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AVYAKT MURLI
10 / 06 / 71
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10-06-71 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सेवा की धरनी तैयार करने का साधन – सर्चलाइट
हरेक के मस्तक पर तीन रेखायें कौनसी देख रहे हैं? आपको अपनी रेखायें दिखाई देती हैं? जैसे बाप के यादगार चित्र में सदैव तीन रेखायें जरूर दिखाते हैं। ऐसे ही हरेक शालिग्राम के मस्तक पर तीन रेखायें कौनसी दिखाई देती हैं? मस्तक को कब दर्पण में देखा है? कौनसे दर्पण में देखा है? हरेक के मस्तक पर एक रेखा वा निशानी विजय की निशानी है। विजय की निशानी होती है त्रिशूल। त्रिशूल मन, वाणी, कर्म तीनों में सफलता की निशानी, विजय की निशानी है। शक्तियों के चित्रों में भी त्रिशूल दिखाते हैं। तो हरेक के मस्तक में यह विजय की निशानी त्रिशूल है। त्रिशूल के ऊपर दूसरी रेखा व निशानी है बिन्दी। तीसरी रेखा फिर है त्रिशूल के नीचे जो लम्बी लाइन होती है, वह निशानी है लाइन क्लीयर और केयरफुल की। केयरफुल भी और क्लीयर भी। मार्ग के बीच में कोई भी रूकावट न आये। तो तीसरी निशानी है सीधा मार्ग पर एकरस हो चलने वाले। तीनों ही रेखायें वा निशानियाँ हरेक के मस्तक पर देख रहे हैं। रेखायें सभी की होती हैं लेकिन कोई की स्पष्ट होती हैं, कोई की स्पष्ट नहीं होती हैं। तो आपने अपनी लकीरें देखीं? त्रिशूल है, लाइन क्लीयर भी है और आत्मिक स्थिति की बिन्दी भी है। भक्त लोग भी मस्तक में तिलक की निशानी रखते हैं। आप लोगों को मस्तक में लगाने की आवश्यकता नहीं है। सदैव अपने मस्तक की इन रेखाओं से अपनी स्थिति को परख सखते हो। तीनों ही रेखायें तेज होनी चाहिए, तब ही साक्षात्कारमूर्त बन सकते हो वा अपने कर्त्तव्य को सफल कर सकते हो। अब आप सर्विस पर जा रहे हो। अभी से ही उन आत्माओं के ऊपर अपनी सर्च-लाइट डालने शुरू करना है। शुरू की है या वहाँ जाकर शुरू करेंगे? सर्चलाइट की रोशनी दूर से जाती है। तो यहाँ से ही सर्चलाइट डालनी है। आत्माओं को चुन सकते हो। यहाँ से ही कार्य शुरू करने से वहाँ जाते ही प्रत्यक्ष सबूत दिखाई देगा। सर्चलाइट बनकर के ही चलते-फिरते हो वा जब बैठते हो तब ही सर्चलाइट देते हो? निरन्तर सर्चलाइट समझकर चारों ओर वायुमण्डल को बनाने का कर्त्तव्य अभी से ही करना है। जो वहाँ जाते ही वायुमण्डल के आकर्षण से समीप आने वाली आत्मायें अपना सहज ही भाग्य पा सकें। क्योंकि अभी समय कम और सफलता हजार गुणा दिखानी है। पहले का समय और था। समय ज्यादा और सफलता कम होती थी। लेकिन अभी कम समय में सफलता हजार गुणा हो, वह प्लैन बनाना है। प्लैन के पहले प्लेन बनना है। अगर प्लेन बन गये तो प्लैन प्रैक्टिकल में ठीक आ जायेगा। प्लेन बनने से ही प्लैन ठीक चल सकेगा। प्लेन बनने के बाद फिर प्लैन क्या रखना है, जिससे सदा सफलता प्राप्त हो? सो थोड़े में सुनाते हैं जो कभी भूले नहीं। एक तो याद रखना कि हम सब एकमत हैं अर्थात् एक के ही मत पर एक मति। दूसरी बात -- वाणी में भी सदैव एक का ही नाम बार-बार अपने को वा दूसरों को स्मृति में दिलाना है। तीसरी बात -- चलन अथवा कर्म में इकॉनामी हो। न सिर्फ तन में इकॉनामी करनी है, लेकिन वाणी में भी इकॉनामी हो, संकल्प में भी इकॉनामी, समय में भी इकॉनामी। तो चलन में सभी प्रकार की इकॉनामी हो। यह तीनों ही बातें -- एक मति, एक का नाम अर्थात् एकनामी और फिर इकॉनामी। यह तीनों ही बातें सदैव स्मृति में रख फिर कदम उठाना वा संकल्प को वाणी में लाना है।
कोई भी लेन-देन करते हो तो उसी समय एक सलोगन याद रखना है - बालक सो मालिक। जिस समय विचारों को देते हो तो मालिक बनकर देना चाहिए लेकिन जिस समय फाइनल होता है उस समय फिर बालक बन जाना है। सिर्फ मालिकपना भी नहीं, सिर्फ बालकपना भी नहीं। जिस समय जो कर्म करना है उस समय वही स्थिति होनी चाहिए। और जब भी अन्य आत्माओं की सर्विस करते हो तो सदैव यह भी ध्यान में रखो कि दूसरों की सर्विस के साथ अपनी सर्विस भी करनी है। आत्मिक-स्थिति में अपने को स्थित रखना, यह है अपनी सर्विस। पहले यह चेक करो कि अपनी सर्विस भी चल रही है? अपनी सर्विस नहीं होती तो दूसरों की सर्विस में सफलता नहीं होगी। इसलिए जैसे दूसरों को सुनाते हो ना कि बाप की याद अर्थात् अपनी याद वा अपनी याद अर्थात् बाप की याद। इस रीति से दूसरों की सर्विस अर्थात् अपनी सर्विस। यह भी स्मृति में रखना है। जब कोई भी सर्विस पर जाते हैं तो सदैव ऐसे समझो कि सर्विस के साथ-साथ अपने भी पुराने संस्कारों का अन्तिम- संस्कार करते हैं। जितना संस्कारों का संस्कार करेंगे उतना ही सत्कार मिलेगा। सभी आत्मायें आपके आगे मन से नमस्कार करेंगी। एक होता है हाथों से नमस्कार करना, दूसरा होता है मन से। मन ही मन में गुण गाते रहें। जैसे भक्ति भी एक तो बाहर की होती है, दूसरी होती है मानसिक। तो बाहर से नमस्कार करना- यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन मन से नमस्कार करेंगे, गुण गायेंगे बाप के कि इन्हों को बनाने वाला कौन? दूसरा, जो उन्हों के अपने दृढ़ विचार हैं उनको भी आपके सुनाये हुए श्रेष्ठ विचारों के आगे झुका देंगे। तो नमस्कार हुआ ना। मन से नमस्कार करें, यह पुरूषार्थ करना है। बाहर के भक्त नहीं बनाना है। लेकिन मानसिक नमस्कार करने वाले बनाने हैं। वही भक्त बदल कर ज्ञानी बन जायें। जितना-जितना बुद्धि को सदैव स्वच्छ अर्थात् एक की याद में अर्पण करेंगे उतना ही स्वयं दर्पण बन जायेंगे। दर्पण के सामने आने से न चाहते हुए भी अपना स्वरूप दिखाई देता है। इस रीति से जब सदैव एक की याद में बुद्धि को अर्पण रखेंगे तो आप चैतन्य दर्पण बन जायेंगे। जो भी सामने आयेंगे वह अपना साक्षात्कार वा अपने स्वरूप को सहज अनुभव करते जायेंगे। तो दर्पण बनना, जिससे स्वत: ही साक्षात्कार हो जाये। यह अच्छा है ना। दूर से ही मालूम पड़ता है ना कि कोई सर्चलाइट है। भले कहाँ भी, कितने भी बड़े संगठन में हों, लेकिन संगठन के बीच में दूर से ही मालूम पड़े कि यह सर्चलाइट है अर्थात् मार्ग दिखाते रहें।
आप लोग नॉलेज और याद की सर्चलाइट द्वारा मार्ग दिखलाने वाले सर्चलाइट हो। और जब दृढ़ संकल्प करके जाते हैं तो संकल्प से स्वरूप बन ही जायेंगे। संकल्प है कि हम विजयी रत्न हैं, तो स्वरूप भी विजय का ही बन जाता है। वाणी और कर्म ऐसे ही चलते हैं। संकल्प के आधार से विजय कर्म में भरी हुई है। विजय का तिलक सर्विसएबुल आत्माओं को लगा हुआ है। सर्विस अर्थात् विजय का तिलक लगा है। यह सर्विसएबल ग्रुप जा रहा है ना। जिसका एक सेकेण्ड वा एक संकल्प भी सर्विस के सिवाय ना हो वह है सर्विसएबल। ऐसा यह ग्रुप है ना। जब खास सर्विस पर जाते हैं तो अपने ऊपर भी खास ध्यान देना होता है। यह साधारण सर्विस नहीं है लेकिन विशेष सर्विस है। साधारण सर्विस करते हो तो साधारण स्मृति रहती है। जब कोई भी विशेष कार्य करना होता है तो विशेष याद रहती है। तो साधारण स्मृति में नहीं, लेकिन पावरफुल स्मृति में रहना है। सदैव पावरफुल स्मृति में रहने से वायुमण्डल पावरफुल रहेगा। पावरफुल वायुमण्डल होने के कारण कोई भी आत्मा इस वायुमण्डल से निकल नहीं पायेंगे, तब ही सर्विस की सफलता होगी। सदैव एक-दो के विचारों को सत्कार देकर स्वीकार करना है, तो फिर मानसिक नमस्कार सहज करेंगे। सदैव ‘हाँ जी, हाँ जी’ का पाठ पक्का करना। जितना ‘हाँ जी, हाँ जी’ करेंगे उतना ही सभी जय-जयकार करेंगे। आप अपने शक्ति-स्वरूप की वा पाण्डव-स्वरूप की प्रत्यक्षता करने के लिए जा रहे हो ना। अश्व चक्र लगाकर आत्माओं को यज्ञ में स्वाहा कराने लिए जा रहे हैं। स्वयं तो स्वाहा हो ही चुके हैं। एकदम प्लेन बनना है। साथ में बोझ नहीं लेना। पाण्डव पाँच हैं लेकिन मत एक है। कहते हैं ना कि हम सभी एक हैं। एक इग्ज़ाम्पल कायम रखने के लिए यह फर्स्ट ग्रुप है। स्मृति-स्वरूप की एक-दो को हर समय स्मृति दिलाने से एक मत हो जायेंगे। पाँच पाण्डवों की एकमत की विशेषता भी है और हरेक की अपनी-अपनी विशेषता भी है। हरेक की अपनी विशेषता कौनसी है? जैसे फोर मस्केटियर्स (Four Musketeers; चार बंदूकधारी फौजी) का सुनाते हैं ना। तो एक-दो में मिल जुलकर हर कार्य को सफल बनाना है। हरेक अपने ऊपर विशेष एक ड्यूटी ले। हर एक अपने विशेष कार्य की ज़िम्मेवारी सुनाओ। संगठन में होते हुए भी अपनी विशेषता का सहयोग देने से सहज हो जाता है।
एक-एक पाण्डव क्या विशेषता दिखायेंगे? आत्मा के नाते तो सभी पाण्डव हो और शक्तियाँ भी हो। अपनी विशेषता का मालूम है? अपना उमंग-उत्साह और एकरस अवस्था सदैव रहे। कितना भी कोई किन बातों द्वारा आप लोगों को हराने की कोशिश करे, लेकिन जब प्रैक्टिकल अनुभवीमूर्त होकर के उनको आत्मिक दृष्टि और पावरफुल स्थिति में स्थित होकर दो शब्द भी पावरफुल बोलेंगे तो वह अपने को कागज़ का शेर समझेंगे। जैसे देवियों का दिखाते हैं ना कि सामने असुर विकराल रूप से सामना करने आते हैं, लेकिन उन्हों के आगे जैसे बिल्कुल पशु अर्थात् बेसमझ बन जाते हैं। कितना भी बड़ा समझदार हो लेकिन आपके अनुभवीमूर्त और आत्मिक दृष्टि के सामने बिल्कुल ही अपने को बेसमझ समझेंगे। भले आपके सामने कितना भी रूप धारण करने की कोशिश करें। शक्तियों के पाँव के नीचे सदैव भैंस दिखाते हैं, क्यों? कितना भी कोई अपने को सेन्सिबुल, नॉलेजफुल समझें लेकिन भैंस बिल्कुल बेसमझ होती है। बनकर एक रूप आयें और बन जायेंगे दूसरा रूप। शक्तियों का यादगार दिखाते हैं ना। असुर सामना करने विकराल रूप धारण कर आते हैं लेकिन जब शक्तियों का तीर लगता है तो फिर दूसरा रूप हो जाता है। इसलिए सदैव यह याद रखना कि हम आलमाइटी अथॉरिटी के द्वारा निमित्त बने हुए हैं। आलमाइटी गवर्नमेन्ट के मैसेन्जर हो। कोई से भी डिस्कस में अपना माइन्ड डिस्टर्ब नहीं करना है। नहीं तो वे लोग साइन्स की शक्ति से संकल्पों को भी रीड़ करते हैं। इसलिए कभी भी कोई बात का आवाज़ भी आये तो अपने को डिस्टर्ब नहीं करना। अपने चेहरे पर वा मन की स्थिति में अन्तर न लाना। मन्त्र याद रखना। जैसे कोई वाणी से वा और तरीके से वश नहीं होते हैं तो मंतर-जंतर करते हैं। तो जब देखो ऐसी कोई बात सामने आये तो अपने आत्मिक दृष्टि का नेत्र और मन्मनाभव का मन्त्र प्रयोग करना, तो शेर से भैंस बन जायेंगे। जादू-मंतर तो आता है ना। यहाँ से ही सभी सिस्टम निकली है। मंतर चलाना, रिद्धि-सिद्धि भी यहीं से ही निकली है। अपनी आत्मिक दृष्टि से अपने संकल्पों को भी सिद्ध कर सकते हो। वह है रिद्धि-सिद्धि और यहाँ विधि से सिद्धि। शब्दों का अन्तर है। रिद्धि-सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी। वह रिद्धि-सिद्धि यूज करते हैं और आप याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि प्राप्त करते हो। अच्छा।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- हरेक शालिग्राम के मस्तक पर कौन-सी तीन रेखायें दिखाई देती हैं ?
प्रश्न 2 :- सर्विस पर जाने से पहले क्या करना हैं ?
प्रश्न 3 :- कौन-कौन सी ऐसी बातें है जो स्मृति में रख फिर कदम उठाना व संकल्प को वाणी में लाना हैं ?
प्रश्न 4 :- जब कोई भी लेन-देन करते हो तो कौन-सा स्लोगन याद रखना है ?
प्रश्न 5 :- जब भी अन्य आत्माओं की सर्विस करते है तो सदैव स्मृति में क्या रखना हैं ?
FILL IN THE BLANKS:-
( बेसमझ, अनुभवीमूर्त, विजय, स्वच्छ, मानसिक, दर्पण, अर्पण, सर्विसएबुल, समय, सफलता, आत्मिक दृष्टि )
1 भक्ति भी एक तो बाहर की होती है, दूसरी होती है ______ ।
2 ______ का तिलक ______ आत्माओं को लगा हुआ है।
3 अभी ______ कम और ______ हज़ार गुणा दिखानी है।
4 जितना-जितना बुद्धि को सदैव ______ अर्थात् एक की याद में ______ करेंगे उतना ही स्वयं ______ बन जायेंगे।
5 कितना भी बड़ा समझदार हो लेकिन आपके ______ और ______ के सामने बिल्कुल ही अपने को ______ समझेंगे।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- सदैव ‘हाँ जी, हाँ जी’ का पाठ पक्का करना। जितना ‘हाँ जी, हाँ जी’ करेंगे उतना ही सभी जय-जयकार करेंगे।
2 :- रिद्धि-सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी।
3 :- मन्मनाभव का मन्त्र अर्थात् विजय का तिलक लगा है।
4 :- पाण्डव पाँच हैं लेकिन मत हज़ार है।
5 :- हम सब त्रिशूल चक्र लगाकर आत्माओं को यज्ञ में स्वाहा कराने लिए जा रहे हैं।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- हरेक शालिग्राम के मस्तक पर कौन-सी तीन रेखायें दिखाई देती हैं ?
उत्तर 1 :- हरेक शालिग्राम के मस्तक पर तीन रेखायें दिखाई देती हैं :-
..❶ हरेक के मस्तक पर एक रेखा वा निशानी विजय की निशानी है। विजय की निशानी होती है त्रिशूल। त्रिशूल मन, वाणी, कर्म तीनों में सफलता की निशानी, विजय की निशानी है। शक्तियों के चित्रों में भी त्रिशूल दिखाते हैं।
.. ❷ त्रिशूल के ऊपर दूसरी रेखा व निशानी है बिन्दी।
..❸ तीसरी रेखा फिर है त्रिशूल के नीचे जो लम्बी लाइन होती है, वह निशानी है लाइन क्लीयर और केयरफुल की। केयरफुल भी और क्लीयर भी। मार्ग के बीच में कोई भी रूकावट न आये। तो तीसरी निशानी है सीधा मार्ग पर एकरस हो चलने वाले।
प्रश्न 2 :- सर्विस पर जाने से पहले क्या करना हैं ?
उत्तर 2 :- बाबा कहते है :-
..❶ सर्विस पर जाने से पहले उन आत्माओं के ऊपर अपनी सर्च-लाइट डालने शुरू करना है। सर्चलाइट की रोशनी दूर से जाती है। आत्माओं को चुन सकते हो। यहाँ से ही कार्य शुरू करने से वहाँ जाते ही प्रत्यक्ष सबूत दिखाई देगा।
.. ❷ सर्चलाइट बनकर के ही चलते-फिरते हो। निरन्तर सर्चलाइट समझकर चारों ओर वायुमण्डल को बनाने का कर्त्तव्य अभी से ही करना है। जो वहाँ जाते ही वायुमण्डल के आकर्षण से समीप आने वाली आत्मायें अपना सहज ही भाग्य पा सकें।
..❸ क्योंकि अभी समय कम और सफलता हजार गुणा हो, वह प्लैन बनाना है। पहले समय ज्यादा और सफलता कम होती थी। प्लैन के पहले प्लेन बनना है। अगर प्लेन बन गये तो प्लैन प्रैक्टिकल में ठीक आ जायेगा।
प्रश्न 3 :- कौन-कौन सी ऐसी बाते है जो स्मृति में रख फिर कदम उठाना व संकल्प को वाणी में लाना है ?
उत्तर 3 :- स्मृति में रखना है कि --
..❶ हम सब एकमत हैं अर्थात् एक के ही मत पर एक मति।
..❷ वाणी में भी सदैव एक का ही नाम बार-बार अपने को वा दूसरों को स्मृति में दिलाना है।
..❸ चलन अथवा कर्म में इकॉनामी हो। न सिर्फ तन में इकॉनामी करनी है, लेकिन वाणी में भी इकॉनामी हो, संकल्प में भी इकॉनामी, समय में भी इकॉनामी। तो चलन में सभी प्रकार की इकॉनामी हो। यह तीनों ही बातें -- एक मति, एक का नाम अर्थात् एकनामी और फिर इकॉनामी। यह तीनों ही बातें सदैव स्मृति में रख फिर कदम उठाना वा संकल्प को वाणी में लाना है।
प्रश्न 4 :- जब कोई भी लेन-देन करते हो तो कौन-सा स्लोगन याद रखना है ?
उत्तर 4 :- कोई भी लेन-देन करते हो तो उसी समय एक सलोगन याद रखना है - बालक सो मालिक। जिस समय विचारों को देते हो तो मालिक बनकर देना चाहिए लेकिन जिस समय फाइनल होता है उस समय फिर बालक बन जाना है। सिर्फ मालिकपना भी नहीं, सिर्फ बालकपना भी नहीं। जिस समय जो कर्म करना है उस समय वही स्थिति होनी चाहिए।
प्रश्न 5 :- जब भी अन्य आत्माओं की सर्विस करते है तो सदैव स्मृति में क्या रखना हैं ?
उत्तर 5 :- बाबा कहते हैं कि :-
..❶ जब भी अन्य आत्माओं की सर्विस करते हो तो सदैव यह भी ध्यान में रखो कि दूसरों की सर्विस के साथ अपनी सर्विस भी करनी है - आत्मिक-स्थिति में अपने को स्थित रखना है।
..❷ अपनी सर्विस नहीं होती तो दूसरों की सर्विस में सफलता नहीं होगी। जैसे दूसरों को सुनाते हो कि बाप की याद अर्थात् अपनी याद वा अपनी याद अर्थात् बाप की याद। इस रीति से दूसरों की सर्विस अर्थात् अपनी सर्विस।
..❸ सदैव ऐसे समझो कि सर्विस के साथ-साथ अपने भी पुराने संस्कारों का अन्तिम- संस्कार करने हैं। जितना संस्कारों का संस्कार करेंगे उतना ही सत्कार मिलेगा। सभी आत्मायें आपके आगे मन से नमस्कार करेंगी।
FILL IN THE BLANKS:-
( बेसमझ, अनुभवीमूर्त, विजय, स्वच्छ, मानसिक, दर्पण, अर्पण, सर्विसएबुल, समय, सफलता, आत्मिक दृष्टि )
1 भक्ति भी एक तो बाहर की होती है, दूसरी होती है ______।
.. मानसिक
2 ______ का तिलक ______ आत्माओं को लगा हुआ है ।
.. विजय / सर्विसएबुल
3 अभी ______ कम और ______ हजार गुणा दिखानी है ।
.. समय / सफलता
4 जितना-जितना बुद्धि को सदैव ______ अर्थात् एक की याद में ______ करेंगे उतना ही स्वयं ______ बन जायेंगे ।
.. स्वच्छ / अर्पण / दर्पण
5 कितना भी बड़ा समझदार हो लेकिन आपके ______ और ______ के सामने बिल्कुल ही अपने को ______ समझेंगे ।
.. अनुभवीमूर्त / आत्मिक दृष्टि / बेसमझ
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】
1 :- सदैव ‘हाँ जी, हाँ जी’ का पाठ पक्का करना। जितना ‘हाँ जी, हाँ जी’ करेंगे उतना ही सभी जय-जयकार करेंगे।【✔】
2 :- रिद्धि-सिद्धि है अल्पकाल, लेकिन याद की विधि से संकल्पों और कर्मों की सिद्धि है अविनाशी । 【✔】
3 :- मन्मनाभव का मंत्र अर्थात् विजय का तिलक लगा है । 【✖】
.. सर्विस अर्थात् विजय का तिलक लगा है ।
4 :- पाण्डव पाँच हैं लेकिन मत हज़ार है ।【✖】
.. पाण्डव पाँच हैं लेकिन मत एक है ।
5 :- हम सब त्रिशूल चक्र लगाकर आत्माओं को यज्ञ में स्वाहा कराने लिए जा रहे हैं । 【✖】
.. हम सब अश्व चक्र लगाकर आत्माओं को यज्ञ में स्वाहा कराने लिए जा रहे हैं ।