==============================================================================
AVYAKT MURLI
15 / 04 / 74
=============================================================================
15-04-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विघ्न-विनाशक बन कर अंगद समान माया पर विजय प्राप्त करो
विघ्न-विनाशक, विश्व-पालक और माया पर विजय प्राप्त करा कर उमंग और उल्लास को बढ़ाने वाले शिवबाबा बोले :-
क्या सभी उन्नति की ओर बढ़ते जा रहे हो? चढ़ती कला की निशानी क्या है, क्या वह जानते हो? सदा लगन में मग्न और विघ्न-विनाशक यह दोनों निशानियाँ क्या अनुभव में आ रही हैं? या विघ्नों को देख विघ्न-विनाशक बनने के बजाय, विघ्नों को देख अपनी स्टेज से नीचे तो नहीं आ जाते हो? क्या अनेक प्रकार के आये हुए तूफान आपकी बुद्धि में तूफान तो पैदा नहीं करते हैं? जैसे कोई के द्वारा तोहफा मिलता है तो बुद्धि में हलचल नहीं होती है बल्कि उल्लास होता है। इसी प्रकार आये हुए तूफान उल्लास बढ़ाते हैं या हलचल बढ़ाते हैं? अगर तूफान को तूफान समझा तो हलचल होगी और तोहफा समझा व अनुभव किया तो उससे उल्लास और हिम्मत अधिक बढ़ेगी। यह है चढ़ती कला की निशानी। घबराने के बजाय गहराई में जाकर अनुभव के नये-नये रत्न इन परीक्षाओं के सागर से प्राप्त करेंगे तो क्या ऐसे अनुभव करते हो? यह क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और ऐसे कैसे चलेगा? यह जो संकल्प चलते हैं इसको हलचल कहा जाता है। हलचल के अन्दर रत्न समाये हुए हैं। ऊपर-ऊपर से अर्थात् बहिर्मुखता की दृष्टि और बुद्धि द्वारा देखने से हलचल दिखाई देगी अथवा अनुभव होगी? लेकिन उसी आई हुई बातों को अन्तर्मुखी दृष्टि व बुद्धि से देखने से अनेक प्रकार के ज्ञान-रत्न अर्थात् प्वाइन्ट्स प्राप्त होंगे।
अगर कोई भी बात को देखते या सुनते हुए आश्चर्य अनुभव होता है तो यह भी फाइनल स्टेज नहीं है। ऐसा तो होना नहीं चाहिए, अच्छा जो हुआ वह होना ही चाहिए, अगर ऐसा संकल्प ड्रामा के होने पर भी उत्पन्न होता है तो इसको भी अंशमात्र् की हलचल का रूप कहेंगे। अब तक यह क्यों-क्या का क्वेश्चन का अर्थ है - हलचल। विघ्न आना आवश्यक है और जितना विघ्न आना आवश्यक है अगर उतना यह बुद्धि में रहेगा तो उतना ही ऐसा महारथी हर्षित रहेगा। नथिंग न्यू यह है फाइनल स्टेज । यदि कोई भी हलचल का कर्त्तव्य करते हो व पार्ट बजाते हो तो सागर समान ऊपर से हलचल भले ही दिखाई दे रही हो अर्थात् चाहे कर्मेन्द्रियों की हलचल में आ रहे हों लेकिन स्थिति नथिंग न्यू की हो। एकाग्र, एकरस, एकान्त अर्थात् एक रचयिता और रचना के अन्त को जानने वाले त्रिकालदर्शी की स्टेज पर, क्या आराम से शान्ति की स्टेज पर स्थित हैं या कर्मेन्द्रियों की हलचल आन्तरिक स्टेज को भी हिलाती है? जब स्थूल सागर दोनों ही रूप दिखाता है तो क्या मास्टर ज्ञान सागर ऐसा रूप नहीं दिखा सकते? यह प्रकृति ने पुरूष से कॉपी की है। आप तो पुरूषोत्तम हो। जो प्रकृति अपनी क्वॉलिफिकेशन दिखा सकती है, क्या वह पुरूषोत्तम नहीं दिखा सकते?
अब समय किस ओर बढ़ रहा है यह जानते हो? अति की तरफ बढ़ रहा है। सभी तरफ अति दिखाई पड़ रही है। अन्त की निशानी अति है। तो जैसे प्रकृति समाप्ति की तरफ अति में जा रही है वैसे ही सम्पन्न बनने वाली आत्माओं के सामने अब परीक्षायें व विघ्न भी अति के रूप में आयेंगे। इसलिये आश्चर्य नहीं खाना है कि पहले यह नहीं था अब क्यों है? यह आश्चर्य भी नहीं। फाइनल पेपर में आश्चर्यजनक बातें क्वेश्चन के रूप में आयेंगी तब तो पास और फेल हो सकेंगे। न चाहते हुए भी बुद्धि में क्वेश्चन उत्पन्न न हों, यही तो पेपर है। और है भी एक सेकेण्ड का ही पेपर। क्यों का संकल्प चन्द्रवंशी की क्यू में लगा देगा। पहले तो सूर्यवंशी का राज्य होगा ना? चन्द्रवंशियों का नम्बर पीछे होगा। तो उनका, राज्य के तख्तनशीन बनने की क्यू में नम्बर आयेगा। इसलिए एकरस स्थिति में स्थित होने का अभ्यास निरन्तर हो। समस्या के सीट को सम्भालने नहीं लग जाओ। लेकिन सीट पर बैठ समस्या का सामना करना है। अब तो समस्या सीट की याद दिलाती है। विघ्न आता है, तो विशेष योग लगाते हो और भट्ठी रखते हो ना? इससे सिद्ध होता है कि दुश्मन ही शस्त्र की स्मृति दिलाते हैं लेकिन स्वत: और सदा-स्मृति नहीं रहती। निरन्तर योगी हो या अन्तर वाले योगी हो? टाइटल तो निरन्तर योगी का है ना? दुश्मन आवे ही नहीं, समस्या सामना न कर सके। सूली से कांटा बनना यह भी फाइनल स्टेज नहीं। सूली से कांटा बने और कांटे को फिर योगाग्नि से दूर से ही भस्म कर दें। कांटा लगे और फिर निकालो, यह फाइनल स्टेज नहीं है। कांटे को अपनी सम्पूर्ण स्टेज से समाप्त कर देना है-यह है फाइनल स्टेज। ऐसा लक्ष्य रखते हुए अपनी स्टेज को आगे चढ़ती कला की तरफ बढ़ाते चलो। बड़ी बात को छोटा अनुभव करना, इस स्टेज तक महारथी नम्बरवार यथा-शक्ति पहुंचे हैं। अब पहुंचना वहाँ तक है जो कि अंश और वंश भी समाप्त हो जाए।
आप सभी हिम्मत, उल्लास और सर्व के सहयोगी सदा रहते हुए चल रहे हो ना? कलियुगी दुनिया को समाप्त करने के लिये व परिवर्तन करने के लिए, माया को विदाई देने के लिये संगठन अर्थात् घेराव डाला हुआ है ना? मज़बूत घेराव डाला हुआ है या बीच-बीच में कोई ढीले हो जाते हैं अथवा थक तो नहीं जाते या चलते- चलते रूक तो नहीं जाते हो ना? न आगे बढ़ना, न पीछे हटना, जैसे-थे-वैसे रहना वह पाठ तो पक्का नहीं करते हो? समय धक्का लगावेगा तो चल पड़ेंगे, ऐसा सोच जहाँ के तहाँ रूक तो नहीं गये हो? किसी के किसी प्रकार के सहारे का तो इन्तज़ार करते हुए, खड़े तो नहीं हो गये हो? तो ऐसी स्टेज वालों को क्या कहेंगे? क्या इसको ही तो ‘अंगद’ की स्टेज नहीं समझते हो? अगर ऐसे रूक गये, तो फिर लास्ट वाले फास्ट चले जावेंगे। जब भी पहाड़ों पर बर्फ गिरती है और जम जाती है तो रास्ते रूक जाते हैं। तो फिर बर्फ को गलाने के लिए व उसे हटाने के लिये पुरूषार्थ करते है ना? यहाँ भी अगर बर्फ के माफिक जम जाते हो तो इससे सिद्ध होता है कि योग-अग्नि की कमी है। योग-अग्नि को तेज़ करो तो रास्ता क्लियर हो जायेगा। मिली हुई हिम्मत और उल्लास के प्वाइन्ट्स बुद्धि में दौड़ाओ तो रास्ता क्लियर हो जायेगा। अब की रिज़ल्ट में ऐसे आधा ही चल रहे हैं। इसलिए इसको आगे बढ़ाओ। यह रिज़ल्ट क्या पुरूषोत्तम आत्माओं को अच्छी लगती है? इसलिये न पुरूषार्थ की गति में अंगद बनो, न माया से हार खाने के लिये अंगद बनो, बल्कि विजयी बनने के लिए अंगद बनना है। अच्छा,
ऊंच-ते-ऊंच बाप द्वारा पालना लेने वाले, विश्व की पालना करने वाले, विष्णु-कुल की श्रेष्ठ आत्मायें, प्रकृति को परिवर्तन करने वाली पुरूषोत्तम आत्मायें, विश्व के आगे साक्षात्मूर्त्त प्रसिद्ध होने वाली आत्मायें और योगी तू आत्माओं के प्रति बाप-दादा का याद-प्यार और गुड मार्निग। अच्छा!
02-05-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
अब बाप-समान सर्व गुण सम्पन्न बनो
सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न बनाने वाले, अटल, अखण्ड और निर्विघ्न, विश्व के राज्य का अधिकारी बनाने वाले सर्व-शक्तिवान् शिव बाबा बोले:--
अपने आपको मास्टर ज्ञानसागर समझते हो? जैसे ज्ञान-सागर सर्व-शक्तियों से सम्पन्न हैं, ऐसे अपने को भी सर्व-प्राप्तियों से क्या सम्पन्न अनुभव करते हो? यह जो कहावत है, कि देवताओं के खजाने में अप्राप्त कोई भी वस्तु नहीं होती है-यह कहावत ब्राह्मणों की गाई हुई है या देवताओं की? सर्व संस्कार ब्राह्मण जीवन में ही तुम अनुभव करते हो, क्योंकि अभी तुम सर्व संस्कार अपने में भर रहे हो। तो यह गायन के संस्कार अभी से तुम अनुभव करते हो? क्योंकि इस समय ऊंच ते ऊंच बाप-दादा के तुम बच्चे हो। लेकिन तुम देवताई जीवन में मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कहलावेंगे। जब कि अभी सागर की सन्तान हो, तो सागर-समान सम्पन्न अभी होंगे या भविष्य में होंगे? ज्ञानसागर बाप बच्चों को सब में सम्पन्न अभी बनाते हैं। तब ही लास्ट स्टेज का गायन किया जाता है-सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी और सम्पूर्ण आहिंसक। महिमा में भी सबके साथ सम्पन्न व सम्पूर्ण शब्द है। यह सम्पन्न-पन का वर्सा बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन में ही मिलता है। अब अपने वर्से के अधिकारी हो या बनना है?
जब से बाप के बने, तब से वर्से के अधिकारी बने। वर्सा क्या है? क्या वर्से में सर्व प्राप्ति व सर्व का अखुट खज़ाना अनुभव करते हो? जब वर्से के अधिकारी हैं तो अधिकारी की निशानी क्या है? अधिकारी बाप-समान सदा कल्याणकारी, रहमदिल, महाज्ञानी, गुणदानी, बाप का हर संकल्प, हर बोल, हर कर्म द्वारा साक्षात्कार कराने वाला, साक्षात बाप-समान होगा। ऐसे अधिकारी का गायन है कि उसके जीवन में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। जो सर्व में सम्पन्न होता है, उसकी आंख व बुद्धि कोई किसी तरफ नहीं डूबती। वह सदा रूहानी नज़र में रहते हैं, अनेक व्यर्थ संकल्पों व अनेक तरफ बुद्धि व दृष्टि जाने से परे, सर्व फिक्रों से फारिग और अपने बाप द्वारा मिले हुए खजाने में सदा रमण करता रहता है। उनको दूसरा कोई अन्य संकल्प करने की भी फुर्सत नहीं रहती, क्योंकि बाप द्वारा मिले हुए खजाने को, स्वयं के प्रति व सर्व-आत्माओं के प्रति बाँटने व धारण करने में वह बहुत बिज़ी रहता है। सबसे बड़े-ते-बड़ा धन्धा, सबसे बड़े-ते-बड़ा दान या सबसे बड़े-ते-बड़ा पुण्य जो भी कहो, वह यही है। इतने श्रेष्ठ कार्य व श्रेष्ठ दान-पुण्य को छोड़कर और क्या करेंगे? क्या फुर्सत मिलती है, जो कि अन्य छोटे-छोटे व्यर्थ कार्य करने का संकल्प भी आवे या कार्य समाप्त कर लिया है क्या इसलिए फुर्सत है? समाप्त नहीं किया है, तो फिर फुर्सत कहाँ से आती है? इतने बड़े कार्य में बिज़ी रहने वाले, फिर गुड़ियों के खेल में क्या कोई एम-ऑब्जेक्ट (Aim Object) होती है? क्या कोई रिज़ल्ट निकलता है? इतने बड़े आदमी होकर हर कदम में पद्मों की कमाई करने वाले और ऐसी गुड़ियों का खेल खेलें, तो क्या इनको महान् समझदार कहेंगे? व्यर्थ संकल्प, गुड़ियों का ही तो खेल है। अभी तक भी ऐसे बचपने के संस्कार हैं क्या?
जिसका अपनी आवश्यक और समीप की चेतन शक्तियों, संकल्पों और बुद्धि अथवा मन और बुद्धि पर कन्ट्रोल नहीं, अधिकार नहीं या विजय नहीं तो क्या, विश्व के स्वराज्य का अधिकारी व विजयी रत्न बन सकता है? जिस राज्य के मुख्य अधिकारी अपने अधिकार में न हों, क्या वह राज्य अटल, अखण्ड, और निर्विघ्न चल सकता है? यह मन और बुद्धि आप आत्मा की समीप शक्तियाँ व मुख्य राज्य अधिकारी हैं, व कार्य अधिकारी हैं, यदि वह भी वश में नहीं, तो ऐसे को क्या कहा जायेगा? महान् विजयी या महान् कमज़ोर? तो अपने आपको देखो कि क्या मेरे मुख्य राज्य-अधिकारी, मेरे अधिकार में हैं? अगर नहीं, तो विश्व राज्य अधिकारी अथवा राजन् कैसे बनेंगे? अपने ही छोटे छोटे कार्यकर्त्ता अपने को धोखा दें, तो क्या ऐसे को महावीर कहा जायेगा? चैलेन्ज तो करते हो, कि हम लॉ और ऑर्डर सम्पन्न राज्य स्थापित कर रहे हैं। तो चैलेन्ज करने वाले के यह छोटे-छोटे कार्यकर्ता अर्थात् कर्मेन्द्रियाँ अपने ही लॉ और आर्डर में नहीं, और वे स्वयं ही कार्यकर्त्ता के वशीभूत हों तो क्या ऐसे वे विश्व में लॉ और ऑर्डर स्थापित कर सकते हैं? हर कर्मेन्द्रियाँ कहाँ तक अपने अधिकार में हैं? यह चैक करो और अभी से विजयीपन के संस्कार धारण करो। बाप-दादा का नाम बाला करने वाले ही बापसमान सम्पन्न होते हैं। अच्छा!
ऐसे इशारे से समझने वाले, हर कार्यकर्त्ता को अपने इशारे पर चलाने वाले, हर आत्मा को बाप की तरफ इशारा देने वाले, सदा अपने अधिकार को अनुभव में लाने वाले, सदा सम्पन्न, और सदा विजयी ऐसे समझदार बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार, गुडनाईट और नमस्ते।
इस मुरली का सार
बाप के वर्से के अधिकारी की निशानी बाप-समान सदा कल्याणकारी, रहमदिल, महाज्ञानी, गुणदानी, बाप का हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा साक्षात्कार कराने वाला साक्षात् बाप-समान होगा।
=============================================================================
QUIZ QUESTIONS
============================================================================
प्रश्न 1 :- चढ़ती कला की निशानी क्या है ?
प्रश्न 2 :- मास्टर ज्ञान सागर के रूप प्रति बापदादा ने क्या कहा?
प्रश्न 3 :- समय किस ओर बढ़ रहा है ? अंत की निशानी क्या है ?
प्रश्न 4 :- फाइनल स्टेज की निशानी क्या है ?
प्रश्न 5 :- बापदादा ने वर्से के अधिकारी की निशानी क्या बताई?
FILL IN THE BLANKS:-
( शस्त्र, समस्या, गुड़ियों, चन्द्रवंशी, सीट, बचपने, सुर्यवंशी, क्वेश्चन, व्यर्थ, क्यों, ब्राह्मण, विघ्न, दुश्मन,संस्कार, हलचल, महारथी, अपने )
1 अब तक यह क्यों-क्या का _______ का अर्थ है - _______। विघ्न आना आवश्यक है और जितना _______ आना आवश्यक है अगर उतना यह बुद्धि में रहेगा तो उतना ही _______ हर्षित रहेगा ।
2 _______ का संकल्प _______ की क्यू में लगा देगा। पहले तो _______ का राज्य होगा ना ? चन्द्रवंशियों का नम्बर पीछे होगा ।
3 अब तो _______ _______ की याद दिलाती है। विघ्न आता है तो विशेष योग लगाते हो और भट्ठी रखते हो ना ? इससे सिद्ध होता है कि _______ ही _______ की स्मृति दिलाते है लेकिन स्वतः और सदा-स्मृति नही रहती ।
4 सर्व संस्कार _______ जीवन में ही तुम अनुभव करते हो , क्योंकि अभी तुम सर्व _______ _______ में भर रहे हो ।
5 _______ संकल्प, _______ का ही तो खेल है। अभी तक भी ऐसे _______ के संस्कार है क्या ?
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- अगर कोई भी बात को देखते या सुनते हुए आश्चर्य अनुभव होता है तो यह भी फाइनल स्टेज नही है ।
2 :- एकरस स्थिति में स्थित होने का अभ्यास थोडा थोडा हो ।
3 :- इस समय ऊंचे ते ऊंच बाप-दादा के तुम बच्चे हो। लेकिन तुम ब्राह्मण जीवन में मास्टर सर्वशक्तिमान नही कहलावेंगे।
4 :- तब ही लास्ट स्टेज का गायन किया जाता है - सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी और सम्पूर्ण अहिंसक ।
5 :- बाप के वर्से के अधिकारी की निशानी बाप समान सदा कल्याणकारी, रहमदिल, महाज्ञानी, गुणदानी, बाप का हर संकल्प, बोल, कर्म द्वारा साक्षात्कार कराने वाला साक्षात बाप-समान होगा ।
============================================================================
QUIZ ANSWERS
============================================================================
प्रश्न 1 :- चढ़ती कला की निशानी क्या है
उत्तर 1 :- चढ़ती कला की निशानी है :-
❶ तूफान को तूफान समझा तो हलचल होगी और तोहफा समझा व अनुभव किया तो उल्लास व हिम्मत बढ़ेगी ।
❷ घबराने के बजाय गहराई में जाकर अनुभव के नए नए रत्न इन परीक्षाओं के सागर से प्राप्त करेंगे ।
❸ हलचल के अंदर रत्न समाए रहते है। उन्ही हलचल की बातों को अंतर्मुखी दृष्टि व बुद्धि से देखने से अनेक प्रकार के ज्ञान-रत्न अर्थात प्वाइंट्स प्राप्त होंगे ।
प्रश्न 2 :- बापदादा ने मास्टर ज्ञान सागर के रूप प्रति क्या कहा?
उत्तर 2 :- बापदादा ने मास्टर ज्ञान सागर के रुप प्रति कहा कि :-
❶ कोई भी हलचल का कर्तव्य करते हो व पार्ट बजाते हो तो सागर समान ऊपर से हलचल भले दिखाई दे लेकिन स्थिति नथिंग न्यू की होगी ।
❷ एकाग्र, एकरस, एकांत अर्थात एक रचयिता और रचना के अंत को जानने वाले त्रिकालदर्शी की स्टेज पर आराम से शांति की स्टेज पर स्थित होंगे ।
❸ नथिंग न्यू की स्टेज यह है फाइनल स्टेज।
प्रश्न 3 :- समय किस ओर बढ़ रहा है ? अंत की निशानी क्या है ?
उत्तर 3 :- समय अति की बढ़ रहा है और अंत की निशानी होगी:-
❶ जैसे प्रकृति समाप्ति की ओर अति में जा रही है वैसे ही सम्पन्न बनने वाली आत्माओं के सामने अब परीक्षाएं व विघ्न भी अति के रूप में आएंगे ।
❷ आत्माओं को अब आश्चर्य नही खाना है पहले नही था अब क्यों है ? यह आश्चर्य भी नही।
❸ फाइनल पेपर में आश्चर्यजनक बातें क्वेश्चन के रूप में आएंगी तब तो पास और फेल हो सकेंगे। न चाहते हुए भी बुद्धि में प्रश्न उत्पन्न न हो , यही तो पेपर है, वो भी सेकेंड का।
प्रश्न 4 :- फाइनल स्टेज की निशानी क्या है ?
उत्तर 4 :- सूली से कांटा बनना फाइनल स्टेज नही। फाइनल स्टेज है :-
❶ कांटे को अपनी सम्पूर्ण स्टेज से समाप्त कर देना ।
❷ बड़ी बात को छोटा अनुभव करना ।
❸ वह स्टेज जहाँ अंश और वंश भी समाप्त हो जाय।
प्रश्न 5 :- बापदादा ने वर्से के अधिकारी की निशानी क्या बताई?
उत्तर 5 :- वर्से के अधिकारी के निशानी है :-
❶ बाप समान सदा कल्याणकारी, रहमदिल, महाज्ञानी, गुणदानी, बाप का हर संकल्प, बोल, कर्म द्वारा साक्षात्कार कराने वाला साक्षात बाप-समान होगा।
❷ उसके जीवन मे अप्राप्त कोई वस्तु नही। जो सर्व में सम्पन्न होता है उसकी आंख व बुद्धि कोई किसी तरफ डूबती नही।
❸ सदा रूहानी नज़र में रहते , व्यर्थ संकल्पों व अनेक तरफ बुद्धि जाने से परे, सर्व फिक्र से फ़ारिग, बाप द्वारा मिले ख़जाने स्वयं प्रति , सर्व प्रति बाँटने व धारण करने में बिजी रहता है।
FILL IN THE BLANKS:-
( शस्त्र, समस्या, गुड़ियों, चन्द्रवंशी, सीट, बचपने, सुर्यवंशी, क्वेश्चन, व्यर्थ, क्यों, ब्राह्मण, विघ्न, दुश्मन,संस्कार, हलचल, महारथी, अपने )
1 अब तक यह क्यों-क्या का _______ का अर्थ है - _______। विघ्न आना आवश्यक है और जितना _______ आना आवश्यक है अगर उतना यह बुद्धि में रहेगा तो उतना ही ऐसा _______ हर्षित रहेगा ।
क्वेश्चन / हलचल / विघ्न / महारथी
2 _______ का संकल्प _______ की क्यू में लगा देगा। पहले तो _______ का राज्य होगा ना ? चन्द्रवंशियों का नम्बर पीछे होगा ।
क्यों / चन्द्रवंशी / सुर्यवंशी
3 अब तो _______ _______ की याद दिलाती है। विघ्न आता है तो विशेष योग लगाते हो और भट्ठी रखते हो ना ? इससे सिद्ध होता है कि _______ ही _______ की स्मृति दिलाते है लेकिन स्वतः और सदा-स्मृति नही रहती।
समस्या / सीट / दुश्मन / शस्त्र
4 सर्व संस्कार _______ जीवन में ही तुम अनुभव करते हो , क्योंकि अभी तुम सर्व _______ _______ में भर रहे हो ।
ब्राह्मण / संस्कार / अपने
5 _______ संकल्प, _______ का ही तो खेल है। अभी तक भी ऐसे _______ के संस्कार है क्या ?
व्यर्थ / गुड़ियों / बचपने
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- अगर कोई भी बात को देखते या सुनते हुए आश्चर्य अनुभव होता है तो यह भी फाइनल स्टेज नही है। 【✔️】
2 :- एकरस स्थिति में स्थित होने का अभ्यास थोडा थोडा हो । 【✖️】
एकरस स्थिति में स्थित होने का अभ्यास निरन्तर हो ।
3 :- इस समय ऊंचे ते ऊंच बाप-दादा के तुम बच्चे हो। लेकिन तुम ब्राह्मण जीवन में मास्टर सर्वशक्तिमान नही कहलावेंगे। 【✖️】
इस समय ऊंचे ते ऊंच बाप-दादा के तुम बच्चे हो। लेकिन तुम देवताई जीवन में मास्टर सर्वशक्तिमान नही कहलावेंगे ।
4 :- तब ही लास्ट स्टेज का गायन किया जाता है - सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी और सम्पूर्ण अहिंसक ?【✔️】
5 :- बाप के वर्से के अधिकारी की निशानी बाप समान सदा कल्याणकारी, रहमदिल, महाज्ञानी, गुणदानी, बाप का हर संकल्प, बोल, कर्म द्वारा साक्षात्कार कराने वाला साक्षात बाप-समान होगा। 【✔️】