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AVYAKT MURLI

03 / 12 / 70

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03-12-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

 

सामना करने के लिए कामनाओं का त्याग

 

आज हरेक अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर रहे हैं, कहाँ तक हरेक निराकारी और अलंकारी बने हैं वह देख रहे हैं। दोनों आवश्यक हैं। अलंकारी कभी भी देह-अहंकारी नहीं बन सकेगा। इसलिए सदैव अपने आप को देखो कि निराकारी और अलंकारी हूँ। यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव,। स्वस्थिति को मास्टर सर्वशक्तिमान कहा जाता है। तो मास्टर सर्वशक्तिमान बने हो ना। इस स्थिति में सर्व परिस्थितयों से पार हो जाते हैं। इस स्थिति में स्वभाव अर्थात् सर्व में स्व का भाव अनुभव होता है। और अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं। स्वभाव अर्थात् स्व में आत्मा का भाव देखो फिर यह भाव-स्वभाव की बातें समाप्त हो जाएगी। सामना करने की सर्व शक्तियां प्राप्त हो जायेंगी। जब तक कोई सूक्ष्म वा स्थूल कामना है तब तक सामने करने की शक्ति नहीं आ सकती। कामना सामना करने नहीं देती। इसलिए ब्राह्मणों का अन्तिम स्वरूप क्यों गाया जाता है, मालूम है? इस स्थिति का वर्णन है इच्छा मात्रम् अविद्या। अब अपने पूछो इच्छा मात्रम् अविद्या ऐसी स्थिति हम ब्राह्मणों की बनी है? जब ऐसी स्थिति बनेगी तब जयजयकार और हाहाकार भी होगी। यह है आप सभी का अन्तिम स्वरुप। अपने स्वरुप का साक्षात्कार होता है सदैव अपने सम्पूर्ण और भविष्य  स्वरुप ऐसे दिखाई दें जैसे शरीर छोड़नेवाले को बुद्धि में स्पष्ट रहता है कि अभी-अभी यह छोड़ नया शरीर धारण करना है। ऐसे सदैव बुद्धि में यही रहे कि अभी-अभी इस स्वरुप को धारण करना है। जैसे स्थूल चोला बहुत जल्दी धारण कर लेते हो वैसे यह सम्पूर्ण स्वरुप धारण करो। बहुत सुन्दर और श्रेष्ठ वस्त्र सामने देखते फिर पुराने वस्त्र को छोड़ वह नया धारण करना क्या मुश्किल होता है? ऐसे ही जब अपने श्रेष्ठ सम्पूर्ण स्वरुप वा स्थिति को जानते हो, सामने है तो फिर वह सम्पूर्ण श्रेष्ठ स्वरुप धारण करने में देरी क्यों? कोई भी अहंकार है तो वह अलंकारहीन बना देता है। इसलिए निरहंकारी और निराकारी फिर अलंकारी। इस स्थिति में स्थित होना सर्व आत्माओं के कल्याणकारी बनने वाले ही विश्व के राज्य अधिकारी बनते हैं। जब सर्व के कल्याणकारी बनते हो तो क्या जो सर्व का कल्याण करने वाला है वह अपना अकल्याण कर सकता है? सदैव अपने को विजयी रत्न समझ कर हर संकल्प और कर्म करो। मास्टर सर्व शक्तिमान कभी हार नहीं खा सकते। हार खाने वाले को न सिर्फ हार लेकिन धर्मराज की मार भी खानी पड़ती है। क्या हार और मार मंज़ूर है? जब हार खाते हो, हार के पहले मार सामने देखो। मार से भूत भी भागते हैं। तो मार को सामने रखने से भूत भाग जायेंगे। अब तक हार खाना किन्हों का काम है? मास्टर सर्वशक्तिमानों का नहीं है इसलिए वही पुरानी बातें, पुरानी चाल अब मास्टर सर्व शक्तिमानों की सूरत पर शोभता नहीं है। इसलिए सम्पूर्ण स्वरुप को अभी-अभी धारण करने की अपने से प्रतिज्ञा करो। प्रयत्न नहीं। प्रयत्न और प्रतिज्ञा में बहुत फर्क है। प्रतिज्ञा एक सेकण्ड में की जाती है। प्रयत्न में समय लगता है। इसलिए अब प्रयत्न का समय भी गया। अब तो प्रतिज्ञा और सम्पूर्ण रूप की प्रत्यक्षता करनी है। साक्षात् बाप समान साक्षात्कार मूर्त बनना है। ऐसे अपने आपको साक्षात्कार मूर्त समझने से कभी भी हार नहीं खायेंगे। अभी प्रतिज्ञा का समय है न कि हार खाने का। अगर बार-बार हार खाते रहते हैं तो उसका भविष्य भी क्या होगा? ऊँचे-ऊँचे पद तो नहीं पा सकते। बार-बार हार खाने वाले को देवताओं के हार बनाने वाले बनना पड़ेगा। जितना ही बार-बार हार खाते रहेंगे उतना ही बार-बार हार बनानी पड़ेगी रत्नजड़ित हार बनते हैं ना। और फिर द्वापर से भी जब भक्त बनेंगे तो अनेकों मूर्तियों को बार-बार हार पहनना पड़ेगा। इसलिए हार नहीं खाना। यहाँ कोई हार खाने वाला है क्या। अगर हार नहीं खाते तो बलिहार जाते हैं। अभी बलिहार वा बलि चढ़ने की तैयारी करने वाले हो। समाप्ति में बलि चढ़ना है वा चढ़ चुके हो? जो बलिहार हो गए हैं। उन्हों का पेपर लेंगे। इतने सभी को आज से कोई कम्पलेन नहीं आयेंगी। जब हार नहीं खायेंगे तो कम्पलेन फिर काहे की। आप लोगों का पेपर वतन में तैयार हो रहा है।

ओम शांति।

 

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QUIZ QUESTIONS

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प्रश्न 1 :- मास्टर सर्वशक्तिमान स्थिति में स्थित रहने से क्या-क्या लाभ होते हैं?

 प्रश्न 2 :- ब्राह्मण जीवन में हार खाने से क्या नुकसान होता हैं? हार खाने से पहले सामने क्या देखना चाहिए?

 प्रश्न 3 :- हमें अपना स्वरूप और भविष्य स्वरूप कैसे दिखाई देना चाहिए?

 प्रश्न 4 :- संगमयुग पर बार-बार हार खाने से द्वापरयुग में क्या परिणाम होंगे?

 प्रश्न 5 :- हमें अब कौन-सी प्रतिज्ञा करनी हैं?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( कर्म, देह-अहंकारी, स्वभाव, सर्व शक्तियाँ, संकल्प, साक्षात्कार मूर्त, अलंकारहीन )

 

 1   अलंकारी कभी भी ______ नहीं बन सकेगा।

 2  ______ अर्थात स्व में आत्मा का भाव देखो फिर सामना करने की ______  प्राप्त हो जाएगी।

 3  अहंकार हमें ______ बना देता है।

 4  साक्षात बाप समान ______ बनना है।

 5  सदैव अपने को विजयी रत्न समझकर हर ______ और  ______ करो।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- ब्राह्मणों का अंतिम स्वरूप गाया हुआ है- निराकारी और अलंकारी।

 2  :- जब तक कोई सूक्ष्म व स्थूल कामना है तब तक सामना करने की शक्ति आ नहीं सकती। कामना सामना करने देती।

 3  :- जब इच्छा मात्रम् अविद्या स्थिति बनेगी तब जयजयकार और हाहाकार होगी।

 4  :- सदैव अपने आप को देखो कि स्वर्ग में हूँ। यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव।

 5   :- स्वस्थिति को मास्टर विश्वकल्याणकारी कहा जाता है।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- मास्टर सर्वशक्तिमान स्थिति में स्थित रहने से क्या-क्या लाभ होते हैं?  

 उत्तर 1 :- मास्टर सर्वशक्तिमान स्थिति में स्थित रहने से निम्नलिखित लाभ होते हैं--

          ..❶ इस स्थिति में स्थित रहने से सर्व परिस्थितियों से पार हो जाते हैं।

          ..❷ इस स्थिति में स्थित रहने से स्वभाव अर्थात सर्व में स्व का भाव अनुभव होता है।

          ..❸ अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं।

 

 प्रश्न 2 :- ब्राह्मण जीवन में हार खाने से क्या नुकसान होता हैं? हार खाने से पहले सामने क्या देखना चाहिए?

 उत्तर 2 :- हार खाने वाले को न सिर्फ हार लेकिन धर्मराज की मार भी खानी पड़ती है। जब हार खाते हो, हार के पहले मार सामने देखो। मार से भूत भी भागते है।

 

 प्रश्न 3 :- हमें अपना स्वरूप और भविष्य स्वरूप कैसे दिखाई देना चाहिए?

   उत्तर 3 :- सदैव अपने सम्पूर्ण और भविष्य स्वरुप ऐसे दिखाई दें जैसे शरीर छोड़ने वाले को बुद्धि में स्पष्ट रहता है कि अभी-अभी यह छोड़ नया शरीर धारण करना है। ऐसे सदैव बुद्धि में यही रहे कि अभी-अभी इस स्वरुप को धारण करना है। जैसे स्थूल चोला बहुत जल्दी धारण कर लेते हो वैसे यह सम्पूर्ण स्वरुप धारण करो।

 

प्रश्न 4 :- संगमयुग पर बार-बार हार खाने से द्वापरयुग में क्या परिणाम होंगे?

   उत्तर 4 :- संगमयुग पर बार-बार हार खाने से द्वापरयुग में निम्न परिणाम होंगे:-

          ..❶ ऊँचें-ऊँचें पद पा नहीं सकेंगे।

          ..❷ उन्हें देवताओं के हार बनाने वाले बनना पड़ेगा।

          ..❸ जितना ही बार-बार हार खाते रहेंगे उतना ही बार-बार रत्नजड़ित हार बनानी पड़ेगी।

          ..❹ जब भक्त बनेंगे तो अनेकों मूर्तियों को बार-बार हार पहनना होगा।

 

प्रश्न 5 :- हमें अब कौन-सी प्रतिज्ञा करनी हैं?  

 उत्तर 5 :- हमे प्रतिज्ञा करनी है कि :-

          ..❶ सम्पूर्ण स्वरुप को अभी-अभी धारण करने की प्रतिज्ञा करनी है। प्रयत्न नहीं करना हैं।

          ..❷ प्रयत्न और प्रतिज्ञा में बहुत फर्क है। प्रतिज्ञा एक सेकण्ड में की जाती है। प्रयत्न में समय लगता है।

          ..❸ इसलिए अब प्रयत्न का समय भी गया। अब तो प्रतिज्ञा और सम्पूर्ण रूप की प्रत्यक्षता करनी है।

          ..❹ साक्षात् बाप समान साक्षात्कार मूर्त बनना है। ऐसे अपने आपको साक्षात्कार मूर्त समझने से कभी भी हार नहीं खायेंगे।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( कर्म, देह-अहंकारी, स्वभाव, सर्व शक्तियाँ, संकल्प, साक्षात्कार मूर्त, अलंकारहीन )

 

 1   अलंकारी कभी भी ______ नहीं बन सकेगा।

..  देह-अहंकारी

 

2 ______ अर्थात स्व में आत्मा का भाव देखो फिर सामना करने की ______  प्राप्त हो जाएगी।

  ..  स्वभाव  / सर्व / शक्तियाँ

 

 3   अहंकार हमें ______ बना देता है।  

..  अलंकारहीन

 

साक्षात बाप समान ______ बनना है।

  ..  साक्षात्कार मूर्त

 

  सदैव अपने को विजयी रत्न समझकर हर ______ और ______करो।

  ..  संकल्प /  कर्म

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】【

 

 1  :- ब्राह्मणों का अंतिम स्वरूप गाया हुआ है-- निराकारी और अलंकारी।

 .. ब्राह्मणों का अंतिम स्वरूप गाया हुआ है-- इच्छा मात्रम् अविद्या।

 

2  :- जब तक कोई सूक्ष्म व स्थूल कामना है तब तक सामना करने की शक्ति आ नहीं सकती। कामना सामना करने देती।

 .. जब तक कोई सूक्ष्म व स्थूल कामना है तब तक सामना करने की शक्ति आ नहीं सकती। कामना सामना नहीं करने देती।

 

3  :- जब इच्छा मात्रम् अविद्या स्थिति बनेगी तब जयजयकार और हाहाकार होगी।

 

 4  :- सदैव अपने आप को देखो कि मैं स्वर्ग में हूँ। यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव।

 ..  सदैव अपने आप को देखो कि मैं निराकारी और अलंकारीे।हूँ। यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव।

 

5   :- स्वस्थिति को मास्टर विश्वकल्याणकारी कहा जाता है।【✖】

 ..  स्वस्थिति को मास्टर सर्वशक्तिमान कहा जाता है।