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AVYAKT MURLI

19 / 04 / 71

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19-04-71 ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

 

त्याग, तपस्या और सेवा की परिभाषा

 

आज भट्ठी का आरम्भ करने के लिए बुलाया है। इस भट्ठी में सर्व गुणों की धारणामूर्त बनने के लिए वा सम्पूर्ण ज्ञानमूर्तबनने के लिए आये हो। इसके लिए मुख्य तीन बातें ध्यान में रखनी है। वह कौन सी? जिन तीन बातों से सम्पूर्ण ज्ञानमूर्त और सर्व गुण मूर्त बनकर ही जाओ। सारी नॉलेज का सार उन तीन शब्दों में समाया हुआ है। वह कौन से शब्द हैं? एक त्याग, दूसरा तपस्या और तीसरा है सेवा। इन तीनों शब्दों की धारणामूर्त बनना अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञानमूर्त और सर्व गुणों की मूर्त बनना। त्याग किसको कहा जाता है? निरन्तर त्याग वृत्ति और तपस्यामूर्त बनकर हर सेकेण्ड, हर संकल्प द्वारा हर आत्मा की सेवा करनी है। यह सीखने के लिए भट्ठी में आये हो। वैसे तो त्याग और तपस्या दोनों को जानते हो, फिर अभी क्या करने आये हो?(कर्मों में लाने के लिए) भले जानते हो लेकिन अभी जो जानना है उस प्रमाण चलना, दोनों को समान बनाने के लिए आये हो। अभी जानने और चलने में अन्तर है। उस अन्तर को समाप्त करने के लिए भट्ठी में आये हो। ऐसे तपस्वीमूर्त वा त्यागमूर्त बनना है जो आपके त्याग और तपस्या की शक्ति के आकर्षण दूर से प्रत्यक्ष दिखाई दें। जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती है वा अनुभव होती है। वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे। हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे। तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे। सिर्फ सेवाधारी बनकर सेवा करने से जो सफ़लता चाहते हो, वह नहीं हो पाती है। लेकिन सेवाधारी बनने के साथ-साथ त्याग और तपस्यामूर्त भी हो तब सेवा का प्रत्यक्षफल दिखाई देगा। तो सेवाधारी तो बहुत अच्छे हो लेकिन सेवा करते समय त्याग और तपस्या को भूल नहीं जाना है। तीनों का साथ होने से मेहनत कम और प्राप्ति अधिक होती है। समय कम सफलता अधिक। तो इन तीनों को साथ जोड़ना है। यह अच्छी तरह से अभ्यास करके जाना है। जितना नॉलेजफुल उतना ही पावरफुल और सक्सेसफुल होना चाहिए। नॉलेजफुल की निशानी यह दिखाई देगी कि उनका एक-एक शब्द पावरफुल होगा और हर कर्म सक्सेसफुल होगा। अगर यह दोनों रिजल्ट कम दिखाई देती हैं तो समझना चाहिए कि नॉलेजफुल बनना है। जबकि आजकल आत्माओं द्वारा जो अधूरी नॉलेज प्राप्त करते हैं उन्हों को भी अल्पकाल के लिए सफलता की प्राप्ति का अनुभव होता है। तो सम्पूर्ण श्रेष्ठ नॉलेज की प्राप्ति प्रत्यक्ष प्राप्त होने का अनुभव भी अभी करना है। ऐसे नहीं समझना कि इस नॉलेज की प्राप्ति भविष्य में होनी है। नहीं। वर्तमान समय में नॉलेज की प्राप्ति - अपने पुरूषार्थ की सफलता और सेवा में सफलता का अनुभव होता है। सफलता के आधार पर अपनी नॉलेज को जान सकते हो। तो भट्ठी में आये हो चेक करने और कराने के लिए कि कहाँ तक नॉलेजफुल बने हैं? कोई भी पुराने संकल्प वा संस्कार दिखाई न दें। इतना त्याग सीखना है। मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाय आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे वा स्मृति में न आये। ऐसे निरन्तर तपस्वी बनना है, जिस भी संस्कार वा स्वभाव वाले चाहे रजोगुणी, चाहे तमोगुणी आत्मा हो। संस्कार वा स्वभाव के वश हो, आपके पुरूषार्थ में परीक्षा के निमित्त बनी हुई हो लेकिन हर आत्मा के प्रति सेवा अर्थात् कल्याण का संकल्प वा भावना उत्पन्न हो। ऐसे सर्व आत्माओं का सेवाधारी अर्थात् कल्याणकारी बनना है। तो अब समझा, त्याग क्या सीखना है, तपस्या क्या सीखनी है और सेवा भी कहाँ तक करनी है? इनकी महीनता का अनुभव करना है। हर पुरूषार्थ में फलीभूत वह हो सकता है जिसमें ज्ञान और धारणा के फल लगे हुए हों। जैसे अभी सभी के सामने ब्रह्माकुमार प्रसिद्ध दिखाई देते हैं। दूर से ही जान जाते हैं कि यह ब्रह्माकुमार है। अब ब्रह्माकुमार के साथ-साथ तपस्वी कुमार दूर से ही दिखाई पड़ो, ऐसा बनकर जाना है। वह तब होगा जब मनन और मगन - दोनों का अनुभव करेंगे।जैसे स्थूल नशे में रहने वाले के नैन-चैन, चलन दिखाई देते हैं कि यह नशे में है। ऐसे ही आपके चलन और चेहरे से ईश्वरीय नशा और नारायणी नशा दिखाई पड़े। चेहरा ही आपका परिचय दे। जैसे कोई के पास मिलने जाते हैं तो परिचय के लिए अपना कार्ड देते हैं ना। इसी रीति से आपका चेहरा परिचय कार्ड का कर्त्तव्य करे। समझा? अभी गुप्त धारणा का रूप नहीं रखना है। कई ऐसे समझते हैं कि ज्ञान गुप्त है, बाप गुप्त है तो धारणा भी गुप्त ही है। ज्ञान गुप्त है, बाप गुप्त है लेकिन उन द्वारा जो धारणाओं की प्राप्ति होती है वह गुप्त नहीं हो सकती है। तो धारणाओं को वा प्राप्ति को प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ, तब प्रत्यक्षता होगी। विशेष करके कुमारों में एक संस्कार होता है जो पुरूषार्थ में विघ्न रूप होता है। वह कौनसा? कुमारों में यह संस्कार होता है जो कामनाओं को पूर्ण करने के लिए संस्कारों को रख देते हैं। जैसे जेब-खर्च रखा जाता है ना। जैसे राजाओं की राजाई तो छूट गयी लेकिन पिरवी पर्श को नहीं छोड़ते। इसी रीति संस्कारों को कितना भी खत्म करते हैं लेकिन जेब-खर्च माफिक कुछ-न-कुछ किनारे रखते ज़रूर हैं। यह है मुख्य संस्कार। यहाँ भट्ठी में जानते भी हैं और चलने की हिम्मत भी धारण करते हैं लेकिन फिर भी माया पिरवी पर्श की रीति से कहाँ-न-कहाँ किनारे में रह जाती है। समझा? तो इस भट्ठी में सभी त्याग करके जाना। यह नहीं सोचना कि सम्पूर्ण तो अभी अन्त में बनना है, तो थोड़ा-बहुत रहेगा ही। लेकिन नहीं। त्याग अर्थात् त्याग। जेबखर्च माफिक अपने अन्दर थोड़ा-बहुत भी संस्कार रहने नहीं देना है। समझा? ज़रा भी संस्कार अगर रहा होगा तो वह थोड़ा संस्कार भी धोखा दिला देता है। इसलिए बिल्कुल जो पुरानी जायदाद है, वह भस्म करके जाना। छिपाकर नहीं रखना। समझा? अच्छा।

यह कुमार ग्रुप है। अभी बनना है तपस्वी कुमार ग्रुप। इस ग्रुप की यह विशेषता सभी को दिखाई दे कि यह तपस्वी कुमार तपस्वी-भूमि से आये हैं। समझा? हरेक लाइट के ताजधारी दिखाई दें। ताजधारी तो भविष्य में बनेंगे लेकिन इस भट्ठी से लाइट के ताजधारी बनकर जाना है। सर्विस की ज़िम्मेवारी का ताज वह इस ताज के साथ स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। इसलिए मुख्य ध्यान इस लाइट के ताज को धारण करने का रखना है। समझा? जैसे तपस्वी सदैव आसन पर बैठते हैं, वैसे अपनी एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर विराजमान रहो। इस आसन को नहीं छोड़ो, तब सिंहासन मिलेगा। ऐसा प्रयत्न करो जो देखते ही सब के मुख से एक ही आवाज़ निकले कि यह कुमार तो तपस्वी कुमार बनकर आये हैं। हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्माभिमानी की

तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे। क्योंकि ब्रह्मा की स्थापना का कार्य तो चल ही रहा है। ईश्वरीय पालना का कर्त्तव्य भी चल ही रहा है। अब लाइट में तपस्या द्वारा अपने विकर्मों और हर आत्मा के तमोगुण और प्रकृति के तमोगुणी संस्कारों को भस्म करने का कर्त्तव्य चलना है। अब समझा कि कौनसे कर्त्तव्य का अभी समय है? तपस्या द्वारा तमोगुण को भस्म करने का। जैसे अपने चित्रों में शंकर का रूप विनाशकारी अर्थात् तपस्वी रूप दिखाते हैं, ऐसे एकरस स्थिति के आसन पर स्थित हो तपस्वी रूप अपना प्रत्यक्ष दिखाओ। समझा क्या सीखना और क्या और कैसे बनना है? इसके लिए यह कुमार ग्रुप मुख्य सलोगन क्या सामने रखेंगे जिससे सफलता हो जाये? सच्चाई और सफाई से सृष्टि से विकारों का सफाया करेंगे। जब सृष्टि से करेंगे तो स्वयं से तो पहले से ही हो जायेगा, तब तो सृष्टि से करेंगे ना। तो यह सलोगन याद रखने से तपस्वीमूर्त बनने से सफलतामूर्त बनेंगे।समझा? अच्छा।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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प्रश्न 1 :- सर्वगुणों की धारणामूर्त व सम्पूर्ण ज्ञानमूर्त बनने के लिए बापदादा ने कौन सी तीन बातें बताई है ?

  प्रश्न 2 :-बापदादा ने नाॅलेजफुल की क्या पहचान बताई है ?

 प्रश्न 3 :- त्याग तपस्या और सेवा की महीनता क्या है ?

  प्रश्न 4 :- बापदादा कुमारों के विघ्न रूप बने किस संस्कार के बारें में और क्या क्या समझानियाँ दे रहे है ?

 प्रश्न 5 :- बापदादा कुमार ग्रुप की कौन कौन सी विशेषताएं व कर्तव्य बता रहे है? साथ कुमार ग्रुप को सफलता के लिए कौन सा स्लोगन दिया है ?

 

      FILL IN THE BLANKS:-    

( तपस्या, परिचय, बाप, भस्म, धारणा, तपस्वी, ज्ञान, विराजमान, प्रकृति, आसन, मगन, सिंहासन, कर्तव्य, मनन )

 

1   जैसे कोई के पास मिलने जाते हैं तो ____ के लिए अपना कार्ड देते हैं ना। इसी रीति से आपका चेहरा परिचय कार्ड का _____ करे।

 2  अभी गुप्त ____ का रूप नहीं रखना है। कई ऐसे समझते हैं कि _____ गुप्त है, ___ गुप्त है तो धारणा भी गुप्त ही है।

 3  अब लाइट में ____ द्वारा अपने विकर्मों और हर आत्मा के तमोगुण और ____ के तमोगुणी संस्कारों को _____ करने का कर्त्तव्य चलना है।

 4  अब ब्रह्माकुमार के साथ-साथ ____ कुमार दूर से ही दिखाई पड़ो, ऐसा बनकर जाना है। वह तब होगा जब ____ और ____ दोनों का अनुभव करेंगे।

 5  जैसे तपस्वी सदैव ____ पर बैठते हैं, वैसे अपनी एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर _____ रहो। इस आसन को नहीं छोड़ो, तब _____ मिलेगा।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1 :- हर पुरूषार्थ में फलीभूत वह हो सकता है जिसमें ज्ञान और धारणा के फल लगे हुए हों।

 2 :- ताजधारी तो भविष्य में बनेंगे लेकिन इस भट्ठी से लाइट के ताजधारी बनकर जाना है।

 3  :- ब्रह्मा की स्थापना का कार्य तो चल ही रहा है। ईश्वरीय पालना का कर्त्तव्य भी चल ही रहा है।

 4  :- धारणाओं को वा प्राप्ति को प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ, तब प्रत्यक्षता होगी।

 5  :- स्थूल नशे में रहने वाले के नैन-चैन, चलन दिखाई देते हैं कि यह नशे में है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- सर्वगुणों की धारणामूर्त व सम्पूर्ण ज्ञानमूर्त बनने के लिए बापदादा ने कौन सी तीन बातें बताई है?

उत्तर 1 :- सर्व गुणों की धारणामूर्त बनने के लिए वा सम्पूर्ण ज्ञानमूर्तबनने के लिए मुख्य तीन बातें ध्यान में रखनी है। सारी नॉलेज का सार उन तीन शब्दों में समाया हुआ है।

          ..❶ एक त्याग,

          ..❷ दूसरा तपस्या

          ..❸ और तीसरा है सेवा।  इन तीनो शब्दों को जानने के बाद जरूरी है-

          ..❶ इन तीनों शब्दों की धारणामूर्त बनना अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञानमूर्त और सर्व गुणों की मूर्त बनना।  

          ..❷ निरन्तर त्याग वृत्ति और तपस्यामूर्त बनकर हर सेकेण्ड, हर संकल्प द्वारा हर आत्मा की सेवा करनी है।

          ..❸ वैसे तो त्याग और तपस्या दोनों को जानते हो, भले जानते हो लेकिन अभी जो जानना है उस प्रमाण चलना।

          ..❹ दोनों को समान बनाने के लिए आये हो।अभी जानने और चलने में अन्तर है। उस अन्तर को समाप्त करने के लिए भट्ठी में आये हो।

          ..❺ ऐसे तपस्वीमूर्त वा त्यागमूर्त बनना है जो आपके त्याग और तपस्या की शक्ति के आकर्षण दूर से प्रत्यक्ष दिखाई दें।

           ..❻ जैसे स्थूल अग्नि वा प्रकाश अथवा गर्मी दूर से ही दिखाई देती है वा अनुभव होती है। वैसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही आकर्षण करे।

          ..❼ हर कर्म में त्याग और तपस्या प्रत्यक्ष दिखाई दे। तब ही सेवा में सफलता पा सकेंगे।

          ..❽ सिर्फ सेवाधारी बनकर सेवा करने से जो सफ़लता चाहते हो, वह नहीं हो पाती है। लेकिन सेवाधारी बनने के साथ-साथ त्याग और तपस्यामूर्त भी हो तब सेवा का प्रत्यक्षफल दिखाई देगा।

          ..❾ तो सेवाधारी तो बहुत अच्छे हो लेकिन सेवा करते समय त्याग और तपस्या को भूल नहीं जाना है। तीनों का साथ होने से मेहनत कम और प्राप्ति अधिक होती है।

 

 प्रश्न 2 :-बापदादा ने नाॅलेजफुल की क्या पहचान बताई है?

उत्तर 2 :-  बापदादा नाॅलेजफुल की पहचान बताते हुए कहते है-

          ..❶ जितना नॉलेजफुल उतना ही पावरफुल और सक्सेसफुल होना चाहिए।

          ..❷ नॉलेजफुल की निशानी यह दिखाई देगी कि उनका एक-एक शब्द पावरफुल होगा और हर कर्म सक्सेसफुल होगा।

          ..❸ अगर यह दोनों रिजल्ट कम दिखाई देती हैं तो समझना चाहिए कि नॉलेजफुल बनना है।

          ..❹ जबकि आजकल आत्माओं द्वारा जो अधूरी नॉलेज प्राप्त करते हैं उन्हों को भी अल्पकाल के लिए सफलता की प्राप्ति का अनुभव होता है। तो सम्पूर्ण श्रेष्ठ नॉलेज की प्राप्ति प्रत्यक्ष प्राप्त होने का अनुभव भी अभी करना है। ऐसे नहीं समझना कि इस नॉलेज की प्राप्ति भविष्य में होनी है। नहीं।

          ..❺ वर्तमान समय में नॉलेज की प्राप्ति -अपने पुरूषार्थ की सफलता और सेवा में सफलता का अनुभव होता है।

          ..❻ सफलता के आधार पर अपनी नॉलेज को जान सकते हो।

 

 प्रश्न 3 :- त्याग, तपस्या और सेवा की महीनता क्या है?

उत्तर 3 :- त्याग तपस्या और सेवा की महीनता समझाते हुए बापदादा कहते है-

          ..❶ कोई भी पुराने संकल्प वा संस्कार दिखाई न दें। इतना त्याग सीखना है।

          ..❷ मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाय आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे वा स्मृति में न आये। ऐसे निरन्तर तपस्वी बनना है,

         ..❸ जिस भी संस्कार वा स्वभाव वाले चाहे रजोगुणी, चाहे तमोगुणी आत्मा हो। संस्कार वा स्वभाव के वश हो, आपके पुरूषार्थ में परीक्षा के निमित्त बनी हुई हो लेकिन हर आत्मा के प्रति सेवा अर्थात् कल्याण का संकल्प वा भावना उत्पन्न हो। ऐसे सर्व आत्माओं का सेवाधारी अर्थात् कल्याणकारी बनना है।

          ..❹ तो अब समझा, त्याग क्या सीखना है, तपस्या क्या सीखनी है और सेवा भी कहाँ तक करनी है? इनकी महीनता का अनुभव करना है।

 

 प्रश्न 4 :-बापदादा कुमारों के विघ्न रूप बने किस संस्कार के बारें में और क्या क्या समझानियाँ दे रहे है?

उत्तर 4 :- बापदादा कुमारों के विघ्न रूप बने संस्कार के बारें में बताते हुए कहते है-

          ..❶ कुमारों में यह संस्कार होता है जो कामनाओं को पूर्ण करने के लिए संस्कारों को रख देते हैं।

          ..❷ जैसे जेब-खर्च रखा जाता है ना। जैसे राजाओं की राजाई तो छूट गयी लेकिन पिरवी पर्श को नहीं छोड़ते।

          ..❸ इसी रीति संस्कारों को कितना भी खत्म करते हैं लेकिन जेब-खर्च माफिक कुछ-न-कुछ किनारे रखते ज़रूर हैं। यह है मुख्य संस्कार।

          ..❹ यहाँ भट्ठी में जानते भी हैं और चलने की हिम्मत भी धारण करते हैं लेकिन फिर भी माया पिरवी पर्श की रीति से कहाँ-न-कहाँ किनारे में रह जाती है।

          ..❺ तो इस भट्ठी में सभी त्याग करके जाना। यह नहीं सोचना कि सम्पूर्ण तो अभी अन्त में बनना है, तो थोड़ा-बहुत रहेगा ही। लेकिन नहीं। त्याग अर्थात् त्याग।

          ..❻ जेबखर्च माफिक अपने अन्दर थोड़ा-बहुत भी संस्कार रहने नहीं देना है। समझा?

           ..❼ ज़रा भी संस्कार अगर रहा होगा तो वह थोड़ा संस्कार भी धोखा दिला देता है।

            ..❽ इसलिए बिल्कुल जो पुरानी जायदाद है, वह भस्म करके जाना। छिपाकर नहीं रखना।

 

 प्रश्न 5 :- बापदादा कुमार ग्रुप की कौन कौन सी विशेषताए व कर्तव्य बताते है? साथ ही कुमार ग्रुप की सफलता के लिए कौन सा स्लोगन दिया है?

उत्तर 5 :-  बापदादा कुमारों के कर्तव्य और विशेषताए बताते हुए कहते है-

          ..❶ यह कुमार ग्रुप है। अभी बनना है तपस्वी कुमार ग्रुप।

          ..❷ इस ग्रुप की यह विशेषता सभी को दिखाई दे कि यह तपस्वी कुमार तपस्वी-भूमि से आये हैं।

          ..❸ हरेक लाइट के ताजधारी दिखाई दें। ताजधारी तो भविष्य में बनेंगे लेकिन इस भट्ठी से लाइट के ताजधारी बनकर जाना है।

           ..❹ सर्विस की ज़िम्मेवारी का ताज वह इस ताज के साथ स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। इसलिए मुख्य ध्यान इस लाइट के ताज को धारण करने का रखना है।

          ..❺ जैसे तपस्वी सदैव आसन पर बैठते हैं, वैसे अपनी एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर विराजमान रहो। इस आसन को नहीं छोड़ो, तब सिंहासन मिलेगा।

         ..❻ ऐसा प्रयत्न करो जो देखते ही सब के मुख से एक ही आवाज़ निकले कि यह कुमार तो तपस्वी कुमार बनकर आये हैं।

          ..❼ हर कर्मेन्द्रिय से देह-अभिमान का त्याग और आत्माभिमानी की तपस्या प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे।

          ..❽ अब समझा कि कौन से कर्त्तव्य का अभी समय है? तपस्या द्वारा तमोगुण को भस्म करने का।

           ..❾  जैसे अपने चित्रों में शंकर का रूप विनाशकारी अर्थात् तपस्वी रूप दिखाते हैं, ऐसे एकरस स्थिति के आसन पर स्थित हो तपस्वी रूप अपना प्रत्यक्ष दिखाओ।

          ..❿ समझा क्या सीखना और क्या और कैसे बनना है? इसके लिए यह कुमार ग्रुप मुख्य स्लोगन क्या सामने रखेंगे जिससे सफलता हो जाये? सच्चाई और सफाई से सृष्टि से विकारों का सफाया करेंगे। जब सृष्टि से करेंगे तो स्वयं से तो पहले से ही हो जायेगा, तब तो सृष्टि से करेंगे ना। तो यह स्लोगन याद रखने से तपस्वीमूर्त बनने से सफलतामूर्त बनेंगे। समझा? अच्छा।

 

     FILL IN THE BLANKS:-    

( तपस्या, परिचय, बाप, भस्म, धारणा, तपस्वी, ज्ञान, विराजमान, प्रकृति, आसन, मगन, सिंहासन, कर्तव्य, मनन )

 

 1   जैसे कोई के पास मिलने जाते हैं तो ____के लिए अपना कार्ड देते हैं ना। इसी रीति से आपका चेहरा परिचय कार्ड का_____ करे। समझा?

 ..  परिचय  कर्त्तव्य

 

  अभी गुप्त ____ का रूप नहीं रखना है। कई ऐसे समझते हैं कि _____गुप्त है, ___ गुप्त है तो धारणा भी गुप्त ही है।

..  धारणा  ज्ञान  बाप

 

  अब लाइट में ____ द्वारा अपने विकर्मों और हर आत्मा के तमोगुण और ____ के तमोगुणी संस्कारों को_____ करने का कर्त्तव्य चलना है।

..  तपस्या /  प्रकृति /  भस्म

 

 4  अब ब्रह्माकुमार के साथ-साथ ____ कुमार दूर से ही दिखाई पड़ो, ऐसा बनकर जाना है। वह तब होगा जब ____ और  ____ दोनों का अनुभव करेंगे।

..  तपस्वी /  मनन /  मगन

 

  जैसे तपस्वी सदैव____ पर बैठते हैं, वैसे अपनी एकरस आत्मा की स्थिति के आसन पर _____ रहो। इस आसन को नहीं छोड़ो, तब _____ मिलेगा।

..  आसन /  विराजमान /  सिंहासन

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1  :- हर पुरूषार्थ में फलीभूत वह हो सकता है जिसमें ज्ञान और धारणा के फल लगे हुए हों।

 

2  :- ताजधारी तो भविष्य में बनेंगे लेकिन इस भट्ठी से माइट के ताजधारी बनकर जाना है।

..  ताजधारी तो भविष्य में बनेंगे लेकिन इस भट्ठी से लाइट के ताजधारी बनकर जाना है।

 

3  :- ब्रह्मा की पालना का कार्य तो चल ही रहा है। ईश्वरीय पालना का कर्त्तव्य भी चल  रहा है। 】 

..  ब्रह्मा की स्थापना का कार्य तो चल ही रहा है। ईश्वरीय पालना का कर्त्तव्य भी चल रहा है।

 

4  :- धारणाओं को वा प्राप्ति को प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ, तब प्रत्यक्षता होगी।

 

5   :- स्थूल नशे में रहने वाले के नैन-चैन, चलन दिखाई देते हैं कि यह नशे में है।