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AVYAKT MURLI

13 / 04 / 83

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13-04-83       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

परचिंतन तथा परदर्शन से हानियाँ

उड़ती कला में ले जाने वाले, सम्पूर्णता के रंग में रंगने वाले, सतगुरू शिव बाबा बोले

 

सभी श्रेष्ठ आत्मायें संगमयुग का हीरे समान श्रेष्ठ मेला मनाने के लिए आई हैं। अर्थात् हीरे समान अमूल्य जीवन का निरन्तर अनुभव करने का विशेष साधन फिर से स्मृति स्वरूप वा समर्थ स्वरूप बना रहे उसका बाप से या अपने परिवार से या वरदान भूमि से अनुभव प्राप्त करने के लिए आये हैं। हीरे समान जीवन जन्म से प्राप्त हुआ। लेकिन हीरा सदा चमकता रहे, किसी भी प्रकार की धूल वा दाग न आ जाए उसके लिए फिर-फिर पालिश कराने आते हैं। इसलिए आते हो ना? तो बापदादा अपने हीरे समान बच्चों को देख हर्षित भी होते हैं और चेक भी करते - अभी तक किन बच्चों को धूल का असर हो जाता है वा संग के रंग में आने से कोई-कोई को छोटा वा बड़ा दाग भी लग जाता है। कौन सा संग दाग लगाता है! उसके मूल दो कारण हैं वा मुख्य दो बातें हैं

 

एक परदर्शन दूसरा परचिन्तन। परचिन्तन में व्यर्थ चिन्तन भी आ जाता है। यही दो बातें संग के रंग में स्वच्छ हीरे को दागी बना देती हैं। इसी परदर्शन, परचिन्तन की बातों पर कल्प पहले का यादगार रामायण की कथा बनी हुई है। गीता ज्ञान भूल जाता है। गीता ज्ञान अर्थात् स्वचिन्तन। स्वदर्शन चक्रधारी बनना। नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनना। गीता ज्ञान के सार को भूल कर रामायण की कथा प्रैक्टिकल में लाते हैं। सीता भी वह बनते हैं जो मर्यादा की लकीर से बाहर निकल गई। सीता के दो रूप दिखलाये हैं। एक सदा साथ रहने वाली और दूसरा शोक वाटिका में रहने वाली। तो संगदोष में आकर शोक वाटिका वाली सीता बन जाते हैं। वह एक है फरियाद का रूप और दूसरा है याद का रूप। जब फरियाद के रूप में आ जाते हैं तो फर्स्ट स्टेज से सेकण्ड में आ जाते हैं। इसलिए सदा बेदाग सच्चा हीरा, चमकता हुआ हीरा, अमूल्य हीरा बनो। इन दो बातों से सदा दूर रहो तो धूल और दाग लग नहीं सकता। चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो, बातें बड़ी नई-नई रमणीक बताते हो। अगर वह बातें सुनावें तो बहुत लम्बा चौड़ा शास्त्र बन जायेगा। लेकिन कारण क्या है? अपनी कमज़ोरी। लेकिन अपनी कमज़ोरी को सफेदी लगा देते हो और छिपाने के लिए दूसरों के कारणों की कहानियाँ लम्बी बना देते हो। इसी से परदर्शन, परचिन्तन शुरू हो जाता है। इसलिए इस विशेष मूल आधार को, मूल बीज को समाप्त करो। ऐसा विदाई का बधाई समारोह मनाओ। मेले में समारोह मनाते हो ना! इसी समारोह मनाने को ही मिलना अर्थात् बाप समान बनना कहा जाता है। अच्छा - महिमा तो अपनी बहुत सुनी है। महिमा में भी कोई कमी नहीं रही क्योंकि जो बाप की महिमा वह बच्चों की महिमा। बापदादा का यही विशेष स्नेह है कि हर बच्चा बाप समान सम्पन्न बन जाए। समय के पहले नम्बरवन हीरा बन जाए। अभी रिजल्ट आउट नहीं हुआ है। जो बनने चाहो, जितने नम्बर में आने चाहो, अभी आने की मार्जिन है। इसलिए उड़ती कला का पुरूषार्थ करो। बेदाग नम्बरवन चमकता हुआ हीरा बन जाओ। समझा क्या करना है? सिर्फ यह नहीं जाकर सुनाना कि मधुबन से होके आये, बहुत मना के आये। लेकिन बन करके आये हैं! जब संख्या में वृद्धि हो रही है तो पुरूषार्थ की विधि में भी वृद्धि करो। अच्छा

 

ऐसे सर्व उड़ती कला के पुरुषार्थी, सर्व व्यक्त संगों से दूर रहने वाले, एक ही सम्पूर्णता के रंग में रंगी हुई आत्मायें समय के पहले स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले, प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

 

पाटियों के साथ मुलाकात

 

(1) सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बना लिया है? किसी भी सम्बन्ध में अभी लगाव तो नहीं है? क्योंकि कोई एक सम्बन्ध भी अगर बाप से नहीं जुटाया तो नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप नहीं बन सकेंगे। बुद्धि भटकती रहेगी। बैठेंगे बाप को याद करने और याद आयेगा धोत्रा पोत्रा। जिसमें भी मोह होगा वही याद आयेगा। किसका पैसे में होता है, किसका जेवर में होता है, किसका किसी सम्बन्ध में होता - जहाँ भी होगा वहाँ बुद्धि जायेगी। अगर बार-बार बुद्धि वहाँ जाती है तो एकरस नहीं रह सकते। आधा कल्प भटकते-भटकते क्या हाल हो गया है, देख लिया ना! सब कुछ गँवा दिया। तन भी गया, मन की सुख-शान्ति भी गई, धन भी गया। सतयुग में कितना धन था, सोने के महलों में रहते थे, अभी ईटों के मकान में, पत्थर के मकान में रहते हो, तो सारा गँवा दिया ना! तो अभी भटकना खत्म। एक बाप दूसरा न कोई’ - यही मन से गीत गाओ। कभी भी ऐसे नहीं कहना कि यह तो बदलता नहीं है, यह तो चलता नहीं है, कैसे चलें, क्या करूँ.इस बोझ से भी हल्के रहो। भल भावना तो अच्छी है कि यह चल जाए, इसकी बीमारी खत्म हो जाए लेकिन इस कहने से तो नहीं होगा ना! इस कहने के बजाए स्वयं हल्के हो उड़ती कला के अनुभव में रहो। तो उसको भी शक्ति मिलेगी। बाकी यह सोचना वा कहना व्यर्थ है। मातायें कहेंगी मेरा पति ठीक हो जाए, बच्चा चल जाए, धन्धा ठीक हो जाए, यही बातें सोचते या बोलते हैं। लेकिन यह चाहना पूर्ण तब होगी जब स्वयं हल्के हो बाप से शक्ति लेंगे। इसके लिए बुद्धि रूपी बर्तन खाली चाहिए। क्या होगा, कब होगा, अभी तो हुआ ही नहीं, इससे खाली हो जाओ। सभी का कल्याण चाहते हो तो स्वयं शक्तिरूप बन सर्वशक्तिवान के साथी बन शुभ भावना रख चलते चलो। चिन्तन वा चिन्ता मत करो। बन्धन में नहीं फँसो। अगर बन्धन है तो उसको काटने का तरीका है - याद। कहने से नहीं छूटेंगे, स्वयं को छुड़ा दो तो छूट जायेंगे।

 

(2) संगमयुग के सर्व खज़ाने प्राप्त हो गये हैं? कभी भी अपने को किसी खज़ाने से खाली तो नहीं समझते हो? क्योंकि खाली होने का समय अभी बीत गया। अभी भरने का समय है। खज़ाना मिला है, इसका अनुभव भी अभी होता है। अप्राप्ति से प्राप्ति हुई तो उसका नशा रहेगा। तो भरपूर आत्मायें बनीं! ऐसे तो नहीं कहते कि सर्व शक्तियाँ हैं लेकिन सहन शक्ति नहीं है, शान्ति की शक्ति नहीं है। थोड़ा क्रोध या थोड़ा आवेश आ जाता है। भरपूर चीज़ में कोई दूसरी चीज़ आ नहीं सकती। माया की हल-चल होती अर्थात् खाली है। जितना भरपूर उतना हलचल नहीं। तो क्रोध, मोह.सभी को विदाई दे दी या दुश्मन को भी मेहमान बना देते हो। यह दुश्मन जबरदस्ती भी अन्दर तब आता है जब अलबेलापन है। अगर लाक मजबूत है तो दुश्मन आ नहीं सकता। आजकल भी सेफ रहने के लिए गुप्त लाक रखते हैं। यहाँ भी डबल लाक है। याद और सेवा’ - यह है डबल लाक। इसी से सेफ रहेंगे। डबल लाक अर्थात् डबल बिजी। बिजी रहना अर्थात् सेफ रहना। बार-बार स्मृति में रहना यही है लाक को लगाना। ऐसे नहीं समझो - मैं तो हूँ ही बाबा का, लेकिन बार-बार स्मृति स्वरूप बनो। अगर हैं ही बाबा के तो स्मृति स्वरूप होना चाहिए, वह खुशी होनी चाहिए। हैं तो वर्सा प्राप्त होना चाहिए। सिर्फ हैं ही के अलबेलेपन में नहीं लेकिन हर सेकण्ड स्वयं को भरपूर समर्थ अनुभव करो। इसको कहा जाता है - स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। माया वार करने न आये लेकिन नमस्कार करने आये।

 

(3) सभी अपने को पूज्य आत्मायें अनुभव करते हो? पुजारी से पूज्य बन गये ना! पूज्य को सदा ऊँचे स्थान पर रखते हैं। कोई भी पूजा की मूर्ति होगी तो नीचे धरती पर नहीं रखेंगे। तो आप पूज्य आत्मायें कहाँ रहती हो! ऊपर रहती हो! भक्ति में भी पूज्य आत्माओं का कितना रिगार्ड रखते हैं। जब जड़ मूर्ति का इतना रिगार्ड है तो आपका कितना होगा? अपना रिगार्ड स्वयं जानते हो? क्योंकि जितना जो अपना रिगार्ड जानता है उतना दूसरे भी उनको रिगार्ड देते हैं। अपना रिगार्ड रखना अर्थात् अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना। तो कभी महान आत्मा से साधारण आत्मा तो नहीं बन जाते हो! पूज्य तो सदा पूज्य होगा ना! आज पूज्य कल अपूज्य नहीं - ऐसे तो नहीं हो ना। सदा पूज्य अर्थात् सदा महान। सदा विशेष। कई बच्चे सोचते हैं कि हम तो आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरे हमको आगे बढ़ने का रिगार्ड नहीं देते हैं। इसका कारण क्या होता? सदा स्वयं अपने रिगार्ड में नहीं रहते हो। जो अपने रिगार्ड में रहते वह रिगार्ड माँगते नहीं, स्वत: मिलता है। जो सदा पूज्य नहीं उन्हें सदा रिगार्ड नहीं मिल सकता। अगर मूर्ति अपने आसन को छोड़ दे, या उसे जमीन में रख दें तो उसकी क्या वैल्यु होगी! मूर्ति को मन्दिर में रखें तो सब महान रूप में देखेंगे। तो सदा महान स्थान पर अर्थात् ऊँची स्थिति पर रहो, नीचे नहीं आओ। आजकल दुनिया में कौन सी विशेषता दिखा रहे हैं? मरो और मारो - यही विशेषता दिखाते हैं ना! तो यहाँ भी सेकण्ड में मरने वाले। धीरे-धीरे मरने वाले नहीं। आज मोह छोड़ा, मास के बाद क्रोध छोड़ेंगे, साल के बाद मोह छोड़ेंगे.ऐसे नहीं। एक धक से झाटकू बनने वाले। तो सभी मरजीवा झाटकू बन गये या कभी जिन्दा, कभी मरे, कई ऐसे होते हैं जो चिता से भी उठकर चल देते हैं। जाग जाते हैं। आप सब तो एक धक से मरजीवा हो गये ना! जैसे लौकिक संसार में वे लोग अपना शो दिखाते ऐसे अलौकिक संसार में भी आप अपना शो दिखाओ। सदा श्रेष्ठ, सदा पूज्य, हर कर्म, हर गुण का सभी लोग कीर्तन गाते रहें। कीर्तन का अर्थ ही है - कीर्ति गाना। अगर सदा श्रेष्ठ कर्म अर्थात् कीर्ति वाले कर्म हैं तो फिर सदा ही लोग आपका कीर्तन गाते रहेंगे। जब किसी स्थान पर हंगामा हो, तो उस झगड़े के समय शान्ति के शक्ति की कमाल दिखाओ। सबकी बुद्धि में आवे कि यहाँ तो शान्ति का कुण्ड है। शान्ति कुण्ड बन शान्ति की शक्ति फैलाओ। जैसे चारों ओर अगर आग जल रही हो और एक कोना भी शीतल कुण्ड हो तो सब उसी तरफ दौड़कर जाते हैं, ऐसे शान्ति स्वरूप होकर शान्ति कुण्ड का अनुभव कराओ। उस समय वाचा की सेवा नहीं कर सकते लेकिन मंसा से अपनी शान्ति कुण्ड की प्रत्यक्षता कर सकते हो। जहाँ भी शान्ति सागर के बच्चे रहते हैं वह स्थान शान्ति-कुण्ड हो। जब विनाशी यज्ञ कुण्ड अपनी तरफ आकर्षित करता है तो यह शान्ति कुण्ड अपने तरफ न खींचे यह हो नहीं सकता। सबको वायब्रेशन आने चाहिए कि बस यहाँ से ही शान्ति मिलेगी। ऐसा वायुमण्डल बनाओ। सब मांगने आयें कि बहन जी शान्ति दो। ऐसी सेवा करो।

 

सेवाधारी टीचर्स बहनों के प्रति

 

टीचर्स अर्थात् सेवाधारी। सेवाधारी अर्थात् त्यागमूर्त्त और तपस्या मूर्त्त। जहाँ त्याग, तपस्या नहीं वहाँ सफलता नहीं। त्याग और तपस्या दोनों के सहयोग से सेवा में सदा सफलता मिलती है। तपस्या है ही - एक बाप दूसरा न कोई। यह है निरन्तर की तपस्या। तो जो भी आये वह कुमारी नहीं देखे लेकिन तपस्वी कुमारी देखे। जिस स्थान पर रहते हो वह तपस्या-कुण्ड अनुभव हो। अच्छा स्थान है, पवित्र स्थान है, यह भी ठीक लेकिन तपस्या कुण्ड अनुभव हो। तपस्या कुण्ड में जो भी आयेगा वह स्वयं भी तपस्वी हो जायेगा। तो तपस्या के प्रैक्टिकल स्वरूप में जाओ। तब जयजयकार होगी। तपस्या के आगे झुकेंगे। ब्रह्माकुमार के आगे महिमा करते हैं, तपस्वी कुमार के आगे झुकेंगे। तपस्या कुण्ड बनाओ फिर देखो कितने परवाने आपेही आ जाते हैं। तपस्या भी ज्योति है, ज्योति पर परवाने आपेही आयेंगे। सेवाधारी बनने का भाग्य बन चुका अब तपस्वी कुमारी का नम्बर लो। सदा शान्ति का दान देने वाली महादानी आत्मायें बनो। बापदादा वर्तमान समय मंसा सेवा के ऊपर विशेष अटेन्शन दिलाते हैं। वाचा की सेवा से इतनी शक्तिशाली आत्मायें नहीं निकलती हैं लेकिन मंसा सेवा से शक्तिशाली आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी। वाणी तो चलती रहती है लेकिन अभी एडीशन चाहिए - शुद्ध संकल्प के सेवा की। तो स्वरूप बन करके स्वरूप बनाने की सेवा करो, अभी इसी की आवश्यकता है। अभी सबका अटेन्शन इस पाईंट पर हो। इसी से नाम बाला होगा। अनुभवी मूर्त्त अनुभव करा सकेंगे। इसी पर विशेष अटेन्शन देते रहो। इसी से मेहनत कम सफलता ज्यादा होगी। मंसा धरनी को परिवर्तन कर देती है। सदा इसी प्रकार से वृद्धि करते रहो। अभी यही विधि है वृद्धि करने की। अच्छा

 

12 घण्टे बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात सुबह 6 बजे बापदादा ने सतगुरूवार की याद-प्यार सभी बच्चों को दी

 

सभी बृहस्पति की दशा वाले, श्रेष्ठ भाग्य की लकीर वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा आज के वृक्षपति दिवस की याद-प्यार दे रहे हैं। वृक्षपति बाप ने सभी बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर, अविनाशी बना दी। इसी अविनाशी तकदीर द्वारा सदा स्वयं भी सम्पन्न रहेंगे और औरों को भी सम्पन्न बनाते रहेंगे। वृक्षपति दिवस सभी बच्चों के शिक्षा में सम्पन्न होने का विशेष यादगार दिवस है। इसी शिक्षा के यादगार दिवस पर शिक्षक के रूप में बापदादा सभी बच्चों को हर सबजेक्ट में सदा फुल पास होने का लक्ष्य रखते हुए, पास विद् आनर बनने की और औरों को भी ऐसे उमंग-उत्साह में लाने की, शिक्षक के रूप से शिक्षा में सम्पन्न बनने की याद-प्यार देते हैं। और बृहस्पति की तकदीर की लकीर खींचने वाले भाग्यविधाता बाप के रूप में सदा श्रेष्ठ भाग्य की बधाई देते हैं। अच्छा - यादप्यार और नमस्ते।

 

प्रश्न:- कौन सी स्मृति सदा रहे तो जीवन में कभी भी दिलशिकस्त नहीं बन सकते?

 

उत्तर:- मैं साधारण आत्मा नहीं हूँ, मैं शिव शक्ति हूँ, बाप मेरा और मैं बाप की। इसी स्मृति में रहो तो कभी भी अकेलापन अनुभव नहीं होगा। कभी दिलशिकस्त नहीं होंगे। सदा उमंग उत्साह रहेगा। शिव-शक्ति का अर्थ ही है शिव और शक्ति कम्बाइन्ड। जहाँ सर्वशक्तिवान, हजार भुजाओं वाला बाप है वहाँ सदा ही उमंग उत्साह साथ है।

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- संग के रंग में आने के कौन से दो मुख्य कारण हैं?

 

 प्रश्न 2 :- बापदादा का बच्चों के प्रति विशेष स्नेह क्या है?

 

 प्रश्न 3 :- यहाँ भी डबल लॉक है. बापदादा आज बच्चों से कौन से डबल लॉक की बात कह रहे हैं?

 

 प्रश्न 4 :- वर्तमान समय कौन सी सेवा पर विशेष अटेंशन देना है, और क्यों?

 

 प्रश्न 5 :- 'वृक्षपति दिवस' पर वृक्षपति बाप ने बच्चों को किन शब्दों में याद प्यार दिया?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( बाबा, शास्त्र, भरने, सम्पूर्णता, मेहमान, हलचल, श्रेष्ठ मेला, उड़ती कला, खाली, स्मृति स्वरूप, खजाना बातें, विदाई, खुशी, रमणीक )

 

1        __________ में ले जाने वाले, __________ के रंग में रंगने वाले, सतगुरु शिवबाबा बोले सभी श्रेष्ठ आत्मायें संगमयुग का हीरे समान _________ मनाने के लिये आई हैं।

 

2        चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो, ______ बड़ी नई-नई _________ बताते हो। अगर वह बातें सुनावे तो बहुत लम्बा चौड़ा _______ बन जायेगा।

 

3        ________ होने का समय अभी बीत गया, अभी ______ का समय है। ________ मिला है, इसका अनुभव भी अभी होता है।

 

4        जितना भरपूर उतना _______ नहीं। तो क्रोध, मोह. सभी को ________ दे दी या दुश्मन को भी ________ बना देते हो।

 

5        ऐसे नहीं समझो - मैं तो हूँ ही _______ का, लेकिन बार-बार ___________ बनो। अगर हैं ही बाबा के तो स्मृति स्वरूप होना चाहिए, वह ______ होनी चाहिये।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-】【

 

1      :- कोई एक सम्बन्ध भी अगर बाप से नहीं जुटाया तो मास्टर सर्वशक्तिवान नहीं बन सकेंगे।

 

2      :- सभी का कल्याण चाहते हो तो स्वंय शक्तिरूप बन सर्वशक्तिवान के साथी बन शुभ भावना रख चलते चलो।

 

3      :- अगर बन्धन है तो उसको काटने का तरीका है - 'नष्टोमोहा बनना'

 

4      :- दुश्मन जबरदस्ती भी अंदर तब आता है जब लॉक नहीं लगा होता।

 

5      :-  अपना रिगार्ड रखना अर्थात अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- संग के रंग में आने के कौन से दो मुख्य कारण  हैं?

 

 उत्तर 1 :- संग के रंग में आने के दो मुख्य कारण हैं :-

          एक. 'परदर्शन' दूसरा. 'परचिन्तन'

          ❷  यही दो बातें संग के रंग में स्वच्छ हीरे को दागी बना देती हैं।

          इसी परदर्शन, परचिन्तन की बातों पर कल्प पहले का यादगार 'रामायण' की कथा बनी हुई है।

          परचिन्तन अर्थात. व्यर्थ चिन्तन. संग के रंग में आने का मुख्य कारण है।

          परदर्शन और परचिन्तन के कारण स्व का चिन्तन. अर्थात गीता ज्ञान भूल जाता है।

 

 प्रश्न 2 :- बापदादा का बच्चों के प्रति विशेष स्नेह क्या है?

 

 उत्तर 2 :- बापदादा का बच्चों के प्रति विशेष स्नेह है :-

          कि हर बच्चा बाप समान सम्पन्न बन जाये।

          बच्चे समय के पहले नम्बरवन हीरा बन जाये।

          ❸  बापदादा कहते हैं. अभी रिजल्ट आउट नहीं हुआ है। जो बनने चाहो, जितने नम्बर में आने चाहो, अभी आने की मार्जिन है।

          बाबा कहते हैं. प्यारे बच्चों. अब उड़ती कला का पुरुषार्थ करो। जब संख्या में वृद्धि हो रही है तो पुरुषार्थ की विधि में भी वृद्धि करो।

          बाबा चाहते हैं. बच्चे बेदाग नम्बरवन चमकता हुआ हीरा बन जाये।

 

 प्रश्न 3 :- यहाँ भी डबल लॉक है. बापदादा आज बच्चों से कौन से डबल लॉक की बात कह रहे हैं?

 

 उत्तर 3 :- बापदादा बच्चों को माया दुश्मन से सेफ रहने के लिये यह डबल लॉक बता रहे हैं :-

          ❶ 'याद और सेवा' - यह है डबल लॉक. इसी से सेफ रहेंगे।

          बापदादा बच्चों से कह रहे हैं कि अगर लॉक मजबूत है तो दुश्मन आ नहीं सकता।

          डबल लॉक अर्थात डबल बिजी. बिजी रहना अर्थात सेफ रहना।

          बार-बार स्मृति में यही रहना है कि लॉक को लगाना है।

 

 प्रश्न 4 :- वर्तमान समय कौन सी सेवा पर विशेष अटेंशन देना है, और क्यों?

 

 उत्तर 4 :- वर्तमान समय मनसा सेवा के ऊपर विशेष अटेंशन देना है क्योंकि :-

          ❶  वाचा की सेवा से इतनी शक्तिशाली आत्मायें नहीं निकलती हैं, लेकिन मनसा सेवा से शक्तिशाली आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी।

          हर समय वाचा की समय नहीं कर सकते. लेकिन मनसा से अपनी शान्ति कुंड की प्रत्यक्षता कर सकते हैं।

         .❸ हमारी मनसा इतनी पॉवरफुल हो कि सबको यह वायब्रेशनस आने चाहिए कि बस यहाँ से ही शान्ति मिलेगी।

          ❹  वाणी तो चलती रहती है लेकिन अभी एडीशन चाहिए - शुद्ध संकल्प कर सेवा की. तो स्वरूप बन करके स्वरूप बनाने की सेवा करो, अभी इसी की आवश्यकता है।

          मनसा धरनी को परिवर्तन कर देती है. इसलिये मनसा पर विशेष अटेंशन देते रहो. इसी से मेहनत कम सफलता ज्यादा होगी।

 

 प्रश्न 5 :- 'वृक्षपति दिवस' पर वृक्षपति बाप ने बच्चों को किन शब्दों में याद प्यार दिया?

 

 उत्तर 5 :- 'वृक्षपति दिवस' पर शिक्षक के रूप में वृक्षपति बाप ने श्रेष्ठ आत्माओं को इस तरह याद प्यार दी :-

          वृक्षपति बाप ने सभी बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर अविनाशी बनाते हुए कहा. इस अविनाशी तकदीर द्वारा सदा स्वंय भी सम्पन्न रहोगे और औरो को भी सम्पन्न बनाते रहोगे।

          बापदादा ने सभी बच्चों को सदा फुल पास होने का लक्ष्य रखते हुए, 'पास विद ऑनर' बनने के लिये याद प्यार दी।

          दूसरों को भी ऐसे उमंग-उत्साह में लाने की, शिक्षक के रूप से शिक्षा में सम्पन्न बनने की याद प्यार दी।

          बृहस्पति की तकदीर की लकीर खींचने वाले भाग्यविधाता बाप के रूप में सदा श्रेष्ठ भाग्य की बधाई देते हैं।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( बाबा, शास्त्र, भरने, सम्पूर्णता, मेहमान, हलचल, श्रेष्ठ मेला, उड़ती कला, खाली, स्मृति स्वरूप, खजाना, बातें, विदाई, खुशी, रमणीक )

 

 1   ___________ में ले जाने वाले, ___________ के रंग में रंगने वाले, सतगुरु शिवबाबा बोले सभी श्रेष्ठ आत्मायें संगमयुग का हीरे समान _________ मनाने के लिये आई हैं।

   उड़ती कला / सम्पूर्णता / श्रेष्ठ मेला

 

  चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो, _______ बड़ी नई-नई ___________ बताते हो। अगर वह बातें सुनावे तो बहुत लम्बा चौड़ा _______ बन जायेगा।

 बातें / रमणीक / शास्त्र

 

 3  ________ होने का समय अभी बीत गया, अभी ______ का समय है। _________ मिला है, इसका अनुभव भी अभी होता है।

  खाली / भरने / खजाना

 

 4  जितना भरपूर उतना ________ नहीं। तो क्रोध, मोह. सभी को ________ दे दी या दुश्मन को भी _________ बना देते हो।

  हलचल / विदाई / मेहमान

 

  ऐसे नहीं समझो - मैं तो हूँ ही _______ का, लेकिन बार-बार ___________ बनो। अगर हैं ही बाबा के तो स्मृति स्वरूप होना चाहिये, वह _______ होनी चाहिये।

   बाबा / स्मृति स्वरूप / खुशी

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】【

 

 1  :- कोई एक सम्बन्ध भी अगर बाप से नहीं जुटाया तो मास्टर सर्वशक्तिवान नहीं बन सकेंगे।

 कोई एक सम्बन्ध भी अगर बाप से नहीं जुटाया तो नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप नहीं बन सकेंगे।

 

 2  :- सभी का कल्याण चाहते हो तो स्वयं शक्तिरूप बन सर्वशक्तिवान के साथी बन शुभ भावना रख चलते चलो।

 

 3  :- अगर बन्धन है तो उसको काटने का तरीका है - 'नष्टोमोहा बनना'

 अगर बन्धन है तो उसको काटने का तरीका है - 'याद'

 

 4  :- दुश्मन जबरदस्ती भी अंदर तब आता है जब लॉक नहीं लगा होता।

 दुश्मन जबरदस्ती भी अंदर तब आता है जब अलबेलापन है।

 

 5   :-  अपना रिगार्ड रखना अर्थात अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना।