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AVYAKT MURLI

03 / 04 / 83

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03-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

प्रथम और अंतिम पुरूषार्थ

सदा बेहद की स्थिति में स्थित करने वाले, सदा कर्मातीत शिव बाबा बोले:-

आज बेहद का बाप, बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, बेहद की बुद्धि, बेहद की दृष्टि, बेहद की वृत्ति, बेहद के सेवाधारी ऐसे - श्रेष्ठ बच्चों से साकार स्वरूप में साकार वतन में बेहद के स्थान पर मिलने आये हैं। सारे ज्ञान का वा इस पढ़ाई की चारों ही सबजेक्ट का मूल सार यही एक बात ‘‘बेहद’’ है। बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है। पहले बाप का बनना अर्थात् मरजीवा बनना। इसका भी आधार है - देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित होना। और लास्ट में फरिश्ता स्वरूप बन जाना है। इसका भी अर्थ है - सर्व हद के रिश्ते से परे फरिश्ता बनना। तो आदि और अन्त, पुरूषार्थ और प्राप्ति, लक्षण और लक्ष्य, स्मृति और समर्थी दोनों ही स्वरूप में क्या रहा? ‘‘बेहद’’। आदि से लेकर अन्त तक किन-किन प्रकार की हदें पार कर चुके हो वा करनी हैं। इस लिस्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो ना! जब सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद घर, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते तब ही अन्तिम कर्मातीत स्वरूप का अनुभव स्वरूप बन जाते।

हद हैं अनेक, बेहद है एक। अनेक प्रकार की हदें अर्थात् अनेक - ‘‘मेरा मेरा’’। एक मेरा बाबा, दूसरा न कोई, इस बेहद के मेरे में अनेक मेरा समा जाता है। विस्तार सार स्वरूप बन जाता है। विस्तार मुश्किल होता है या सार मुश्किल होता है? तो आदि और अन्त का पाठ क्या हुआ? - बेहद। इसी अन्तिम मंज़िल पर कहाँ तक समीप आये हैं, इसको चेक करो। हद की लिस्ट सामने रख देखो, कहाँ तक पार किया है! लिस्ट का वर्णन करने की तो आवश्यकता नहीं है। सबके पास कितने बार की सुनी हुई यह लिस्ट कापियों में तो बहुत नोट है। सबके पास ज्यादा से ज्यादा माल डायरियाँ वा कापियाँ होंगी। जानते तो सभी हो, वर्णन भी बहुत अच्छा कर सकते हो। ज्ञानी भी हो, वक्ता भी हो। बाकी क्या रहा? बापदादा भी सभी टीचर्स अथवा स्टुडेन्ट्स, सबके भाषण सुनते हैं। बापदादा के पास वीडियो नहीं है क्या? आपकी दुनिया में तो अभी निकला है। बापदादा तो शुरू से वतन में देखते रहते हैं। सुनते रहते हैं। वर्णन करने का श्रेष्ठ रूप देखकर बापदादा मुबारक भी देते हैं क्योंकि बापदादा की एक प्वाइंट को भिन्न-भिन्न रमणीक रूप से सुनाते हो। जैसे गाया हुआ है - बाप तो बाप है लेकिन बच्चे बाप के भी सिरताज हैं। ऐसे सुनाने में बाप से भी सिरताज हो। बाकी क्या फालो करना है? तीसरी स्टेज है - पार कर्ता। इसमें कोई न कोई हद की दीवार को पार करने में, कोई तो उस हद में लटक जाते हैं, कोई अटक जाते हैं। पार करने वाले कोई-कोई मंज़िल के समीप दिखाई देते हैं। किसी भी हद को पार करने की निशानी क्या दिखाई देगी वा अनुभव होगी? पार करने की निशानी है - पार किया, उपराम बना। तो उपराम बनना ही पार करने की निशानी है। उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला की निशानी। उड़ता पंछी बन कर्म के इस कल्प वृक्ष की डाली पर आयेगा। उड़ती कला के बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा। कर्म रूपी डाली के बन्धन में नहीं फँसेगा। कर्म बन्धन में फँसा अर्थात् हद के पिंजरे में फँसा। स्वतन्त्र से परतन्त्र बना। पिंजरे के पंछी को उड़ता पंछी तो नहीं कहेंगे ना। ऐसे कल्प वृक्ष के भिन्न-भिन्न कर्म की डाली पर बाप के उड़ते पंछी श्रेष्ठ आत्मायें कभी-कभी कमज़ोरी के पंजों से डाली के बन्धन में आ जाते हैं। फिर क्या करते? कहानी सुनी है ना! इसको कहा जाता है हद को पार करने की शक्ति कम है। इस कल्प वृक्ष के अन्दर चार प्रकार की डालियाँ हैं। लेकिन पाँचवी डाली ज्यादा आकर्षण वाली है। गोल्डन, सिल्वर, कॉपर, आयरन और संगम है हीरे की डाली। फिर हीरो बनने के बजाए हीरे की डाली में लटक जाते हैं। संगमयुग का ही सर्व श्रेष्ठ कर्म है ना। यह श्रेष्ठ कर्म ही हीरे की डाली है। चाहे संगमयुगी कैसा भी श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के भी बन्धन में फँस गया, जिसको दूसरे शब्दों में आप सोने की जंजीर कहते हो। श्रेष्ठ कर्म में भी हद की कामना, यह सोने की जंजीर है। चाहे डाली हीरे की है, जंजीर भी सोने की हो लेकिन बन्धन तो बन्धन है ना! बापदादा सर्व उड़ते पंछियों को स्मृति दिला रहे हैं। सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर्ता बने हो!

आज का विशेष संगठन गऊपाल की माताओं का है। इतने बड़े संगठन को देख गऊपाल भी खुश हो रहे हैं। बापदादा भी मीठी-मीठी माताओं को ‘‘वन्दे मातरम्’’ कहते हैं। क्योंकि नई सृष्टि की स्थापना के कार्य में ब्रह्मा बाप ने भी माता गुरू को सब समर्पण किया। इस ईश्वरीय ज्ञान की विशेषता वा नवीनता है ही शक्ति अवतार को आगे रखना। माता गुरू का सिलसिला स्थापन करना, यही नवीनता है। इसलिए यादगार में भी गऊ मुख का गायन पूजन है। ऐसे हद की मातायें नहीं लेकिन बेहद की जगत मातायें हो, नशा है ना! जगत का कल्याण करने वाली हो, जगत-कल्याणकारी अर्थात् विश्व-कल्याणकारी हो। सिर्फ घर कल्याणी तो नहीं हो ना। कब घर-कल्याणी का गीत सुना है क्या? विश्व-कल्याणी का सुना है। तो ऐसी बेहद की माताओं का संगठन, श्रेष्ठ संगठन हुआ ना। मातायें तो अनुभवीमूर्त्त हो ना! कुमारियों को धोखे से बचने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। मातायें तो अनुभवी होने के कारण हद के धोखे में नहीं आने वाली हो ना! मैजारटी नये-नये हैं। नये-नये छोटे बच्चों पर ज्यादा ही स्नेह होता है। बापदादा भी सभी माताओं का ‘‘भले पधारे’’ कहकर के स्वागत करते हैं।

अच्छा - ऐसे सदा बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा उड़ता पंछी, उड़ती कला में उड़ने वाले, सदा अन्तिम फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करने वाले, सदा बाप समान कर्मबन्धनों से कर्मातीत, ऐसे मंज़िल के समीप श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

(सेवाधारियों के प्रति)

बापदादा सभी निमित्त सेवाधारी बच्चों को किस रूप में देखते हैं? निमित्त सेवाधारी कौन हैं? निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बाप भी सेवाधारी बन करके ही आते हैं ना। जो भी भिन्न-भिन्न रूप हैं वह हैं तो सेवा के लिए ना! तो बाप का भी विशेष रूप सेवा का है। तो निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बापदादा हरेक बच्चे को इसी नजर से देखते हैं। बापदादा के सेवा के कार्य में आदि रत्न हो ना! जन्मते ही बाप ने क्या गिफ्ट में दिया? सेवा ही दी है ना। सेवा की गिफ्ट के आदि रत्न हो। बापदादा सभी की विशेषताओं को जानते हैं। जन्म से वरदान मिलना यह भी ड्रामा में हीरो पार्ट है। वैसे तो सभी सेवाधारी हैं लेकिन जन्मते ही सेवा का वरदान और आवश्यकता के समय में निमित्त बनना यह भी किसी-किसी की विशेषता है। जो है ही आवश्यकता के समय पर सेवा के साथी, ऐसी आत्मा की आवश्यकता सदा है। अच्छा - सभी में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं, अगर एक-एक की विशेषता का वर्णन करें तो कितना समय चाहिए। लेकिन बापदादा के पास हरेक की विशेषता सदा सामने है। कितनी हरेक में विशेषतायें हैं, कभी अपने आपको देखा है विशेषतायें सबमें अपनी अपनी हैं लेकिन बापदादा विशेष आत्माओं को एक ही बात बार-बार स्मृति में दिलाते हैं, कौन-सी? जब भी कोई भी सेवा के क्षेत्र में आते हो, प्लैनिंग बनाते हो वा प्रैक्टिकल में आते हो तो सदा बाप समान स्थिति में स्थित होकर फिर कोई भी प्लैन बनाओ और प्रैक्टिकल में आओ। जैसे बाप सबका है, कोई भी नहीं कहेगा कि यह फलाने का बाप है, फलाने का नहीं, सब कहेंगे - मेरा बाबा। ऐसे जो निमित्त सेवाधारी हैं उन्हों की विशेषता यही है कि हरेक महसूस करे, अनुभव करे कि यह हमारे हैं। 4-6 का है, हमारा नहीं यह नहीं। हमारे हैं, हरेक के मुख से यह आवाज़ न भी निकले तो भी संकल्प में इमर्ज हो कि यह हमारे हैं। इसको ही कहा जाता है - फालो फादर। सबको हमारे-पन की फीलिंग आये। यही पहला स्टैप बाप का है। यही तो बाप की विशेषता है ना। हरेक के मन से निकलता है - मेरा बाबा। तेरा बाबा कोई कहता है? तो यह मेरा है, बेहद का भाई है या बहन है वा दीदी है, दादी है, यही सबके मन से शुभ आशीर्वाद निकले। यह मेरा है क्योंकि चाहे कहाँ भी रहते हो लेकिन विशेष आत्मायें तो बेहद की हो ना! निमित्त सेवार्थ कहीं भी रहो लेकिन हो तो बेहद सेवा के निमित्त ना। प्लैन भी बेहद का, विश्व का बनाते हो या हरेक अपने-अपने स्थान का बनाते हो। यह तो नहीं करते ना! बेहद का प्लैन बनाते, देश विदेश सबका बनाते हो ना। तो बेहद की भावना, बेहद की श्रेष्ठ कामना यह है - फालो फादर। अभी यह प्रैक्टिकल अनुभव करो। अभी सब बुजुर्ग हो। बुजुर्ग का अर्थ ही है अनुभवी। अनेक बातों के अनुभवी हो ना! कितने अनुभव हैं! एक तो अपना अनुभव। दूसरा अनेकों के अनुभवों से अनुभवी। अनुभवी आत्मा अर्थात् बुजुर्ग आत्मा। वैसे भी कोई बुजुर्ग होता है तो हद के हिसाब से भी उसको पिताजी, काकाजी कहते हैं। ऐसे बेहद के अनुभवी अर्थात् सबको अपनापन महसूस हो।

सहयोगी आत्माओं को तो बापदादा सदा ही सहयोग के रिटर्न में स्नेह देते हैं। सहयोगी हो अर्थात् सदा स्नेह के पात्र हो। इसलिए देंगे क्या, सबको स्नेह ही देंगे। सबको फीलिंग आये कि यह स्नेह का भण्डार हैं। हर कदम में, हर नजर में स्नेह अनुभव हो। यही तो विशेषता है ना! ऐसा कोई प्लैन बनाओ कि हमें क्या करना है। विशेष आत्माओं का विशेष फर्ज क्या है? विशेष कर्म क्या है? जो साधारण से भिन्न हो। चाहे भावना तो समानता की रखनी है लेकिन दिखाई दे - यह विशेष आत्मायें हैं। हर कदम में विशेषता अनुभव हो तब कोई मानेंगे विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष करने वाली। कहने वाली नहीं लेकिन करने वाली। अच्छा

महावीर बच्चे सदा ही तन्दुरूस्त हैं। क्योंकि मन तन्दुरूस्त है, तन तो एक खेल करता है। मन में कोई रोग होगा तो रोगी कहा जायेगा अगर मन निरोगी है तो सदा तन्दुरूस्त है। सिर्फ शेष शैया पर विष्णु के समान ज्ञान का सिमरण कर हर्षित होते। यही खेल है। जैसे साकार बाप विष्णु समान टांग पर टांग चढ़ाए खेल करते थे ना। ऐसे कुछ भी होता है तो यह भी निमित्त मात्र खेल करते। सिमरण कर मनन शक्ति द्वारा और ही सागर के तले में जाने का चांस मिलता है। जब सागर में जायेंगे तो जरूर बाहर से मिस होंगे। तो कमरे में नहीं हो लेकिन सागर के तले में हो। नये-नये रत्न निकालने के लिए तले में गये हो।

कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर कर्मयोगी की स्टेज पर रहना इसको कहा जाता है - विजयी रत्न। सदा यही स्मृति रहती कि यह भोगना नहीं लेकिन नई दुनिया के लिए योजना है। फुर्सत मिलती है ना, फुर्सत का काम ही क्या है? नई योजना बनाना। पलंग भी प्लैनिंग का स्थान बन गया।

(माताओं के ग्रुप से)

सभी ऐसा अनुभव करते हो कि तकदीर का सितारा चमक रहा है? जिस चमकते हुए सितारे को देख और आत्मायें भी ऐसा बनने की प्रेरणा लेती रहें, ऐसे सितारे हो ना! कभी सितारे की चमक कम तो नहीं होती है ना! अविनाशी बाप के अविनाशी सितारे हो ना! सदा एक रस हो या कभी उड़ती कला कभी ठहरती कला? सदा उड़ती कला का युग है। उड़ती कला के समय पर कोई चढ़ती कला भी करे तो भी अच्छा नहीं लगेगा। प्लेन की सवारी मिले तो दूसरी सवारी अच्छी लगेगी? तो उड़ती कला के समयवाले नीचे नहीं आओ। सदा ऊपर रहो। पिंजरे के पंछी नहीं, पिंजरा टूट गया है या दो चार लकीरें अभी रही हैं।

तार भी अगर रह जाती है तो वह अपनी तरफ खींचेगी। 10 रस्सी तोड़ दीं, एक रस्सी रह गई तो वह भी अपनी तरफ खींचेगी। तो सर्व रस्सियाँ तोड़ने वाले, सब हदें पार करने वाले ऐसे बेहद के उड़ते पंछी, हद में नहीं फंस सकते। 63 जन्म तो हद में फँसते आये। अब एक जन्म हद से निकालो। यह एक जन्म है ही हद से निकालने का तो जैसा समय वैसा काम करना चाहिए ना। समय हो उठने का और कोई सोये तो अच्छा लगेगा? इसलिए सदा हदों से पार बेहद में रहो। माताओं को अविनाशी सुहाग का तिलक तो लगा हुआ है ना। जैसे लौकिक में सुहाग की निशानी तिलक है, ऐसे अविनाशी सुहाग अर्थात् सदा स्मृति का तिलक लगा हुआ हो। ऐसी सुहागिन सदा भागिन (भाग्यवान) है। कल्प-कल्प की भाग्यवान आत्मायें हो। ऐसा भाग्य जो कोई भाग्य को छीन नहीं सकता। सदा अधिकारी आत्मायें हो, विश्व का मालिक, विश्व का राज्य ही आपका हो गया। राज्य अपना, भाग्य अपना, भगवान अपना इसको कहा जाता है - अधिकारी आत्मा। अधिकारी हैं तो अधीनता नहीं।

 

प्रश्न:- आप बच्चों की कमाई अखुट और अविनाशी है, कैसे?

 

उत्तर:- आप ऐसी कमाई करते हो जो कभी कोई छीन नहीं सकता। कोई गड़बड़ हो नहीं सकती। दूसरी कमाई में तो डर रहता है, इस कमाई को अगर कोई छीनना भी चाहे तो भी आपको खुशी होगी क्योंकि वह भी कमाई वाला हो जायेगा। अगर कोई लूटने आये तो और ही खुश होंगे, कहेंगे लो। तो इससे और ही सेवा हो जायेगी। तो ऐसी कमाई करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो।

अच्छा - ओम् शान्ति।

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- सदा बेहद की स्थिति में स्थित करने के लिए कर्मातीत शिव बाबा क्या समझानी दे रहे हैं?

 

 प्रश्न 2 :- उड़ता पंछी होते हुए भी ब्राह्मण बच्चे संगमयुग के कर्म बंधनों में फंस जाते हैं। इससे निकलने के लिए बाबा क्या कह रहे हैं?

 

 प्रश्न 3 :- निमित्त सेवाधारी आत्माओं की विशेषताओं का वर्णन करते हुए बापदादा क्या कहते हैं?

 

 प्रश्न 4 :-  निमित्त सेवाधारी विशेष आत्माओं को बापदादा कौन सी एक बात बार-बार स्मृति में दिलाते हैं?

 

 प्रश्न 5 :- कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर मन तंदरुस्त रखने वाले बच्चों को बाबा क्या युक्तियां बता रहे हैं?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( पछी, अविनाशी, अनेकों, हद, बुजुर्ग, स्मृति, धोखे, सुहागिन, हद, अनुभव, पार, हदें, अनुभवीमूर्त्त, बेहद, उपराम )

 

1         किसी भी _____  को पार करने की निशानी क्या दिखाई देगी वा अनुभव होगी? पार करने की निशानी है - ‘_____  किया, _____  बना

 

2         मातायें तो _____  हो ना! कुमारियों को _____  से बचने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। मातायें तो अनुभवी होने के कारण _____  के धोखे में नहीं आने वाली हो ना!

 

3         कितने _____  हैं! एक तो अपना अनुभव। दूसरा _____  के अनुभवों से अनुभवी। अनुभवी आत्मा अर्थात् _____  आत्मा।

 

4         10 रस्सी तोड़ दीं, एक रस्सी रह गई तो वह भी अपनी तरफ खींचेगी। तो सर्व रस्सियाँ तोड़ने वाले, सब _____  पार करने वाले ऐसे _____  के उड़ते _____ , हद में नहीं फंस सकते।

 

5         जैसे लौकिक में सुहाग की निशानी तिलक है, ऐसे  _____  सुहाग अर्थात् सदा _____  का तिलक लगा हुआ हो। ऐसी _____  सदा भागिन है।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1      :- घर का कल्याण करने वाली हो, घर-कल्याणकारी अर्थात् विश्व-कल्याणकारी हो। सिर्फ घर कल्याणी तो नहीं हो ना।

 

2      :- इस ईश्वरीय ज्ञान की विशेषता वा नवीनता है ही शक्ति अवतार को आगे रखना।

 

3      :- सबको फीलिंग आये कि यह स्नेह का भण्डार हैं। हर कदम में, हर नजर में स्नेह अनुभव हो।

 

4      :-  कभी सितारे की चमक कम तो नहीं होती है ना! अविनाशी बाप के विनाशी सितारे हो ना!

 

5      :-  राज्य अपना, भाग्य अपना, भगवान अपना इसको कहा जाता है - अधिकारी आत्मा। अधिकारी हैं तो स्वाधीनता नहीं।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- सदा बेहद की स्थिति में स्थित करने के लिए कर्मातीत शिव बाबा क्या समझानी दे रहे हैं?

 

 उत्तर 1 :- बेहद की स्थिति में स्थित करने के लिए शिव बाबा निम्नलिखित समझानी दे रहे हैं:

          सारे ज्ञान का वा इस पढ़ाई की चारों ही सबजेक्ट का मूल सार यही एक बात ‘‘बेहद’’ है।

          बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है।

          पहले बाप का बनना अर्थात् मरजीवा बनना। इसका भी आधार है - देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित होना।

          और लास्ट में फरिश्ता स्वरूप बन जाना है। इसका भी अर्थ है - सर्व हद के रिश्ते से परे फरिश्ता बनना।

          तो आदि और अन्त, पुरूषार्थ और प्राप्ति, लक्षण और लक्ष्य, स्मृति और समर्थी दोनों ही स्वरूप में क्या रहा? ‘‘बेहद’’

          आदि से लेकर अन्त तक किन-किन प्रकार की हदें पार कर चुके हो वा करनी हैं। इस लिस्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो ना!        

          जब सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद घर, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते तब ही अन्तिम कर्मातीत स्वरूप का अनुभव स्वरूप बन जाते।

          हद हैं अनेक, बेहद है एक। अनेक प्रकार की हदें अर्थात् अनेक - ‘‘मेरा मेरा’’। एक मेरा बाबा, दूसरा न कोई, इस बेहद के मेरे में अनेक मेरा समा जाता है। विस्तार सार स्वरूप बन जाता है।

 

 प्रश्न 2 :- उड़ता पंछी होते हुए भी ब्राह्मण बच्चे संगमयुग के कर्म बंधनों में फंस जाते हैं। इससे निकलने के लिए बाबा क्या कह रहे हैं?

 

 उत्तर 2 :- संगम युग के कर्म बंधनों से निकलने के लिए बाबा के महावाक्य निम्नलिखित हैं:

          उड़ता पंछी बन कर्म के इस कल्प वृक्ष की डाली पर आयेगा। उड़ती कला के बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा।

          कर्म रूपी डाली के बन्धन में नहीं फँसेगा। कर्म बन्धन में फँसा अर्थात् हद के पिंजरे में फँसा। स्वतन्त्र से परतन्त्र बना। पिंजरे के पंछी को उड़ता पंछी तो नहीं कहेंगे ना।

          ऐसे कल्प वृक्ष के भिन्न-भिन्न कर्म की डाली पर बाप के उड़ते पंछी श्रेष्ठ आत्मायें कभी-कभी कमज़ोरी के पंजों से डाली के बन्धन में आ जाते हैं। फिर क्या करते? कहानी सुनी है ना! इसको कहा जाता है हद को पार करने की शक्ति कम है।

          इस कल्प वृक्ष के अन्दर चार प्रकार की डालियाँ हैं। लेकिन पाँचवी डाली ज्यादा आकर्षण वाली है। गोल्डन, सिल्वर, कॉपर, आयरन और संगम है हीरे की डाली।

          फिर हीरो बनने के बजाए हीरे की डाली में लटक जाते हैं। संगमयुग का ही सर्व श्रेष्ठ कर्म है ना। यह श्रेष्ठ कर्म ही हीरे की डाली है।

          चाहे संगमयुगी कैसा भी श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के भी बन्धन में फँस गया, जिसको दूसरे शब्दों में आप सोने की जंजीर कहते हो। श्रेष्ठ कर्म में भी हद की कामना, यह सोने की जंजीर है।

          चाहे डाली हीरे की है, जंजीर भी सोने की हो लेकिन बन्धन तो बन्धन है ना! बापदादा सर्व उड़ते पंछियों को स्मृति दिला रहे हैं। सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर्ता बने हो!

 

 प्रश्न 3 :- निमित्त सेवाधारी आत्माओं की विशेषताओं का वर्णन करते हुए बापदादा क्या कहते हैं?

 

 उत्तर 3 :- निमित्त सेवाधारी आत्माओं की विशेषताओं का वर्णन करते हुए बाप दादा कहते हैं कि:

          तो निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बापदादा हरेक बच्चे को इसी नजर से देखते हैं। बापदादा के सेवा के कार्य में आदि रत्न हो ना!

          जन्मते ही बाप ने क्या गिफ्ट में दिया? सेवा ही दी है ना। सेवा की गिफ्ट के आदि रत्न हो। बापदादा सभी की विशेषताओं को जानते हैं।

          जन्म से वरदान मिलना यह भी ड्रामा में हीरो पार्ट है। वैसे तो सभी सेवाधारी हैं लेकिन जन्मते ही सेवा का वरदान और आवश्यकता के समय में निमित्त बनना यह भी किसी-किसी की विशेषता है।

          जो है ही आवश्यकता के समय पर सेवा के साथी, ऐसी आत्मा की आवश्यकता सदा है। सहयोगी आत्माओं को तो बापदादा सदा ही सहयोग के रिटर्न में स्नेह देते हैं। सहयोगी हो अर्थात् सदा स्नेह के पात्र हो।

          ऐसा कोई प्लैन बनाओ कि हमें क्या करना है। विशेष आत्माओं का विशेष फर्ज क्या है? विशेष कर्म क्या है? जो साधारण से भिन्न हो।

          चाहे भावना तो समानता की रखनी है लेकिन दिखाई दे - यह विशेष आत्मायें हैं। हर कदम में विशेषता अनुभव हो तब कोई मानेंगे विशेष आत्मायें हैं।

          विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष करने वाली। कहने वाली नहीं लेकिन करने वाली।

 

 प्रश्न 4 :-  निमित्त सेवाधारी विशेष आत्माओं को बापदादा कौन सी एक बात बार-बार स्मृति में दिलाते हैं?

 

 उत्तर 4 :-बापदादा विशेष आत्माओं को एक ही बात बार-बार स्मृति में दिलाते हैं:

          जब भी कोई भी सेवा के क्षेत्र में आते हो, प्लैनिंग बनाते हो वा प्रैक्टिकल में आते हो तो सदा बाप समान स्थिति में स्थित होकर फिर कोई भी प्लैन बनाओ और प्रैक्टिकल में आओ।

          जैसे बाप सबका है, कोई भी नहीं कहेगा कि यह फलाने का बाप है, फलाने का नहीं, सब कहेंगे - मेरा बाबा। ऐसे जो निमित्त सेवाधारी हैं उन्हों की विशेषता यही है कि हरेक महसूस करे, अनुभव करे कि यह हमारे हैं। 4-6 का है, हमारा नहीं यह नहीं।

          हमारे हैं, हरेक के मुख से यह आवाज़ न भी निकले तो भी संकल्प में इमर्ज हो कि यह हमारे हैं। इसको ही कहा जाता है - फालो फादर। सबको हमारे-पन की फीलिंग आये। यही पहला स्टैप बाप का है। यही तो बाप की विशेषता है ना। हरेक के मन से निकलता है - मेरा बाबा

          तेरा बाबा कोई कहता है? तो यह मेरा है, बेहद का भाई है या बहन है वा दीदी है, दादी है, यही सबके मन से शुभ आशीर्वाद निकले।

          यह मेरा है क्योंकि चाहे कहाँ भी रहते हो लेकिन विशेष आत्मायें तो बेहद की हो ना! निमित्त सेवार्थ कहीं भी रहो लेकिन हो तो बेहद सेवा के निमित्त ना। प्लैन भी बेहद का, विश्व का बनाते हो या हरेक अपने-अपने स्थान का बनाते हो। यह तो नहीं करते ना!

           बेहद का प्लैन बनाते, देश विदेश सबका बनाते हो ना। तो बेहद की भावना, बेहद की श्रेष्ठ कामना यह है - फालो फादर।

 

 प्रश्न 5 :- कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर मन तंदरुस्त रखने वाले बच्चों को बाबा क्या युक्तियां बता रहे हैं?

 

 उत्तर 5 :- कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर मन तंदरुस्त  बच्चों को बाबा निम्न युक्तियां बता रहे हैं:

          महावीर बच्चे सदा ही तन्दुरूस्त हैं। क्योंकि मन तन्दुरूस्त है, तन तो एक खेल करता है। मन में कोई रोग होगा तो रोगी कहा जायेगा अगर मन निरोगी है तो सदा तन्दुरूस्त है।

          सिर्फ शेष शैया पर विष्णु के समान ज्ञान का सिमरण कर हर्षित होते। यही खेल है। जैसे साकार बाप विष्णु समान टांग पर टांग चढ़ाए खेल करते थे ना। ऐसे कुछ भी होता है तो यह भी निमित्त मात्र खेल करते।

          सिमरण कर मनन शक्ति द्वारा और ही सागर के तले में जाने का चांस मिलता है। जब सागर में जायेंगे तो जरूर बाहर से मिस होंगे। तो कमरे में नहीं हो लेकिन सागर के तले में हो। नये-नये रत्न निकालने के लिए तले में गये हो।

          कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर कर्मयोगी की स्टेज पर रहना इसको कहा जाता है - विजयी रत्न

           सदा यही स्मृति रहती कि यह भोगना नहीं लेकिन नई दुनिया के लिए योजना है। फुर्सत मिलती है ना, फुर्सत का काम ही क्या है? नई योजना बनाना। पलंग भी प्लैनिंग का स्थान बन गया। 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( पछी, अविनाशी, अनेकों, हद, बुजुर्ग, स्मृति, धोखे, सुहागिन, हद, अनुभव, पार, हदें, अनुभवीमूर्त्त, बेहद, उपराम )

 

 1   किसी भी _____  को पार करने की निशानी क्या दिखाई देगी वा अनुभव होगी? पार करने की निशानी है - ‘_____  किया, _____  बना

   हद / पार / उपराम

 

 2  मातायें तो _____  हो ना! कुमारियों को _____  से बचने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। मातायें तो अनुभवी होने के कारण _____  के धोखे में नहीं आने वाली हो ना!

   अनुभवीमूर्त्त / धोखे / हद

 

 3   कितने _____  हैं! एक तो अपना अनुभव। दूसरा _____  के अनुभवों से अनुभवी। अनुभवी आत्मा अर्थात् _____  आत्मा।

    अनुभव / अनेकों / बुजुर्ग

 

 4  10 रस्सी तोड़ दीं, एक रस्सी रह गई तो वह भी अपनी तरफ खींचेगी। तो सर्व रस्सियाँ तोड़ने वाले, सब _____  पार करने वाले ऐसे _____  के उड़ते _____ , हद में नहीं फंस सकते।

 हदें / बेहद / पंछी

 

  जैसे लौकिक में सुहाग की निशानी तिलक है, ऐसे  _____  सुहाग अर्थात् सदा _____  का तिलक लगा हुआ हो। ऐसी _____  सदा भागिन है।

 अविनाशी / स्मृति / सुहागिन

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1      :-  घर का कल्याण करने वाली हो, घर-कल्याणकारी अर्थात् विश्व-कल्याणकारी हो। सिर्फ घर कल्याणी तो नहीं हो ना। 【✖】

जगत का कल्याण करने वाली हो, जगत-कल्याणकारी अर्थात् विश्व-कल्याणकारी हो।

 

2      :- इस ईश्वरीय ज्ञान की विशेषता वा नवीनता है ही शक्ति अवतार को आगे रखना। 【✔】

 

 3  :- सबको फीलिंग आये कि यह स्नेह का भण्डार हैं। हर कदम में, हर नजर में स्नेह अनुभव हो।

 

 4  :- कभी सितारे की चमक कम तो नहीं होती है ना! अविनाशी बाप के विनाशी सितारे हो ना!

  कभी सितारे की चमक कम तो नहीं होती है ना! अविनाशी बाप के अविनाशी सितारे हो ना!

 

 5   :- राज्य अपना, भाग्य अपना, भगवान अपना इसको कहा जाता है - अधिकारी आत्मा। अधिकारी हैं तो स्वाधीनता नहीं। 

 राज्य अपना, भाग्य अपना, भगवान अपना इसको कहा जाता है - अधिकारी आत्मा। अधिकारी हैं तो अधीनता नहीं।