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AVYAKT MURLI
16 / 05 / 74
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16-05-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
महारथीपन के लक्षण
रूहानी बच्चों के सहयोगी बन कर, उनकी हिम्मत और उल्लास को बढ़ाने वाले, सर्व प्रकार के बन्धन व वैभव के आकर्षण से परे रहने वाले और सदा एक-रस स्थिति में रहने वाले, निष्काम सेवी शिव बाबा बोले:-
इस समय सबके अन्दर सुनने की इच्छा है व समान बनने की इच्छा है? सुनने के बाद, हर बात समाने से समान बन जाते हैं और समाने से सामना करने की शक्ति स्वयं ही सहज आ जाती है। सामना करने की शक्ति से सर्व-कामनाओं से स्वत: ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है। क्या ऐसे अपने को मुक्त आत्मा अनुभव करते हो? किसी भी प्रकार का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करता? बन्धन-मुक्त ही योग-युक्त हो सकता है। यदि कोई भी स्वभाव, संस्कार, व्यक्ति अथवा वैभव का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित करता है, तो बाप की याद की आकर्षण सदैव नहीं रह सकती। किसी के भी वश होते समय, उस आत्मा के प्रति यही शब्द कहा जाता है कि, यह ‘वशीभूत’ है। वशीभूत होना, यह भी पाँच भूतों के साथ-साथ रॉयल रूप का भूत है। जैसे भूतों की प्रवेशता से अपना स्वरूप, अपना स्वभाव, अपना कर्त्तव्य, और अपनी शक्ति भूल जाती है, वैसे ही किसी बात के वशीभूत होने से, यही रूपरेखा बनती है। वशीकरण मन्त्र देने वाले कभी भी वशीभूत नहीं हो सकते। तो अब यह चैक करो कि कहीं वशीभूत तो नहीं हो?
आजकल बाप-दादा विशेष कार्यक्रम में बिज़ी रहते हैं। वह कौन-सा कार्य होगा? कोई भी कार्य में बाप के साथ बच्चों का सम्बन्ध होगा ना? तो अपने से सम्बन्धित कार्यक्रम को नहीं जानते हो? अमृत वेले जब बाप से गुडमार्निग व रूह-रूहान करने आते हो, तो उस समय अनुभव नहीं करते हो या उस समय लेने में ही ज्यादा बिजी रहते हो? क्या टच होता है? वर्तमान समय समाप्ति का समय, समीप आ रहा है। समाप्ति में लास्ट और फास्ट दोनों का प्रत्यक्ष रूप में साक्षात्कार होता है, बाप-दादा हर राज़ हरेक की सैटिंग और फिटिंग ये दोनों ही बातें देखते हैं। कोई-कोई अपने आपको सैट करने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन फिटिंग ठीक न होने के कारण, सैटिंग भी नहीं होती। फिटिंग क्या और सैटिंग क्या-यह तो आप जानते हो ना? ईश्वरीय मर्यादाओं में अपने आपको चलाना, यह ईश्वरीय मर्यादायें हैं फिटिंग। इन मर्यादाओं के आधार से स्थिति की सैटिंग होती है। बाप-दादा जब नम्बरवार महावीरों को देखते हैं व महारथियों के महारथी सैट की सैटिंग करते हैं, तो क्या देखते हैं? कोई न कोई बात की व मर्यादा की फिटिंग न होने के कारण, सीट पर सैट नहीं हो सकते। अभी-अभी सीट पर हैं और अभी-अभी सीट के बजाय कोई-न-कोई साईट पर दिखाई पड़ते हैं। तो बापदादा इसी कार्य में बिजी रहते हैं। उम्मीदवार दिखाई बहुत देते हैं और लाईन भी बहुत बड़ी दिखाई देती है लेकिन प्रमाण स्वरूप कोई कोई होता है।
उम्मीदवार बनने के लिए मुख्य कौन-सा पुरूषार्थ है? है बहुत सहज पुरूषार्थ, लेकिन अपनी कमज़ोरियों के कारण सहज को मुश्किल बना देते हैं। उम्मीदवार बनने का सहज पुरूषार्थ यही है कि हर बात में बाप की जो बच्चों के प्रति उम्मीद है, वह बाप की उम्मीद पूरी करना ही, उम्मीदवार बनना है। बाप की उम्मीदें पूरी करना, बच्चों के लिए मुश्किल होता है क्या? बच्चे का जन्म होता ही है, बाप की उम्मीदें पूरी करने के लिए। बच्चे का अपने जीवन का लक्ष्य ही यह होता है, बाप की उम्मीदें पूरी करना। इसको ही दूसरे शब्दों में ‘सन शोज़ फादर’ कहते हैं। तो ऐसा उम्मीदवार बनना आपके ब्राह्मण जीवन का मुख्य लक्ष्य है। जबकि बाप-दादा एक कदम के पीछे, लाखों कदम स्वयं भी सहयोगी बनकर हिम्मत और उल्लास बढ़ाते हैं, फिर मुश्किल क्यों? जबकि दुनिया कि सर्व मुश्किलातों को आप स्वयं ही मिटाने वाले हो, मुश्किल बात सहज अनुभव कराने वाले हो, ऐसे अनुभवी मूर्त के लिए कोई भी बात मुश्किल है, ऐसा सोच भी नहीं सकते। प्यादों का अनुभव, मुश्किल जानना ठीक है। लेकिन अभी अपने को किसी-न-किसी बात में, एक दो से कम नहीं समझते हो अर्थात् कोई प्रकार से अपने को महारथी समझते हो, लास्ट वाले भी ‘लास्ट इज फास्ट’ का लक्ष्य रखते हैं, तो महारथी हुए ना? किसी भी बात में, अपने को किसी के आगे झुकाना व अपनी कमजोरी महसूस करना, अच्छा नहीं समझते। अपने को प्रसिद्ध करने के लिए, हर बात को सिद्ध करते हो, तो इसको क्या कहा जायेगा? अपने को प्यादा समझते हो या किसी-न-किसी रूप में महारथी समझते हो? सिद्ध करने वाला कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता। वास्तव में प्रसिद्ध होने वाला कोई भी बात को सिद्ध नहीं करेगा। अर्थात् जिद्द करने वाला, ऐसा कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता। जिद् करने वाला, कभी सिद्धि को पा नहीं सकता। सिद्धि को पाने वाले, स्वयं को नम्रचित्त, निर्मान, हर बात में अपने आपको गुणग्राहक बनावेगा। लक्ष्य रखते हो प्रसिद्ध होने का और पुरूषार्थ करते हो दूर होने का, तो ऐसी चैकिंग अपनी करो। चैकिंग भी महीन चाहिए।
महारथी को कोई बात मुश्किल अनुभव हो, वह महारथी ही नहीं। महारथी अपने सहयोग से और बाप के सहयोग से औरों की मुश्किल भी सहज करेंगे। महारथियों के संकल्प में भी कभी ‘यह कैसे, ऐसे क्यों?’ यह प्रश्न नहीं उठ सकता। ‘कैसे’ के बजाए ‘ऐसे’ शब्द आयेगा। क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी हो ना? इन बातों को चैक करो। कैसे करूँ? कैसे होगा? यह न स्वयं प्रति न दूसरों के प्रति चले। दोनों ही रूप में प्रश्न समाप्त हों। ऐसा ही सदा प्रसन्नचित्त व हर्षित रहता है। अब समझा। महारथी के लक्षण क्या हैं? करने में कम नहीं। जब एक दो के सम्पर्क में आते हैं, तो एक-दो से स्वयं को कम नहीं समझते, समझने में हरेक अपने को अथॉरिटी समझते हैं और अपना हक रखते हैं। समझने और करने इन दोनों में हकदार बनो, तब ही विश्व के, इस ईश्वरीय परिवार की प्रशंसा के हकदार बनेंगे। कोई भी बात के मांगने वाले मंगता नहीं बनो, दाता बनो। मान, शान, प्रशंसा, बड़ापन आदि मांगने की इच्छा मत करो। मांगेंगे तो जैसे आजकल के मांगने वाले को कोई भी प्राप्ति नहीं कराते, और ही दूर से उसे भगावेंगे। इसी प्रकार यह रॉयल मांगने वाले स्वयं को सर्व आत्माओं से स्वत: ही दूर करते हैं। ऐसा महारथी सीट पर सैट नहीं होता। इसलिए अब आप सभी महारथी हो? घोड़े सवार व प्यादों का समय गया, अब हर महारथी को अपने महारथीपन के लक्षण सामने रखते हुए स्वयं में समाने हैं। अच्छा!
ऐसे सर्व इच्छाओं को समाने वाले, बाप-समान सर्वशक्तियों के अथॉरिटी, सदा एक लगन, एक रस स्थिति में स्थित होने वाले, एक बल एक भरोसा, सदा एकाग्र, एकान्त निवासी, अन्तर्मुखी और बाप-दादा के उम्मीदों के सितारों को बाप-दादा का याद प्यार, गुडनाइट और नमस्ते।
30-06-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
रूहानी सेना का मुख्य लॉ
रूहानी सेना के सर्वोच्च सेनापति शिव बाबा अपने बच्चों के प्रति बोले :-
रूहानी सेना सदैव शस्त्रधारी, लॉ एण्ड ऑर्डर में चलने वाली होती है। सेना का मुख्य गुण यही देखा जाता है, कि लॉ एण्ड ऑर्डर कहाँ तक है? तो क्या आप सब लॉ एण्ड ऑर्डर में हो? रूहानी सेना के लिए मुख्य लॉ कौन-सा है कि जिसमें सब लॉ आ जाएं? रूहानी सेना के लिए मुख्य लॉ यही है कि कभी भी अपनी देह को व अन्य देहधारी की तरफ नहीं देखना है। बाप की तरफ ही हर कदम उठाना है। यह है रूहानी सेना के लिए मुख्य लॉ। अगर जरा भी देहधारी व अपनी देह को देखा, तो जो मंजिल है कि-बाप तक पहुँचना व बाप से मिलना, तो वहाँ तक पहुंच नहीं सकेंगे। अच्छा।
इस मुरली का सार
(1) रूहानी सेना का मुख्य लॉ यही है कि कभी भी न तो अपनी देह और न ही अन्य किसी दूसरे की देह को देखना है।
(2) अपना हर कदम बाप की ओर ही उठाना है।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- बाबा ने वशीभूत के बारे में क्या दृष्टांत दिया है?
प्रश्न 2 :- फिटिंग और सैटिंग का अर्थ स्पष्ट करो?
प्रश्न 3 :- बापदादा ने महारथी की निशानी क्या बताई है?
प्रश्न 4 :- सिद्धि को पाने वाले बच्चे कैसे होंगे और कैसे नहीं?
प्रश्न 5 :- उम्मीदवार बनने का सहज पुरुषार्थ कौन सा होगा?
FILL IN THE BLANKS:-
( सुनने, सर्व-कामनाओं, बाप-दादा, अमृतवेले, फास्ट, शक्ति, मुक्ति, कार्यक्रम, रूहरिहान, लास्ट, सहज, सामना, कार्य, अनुभव, साक्षात्कार )
1 _____ के बाद, हर बात समाने से समान बन जाते हैं और समाने से सामना करने की _____ स्वयं ही _____ आ जाती है।
2 _____ करने की शक्ति से _____ से स्वत: ही _____ प्राप्त हो जाती है।
3 आजकल _____ विशेष _____ में बिज़ी रहते हैं। वह कौन-सा _____ होगा?
4 _____ जब बाप से गुडमार्निग व _____ करने आते हो, तो उस समय _____ नहीं करते हो या उस समय लेने में ही ज्यादा बिजी रहते हो?
5 समाप्ति में _____ और _____ दोनों का प्रत्यक्ष रूप में _____ होता है।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- बन्धन-मुक्त ही ज्ञान-युक्त हो सकता है।
2 :- महारथी को कोई बात मुश्किल अनुभव हो, वह महारथी ही नहीं।
3 :- रूहानी सेना के लिए मुख्य लॉ यही है कि कभी भी अपनी देह को व अन्य देहधारी की तरफ नहीं देखना है।
4 :- रूहानी सेना कभी-कभी शस्त्रधारी, लॉ एण्ड ऑर्डर में चलने वाली होती है।
5 :- रॉयल मांगने वाले स्वयं को सर्व आत्माओं से स्वत: ही दूर करते हैं।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- बाबा ने वशीभूत के बारे में क्या दृष्टांत दिया है?
उत्तर 1 :- बाबा ने वशीभूत के बारें में यह दृष्टांत दिया है :-
❶ यदि कोई भी स्वभाव, संस्कार, व्यक्ति अथवा वैभव का बन्धन अपनी तरफ आकर्षित करता है, तो बाप की याद की आकर्षण सदैव नहीं रह सकती। किसी के भी वश होते समय, उस आत्मा के प्रति यही शब्द कहा जाता है कि, यह ‘वशीभूत’ है।
❷ जैसे भूतों की प्रवेशता से अपना स्वरूप, अपना स्वभाव, अपना कर्त्तव्य, और अपनी शक्ति भूल जाती है, वैसे ही किसी बात के वशीभूत होने से, यही रूपरेखा बनती है।
❸ वशीभूत होना, यह भी पाँच भूतों के साथ-साथ रॉयल रूप का भूत है। वशीकरण मन्त्र देने वाले कभी भी वशीभूत नहीं हो सकते।
प्रश्न 2 :- फिटिंग और सैटिंग का अर्थ स्पष्ट करो?
उत्तर 2 :- फिटिंग और सैटिंग का अर्थ बापदादा ने स्पष्ट किया है कि:-
❶ ईश्वरीय मर्यादाओं में अपने आपको चलाना, यह ईश्वरीय मर्यादायें हैं फिटिंग। इन मर्यादाओं के आधार से स्थिति की सैटिंग होती है।
❷ बाप-दादा जब नम्बरवार महावीरों को देखते हैं व महारथियों के महारथी सैट की सैटिंग करते हैं, तो कोई न कोई बात की व मर्यादा की फिटिंग न होने के कारण, सीट पर सैट नहीं हो सकते।
❸ अभी-अभी सीट पर हैं और अभी-अभी सीट के बजाय कोई-न-कोई साईट पर दिखाई पड़ते हैं।
प्रश्न 3 :- बापदादा ने महारथी की निशानी क्या बताई है?
उत्तर 3 :- बापदादा ने महारथी की निशानी बताई है कि:-
❶ महारथी अपने सहयोग से और बाप के सहयोग से औरों की मुश्किल भी सहज करेंगे।
❷ महारथियों के संकल्प में भी कभी ‘यह कैसे, ऐसे क्यों?’ यह प्रश्न नहीं उठ सकता। ‘कैसे’ के बजाए ‘ऐसे’ शब्द आयेगा। क्योंकि मास्टर नॉलेजफुल, त्रिकालदर्शी हो ना? इन बातों को चैक करो।
❸ कैसे करूँ? कैसे होगा? यह न स्वयं प्रति न दूसरों के प्रति चले। दोनों ही रूप में प्रश्न समाप्त हों। ऐसा ही सदा प्रसन्नचित्त व हर्षित रहता है।
प्रश्न 4 :- सिद्धि को पाने वाले बच्चे कैसे होंगे और कैसे नहीं?
उत्तर 4 :- सिद्धि को पाने वाले बच्चे ऐसे होंगे :-
❶ किसी भी बात में, अपने को किसी के आगे झुकाना व अपनी कमजोरी महसूस करना, अच्छा नहीं समझते। अपने को प्रसिद्ध करने के लिए, हर बात को सिद्ध करते हो,
❷ अपने को प्यादा समझते हो या किसी-न-किसी रूप में महारथी समझते हो? सिद्ध करने वाला कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता।
❸ वास्तव में प्रसिद्ध होने वाला कोई भी बात को सिद्ध नहीं करेगा। अर्थात् जिद्द करने वाला, ऐसा कभी भी प्रसिद्ध नहीं हो सकता। जिद् करने वाला, कभी सिद्धि को पा नहीं सकता।
❹ सिद्धि को पाने वाले, स्वयं को नम्रचित्त, निर्मान, हर बात में अपने आपको गुणग्राहक बनावेगा।
प्रश्न 5 :- उम्मीदवार बनने का सहज पुरुषार्थ कौन सा है?
उत्तर 5 :- उम्मीदवार बनने का है बहुत सहज पुरूषार्थ, लेकिन अपनी कमज़ोरियों के कारण सहज को मुश्किल बना देते हैं। उम्मीदवार बनने का सहज पुरूषार्थ यही है कि हर बात में बाप की जो बच्चों के प्रति उम्मीद है, वह बाप की उम्मीद पूरी करना ही, उम्मीदवार बनना है। बाप की उम्मीदें पूरी करना, बच्चों के लिए मुश्किल होता है क्या? बच्चे का जन्म होता ही है, बाप की उम्मीदें पूरी करने के लिए। बच्चे का अपने जीवन का लक्ष्य ही यह होता है, बाप की उम्मीदें पूरी करना। इसको ही दूसरे शब्दों में ‘सन शोज़ फादर’ कहते हैं।
FILL IN THE BLANKS:-
( सुनने, सर्व-कामनाओं, बाप-दादा, अमृतवेले, फास्ट, शक्ति, मुक्ति, कार्यक्रम, रूहरिहान, लास्ट, सहज, सामना, कार्य, अनुभव, साक्षात्कार )
1 _____ के बाद, हर बात समाने से समान बन जाते हैं और समाने से सामना करने की _____ स्वयं ही _____ आ जाती है।
सुनने / शक्ति / सहज
2 _____ करने की शक्ति से _____ से स्वत: ही _____ प्राप्त हो जाती है।
सामना / सर्व-कामनाओं / मुक्ति
3 आजकल _____ विशेष _____ में बिज़ी रहते हैं। वह कौन-सा _____ होगा?
बापदादा / कार्यक्रम / कार्य
4 _____ जब बाप से गुडमार्निग व _____ करने आते हो, तो उस समय _____ नहीं करते हो या उस समय लेने में ही ज्यादा बिजी रहते हो?
अमृतवेले / रूहरिहान / अनुभव
5 समाप्ति में _____ और _____ दोनों का प्रत्यक्ष रूप में _____ होता है।
लास्ट / फास्ट / साक्षात्कार
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- बन्धन-मुक्त ही ज्ञान-युक्त हो सकता है।【✖】
बन्धन-मुक्त ही योग-युक्त हो सकता है।
2 :- महारथी को कोई बात मुश्किल अनुभव हो, वह महारथी ही नहीं।【✔】
3 :- रूहानी सेना के लिए मुख्य लॉ यही है कि कभी भी अपनी देह को व अन्य देहधारी की तरफ नहीं देखना है।【✔】
4 :- रूहानी सेना कभी-कभी शस्त्रधारी, लॉ एण्ड ऑर्डर में चलने वाली होती है।【✖】
रूहानी सेना सदैव शस्त्रधारी, लॉ एण्ड ऑर्डर में चलने वाली होती है।
5 :- रॉयल मांगने वाले स्वयं को सर्व आत्माओं से स्वत: ही दूर करते हैं।【✔】