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AVYAKT MURLI

08 / 07 / 74

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   08-07-74   ओम शान्ति   अव्यक्त बापदादा    मधुबन

मास्टर नॉलेजफुल व सर्व-शक्तिवान् विभिन्न प्रकार की क्यू से मुक्त

सर्व सम्बन्धों की रसना देने वाले, सर्व इच्छाएं पूर्ण करने वाले अव्यक्त मूर्त बाप-दादा बोले:-

आज कौन-सा मेला कहेंगे?-बाप और बच्चों का। वह तो लौकिक सम्बन्ध में भी होता है। लेकिन आज के मेले की विशेषता क्या है जो और कहीं भी नहीं होती? आत्माओं और परमात्मा का मेला तो है ही,और कोई अलौकिक बात सुनाओ। इसकी विशेषता यह है कि यह मेला एक ही समय, एक से सर्व सम्बन्धों से, सर्व-सम्बन्ध के स्नेह और प्राप्ति का मेला है। सिर्फ बाप और बच्चों का, सद्गुरू और फॉलो करने वाले व समान बनने वाले आज्ञाकारी बच्चों का ही नहीं, लेकिन एक ही समय, एक से सर्व-सम्बन्धों से मिलन मनाने का अलौकिक मेला है। यह अलौकिकता व विशेषता और कहीं नहीं मिलेगी। ऐसा मेला मनाने सब सागर के कण्ठे पर आये हुए हैं। जबकि सर्व-सम्बन्धों से सर्व-प्राप्ति कर सकते हो तो सिर्फ एक-दो सम्बन्ध से मिलन व प्राप्ति करने में राजी नहीं हो जाना है। थोड़े में राजी होने वाले, भक्त कहलाये जाते हैं। बच्चे सर्व-सम्बन्ध और सर्व-प्राप्ति के अधिकारी हैं। इसी अधिकार को प्राप्त करने वाली आत्मायें, ज्ञानी तू आत्मा और योगी तू आत्मा बाप को प्रिय है। अपने से पूछो ऐसे बाप के प्रिय बने हो? क्या  समान निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी, नष्टोमोहा और स्मृतिस्वरूप बने हो? स्मृति स्वरूप बनने वाले की निशानी क्या अनुभव होगी? वह सदा सर्व-समर्थी-स्वरूप होगा।

नष्टोमोहा बनने के लिए सहज युक्ति कौन-सी है? इसके तो अनुभवी हो ना?-सदैव अपने सामने सर्व-सम्बन्धों से बाप को देखना और सर्व-सम्बन्धों द्वारा सर्व-प्राप्तियों को देखना। अब सर्व-सम्बन्ध और सर्व प्राप्तियाँ एक द्वारा अनुभव हो रही हैं, तो फिर और कोई सम्बन्ध व प्राप्ति रह जाती है क्या? जहाँ मोह अर्थात् लगाव है तो क्या सहज व स्वत: ही अनेक तरफ से तोड़, एक तरफ से जोड़ने का अनुभव नहीं होता है? अब तक भी कहीं और किसी के साथ लगाव व मोह है, तो सिद्ध होता कि सर्व-सम्बन्ध और सर्व प्राप्तियों का अनुभव नहीं कर रहे हैं।

आज बाप और बच्चों की रूह-रूहान व मिलन-मेले का समाचार सुनाते हैं। समाचार सुनने में सबको इन्ट्रेस्ट आता है ना? अब इस समाचार में देखना कि मैं कहाँ हूँ?

पहले तो अमृत वेले का समाचार सुनाते हैं। अमृत वेले के भिन्न-भिन्न पोज़ और पाज़ीशन पहले भी सुनाई थी, आज और बात सुनाते हैं। जैसे अमृतवेला प्रारम्भ होता है तो चारों ओर सर्व-बच्चे पहले तो नम्बर मिलाने का पुरूषार्थ करते हैं या फिर कनेक्शन जोड़ने का पुरूषार्थ करते हैं। फिर क्या होता है लाइन क्लियर होने के कारण कोई का तो नम्बर जल्दी मिल जाता है और कोई नम्बर मिलाने में ही समय बिता देते हैं। कोई-कोई नम्बर न मिलने के कारण दिलशिकस्त बन जाते हैं और कोई-कोई नम्बर मिलाते तो बाप से हैं, परन्तु बीच-बीच में कनेक्शन माया से जुट जाता है। ऐसा माया इन्टरफियर करती है कि जो वह चाहते हुए भी कनेक्शन तोड़ नहीं सकते। जैसे यहाँ भी आपकी इस दुनिया में कोई राँग नम्बर मिल जाता है, तो वह कहने से भी कट नहीं करते हैं, आप उनको और वह आपको कहेंगे कि कट करो। ऐसे ही माया भी उसी समय कमजोर बच्चों का कनेक्शन ही तोड़ देती है और उन्हीं को तंग भी करती है। क्यों तंग करती है, उसका भी कारण है। क्योंकि वे सारा दिन अलबेले और आलस्य के वश होते हैं और उनका अटेन्शन कम होता है। ऐसी अलबेली आत्माओं को माया भी विशेष वरदान के समय बाप की आज्ञा पर न चलने का बदला लेती है और ऐसी आत्माओं का दृश्य बहुत आश्चर्यजनक दिखाई देता है। अमृतवेले के थोड़े से समय के बीच अनेक स्वरूप दिखाई देते हैं। एक तो कभी-कभी बाप को स्नेह से सहयोग लेने की अर्ज़ी डालते रहते हैं। कभी-कभी बाप को खुश करने के लिए बाप को ही बाप की महिमा और कर्त्तव्य की याद दिलाते रहते है कि आप तो रहमदिल हो, आप तो सर्वशक्तिमान् हो, वरदानी हो, बच्चों के लिए ही तो आये हो आदि आदि। कभी-कभी फिर जोश में आकर, माया से परेशान हो सर्वशक्तियाँ रूपी शस्त्र यूज़ करने का प्रयत्न करते हैं। वे फिर कभी तलवार चलाते हैं, और कभी ढाल को सामने रखते हैं। लेकिन जोश के साथ आज्ञाकारी, वफादार और निरन्तर स्मृति स्वरूप बनने का होश न होने के कारण उन्हों का जोश यथार्थ निशाने पर नहीं पहुँच सकता। यह दृश्य बड़ा हँसी का होता है।

कोई-कोई फिर ऐसे भोले बच्चे होते हैं जो कि ईश्वरीय प्राप्ति और माया के अन्तर को भी नहीं जानते। निद्रा को ही शान्त-स्वरूप और बीज रूप स्टेज समझ लेते हैं। अल्पकाल के निद्रा द्वारा रेस्ट के सुख को अतीन्द्रिय सुख समझ लेते हैं। ऐसे अनेक प्रकार के बच्चे अनेक प्रकार के दृश्य दिखाते रहते हैं। लेकिन जो महारथी बच्चे अब तक गिनती के हैं या जो आप लोगों की गिनती में हैं वे उनसे भी कम हैं। आप लोग तो अष्ट समझते हो। लेकिन बाप की गिनती में अष्ट कम हैं। अब तक अष्ट रत्नों के अष्ट शक्ति स्वरूप, संकल्प, बोल और कर्म बाप समान बनने की स्टेज प्राप्त करते जा रहे हैं। ऐसे अष्ट रत्नों से मिलने के लिए ड्रामानुसार बाप से मिलने में विशेष अधिकार प्राप्त नूँधा हुआ है। उन्हों को नम्बर मिलाने की आवश्यकता नहीं क्योंकि उन आत्माओं का कनेक्शन निरन्तर है। यह वायरलेस का कनेक्शन वाइसलेस (निर्विकारी) आत्माओं को ही प्राप्त होता है। संकल्प किया और मिलन हुआ। ऐसे वरदानी बच्चे बहुत कम हैं। यह है अमृत वेले का दृश्य।

बापदादा के पास सारे दिन में पाँच प्रकार की क्यू लगती है (1) एक क्यू  होती है भिन्न-भिन्न प्रकार की अर्ज़ी ले आने वालों की, कभी स्वयं के प्रति अर्ज़ी ले आते हैं कि हमे शक्ति दो, सहयोग दो, बुद्धि का ताला खोलो, हिम्मत दो या युक्ति दो। कभी फिर अन्य सम्पर्क में आने वाली आत्माओं की अर्ज़ी ले आते हैं कि मेरे पति व फलाने सम्बन्धी की बुद्धि का ताला खोल दो। कभी-कभी अपनी की हुई सर्विस की सफलता न देखकर यह भी अर्ज़ी करते हैं कि हमारी सफलता हो जाए, सर्विस हम करेंगे और सफलता आप देना। हमारी याद की यात्रा निरन्तर और पॉवरफुल हो जाए। हमारे यह संस्कार खत्म हो जायें। ऐसी भिन्न-भिन्न प्रकार की अर्ज़ी डालने वाले बाप के पास आते रहते हैं।

(2) दूसरी क्यु होती है कम्पलेन्ट करने वालों की। उन्हों की भाषा ही ऐसी होती है-यह क्यों, यह कैसे, कब और क्यों होगा? मैं चाहती हूँ, फिर भी क्यों नहीं होता, याद क्यों नहीं ठहरती? लौकिक और अलौकिक परिवार से सहयोग क्यों नहीं मिलता? ऐसी अनेक प्रकार की कम्पलेन्ट्स होती हैं। उनमें भी विशेष दो बातों में कि व्यर्थ संकल्प क्यों आते हैं, शरीर का रोग क्यों आता है, याद क्यों टूटती है आदि? इस प्रकार की कम्पलेन्ट्स की क्यू लम्बी होती है।

(3) कई बाप-दादा को ज्योतिषी समझ कर क्यू लगाते हैं। क्या हमारी बीमारी मिटेगी? क्या सर्विस में सफलता होगी? क्या मेरा फलाना सम्बन्धी ज्ञान में चलेगा? क्या हमारे गाँव व शहर में सर्विस वृद्धि को पावेगी? क्या व्यवहार में सफलता होगी? यह व्यवहार करूँ या यह व्यवहार छोडूं? बिजनेस करूँ या नौकरी करूँ? क्या मैं महारथी बन सकती हूँ? क्या आप समझते हो, कि मैं बनूँगी? ऐसे-ऐसे गृहस्थ-व्यवहार की छोटी-छोटी बातें, कि क्या मेरी सास का क्रोध कम होगा? मैं बांधेली या बाँधेला हूं, क्या मेरा बन्धन टूटेगा? क्या मैं स्वतन्त्र बनूंगी व बनूंगा अथवा कई यह भी विशेष बातें पूछते हैं कि क्या मैं टोटल सरेण्डर हूंगा? क्या मेरी यह इच्छा पूरी होगी? ऐसे यह भी क्यू होती है।

(4) चौथी क्यू होती है उल्हना देने वालों की। आप ऐसे टाइम पर क्यों आये जब हम बुड्ढी बन गई और अब मैं बीमार शरीर वाली बन गई? आपने पहले क्यों नहीं जगाया? देरी से क्यों जगाया? आप सिन्ध देश में ही क्यों आये? पहले वहाँ की बहनें क्यों निकलीं? संगमयुग पर हमें गोप क्यों बनाया? शक्ति फर्स्ट यह रीति रस्म क्यों बनी? क्या इस लास्ट जन्म में ही मुझे बान्धेली बनना था? ऐसा कर्म- बन्धन मेरा ही क्यों बना? मुझे गरीब क्यों बनाया, कि जो मैं धन से सहयोग नहीं कर सकती। साकार रूप में मिलने का पार्ट हमारा क्यों नही बना? ऐसे अनेक प्रकार से उल्हना देने वालों की क्यू भी होती है।

(5) पाँचवी क्यू भी होती है वह अब कम होती जा रही है वह है रॉयल रूप से मांगने की। अभी कृपा व आशीर्वाद शब्द नहीं कहते लेकिन उसमें चाहना तो भरी ही होती है।

सुना कितने प्रकार की क्यू लगती है? अब हरेक अपने को देखे कि सारे दिन में आज हमने कितनी क्यू में नम्बर लगाये। जैसे आजकल एक ही दिन में अनेक क्यू लगानी पड़ती हैं ना? वैसे ही बाप-दादा के पास भी कई बच्चे सारे दिन में इन क्यू में ठहरते रहते हैं। न सिर्फ अव्यक्त रूप में व सूक्ष्म रूप में यह बातें करते रहते हैं, लेकिन जब अव्यक्त से व्यक्त में मिलने आते हैं तो भी यह छोटी-छोटी बातें पूछते रहते हैं! मास्टर नॉलेजफुल और मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्टेज पर स्थित हो जाओ तो सब प्रकार की क्यू समाप्त हो आप एक-एक के आगे आपकी प्रजा और भक्तों की क्यू लगे। जब तक स्वयं ही इस क्यू में बिजी हो, तब तक वह क्यू कैसे लगे? इसलिए अब अपनी स्टेज पर स्थित हो, इन सब क्यू से निकल, बाप के साथ संगमयुग में मेले की अनोखी विशेषता यह है कि यह मेला एक ही समय, एक से सर्व- सम्बन्धों से, सर्व-सम्बन्धों के स्नेह और प्राप्ति का मिलन मनाने का अलौकिक मेला है। सदा मिलन मनाने की लगन में अपने समय को लगाओ और लवलीन बन जाओ तो यह सब बातें समाप्त हो जावेंगी। इन सब आर्जियों व कम्पलेन्ट्स का रेसपान्स फिर दूसरी बार करेंगे जो फिर बार-बार यह बातें पूछने की व इसमें समय गँवाने की आवश्यकता न रहे। अच्छा!

ऐसे अनेक प्रकार की क्यू से मुक्त, बाप-दादा को सदा साथी-सदा सहयोगी, एक सेकेण्ड में मिलन मनाने वाले, सर्व-सम्बन्ध एक बाप से मनाने वाले, सर्व प्राप्ति स्वरूप, इच्छा-मात्रम् अविद्या की स्थिति में सदा रहने वाले और अष्ट शक्ति स्वरूप बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार, गुडनाइट और नमस्ते।

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :-  यह कौन सा मेला है, जिसकी अलौकिकता व विशेषता और कही नहीं मिलेगी?

 प्रश्न 2 :-  आप यह कैसे सिद्ध करेंगे कि सर्व-संबंध और सर्व प्राप्तियों का अनुभव एक बाप के साथ है?

 प्रश्न 3 :-  बापदादा अमृतवेले के भिन्न-भिन्न पोज और पजिशन का वर्णन किस प्रकार कर रहे हैं?

 प्रश्न 4 :-  वो कौन से भोले बच्चें होते हैं जो ईश्वरीय प्राप्ति और माया में अंतर नहीं जानते हैं?

 प्रश्न 5 :- सारे दिन में बापदादा के पास पाँच प्रकार की कौन-कौन सी क्यू लगती हैं?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ हरेक, बाप, नम्बर, नष्टोमोहा, अर्जी, डालने, लगन, कितनी, स्मृतिस्वरूप, स्वयं, मिलन, क्यू, बिजी, समाप्त, निरहंकारी }

 1   ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार की ______  डालने वाले _______ के पास आते रहते हैं।

 2  अब ________ अपने को देखे कि सारे दिन में आज हमने _______ क्यू में ________ लगाये।

 3  जब तक _____ ही इस _______ में _______ हो, तब तक वह क्यू कैसे लगे?

 4  सदा ______ मनाने की _______ में अपने समय को लगाओ और लवलीन बन जाओ तो यह सब बातें _______ हो जावेंगी।

 5  क्या बाप समान निरकारी, ________,  निर्विकारी, ________ और ___________ बने हो?

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-    

 1  :- संकल्प किया और मिलन हुआ। ऐसे वरदानी बच्चे बहुत ज्यादा हैं।

 2  :- समाचार सुनने में सबको इंट्रेस्ट आता है ना?

 3  :- यह वायरलेस का कनेक्शन वाइसलेस (निर्विकारी) आत्माओं को ही देखने का होता है।

 4  :-  लवलीन बन सजाओ तो यह सब बातें समाप्त हो जावेंगी।

 5   :-  ऐसे अष्ट रत्नों से मिलने के लिए ड्रामानुसार बाबा से मिलने में विशेष अधिकार प्राप्त  नूँध हुआ है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :-  यह कौन सा मेला है, जिसकी अलौकिकता व विशेषता और कही नहीं मिलती?

 उत्तर 1 :-  बाबा के बताया कि :-

          इसकी विशेषता यह है कि यह मेला एक ही समय, एक से सर्व संबंधों से, सर्व संबंध का स्नेह और प्राप्ति का मेला है।

          सिर्फ बाप और बच्चों का, सतगुरु और फॉलो करने वाले व समान बनने वाले आज्ञाकारी बच्चों का ही नहीं, लेकिन एक ही समय, एक से सर्व-संबंधों से मिलन मनाने का अलौकिक मेला है।

          यह अलौकिकता और विशेषता और कहीं नहीं मिलेगी। ऐसा मेला मनाने सब सागर के कण्ठे पर आये हुए हैं। जबकि सर्व-संबंधों से सर्व प्राप्ति कर सकते हो तो सिर्फ एक दो संबंध से मिलन व प्राप्ति करने में राजी नहीं हो जाना है।

          थोड़े में राजी हो जाने वाले भक्त कहलाये जाते हैं। बच्चे सर्व-संबंध व सर्व प्राप्ति के अधिकारी हैं। इसी अधिकार को प्राप्त करने वाली आत्मायें, ज्ञानी तू आत्मा और योगी तू आत्मा बाप को प्रिय हैं।

 

 प्रश्न 2 :-  आप यह कैसे सिद्ध करेंगे कि सर्व-संबंध और सर्व प्राप्तियों का अनुभव एक बाप के साथ है?

 उत्तर 2 :- बाबा कहते हैं कि :-

          अब सर्व संबंध और सर्व प्राप्तियाँ एक द्वारा अनुभव हो रही है, तो फिर और कोई संबंध व प्राप्ति रह जाती है क्या?

          जहाँ मोह अर्थात लगाव है तो क्या सहज व स्वतः ही अनेक तरफ से तोड़, एक तरफ से जोड़ने का अनुभव नहीं होता है।

          अब तक भी और कही किसी के साथ लगाव व मोह है, तो सिद्ध होता है कि सर्व संबंध और सर्व प्राप्तियों का अनुभव नहीं कर रहे हैं।

         

 प्रश्न 3 :-  बापदादा अमृतवेले के भिन्न-भिन्न पोज और पोजिशन का वर्णन किस प्रकार कर रहे हैं?

 उत्तर 3 :-बाबा कहते हैं कि :-

          जैसे अमृतवेले आरम्भ होता है तो चारों ओर सर्व बच्चें पहले तो नंबर मिलाने का पुरुषार्थ करते हैं या फिर कनेक्शन जोड़ने का पुरुषार्थ करते हैं।

          फिर क्या होता है लाइन क्लियर होने के कारण कोई का तो नम्बर जल्दी मिल जाता है। और कोई नम्बर मिलाने में ही समय बिता देते हैं।

          कोई कोई नम्बर न मिलने के कारण दिलशिकस्त बन जाते हैं और कोई कोई नम्बर मिलाते तो बाबा से है, परन्तु बीच बीच में कनेक्शन माया से जुट जाता है। ऐसे ही माया भी उसी समय कमजोर बच्चों का कनेक्शन तोड़ देती है। उन्हीं को तंग करती है, उसका भी कारण है।

 

           क्योंकि वे सारा दिन अलबेले और आलस्य के वश होते हैं और उनका अटेंशन कम होता है। ऐसी अलबेली आत्माओं को माया भी विशेष वरदान के समय बाबा की आज्ञा पर न चलने का बदला लेती है।

          ऐसी आत्माओं का दृश्य बहुत आश्चर्यजनक दिखाई देता है। एक तो कभी बाबा को स्नेह से सहयोग लेने की अर्जी डालते रहते हैं।

                         

 प्रश्न 4 :-  वो कौन से भोले बच्चें होते हैं जो ईश्वरीय प्राप्ति और माया में अंतर नहीं जानते हैं?

 उत्तर 4 :-  बापदादा कहते हैं :-               

          कोई-कोई बच्चें ऐसे होते हैं जो निद्रा को ही शांत स्वरूप और बीज रूप स्टेज समझ लेते हैं। अल्पकाल के निद्रा द्वारा रेस्ट के सुख को अतीन्द्रिय सुख समझ लेते हैं।

          लेकिन जो महारथी बच्चें गिनती के हैं या जो आप लोगों की गिनती में है वे उनसे भी कम हैं। आप लोग तो अष्ट समझते हो। लेकिन बाबा की गिनती में अष्ट कम हैं।

          अब तक अष्ट रत्नों के अष्ट शक्ति स्वरूप, संकल्प, बोल और कर्म बाप समान बनने की स्टेज प्राप्त करते जा रहे हैं।

          ऐसे अष्ट रत्नों से मिलने के लिए ड्रामानुसार बाबा से मिलने में विशेष अधिकार प्राप्त नूँध हुआ है। उन्हों को नंबर मिलाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उन आत्माओं का कनेक्शन निरंतर है।         

 

 प्रश्न 5 :-  सारे दिन में बापदादा के पास पाँच प्रकार की कौन-कौन सी क्यू लगती हैं?

 उत्तर 5 :- बाबा बता रहे हैं :-

          एक प्रकार की क्यू है भिन्न भिन्न प्रकार की अर्जी ले आने वालों की, कभी स्वयं के प्रति अर्जी ले आते हैं कि हमें शक्ति दो, सहयोग दो, बुद्धि का ताला खोलो, हिम्मत दो या मुक्ति दो। हमारी याद की यात्रा निरंतर और पावरफुल हो जाए! हमारे यह संस्कार खत्म हो जाये।

           दूसरी क्यू होती है कम्पलेंट करने वालों की। उन्हों की भाषा ही ऐसी होती है-यह क्यों, यह कैसे, कब और क्यों होगा? लौकिक और अलौकिक परिवार से सहयोग क्यों नहीं मिलता? उनमें भी विशेष दो बातों में कि व्यर्थ संकल्प क्यों आते हैं, शरीर का रोग क्यों आता है, याद क्यों टूटती है आदि?

           कई बापदादा को ज्योतिष समझकर क्यू लगाते हैं। क्या हमारी बीमारी मिटेगी? यह व्यवहार करूँ या यह छोडू? बिजनेस करू या नौकरी करू? ऐसे ऐसे गृहस्थ व्यवहार की छोटी छोटी बातें। मैं बांधली या बाँधेला हूँ, क्या मेरा बंधन टूटेगा?

          चौथी क्यू होती है उल्हना देने वालों की। आप ऐसे टाइम पर क्यों आये जब हम बुद्धि बन गई और अब मैं बीमार शरीर वाली बन गयी? आपने क्यों नहीं जगाया? ऐसा कर्म बन्धन मेरा ही  क्यों बना? साकार रूप से मिलने का पार्ट हमार क्यों नहीं बना

        पांचवी क्यू भी होती है वह अब कम होती जा रही है वह है रॉयल रूप से मांगने की। अभी कृपा व आशीर्वाद नहीं कहते लेकिन उसमें चाहना तो भरी होती है।   

                          

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{   हरेक, बाप, नम्बर, नष्टोमोहा, अर्जी, लगन, कितनी, स्मृतिस्वरूप, स्वयं, मिलन, क्यू, बिजी, समाप्त, निरहंकारी }

 1   ऐसे भिन्न-भिन्न प्रकार की______  डालने वाले _______ के पास आते रहते हैं।

  

    अर्जी /  बाप

 

 2  अब ________ अपने को देखे कि सारे दिन में आज हमने ________   क्यू में _________ लगाये।

 

    हरेक  / कितनी /  नम्बर

 

 3  जब तक ________  ही इस _______ में ______ हो, तब तक वह क्यू कैसे लगे?

 

    स्वयं /  क्यू / बिजी

 

 4  सदा _______ मनाने की _______ में अपने समय को लगाओ और लवलीन बन जाओ तो यह सब बातें ________ हो जावेंगी।

    मिलन /  लगन /  समाप्त

 

 5  क्या बाप समान निराकारी, _______ निर्विकारी, _______ और _______ बने हो?

    निरहंकारी /  नष्टोमोहा /  स्मृतिस्वरूप

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】【

 1  :- संकल्प किया और मिलन हुआ। ऐसे वरदानी बच्चे बहुत ज्यादा हैं। 】           

  संकल्प किया और हुआ। ऐसे वरदानी बच्चे बहुत कम हैं

 

 2  :- समाचार सुनने में सबको इंटरेस्ट आता है ना।

   

 3  यह वायरलेस का कनेक्शन वाइसलेस (निर्विकारी) आत्माओं को ही देखने का होता है।

 यह वायरलेस का कनेक्शन वाइसलेस (निर्विकारी) आत्माओं को ही प्राप्त होता है।

 

 4  :-  लवलीन बन जाओ तो यह सब बातें समाप्त हो जावेंगी।

 

 5   :-  ऐसे अष्ट रत्नों से मिलने के लिए ड्रामानुसार बाबा से मिलने में विशेष अधिकार प्राप्त नूँधा हुआ है।