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AVYAKT MURLI
23 / 05 / 74
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23-05-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
हद के आकर्षणों या विभूतियों से परे रहने वाला ही सच्चा वैष्णव
पाँच विकारों के साथ-साथ पाँच तत्वों के आकर्षण से परे ले जाने वाले, सच्चा वैष्णव बनाने वाले, वाणी से परे ले जाकर वानप्रस्थ स्थिति में स्थित करने वाले और गिरती कला से चढ़ती कला की ओर ले जाने वाले सत शिव बाबा रूहानी बच्चों से बोले:-
क्या अपने को एक सेकेण्ड में वाणी से परे वानप्रस्थ अवस्था में स्थित कर सकते हो? जैसे वाणी में सहज ही आ जाते हो, क्या वैसे ही वाणी से परे, इतना ही सहज हो सकते हो? कैसी भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का तूफान हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, जितना ही बाहर का तूफान हो, उतना स्वयं अचल, अटल, शान्त स्थिति में स्थित हो सकते हो? शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं है, लेकिन अशान्ति के वातावरण में भी शान्त रहना इसको ही ज्ञानस्वरूप, शक्तिस्वरूप, यादस्वरूप, और सर्वगुण-स्वरूप कहा जाता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के कारण होते हुए स्वयं निवारण-रूप बने, इसको कहा जाता है पुरूषार्थ का प्रत्यक्ष प्रमाण-रूप। ऐसे महावीर बने हो या अब तक वीर बने हो? किस स्टेज तक पहुंचे हो? महावीर की स्टेज सामने दिखाई देती है या समीप दिखाई देती है अथवा बाप-समान स्वयं को दिखाई देते हो?
बाप समान तीन स्टेज नम्बरवार हैं। एक है समान, दूसरी से समीप तीसरी है सामने। तो कहाँ तक पहुँचे हैं? समान वाले की निशानी-एक सेकेण्ड में जहाँ और जैसे चाहें, जो चाहें वह कर सकते हैं व करते हैं। सेकेण्ड स्टेज-एक सेकेण्ड के बजाय कुछ घड़ियों में, स्वयं को सैट कर सकते हैं। तीसरी स्टेज-कुछ घण्टों व दिनों तक स्वयं को सैट कर सकते हैं। समान वाले, सदा बाप समान, स्वयं के महत्व को, स्वयं की सर्वशक्तियों के महत्व को और हर पुरुषार्थी की नम्बरवार स्टेज को, गुणदान, ज्ञानधन दान और स्वयं के समय का दान, इन सबके महत्व को जानने वाले और चलने वाले होते हैं। वे कर्मों को, संस्कार और स्वभाव को जानने वाले ज्ञान स्वरूप होते हैं। क्या ऐसे ज्ञान-स्वरूप बने हो?
जितनी वाणी सुनने और सुनाने की जिज्ञासा रहती है, तड़प रहती है, चॉन्स बनाते भी हो क्या ऐसे ही फिर वाणी से परे स्थिति में स्थित होने का चॉन्स बनाने और लेने के जिज्ञासु हो? यह लगन स्वत: स्वयं में उत्पन्न होती है या समय प्रमाण, समस्या प्रमाण व प्रोग्राम प्रमाण यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है? फर्स्ट स्टेज तक पहुँची हुई आत्माओं की पहली निशानी, यह होगी। ऐसी आत्मा को, इस अनुभूति की स्थिति में मग्न रहने के कारण, कोई भी विभूति व कोई भी हद की प्राप्ति का आकर्षण उन्हें उनके संकल्प तक भी छू नहीं सकता। अगर कोई भी हद की प्राप्ति की आकर्षण, संकल्प में भी छूने की हिम्मत रखती है, तो इसको क्या कहेंगे? क्या ऐसे को वैष्णव कहेंगे? जैसे आजकल के नामधारी वैष्णव, अनेक प्रकार की परहेज़ करते हैं-कई व्यक्तियों और कई प्रकार की वस्तुओं से, अपने को छूने नहीं देते हैं। अगर अकारणें कोई छू लेते हैं, तो वह पाप समझते हैं। आप, जैसा नाम वैसा काम करने वाले, जैसा संकल्प वैसा स्वरूप बनने वाले सच्चे वैष्णव हो, ऐसे सच्चे वैष्णवों को क्या कोई छू सकने का साहस कर सकता है? अगर छू लेते हैं, तो छोटेमोटे पाप बनते जाते हैं। ऐसे सूक्ष्म पाप, आत्मा को ऊँच स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं। क्योंकि पाप अर्थात् बोझा; वह फरिश्ता बनने नहीं देते; बीज रूप स्थिति व वानप्रस्थ स्थिति में स्थित नहीं होने देते। आजकल मैजारिटी महारथी कहलाने वाले भी, अमृतवेले की रूह-रिहान में, वह कम्पलेन्ट करते व प्रश्न पूछते हैं कि पॉवरफुल स्टेज जो होनी चाहिये, वह क्यों नहीं होती? थोड़ा समय वह स्टेज क्यों रहती है? इसका कारण यह सूक्ष्म पाप हैं, जो बाप-समान बनने नहीं देते हैं।
जैसे पाँच विकारों के वश किये हुए कर्म, विकर्म या पाप कहे जाते हैं-यह हैं पापों का मोटा रूप। ऐसे ही महीन पुरूषार्थ अर्थात् महारथी के सामने, पाँच तत्व अपनी तरफ, भिन्न-भिन्न रूप से आकर्षित कर, महीन पाप बनाने के निमित्त बनते हैं। पाँच् विकारों को समझना, और उन्हों को जीतना, सहज है, लेकिन पाँच तत्वों के आकर्षण से परे रहना, यह महारथियों के लिए विशेष पुरूषार्थ है। जब इन दस को जानकर इन्हों पर विजय प्राप्त करेंगे, तब ही सच्चा दशहरा होगा। विजयदशमी इस स्थिति का ही यादगार है। महारथियों की चैकिंग, महीन होनी चाहिये। अष्ट रत्न, ऐसे विजयी ही प्रसिद्ध होंगे। प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाली, छोटी-छोटी गलतियाँ ऐसे महीन पुरुषार्थी के समक्ष क्या दिखाई देती हैं?
आजकल रॉयल पुरुषार्थी का, रॉयल सलोगन कौन-सा है? रॉयल पुरुषार्थी, किसको कहा जाता है? रॉयल शब्द उसको थमाने के लिये कहा जाता है कि जिसको हर बात में रॉयल्टी व सहज साधन चाहिए। साधनों के आधार से और प्राप्ति के आधार से पुरूषार्थ करने वाला रॉयल पुरुषार्थी कहा जाता है। रॉयल्टी का दूसरा अर्थ भी होता है। जो अब रॉयल पुरुषार्थी हैं, उनको धर्मराजपुरी में रॉयल्टी भी देनी पड़ती है। रॉयल पुरुषार्थी की निशानी क्या होती है, कि जिससे जान सको कि मैं रॉयल पुरुषार्थी तो नहीं हूँ? दूसरे को नहीं जानना है, लेकिन अपने को जानना है। जैसे स्थूल रॉयल्टी वाले, अपने अनेक रूप बनाते हैं, वैसे रॉयल पुरुषार्थी बहुरूपी और चतुर होते हैं, वे जैसा समय वैसा रूप धारण करेंगे। लेकिन रॉयल्टी में रीयल्टी नहीं होती, मिक्स होगा, लेकिन एक-रस स्थिति में अपने को फिक्स नहीं कर सकेंगे। ऐसे रॉयल पुरुषार्थी, खेल कौन-सा करते हैं-अप एण्ड डाउन अभी-अभी बहुत ऊंची स्टेज, अभी-अभी सबसे नीची स्टेज। चढ़ती कला में भी हीरो पार्टधारी और गिरती कला में ज़ीरो में हीरो। ऐसे पुरुषार्थी का कर्त्तव्य क्या होता है? स्वयं प्रकृति के व विकारों के वश, अल्पकाल के मायावी निर्भय रूप में रहना और अपने द्वारा दूसरों को भयभीत करने की बातें करना। उन्हों का स्लोगन क्या है-’यह कर लूँगा या वह कर लूँगी’-आपघात महापाप की भयभीत चलन व वैसा बोल उन लोगों का कर्त्तव्य है। ऐसे रॉयल पुरुषार्थी कभी नहीं बनना। कभी भी ऐसे रॉयल पुरुषार्थी के संग में नहीं आना। क्योंकि माया के वश होने वाली आत्माओं को और पुरुषार्थी बनने वाली आत्माओं को स्वयं के संग में लाकर प्रभावित करने की विशेषता माया द्वारा वरदान में प्राप्त होती है। ऐसे संग को बड़ी-ते- बड़ी दलदल समझना। जो कि बाहर से तो बहुत सुन्दर लेकिन अन्दर नाश करने वाली होती है। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को वर्तमान समय की, माया के रॉयल स्वरूप की सावधानी, पहले से ही दे रहे हैं। ऐसे संग से, सदा सावधान रहना और होशियार रहना। माया भी वर्तमान समय ऐसे रॉयल पुरूषार्थियों की माला बनाने में लगी हुई है। अपने मणके बहुत अच्छी तरह से और तीव्र पुरूषार्थ से ढूँढ रही है। इसलिये माया के मणके की माला नहीं बनना। अगर ऐसे माया के मणके के प्रभाव में आ गये, तो विजयमाला के मणकों से किनारे हो जायेंगे। क्योंकि आजकल दोनों ही मालाएँ-एक माया की और दूसरी विजयमाला बाप की, इन दोनों की सिलेक्शन बहुत तेज़ी से हो रही है। ऐसे समय में हर सेकेण्ड, चारों ओर अटेन्शन चाहिये। समझा?
ऐसे सदा सच्चे पुरुषार्थी, सच्चे बाप के साथ सदा सच्चे रहने वाले, पाँच विकारों और पाँच तत्वों की आकर्षण से सदा दूर रहने वाले, सहज वानप्रस्थ स्थिति में स्थित होने वाले, विजयमाला के विजयी मणकों को, बाप-दादा के सदा-साथ रहने वाले, सदा सत्य के संग में रहने वाले और व्यर्थ के संग से न्यारे रहने वाले, ऐसे प्यारे बाप के बच्चों को बाप-दादा का यादप्यार, गुडमार्निग और नमस्ते।
मुरली का सार
1. शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं, लेकिन अशान्ति के वातावरण में शान्त रहने वाला ही महान् कहलाता है।
2. बाप-समान स्टेज तक पहुंची हुई आत्माओं को, जिन्हें कोई भी विभूति या हद का आकर्षण छू नहीं सकता, वे ही सच्चे वैष्णव कहलाते हैं।
3. पाँच तत्वों के आकर्षण से परे रहना, महारथियों के लिए महीन पुरूषार्थ है।
4. सूक्ष्म-पाप आत्मा को, ऊंच स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं।
24-12-74 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
एक बार सहयोग देना अर्थात् अन्त तक सहयोग लेना
सहयोगी बच्चों के सदा व अन्त तक सहयोगी बनने वाले, रहमदिल शिव बाबा ने ये मधुर महावाक्य उच्चारे:-
बाप-दादा सदैव विदेशियों को नम्बर वन याद करता है। जैसे बांधेलियाँ पहले याद आती हैं, वैसे विदेश में रहने वाले बच्चे भी याद आते हैं। उनको भी बार-बार इस देश में न आ सकने का बन्धन है ना? बाप-दादा तो सबसे समीप देखते हैं। जो फॉरेन में सर्विस पर गये हैं, वह कोई दूर हैं क्या? वे आंखों के सामने भी नहीं हैं, लेकिन आंखों में जो समाया हुआ होता है, वह कभी दूर नहीं होता। वह तो सबसे समीप हुआ ना? आप आंखों के सामने रहती हो या आंखों में समाई हुई हो? जो समाये हुए हैं, वह हैं निरन्तर योगी। विदेश में रहने वाले बच्चे फिर भी नज़दीक आ जाते हैं, और जो नज़दीक हैं,देश के हिसाब से रहने वाले चार वर्ष में एक बार भी नहीं आते तो नजदीक कौन हुए? यह सारा सूक्ष्म कनेक्शन है। नज़दीक सम्बन्ध है, तब तो नजदीक आई हो। यह तो है ना? ड्रामानुसार देखो, इतने महारथियों के संकल्प साकार न हो सके। लेकिन एक बाप का ही संकल्प साकार हो गया, फिर तो समीप हुई ना? अपने को बाप-दादा से दूर मत समझो।
अपनी जन्मपत्री को देखना चाहिए कि आदि से लेकर अर्थात् जन्मते ही मेरी तकदीर की लकीर कैसी है? जिनको जन्म होने से ही तकदीर प्राप्त है; तकदीर बनाके आए हैं आदि समय की, उसी आधार पर पीछे भी उनको लिफ्ट मिलती है। शुरू से ही सहज प्राप्ति हुई है ना? मेहनत कम और प्राप्ति ज्यादा। यह लॉटरी मिली हुई है। एक रूपये की लाटरी में, लाखों मिल जायें तो मेहनत कम, प्राप्ति ज्यादा हुई ना? कोई भी बात में, अगर एक बार समय पर, बिना कोई संकल्प के, आज्ञा समझ कर जो सहयोगी बन जाते हैं, ऐसे समय के सहयोगियों को बाप-दादा भी अन्त तक सहयोग देने के लिए बाँधा हुआ है। एक बार का सहयोग देने का अन्त तक सहयोग लेने का अधिकारी बनाता है। एक का सौ गुना मिलने से मेहनत कम, प्राप्ति ज्यादा होती है। चाहे मन से, चाहे तन से अथवा धन से। लेकिन समय पर सहयोग दिया, तो बाप-दादा अन्त तक सहयोग देने के लिये बांधा हुआ है। जिसको दूसरे शब्दों में भक्त लोग अन्ध-श्रद्धा कहते हैं। ऐसा अगर कोई एक बार भी जीवन में बाप-दादा के कार्य में सहयोग दिया है, तो अन्त तक बाप-दादा सहयोगी रहेगा। यह भी एक हिसाब-किताब है। समझा। अच्छा।’’
महावाक्यों का सार
(1) अगर एक बार समय पर बिना कोई संकल्प के आज्ञा समझ कर जो सहयोगी बन जाते हैं ऐसे समय के सहयोगियों को बाप-दादा भी अन्त तक सहयोग देने के लिये बांधा हुआ है?
(2) जो बच्चे फॉरेन में सर्विस पर गए हुए हैं वे बाप-दादा की आंखों मे समाये हुए हैं।
(3) जो आंखों में समाये हुए हैं वह हैं -- निरन्तर योगी।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- तीन स्टेज के सन्दर्भ में बापदादा के महावाक्य क्या हैं?
प्रश्न 2 :- फर्स्ट स्टेज तक पहुँची हुई आत्माओं की पहली निशानी, क्या होगी?
प्रश्न 3 :- महारथी कहलाने वालों के लिये बापदादा ने क्या समझानी दी है?
प्रश्न 4 :- रॉयल पुरुषार्थी किसे कहा जाता है और उनकी निशानी क्या है?
प्रश्न 5 :- सहयोगी बच्चों के लिए बापदादा के महावाक्य क्या है?
FILL IN THE BLANKS:-
{ सुनने, बड़ी, वाणी, शान्त, जिज्ञासु, महान, प्रकार, हद, रूप, प्रमाण, छूने, तूफान, स्वयं, वैष्णव, स्थित }
1 शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं, लेकिन अशान्ति के वातावरण में ____ रहने वाला ही ____ कहलाता है।
2 भिन्न-भिन्न ____ के कारण होते हुए स्वयं निवारण-____ बने, इसको कहा जाता है पुरूषार्थ का प्रत्यक्ष ____ -रूप।
3 कैसी भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का ____ हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, जितना ही बाहर का तूफान हो, उतना ____ अचल, अटल, शान्त स्थिति में ____ हो सकते हो?
4 जितनी वाणी ____ और सुनाने की जिज्ञासा रहती है, तड़प रहती है, चॉन्स बनाते भी हो क्या ऐसे ही फिर ____ से परे स्थिति में स्थित होने का चॉन्स बनाने और लेने के ____ हो?
5 अगर कोई भी ____ की प्राप्ति की आकर्षण, संकल्प में भी ____ की हिम्मत रखती है, तो इसको क्या कहेंगे? क्या ऐसे को ____ कहेंगे?
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- ऐसे संग को बड़ी-ते- बड़ी दलदल समझना। जो कि बाहर से तो बहुत सुन्दर लेकिन अन्दर नाश करने वाली होती है।
2 :- सूक्ष्म-पाप आत्मा को, नीचे स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं।
3 :- बाप-दादा सदैव विदेशियों को नम्बर वन याद करता है। जैसे बांधेलियाँ पहले याद आती हैं, वैसे विदेश में रहने वाले बच्चे भी याद नहीं आते हैं।
4 :- विदेश में रहने वाले बच्चे फिर भी नज़दीक आ जाते हैं, और जो नज़दीक हैं,देश के हिसाब से रहने वाले चार वर्ष में एक बार भी नहीं आते तो नजदीक कौन हुए?
5 :- अगर कोई एक बार भी जीवन में बाप-दादा के कार्य में सहयोग नहीं दिया है, तो अन्त तक बाप-दादा सहयोगी रहेगा। यह भी एक हिसाब-किताब है।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- तीन स्टेज के सन्दर्भ में बापदादा के महावाक्य क्या हैं?
उत्तर 1 :- बापदादा कहते हैं बाप समान तीन स्टेज नम्बरवार हैं।
❶ एक है समान, दूसरी है समीप तीसरी है सामने।
❷ समान वाले की निशानी-एक सेकेण्ड में जहाँ और जैसे चाहें, जो चाहें वह कर सकते हैं व करते हैं।
❸ समान वाले, सदा बाप समान, स्वयं के महत्व को, स्वयं की सर्वशक्तियों के महत्व को और हर पुरुषार्थी की नम्बरवार स्टेज को, गुणदान, ज्ञानधन दान और स्वयं के समय का दान, इन सबके महत्व को जानने वाले और चलने वाले होते हैं। वे कर्मों को, संस्कार और स्वभाव को जानने वाले ज्ञान स्वरूप होते है।
❹ सेकेण्ड स्टेज-एक सेकेण्ड के बजाय कुछ घड़ियों में, स्वयं को सैट कर सकते हैं।
❺ तीसरी स्टेज-कुछ घण्टों व दिनों तक स्वयं को सैट कर सकते हैं।
प्रश्न 2 :- फर्स्ट स्टेज तक पहुँची हुई आत्माओं की पहली निशानी, क्या होगी?
उत्तर 2 :- बापदादा कहते है
❶ ऐसी आत्मा को, इस अनुभूति की स्थिति में मग्न रहने के कारण, कोई भी विभूति व कोई भी हद की प्राप्ति का आकर्षण उन्हें उनके संकल्प तक भी छू नहीं सकता, वे ही सच्चे वैष्णव कहलाते हैं।
❷ आप, जैसा नाम वैसा काम करने वाले, जैसा संकल्प वैसा स्वरूप बनने वाले सच्चे वैष्णव हो, ऐसे सच्चे वैष्णवों को क्या कोई छू सकने का साहस कर सकता है?
❸ अगर छू लेते हैं, तो छोटेमोटे पाप बनते जाते हैं। ऐसे सूक्ष्म पाप, आत्मा को ऊँच स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं।
❹ क्योंकि पाप अर्थात् बोझा; वह फरिश्ता बनने नहीं देते; बीज रूप स्थिति व वानप्रस्थ स्थिति में स्थित नहीं होने देते।
प्रश्न 3 :- महारथी कहलाने वालों के लिये बापदादा ने क्या समझानी दी है?
उत्तर 3 :- बापदादा कहते हैं :-
❶ यह सूक्ष्म पाप हैं, जो महारथियों को बाप-समान बनने नहीं देते हैं। जैसे पाँच विकारों के वश किये हुए कर्म, विकर्म या पाप कहे जाते हैं- यह हैं पापों का मोटा रूप।
❷ ऐसे ही महीन पुरूषार्थ अर्थात् महारथी के सामने, पाँच तत्व अपनी तरफ, भिन्न-भिन्न रूप से आकर्षित कर, महीन पाप बनाने के निमित्त बनते हैं।
❸ पाँच विकारों को समझना, और उन्हों को जीतना, सहज है, लेकिन पाँच तत्वों के आकर्षण से परे रहना, यह महारथियों के लिए विशेष पुरूषार्थ है।
❹ जब इन दस को जानकर इन्हों पर विजय प्राप्त करेंगे, तब सच्चा दशहरा होगा। विजयदशमी इस स्थिति का ही यादगार है। महारथियों की चैकिंग, महीन होनी चाहिये। अष्ट रत्न, ऐसे विजयी ही प्रसिद्ध होंगे।
प्रश्न 4 :- रॉयल पुरुषार्थी किसे कहा जाता है और उनकी निशानी क्या है?
उत्तर 4 :- बापदादा कहते हैं :-
❶ साधनों के आधार से और प्राप्ति के आधार से पुरूषार्थ करने वाला रॉयल पुरुषार्थी कहा जाता है। जो अब रॉयल पुरुषार्थी हैं, उनको धर्मराजपुरी में रॉयल्टी भी देनी पड़ती है।
❷ रॉयल पुरुषार्थी बहुरूपी और चतुर होते हैं, वे जैसा समय वैसा रूप धारण करेंगे। लेकिन रॉयल्टी में रीयल्टी नहीं होती, मिक्स होगा, लेकिन एक-रस स्थिति में अपने को फिक्स नहीं कर सकेंगे।
❸ रॉयल पुरुषार्थी, खेल कौन-सा करते हैं-अप एण्ड डाउन अभी-अभी बहुत ऊंची स्टेज, अभी-अभी सबसे नीची स्टेज। चढ़ती कला में भी हीरो पार्टधारी और गिरती कला में ज़ीरो में हीरो।
❹ ऐसे पुरुषार्थी का कर्त्तव्य क्या होता है? स्वयं प्रकृति के व विकारों के वश, अल्पकाल के मायावी निर्भय रूप में रहना और अपने द्वारा दूसरों को भयभीत करने की बातें करना।
❺ उन्हों का स्लोगन क्या है-’यह कर लूँगा या वह कर लूँगी’-आपघात महापाप की भयभीत चलन व वैसा बोल उन लोगों का कर्त्तव्य है। ऐसे रॉयल पुरुषार्थी कभी नहीं बनना।
❻ क्योंकि माया के वश होने वाली आत्माओं को और पुरुषार्थी बनने वाली आत्माओं को स्वयं के संग में लाकर प्रभावित करने की विशेषता माया द्वारा वरदान में प्राप्त होती है।
❼ इसलिए बापदादा सभी बच्चों को वर्तमान समय की, माया के रॉयल स्वरूप की सावधानी, पहले से ही दे रहे हैं। ऐसे संग से, सदा सावधान रहना और होशियार रहना।
❽ माया भी वर्तमान समय ऐसे रॉयल पुरूषार्थियों की माला बनाने में लगी हुई है। अपने मणके बहुत अच्छी तरह से और तीव्र पुरूषार्थ से ढूँढ रही है। इसलिये माया के मणके की माला नहीं बनना।
❾ क्योंकि आजकल दोनों ही मालाएँ-एक माया की और दूसरी विजयमाला बाप की, इन दोनों की सिलेक्शन बहुत तेज़ी से हो रही है। ऐसे समय में हर सेकेण्ड, चारों ओर अटेन्शन चाहिये।
प्रश्न 5 :- सहयोगी बच्चों के लिए बापदादा के महावाक्य क्या है?
उत्तर 5 :- बापदादा कहते हैं :-
❶ अगर एक बार समय पर बिना कोई संकल्प के आज्ञा समझ कर जो सहयोगी बन जाते हैं ऐसे समय के सहयोगियों को बाप-दादा भी अन्त तक सहयोग देने के लिये बांधा हुआ है।
❷ एक बार का सहयोग देने का अन्त तक सहयोग लेने का अधिकारी बनाता है। एक का सौ गुना मिलने से मेहनत कम, प्राप्ति ज्यादा होती है।
❸ चाहे मन से, चाहे तन से अथवा धन से। लेकिन समय पर सहयोग दिया, तो बाप-दादा अन्त तक सहयोग देने के लिये बांधा हुआ है। जिसको दूसरे शब्दों में भक्त लोग अन्ध-श्रद्धा कहते हैं।
❹ जो बच्चे फॉरेन में सर्विस पर गए हुए हैं वे बाप-दादा की आंखों मे समाये हुए हैं। जो आंखों में समाये हुए हैं वह हैं -- निरन्तर योगी।
FILL IN THE BLANKS:-
{ सुनने, बड़ी, वाणी, शान्त, जिज्ञासु, महान, प्रकार, हद, रूप, प्रमाण, छूने, तूफान, स्वयं, वैष्णव, स्थित }
1 शान्ति में शान्त रहना बड़ी बात नहीं, लेकिन अशान्ति के वातावरण में ____ रहने वाला ही ____ कहलाता है।
बड़ी / शान्त / महान
2 भिन्न-भिन्न ____ के कारण होते हुए स्वयं निवारण-____ बने, इसको कहा जाता है पुरूषार्थ का प्रत्यक्ष ____ -रूप।
प्रकार / रूप / प्रमाण
3 कैसी भी परिस्थिति हो, वातावरण हो, वायुमण्डल हो या प्रकृति का ____ हो लेकिन इन सबके होते हुए, देखते हुए, सुनते हुए, महसूस करते हुए, जितना ही बाहर का तूफान हो, उतना ____ अचल, अटल, शान्त स्थिति में ____ हो सकते हो?
तूफान / स्वयं / स्थित
4 जितनी वाणी ____ और सुनाने की जिज्ञासा रहती है, तड़प रहती है, चॉन्स बनाते भी हो क्या ऐसे ही फिर ____ से परे स्थिति में स्थित होने का चॉन्स बनाने और लेने के ____ हो?
सुनने / वाणी / जिज्ञासु
5 अगर कोई भी ____ की प्राप्ति की आकर्षण, संकल्प में भी ____ की हिम्मत रखती है, तो इसको क्या कहेंगे? क्या ऐसे को ____ कहेंगे?
हद / छूने / वैष्णव
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 【✔】【✖】
1 :- ऐसे संग को बड़ी-ते- बड़ी दलदल समझना। जो कि बाहर से तो बहुत सुन्दर लेकिन अन्दर नाश करने वाली होती है।【✔】
2 :- सूक्ष्म-पाप आत्मा को, नीचे स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं। 【✖】
सूक्ष्म-पाप आत्मा को, ऊंच स्टेज पर जाने से रोकने के निमित्त बन जाते हैं।
3 :- बापदादा सदैव विदेशियों को बाद में याद करता है। जैसे बांधेलियाँ पहले याद आती हैं, वैसे विदेश में रहने वाले बच्चे भी याद आते हैं।【✖】
बापदादा सदैव विदेशियों को नम्बर वन याद करता है। जैसे बांधेलियाँ पहले याद आती हैं, वैसे विदेश में रहने वाले बच्चे भी याद आते हैं।
4 :- विदेश में रहने वाले बच्चे फिर भी नज़दीक आ जाते हैं, और जो नज़दीक हैं,देश के हिसाब से रहने वाले चार वर्ष में एक बार भी नहीं आते तो नजदीक कौन हुए?【✔】
5 :- अगर कोई एक बार भी जीवन में बाप-दादा के कार्य में सहयोग नहीं दिया है, तो अन्त तक बाप-दादा सहयोगी रहेगा। यह भी एक हिसाब-किताब है।【✖】
अगर कोई एक बार भी जीवन में बाप-दादा के कार्य में सहयोग दिया है, तो अन्त तक बाप-दादा सहयोगी रहेगा। यह भी एक हिसाब-किताब है।