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AVYAKT MURLI

06 / 01 / 82

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      06-01-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

 

"संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का महत्त्व"

पवित्रता के सागर, सदा पूज्य शिव बाबा बोले:-

‘‘बापदादा आज विशेष बच्चों के प्यूरिटी की रेखा देख रहे हैं। संगमयुग पर विशेष वरदाता बाप से दो वरदान सभी बच्चों को मिलते हैं। एक- सहजयोगी भव'। दूसरा- पवित्र भव'। इन दोनों वरदानों को हर ब्राह्मण आत्मा पुरूषार्थ प्रमाण जीवन में धारण कर रहे हैं। ऐसे धारणा स्वरूप आत्माओं को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के मस्तक और नयनों द्वारा पवित्रता की झलक दिखाई दे रही है। पवित्रता संगमयुगी ब्राह्मणों के महान जीवन की महानता है। पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ श्रृंगार है।' जैसे स्थूल शरीर में विशेष श्वास चलना आवश्यक है। श्वास नहीं तो जीवन नहीं। ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वास है - पवित्रता' 21 जन्मों की प्रालब्ध का आधार अर्थात् फाउण्डेशन पवित्रता है। आत्मा अर्थात् बच्चे और बाप से मिलन का आधार पवित्र बुद्धि' है। सर्व संगमयुगी प्राप्तियों का आधार पवित्रता' है। पवित्रता, पूज्य-पद पाने का आधार है। ऐसे महान वरदान को सहज प्राप्त कर लिया है? वरदान के रूप में अनुभव करते हो वा मेहनत से प्राप्त करते हो? वरदान में मेहनत नहीं होती। लेकिन वरदान को सदा जीवन में प्राप्त करने के लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन चाहिए कि वरदाता और वरदानी' दोनों का सम्बन्ध समीप और स्नेह के आधार से निरन्तर चाहिए। वरदाता और वरदानी आत्मायें दोनों सदा कम्बाइन्ड रूप में रहें तो पवित्रता की छत्रछाया स्वत: रहेगी। जहाँ सर्वशिक्तवान बाप है वहाँ अपवित्रता स्वप्न में भी नहीं आ सकती है। सदा बाप और आप युगल रूप में रहो। सिंगल नहीं, युगल। सिंगल हो जाते हो तो पवित्रता का सुहाग चला जाता है। नहीं तो पवित्रता का सुहाग और श्रेष्ठ भाग्य सदा आपके साथ है। तो बाप को साथ रखना अर्थात् अपना सुहाग, भाग्य साथ रखना। तो सभी, बाप को सदा साथ रखने में अभ्यासी हो ना?

 

विशेष डबल विदेशी बच्चों को अकेला जीवन पसन्द नहीं है ना? सदा कम्पैनियन चाहिए ना! तो बाप को कम्पैनियन बनाया अर्थात् पवित्रता को सदा के लिए अपनाया। ऐसे युगलमूर्त के लिए पवित्रता अति सहज है। पवित्रता ही नैचरल जीवन बन जायेगी। पवित्र रहूँ, पवित्र बनूँ, यह क्वेश्चन ही नहीं। ब्राह्मणों की लाइफ ही पवित्रता' है। ब्राह्मण जीवन का जीय-दान ही पवित्रता है। आदि- अनादि स्वरूप ही पवित्रता है। जब स्मृति आ गई कि मैं आदि-अनादि पवित्र आत्मा हूँ। स्मृति आना अर्थात् पवित्रता की समर्था आना। तो स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप आत्मायें तो निजी पवित्र संस्कार वाली - निजी संस्कार पवित्र हैं। संगदोष के संस्कार अपवित्रता के हैं। तो निजी संस्कारों को इमर्ज करना सहज है वा संगदोष के संस्कार इमर्ज करना सहज है? ब्राह्मण जीवन अर्थात् सहजयोगी और सदा के लिए पावन। पवित्रता ब्राह्मण जीवन के विशेष जन्म की विशेषता है। पवित्र संकल्प ब्राह्मणों की बुद्धि का भोजन है। पवित्र दृष्टि ब्राह्मणों के आँखों की रोशनी है। पवित्र कर्म ब्राह्मण जीवन का विशेष धन्धा है। पवित्र सम्बन्ध और सम्पर्क ब्राह्मण जीवन की मर्यादा है।

 

तो सोचो - कि ब्राह्मण जीवन की महानता क्या हुई? पवित्रता हुई ना! ऐसी महान चीज को अपनाने में मेहनत नहीं करो, हठ से नहीं अपनाओ। मेहनत और हठ निरन्तर नहीं हो सकता। लेकिन यह पवित्रता तो आपके जीवन का वरदान है, इसमें मेहनत और हठ क्यों? अपनी निजी वस्तु है। अपनी चीज को अपनाने में मेहनत क्यों? पराई चीज को अपनाने में मेहनत होती है। पराई चीज अपवित्रता है, न कि पवित्रता। रावण पराया है, अपना नहीं है। बाप अपना है, रावण पराया है। तो बाप का वरदान पवित्रता है रावण का श्राप अपवित्रता है। तो रावण पराये की चीज को क्यों अपनाते हो? पराई चीज अच्छी लगती है? अपनी चीज पर नशा होता है। तो सदा स्व-स्वरूप पवित्र है, स्वधर्म पवित्रता है अर्थात् आत्मा की पहली धारणा पवित्रता है। स्वदेश पवित्र देश है। स्वराज्य पवित्र राज्य है। स्व का यादगार परम पवित्र पूज्य है। कर्मेन्द्रियों का अनादि स्वभाव सुकर्म है, बस यही सदा स्मृति में रखो तो मेहनत और हठयोग से छूट जायेंगे। बापदादा बच्चों को मेहनत करते हुए नहीं देख सकते, इसलिए हो ही सब पवित्र आत्मायें। स्वमान में स्थित हो जाओ। स्वमान क्या है? - ‘‘मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।'' सदा अपने इस स्वमान के आसन पर स्थित होकर हर कर्म करो। तो सहज वरदानी हो जायेंगे। यह सहज आसन है। तो सदा पवित्रता की झलक और फलक में रहो। स्वमान के आगे देह अभिमान आ नहीं सकता। समझा!

 

डबल विदेशी तो इसमें पास हो ना? हठयोगी तो नहीं हो? मेहनत वाले योगी तो नहीं हो? मुहब्बत में रहो तो मेहनत खत्म। लवलीन आत्मा बनो, सदा एक बाप दूसरा न कोई, यही नैचरल प्युरिटी है। तो यह गीत गाना नहीं आता है? यही गीत गाना सहज पवित्र आत्मा बनना है। अच्छा

 

ऐसे सदा स्व-आसन के अधिकारी आत्मायें, सदा ब्राह्मण जीवन की महानता वा विशेषता को जीवन में धारण करने वाली आदि अनादि पवित्र आत्मायें, स्व स्वरूप, स्वधर्म, सुकर्म में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को वा परम पवित्र पूज्य आत्माओं को, पवित्रता के वरदान प्राप्त किये हुए महान आत्माओं को, बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।''

 

फ्रांस, ब्राजील तथा अन्य कुछ स्थानों से आये हुए विदेशी बच्चों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

 

(1) सभी अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान समझते हुए हर कार्य करते हो? सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करेंगे तो सेवा में सफलता हुई पड़ी है क्योंकि वर्तमान समय की सेवा में सफलता का विशेष साधन है - वृत्ति से वायुमण्डल बनाना'। आजकल की आत्माओं को अपनी मेहनत से आगे बढ़ना मुश्किल है इसलिए अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल ऐसा पावरफुल बनाओ जो आत्मायें स्वत: आकर्षित होते आ जाएँ। तो सेवा की वृद्धि का फाउण्डेशन यह है - बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं वह चारों ओर करने चाहिए। सिर्फ एक ही एरिया में ज्यादा मेहनत और समय नहीं लगाओ और चारों तरफ सेवा के साधनों द्वारा सेवा को फैलाओ तो सब तरफ निकले हुए चैतन्य फूलों का गुलदस्ता तैयार हो जायेगा।

 

(2) बापदादा खुशनसीब बच्चों को देख अति हर्षित होते हैं। हरेक रूहे गुलाब हैं। रूहे गुलाब ग्रुप अर्थात् रूहानी बाप की याद में लवलीन रहने वाला ग्रुप। सभी के चेहरे पर खुशी की झलक चमक रही है।

 

बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न विश्व में अमूल्य रत्न है इसलिए बापदादा उसी विशेषता को देखते हुए हर रत्न की वैल्यु को देखते हैं। एक-एक रत्न अनेकों की सेवा के निमित्त बनने वाला है। सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करो। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ हो क्योंकि जब बाप के बन गये तो विजय तो आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। इसलिए यादगार भी विजय माला' गाई और पूजी जाती है। सभी विजय माला के मणके हो ना? अभी फाइनल नहीं हुआ है इसलिए चांस है जो भी चाहे सीट ले सकते हैं।

 

(3) सदा अपने को हर गुण, हर शक्ति के अनुभवी मूर्त अनुभव करते हो? क्योंकि संगमयुग पर ही सर्व अनुभवी मूर्त बन सकते हो। जो संगम युग की विशेषता है उसको जरूर अनुभव करना चाहिए ना। तो सभी अपने को ऐसे अनुभवीमूर्त समझते हो? शक्तियाँ और गुण, दोनों ही बड़े खजाने हैं। तो कितने खजानों के मालिक बन गये हो? बापदादा तो सर्व खजाने बच्चों को देने के लिए ही आये हैं। जितना चाहो उतना ले सकते हो? सागर है ना! तो सागर अर्थात् अथाह। खुटने वाला नहीं। तो मास्टर सागर बने हो?

 

सबसे ज्यादा भाग्य विदेशियों का है। जो घर बैठे बाप का परिचय मिल गया है। इतना भाग्यवान अपने को समझते हो ना? बहुत लगन वाली आत्मायें हैं, स्नेही आत्मायें हैं। स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप बाप और बच्चों का मेला हो रहा है। हरेक अपने को सूर्यवंशी आत्मा समझते हो? पहले राज्य में आयेंगे वा दूसरे नम्बर के राज्य में आयेंगे? फर्स्ट राज्य में आने का एक ही पुरूषार्थ है, वह कौन सा? सदा एक की याद में रहकर एकरस अवस्था बनाओ तो वन-वन और वन में आ जायेंगे। अच्छा

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की क्या महिमा समझायी है?

 प्रश्न 2 :- पवित्रता को अपनाने में मेहनत क्यों लगती है?

 प्रश्न 3 :- ब्राह्मण जीवन की महानता पवित्रता है, कैसे? पवित्रता रूपी महान वरदान को सहज प्राप्त करने की क्या विधि है?

 प्रश्न 4 :- सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करने से क्या होगा?

 प्रश्न 5 :- बापदादा सभी बच्चों को सदा अपने को हर गुण, हर शक्ति के अनुभवीमूर्त बनने के लिए क्यों ईशारा करते हैं?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(लगन, गुलाब, महान, विजय, एक, प्रत्यक्ष, लवलीन, मेहनत, फाइनल, एकरस, मेला, खुशी, निरन्तर, चांस, वन)

 1   सदा _____ की याद में रहकर _____ अवस्था बनाओ तो, वन-वन और _____ में आ जायेंगे।

 2  सभी _____ माला के मणके हो ना! अभी _____ नहीं हुआ है इसलिए _____ है; जो भी चाहे, सीट ले सकते हैं।

 3   ऐसी _____ चीज को अपनाने में _____ नहीं करो, हठ से नहीं अपनाओ। मेहनत और हठ _____ नहीं हो सकता।

 4  रूहे _____ ग्रुप अर्थात् रूहानी बाप की याद में _____ रहने वाला ग्रुप। सभी के चेहरे पर _____ की झलक चमक रही है।

 5  बहुत _____ वाली आत्मायें हैं, स्नेही आत्मायें हैं। स्नेह का _____ स्वरूप बाप और बच्चों का _____ हो रहा है।

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-】【

 1  :- बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं, वह एक ही एरिया में  करने चाहिए।

 2  :- बाप पराया है, अपना नहीं है। रावण अपना है, बाप पराया है।

 3  :- बाप का वरदान पवित्रता है; रावण का वरदान अपवित्रता है।

 4  :- सबसे ज्यादा भाग्य विदेशियों का है, जो घर बैठे बाप का परिचय मिल गया है।

 5   :- पराई चीज पर नशा होता है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की क्या महिमा समझायी है?

   उत्तर 1 :-बापदादा ने समझाया कि संगमयुग पर विशेष वरदाता बाप से दो वरदान सभी बच्चों को मिलते हैं। एक–‘सहजयोगी भव'; दूसरा–‘पवित्र भव'। इन दोनों वरदानों को हर ब्राह्मण आत्मा पुरूषार्थ प्रमाण जीवन में धारण कर रही है। हर एक बच्चे के मस्तक और नयनों द्वारा पवित्रता की झलक दिखाई दे रही है।

ब्राह्मण जीवन में पवित्रता की महिमा को समझाते हुए बाबा ने कहा कि:

          पवित्रता संगमयुगी ब्राह्मणों के महान जीवन की महानता है।

          पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ श्रृंगार है।

          जैसे स्थूल शरीर में विशेष श्वास चलना आवश्यक है; श्वास नहीं, तो जीवन नहींऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वास है पवित्रता।

          ❹ 21 जन्मों की प्रालब्ध का आधार अर्थात् फाउण्डेशन पवित्रता है।

          आत्मा अर्थात् बच्चे और बाप से मिलन का आधार पवित्र बुद्धि' है।

          ❻  सर्व संगमयुगी प्राप्तियों का आधार पवित्रता है।

          पवित्रता पूज्य-पद पाने का आधार है।

          ब्राह्मणों की लाइफ ही पवित्रता है।

          ब्राह्मण जीवन का जीयदान ही पवित्रता है।

          ❿ आदि-अनादि स्वरूप ही पवित्रता है।

 

 प्रश्न 2 :- पवित्रता को अपनाने में मेहनत क्यों लगती है?

 उत्तर 2 :-पवित्रता को अपनाने में मेहनत लगती है, क्योंकि बच्चे रावण की परायी चीज को अपनाते है। परायी चीज को अपनाने में मेहनत होती है। पराई चीज अपवित्रता है, न कि पवित्रता। स्वमान में स्थित हो जाओ–‘‘मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।'' सदा अपने इस स्वमान के आसन पर स्थित होकर हर कर्म करो, तो सहज वरदानी हो जायेंगे। यह सहज आसन है। तो सदा पवित्रता की झलक और फलक में रहो। स्वमान के आगे देह अभिमान आ नहीं सकता। तो यही सदा स्मृति में रखो, तो मेहनत और हठयोग से छूट जायेंगे।

          सदा स्व-स्वरूप पवित्र है, स्वधर्म पवित्रता है अर्थात् आत्मा की पहली धारणा पवित्रता है।

          स्वदेश पवित्र देश है। स्वराज्य पवित्र राज्य है।

          स्व का यादगार परम पवित्र पूज्य है। कर्मेन्द्रियों का अनादि स्वभाव सुकर्म है।

          सदा एक बाप दूसरा न कोईयही नैचरल प्युरिटी है। मुहब्बत में रहो, तो मेहनत खत्म। लवलीन आत्मा बनोयही गीत गाना सहज पवित्र आत्मा बनना है।

बापदादा बच्चों को मेहनत करते हुए नहीं देख सकते, इसलिए हो ही सब पवित्र आत्मायें। बाबा ने पूछा कि यह पवित्रता तो आपके जीवन का वरदान है, तो:

          इसमें मेहनत और हठ क्यों?

          रावण पराये की चीज को क्यों अपनाते हो?

          परायी चीज अच्छी लगती है?

          पवित्रता अपनी निजी वस्तु है; अपनी चीज को अपनाने में मेहनत क्यों?

          हठयोगी तो नहीं हो? मेहनत वाले योगी तो नहीं हो?

       

 प्रश्न 3 :- ब्राह्मण जीवन की महानता पवित्रता है, कैसे? पवित्रता रूपी महान वरदान को सहज प्राप्त करने की क्या विधि है?

   उत्तर 3 :- बाबा ने समझाया कि ब्राह्मण जीवन अर्थात् सहजयोगी और सदा के लिए पावन। जब स्मृति आ गई कि मैं आदि-अनादि पवित्र आत्मा हूँ स्मृति आना अर्थात् पवित्रता की समर्थी आना। तो स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप आत्मायें तो निजी पवित्र संस्कार वाली हुई। निजी संस्कार पवित्र हैं; संगदोष के संस्कार अपवित्रता के हैं। निजी संस्कारों को इमर्ज करना सहज होता है, न कि संगदोष के संस्कार को।

          पवित्रता ब्राह्मण जीवन के विशेष जन्म की विशेषता है।

          ❷  पवित्र संकल्प ब्राह्मणों की बुद्धि का भोजन है।

          पवित्र दृष्टि ब्राह्मणों के आँखों की रोशनी है।

          पवित्र कर्म ब्राह्मण जीवन का विशेष धन्धा है।

          पवित्र सम्बन्ध और सम्पर्क ब्राह्मण जीवन की मर्यादा है।

बाबा ने पूछा कि पवित्रता वरदान के रूप में अनुभव करते हो वा मेहनत से प्राप्त करते हो! वरदान में मेहनत नहीं होती। लेकिन वरदान को सदा जीवन में प्राप्त करने के लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन चाहिए कि वरदाता और वरदानी'–दोनों का सम्बन्ध समीप और स्नेह के आधार से निरन्तर चाहिए।

          वरदाता और वरदानी आत्मायेंदोनों सदा कम्बाइन्ड रूप में रहें, तो पवित्रता की छत्रछाया स्वत: रहेगी।

          जहाँ सर्वशिक्तवान बाप है, वहाँ अपवित्रता स्वप्न में भी नहीं आ सकती है।

          सदा बाप और आप युगल रूप में रहो। सिंगल नहीं, युगल। सिंगल हो जाते हो, तो पवित्रता का सुहाग चला जाता है। नहीं तो, पवित्रता का सुहाग और श्रेष्ठ भाग्य सदा आपके साथ है। तो बाप को साथ रखना अर्थात् अपना सुहाग, भाग्य साथ रखना।

          बाप को कम्पैनियन बनाया, अर्थात् पवित्रता को सदा के लिए अपनाया। ऐसे युगलमूर्त के लिए पवित्रता अति सहज है। पवित्रता ही नैचरल जीवन बन जायेगी। पवित्र रहूँ, पवित्र बनूँयह क्वेश्चन ही नहीं।

         

 प्रश्न 4 :- सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करने से क्या होगा?

  उत्तर 4 :-बाबा ने समझाया कि सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करेंगे, तो सेवा में सफलता हुई पड़ी है, क्योंकि:

          वर्तमान समय की सेवा में सफलता का विशेष साधन है– 'वृत्ति से वायुमण्डल बनाना'

          आजकल की आत्माओं को अपनी मेहनत से आगे बढ़ना मुश्किल है, इसलिए अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल ऐसा पावरफुल बनाओ, जो आत्मायें स्वत: आकर्षित होते आ जाएँ।  सेवा की वृद्धि का फाउण्डेशन यह है।

          सिर्फ एक ही एरिया में ज्यादा मेहनत और समय नहीं लगाओ; और चारों तरफ सेवा के साधनों द्वारा सेवा को फैलाओ, तो सब तरफ निकले हुए चैतन्य फूलों का गुलदस्ता तैयार हो जायेगा।

          बापदादा खुशनसीब बच्चों को देख अति हर्षित होते हैं। हरेक रूहे गुलाब हैं।

         

 प्रश्न 5 :- बापदादा सभी बच्चों को सदा अपने को हर गुण, हर शक्ति के अनुभवीमूर्त बनने के लिए क्यों ईशारा करते हैं?

 उत्तर 5 :-बापदादा सभी बच्चों को सदा अपने को हर गुण, हर शक्ति के अनुभवीमूर्त बनने के लिए अथवा स्वयं को अनुभवीमूर्त अनुभव करने के लिए ईशारा करते हैं, क्योंकि बच्चे संगमयुग पर ही सर्व अनुभवी मूर्त बन सकते हैं।  बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैंएक-एक रत्न विश्व में अमूल्य रत्न है, इसलिए बापदादा उसी विशेषता को देखते हुए हर रत्न की वैल्यु को देखते हैं। एक-एक रत्न अनेकों की सेवा के निमित्त बनने वाला है। इसलिए बाबा पूछते हैं कि:

          सभी अपने को ऐसे अनुभवीमूर्त समझते हो?

जो संगम युग की विशेषता है, उसको जरूर अनुभव करना चाहिए ना। 

          कितने खजानों के मालिक बन गये हो? शक्तियाँ और गुणदोनों ही बड़े खजाने हैं।  बापदादा तो सर्व खजाने बच्चों को देने के लिए ही आये हैं।

          मास्टर सागर बने हो? जितना चाहो उतना ले सकते हो? सागर है ना! तो सागर अर्थात् अथाह। खुटने वाला नहीं।

          इतना भाग्यवान अपने को समझते हो ना? हरेक अपने को सूर्यवंशी आत्मा समझते हो? पहले राज्य में आयेंगे वा दूसरे नम्बर के राज्य में आयेंगे? सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करो। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ हो, क्योंकि जब बाप के बन गये तो विजय तो आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। इसलिए यादगार भी विजय माला' गाई और पूजी जाती है। 

         

      FILL IN THE BLANKS:-    

(लगन, गुलाब, महान, विजय, एक, प्रत्यक्ष, लवलीन, मेहनत, फाइनल, एकरस, मेला, खुशी, निरन्तर, चांस, वन)

 1   सदा _____ की याद में रहकर _____ अवस्था बनाओ तो, वन-वन और _____ में आ जायेंगे।

    एक / एकरस / वन

 

 2  सभी _____ माला के मणके हो ना! अभी _____ नहीं हुआ है इसलिए _____ है; जो भी चाहे, सीट ले सकते हैं।

      विजय / फाइनल / चांस

 

 3   ऐसी _____ चीज को अपनाने में _____ नहीं करो, हठ से नहीं अपनाओ। मेहनत और हठ _____ नहीं हो सकता।

      महान / मेहनत / निरन्तर

 

 4  रूहे _____ ग्रुप अर्थात् रूहानी बाप की याद में _____ रहने वाला ग्रुप। सभी के चेहरे पर _____ की झलक चमक रही है।

      गुलाब / लवलीन / खुशी

 

 5  बहुत _____ वाली आत्मायें हैं, स्नेही आत्मायें हैं। स्नेह का _____ स्वरूप बाप और बच्चों का _____ हो रहा है।

      लगन / प्रत्यक्ष / मेला

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-】【

 1  :- बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं, वह एक ही एरिया में  करने चाहिए।

   बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं, वह चारों ओर करने चाहिए।

 

2  :- बाप पराया है, अपना नहीं है। रावण अपना है, बाप पराया है।

   रावण पराया है, अपना नहीं है। बाप अपना है, रावण पराया है।

 

3  :- बाप का वरदान पवित्रता है; रावण का वरदान अपवित्रता है।

  बाप का वरदान पवित्रता है; रावण का श्राप अपवित्रता है।

 

 4  :- सबसे ज्यादा भाग्य विदेशियों का है, जो घर बैठे बाप का परिचय मिल गया है।

 

 5   :- पराई चीज पर नशा होता है।

   अपनी चीज पर नशा होता है।