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AVYAKT MURLI

09 / 10 / 81

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09-10-81       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

 

 

 

"अन्तर्मुखी ही सदा बन्धनमुक्त और योगयुक्त"

 

 

 

आज बापदादा अपने सदा सहयोगी, सदा शक्ति-स्वरूप, सदा मुक्त और योगयुक्त ऐसे विशेष बच्चों को अमृतवेले से विशेष रूप से देख रहे हैं। बापदादा ने हर एक बच्चे की दो बातों की विशेषता देखी। एक बात - मुक्त कहाँ तक हुए हैं, दूसरी बात - जीवनमुक्त कहाँ तक हुए हैं? जीवनमुक्त अर्थात् योगयुक्त। बापदादा के पास भी बच्चों के मन के संकल्प की हर सेकेण्ड की रेखायें स्पष्ट दिखाई देती हैं, रेखाओं को देख बापदादा ने मुस्कराते हुए विशेष एक बात का चित्र देखा, जिस चित्र में दो प्रकार के लक्षण देखे।

 

एक -’’सदा अन्तर्मुखी''। जिस कारण स्वयं भी सदा सुख के सागर में समाये हुए और अन्य आत्माओं को भी सदा सुख के संकल्प और वायब्रेशन द्वारा, वृत्ति और बोल द्वारा, सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा, सुख की अनुभूति कराते हैं।

 

दूसरे - ‘‘बाह्यमुखी''। जो सदा बाह्यमुखता के कारण, बाह्य अर्थात् व्यक्त भाव, व्यक्ति के भाव-स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और सम्बन्ध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा अल्पकाल के मुख के लड्डू खाने और ओरों को भी यही खिलाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से सदा दूर रहने वाले, कभी-कभी थोड़ी सी झलक अनुभव करने वाले, ऐसे बाह्यमुखी भी देखे।

 

दीपावली आ रही है ना! तो बिजनेसमैन तो अपने चौपड़े देखेंगे। पुराने खाते, नये खाते देखेंगे, बाप क्या देखेंगे? बाप भी हर बच्चे के पुराने खाते कहाँ तक समाप्त हुए हैं, नये खाते में क्या-क्या जमा किया है, यही चौपड़े देखते हैं। तो आज यह अन्तर देख रहे थे क्योंकि कल भी सुनाया कि ब्रह्मा बाप को अब किस बात का इन्तजार है? (उद्घाटन का) इसी उद्घाटन के लिए क्या तैयारी कर रहे हो, किसी से भी उद्घाटन कराते हो तो क्या करते हो? क्या चीजें रखते हो? उद्घाटन के पहले जो भी रिबन बांधते हो या फूलों को बांधते हो, उसे पहले कैंची से काटते हो फिर उद्घाटन होता है। और कैंची को रखते कहाँ हो? फूलों से सजी हुई थाली के अन्दर। इससे क्या सिद्ध होता है? बन्धनमुक्त होने के पहले स्वयं को गुणों के फूलों से सम्पन्न करना है तो स्वत: ही बन्धनमुक्त हो ही जायेंगे। उद्घाटन की तैयारी क्या हुई? एक तरफ स्वयं को सम्पन्न बनाना, लेकिन सम्पन्न बनने के पहले बाह्यमुखता के बन्धनों से मुक्त होना। ऐसे तैयार हुए हो? बाह्यमुखता के रस बाहर से बड़े आकर्षित करते हैं, इसलिए इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं। प्रशंसा हो जाती लेकिन प्रत्यक्षता और सफलता नहीं हो सकती, इसलिए अब उद्घाटन की तैयारी करो। उद्घाटन की तैयारी करने वाले सदा फूलों के बगीचे में बापदादा द्वारा लगी हुई फुलवाड़ी, फूलों के विशेषता की खुशबू लेने में और उसी खुशबू को सूंघने में सदा तत्पर होंगे अर्थात् उनकी जीवन रूपी थाली में सदा फूल ही फूल होंगे। ऐसे तैयार हो? इसमें नम्बरवन कौन जायेगा? मधुबन वाले या दिल्ली वाले? बहुत मर्त्तबा मिलेगा। बापदादा के साथ-साथ उद्घाटन करने वाले, इससे बड़ा भाग्य और क्या है? समान वाली आत्मायें ही साथ में उद्घाटन करेंगी। ऐसे तो नहीं समझते हो कि उद्घाटन करना माना सदा के लिए सूक्ष्मवतनवासी बनना वा मूल वतनवासी बनना। ब्रह्मा बाप के साथ मूलवतन निवासी क्या सभी बनेंगे या थोड़े बनेंगे? क्या समझते हो? सब सर्विस स्थान छोड़कर के साथ जायेंगे? साथ जायेंगे वा रूकेंगे? (साथ जायेंगे) अच्छा सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा बाप गया फिर आप यहाँ क्यों बैठ गये? तो क्या करेंगे? (दादी से) (साथ चलेंगे) अच्छा, दीदी-दादी दोनों ही साथ जायेंगे? क्या होगा? यह भी विचित्र रहस्य है। तो विशेष बात थी - उद्घाटन के लिए तैयार हो? दिल्ली वाले तैयार हैं? निमित्त सेवाधारी क्या समझते हो? कोई आशायें तो नहीं रहीं हुई हैं? (संगम अच्छा लगता है) बापदादा ही चले जायेंगे फिर भी रहेंगे? कब तक रहना है? साथ में जाने वाले तो धर्मराज को टाटा करेंगे, धर्मराज के पास जायेंगे ही नहीं। अच्छा - बाप तो चौपड़े साफ देखने चाहते हैं। थोड़ा भी पुराना खाता अर्थात् बाह्यमुखता का खाता, संकल्प वा संस्कार रूप में न रह जाए। सदा सर्व बन्धनमुक्त और योगयुक्त, इसी बाह्यमुखता के वायुमण्डल को समाप्त करने के लिए इस वर्ष विशेष इशारा दे रहे हैं। सेवा करो, खूब करो लेकिन बाह्यमुखता से अन्तर्मुखी बनकर करो। वह होगा अन्तर्मुखता की सूरत द्वारा। सेवा में बाह्यमुखता में ज्यादा आ जाते हो इसलिए - सेवा अच्छी है, सेवा बहुत करते हैं - सिर्फ यह नाम बाला होता है। बाप इन्हों का बड़ा अच्छा है, बाप ऊंचे ते ऊंचा है - यह प्रत्यक्षता की सफलता कम होती है। इसलिए सुनाया बाह्यमुखता की रिजल्ट - प्रशंसा करेंगे लेकिन प्रसन्नि चत्त नहीं बनेंगे। ‘‘बाप के बन जायें'', यह है प्रसन्नचित्त बनना।

 

ऐसे सदा अन्तर्मुखी, सदा प्रसन्नचित्त, अन्य आत्माओं को भी सदा प्रसन्नचित्त बनाने वाले, सदा स्वयं को गुण सम्पन्न, बाप समान, सदा सुख के सागर में समाये हुए, सदा एक बाप दूसरा न कोई, इसी लगन में मगन रहने वाले - ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते

 

दिल्ली जोन :- बापदादा को सभी बच्चे अति प्रिय हैं क्योंकि बापदादा ने विशेषताओं के आधार पर ड्रामा अनुसार चुनकर इस ब्राह्मण परिवार के गुलदस्ते में लाया है। यह चैतन्य फूलों का गुलदस्ता है ना! हरेक फूल की विशेषता, रंग-रूप अपना-अपना होता है। किसमें खुशबू ज्यादा होगी, किसका रंग रूप गुलदस्ते को सजाने वाला होगा लेकिन है तो दोनों ही आवश्यक। सिर्फ गुलाब के फूलों का गुलदस्ता बनाओ और वैरायटी का बनाओ, तो सुन्दर क्या लगेगा? वैरायटी भी चाहिए। लेकिन गुलाब के फूलों को तो सदा बीच में डालेंगे और वैरायटी फूलों को किनारे पर डालेंगे। तो मैं कौन हूँ? - वह हरेक अपने आपको जानता है। बापदादा के बेहद के गुलदस्ते के अन्दर मेरा स्थान कहाँ है, वह भी जानते हो क्योंकि गुलदस्ते के अन्दर तो हो ना! यह तो पक्का है, तब मधुबन के अन्दर आये हो।

 

पाण्डव भवन (दिल्ली) के पाण्डव क्या करते हैं? यादगार में भी यही समाचार पूछा ना! पाण्डव क्या कर रहे हैं? पाण्डव भवन है नेक्स्ट मधुबन। तो पाण्डव भवन निवासी क्या सर्विस का प्लैन बना रहे हो? ऐसी सेवा करो जो सबकी नजर सेवा के कारण पाण्डव भवन की तरफ जाये, यह है नई बात। ऐसा कुछ प्लैन बनाया है? पाण्डव भवन है ही विश्व के अन्दर विशेष भवन। तो विशेष में वी.आई.पी. स्थान हो गया तो जैसे वी.आई.पी. स्थान है, वैसे वी.आई.पी.की सेवा हो ना! दिल्ली है वी.आई.पी.की नगरी और स्थान भी वी.आई.पी. और करने वाले भी अच्छे महावीर वी.आई.पी. हो। तो अभी क्या करेंगे? अपनी दिनचर्या को सेट करो। अभी देखो यहाँ (मधुबन में) इतना बड़ा कार्य है, दिनचर्या सेट होने के कारण चारों ओर के कार्य में सफलता तो पा रहे हैं। कार्य बढ़ रहा है लेकिन दिनचर्या सेट होने के कारण कार्य ठीक हो जाता है, सिर्फ यह अटेन्शन। सुबह से रात तक अपना फिक्स प्रोग्राम डेली डायरी बनाओ क्योंकि जिम्मेवार आत्मायें हो, रिवाजी आत्मायें नहीं। विश्व-कल्याणकारी आत्मायें हो। तो जितना बड़ा आदमी होता है, उसकी दिनचर्या सेट होती है। बड़े आदमी की निशानी है - एक्यूरेट। एक्यूरेट का साधन है दिनचर्या की सेटिंग। एक व्यक्ति 10 व्यक्ति का कार्य कर सकता है। सेटिंग से समय, एनर्जा बच जाती है। इसके कारण एक के बजाए 10 कार्य हो जाते हैं। अच्छा, सदा सन्तुष्ट आत्मायें हो ना? सदा बाप के साथ अर्थात् सदा सन्तुष्ट। बाप और आप सदा कम्बाइन्ड हो तो कम्बाइन्ड की शक्ति कितनी बड़ी है, एक कार्य के बजाए हजार कार्य कर सकते हो क्योंकि हजार भुजाओं वाला बाप आपके साथ है।

 

2. सभी सहजयोगी हो ना? बाप का बनना अर्थात् सहजयोगी बनना क्योकि बच्चा अर्थात् भाग्यशाली। बच्चे को सिवाए बाप के और है ही क्या? माँ होते हुए भी प्राप्ति का आधार बाप है। प्यार के सम्बन्ध में माँ याद आयेगी, प्राप्ति के सम्बन्ध में बाप याद आयेगा। योग लगाना न पड़े लेकिन न चाहते हुए भी एक बाप के सिवाए और कोई नजर न आये। बाप का बनना अर्थात् सहजयोगी बनना। अच्छा - ओम् शान्ति।

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने मुस्कराते हुए विशेष एक बात का चित्र देखा, उस चित्र में कौन से दो प्रकार के लक्षण देखे?

 प्रश्न 2 :- बन्धनमुक्त होने से पहले स्वयं को क्या करना है?

 प्रश्न 3 :- बाबा ने किस रस को कैंची लगाने को कहा और उदघाटन की तैयारी करने वालों की क्या विशेषता होगी?

 प्रश्न 4 :- दिनचर्या सेट करने के लिए बाबा ने क्या समझानी दी ?

 प्रश्न 5 :- बाप का बनने का अर्थ क्या है?

      

       FILL IN THE BLANKS:-    

(समाप्त, पुराने, संस्कार, प्रसन्नचित, अन्तर्मुखी, बाह्यमुखता, पुराना, ब्राह्मण, चौपड़े, गुलदस्ते, प्रशंसा, विशेषताओं, बाह्यमुखता)

 

 1   बाप भी हर बच्चे के _____ खाते कहाँ तक ______ हुए हैं, नये खाते में क्या-क्या जमा किया है, यही _____ देखते हैं। 

 2  थोड़ा भी _____ खाता अर्थात् _______ का खाता, संकल्प वा _______ रूप में न रह जाए।

 3  सेवा करो, खूब करो लेकिन ______ से ______ बनकर करो।

 4  बाह्यमुखता की रिजल्ट - ______ करेंगे लेकिन ______  नहीं बनेंगे।

 5  बापदादा को सभी बच्चे अति प्रिय हैं क्योंकि बापदादा ने ________ के आधार पर ड्रामा अनुसार चुनकर इस ______ परिवार के ________ में लाया है ।

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- बाप और आप सदा कम्बाइन्ड हो तो कम्बाइन्ड की शक्ति कितनी बड़ी है, एक कार्य के बजाए हजार कार्य कर सकते हो क्योंकि हजार भुजाओं वाला बाप आपके साथ है।

 2  :- अलग में जाने वाले तो धर्मराज को टाटा करेंगे, धर्मराज के पास जायेंगे ही नहीं।

 3  :- सर्व बन्धनमुक्त और योगयुक्त, इसी अंतर्मुखता के वायुमण्डल को समाप्त करने के लिए इस वर्ष विशेष इशारा दे रहे हैं। 

 4  :- हरेक फूल की विशेषता, रंग-रूप अपना-अपना होता है।

 5   :- ‘‘बाप के बन जायें'', यह है प्रसन्नचित्त बनना।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- आज ब्रह्मा बाप वतन में सैर करते क्या सुमिरन कर रहे थे? बापदादा ने क्या-क्या विशेषताए देखी?

 उत्तर 1 :- वतन के बगीचे में सैर करते ब्रह्मा बच्चों की गुण माला का सुमिरन कर रहे थे। ब्रह्मा बाप शिव बाबा से रूहरिहान में इन गुण मालाओं की निम्न लिखित विशेषताए बता रहे है:

          कोई बच्चों की सिर्फ नैकलेस के माफिक माला थी और कोई बच्चों की पाँव तक लम्बी माला थी।

          कोई बच्चों की कई लड़ियों की माला थी।

          कोई बच्चे इतनी मालाओं से सजे हुए थे जैसे मालायें उनकी ड्रेस बन गई थी।

 

 प्रश्न 2 :-मालाओं का श्रृंगार देखते बापदादा ने कितने रंग देखे और उनकी क्या- क्या विशेषताए देखी?

उत्तर 2 :- मालाओं का श्रृंगार देखते ब्रह्माबाप वर्णन करते है:-

          हर गुण हीरों के रूप में वैरायटी रूप रेखा और रंग वाले थे। विशेष चार प्रकार के रंग थे। जिसमें मुख्य चार सब्जेक्टस के चार रंग थे।

          ज्ञान स्वरूप की निशानी - गोल्डन कलर जो हल्का-सा गोल्ड कलर होने के कारण उस एक ही हीरे से सर्व रंग दिखाई देते थे।

          एक ही हीरे से भिन्न-भिन्न रंगों की किरणों के माफिक चमक दिखाई देती थी।

          सर्व रंगो की किरणें दूर से ही स्पष्ट दिखाई देती थीं। चित्र सामने आ रहा है ना! कैसे चमक रहा है हीरा?

          याद की निशानी - यह तो सहज है ना? याद में यहाँ भी बैठते हो तो क्या करते हो? लाल रंग।

          लेकिन इस लाल रंग में भी गोल्डन रंग मिक्स था, इसलिए आपकी इस दुनिया में वह रंग नहीं है। कहने में तो लाल रंग आयेगा।

          धारणा की निशानी सफेद रंग। लेकिन सफेदी में भी जैसे चन्द्रमा की लाईट के बीच सुनहरी रंग मिक्स करो या चाँदनी के रंग में हल्का-सा पीला रंग एड करो तो दिखाई चांदनी जैसा देगा लेकिन हल्का सा सुनहरी होने के कारण उसकी चमक और ही सुन्दर हो जाती है।

          यहाँ वह रंग बना नहीं सकेंगे। क्योंकि वे चमकने वाले रंग हैं। कितनी भी ट्रायल करो लेकिन वतन के रंग यहाँ कहाँ से आयेंगे?

          ❽ सेवा की निशानी हरा रंग। सेवा में चारों ओर हरियाली कर देते हो ना! कांटो के जंगल को फूलों का बगीचा बना देते हो।

          तो अभी सुना चार रंग कौन से हैं? इन चार रंगो के हीरों से सजी हुई मालायें सबके गले में थीं।

 

प्रश्न 3 :-समय की रफ्तार प्रमाण ब्रह्मा बाप ने रिजल्ट में क्या अन्तर देखा ? उस अन्तर को सम्पन्न करने की शिव बाबा ने क्या युक्ति बताई है?

 उत्तर 3 :- समय की रफ्तार प्रमाण ब्रह्म बाप ने रिजल्ट में जो अन्तर देखे वो निम्नलिखित है:-

          मालायें सबके गले में थीं। इसमें भिन्न-भिन्न साइज और चमक में अन्तर था।

          कोई की ज्ञान स्वरूप की माला बड़ी थी तो कोई की याद स्वरूप की माला बड़ी थी।

           और कोई-कोई की चार ही मालायें थोड़े से अन्तर में थी।

         इस अन्तर का कारण बताते हुए शिव बाबा समझाते है :-

          सोचते सब हैं, करते भी सब हैं लेकिन कोई- कोई हैं जो सोचते और करते एक ही समय पर हैं। अर्थात् सोचना और करना साथ-साथ है, वह सम्पन्न बन जाते हैं।

          और कोई-कोई हैं जो सोचते हैं और करते भी हैं लेकिन सोचने और करने के बीच में मार्जिन रह जाती है। सोचते बहुत अच्छा हैं लेकिन करते कुछ समय के बाद हैं। उसी समय नहीं करते हैं।

          इसलिए  संकल्प में जो उस समय की तीव्रता, उमंग-उल्लास-उत्साह होता है वह समय पड़ने से परसेन्टेज कम हो जाती है।

          जैसे गर्म वा ताजी चीज़ का अनुभव और ठण्डी वा रखी हुई चीज़ का अनुभव में अन्तर आ जाता है ना! ताजी चीज़ की शक्ति और रखी हुई चीज़ की शक्ति में अन्तर पड़ जाता है ना!

          चीज़ कितनी भी बढ़िया हो लेकिन रखी हुई तो उसकी रिजल्ट वही नहीं निकल सकती।

          ऐसे संकल्प जो करते हैं वह उसी समय प्रैक्टिकल में करना-उसकी रिजल्ट, और सोचना आज, करना कब, उसकी रिजल्ट में अन्तर पड़ जाता है।

          बीच में समय की मार्जिन होने के कारण, एक तो सुनाया कि परसेन्टेज सब की कम हो जाती है। जैसे ताजी चीज़ के विटामिन्स में फर्क पड़ जाता है।

          दूसरा - मार्जिन होने के कारण समस्याओं रूपी विघ्न भी आ जाते हैं। इसलिए सोचना और करना साथ-साथ हो। इसको कहा जाता है - ‘‘तुरन्त दान महापुण्य।'' नहीं तो महापुण्य के बजाए पुण्य हो जाता है।

          महापुण्य की प्राप्ति और पुण्य की प्राप्ति में अन्तर हो जाता है।  छोटा सा कारण है। करते भी हो सिर्फ अब' के बजाए कब' करते हो इसलिए मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है।

         बाप कहते-‘‘ अब इस कारण का निवारण करो।'' निवारण करना ही निर्माण करना हो जायेगा। तो स्व में भी नव-निमार्ण और विश्व में भी नव-निर्वाण।

          

 प्रश्न 4 :-सेवाधारी की विशेषताए बताते हुए बापदादा ने कुमारियों की किस प्रकार महिमा की है?

 उत्तर 4 :- सेवाधारी की विशेषता बताते हुए बापदादा समझाते है:-

          सेवाधारी अर्थात् 24 घण्टे स्टेज पर पार्ट बजाने वाले। तो हर कदम, हर सेकण्ड सारी विश्व के आगे हैं।

          सेवाधारी सदा हीरो पार्टधारी समझ करके चलें, सेंटर पर नहीं बैठे हो लेकिन स्टेज पर बैठे हो, विश्व की स्टेज पर।

          तो इतना अटेन्शन रहने से हर संकल्प और कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होंगे ना!

          नैचुरल अटेन्शन होगा। अटेन्शन देना नहीं पड़ेगा लेकिन रहेगा ही क्योंकि स्टेज पर हो ना!

          सदा अपने को पूज्य आत्मा समझो तो पूज्य आत्मा अर्थात् पावन आत्मा। कल्प-कल्प पूज्य हैं। पूज्य समझने से संकल्प और स्वप्न भी सदा पावन होंगे।

         कुमारियों की महिमा करते बापदादा कहते है:-

          वैसे भी सेवाधारी मैजारटी कुमारियाँ हैं। कुमारियाँ डबल कुमारियाँ हो गई, ब्रह्माकुमारी भी और कुमारी भी। तो कितनी महान हो गई।

            कुमारी की, अब 84 वें अन्तिम जन्म में भी, चरणों की पूजा होती है। तो इतनी पावन बनी हो तब इतनी पूजा हो रही है।

          कुमारियों को कभी भी झुकने नहीं देंगे। कुमारियों के चरणों में सब झुकते हैं। चरण धोकर पीते हैं। तो वह कौन सी कुमारियाँ हैं? ब्रह्माकुमारियाँ हैं ना!

          तो सेवाधारी ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो। किसकी पूजा हो रही है? आप लोगों की।

          गीत भी है ना - पूजा होती है घर-घर में.। इसलिए बोलो - तुम्हारी पूजा होती है।

          बापदादा भी देखो नमस्ते करते हैं ना! तो इतनी पूज्य हो तब तो बाप भी नमस्ते करते हैं।

          इसी स्मृति स्वरूप में रहने से सदा वृद्धि होती रहेगी। अपनी भी और सेवा की भी। सब विघ्न खत्म हो जायेंगे। इसी स्मृति में सब विशेषतायें भरी हैं।

 

प्रश्न 5 :- चैतन्य दीपमाला के दीपको के बापदादा ने कौन- कौन से कर्तव्य बताये है?

 उत्तर 5 :- चैतन्य दीपमाला के दीपकों का कर्त्तव्य  समझाते हुए बापदादा कहते है:-

          दीपमाला के दीपकों का कर्त्तव्य है अंधकार में रोशनी करना।

          अपने को सदा जगे हुए दीपक समझते हो? आप विश्व के दीपक अविनाशी दीपक हो जिसका यादगार अभी भी दीपमाला मनाई जाती है।

          ❸  तो यह निश्चय और नशा रहता है कि हम दीपमाला के दीपक हैं?

          अभी तक आपकी माला कितनी सिमरण करते रहते हैं? क्यों सिमरण करते हैं? क्योंकि अंधकार को रोशन करने वाले बने हो।

           स्वयं को ऐसे सदा जगे हुए दीपक अनुभव करो। टिमटिमाने वाले नहीं। 

          कितने भी तूफान आयें लेकिन सदा एकरस, अखण्ड ज्योति के समान जगे हुए दीपक।

          ऐसे दीपकों को विश्व भी नमन करती है और बाप भी ऐसे दीपकों के साथ रहते हैं। टिमटिमाते दीपकों के साथ नहीं रहते।

           बाप जैसे सदा जागती ज्योति है, अखण्ड ज्योति है, अमर ज्योति है, ऐसे बच्चे भी सदा अमर ज्योति'! अमर ज्योति के रूप में भी आपका यादगार है।

          चैतन्य में बैठे अपने सभी जड़ यादगारों को देख रहे हो। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो।  

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( तीर्थस्थान, जानते, समस्याओं, पाप, सफलतामूर्त्त, मायाजीत, स्मृति, तावीज, स्वदर्शन, साधारण, बुद्धि, अनुभव )

 1   भक्ति मार्ग में मानते हैं कि _____पर जाने से ____ खत्म हो जाते हैं, लेकिन कब होते हैं, कैसे होते हैं, यह ____ नहीं हैं। 

     तीर्थ स्थान / पाप / जानते

 

 2  स्वदर्शन चक्रधारी ____ होंगे। मायाजीत होने के कारण_____  होंगे।

   मायाजीत / सफलतामूर्त्त

 

 3  यह तीर्थस्थान की स्मृति जीवन की अनेक ____ से पार ले जायेगी। यह ____ भी एक ____ का काम करेगी।

   समस्याओं / स्मृति / तावीज

 

 4  जो बाप के समान ____ चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी ____ कर्म हो नहीं सकते।

    स्वदर्शन / साधारण 

 

 5  कोई भी बात हो तो मधुवन में ____ से पहुँच जाना। फिर सुख और शान्ति के झूले में झूलने का ____ करेंगे।

    बुद्धि / अनुभव

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】 【

 1 :- इस समय तुम बच्चे अनुभव करते हो कि इस महान तीर्थस्थान पर आने से देव आत्मा बन जाते हैं। 

   इस समय तुम बच्चे अनुभव करते हो कि इस महान तीर्थस्थान पर आने से पुण्य आत्मा बन जाते हैं।

 

 2 :- स्वदर्शन चक्रधारी की निशानी है - बिन्दुस्वरूप'

  स्वदर्शन चक्रधारी की निशानी है - सफलता स्वरूप।

 

3 :- सूर्यवंशी अर्थात् 21 जन्मों के लिए जमा करने वाले। तो सदा हर सेकेण्ड में जमा करते रहो।

 

 4 :- अब भाग्यशाली तो बन गये लेकिन सौभाग्यशाली बनना वा पद्मापद्म भाग्यशाली बनना यह बाप के हाथ में है।

  अब भाग्यशाली तो बन गये लेकिन सौभाग्यशाली बनना वा पद्मापद्म भाग्यशाली बनना यह आपके हाथ में है।

 

 5 :- इस धरनी पर आना भी भाग्य की निशानी है। इसलिए बहुत-बहुत भाग्यशाली हो।