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AVYAKT MURLI

05 / 04 / 83

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05-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

सर्व वरदान आपका जन्म-सिद्ध अधिकार

सर्व वरदानों से सम्पन्न श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले अव्यक्त बापदादा बोले:-

 

बापदादा, बाप और बच्चों का मेला देख हर्षित हो रहे हैं। द्वापर से जो भी मेले विशेष रूप में होते हैं, कोई न कोई नदी के किनारे पर होते हैं वा कोई देवी वा देवता की मूर्ति के उपलक्ष में होते हैं। एक ही शिवरात्रि - बाप की यादगार में मनाते हैं। लेकिन परिचय नहीं। द्वापर के मेले भक्तों और देवियों वा देवताओं के होते हैं। लेकिन यह मेला महानदी और सागर के कण्ठे पर बाप और बच्चों का होता है। ऐसा मेला सारे कल्प में हो नहीं सकता। मधुबन में डबल मेला देखते हो। एक बाप और दादा महानदी और सागर का मेला देखते। साथ साथ बापदादा और बच्चों का मेला देखते। तो मेला तो मना लिया ना! यह मेला वृद्धि को पाता ही रहेगा। एक तरफ सेवा करते हो कि वृद्धि को पाते रहें। तो वृद्धि को प्राप्त होना ही है और मेला भी मनाना ही है।

 

बापदादा आपस में रूह-रूहान कर रहे थे। ब्रह्मा बोले - ब्राह्मणों की वृद्धि तो यज्ञ समाप्ति तक होनी है। लेकिन साकारी सृष्टि में साकारी रूप से मिलन मेला मनाने की विधि, वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तन तो होगी ना! लोन ली हुई वस्तु और अपनी वस्तु में अन्तर तो होता ही है। लोन ली हुई वस्तु को कड़ी सम्भाल से कार्य में लगाया जाता है। अपनी वस्तु को जैसे चाहे वैसे कार्य में लगाया जाता है। और लोन भी साकार शरीर अन्तिम जन्म का शरीर है। लोन ली हुई पुरानी वस्तु को चलाने की विधि भी देखनी होगी ना। तो शिव बाप मुस्कराते हुए बोले कि तीन सम्बन्धों से तीन रीति की विधि वृद्धि प्रमाण परिवर्तन हो ही जायेगा। वह क्या होगा?

 

बाप रूप से विशेष अधिकार है - मिलन की विशेष टोली। और शिक्षक के रूप में मुरली। सतगुरू के रूप में नजर से निहाल। अर्थात् अव्यक्त मिलन की रूहानी स्नेह की दृष्टि। इसी विधि के प्रमाण वृद्धि को प्राप्त होने वाले बच्चो का स्वागत और मिलन मेला चलता रहेगा। सभी को संकल्प होता है कि हमें कोई वरदान मिले। बापदादा बोले जब हैं ही वरदाता के बच्चे तो सर्व वरदान तो आपका जन्म-सिद्ध अधिकार है। अभी तो क्या लेकिन जन्मते ही वरदाता ने वरदान दे दिये। विधाता ने भाग्य की अविनाशी लकीर जन्मपत्री में नूँध दी। लौकिक में भी जन्मपत्री नाम संस्कार के पहले बना देते हैं। भाग्य विधाता बाप ने, वरदाता बाप ने ब्रह्मा माँ ने जन्मते ही ब्रह्माकुमार वा कुमारी के नाम संस्कार के पहले सर्व वरदानों और अविनाशी भाग्य की लकीर स्वयं खींच ली। जन्मपत्री बना दी। तो सदा के वरदानी तो हो ही। स्मृति-स्वरूप बच्चों को तो सदा सर्व वरदान प्राप्त ही हैं। प्राप्ति स्वरूप बच्चे हो। अप्राप्ति है क्या जो प्राप्ति करनी पड़े। तो ऐसी रूह-रूहान आज बापदादा की चली। यह हाल बनाया ही क्यों है! तीन हजार, चार हजार ब्राह्मण आवें। मेला बढ़ता जाए। तो खूब वृद्धि को पाते रहो। मुरली बात करना नहीं है क्या! हाँ, नजर पड़नी चाहिए, यह सब बातें तो पूर्ण हो ही जायेंगी।

 

अभी तो आबू तक लाइन लगानी है ना। इतनी वृद्धि तो करनी है ना! वा समझते हो हम थोड़े ही अच्छे हैं। सेवाधारी सदा स्वयं का त्याग कर दूसरे की सेवा में हर्षित होते हैं। मातायें तो सेवा की अनुभवी हैं ना! अपनी नींद भी त्याग करेंगी और बच्चे को गोदी के झूले में झुलायेंगी। आप लोगों द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त होंगे उन्हों को भी तो हिस्सा दिलावेंगे ना। अच्छा

 

इस बारी तो बापदादा ने भी सब भारत के बच्चों का उल्हना मिटाया है। जहाँ तक लोन का शरीर निमित्त बन सकते वहाँ तक इस बारी तो उल्हना पूरा कर ही रहे हैं। अच्छा

 

सब रूहानी स्नेह को, रूहानी मिलन को अनुभव करने वाले, जन्म से सर्व वरदानों से सम्पन्न, अविनाशी श्रेष्ठ भाग्यवान, ऐसे सदा महात्यागी, त्याग द्वारा भाग्य पाने वाले ऐसे पद्मापद्म भाग्यवान बच्चों को, चारों ओर के स्नेह के चात्रक बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- द्वापर के मेले और शिवरात्रि के मेले का क्या तफ़ावत बाबा ने मुरली में बताया है ?

 

 प्रश्न 2 :- लोन ली हुई पुरानी वस्तु को चलाने की क्या विधि बाबा ने मुरली में आलेखी है ?

 

 प्रश्न 3 :- वरदान के संदर्भ में बाबा के क्या महावाक्य है ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( स्मृति-स्वरूप, सेवाधारी, ब्राह्मणों, हर्षित वरदान, समाप्ति, त्याग )

 

1        _______ की वृद्धि तो यज्ञ ________  तक होनी है।

 

2        ___________ बच्चों को तो सदा सर्व ________  प्राप्त ही हैं।

 

 3  ________ सदा स्वयं का ______ कर दूसरे की सेवा में _______ होते है।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1      :-  अप्राप्ति स्वरूप बच्चे हो।

 

2      :- मातायें तो पूजा की अनुभवी हैं।

 

3      :- आप लोगो द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त होंगे उन्हों को भी तो हिस्सा दिलावेंगे।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- द्वापर के मेले और शिवरात्रि के मेले का क्या तफ़ावत बाबा ने मुरली में बताया है ?

 

 उत्तर 1 :- द्वापर के मेले और शिवरात्रि के मेले का  तफ़ावत बाबा ने मुरली में बताया है कि :

द्वापर के मेले :

          द्वापर से जो भी मेले विशेष रूप में होते हैं, कोई न कोई नदी के किनारे पर होते हैं वा कोई देवी वा देवता की मूर्ति के उपलक्ष में होते हैं।

          द्वापर के मेले भक्तों और देवियों वा देवताओं के होते हैं।

शिवरात्रि का मेला :

          एक ही शिवरात्रि - बाप की यादगार में मनाते हैं। लेकिन परिचय नहीं।

          लेकिन यह मेला महानदी और सागर के कण्ठे पर बाप और बच्चों का होता है।

          ऐसा मेला सारे कल्प में हो नहीं सकता।

          मधुबन में डबल मेला देखते हो। एक बाप और दादा महानदी और सागर का मेला देखते। साथ साथ बापदादा और बच्चों का मेला देखते।

          यह मेला वृद्धि को पाता ही रहेगा।

 

 प्रश्न 2 :- लोन ली हुई पुरानी वस्तु को चलाने की क्या विधि बाबा ने मुरली में आलेखी है ?

 

 उत्तर 2 :- लोन ली हुई पुरानी वस्तु को चलाने की तीन सम्बन्धो से तीन रीति विधि बाबा ने मुरली में आलेखी है कि :

          बाप रूप से विशेष अधिकार है - मिलन की विशेष टोली

          शिक्षक के रूप में मुरली

          सतगुरू के रूप में नजर से निहाल। अर्थात् अव्यक्त मिलन की रूहानी स्नेह की दृष्टि।

          इसी विधि के प्रमाण वृद्धि को प्राप्त होने वाले बच्चो का स्वागत और मिलन मेला चलता रहेगा।

         

 प्रश्न 3 :- वरदान के संदर्भ में बाबा के क्या महावाक्य है ?

 

 उत्तर 3 :- वरदान के संदर्भ में बाबा के महावाक्य है :

          बापदादा बोले जब हैं ही वरदाता के बच्चे तो सर्व वरदान तो आपका जन्म-सिद्ध अधिकार है।

          अभी तो क्या लेकिन जन्मते ही वरदाता ने वरदान दे दिये। विधाता ने भाग्य की अविनाशी लकीर जन्मपत्री में नूँध दी।

          भाग्य विधाता बाप ने, वरदाता बाप ने ब्रह्मा माँ ने जन्मते ही ब्रह्माकुमार वा कुमारी के नाम संस्कार के पहले सर्व वरदानों और अविनाशी भाग्य की लकीर स्वयं खींच ली। जन्मपत्री बना दी। तो सदा के वरदानी तो हो ही।

        

       FILL IN THE BLANKS:-     

 

( स्मृति-स्वरूप, सेवाधारी, ब्राह्मणों, हर्षित वरदान, समाप्ति, त्याग )

 

 1   ________ की वृद्धि तो यज्ञ ________  तक होनी है।

    ब्राह्मणों / समाप्ति

 

 2  ___________ बच्चों को तो सदा सर्व ________  प्राप्त ही हैं।

     स्मृति-स्वरूप / वरदान

 

3________ सदा स्वयं का ______ कर दूसरे की सेवा में _______ होते है।

सेवाधारी / त्याग / हर्षित

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- अप्राप्ति स्वरूप बच्चे हो

 प्राप्ति स्वरूप बच्चे हो।

 

 2  :- मातायें तो पूजा की अनुभवी हैं।

  मातायें तो सेवा की अनुभवी हैं।

 

 3  :- आप लोगो द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त होंगे उन्हों को भी तो हिस्सा दिलावेंगे।