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AVYAKT MURLI
07 / 04 / 83
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07-04-83 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
माताओं के प्रति अव्यक्त बापदादा के दो अनमोल बोल
हलचल से परे ले जाने वाले, निश्चय बुद्धि आत्माओं के प्रति शिवबाबा बोले:-
आज विशेष निमित्त बनी हुई डबल सेवाधारी, बापदादा की स्नेही माताओं को विशेष दो बोल सुना रहे हैं। जो सदा बाप के शिक्षा की सौगात साथ रखना। एक सदा लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की स्मृति। सदा ट्रस्टीपन की स्मृति। सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की भावना, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना। जैसे अन्य आत्माओं को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो। हद में नहीं आओ। मेरा बच्चा, मेरा पति इसका कल्याण हो, सर्व का कल्याण हो। अगर मेरापन है तो आत्मिक दृष्टि, कल्याण की दृष्टि दे नहीं सकेंगे। मैजारटी बापदादा के आगे यही अपनी आश रखते हैं - बच्चा बदल जाए, पति साथ दे, घर वाले साथी बनें। लेकिन सिर्फ उन आत्माओं को अपना समझ यह आश क्यों रखते हो! इस हद की दीवार के कारण आपकी शुभ भावना वा कल्याण की शुभ इच्छा उन आत्माओं तक पहुँचती नहीं। इसलिए संकल्प भल अच्छा है लेकिन साधन यथार्थ नहीं तो रिजल्ट कैसे निकले? इसलिए यह कम्पलेन्ट चलती रहती है। तो सदा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई भाई के सम्बन्ध की वृत्ति से किसी भी आत्मा के प्रति शुभ भावना रखने का फल जरूर प्राप्त होता है। इसलिए पुरूषार्थ से थको नहीं। बहुत मेहनत की है वा यह तो कभी बदलना ही नहीं है - ऐसे दिलशिकस्त भी नहीं बनो। निश्चयबुद्धि हो, मेरेपन के सम्बन्ध से न्यारे हो चलते चलो। कोई-कोई आत्माओं का ईश्वरीय वर्सा लेने के लिए भक्ति का हिसाब चुक्तु होने में थोड़ा समय लगता है। इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो, निराश न हो। शान्ति और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो। ऐसी स्थिति में स्थित रहकर लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले, डबल सेवाधारी, ट्रस्टी बच्चों का महत्व बहुत बड़ा है। अपने महत्व को जानो। तो दो बोल क्या याद रखेंगे?
नष्टोमोहा, बेहद सम्बन्ध के स्मृति स्वरूप और दूसरा ‘बाप की हूँ’, बाप सदा साथी है। बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने हैं। यह तो याद पड़ सकेगा ना! बस यही दो बातें विशेष याद रखना। हरेक यही समझे कि बापदादा हरेक शक्ति वा पाण्डव से यह पर्सनल बात कर रहे हैं। सभी सोचते हो ना कि मेरे लिए पर्सनल क्या है। सभा में होते भी बापदादा सभी प्रवृत्ति वालों से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं। पब्लिक में भी प्राइवेट बोल रहे हैं। समझा! एक एक बच्चे को एक दो से ज्यादा प्यार दे रहे हैं। इसलिए ही आते हो ना! प्यार मिले, सौगात मिले। इससे ही रिफ्रेश होते हो ना। प्यार के सागर हरेक स्नेही आत्मा को स्नेह की खान दे रहे हैं जो कभी खत्म ही नहीं हो और कुछ रह गया क्या! मिलना, बोलना और लेना। यही चाहते हो ना। अच्छा –
ऐसे सर्व हद के सम्बन्ध से न्यारे, सदा प्रभु प्यार के पात्र, नष्टोमोहा, विश्व कल्याण के स्मृति स्वरूप, सदा निश्चय बुद्धि विजयी, हलचल से परे अचल रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’
(पार्टियों के साथ-अलग अलग ग्रुप से मुलाकात)
बाप के बधाई का पात्र बनने के लिए माया को विदाई दो:- सदा अपने को बाप के साथी अनुभव करते हो? जिसका साथी सर्वशक्तिवान बाप है उसको सदा ही सर्व प्राप्तियाँ हैं। उनके सामने कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आ सकती। माया को विदाई दे दी है? कभी माया की मेहमानी तो नहीं करते? जो माया को विदाई देने वाले हैं उन्हों को बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। अगर अभी तक विदाई नहीं दी तो बार-बार चिल्लाना पड़ेगा - क्या करें, कैसे करें? इसलिए सदा विदाई देने वाले और बधाई पाने वाले। ऐसी खुशनसीब आत्मा हो। हर कदम बाप साथ है तो बधाई भी साथ है। सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं। जो सोचा नहीं था वह पा लिया! बाप को पाया सब कुछ पाया। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो गये। सदा इसी भाग्य को याद करो।
अनेक मेरा मैला बना देता और एक मेरा मैलापन समाप्त कर देता
सभी एक बाप के स्नेह में समाये हुए रहते हो? जैसे सागर में समा जाते हैं ऐसे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए। जो सदा स्नेह में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण सब बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। मेहनत नहीं करनी पड़ती। भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दूनिया की स्मृति नहीं। घर मेरा, बच्चा मेरा, यह चीज़ मेरी, ये मेरा मेरा खत्म। बस एक बाप मेरा और सब मेरा खत्म। और मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता है।
बाप को जानना ही सबसे बड़ी विशेषता है:- बाप को हरेक बच्चा अति प्यारा है। सब श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हो। चाहे गरीब हो, चाहे साहूकार, चाहे पढ़े लिखे हो चाहे अनपढ़, सब एक दो से अधिक प्यारे हैं। बाप के लिए सभी विशेष आत्माये हैं। कौन सी विशेषता है सभी में? बाप को जानने की विशेषता है। जो बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं जान सके वह आपने जान लिया, पा लिया। वह बिचारे तो नेती नेती करके चले गये। आपने सब कुछ जान लिया। तो बापदादा ऐसी विशेष आत्माओं को रोज याद-प्यार देते हैं। रोज मिलन मनाते हैं। अमृतवेले का समय खास बच्चों के लिए है। भक्तों की लाइन पीछे, बच्चों की पहले। जो विशेष आत्मायें होती हैं उनसे मिलने का समय भी जरूर विशेष होगा ना! तो सदा ऐसी विशेष आत्मा समझो और सदा खुशी में उड़ते चलो।
बीमारी की सहज दवा
खुशी की गोली और इन्जेक्शन:- ब्राह्मण बच्चे अपनी बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है। जैसे वह लोग पॉवरफुल इन्जेक्शन लगा देते हैं तो चेन्ज हो जाते। ऐसे ब्राह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते हैं वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते हैं। यह तो स्टॉक हरेक के पास है ना! नॉलेज के आधार पर शरीर को चलाना है। नॉलेज की लाइट और माइट बहुत मदद देती है। कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है। सूक्ष्मवतन में अव्यक्त बापदादा के साथ दो दिन के निमंत्रण पर अष्ट लीला खेलने के लिए पहुँच जाओ फिर कोई डॉक्टर की भी जरूरत नहीं रहेंगी। जैसे शुरू में सन्देशियाँ जाती थीं, एक या दो दिन भी वतन में ही रहती थी ऐसे ही कुछ भी हो तो वतन में आ जाओ। बापदादा वतन से सैर कराते रहेंगे, भक्तों के पास ले जायेंगे, लण्डन, अमेरिका घुमा देंगे। विश्व का चक्र लगवा देंगे। तो कोई भी बीमारी कभी आये तो समझो वतन का निमंत्रण आया है, बीमारी नहीं आर्डर है।
प्रश्न:- सहजयोगी जीवन की विशेषता क्या है?
उत्तर:- योगी जीवन अर्थात् सदा सुखमय जीवन। तो जो सहजयोगी हैं वह सदासुख के झूले में झूलने वाले होते हैं। जब सुखदाता बाप ही अपना हो गया तो सुख ही सुख हो गया ना। तो सुख के झूले में झूलते रहो। सुखदाता बाप मिल गया, सुख की जीवन बन गई, सुख का संसार मिल गया, यही है योगी जीवन की विशेषता जिसमें दुख का नाम निशान नहीं।
प्रश्न:- बुजुर्ग और अनपढ़ बच्चों को किस आधार पर सेवा करनी है?
उत्तर:- अपने अनुभव के आधार पर। अनुभव की कहानी सबको सुनाओ। जैसे घर में दादी वा नानी बच्चों को कहानी सुनाती है ऐसे आप भी अनुभव की कहानी सुनाओ, क्या मिला है, क्या पाया है. यही सुनाना है। यह सबसे बड़ी सेवा है। जो हरेक कर सकता है। याद और सेवा में ही सदा तत्पर रहो यही है बाप समान कर्त्तव्य।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- लौकिक में अलौकिक स्मृति रखने का उपाय क्या है?
प्रश्न 2 :- क्या दो बातें विशेष याद रखनी है?
प्रश्न 3 :- आज बाबा ने बच्चों की महिमा किन किन शब्दों में की है?
प्रश्न 4 :- बाप के बधाई का पात्र बनने के लिए क्या करना है?
प्रश्न 5 :- "बीमारी की दवा" - इसके बारे में आज बाबा के महावाक्य क्या हैं?
FILL IN THE BLANKS:-
( बापदादा, ईश्वरीय, पाण्डव, वर्सा, योगी, भक्ति, शक्ति, कर्त्तव्य, सुखदाता, बदलना, याद, जीवन, मेहनत, सेवा, दिलशिकस्त )
1 कोई-कोई आत्माओं का _____ _____ लेने के लिए _____ का हिसाब चुक्तु होने में थोड़ा समय लगता है।
2 हरेक यही समझे कि _____ हरेक _____ वा _____ से यह पर्सनल बात कर रहे हैं।
3 _____ बाप मिल गया, सुख की जीवन बन गई, सुख का संसार मिल गया, यही है _____ _____ की विशेषता जिसमें दुख का नाम निशान नहीं।
4 _____ और _____ में ही सदा तत्पर रहो यही है बाप समान _____।
5 बहुत _____ की है वा यह तो कभी _____ ही नहीं है - ऐसे _____ भी नहीं बनो।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- जो सदा स्नेह में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती।
2 :- बच्चों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन भक्त तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं।
3 :- योगी जीवन अर्थात् सदा सुखमय जीवन।
4 :- सभा में होते भी बापदादा सभी निवृत्ति वालों से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं।
5 :- और एक बाप मेरा मैला बना देता है, मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता है।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- लौकिक में अलौकिक स्मृति रखने का उपाय क्या है?
उत्तर 1 :- लौकिक में अलौकिक स्मृति रखने का उपाय निम्न है -
❶ सदा ट्रस्टीपन की स्मृति।
❷ सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की भावना, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना।
❸ जैसे अन्य आत्माओं को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो। हद में नहीं आओ।
❹ मेरा बच्चा, मेरा पति इसका कल्याण हो, सर्व का कल्याण हो। अगर मेरापन है तो आत्मिक दृष्टि, कल्याण की दृष्टि दे नहीं सकेंगे।
❺ मैजारटी बापदादा के आगे यही अपनी आश रखते हैं - बच्चा बदल जाए, पति साथ दे, घर वाले साथी बनें। लेकिन सिर्फ उन आत्माओं को अपना समझ यह आश क्यों रखते हो!
❻ इस हद की दीवार के कारण आपकी शुभ भावना वा कल्याण की शुभ इच्छा उन आत्माओं तक पहुँचती नहीं। इसलिए संकल्प भल अच्छा है लेकिन साधन यथार्थ नहीं तो रिजल्ट कैसे निकले? इसलिए यह कम्पलेन्ट चलती रहती है।
❼ तो सदा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई भाई के सम्बन्ध की वृत्ति से किसी भी आत्मा के प्रति शुभ भावना रखने का फल जरूर प्राप्त होता है। इसलिए पुरूषार्थ से थको नहीं।
प्रश्न 2 :- क्या दो बातें विशेष याद रखनी है?
उत्तर 2 :- बस यही दो बातें विशेष याद रखना है कि नष्टोमोहा, बेहद सम्बन्ध के स्मृति स्वरूप और दूसरा ‘बाप की हूँ’, बाप सदा साथी है। बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने हैं। यह तो याद पड़ सकेगा ना!
प्रश्न 3 :- आज बाबा ने बच्चों की महिमा किन किन शब्दों में की है?
उत्तर 3 :- आज बाबा नाम बच्चों की महिमा निम्न शब्दों में की है -
❶ सर्व हद के सम्बन्ध से न्यारे
❷ सदा प्रभु प्यार के पात्र
❸ नष्टोमोहा
❹ विश्व कल्याण के स्मृति स्वरूप
❺ सदा निश्चय बुद्धि विजयी
❻ हलचल से परे अचल रहने वाले श्रेष्ठ आत्मा
प्रश्न 4 :- बाप के बधाई का पात्र बनने के लिए क्या करना है?
उत्तर 4 :- बाप के बधाई का पात्र बनने के लिए ऐसा करना है की -
❶ माया को विदाई दो। जिसका साथी सर्वशक्तिवान बाप है उसको सदा ही सर्व प्राप्तियाँ हैं। उनके सामने कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आ सकती।
❷ जो माया को विदाई देने वाले हैं उन्हों को बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है।
❸ हर कदम बाप साथ है तो बधाई भी साथ है। सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं।
❹ जो सोचा नहीं था वह पा लिया! बाप को पाया सब कुछ पाया। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो गये। सदा इसी भाग्य को याद करो।
प्रश्न 5 :- "बीमारी की दवा" - इसके बारे में आज बाबा के महावाक्य क्या हैं?
उत्तर 5 :- बीमारी की सहज दवा
खुशी की गोली और इन्जेक्शन:-
❶ ब्राह्मण बच्चे अपनी बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है।
❷ जैसे वह लोग पॉवरफुल इन्जेक्शन लगा देते हैं तो चेन्ज हो जाते। ऐसे ब्राह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते हैं वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते हैं। यह तो स्टॉक हरेक के पास है ना!
❸ नॉलेज के आधार पर शरीर को चलाना है। नॉलेज की लाइट और माइट बहुत मदद देती है।
❹ कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है। सूक्ष्मवतन में अव्यक्त बापदादा के साथ दो दिन के निमंत्रण पर अष्ट लीला खेलने के लिए पहुँच जाओ फिर कोई डॉक्टर की भी जरूरत नहीं रहेंगी।
❺ जैसे शुरू में सन्देशियाँ जाती थीं, एक या दो दिन भी वतन में ही रहती थी ऐसे ही कुछ भी हो तो वतन में आ जाओ।
❻ बापदादा वतन से सैर कराते रहेंगे, भक्तों के पास ले जायेंगे, लण्डन, अमेरिका घुमा देंगे। विश्व का चक्र लगवा देंगे। तो कोई भी बीमारी कभी आये तो समझो वतन का निमंत्रण आया है, बीमारी नहीं आर्डर है।
FILL IN THE BLANKS:-
( बापदादा, ईश्वरीय, पाण्डव, वर्सा, योगी, भक्ति, शक्ति, कर्त्तव्य, सुखदाता, बदलना, याद, जीवन, मेहनत, सेवा, दिलशिकस्त )
1 कोई-कोई आत्माओं का _____ _____ लेने के लिए _____ का हिसाब चुक्तु होने में थोड़ा समय लगता है।
ईश्वरीय / वर्सा / भक्ति
2 हरेक यही समझे कि _____ हरेक _____ वा _____ से यह पर्सनल बात कर रहे हैं।
बापदादा / शक्ति / पाण्डव
3 _____ बाप मिल गया, सुख की जीवन बन गई, सुख का संसार मिल गया, यही है _____ _____ की विशेषता जिसमें दुख का नाम निशान नहीं।
सुखदाता / योगी / जीवन
4 _____ और _____ में ही सदा तत्पर रहो यही है बाप समान _____।
याद / सेवा / कर्त्तव्य
5 बहुत _____ की है वा यह तो कभी _____ ही नहीं है - ऐसे _____ भी नहीं बनो।
मेहनत / बदलना / दिलशिकस्त
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 【✖】【✔】
1 :- जो सदा स्नेह में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती।【✔】
2 :- बच्चों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन भक्त तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं।【✖】
भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं।
3:- योगी जीवन अर्थात् सदा सुखमय जीवन।【✔】
4:- सभा में होते भी बापदादा सभी निवृत्ति वालों से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं।【✖】
सभा में होते भी बापदादा सभी प्रवृत्ति वालों से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं।
5 :- और एक बाप मेरा मैला बना देता है, मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता है।【✖】
और मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता है।