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AVYAKT MURLI

19 / 12 / 84

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19-12-84   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

सर्वश्रेष्ठ, सहज तथा स्पष्ट मार्ग

सर्वश्रेष्ठ साथी, सहज-सरल मार्ग प्रदर्शक शिव बाबा अपने भाग्यवान बच्चों प्रति बोले

 

आज बापदादा विशेष स्नेही, सदा साथ निभाने वाले अपने साथियों को देख रहे हैं। साथी अर्थात् सदा-साथ रहने वाले। हर कर्म में, संकल्प में साथ निभाने वाले। हर कदम पर कदम रख आगे बढ़ने वाले। एक कदम भी मनमत, परमत पर उठाने वाले नहीं। ऐसे सदा साथी के साथ निभाने वाले सदा सहज मार्ग का अनुभव करते हैं क्योंकि बाप वा श्रेष्ठ साथी हर कदम रखते हुए रास्ता स्पष्ट और साफ कर देते हैं । आप सबको सिर्फ कदम के ऊपर कदम रखकर चलना है। रास्ता सही है, सहज है, स्पष्ट है - यह सोचने की भी आवश्यकता नहीं। जहाँ बाप का कदम है वह है ही श्रेष्ठ रास्ता। सिर्फ कदम रखो और हर कदम में पद्म लो। कितना सहज है! बाप साथी बन साथ निभाने के लिए साकार माध्यम द्वारा हर कदम रूपी कर्म करके दिखाने के लिए साकार सृष्टि पर अवतरित होते हैं। यह भी सहज करने के लिए साकार को माध्यम बनाया है। साकार में फॉलो करना वा कदम पर कदम रखना तो सहज है ना। श्रेष्ठ साथी ने साथियों के लिए इतना सहज मार्ग बताया - क्योंकि बाप साथी जानते है कि जिन साथियों को साथी बनाया है, यह बहुत भटके हुए होने के कारण थके हुए हैं। निराश हैं, निर्बल हैं। मुश्किल समझ दिलशिकस्त हो गये हैं इसलिए सहज से सहज सिर्फ कदम पर कदम रखो। यही सहज साधन बताते हैं। सिर्फ कदम रखना आपका काम है, चलाना, पार पहुँचाना, कदम-कदम पर बल भरना, थकावट मिटाना यह सब साथी का काम है। सिर्फ कदम नहीं हटाओ। सिर्फ कदम रखना यह तो मुश्किल नहीं है ना। कदम रखना अर्थात् संकल्प करना। जो साथी कहेंगे, जैसे चलायेंगे वैसे चलेंगे। अपना नहीं चलायेंगे। अपना चलना अर्थात् चिल्लाना! तो ऐसा कदम रखना आता है ना। क्या यह मुश्किल है? जिम्मेवारी लेने वाला जिम्मेवारी ले रहे हैं तो उसके ऊपर जिम्मेवारी सौंपने नहीं आती है? जब साकार माध्यम को मार्ग-दर्शन स्वरूप बनाए सैम्पल भी रखा फिर मार्ग पर चलना मुश्किल क्यों? सहज साधन सेकण्ड का साधन है। जो साकार रूप में ब्रह्मा बाप ने जैसे किया जो किया वही करना है। फॉलो फादर करना है।

 

हर संकल्प को वेरीफाय करो। बाप का संकल्प सो मेरा संकल्प है। कापी करना भी नहीं आता? दुनिया वाले कापी करने से रोकते हैं और यहाँ तो करना ही सिर्फ कापी हैं। तो सहज हुआ या मुश्किल हुआ? जब सहज, सरल, स्पष्ट रास्ता मिल गया तो फॉलो करो। और रास्तों पर जाते ही क्यों हो? और रास्ता अर्थात् व्यर्थ संकल्प रूपी रास्ता। कमज़ोरी के संकल्प रूपी रास्ता। कलियुगी आकर्षण के भिन्न-भिन्न संकल्पों का रास्ता। कलियुगी पुरानी समझ द्वारा देह अहंकारवश संकल्प का रास्ता है। इन रास्तों द्वारा उलझन के जंगल में पहुँच जाते हो। जहाँ से जितना निकलने की कोशिश करते हो उतना चारों ओर काँटे होने के कारण निकल नहीं पाते हो। काँटे क्या होते हैं? कहाँ, क्या होगा - यह क्या का काँटा लगता। कहाँ क्यों का काँटा लगता, कहाँ कैसे का काँटा लगता। कहाँ अपने ही कमज़ोर संस्कारों का काँटा लगता। चारों ओर काँटे ही काँटे नजर आते हैं। फिर चिल्लाते हैं अब साथी आकर बचाओ! तो साथी भी कहते हैं कदम पर कदम रखने के बजाए और रास्ते पर गये क्यों? जब साथी साथ देने के लिए स्वयं आफर कर रहे हैं फिर साथी को छोड़ते क्यों? किनारा करना अर्थात् सहारा छूटना। अकेले बनते क्यों हो? हद के साथ की आकर्षण चाहे किसी सम्बन्ध की, चाहे किसी साधन की अपने तरफ आकर्षित करती है। इसी आकर्षण के कारण साधन को वा विनाशी सम्बन्ध को अपना साथी बना लेते हो वा सहारा बना देते हो तब अविनाशी साथी से किनारा करते हो। और सहारा छूट ही जाता है। आधा कल्प इन हद के सहारे को सहारा समझ अनुभव कर लिया कि यह सहारा है वा दलदल है! फँसाया, गिराया वा मंज़िल पर पहुँचाया? अच्छी तरह से अनुभव किया ना। एक जन्म के अनुभवी तो नहीं हो ना। 63 जन्मों के अनुभवी हो। और भी एक-दो जन्म चाहिए? एक बार धोखा खाने वाला दुबारा धोखा नहीं खाता है। अगर बार-बार धोखा खाता है तो उसको भाग्यहीन कहा जाता है। अब तो स्वयं भाग्य विधाता ब्रह्मा बाप ने सभी ब्राह्मणों की जन्म पत्री में श्रेष्ठ भाग्य की लम्बी लकीर खींच ली है ना। भाग्य विधाता ने आपका भाग्य बनाया है। भाग्य विधाता बाप होने के कारण हर ब्राह्मण बच्चे को भाग्य के भरपूर भण्डार का वर्सा दे दिया है। तो सोचो - भाग्य के भण्डार के मालिक के बालक उसको क्या कमी रह सकती है।

 

मेरा भाग्य क्या है- सोचने की भी आवश्यकता नहीं क्योंकि भाग्यविधाता बाप बन गया तो बच्चे को भाग्य के जायदाद की क्या कमी होगी! भाग्य के खज़ाने के मालिक हो गये ना। ऐसे भाग्यवान कभी धोखा नहीं खा सकते हैं। इसलिए सहज रास्ता - कदम पर कदम उठाओ। स्वयं ही स्वयं को उलझन में ड़ालते हो, साथी का साथ छोड़ देते हो। सिर्फ यह एक बात याद रखो कि - हम श्रेष्ठ साथी के साथ हैं। वेरीफाय करो। तो सदा स्वयं से सैटिस्फाय रहेंगे। समझा सहज रास्ता। सहज को मुश्किल नहीं बनाओ। संकल्प में भी कभी मुश्किल अनुभव नहीं करना। ऐसे दृढ़ संकल्प करने आता है ना कि वहाँ जाकर फिर कहेंगे कि मुश्किल है। बापदादा देखते हैं कि नाम सहज योगी है और अनुभव मुश्किल होता है। मानते अपने को अधिकारी हैं और बनते अधीन हैं। हैं भाग्यविधाता के बच्चे और सोचते हैं - पता नहीं मेरा भाग्य है वा नहीं। शायद यही मेरा भाग्य है। इसलिए अपने आपको जानो और सदा स्वयं को हर समय के साथी समझ चलते चलो। अच्छा

 

ऐसे सदा हर कदम पर कदम रखने वाले, फॉलो फादर करने वाले, सदा हर संकल्प में साथी का साथ अनुभव करने वाले, सदा एक साथी दूसरा न कोई, ऐसे प्रीत निभाने वाले, सदा सहज योगी, श्रेष्ठ भाग्यवान विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

 

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात - कुमारियों से

 

1. कुमारियाँ अर्थात् कमाल करने वाली। साधारण कुमारियाँ नहीं, अलौकिक कुमारियाँ हो। लौकिक इस लोक की कुमारियाँ क्या करतीं और आप अलौकिक कुमारियाँ क्या करती हो? रात दिन का फर्क है। वह देह अभिमान में रह औरों को भी देह अभिमान में गिरातीं और आप सदा देही अभिमानी बन स्वयं भी उड़ती और दूसरों को भी उड़ाती - ऐसी कुमारियाँ हो ना! जब बाप मिल गया तो सर्व सम्बन्ध एक बाप से सदा हैं ही। पहले कहने मात्र थे, अभी प्रैक्टिकल है। भक्ति मार्ग में भी गायन जरूर करते थे कि सर्व सम्बन्ध बाप से हैं लेकिन अब प्रैक्टिकल सर्व सम्बन्धों का रस बाप द्वारा मिलता है। ऐसे अनुभव करने वाली हो ना। जब सर्व रस एक बाप द्वारा मिलता है तो और कहाँ भी संकल्प जा नहीं सकता। ऐसे निश्चय बुद्धि विजयी रत्न सदा गाये और पूजे जाते हैं। तो विजयी आत्मायें हैं, सदा स्मृति के तिलकधारी आत्मायें हैं, यह स्मृति रहती है? इतनी कुमारियाँ कौन-सी कमाल करेंगे? सदा हर कर्म द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करेंगी। हर कर्म से बाप दिखाई दे। कोई बोल भी बोलो तो ऐसा बोल हो जो उस बोल में बाप दिखाई दे। दुनिया में भी कोई बहुत अच्छा बोलने वाले होते हैं तो सब कहते हैं - इसको सिखाने वाला कौन? उसके तरफ दृष्टि जाती है। ऐसे आपके हर कर्म द्वारा बाप की प्रत्यक्षता हो। ऐसी धारणामूर्त दिव्यमूर्त यह विशेषता है। भाषण करने वाले तो सभी बनते हैं। लेकिन अपने हर कर्म से भाषण करने वाले वह कोटो में कोई होते हैं। तो ऐसी विशेषता दिखायेगी ना। अपने चरित्र द्वारा बाप का चित्र दिखाना। अच्छा

 

2. कुमारियों का झुण्ड हैं। सेना तैयार हो रही है। वह तो लेफ्ट-राइट करते, आप सदा राइट ही राइट करते। यह सैना कितनी श्रेष्ठ है, शान्ति द्वारा विजयी बन जाते। शान्ति से ही स्वराज्य पा लेते। कोई हलचल नहीं करनी पड़ती है। तो पक्की शक्ति सेना की शक्तियाँ हो, सैना छोड़कर जाने वाली नहीं। स्वप्न में भी कोई हिला न सके। कभी भी किसी के संगदोष में आने वाली नहीं। सदा बाप के संग में रहने वाले, दूसरे के संग में नहीं आ सकते। तो सारा ग्रुप बहादुर है ना! बहादुर क्या करते हैं? मैदान पर आते हैं। तो हो सभी बहादुर लेकिन मैदान पर नहीं आई हो। बहादुर जब मैदान पर आते हैं तो देखा होगा कि बहादुर की बहादुरी में बैण्ड बजाते हैं। आप भी जब मैदान पर आयेंगी तो खुशी की बैण्ड बजेगी। कुमारियाँ सदा ही श्रेष्ठ तकदीरवान हैं। कुमारियों को सेवा का बहुत अच्छा चांस है और मिलने वाला भी है। क्योंकि सेवा बहुत है और सेवाधारी कम हैं। जब सेवाधारी सेवा पर निकलेंगे तो कितनी सेवा हो जायेगी। देखेंगे कुमारियाँ क्या कमाल करती हैं। बाम्बे की कुमारियाँ तो बाम्बे बाम छोड़ने वाली कुमारियाँ होंगी ना। साधारण कार्य तो सब करते हैं लेकिन आप विशेष कार्य करके दिखाओ। कुमारियाँ घर का श्रृंगार हो। लौकिक में कुमारियों को क्या भी समझें लेकिन पारलौकिक घर में कुमारियाँ महान हैं। कुमारियाँ हैं तो सेन्टर की रौनक है। माताओं के लिए भी विशेष लिफ्ट है। पहले माता गुरू है। बाप ने माता गुरू को आगे किया है तब भविष्य में माताओं का नाम आगे है। अच्छा!

 

टीचर्स के साथ - टीचर्स अर्थात् बाप समान। जैसे बाप वैसे निमित्त सेवाधारी। बाप भी निमित्त है तो सेवाधारी भी निमित्त आत्मायें हैं। निमित्त समझने से स्वत: ही बाप समान बनने का संस्कार प्रैक्टिकल में आता है। अगर निमित्त नहीं समझते तो बाप समान नहीं बन सकते। तो एक निमित्त, दूसरा सदा न्यारा और प्यारा। यह बाप की विशेषता है। प्यारा भी बनता और न्यारा भी रहता। न्यारा बनकर प्यारा बनता है। तो बाप समान अर्थात् अति न्यारे और अति प्यारे। औरों से न्यारे और बाप से प्यारे। यह समानता है। बाप की यही दो विशेषताएँ हैं। तो बाप समान सेवाधारी भी ऐसे हैं। इसी विशेषता को सदा स्मृति में रखते हुए सहज आगे बढ़ती जायेंगी। मेहनत नहीं करनी पड़ेंगी। जहाँ निमित्त हैं वहाँ सफलता है ही। वहाँ मेरा-पन आ नहीं सकता। जहाँ मेरा-पन है वहाँ सफलता नहीं। निमित्त भाव सफलता की चाबी है। जब हद का लौकिक मेरा-पन छोड़ दिया तो फिर और मेरा कहाँ से आया। मेरा के बजाए बाबा-बाबा कहने से सदा सेफ हो जाते। मेरा सेन्टर नहीं बाबा का सेन्टर। मेरा जिज्ञासु नहीं - बाबा का। मेरा खत्म होकर तेरा बन जाता। तेरा कहना अर्थात् उड़ना। तो निमित्त शिक्षक अर्थात् उड़ती कला के एक्जैम्पल। जैसे आप उड़ती कला के एक्जैम्पुल बनते वैसे दूसरे भी बनते हैं। न चाहते भी जिसके निमित्त बनते हो उनमें वह वायब्रेशन स्वत: आ जाते है। तो निमित्त शिक्षक, सेवाधारी सदा न्यारे हैं, सदा प्यारे हैं। कभी भी कोई पेपर आवे तो उसमें पास होने वाले हैं। निश्चयबुद्धि विजयी हैं।

 

2. सभी रूहानी गुलाब हो ना। मोतिया हो या गुलाब? जैसे गुलाब का पुष्प सब पुष्पों में से श्रेष्ठ गाया जाता है ऐसे रूहानी गुलाब अर्थात् श्रेष्ठ आत्मायें। रूहानी गुलाब सदा रूहानियत में रहने वाला, सदा रूहानी नशे में रहने वाला। सदा रूहानी सेवा में रहने वाला - ऐसे रूहानी गुलाब हो। आजकल के समय प्रमाण रूहानियत की आवश्यकता है। रूहानियत न होने के कारण ही यह सब लड़ाई झगड़े हैं। तो रूहानी गुलाब बन रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले। यही ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन है। सदा इसी आक्यूपेशन में बिजी रहो।

 

पार्टियों से

 

सदा स्वयं को डबल लाइट फरिश्ता अनुभव करते हो। फरिश्ता अर्थात् जिसकी दुनिया ही एक बाप हो। ऐसे फरिश्ते सदा बाप के प्यारे हैं। फरिश्ता अर्थात् देह और देह के सम्बन्धों से आकर्षण का रिश्ता नहीं। निमित्त मात्र देह में हैं और देह के सम्बन्धियों से कार्य में आते हैं लेकिन लगाव नहीं। क्योंकि फरिश्तों के और कोई से रिश्ते नहीं होते। फरिश्ते के रिश्ते एक बाप के साथ हैं। ऐसे फरिश्ते हो ना। अभी-अभी देह में कर्म करने के लिए आते और अभी- अभी देह से न्यारे! फरिश्ते सेकण्ड में यहाँ, सेकण्ड में वहाँ। क्योंकि उड़ने वाले हैं। कर्म करने के लिए देह का आधार लिया और फिर ऊपर। ऐसे अनुभव करते हो? अगर कहाँ भी लगाव है, बन्धन है तो बन्धन वाला ऊपर नहीं उड़ सकता। वह नीचे आ जायेगा। फरिश्ते अर्थात् सदा उड़ती कला वाले। नीचे ऊपर होने वाले नहीं। सदा ऊपर की स्थिति में रहने वाले। फरिश्तों के संसार में रहने वाले। तो फरिश्ता स्मृति स्वरूप बने तो सब रिश्ते खत्म। ऐसे अभ्यासी हो ना। कर्म किया और फिर न्यारे। लिफ्ट में क्या करते हैं? अभी-अभी नीचे अभी-अभी ऊपर। नीचे आये कर्म किया और फिर स्विच दबाया और ऊपर। ऐसे अभ्यासी। अच्छा - ओम् शान्ति।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :-  सर्वश्रेष्ठ मार्ग कौन सा है? इस मार्ग पर चलना सहज तथा स्पष्ट कैसे है?

 प्रश्न 2 :-  लौकिक कुमारियों वा आलोकिक कुमारियों में अंतर स्पष्ट कीजिए?

 प्रश्न 3 :- निमित्त शिक्षक अर्थात उड़ती कला के एक्सएम्पल- इस कथन को स्पष्ट कीजिए ?

 प्रश्न 4 :-  'डबल लाइट फरिश्ता' की विशेषताये क्या है ?

 प्रश्न 5 :- भिन्न भिन्न रास्तो पर जाने से क्या होता है ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(भाग्य, लौकिक, अनुभव, धोखा, माताओं, भण्डार, अधीन, भाग्यहीन, भविष्य, सेन्टर, ब्राह्मण, बार-बार , पारलौकिक, बाप, अधिकारी)

 1   ______ विधाता ने आपका भाग्य बनाया है। भाग्य विधाता बाप होने के कारण हर _____ बच्चे को भाग्य के भरपूर _____ का वर्सा दे दिया है।

 2  _____के लिए भी विशेष लिफ्ट है। पहले माता गुरू है। _____ने माता गुरू को आगे किया है तब _____ में माताओं का नाम आगे है।

 3  एक बार _____ खाने वाला दुबारा धोखा नहीं खाता है। अगर ____ धोखा खाता है तो उसको ______ कहा जाता है।

 4  बापदादा देखते हैं कि नाम सहज योगी है और _____ मुश्किल होता है। मानते अपने को _____ हैं और बनते ______ हैं।

 5  कुमारियाँ घर का श्रृंगार हो। _____ में कुमारियों को क्या भी समझें लेकिन _____ घर में कुमारियाँ महान हैं। कुमारियाँ हैं तो ______ की रौनक है।

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- रूहानी गुलाब बन रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले। यही ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन है।

 2  :- एक बात याद रखो कि - हम श्रेष्ठ साथी के साथ हैं। वेरीफाय करो। तो सदा स्वयं से सैटिस्फाय रहेंगे।

 3  :- कुमारो को सेवा का बहुत अच्छा चांस है और मिलने वाला भी है। क्योंकि सेवा बहुत है और सेवाधारी कम हैं।

 4  :- दुनिया वाले कापी करने से रोकते हैं और यहाँ तो करना ही सिर्फ कापी है।

 5  :- निमित्त भाव सफलता की राखी है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- सर्वश्रेष्ठ मार्ग कौन सा है?इस मार्ग पर चलना सहज तथा स्पष्ट कैसे है?

   उत्तर 1 :-  रूहानी मार्ग सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।

          सर्वश्रेष्ठ साथी, सहज-सरल मार्ग प्रदर्शक शिव बाबा साथी बन साथ निभाने के लिए साकार माध्यम (ब्रह्मा) द्वारा हर कदम रूपी कर्म करके दिखाने के लिए साकार सृष्टि पर अवतरित हुए हैं।

         बाप साथी जानते है कि जिन साथियों को साथी बनाया है, यह बहुत भटके हुए होने के कारण थके हुए हैं। निराश हैं, निर्बल हैं। मुश्किल समझ दिलशिकस्त हो गये हैं इसलिए सहज से सहज सिर्फ कदम पर कदम रखो।

         सिर्फ कदम रखना आपका काम है, चलाना, पार पहुँचाना, कदम-कदम पर बल भरना, थकावट मिटाना यह सब साथी का काम है। सिर्फ कदम नहीं हटाओ।

         साकार रूप में ब्रह्मा बाप ने जैसे किया जो किया वही करना है। फॉलो फादर करना है। हर संकल्प को वेरीफाय करो। बाप का संकल्प सो मेरा संकल्प है। दुनिया वाले कापी करने से रोकते हैं और यहाँ तो करना ही सिर्फ कापी हैं।

         साथी अर्थात् सदा-साथ रहने वाले। हर कर्म में, संकल्प में साथ निभाने वाले। हर कदम पर कदम रख आगे बढ़ने वाले। एक कदम भी मनमत, परमत पर उठाने वाले नहीं।

         सदा साथी के साथ निभाने वाले सदा सहज मार्ग का अनुभव करते हैं क्योंकि बाप वा श्रेष्ठ साथी हर कदम रखते हुए रास्ता स्पष्ट और साफ कर देते हैं ।

         हम सबको सिर्फ कदम के ऊपर कदम रखकर चलना है। रास्ता सही है, सहज है, स्पष्ट है - यह सोचने की भी आवश्यकता नहीं। जहाँ बाप का कदम है वह है ही श्रेष्ठ रास्ता। सिर्फ कदम रखो और हर कदम में पद्म लो।

 

 प्रश्न 2 :- लौकिक कुमारियों वा आलोकिक कुमारियों में अंतर स्पष्ट कीजिए?

   उत्तर 2 :- लौकिक कुमारियों वा आलौकिक कुमारियों में दिन रात का अंतर है:-

           आलौकिक कुमारियाँ अर्थात् कमाल करने वाली। साधारण कुमारियाँ नहीं, साधारण कार्य तो सब करते हैं लेकिन आप विशेष कार्य करके दिखाने वाली कुमारियाँ हो।

           लौकिक कुमारियाँ देह अभिमान में रह औरों को भी देह अभिमान में गिरातीं और आलौकिक कुमारियाँ सदा देही अभिमानी बन स्वयं भी उड़ती और दूसरों को भी उड़ाती।

          जब बाप मिल गया तो सर्व सम्बन्ध एक बाप से सदा हैं ही। पहले कहने मात्र थे, अभी प्रैक्टिकल है। जब सर्व रस एक बाप द्वारा मिलता है तो और कहाँ भी संकल्प जा नहीं सकता। ऐसे निश्चय बुद्धि विजयी रत्न सदा गाये और पूजे जाते हैं।   

          सदा हर कर्म द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करेंगी। हर कर्म से बाप दिखाई दे। कोई बोल भी बोलो तो ऐसा बोल हो जो उस बोल में बाप दिखाई दे। भाषण करने वाले तो सभी बनते हैं। लेकिन अपने हर कर्म से भाषण करने वाले वह कोटो में कोई होते हैं।         

         आलौकिक कुमारियाँ अर्थात पक्की शिवशक्ति सेना की शक्तियाँ हो, सैना छोड़कर जाने वाली नहीं। स्वप्न में भी कोई हिला न सके। कभी भी किसी के संगदोष में आने वाली नहीं। सदा बाप के संग में रहने वाली।

         आलौकिक कुमारियाँ अर्थात बहादुर कुमारियाँ। बहादुर जब मैदान पर आते हैं तो देखा होगा कि बहादुर की बहादुरी में बैण्ड बजाते हैं। आप भी जब मैदान पर आयेंगी तो खुशी की बैण्ड बजेगी। कुमारियाँ सदा ही श्रेष्ठ तकदीरवान है।

 

 प्रश्न 3 :- निमित्त शिक्षक अर्थात उड़ती कला के एक्जैम्पल- इस कथन को स्पष्ट कीजिए ?

   उत्तर 3 :- टीचर्स अर्थात् बाप समान।

           जैसे बाप वैसे निमित्त सेवाधारी। बाप भी निमित्त है तो सेवाधारी भी निमित्त आत्मायें हैं। निमित्त समझने से स्वत: ही बाप समान बनने का संस्कार प्रैक्टिकल में आता है।अगर निमित्त नहीं समझते तो बाप समान नहीं बन सकते।

          ❷ 'सदा न्यारा और प्यारा' यह बाप की विशेषता है। तो बाप समान अर्थात् अति न्यारे और अति प्यारे। औरों से न्यारे और बाप से प्यारे।तो बाप समान सेवाधारी भी ऐसे हो।

          जहाँ निमित्त हैं वहाँ सफलता है ही। वहाँ मेरा-पन आ नहीं सकता। जब हद का लौकिक मेरा-पन छोड़ दिया तो फिर और मेरा कहाँ से आया।

          मेरा के बजाए बाबा-बाबा कहने से सदा सेफ हो जाते। मेरा सेन्टर नहीं बाबा का सेन्टर। मेरा जिज्ञासु नहीं - बाबा का। मेरा खत्म होकर तेरा बन जाता। तेरा कहना अर्थात् उड़ना।

          निमित्त शिक्षक अर्थात् उड़ती कला के एक्जैम्पल। तो निमित्त शिक्षक, सेवाधारी सदा न्यारे हैं, सदा प्यारे हैं। कभी भी कोई पेपर आवे तो उसमें पास होने वाले हैं। निश्चयबुद्धि विजयी हैं।

 

 प्रश्न 4 :- 'डबल लाइट फरिश्ता' की विशेषताये क्या है ?

   उत्तर 4 :- 'डबल लाइट फ़रिश्ते की निम्न विशेषताये है:-'

         डबल लाइट फरिश्ता अर्थात् जिसकी दुनिया ही एक बाप हो।ऐसे फरिश्ते सदा बाप के प्यारे हैं।

          फरिश्ता अर्थात् देह और देह के सम्बन्धों से आकर्षण का रिश्ता नहीं। निमित्त मात्र देह में हैं और देह के सम्बन्धियों से कार्य में आते हैं लेकिन लगाव नहीं।

          फरिश्ते सेकण्ड में यहाँ, सेकण्ड में वहाँ। क्योंकि उड़ने वाले हैं। कर्म करने के लिए देह का आधार लिया और फिर ऊपर।

          ❹ फरिश्ते अर्थात् सदा उड़ती कला वाले। नीचे ऊपर होने वाले नहीं। सदा ऊपर की स्थिति में रहने वाले। फरिश्तों के संसार में रहने वाले।

 

 प्रश्न 5 :- भिन्न भिन्न रास्तो पर जाने से क्या होता है ?

   उत्तर 5 :-भिन्न-भिन्न रास्ता अर्थात् व्यर्थ संकल्प रूपी रास्ता। कमज़ोरी के संकल्प रूपी रास्ता।

          कलियुगी आकर्षण के भिन्न-भिन्न संकल्पों का रास्ता। कलियुगी पुरानी समझ द्वारा देह अहंकारवश संकल्प का रास्ता है। इन रास्तों द्वारा उलझन के जंगल में पहुँच जाते हो। जहाँ से जितना निकलने की कोशिश करते हो उतना चारों ओर काँटे होने के कारण निकल नहीं पाते हो।

            कहाँ, क्या होगा - यह क्या का काँटा लगता। कहाँ क्यों का काँटा लगता, कहाँ कैसे का काँटा लगता। कहाँ अपने ही कमज़ोर संस्कारों का काँटा लगता। चारों ओर काँटे ही काँटे नजर आते हैं। फिर चिल्लाते हैं अब साथी आकर बचाओ।

            ❸ हद के साथ की आकर्षण चाहे किसी सम्बन्ध की, चाहे किसी साधन की अपने तरफ आकर्षित करती है। इसी आकर्षण के कारण साधन को वा विनाशी सम्बन्ध को अपना साथी बना लेते हो वा सहारा बना देते हो तब अविनाशी साथी से किनारा करते हो तो सहारा छूट ही जाता है।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(भाग्य, लौकिक, अनुभव, धोखा, माताओं, भण्डार, अधीन, भाग्यहीन, भविष्य, सेन्टर, ब्राह्मण, बार-बार , पारलौकिक, बाप, अधिकारी)

 1   ______ विधाता ने आपका भाग्य बनाया है। भाग्य विधाता बाप होने के कारण हर _____ बच्चे को भाग्य के भरपूर _____ का वर्सा दे दिया है।

       भाग्य / ब्राह्मण / भण्डार

 

 2  _____के लिए भी विशेष लिफ्ट है। पहले माता गुरू है। _____ने माता गुरू को आगे किया है तब _____ में माताओं का नाम आगे है।

      माताओं / बाप / भविष्य

 

 3   एक बार _____ खाने वाला दुबारा धोखा नहीं खाता है। अगर ____ धोखा खाता है तो उसको ______ कहा जाता है।

      धोखा / बार-बार / भाग्यहीन

 

 4  बापदादा देखते हैं कि नाम सहज योगी है और _____ मुश्किल होता है। मानते अपने को _____ हैं और बनते ______ हैं।

      अनुभव / अधिकारी / अधीन

 

 5  कुमारियाँ घर का श्रृंगार हो। _____ में कुमारियों को क्या भी समझें लेकिन _____ घर में कुमारियाँ महान हैं। कुमारियाँ हैं तो ______ की रौनक है।

      लौकिक / पारलौकिक / सेन्टर

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- रूहानी गुलाब बन रूहानियत की खुशबू फैलाने वाले। यही ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन है।

 

 2  :- एक बात याद रखो कि - हम श्रेष्ठ साथी के साथ हैं। वेरीफाय करो। तो सदा स्वयं से सैटिस्फाय रहेंगे।

 

 3  :- कुमारो को सेवा का बहुत अच्छा चांस है और मिलने वाला भी है। क्योंकि सेवा बहुत है और सेवाधारी कम हैं।

  कुमारियों को सेवा का बहुत अच्छा चांस है और मिलने वाला भी है। क्योंकि सेवा बहुत है और सेवाधारी कम हैं।

 

 4  :- दुनिया वाले कापी करने से रोकते हैं और यहाँ तो करना ही सिर्फ कापी है।

 

 5   :-निमित्त भाव सफलता की राखी है।

 निमित्त भाव सफलता की चाबी है।