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AVYAKT MURLI

24 / 01 / 70

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24-01-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

 

ब्राह्मणों का मुख्य धंधा समर्पण करना और कराना

 

अपने जीवन की नैय्या किसके हवाले की है? (शिवबाबा के) श्रीमत पर पूर्ण रीति से चल रहे हो? श्रीमत पर चलना अर्थात् हर कर्म में अलौकिकता लाना। शिवबाबा के वरसे का पूरा अधिकारी अपने को समझते हो? जो वर्से के अधिकारी बनते हैं, उन्हों का सर्व के ऊपर अधिकार होता है, वह कोई भी बात के अधीन नहीं होते। अगर अधीन होते हैं देह के, देह के सम्बन्धियों वा देह के कोई भी वस्तुओं से तो ऐसे अधीन होनेवाले अधिकारी नहीं हो सकते। अधिकारी अधीन नहीं होते हैं। सदैव अपने को अधिकारी समझने से कोई भी माया के रूप के अधीन बन्ने से बाख जायेंगे। हमेशा यह चेक करना कि अलौकिक कर्म कितने किये हैं और लौकिक कर्म कितने किये हैं? अलौकिक कर्म औरों को अलौकिक बनाने की प्रेरणा देंगे। सभी ने यह लक्ष्य रखा है कि हम सभी ऊँचे ते ऊँचे बाप के बच्चे ऊँचे ते ऊँचा राज्य पद प्राप्त करेंगे वा जो मिलेगा वाही ठीक है? जब ऊँचे से ऊँचे बाप के बच्चे हैं तो लक्ष्य भी ऊँचा रखना है। जब अविनाशी आत्मिक स्थिति में रहेंगे तब ही अविनाशी सुख की प्राप्ति होगी। आत्मा अविनाशी है ना।

 

मधुबन में आकर मधुबन के वरदान को प्राप्त किया? वरदान, विबर म्हणत के सहज ही मिलता है। अव्यक्ति स्थिति में अव्यक्ति आनंद, अव्यक्ति स्नेह, अव्यक्ति शक्ति इन सभी की प्राप्ति सहज रीति होती है। तो ऐसा वरदान सदैव कायम रहे, इसकी कोशिश की जाती है। सदैव वरदानों की याद में रहने से यह वरदान अविनाशी रहेगा। अगर वरदाता को भूले तो वरदान भी ख़त्म। इसलिए वरदाता को कभी अलग नहीं करना। वरदाता साथ है तो वरदान भी साथ है। सारी सृष्टि में सभी से प्रिय वास्तु (शिवबाबा) वाही है तो उनकी याद भी स्वतः ही रहनी चाहिए। जबकि है ही प्रिय में प्रिय एक तो फिर उनकी याद भूलते क्यों? ज़रूर और कुछ याद आता होगा। कोई भी बात बिना कारन के नहीं होती। विस्मृति का भी कारण है। विस्मृति के कारन प्रिय वास्तु दूर हो जाती है। विस्मृति का कारन है अपनी कमज़ोरी। जो श्रीमत मिलती है उन पर पूरी रीति से न चलने कारन कमज़ोरी आती है। और कमज़ोरी के कारन विस्मृति होती है। विस्मृति में प्रिय वास्तु भूल जाती है। इसलिए सदैव कर्म करने के पहले श्रीमत की स्मृति रख फिर हर कर्म करो। तो फिर वह कर्म श्रेष्ठ होगा। श्रेष्ठ कर्म से श्रेष्ठ जीवन स्वतः ही बनती है। इसलिए हर कार्य के पहले अपनी चेकिंग करनी है। कर्म करने के बाद चेकिंग करने से जो उल्टा कर्म हो गया उसका तो विकर्म बन गया। इसलिए पहले चेकिंग करो फिर कर्म करो।

 

ईश्वरीय पढ़ाई बहुत सहज और सरल रीति किसको देने का तरीका आता है? एक सेकंड में किसको बाप का परिचय दे सकते हो? जितना औरों को प्परिचय देंगे उतना ही अपना भविष्य प्रालब्ध बनायेंगे। यहाँ देना और वहाँ लेना। तो गोया लेना ही है। जितना देते रहो उतना समझो हम लेते हैं। इस ज्ञान का भी प्रत्यक्ष फल और भविष्य के प्रालब्ध प्राप्ति का अनुभव करना है। वर्तमान के प्राप्ति के आधार पर ही भविष्य को समझ सकते हो। वर्तमान अनुभव भविष्य को स्पष्ट करता है। अपने को किस रूप में समझकर चलते हो? मैं शक्ति हूँ, जगत की माता हूँ यह भावना रहती है? जो जगत माता का रूप है उसमे जगत के कल्याण का रहता है। शिवशक्ति रुप्प में कोई भी कमज़ोरी नहीं रहेगी। तो मैं जगतमाता हूँ और शिवशक्ति हूँ, यह दोनों रूप स्मृति में रखना तब मायाजीत बनेंगे। और विश्व के कल्याण की भावना से कई आत्माओं के कल्याण के निमित्त बनेंगे। नष्टोमोहा सम्बन्ध से वा अपने शरीर से बने हो? नष्टोमोहा की लास्ट स्टेज कहाँ तक है? जितना नष्टोमोहा बनेंगे उतना स्मृति रूप बनेंगे। तो स्मृति को सदा कायम रखने के लिए साधन है नष्टोमोहा बनना। नष्टोमोहा बनना सहज है वा मुश्किल है? जब अपने आप को समर्पण कर देंगे तो फिर सभी सहज होगा। अगर समर्पण न कर के अपने ऊपर रखते हो तो मुश्किल भासता है। सहज बनाने का मुख्य साधन है समर्पण करना। बाप को जो चाहिए वो करावे। जैसे मशीन होती हैं, उन द्वारा सारा कारखाना चलता है। मशीन का काम है कारखाने को चलाना। वैसे हम निमित्त हैं। चलाने वाला जैसे चलावें। हमको चलना है। ऐसा समझने से मुश्किलात फील नहीं होगी। या स्थिति दिन प्रति दिन परिपक्व करनी है। इस मुख्य बात पर अटेंशन रखना है। जितना स्वयं को समर्पण करते हैं बाप के आगे, उतना ही बाप भी उन बच्चों के आगे समर्पण होते हैं। अर्थात् जो बाप का खज़ाना है वह स्वतः ही उनका बन जाता है। जो गुण अपने में होता है वह किसको देना मुश्किल क्यों? समर्पण करना और कराना यही ब्राह्मणों का धंधा है। जो है ही ब्राह्मणों का धंधा तो ब्राह्मणों के सिवाए और कौन जानेंगे। जैसे बाप थोड़े में राज़ी नहीं होता बच्चों को भी थोड़े में राज़ी नहीं होना है।

 

निश्चय की निशानी क्या है? विजय। जितना निश्चयबुद्धि होंगे उतना ही सभी बैटन में विजयी होंगे। निश्चयबुद्धि की कभी हार नहीं होती। हार होती है तो समझना चाहिए कि निश्चय की कमी है। निश्चयबुद्धि विजयी रत्नों में से हम एक रत्न हैं ऐसे अपने को समझना है। विघ्न तो आएंगे, उन्हों को ख़त्म करने की युक्ति है सदैव समझो कि यह पेपर है। अपनी स्थिति की परख यह पेपर कराता है। कोई भी विघ्न आये तो उनको पेपर समझ पास करना है। बात को नहीं देखना है लेकिन पेपर समझना है। पेपर में भी भिन्न-भिन्न क्वेश्चन होते हैं कभी मनसा का, कभी लोक-लाज का, कभी देशवासियों का क्वेश्चन आएगा। परन्तु इसमें घबराना नहीं है। गहराई में जाना है। वातावरण ऐसा बनाना चाहिए जो न चाहते भी कोई खींच आये। जितना खुद अव्यक्त वायुमंडल बनाने में बिजी रहेंगे। उतना स्वतः सभी होता रहेगा। जैसे रस्ते जाते कोई खुशबू भी न चाहते हुए खिचेंगी।

 

जो लक्ष्य रखा जाता है उसको पूर्ण करने के लिए ऐसे लक्षण भी अपने में भरने हैं। ढीले कोशिश वाले कहाँ तक पहुँचेंगे? कोशिश शब्द ही कहते रहेंगे तो कोशिश में ही रह जायेंगे। एम तो रखना है कि करना ही है। कोशिश अक्षर कहना कमजोरी है। कमजोरी को मिटाने के लिए कोशिश शब्द को मिटाना है। निश्चय से विजय हो जाती है। संशय लाने से शक्ति कम हो जाती है। निश्चयबुद्धि बनेंगे तो सभी का सहयोग भी मिलेगा। कोई भी कार्य करना होता है तो सदैव यही सोचा जाता है कि मेरे बिना कोई कर नहीं सकता तब ही सफ़लता होती है। आज से कोशिश अक्षर ख़त्म करो। मैं शिवशक्ति हूँ। शिवशक्ति सभी कार्य कर सकती है। शक्तियों की शेर पर सवारी दिखाते हैं। किस भी प्रकार माया शेर रूप में आये डरना नहीं है। शिवशक्ति कभी हार नहीं खा सकती। अभी समय ही कहाँ है। समय के पहले अपने को बदलने से एक का लाख गुणा मिलेगा बदलना ही है, तो ऐसे बदलना चाहिए। याद आता है कि अगले कल्प भी वारसा लिया था। अपने को पुराना समझने से वह कल्प पहले की स्मृति आने से पुरुषार्थ सहज हो जाता है। क्योंकि निश्चय रहता है कल्प पहले भी मैंने लिया था। अब भी लेकर छोड़ेंगे। कल्प पहले की स्मृति शक्ति दिलानेवाली होती है। अपने को नए समझेंगे तो कमजोरी के संकल्प आयेंगे। पा सकेंगे वा नहीं। लेकिन मैं हूँ ही कल्प पहले वाला इस स्मृति से शक्ति आएगी। सदैव अपने को हिम्मतवान बनाना चाहिए। हिम्मत हारना नहीं चाहिए। हिम्मत से मदद भी मिलेगी। हम सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे हैं, बाप को याद किया, यही हिम्मत है। बाप को याद करना सहज है व मुश्किल? सहज करने में सहज हो जाता है। यह तो मेरा कर्त्तव्य ही है। फ़र्ज़ है। क्या करूँ यह संकल्प आने से मुश्किल हो जाता है। कभी भी अपने अन्दर कमज़ोर संकल्प को नहीं रहने देना। अगर मन में कमज़ोर संकल्प उत्पन्न भी हो जायें तो उनको वहां ही ख़त्म कर शक्ति शाली बनाना है। अब तक भी अगर कोशिश करते रहेंगे तो अव्यक्त कशिश का अनुभव कब करेंगे? जब तक कोशिश है तब तक अव्यक्ति कशिश अपने में नहीं आ सकती है। यह भाषा ही कमजोरी की है। सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे यह नहीं कह सकते। उनके संकल्प, वाणी सभी निश्चय के होंगे। ऐसी स्थिति बनानी है। सदैव चेक करो कि संकल्प रूपी फाउंडेशन मज़बूत है। तीव्र पुरुषार्थी की चलन में यह विशेषता होगी जो उनके संकल्प, वाणी, कर्म तीनों ही एक समान होंगे। संकल्प उंच हों और कर्म कमज़ोर हों तो उनको तीव्र पुरुषार्थी नहीं कहेंगे। तीनों की समानता चाहिए। सदैव यह समझना चाहिए। जो कि माया कभी-कभी अपना रूप दिखाती है यह सदैव के लिए विदाई लेने आती है। विदाई के बदले निमंत्रण दे देते हो। सदैव शिवबाबा के साथ हूँ, उनसे अलग होंगे ही नहीं तो फिर कोई क्या करेंगे। कोई बिजी रहता है तो फिर तीसरा डिस्टर्ब नहीं करता है। समझते हैं तंग करने वाला कोई नहीं आये। तो एक बोर्ड लगा देते हैं। आप भी ऐसा बोर्ड लगाओ। तो माया लौट जाएगी। आने का स्थान ही नहीं मिलेगा। कुर्सी खाली होती है तो कोई बैठ जाता है।

 

माताओं के लिए तो बहुत सहज है सिर्फ़ बाप को याद करना, बस। बाप को याद करने से ज्ञान आपे ही इमर्ज हो जाता है। बाप को जो याद करता है उनको हर कार्य में मदद बाप की मिल जाती है। याद की इतनी शक्ति है जो अनुभव यहाँ पाते हो वह वहाँ भी स्मृति में रखेंगे तो अविनाशी बन जायेंगे। बुद्धि में बार-बार यही स्मृति रखो हम परमधाम निवासी हैं। कर्त्तव्य अर्थ यहाँ आये हैं। फिर वापस जाना है। जितना बुद्धि को इन बातों में बिजी रखेंगे तो फिर भटकेंगे नहीं। ज्ञान भी किसको युक्ति से सुनना है। सीधा ज्ञान सुनाने से घबरा जायेंगे। पहले तो ईश्वरीय स्नेह में खींचना है। शरीरधारी को चाहिए धन, बाप को चाहिए मन। तो मन को जहा लगाना है वहाँ हो लगा रहे और कहाँ प्रयोग न हो। योगयुक्त अव्यक्त स्थिति में रह दो बोल बोलना भी भाषण करना ही है। एक घंटे के भाषण का सार दो शब्द में सुना सकते हो।

 

दिन प्रतिदिन कदम आगे समझते हो? ऐसे भी नहीं सोचना कि अभी समय पड़ा है, पुरुषार्थ कर लेंगे। लेकिन समय के पहले समाप्ति करके और इस स्थिति का अनुभा प्राप्त करना है। अगर समय आने पर इस स्थिति का अनुभव करेंगे तो समय के साथ स्थिति भी बदल जाएगी। समय समाप्त तो फिर अव्यक्त स्थिति का अनुभव भी समाप्त हो, दूसरा पार्ट आ जायेगा। इसलिए पहले से ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करना है। कुमार्यां दौड़ने में तेज़ होती हैं। तो इस ईश्वरीय दौड़ में भी तेज़ जाना है। फर्स्ट आने वाले ही फर्स्ट के नजदीक आयेंगे। जैसे साकार फर्स्ट गया ना। लक्ष्य तो ऊँचा रखना है। लक्ष्य सम्पूर है तो पुरुषार्थ भी सम्पूर्ण करना है, तब ही सम्पूर्ण पद मिल सकता। सम्पूर्ण पुरुषार्थ अर्थात् सभी बातों में अपने को संपन्न बनाना। बड़ी बात तो है नहीं। जानने के बाद याद करना मुश्किल होता है क्या? जानने को ही नॉलेज कहा जाता है। अगर नॉलेज, लाइट और मिघ्त नहीं है तो वह नॉलेज ही किस काम की, उनको जानना नहीं कहा जायेगा। यहीं जानना और करना एक है। औरों में जानने और करने में फर्क होता है। नॉलेज वह चीज़ है जो वह रूप बना देती है। ईश्वरीय नॉलेज क्या रूप बनाएगी? ईश्वरीय स्थिति। तो ईश्वरीय नॉलेज लेनेवाले ईश्वरीय रूप में क्यों नहीं आएंगे। थ्योरी और चीज़ है। जानना अर्थात् बुद्धि में धारणा करना और चीज़ है। धारणा से कर्म ऑटोमेटिकली हो जाता है। धारणा का अर्थ ही है उस बात को बुद्धि में समाना। जब बुद्धि में समां जाते हैं तो फिर बुद्धि के डायरेक्शन अनुसार कर्मेन्द्रियाँ भी वह करती हैं। नॉलेजफुल बाप के हम बच्चे हैं और ईश्वरीय नॉलेज की लाइट मिघ्त हमारे साथ है। ऐसे समझ कर चलना है। नॉलेजक सिर्फ सुनना नहीं लेकिन समाना है। भोजन खाना और चीज़ है हज़म करना और चीज़ है। खाने से शक्ति नहीं आएगी। हज़म करने से शक्ति कहाँ से आ जाती है, खाए हुए भोजन को हज़म करने से ही शक्ति रूप बनता है। शक्तिवान बाप के बच्चे और कुछ कर न सकें, यह हो सकता है? नहीं तो बाप के नाम को भी शरमाते हैं। सदैव यही एम रखनी चाहिए हम ऐसा कर्म करें जो मिसाल बन दिखाएं। इंतज़ार में नहीं रहना है लेकिन एग्जाम्पल बनना है। बाप एग्जाम्पल बना ना।

 

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QUIZ QUESTIONS

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प्रश्न 1 :- जो वर्से के अधिकारी बनते हैं, उनके क्या गुण होते हैं ?

 

प्रश्न 2 :- श्रेष्ठ कर्म कैसे और क्यों करने हैं ?

 

प्रश्न 3 :- बाबा ने विघ्नों को पार करने की क्या युक्ति बताई ?

 

 प्रश्न 4 :- बाप को याद करने से क्या फायदा होगा और इसकी क्या विधि है?

 

 प्रश्न 5 :- अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए बाबा ने क्या समझाया?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

(धारणा, ऑटोमेटिकली, एम, कर्म, मिसाल, सुनना, नए, कमजोरी, अव्यक्त, भाषण समाना, बुद्धि)

 

1       ______ से कर्म______हो जाता है। धारणा का अर्थ ही है उस बात को______में समाना।

 

2       नॉलेज सिर्फ ______ नहीं लेकिन _____ है।

 

3       सदैव यही ____ रखनी चाहिए हम ऐसा _____ करें जो _______ बन दिखाएं।

 

4       योगयुक्त _______ स्थिति में रह दो बोल बोलना भी ______ करना ही है।

 

 5  अपने को _____ समझेंगे तो ________ के संकल्प आयेंगे।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-】【

 

1      :- संशय आने से शक्ति बढ़ जाती है।

 

2      :- अपने को पुराना समझने से वह कल्प पहले की स्मृति आने से पुरुषार्थ सहज हो जाता है ।

 

3      :- अगर मन में कमज़ोर संकल्प उत्पन्न भी हो जायें तो उनको वहां ही खत्म कर शक्तिशाली बनाना है।

 

4      :- जैसे बाप थोड़े में राजी नही होता बच्चों को भी थोड़े में राजी होना है।

 

 5   :- जितना औरों को परिचय देंगे उतना ही अपना भविष्य प्रालब्ध बनायेंगे।

 

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QUIZ ANSWERS

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   प्रश्न 1 :- जो वर्से के अधिकारी बनते हैं, उनके क्या गुण होते हैं ?

 उत्तर 1 :- जो वर्से के अधिकारी बनते हैं, उनका सर्व के ऊपर अधिकार होता है, वह कोई भी बात के अधीन नहीं होते।

          ..❶ अगर अधीन होते हैं देह के, देह के सम्बन्धियों वा देह के कोई भी वस्तुओं से तो ऐसे अधीन होने वाले अधिकारी नहीं हो सकते।

          ..❷ अधिकारी अधीन नहीं होते हैं। सदैव अपने को अधिकारी समझने से कोई भी माया के रूप के अधीन बनने से बच जायेंगे।

 

 प्रश्न 2 :- श्रेष्ठ कर्म कैसे और क्यों करने हैं?

 उत्तर 2 :- सदैव कर्म करने के पहले श्रीमत की स्मृति रख फिर हर कर्म करो। तो फिर वह कर्म श्रेष्ठ होगा।

          ..❶ श्रेष्ठ कर्म से श्रेष्ठ जीवन स्वतः ही बनती है। इसलिए हर कार्य के पहले अपनी चेकिंग करनी है।

          ..❷ कर्म करने के बाद चेकिंग करने से जो उल्टा कर्म हो गया उसका तो विकर्म बन गया। इसलिए पहले चेकिंग करो फिर कर्म करो।

 

 प्रश्न 3 :- बाबा ने विघ्नों को पार करने की क्या युक्ति बताई?

 उत्तर 3 :- बाबा ने बताया कि विघ्न तो आएंगे, उन्हों को ख़त्म करने की युक्ति है सदैव समझो कि यह पेपर है।

          ..❶ अपनी स्थिति की परख यह पेपर कराता है। कोई भी विघ्न आये तो उनको पेपर समझ पास करना है। बात को नहीं देखना है लेकिन पेपर समझना है।

          ..❷ पेपर में भी भिन्न-भिन्न क्वेश्चन होते हैं कभी मनसा का, कभी लोक-लाज का, कभी देशवासियों का क्वेश्चन आएगा। परन्तु इसमें घबराना नहीं है। गहराई में जाना है। वातावरण ऐसा बनाना चाहिए जो न चाहते भी कोई खींच आये।

         ..❸ जितना खुद अव्यक्त वायुमंडल बनाने में बिजी रहेंगे। उतना स्वतः सभी होता रहेगा। जैसे रस्ते जाते कोई खुशबू भी न चाहते हुए खिचेंगी।

 

 प्रश्न 4 :- बाप को याद करने से क्या फायदा होगा और इसकी क्या विधि है?

 उत्तर 4 :-.. बाप को याद करने से ज्ञान आपे ही इमर्ज हो जाता है।

          ..❶ बाप को जो याद करता है उनको हर कार्य में मदद बाप की मिल जाती है। याद की इतनी शक्ति है जो अनुभव यहाँ पाते हो वह वहाँ भी स्मृति में रखेंगे तो अविनाशी बन जायेंगे।

          ..❷ बुद्धि में बार-बार यही स्मृति रखो हम परमधाम निवासी हैं। कर्त्तव्य अर्थ यहाँ आये हैं। फिर वापस जाना है। जितना बुद्धि को इन बातों में बिजी रखेंगे तो फिर भटकेंगे नहीं।

 

 प्रश्न 5 :- अव्यक्त स्थिति का अनुभव करने के लिए बाबा ने क्या समझाया?

 उत्तर 5 :- बाबा ने समझाया कि :-

          ..❶ ऐसे भी नहीं सोचना कि अभी समय पड़ा है, पुरुषार्थ कर लेंगे। लेकिन समय के पहले समाप्ति करके और इस स्थिति का अनुभव प्राप्त करना है।

          ..❷अगर समय आने पर इस स्थिति का अनुभव करेंगे तो समय के साथ स्थिति भी बदल जाएगी। समय समाप्त तो फिर अव्यक्त स्थिति का अनुभव भी समाप्त हो, दूसरा पार्ट आ जायेगा। इसलिए पहले से ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करना है।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

(धारणा, ऑटोमेटिकली, एम, कर्म, मिसाल, सुनना, नए, कमजोरी, अव्यक्त, भाषण समाना, बुद्धि)

 

 1   ______ से कर्म ___________ हो जाता है। धारणा का अर्थ ही है उस बात को ______ में समाना।

    धारणा / ऑटोमेटिकली / बुद्धि

 

 2  नॉलेज सिर्फ ______ नहीं लेकिन _____ है।

    सुनना / समाना

 

 3 सदैव यही ____ रखनी चाहिए हम ऐसा _____ करें जो _______ बन दिखाएं।

    एम / कर्म / मिसाल

 

 4  योगयुक्त _______ स्थिति में रह दो बोल बोलना भी ______ करना ही है।

    अव्यक्त / भाषण

 

 5  अपने को _____ समझेंगे तो ________ के संकल्प आयेंगे।

    नए / कमजोरी

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-】【

 

 1  :- संशय लाने से शक्ति बढ जाती है।

  संशय लाने से शक्ति कम हो जाती है।

 

 2  :- अपने को पुराना समझने से वह कल्प पहले की स्मृति आने से पुरुषार्थ सहज हो जाता है।

 

 3  :- अगर मन में कमज़ोर संकल्प उत्पन्न भी हो जायें तो उनको वहां ही ख़त्म कर शक्तिशाली बनाना है।】 

 

 4  :- जैसे बाप थोड़े में राज़ी नहीं होता बच्चों को भी थोड़े में राज़ी होना है।

  जैसे बाप थोड़े में राज़ी नहीं होता बच्चों को भी थोड़े में राज़ी नहीं होना है।

 

 5   :- जितना औरों को परिचय देंगे उतना ही अपना भविष्य प्रालब्ध बनायेंगे।】