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AVYAKT MURLI

13 / 01 / 83

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13-01-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

स्वर्दशन चक्रधारी ही चक्रवर्ती राज्य-भाग्य के अधिकारी

विश्व कल्याणकारी, वरदानी व महादानी, नजर से निहाल करने वाले बाबा बोले :-

 

‘‘सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो? स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में चक्रवर्ती राज्य भाग के अधिकारी बनते हैं। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् अपने सारे चक्र के अन्दर सर्व भिन्न-भिन्न पार्ट को जानने वाले। सभी ने यह विशेष बात जान ली कि हम सब इस चक्र के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हैं। इस अन्तिम जन्म में हीर-तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अन्दर हीरो पार्ट बजाने वाले बन जाते हौ। आदि से अन्त तक क्या क्या जन्म लिए हैं, सब स्मृति में हैं? क्योंकि इस समय नालेजफुल बनते हो। इस समय ही अपने सभी जन्मों को जान सकते हो तो 5 हजार वर्ष की जन्म-पत्री को जान लिया। कोई भी जन्मपत्री बताने वाले अगर किसको सुनायेंगे भी तो दो चार छे जन्म का ही बतायेंगे। लेकिन आप सबको बापदादा ने सभी जन्मों की जन्मपत्री बतादी है। तो आप सभी मास्टर नालेजफुल बन गये ना। सारा हिसाब चित्रों में भी दिखा दिया है। तो जरूर जानते हो तब तो चित्रों में दिखाया है ना। अपनी जन्मपत्री का चित्र देखा है? उस चित्र को देख करके ऐसा अनुभव करते हो कि यह हमारी जन्मपत्री का चित्र है। वा समझते हो नालेज समझाने का चित्र है। यह तो नशा है ना कि हम ही विशेष आत्मयें सृष्टि के आदि से अन्त तक कापार्ट बजाने वाली हैं। ब्रह्मा बाप के साथ साथ सृष्टि के आदि पिता और आदि माता के साथ सारे कल्प में भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते आये हो ना। ब्रह्मा बाप के साथ पूरे कल्प की प्रीत कीरीति निभाने वाले हो ना। निर्वाण जाने की इच्छा वाले तो नहीं हो ना। जिसने आदि नहीं देखी उसने क्या किया। आप सबने कितनी बार सृष्टि के आदि का सुनहरी दृश्य देखा है। वह समय वह राज्य, वह अपना स्वरूप, वह सर्व सम्पन्न जीवन, अच्छी तरह से याद है वा याद दिलाने की जरूरत है? अपने आदि के जन्म अर्थात् पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों के महत्व को अच्छी तरह से जान लिया है ना। दोनों की महिमा अपरमपार है।

 

जैसे आदिदेव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण, दोनां का अन्तर दिखाते हो और दोनो को साथ-साथ दिखाते हो - ऐसे ही आप सब भी अपना ब्राहमण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनों को सामने रखते हुए देखो कि आदि से अन्त तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही हैं। तो बहुत नशा और खुशी रहेगी। बनाने वाले और बनने वाले दोनों की विशेषता है। बापदादा सभी बच्चों के दोनों ही स्वरूप देखकर हर्षित होते हैं। चाहे नम्बरवार हो, लेकिन देव आत्मा तो सभी बनेंगे ना। देवताओं को पूज्य, श्रेष्ठ महान सभी मानते हैं। चाहे लास्ट नम्बर की देव आत्मा हो फिर पूज्य आत्म की लिस्ट में हैं। आधा कल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधा कल्प माननीय और पूज्यनीय श्रेष्ठ आत्मा बने। जो अपने चित्रों की पूजा, मान्यता चैतन्य रूप में ब्राहमण रूप से देव रूप की अभी भी देख रहे हो। तो इससे श्रेष्ठ और कोई हो सकता है। सदा इस स्मृति स्वरूप में स्थित रहो। फिर बार-बार नीचे की स्टेज से ऊपर की स्टेज पर जाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।

 

सभी जहाँ से भी आए हैं। लेकिन इस समय मधुबन निवासी हैं। तो सभी मधुबन निवासी सहज स्मृति स्वरूप बन गये हो ना। मधुबन निवासी बनाना भी भाग्यवान की निशानी है। क्योंकि मधुबन के गेट में आना और वरदान को सदा के लिए पाना। स्थान का भी महत्व है। सभी मधुबन निवासी वरदान स्वरूप में स्थित हो ना। सम्पन्न-पन की स्टेज अनुभव कर रहे हो ना। सम्पन्न स्वरूप तो सदा खुशी में नाचते और बाप के गुण गाते। ऐसे खुशी में नाचते रहो जो आपको देखकर औरों काभी स्वत: खुशी में मन नाचते। जैस स्थूल डाँस को देख दूसरे के अन्दर भी नाचने का उमंग उत्पन्न हो जाता है ना। तो सदा ऐसे नाचो और गाते रहो। अच्छा

 

डबल विदेशी बच्चों को यह भी विशेष चान्स है क्योंकि अभी सिकीलधे हो। जब डबल विदेशियों को भी संख्या बहुत हो जायेगी तो फिर क्या करेंगे। जैसे भारतवासी बच्चों ने डबल विदेशियों को चान्स दिया है ना, तो आप भी ऐसे दूसरों को चान्स देंगेना। दूसरों की खुशी से अपनी खुशी अनुभव करना यही महादानी बनना है।’’

 

पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

 

सिंगापुर पार्टी- सिंगापुर को बापदादा, बाप का श्रृंगार कहते हैं आप सब कौन सा श्रृंगार हो? मस्तक की मणि हो? मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप याद रहे। ऐसी मस्तक मणि हो। इसी कोही उंची स्टेज कहा जाता है। सदा अपने को ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा हूँ’ - ऐसे समझते हुए आगे बढ़ते रहो। इसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाले नीचे की अनेक प्रकार की बातों को ऐसे पार करेंगे जैसे कुछ है ही नहीं। समस्याएँ नीचे रहेंगी आप ऊपर होजायेंगे। सदा अपना मस्तकमणि का टाइटिल याद रखना। नीचे नहीं आना। सदा ऊपर। मस्तकमणि का स्थान ही ऊंचा मस्तक है। ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हो। बापदादा ने विशेष श्रृंगार को चुन लिया है। अपने भाग्य को सदा स्मृति में रख आगे बढ़ते चलो। उड़ती कला में उड़ते और उड़ाते चलो। संगमयुग है ही उड़ने और उड़ाने का युग। समय को वरदान प्राप्त है ना।

 

अफ्रीका पार्टी से - सदा के स्नेही और सदा के सहयोगी आत्मायें। स्नेह औरसहयोग के कारण अविनाशी रतन बन गये। अविनाशी बाप ने, बाप समान अविनाशी रतन बना दिया। ऐसे अविनाशी रतन जो किसी भी प्रकार से कोई हिला न सके। ऐसे अविनाशी रतन अमरभव के वरदानी हो। रीयल गोल्ड हो ना। बाप के साथी - बाप का कार्य सो आपका कार्य। सदा साथ रहेंगे इसलिए अविनाशी रहेंगे।

 

सच्ची लगन विघ्नों को समाप्त कर देती है। कितनी भी रूकावटें आएं लेकिन एक बल एक भरोसे के आधार पर सफलता मिलती रही है और मिलती रहेगी, ऐसा अनुभव होता रहता है ना। जहाँ सर्व शक्तिवान बाप साथ है वहाँ यह छोटी छोटी बातें ऐसे समाप्त हो जाती हैं जैसे कुछ भी थी ही नहीं। असम्भव भी सम्भव हो जाता है क्योंकि सर्व शक्तिवान के बच्चे बन गए। मक्खन से बाल समान सब बातें सिद्ध हो जाती हैं। अपने को ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्मायें अनुभव करते हो ना। कमज़ोरी तो नहीं आती। बाप सर्वशक्तिवान हैं, तो बच्चों को बाप अपने से भी आगे रखते हैं। बाप ने कितना ऊंच बनाया है, क्या क्या दिया है - इसी का सिमरण करते-करते सदा हर्षित और शक्तिशाली रहेंगे।

 

ट्रिनीडाड, ग्याना - सदा अपने को बाप समान सर्वगुण, सर्वशक्तियों से सम्पन्न आत्मा हैं - ऐसे अनुभव करते हो? बाप के बच्चे तो सदा हो ना। जब बच्चे सदा हैं तो बाप समान धारणा स्वरूप भी सदा चाहिए ना। यही सदा अपने आप से पूछो कि बाप के वर्से की अधिकारी आत्मा हूँ। अधिकारी आत्मको अधिकार कभी भूल नहीं सकता। जब सदा का राज्य पाना है तो याद भी सदा की चाहिए।

 

हिम्मत रखकर, निर्भय होकर आगे बढ़ते रहे हो इसलिए मदद मिलती रही है। हिम्मत की विशेषता से सर्व का सहयोग मिल जाता है। इसी एक विशेषता से अनेक विशेषताएँ स्वत: आती जाती हैं। एक कदम आगे रखा और अनेक कदम सहयोग के अधिकारी बने इसलिए इसी विशेषता का औरों को भी दान और वरदान देते आगे बढ़ाते रहो। जैसे वृक्ष को पानी मिलने से फलदायक हो जाता है, वैसे विशेषताओं को सेवा में लगाने से फलदायक बन जाते हैं। तो ऐसे विशेषताओं को सेवा में लगाए फल पाते रहना। अच्छा

 

मौरीशियस - सदा अपने को बाप समान महादानी और वरदानी आत्मा समझते हो? बापदादा अपने समान शिक्षक अर्थात् निमित्त सेवाधारी आत्माओं को देख हर्षित होते हैं। सदा पहले स्वंय को बाप समान स्वरूप सम्पन्न स्वरूप समझते हो? क्योंकि सेवाधारी अगर स्वंय सम्पन्न नहीं तो औरों को क्या होगा। सुना,अनुभव किया और ऐसा गोल्डन चान्स बाप समान सेवाधारी बनने का मिला, इससे बड़ा भाग्य और क्या होगा। इसी प्राप्त हुए भाग्य को सदा आगे बढ़ाते चलो। अच्छा

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा में विशेष बात क्या है ?

 

 प्रश्न 2 :-  अपने आदि के जन्म अर्थात पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों के महत्व बताइए ?

 

 प्रश्न 3 :-  मधुबन निवासी आत्माओं के महत्व का वर्णन कीजिये  ?

 

 प्रश्न 4 :-   बाप का श्रृंगार है मस्तकमणि होना, इसका अर्थ क्या है  ?

 

 प्रश्न 5 :-  सेवा कार्य में आने वाली विघ्नों को समाप्त करने की विधि क्या है ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( संगमयुग, उड़ाने, मस्तक, याद, उड़ने, बाप, प्रीत, कल्प, ब्रह्मा, निशानी, मधुबन, भविष्य, अधिकारी, भाग्यवान, चक्रवर्ती )

 

1         स्वदर्शन चक्रधारी ही _______ में _______ राज्य-भाग्य के _______ बनते है ।

 

2         _______ बाप के साथ पूरे _______ की _______ की रीति निभानेवाले हो न ।

 

3         _______ निवासी बनाना भी _______ की _______ है ।

 

4         मस्तकमणि अर्थात जिसके _______ में सदा _______ _______ रहे ।

 

5         _______ है ही _______ और _______ का युग।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1      :-  स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात अपने सारे चक्र के अंदर सर्व भिन्न भिन्न पार्ट को जानने वाले ।

 

2      :-  यह तो नशा है न कि हम ही साधारण आत्मायें सृष्टि के आदि से अंत तक का पार्ट बजाने वाली है ।

 

3      :-  सभी जहां से भी आये है, लेकिन इस समय स्थायी निवासी नही है ।

 

4      :-  दूसरों की खुशी से अपनी खुशी अनुभव करना यही महादानी बनना है ।

 

5      :-  जब सदा का राज्य पाना है तो याद भी सदा की चाहिए ।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा में विशेष बात क्या है ?

 

 उत्तर 1 :-  स्वदर्शन चक्रधारी आत्मा में विशेष बात है :-

          स्वदर्शन चक्रधारी का अर्थ है अपने सारे चक्र के अंदर सर्व भिन्न भिन्न पार्ट को जानने वाले। सभी  इस चक्र के अंदर हीरो पार्ट बजानेवाली विशेष आत्मायें है। 

          इस अंतिम जन्म में हीरे तुल्य जीवन बनाने से सारे कल्प के अंदर हीरो पार्ट बजानेवाले बन जाते है। आदि से अंत तक की जन्मों की स्मृति रहती है क्योंकि इस समय नॉलेजफुल बनते है।

          इस समय ही अपने सभी जन्मों को जान सकते है । आप सभी को बापदादा ने सभी जन्मों की जन्मपत्री बता दी है। सभी मास्टर नॉलेजफुल बन गए है।

 

 प्रश्न 2 :-  अपने आदि के जन्म अर्थात पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों के विशेषता बताइए  ?

 

 उत्तर 2 :-  अपने आदि के जन्म अर्थात पहले जन्म और अब लास्ट के जन्म दोनों की विशेषता है :-

          दोनो जन्मों की महिमा अपरमपार है। जैसे आदि देव ब्रह्मा और आदि आत्मा श्रीकृष्ण , दोनो का अंतर दिखाते हो और दोनों को साथ साथ दिखाते हो - ऐसे ही आप सब भी अपना ब्राह्मण स्वरूप और देवता स्वरूप दोनो को सामने रखते हुए देखो कि आदि से अंत तक हम कितनी श्रेष्ठ आत्मायें रही।

          फलतः बहुत नशा और खुशी रहेगी। बनाने वाले और बननेवाले दोनो की विशेषता है। बापदादा सभी बच्चों के दोनों ही स्वरूप देखकर हर्षित होते है। 

          चाहे नम्बरवार हो, लेकिन देव आत्मा तो सभी बनेंगे। देवताओं को पूज्य, श्रेष्ठ महान सभी मानते है। चाहे लास्ट नम्बर की देव आत्मा हो फिर पूज्य आत्मा की लिस्ट में है। आधाकल्प राज्य भाग्य प्राप्त किया और आधाकल्प माननीय पूजनीय श्रेष्ठ आत्मा बने।

 

 प्रश्न 3 :-  मधुबन निवासी आत्माओं के महत्व का वर्णन कीजिये ?

 

 उत्तर 3 :- मधुबन निवासी  आत्माओं का महत्व है :-

          सभी मधुबन निवासी सहज स्मृति स्वरूप है। मधुबन निवासी बनाना भी भाग्य की निशानी है।

          मधुबन के गेट में आना और वरदान को सदा काल के लिए पाना। स्थान का भी महत्व है। सभी मधुबन निवासी वरदान स्वरूप में स्थित है।

          सम्पन्न-पन की स्टेज अनुभव करते है। सम्पन्न स्वरूप तो सदा खुशी में नाचते और बाप के गुण गाते। ऐसे खुशी में नाचते रहो जो आपको देखकर औरों का भी स्वतः खुशी में मन नाचता रहे। सदा ऐसे नाचो और गाते रहो।

 

 प्रश्न 4 :- बाप का श्रृंगार है मस्तकमणि होना, इसका अर्थ क्या है ?

 

 उत्तर 4 :-  ऐसी मस्तकमणि होने का अर्थ है :-

          ❶  जिसके मस्तक में सदा बाप याद रहे। इसी को ही ऊंची स्टेज कहा जाता है। 'सदा अपने को ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहनेवाली श्रेष्ठ आत्मा हूं - ऐसे समझते हुए आगे बढ़ते रहो।

          ❷  इसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहनेवाले नीचे की अनेक प्रकार की बातों को ऐसे पार करेंगे जैसे कुछ है ही नही। समस्याएं नीचे रहेंगी आप ऊपर हो जाएंगे। 

          सदा अपना मस्तकमणि टाइटल याद रखना। नीचे नही आना, सदा ऊपर। मस्तकमणि का स्थान ऊंचा मस्तक है। ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हो, बापदादा ने विशेष श्रृंगार को चुन लिया है।

 

 प्रश्न 5 :-  सेवा कार्य में आने वाली विघ्नों को समाप्त करने की विधि क्या है ?

 

 उत्तर 5 :- सेवा कार्य में आने वाली विघ्नों को समाप्त करने की निम्न विधि है :-

          सच्ची लगन विघ्नों को समाप्त कर देती है। कितनी भी रुकावटें आये लेकिन एक बल एक भरोसे के आधार पर सफलता मिलती रही है और मिलती रहेगी।

          जहां सर्वशक्तिवान बाप साथ है वहां यह छोटी छोटी बातें ऐसे समाप्त हो जाती है जैसे कुछ भी थी ही नही। असम्भव भी सम्भव बन जाता है। 

          ❸ 'मक्खन से बाल' समान सब बातें सिद्ध हो जाती है। बाप ने कितना ऊंच बनाया है, क्या क्या दिया है - इसी का सिमरण करते-करते सदा हर्षित और शक्तिशाली रहेंगे।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( संगमयुग, उड़ाने, मस्तक, याद, उड़ने, बाप, प्रीत, कल्प, ब्रह्मा, निशानी, मधुबन, भविष्य, अधिकारी, भाग्यवान, चक्रवर्ती )

 

 1   स्वदर्शन चक्रधारी ही _______ में _______ राज्य-भाग्य के _______ बनते है ।

    भविष्य / चक्रवर्ती / अधिकारी

 

 2  _______ बाप के साथ पूरे _______ की _______ की रीति निभानेवाले हो न ।

    ब्रह्मा / कल्प / प्रीत

 

 3   _______ निवासी बनाना भी _______ की _______ है ।

      मधुबन / भाग्यवान / निशानी

 

 4  मस्तकमणि अर्थात जिसके _______ में सदा _______ _______ रहे ।

     मस्तक / बाप / याद

 

 5  _______ है ही _______ और _______ का युग ।

  संगमयुग / उड़ने / उड़ाने

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :-  स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात अपने सारे चक्र के अंदर सर्व भिन्न भिन्न पार्ट को जानने वाले ।

 

 2  :-  यह तो नशा है न कि हम ही साधारण आत्मायें सृष्टि के आदि से अंत तक का पार्ट बजाने वाली है ।

 यह तो नशा है न कि हम ही विशेष आत्मायें सृष्टि के आदि से अंत तक का पार्ट बजाने वाली है ।

 

 3  :-  सभी जहां से भी आये है, लेकिन इस समय स्थायी निवासी नही है ।

  सभी जहां से भी आये है, लेकिन इस समय मधुबन निवासी है।

 

 4  :-  दूसरों की खुशी से अपनी खुशी अनुभव करना यही महादानी बनना है ।

 

 5   :-  जब सदा का राज्य पाना है तो याद भी सदा की चाहिए ।