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AVYAKT MURLI

26 / 11 / 81

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26-11-81       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"सहयोगी ही सहजयोगी"

 

राजऋषि, सहयोगी, सहजयोगी बच्चों के प्रति अव्यक्त बापदादा बोले-

‘‘आज बापदादा अपने स्वराज्य-अधिकारी, राजऋषि भविष्य में राज्य-वंशी बच्चों को देख रहे हैं। सभी सहजयोगी अर्थात् राज- ऋषि हो। बापदादा सभी बच्चों को वर्तमान वरदानी समय पर विशेष वरदान कौन-सा देते हैं? सहजयोगी भव! यह वरदान अनुभव करते हो? योगी तो बहुत बनते हैं लेकिन सहजयोगी सिर्फ संगमयुगी आप श्रेष्ठ आत्मायें बनती हो। क्योंकि वरदाता बाप का वरदान है। ब्राह्मण बने अर्थात् इस वरदान के वरदानी बने। सबसे पहला जन्म का वरदान यही सहजयोगी भव का वरदान है। तो अपने आप से पूछो- वरदानी बाप, वरदानी समय और आप भी वरदान लेने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। इस वरदान को सदा बुद्धि में याद रखना-यह है वरदान को जीवन में लाना। तो ऐसे वरदान को सदा प्राप्त की हुई आत्मा, प्राप्ति स्वरूप आत्मा समझते हो? वा मेहनत भी करनी पड़ती है? सदा वरदानी आत्मा हो? इस वरदान को सदा कायम रखने की विधि जानते हो? सबसे सहज विधि कौन-सी है? जानते हो ना? सदा सर्व के और सेवा में सहयोगी बनो। तो सहयोगी ही सहज योगी हैं। कई ब्राह्मण आत्मायें सहज योग का अनुभव सदा नहीं कर पाती। योग कैसे लगायें? कहाँ लगायें? इसी क्वेश्चन में अब तक भी हैं। सहज योग में क्वेश्चन नहीं होता हैं। साथ-साथ वरदान है, वरदान में मेहनत नहीं होती है। और सहज, सदा स्वत: ही रहता है अर्थात् सहज योगी वरदानी आत्मा स्वत: निरन्तर योगी होती है। नहीं रहते इनका कारण? प्राप्त हुए वरदान को वा ब्राह्मण जन्म के इस अलौकिक गिफ्ट को सम्भालना नहीं आता। स्मृति द्वारा समर्था रखने में अलबेले बन जाते हो। नहीं तो ब्राह्मण और सहज योगी न हों तो ब्राह्मण जीवन की विशेषता ही क्या रही। वरदानी होते भी सहज योगी नहीं तो और कब बनेंगे? यह नशा और निश्चय सदा याद रखो- यह हमारा जन्म का वरदान है। इसी वरदान को सर्व आत्माओं के प्रति सेवा में लगाओ। सेवा में सहयोगी बनना- यही विधी है सहजयोगी की। अमृतवेले से लेकर सहयोगी बनो। सारे दिन की दिनचर्या का मूल लक्ष्य एक शब्द रखो कि सहयोग देना है। सहयोगी बनना है। अमृतवेले बाप से मिलन मना कर बाप समान मास्टर बीजरूप बन, मास्टर विश्व-कल्याणकारी बन सर्व आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के द्वारा आत्माओं की वृत्ति और वायुमण्डल परिवर्तन करने के लिए सहयोगी बनो। बीज द्वारा सारे वृक्ष को रूहानी जल देने के सहयोगी बनो। जिससे सर्व आत्माओं रूपी पत्तों को प्राप्ति के पानी मिलने का अनुभव हो। ऐसे अमृतवेले से लेकर जो भी सारे दिन में कार्य करते हो, हर कार्य का लक्ष्य- ‘‘सहयोग देना'' हो। चाहे व्यवहार के कार्य में जाते हो, प्रवृत्ति को चलाने के कार्य में रहते हो। लेकिन सदा यह चैक करो- लौकिक व्यवहार में भी स्व प्रति वा साथियों के प्रति शुभ भावना और कामना से वायुमण्डल रूहानी बनाने का सहयोग दिया? वा ऐसे ही रिवाजी (साधारण) रीति से अपनी डियुटी बजाकर आ गये। जैसा जिसका आक्युपेशन होता है, वह जहाँ भी जायेंगे, अपने आक्युपेशन प्रमाण कार्य जरूर करेंगे। आप सबका विशेष आक्युपेशन ही है- ‘‘सहयोगी बनना''। वह कैसे भूल सकते! तो हर कार्य में सहयोगी बनना है अर्थात् सहजयोगी बन जायेंगे। कोई भी सेकण्ड सह- योगी बनने के सिवाए न हो। चाहे मंसा में सहयोगी बनो चाहे वाचा से सहयोगी बनो। चाहे सम्बन्ध सम्पर्क के द्वारा सहयोगी बनो। चाहे स्थूल कर्म द्वारा सहयोगी बनो। लेकिन सहयोगी जरूर बनना है। क्योंकि आप सभी दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चे सदा देते रहते हैं। तो क्या देना है? ‘‘सहयोग''

 

स्व परिवर्तन के लिए भी स्वयं के भी सहयोगी बनो। कैसे? साक्षी बन स्व के प्रति भी सदा शुभचिन्तन की वृत्ति और रूहानी वायुमण्ड ल बनाने के लिए स्व प्रति भी सहयोगी बनो। जब प्रकृति अपने वायुमण्डल के प्रभाव में सभी को अनुभव करा सकती है- जैसे सर्दा, गमार्क प्रकृति अपना वायुमण्डल पर प्रभाव डाल देती है, ऐसे प्रकृतिजीत, सदा सहयोगी, सहज योगी आत्मायें अपने रूहानी वायुमण्डल का प्रभाव अनुभव नहीं करा सकती? सदा स्व प्रति और सर्व के प्रति सहयोग की शुभ भावना रखते हुए सहयोगी आत्मा बनो। वह ऐसा है, वा ऐसा कोई करता है, यह नहीं सोचो। कैसा भी वायुमण्डल है, व्यक्ति है- ‘‘मुझे सहयोग देना है''

 

ऐसे सभी ब्राह्मण आत्मायें सदा सहयोगी बन जाएं तो क्या हो जायेगा? सभी सहज योगी स्वत: हो जायेंगे क्योंकि सर्व आत्माओं का सहयोग मिलने से कमजोर भी शक्तिशाली हो जाते हैं। कमजोरी समाप्त होने से सहयोगी तो हो ही जायेंगे ना! कोई भी प्रकार की कमजोरी, मुश्किल वा मेहनत का अनुभव कराती है। शक्तिशाली हैं तो सब सहज है। तो क्या करना पड़े? सदा चाहे तन से, मन से, धन से, मंसा से, वाणी से वा कर्म से सहयोगी बनना है। अगर कोई मन से नहीं कर सकते तो तन और धन से सहयोगी बनो। मंसा, वाणी से नहीं तो कर्म से सहयोगी बनो। सम्बन्ध जुड़वाने वा सम्पर्क रखाने के सहयोगी बनो। सिर्फ सन्देश देने के सहयोगी नहीं बनो, अपने परिवर्तन से सहयोगी बनो। अपने सर्व प्राप्तियों के अनुभव सुनाने के सहयोगी बनो। अपने सदा हर्षित रहने वाली सूरत से सहयोगी बनो। किसी को गुणों के दान द्वारा सहयोगी बनो। किसी को उमंग-उत्साह बढ़ाने के सहयोगी बनो। जिसमें भी सहयोगी बन सको उसमें सहयोगी सदा बनो। यही सहज योग है। समझा क्या करना है? यह तो सहज है ना! जो है वह देना है। जो कर सकते हो वह करो। सब नहीं कर सकते हो तो एक तो कर सकते हो? जो भी एक विशेषता हो उसी विशेषता को कार्य में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो। यह तो कर सकते हो ना यह तो नहीं सोचते हो कि मेरे में कोई विशेषता नहीं। कोई गुण नहीं। यह हो नहीं सकता। ब्राह्मण बनने की ही बड़ी विशेषता है। बाप को जानने की बड़ी विशेषता है। इसलिए अपनी विशेषता द्वारा सदा सह- योगी बनो। अच्छा!

 

ऐसे सदा सहयोगी अर्थात् सहजयोगी, सदा अपने श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा वायुमण्डल बनाने के सहयोगी आत्मा, कमजोर आत्माओं को उत्साह दिलाने की सहयोगी आत्मा, ऐसे अमृतवेले से हर समय सहयोगी बनने वाली आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

 

पार्टियों के साथ-

 

 1. साइलेन्स की शक्ति से दैवी स्वराज्य की स्थापना- साइलेन्स की शक्ति से सारे विश्व पर दैवी राजस्थान का फाउन्डेशन डाल रहे हो ना! वह आपस में लड़ते हैं और बाप दैवी राजस्थान बना रहे हो, क्या बनना है? यह उन्हों को क्या पता वह तो अपना-अपना प्रयत्न करते रहते हैं लेकिन भावी क्या है- उसको तो आप जानते हो? तो सभी बच्चे साइलेन्स की शक्ति से दैवी स्वराज्य बना रहे हो ना? उनकी है जबान की शक्ति, या बाहुबल, शस्त्रों की शक्ति और आपकी है- साइलेन्स की शक्ति। इसी शक्ति के द्वारा दैवी राज्य स्थापन हो ही जायेगा- यह तो अटल निश्चय है ना! वे भी समझते हैं कि वर्तमान समय कोई ईश्वरीय शक्ति चाहिए जो कार्य करे। लेकिन गुप्त होने के कारण जान नहीं सकते हैं। आप जानते हो और कर भी रहे हो। पंजाब में वृद्धि तो हो रही है ना! पंजाब भी सेवा का आदि स्थान है। तो आदि स्थान से कोई विशेष कार्य होना चाहिए। रूहानी बाप के बच्चे होने के नाते रूहानी सेवा करना हर बच्चे का कार्य है। जो बाप का कार्य वही बच्चों का कार्य। जैसे रूहानी बाप का कर्त्तव्य है- रूहानी सेवा करना ऐसे बच्चों को भी इसी कार्य में तत्पर रहना है। यह रूहानी सेवा हर सेकेण्ड में, हर कदम में प्रत्यक्ष फल प्राप्त कराती है। प्रत्यक्ष फल है खुशी। जितनी सेवा करते उतना खुशी का खज़ाना बढ़ता जाता है, एक का पदमगुणा मिलता है। ऐसे समझते हो? आपका आक्युपेशन ही है- रूहानी सेवाधारी। लौकिक में भल कोई भी पोजशन हो लेकिन अलौकिक में रूहानी सेवाधारी हो। अगर कोई डाक्टर है, तो रूहानी और जिस्मानी डबल डाक्टर बनो। वह सेवा करते भी मूल कर्त्तव्य है रूहानी डाक्टर बनना। बार-बार रोगी आये, इससे तो रोग ही खत्म हो जाए, सदा के लिए। तो ऐसी दवाई देनी चाहिए ना! रोगी आता ही है सदा शफा पाने के लिए। सदा शफा होगी रूहानी सेवा से। अच्छा! रूहानी सेवा से। अच्छा!

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :-सहजयोगी कैसे बन सकते हैं?

 प्रश्न 2 :-हम बच्चों को बाबा सहयोगी बनने की क्या विधि बताते हैं?

 प्रश्न 3 :- बाबा द्वारा दिये वरदान को जीवन में कैसे ले सकते हैं?

 प्रश्न 4 :- कौन सी शक्ति से दैवी स्वराज्य स्थापन किया जा सकता है और कैसे?

 प्रश्न 5 :- रूहानी सेवा करने को बाबा क्यों कहते हैं?

 

      FILL IN THE BLANKS:-    

(डॉक्टर, साक्षी, वायुमंडल, सेकण्ड, शुभचिन्तन, आत्मा, सहयोगी, रूहानी, वाचा, डबल, मन्सा, सदा, वरदानी, विशेष, बच्चों)

 1   अगर कोई ______ है, तो _____ और जिस्मानी ______ डाक्टर बनो।

 2  कोई भी _____ सह- योगी बनने के सिवाए न हो। चाहे _____ में सहयोगी बनो चाहे ______ से सहयोगी बनो।

 3  _____ बन स्व के प्रति भी सदा _______ की वृत्ति और रूहानी _______बनाने के लिए स्व प्रति भी सहयोगी बनो।

 4  ______स्व प्रति और सर्व के प्रति _____ की शुभ भावना रखते हुए सहयोगी ______ बनो।

 5  बापदादा सभी _____ को वर्तमान ______ समय पर_____ वरदान कौन-सा देते हैं?

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- आप सबका विशेष वरदान ही है- ‘‘सहयोगी बनना''

 2  :- आप सभी दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चे सदा देते रहते हैं।

 3  :- सहज योग में विघ्न नहीं होता हैं।

 4  :- जो भी एक विशेषता हो उसी विशेषता को कार्य में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो।

 5   :- सिर्फ सन्देश देने के सहयोगी नहीं बनो, अपने परिवर्तन से सहयोगी बनो।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- सहजयोगी कैसे बन सकते हैं?

   उत्तर 1:- बाबा बताते हैं-

          योगी तो बहुत बनते हैं लेकिन सहजयोगी सिर्फ संगमयुगी आप श्रेष्ठ आत्मायें बनती हो। क्योंकि वरदाता बाप का वरदान है।

          ब्राह्मण बने अर्थात् इस वरदान के वरदानी बने। सबसे पहला जन्म का वरदान यही सहजयोगी भव का वरदान है। 

         ❸ सदा सर्व के और सेवा में सहयोगी बनो। तो सहयोगी ही सहज योगी हैं।

 

प्रश्न 2 :- हम बच्चों को बाबा सहयोगी बनने की क्या विधि बताते हैं?

   उत्तर 2:- बाबा ने बताया कि-

           सारे दिन की दिनचर्या का मूल लक्ष्य एक शब्द रखो कि सहयोग देना है। सहयोगी बनना है।

           मास्टर विश्व-कल्याणकारी बन सर्व आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के द्वारा आत्माओं की वृत्ति और वायुमण्डल परिवर्तन करने के लिए सहयोगी बनो।

          बीज द्वारा सारे वृक्ष को रूहानी जल देने के सहयोगी बनो। जिससे सर्व आत्माओं रूपी पत्तों को प्राप्ति के पानी मिलने का अनुभव हो।          

          अमृतवेले से लेकर जो भी सारे दिन में कार्य करते हो, हर कार्य का लक्ष्य- ‘‘सहयोग देना'' हो।

 

 प्रश्न 3 :- बाबा द्वारा दिये वरदान को जीवन में कैसे ले सकते हैं?

   उत्तर 3 :-वरदानी बाप, वरदानी समय और आप भी वरदान लेने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। इस वरदान को सदा बुद्धि में याद रखना-यह है वरदान को जीवन में लाना।

 

प्रश्न 4 :-कौन सी शक्ति से दैवी स्वराज्य स्थापन किया जा सकता है और कैसे?

   उत्तर 4:- बाबा ने कहा-

          साइलेन्स की शक्ति से सारे विश्व पर दैवी राजस्थान का फाउन्डेशन डाल रहे हो।

         उनकी है जबान की शक्ति, या बाहुबल, शस्त्रों की शक्ति और आपकी है- साइलेन्स की शक्ति।

        इसी शक्ति के द्वारा दैवी राज्य स्थापन हो ही जायेगा- यह तो अटल निश्चय है।

        वे भी समझते हैं कि वर्तमान समय कोई ईश्वरीय शक्ति चाहिए जो कार्य करे। लेकिन गुप्त होने के कारण जान नहीं सकते हैं। आप जानते हो और कर भी रहे हो।

 

 प्रश्न 5 :-रूहानी सेवा करने को बाबा क्यों कहते हैं?

   उत्तर 5:- बाबा कहते हैं कि-

          रूहानी बाप के बच्चे होने के नाते रूहानी सेवा करना हर बच्चे का कार्य है। जो बाप का कार्य वही बच्चों का कार्य।

         जैसे रूहानी बाप का कर्त्तव्य है- रूहानी सेवा करना ऐसे बच्चों को भी इसी कार्य में तत्पर रहना है।

         यह रूहानी सेवा हर सेकेण्ड में, हर कदम में प्रत्यक्ष फल प्राप्त कराती है। प्रत्यक्ष फल है खुशी। जितनी सेवा करते उतना खुशी का खज़ाना बढ़ता जाता है, एक का पदमगुणा मिलता है।        

        आपका आक्युपेशन ही है- रूहानी सेवाधारी। लौकिक में भल कोई भी पोजशन हो लेकिन अलौकिक में रूहानी सेवाधारी हो।

  

     FILL IN THE BLANKS:-    

(डॉक्टर, साक्षी, वायुमंडल, सेकण्ड, शुभचिन्तन, आत्मा, सहयोगी, रूहानी, वाचा, डबल, मन्सा, सदा, वरदानी, विशेष, बच्चों)

 1  अगर कोई ______ है, तो _____ और जिस्मानी ______ डाक्टर बनो।

    डाक्टर / रूहानी / डबल

 

 2  कोई भी _____ सह- योगी बनने के सिवाए न हो। चाहे _____ में सहयोगी बनो चाहे ______ से सहयोगी बनो।

      सेकण्ड / मन्सा / वाचा

 

 3 _____ बन स्व के प्रति भी सदा _______ की वृत्ति और रूहानी _______बनाने के लिए स्व प्रति भी सहयोगी बनो।

      साक्षी / शुभचिन्तन / वायुमंडल

 

 4  _____स्व प्रति और सर्व के प्रति ______ की शुभ भावना रखते हुए सहयोगी _______ बनो।

      सदा / सहयोगी / आत्मा

 

 5  बापदादा सभी _____ को वर्तमान ______ समय पर_____ वरदान कौन-सा देते हैं?

      बच्चों / वरदानी / विशेष

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- आप सबका विशेष वरदान ही है- ‘‘सहयोगी बनना''

   आप सबका विशेष आक्युपेशन ही है- ‘‘सहयोगी बनना''

 

2  :- आप सभी दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चे सदा देते रहते हैं।

 

 3  :- सहज योग में विघ्न नहीं होता हैं।

   सहज योग में क्वेश्चन नहीं होता हैं।

 

4  :- जो भी एक विशेषता हो उसी विशेषता को कार्य में लगाओ अर्थात् सहयोगी बनो।

 

 5   :- सिर्फ सन्देश देने के सहयोगी नहीं बनो, अपने परिवर्तन से सहयोगी बनो।