदा याद रखो। संकल्प करते हो तो चेक करो - महामन्त्र सम्पन्न है? ऐसे ही बोल, कर्म सबमें सिर्फ तीन शब्द याद रखो और समानता करो। यह तो सहज है ना? सारी मुरली नहीं कहते हैं याद करो, तीन शब्द। यह महामन्त्र संकल्प को भी श्रेष्ठ बना देगा। वाणी में निर्माणता लायेगा। कर्म में सेवा भाव लायेगा। सम्बन्ध-सम्पर्क में सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना की वृत्ति बनायेगा।
बापदादा सेवा का समाचार भी सुनते हैं, सेवा में आजकल भिन्न-भिन्न कोर्स कराते हो, लेकिन अभी एक कोर्स रह गया है। वह है हर आत्मा में जो शक्ति चाहिए, वह फोर्स का कोर्स कराना। शक्ति भरने का कोर्स, वाणी द्वारा सुनाने का कोर्स नहीं, वाणी के साथ-साथ शक्ति भरने का कोर्स भी हो। जिससे अच्छा-अच्छा कहें नहीं लेकिन अच्छा बन जाएं। यह वर्णन करें कि आज मुझे शक्ति की अंचली मिली। अंचली भी अनुभव हो तो उन आत्माओं के लिए बहुत है। कोर्स कराओ लेकिन पहले अपने को कराके फिर कहो। तो सुना बापदादा क्या चाहते हैं? लक्ष्य और लक्षण को समान बनाओ। लक्ष्य सभी का देखकर बापदादा बहुत-बहुत खुश होते हैं। अब सिर्फ समान बनाओ, तो बाप समान बहुत सहज बन जायेंगे।
बापदादा तो बच्चों को समान से भी ऊंचा, अपने से भी ऊंचा देखते हैं। सदा बापदादा बच्चों को सिर का ताज कहते हैं। तो ताज तो सिर से भी ऊंचा होता है ना! टीचर्स - सिर के ताज हो?
टीचर्स से - देखो, कितनी टीचर्स हैं। एक ग्रुप में इतनी टीचर्स तो हर ग्रुप में कितनी टीचर्स होंगी! टीचर्स ने बापदादा की एक आश पूरी करने का संकल्प किया है लेकिन सामने नहीं लाया है। जानते हो कौन-सी? एक तो बापदादा ने कहा है कि अभी वारिसों की माला बनाओ। वारिसों की माला, जनरल माला नहीं। दूसरा - सम्बन्ध-सम्पर्क वालों को माइक बनाओ। आप नहीं भाषण करो लेकिन वह आपकी तरफ से मीडिया बन जायें। अपनी मीडिया बनाओ। मीडिया क्या करता है? उल्टा या सुल्टा आवाज फैलाता है ना! तो माइक ऐसे तैयार हों जो मीडिया समान प्रत्यक्षता का आवाज फैलाये। आप कहेंगे भगवान आ गया, भगवान आ गया.... वह तो कामन समझते हैं लेकिन आपकी तरफ से दूसरे कहें, अथॉरिटी वाले कहें, पहले आप लोगों को शक्तियों के रूप में प्रत्यक्ष करें। जब शक्तियां प्रत्यक्ष होंगी तब बाप प्रत्यक्ष होगा। तो बनाओ, मीडिया तैयार करो। देखेंगे। किया है? चलो कंगन ही सही, माला छोड़ो, तैयार किया है? हाथ उठाओ जिसने ऐसे तैयार किया है? बापदादा देखेंगे कौन से तैयार किये हैं, अच्छा हिम्मत तो रखी है। सुना - टीचर्स को क्या करना है! शिवरात्रि पर वारिस क्वालिटी तैयार करो। माइक तैयार करो, तब फिर दूसरे वर्ष शिवरात्रि पर सबके मुख से शिव बाप आ गया, यह आवाज निकले। ऐसी शिवरात्रि मनाओ। प्रोग्राम तो बहुत अच्छे बनाये हैं। प्रोग्राम सबको भेजे हैं ना। प्रोग्राम तो ठीक बनाया है लेकिन हर प्रोग्राम से कोई माइक तैयार हो, कोई वारिस तैयार हो। यह पुरूषार्थ करो, भाषण किया चले गये, ऐसा नहीं। यह तो 66 वर्ष हो गये और 50 वर्ष सेवा के भी मना लिए। अभी शिवरात्रि की डायमण्ड जुबली मनाओ। यह दो प्रकार की आत्मायें तैयार करो, फिर देखो नगाड़ा बजता है या नहीं। नगाड़े आप थोड़ेही बजायेंगे। आप तो देवियां हो साक्षात्कार करायेंगी। नगाड़े बजाने वाले तैयार करो। जो प्रैक्टिकल गीत गायें शिव शक्तियां आ गई।
सुना - शिवरात्रि पर क्या करेंगी! ऐसे ही भाषण करके पूरा नहीं करना। फिर लिखेंगी बाबा 500-1000, लाख आदमी आ गये, आ तो गये सन्देश दिया, लेकिन वारिस कितने निकले, माइक कितने निकले, अभी वह समाचारदेना। जो अभी तक किया धरनी बनाई, सन्देश दिया, उसको बाबा अच्छा कहते हैं, वह सेवा व्यर्थ नहीं गई है, समर्थ हुई है। प्रजा तो बनी है, रॉयल फैमिली तो बनी है लेकिन राजा रानी भी तो चाहिए। राजा रानी तख्त वाले नहीं, राजा रानी के साथ वहाँ दरबार में भी राजे समान बैठते हैं, ऐसे तो बनाओ। राज्य दरबार शोभा वाली हो जाए। सुना, शिवरात्रि पर क्या करना है। पाण्डव सुन रहे हो। हाथ उठाओ। ध्यान दिया। अच्छा। बड़े-बड़े महारथी बैठे हैं। बापदादा खुश होते हैं, यह भी दिल का प्यार है, क्योंकि आप सबका संकल्प चलता है ना, प्रत्यक्षता कब होगी, कब होगी... तो बापदादा सुनता रहता है। क्या सुना मधुबन वालों ने? मधुबन वालों ने सुना। मधुबन, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर वाले, सभी मधुबन निवासी हैं। अच्छा।
मधुबन से नगाड़ा बजेगा, कहाँ से नगाड़ा बजेगा? (दिल्ली से) मधुबन से नहीं? कहो चारों ओर से। एक तरफ से नहीं बजेगा। मधुबन से भी बजेगा, तो चारों ओर से बजेगा तभी कुम्भकरण जागेंगे। मधुबन वाले जैसे सेवा में अथक होकर सेवा का पार्ट बजा रहे हो ना, ऐसे यह भी मन्सा सेवा करते रहो। सिर्फ कर्मणा नहीं, मन्सा, वाचा, कर्मणा तीनों सेवा, करते भी हो और ज्यादा करना। अच्छा। मधुबन वाले भूले नहीं हैं। मधुबन वाले सोचते हैं बापदादा आते मधुबन में है लेकिन मधुबन का नाम नहीं लेते। मधुबन तो सदा याद है ही। मधुबन नहीं होता तो यह आते कहाँ! आप सेवाधारी सेवा नहीं करते तो यह खाते, रहते कैसे! तो मधुबन वालों को बापदादा भी दिल से याद करते और दिल से दुआयें देते हैं। अच्छा। मधुबन से भी प्यार, टीचर्स से भी प्यार, मीठी-मीठी माताओं से भी प्यार और साथ में महावीर पाण्डवों से भी प्यार। पाण्डवों के बिना भी गति नहीं है। इसीलिए चतुर्भुज रूप की महिमा ज्यादा है। पाण्डव और शक्तियाँ दोनों का कम्बाइण्ड रूप विष्णु चतुर्भुज है।
माताओं से - मातायें तो बहुत हैं। अभी मातायें वह कपड़े का झण्डा नहीं अव्यक्त उठाओ। कपड़े का झण्डा उठाकर कहते हो ना भगवान आ गया, जागो जागो... लेकिन अभी सच्चा आवाज निकालो। सबके दिल से आवाज निकलवाओ। सच्ची शिवरात्रि मनाओ। सुना माताओं ने। दिल में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहराओ। झण्डा लहराना आता है ना! होशियार हैं। मातायें कम नहीं हैं। बस अभी जगाओ। आपके बच्चे कुम्भकरण सोये हुए हैं। अभी समय आ गया है, अभी उन्हों को जगाओ। उनके मुख से निकालो - बाप आ गया। मातायें ऐसी शिवरात्रि मनाना, कमाल दिखाना। हाथ तो बहुत अच्छा हिला रहे हो, बापदादा खुश है। इस शिवरात्रि पर देखेंगे क्या समाचार आता है। फंक्शन किया, यह नहीं। फंक्शन करो लेकिन निकालना जरूर। अच्छा। मातायें तो बहुत हैं, माताओं से ही ब्राह्मण परिवार की शोभा है। माताओं की विशेषता है, चाहे कैसे भी गांव की मातायें हों लेकिन जिस सेवाकेन्द्र पर माताओं की संख्या ज्यादा होगी वहाँ भण्डारी और भण्डारा भरपूर। चाहे पाण्डव एक हो, मातायें 25 हों, लेकिन दिल बड़ी है। अच्छा।
डबल फारेनर्स से - डबल फारेनर्स फारेन से मीडिया ग्रुप तैयार करेंगे? हाथ उठाओ जो मीडिया ग्रुप तैयार करेंगे? बापदादा ने सुना कि 30 देशों से आये हैं। तो कम से कम 30 देशों में तो जाकर आलमाइटी मीडिया बनायेंगे ना? क्या करेंगी बहनें? शक्तियां क्या करेंगी? अच्छा है, देखो कितना बाप से प्यार है, कितने समुद्र पार करके आते हैं। बापदादा को डबल विदेशियों पर नाज़ है, प्यार तो सभी से है लेकिन प्यार के साथ नाज़ भी है कि बाप का सन्देश कोने-कोने में फैलाने के लिए निमित्त बन गये। नहीं तो इण्डिया की बहनें पहले तो लैंग्वेज सीखें फिर सन्देश देवें। लेकिन आप लोगों ने देखो चैरिटी बिगन्स एट होम करके दिखाया है। अभी तो सिर्फ 30 देश आये हैं लेकिन है तो बहुत देशों में ना! तो बहुत अच्छा सन्देश वाहक बने हो। एक-एक बच्चे की विशेषता देख-देख बापदादा बहुत खुश होते हैं। एक बात की डबल विदेशियों में विशेषता है। भारत के विशेषता की लिस्ट अपनी है लेकिन अभी डबल विदेशियों के विशेषता की बात है। तो डबल विदेशी अनुभव से कहते हैं हम ब्रह्मा के बच्चे हैं। हैं विदेशी लेकिन अनुभव से कहते हैं सिर्फ दिमाग से नहीं। दिल से कहते हैं हम ब्रह्माकुमार हैं, हम ब्रह्माकुमारी हैं। दिल से, अनुभव से कहते हो ना! कहने से नहीं कहते, सुनने से नहीं कहते, अनुभव से कहते हैं। रूहानी नशा है ना, ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी बनने का। है नशा? जितना नशा है उतना जोर से हाथ हिलाओ। यह तो बापदादा भी वेरीफाय करते हैं कि ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी का नशा है। अभी विदेश में शिवरात्रि इतना नहीं करते, 18 जनवरी मनाते हैं। शिवरात्रि यहाँ मनाते हैं और 18 जनवरी या जनवरी में सेवा की धूम मचाते हैं, यह भी अच्छा है लेकिन सेवा में अभी बापदादा देखेंगे कि वारिस और माइक पहला नम्बर कौन निकालते हैं। उसको चांदी का ब्रह्मा बाप देंगे। इनाम देंगे। चाहे भारत वाला हो, चाहे विदेश वाला हो। जो भी निकालेंगे, उनको वह प्राइज मिलेगी। जितने भी सेन्टर्स निकालें, बापदादा के पास भण्डारा भरपूर है। ठीक है ना!
पाण्डव क्या करेंगे? पाण्डव क्या करत भये? पाण्डवों की विजय गाई हुई है। बापदादा पाण्डवों के मस्तक में सदा विक्ट्री देखते हैं और विक्ट्री के बीच में आत्मा चमक रही है। जैसे पाण्डवों का गायन है, पाण्डवों को ड्रामानुसार यादगार में भी विजय का वरदान मिला हुआ है। गायन ही है विजयी पाण्डव। तो पाण्डवों को कभी भी किसी भी बात में हार नहीं खाना है। बापदादा के गले का हार बनना, हार खाना नहीं। जब भी कोई ऐसी बात आवे ना, तो कहो हम बापदादा के गले का हार हैं, हार खाने वाले नहीं हैं। ऐसे पक्के हो? कि थोड़ी-थोड़ी हार खा भी लेते हो? चलो बीती सो बीती। अभी हार नहीं खाना। विजय गले का हार है, हम बाप के गले का हार हैं। हार खाने वाले नहीं। हार खाने वाले तो करोड़ों आत्मायें हैं, आप नहीं हैं। आप तो करोड़ों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा हो। मधुबन वाले पाण्डव नशा है ना? विजय का नशा और नशा नहीं। अच्छे हैं, पाण्डव भवन में मैजारिटी पाण्डव हैं, पाण्डव नहीं होते तो आप सबको मधुबन में मजा नहीं आता इसलिए बलिहारी मधुबन निवासियों की जो आपको मौज से रहाते, खिलाते और उड़ाते हैं। आज बापदादा को मधुबन निवासी अमृतवेले से याद आ रहे हैं। चाहे यहाँ हैं, चाहे ऊपर बैठे हुए हैं, चाहे मधुबन वाले कोई यहाँ भी ड्युटी पर हैं लेकिन चारों तरफ के मधुबन निवासियों को बापदादा ने अमृतवेले से याद दिया है।
यू.पी. के सेवाधारियों से - यह (मधुबन वाले) तो सदा के सेवाधारी हैं, आप एक टर्न के सेवाधारी हैं। हर एक ने अपना एक टर्न में अविनाशी पुण्य का खाता बना दिया। थोड़े समय की सेवा अनेक जन्मों के पुण्य की लकीर, भाग्य की बना ली। तो चतुरसुजान निकले ना! एक जन्म में अनेक जन्मों का बना दिया। बापदादा सेवाधारियों को देख विशेष खुश होता है, क्यों? क्यों खुश होता है? क्योंकि आप सब पुरानों को याद होगा कि ब्रह्मा बाप जब साइन करते थे तो क्या करते थे? वर्ल्ड सर्वेन्ट। सेवाधारी। और निराकार बाप भी किसलिए आया है? सेवाधारी बनकर आया है ना? इसलिए बापदादा को सेवाधारी बहुत याद आते, प्यारे लगते हैं। और यह भी अच्छा है जो मैजारिटी सभी आत्माओं को यज्ञ सेवा का पुण्य प्रोग्राम प्रमाण मिल जाता है। यह भी अच्छा है। अच्छा। यू.पी. की सेवाधारी टीचर्स ठीक है ना? बहुत अच्छा। बापदादा ने कहा ना टीचर्स को सदा बापदादा गुरूभाई के रूप में देखता है। अच्छा।
छोटे बच्चों से - बच्चे महात्मा है ना? देखो, बच्चों को भी कितना प्यार है। बच्चे तो चैलेन्ज करने वाले हैं। आजकल प्रेजीडेंट भी बच्चों की बात मानते हैं। भारत का प्रेजीडेंट भी बच्चों को मानते हैं। तो बापदादा भी बच्चों को प्यार करते हैं। ठीक हैं सब बच्चे। ठीक हैं तो हाथ हिलाओ। बहुत अच्छा। सदा बाबा, बाबा, बाबा कहते रहना। याद में रहना।
कुमारियों से - कुमारियां भी बहुत हैं लेकिन कौन सी कुमारियां हों? 21 जन्म तारने वाली कुमारियां हो या बंधन वाली कुमारियां हो? कुमारी वह जो आत्माओं के 21 जन्म श्रेष्ठ बनाये। कुमारियों की यह महिमा है। अगर बंधन भी है नौकरी का या संबंध का, तो भी कुमारी शक्ति है। अपने योग की शक्ति से अपने को निर्बन्धन बना सकती है। बापदादा यह नहीं कहते कि नौकरी नहीं करो, लेकिन नौकरी करते हुए डबल नौकरी, सेवा करो। फारेन की यह विशेषता है, बापदादा ने फारेन में यह विशेषता देखी है जॉब भी करते, सेन्टर भी सम्भालते, इसलिए बापदादा ऐसे बच्चों को डबल मुबारक देते हैं। सरकमस्टांश हैं तो बापदादा मना नहीं करते, लेकिन बैलेन्स। तो ऐसी कुमारियां हो? सेन्टर खोलें, सेन्टर सम्भालेंगी? इतनी कुमारियां मिलेंगी! सेन्टर खोले? हाथ उठाओ जो हाँ करती हैं, आर्डर करें सेन्टर खोलो, जायेंगी सेन्टर पर? थोड़े हाथ उठा रहे हैं। देखना टी.वी. में आपका फोटो आ गया। अच्छा। हिम्मत वाली हैं। हिम्मत से बाप की मदद मिलती है। अच्छा, मुबारक हो। सेन्टर पर आने की मुबारक हो।
कुमारों से - कुमार - वारिस बना सकते हैं। कुमार माइक भी बना सकते हैं। कुमार तो गवर्मेन्ट को जगा सकते हैं। कुमार कमाल करके दिखायेंगे। वह दिन भी आना ही है। तो कुमारों को जगाओ, समीप लाओ। उनको जगाओ कहो आप भी कुमार, हम भी कुमार, आओ तो आपको कहानियां सुनायें। अच्छा।
बापदादा ने जो रूहानी एक्सरसाइज दी है, वह सारे दिन में कितने बार करते हो? और कितने समय में करते हो? निराकारी और फरिश्ता। बाप और दादा, अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता स्वरूप। दोनों में देह-भान नहीं है। तो देह-भान से परे होना है तो यह रूहानी एक्सरसाइज कर्म करते भी अपनी ड्युटी बजाते हुए भी एक सेकण्ड में अभ्यास कर सकते हो। यह एक नेचुरल अभ्यास हो जाए - अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी फरिश्ता। अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई) ऐसे निरन्तर भव!
चारों ओर के बापदादा की याद में मगन रहने वाले बाप समान बनने के लक्ष्य को लक्षण में समान बनाने वाले, जो कोने-कोने में साइंस के साधनों से दिन वा रात जाग करके बैठे हुए हैं, उन बच्चों को भी बापदादा यादप्यार, मुबारक और दिल की दुआयें दे रहे हैं। बापदादा जानते हैं सभी के दिल में इस समय दिलाराम बाप की याद समाई हुई है। हर एक कोने-कोने में बैठे हुए बच्चों को बापदादा पर्सनल नाम से यादप्यार दे रहे हैं। नामों की माला जपें तो रात पूरी हो जायेगी। बापदादा सभी बच्चों को याद देते हैं, चाहे पुरूषार्थ में कौन सा भी नम्बर हो लेकिन बापदादा सदा हर बच्चे के श्रेष्ठ स्वमान को यादप्यार देते हैं और नमस्ते करते हैं। यादप्यार देने के समय बापदादा के सामने चारों ओर का हर बच्चा याद है। कोई एक बच्चा भी किसी भी कोने में, गांव में, शहर में, देश में, विदेश में, जहाँ भी है, बापदादा उसको स्वमान याद दिलाते हुए यादप्यार देते हैं। सब यादप्यार के अधिकारी हैं क्योंकि बाबा कहा तो यादप्यार के अधिकारी हैं ही। आप सभी सम्मुख वालों को भी बापदादा स्वमान के मालाधारी स्वरूप में देख रहे हैं। सभी को बाप समान स्वमान स्वरूप में यादप्यार और नमस्ते।
दादी जी से - ठीक हो गई, अभी कोई बीमारी नहीं है। भाग गई। वह सिर्फ दिखाने के लिए आई जो सभी देखें कि हमारे पास भी आती है तो कोई बड़ी बात नहीं है। सभी दादियां बहुत अच्छा पार्ट बजा रही हो। बापदादा सबके पार्ट को देख करके खुश होते हैं। (निर्मलशान्ता दादी से) आदि रत्न हो ना! अनादि रूप में भी निराकारी बाप के समीप हो, साथ-साथ रहते हो और आदि रूप में भी राज्य दरबार के साथी हो। सदा रॉयल फैमिली के भी रॉयल हो और संगम पर भी आदि रत्न बनने का भाग्य मिला है। तो बहुत बड़ा भाग्य है, है ना भाग्य? आपका हाजर रहना ही सबके लिए वरदान है। बोलो नहीं बोलो, कुछ करो नहीं करो लेकिन आपका हाजर रहना ही सबके लिए वरदान है। अच्छा।
ओम् शान्ति।