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AVYAKT MURLI
14 / 12 / 85
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14-12-85 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
मधुबन निवासियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
आज विश्व-रचयिता बाप अपने मास्टर रचयिता बच्चों को देख रहे हैं। मास्टर रचयिता अपने रचतापन की स्मृति में कहाँ तक स्थित रहते हैं! आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है। इस देह रूपी रचना के रचयिता कहाँ तक बने हैं? देह रूपी रचना कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर रचनापन विस्मृत तो नहीं कर देती है? मालिक बन इस रचना को सेवा में लगाते रहते? जब चाहें जो चाहें मालिक बन करा सकते हैं? पहले-पहले इस देह के मालिकपन का अभ्यास ही प्रकृति का मालिक वा विश्व का मालिक बना सकता है! अगर देह के मालिकपन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिकपन में भी सम्पन्न नहीं बन सकते हैं। वर्तमान समय की यह जीवन - भविष्य का दर्पण है। इसी दर्पण द्वारा स्वयं का भविष्य स्पष्ट देख सकते हो। पहले इस देह के सम्बन्ध और संस्कार के अधिकारी बनने के आधार पर ही मालिकपन के संस्कार हैं। सम्बन्ध में न्यारा और प्यारापन आना - यह निशानी है मालिकपन की। संस्कारों में निर्मान और निर्माण, दोनों विशेषतायें मालिकनपन की निशानी हैं। साथ-साथ सर्व आत्माओं के सम्पर्क में आना, स्नेही बनना, दिलों के स्नेह की आशीर्वाद अर्थात् शुभ भावना सर्व के अन्दर से उस आत्मा के प्रति निकले। चाहे जाने, चाहे न जाने। दूर का सम्बन्ध वा सम्पर्क हो लेकिन जो भी देखे वह स्नेह के कारण ऐसे ही अनुभव करे कि यह हमारा है स्नेह की पहचान से अपनापन अनुभव करेगा। सम्बन्ध दूर का हो लेकिन स्नेह सम्पन्न का अनुभव करायेगा। विश्व के मालिक वा देह के मालिकपन की अभ्यासी आत्माओं की यह भी विशेषता अनुभव में आयेगी कि वह जिसके भी सम्पर्क में आयेंगे उसको उस विशेष आत्मा से दातापन की अनुभूति होगी। यह किसी के संकल्प में भी नहीं आ सकता कि यह लेने वाले हैं। उस आत्मा से सुख की, दातापन की वा शान्ति, प्रेम, आनन्द, खुशी, सहयोग, हिम्मत, उत्साह, उमंग - किसी न किसी विशेषता के दातापन की अनुभूति होगी। सदा विशाल बुद्धि और विशाल दिल, जिसको आप बड़ी दिल वाले कहते हो - ऐसी अनुभूति होगी। अब इन निशानियों से अपने आपको चेक करो कि क्या बनने वाले हो? दर्पण तो सभी के पास है। जितना स्वयं को स्वयं जान सकते उतना और कोई नहीं जान सकते। तो स्वयं को जानो। अच्छा-
आज तो मिलने आये हैं। फिर भी सभी आये हैं तो बापदादा को भी सभी बच्चों का स्नेह के साथ रिगार्ड भी रखना होता है। इसलिए रूह-रूहान की। मधुबन वाले अपना अधिकार नहीं छोड़ते फिर भी समीप बैठे हो। बहुत बातों से निश्चिन्त बैठे हो। जो बाहर रहते उन्हों को फिर भी मेहनत करनी पड़ती है। कमाना और खाना यह कम मेहनत नहीं है। मधुबन में कमाने की चिन्ता तो नहीं है ना! बापदादा जानते हैं, प्रवृत्ति में रहने वालों को सहन भी करना पड़ता। सामना भी करना पड़ता। हंस बगुलों के बीच में रह अपनी उन्नति करते आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन आप लोग कई बातों से स्वत: ही न्यारे हो। आराम से रहते हो। आराम से खाते हो और आराम करते हो। बाहर दफ्तर में जाने वाले दिन में आराम करते हैं क्या? यहाँ तो शरीर का भी आराम तो बुद्धि का भी आराम। तो मधुबन निवासियों की स्थिति सभी से नम्बरवन हो गई ना। क्योंकि एक ही काम है। स्टडी करो तो भी बाप करा रहा है। सेवा करते हो तो भी ‘यज्ञ सेवा’ है। बेहद बाप का बेहद का घर है। एक ही बात एक ही लात है। दूसरा कुछ है नहीं। मेरा सेन्टर यह भी नहीं है। सिर्फ मेरी चार्ज, यह नहीं होना चाहिए। मधुबन निवासियों को कई बातों में सहज पुरूषार्थ और सहज प्राप्ति है। अच्छा- सभी मधुबन वालों ने गोल्डन जुबली का भी प्रोग्राम बनाया है ना। फंक्शन का नहीं। उसके तो फोल्डर्स आदि छपे हैं। वह हुआ विश्व-सेवा के प्रति। स्वयं के प्रति क्या प्लैन बनाया है? स्वयं की स्टेज पर क्या पार्ट बजायेंगे? उस स्टेज के तो स्पीकर्स, प्रोग्राम भी बना लेते हो। स्व की स्टेज का क्या प्रोग्राम बनाया है? चैरिटी बिगन्स एट होम तो मधुबन निवासी हैं ना! कोई भी फंक्शन होता है तो क्या करते हो? (दीप जलाते हैं) तो गोल्डन जुबली का दीप कौन जगायेगा? हर बात आरम्भ कौन करेगा? मधुबन निवासियों में हिम्मत है, उमंग भी है, वायुमण्डल भी है, सब मदद है। जहाँ सर्व सहयोग है वहाँ सब सहज है। सिर्फ एक बात करनी पड़ेगी - वह कौन-सी?
बापदादा सभी बच्चों से यही श्रेष्ठ आशा रखते हैं कि हर एक बाप समान बने। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना यही विशेषता है। पहली मुख्य बात है स्वयं से अर्थात् अपने पुरूषार्थ से, अपने स्वभाव संस्कार से, बाप को सामने रखते हुए सन्तुष्ट हैं - यह चेक करना है। हाँ, मैं सन्तुष्ट हूँ। यथाशक्ति वाला - वह अलग बात है। लेकिन वास्तविक स्वरूप के हिसाब से स्वयं से सन्तुष्ट होना और फिर दूसरों को सन्तुष्ट करना - यह सन्तुष्टता की महानता है। दूसरे भी महसूस करें कि यह यथार्थ रूप में सन्तुष्ट आत्मा है। सन्तुष्टता में सब कुछ आ जाता है। न डिस्टर्ब हो ना डिस्टर्ब करें। इसको कहते हैं - ‘सन्तुष्टता’। डिस्टर्ब करने वाले बहुत होंगे लेकिन स्वयं डिस्टर्ब न हों। आग की सेक से स्वयं को स्वयं किनारा कर सेफ रहें। दूसरे को नहीं देखें। अपने को देखें - मुझे क्या करना है। मुझे निमित्त बन ओरों को शुभ भावना और शुभ कामना का सहयोग देना है। यह है विशेष धारणा। इसमें सब कुछ आ जायेगा। इसकी तो गोल्डन जुबली मना सकते हो ना! निमित्त मधुबन वालों के लिए कहते हैं लेकिन है सभी के प्रति। मोह जीत की कहानी सुनी है ना! एसी सन्तुष्टता की कहानी बनाओ। जिसके पास भी कोई जावे, कितना भी क्रास एग्जामिन करे लेकिन सबके मुख से, सबके मन से सन्तुष्टता की विशेषता अनुभव हो। यह तो ऐसा है। नहीं। मैं कैसे बनके और बनाऊँ। बस, यह छोटी-सी बात स्टेज पर दिखाओ। अच्छा!
दादियाँ बापदादा के समीप आकर बैठी हैं - बापदादा के पास आप सबके दिल के संकल्प पहुँचते ही हैं। इतनी सब श्रेष्ठ आत्माओं के श्रेष्ठ संकल्प हैं तो साकार रूप में होना ही है। प्लैन्स तो बहुत अच्छे बनाये हैं। और यही प्लैन ही सबको प्लेन बना देंगे। सारे विश्व के अन्दर विशेष आत्माओं की शक्ति तो एक ही है। और कहॉ भी ऐसी विशेष आत्माओं का संगठन नहीं है। यहाँ संगठन की शक्ति विशेष है। इसलिए इस संगठन पर सबकी विशेष नजर है। और सभी डगमगा रहे हैं। गद्दियाँ हिल रही हैं। और यह राज्य गद्दी बन रही है। यहाँ गुरू की गद्दी नहीं है। इसलिए हिलती नहीं। स्व राज्य की या विश्व के राज्य की गद्दी है। सभी हिलाने की कोशिश भी करेंगे लेकिन संगठन की शक्ति इसका विशेष बचाव है। वहाँ एक-एक को अलग करके यूनिटी को डिसयूनिटी करते, फिर हिलाते हैं। यहाँ संगठन की शक्ति के कारण हिला नहीं सकते। तो इस संगठन की शक्ति की विशेषता को सदा और आगे बढ़ाते चलो। यह संगठन ही किला है। इसलिए वार नहीं कर सकते। विजय तो हुई पड़ी है। सिर्फ रिपीट करना है। जो रिपीट करने में होशियार बनते वही विजयी बन स्टेज पर प्रसिद्ध हो जाते। संगठन की शक्ति ही विजय का विशेष आधार स्वरूप है। इस संगठन ने ही सेवा की वृद्धि में सफलता को प्राप्त कराया है। पालना का रिटर्न दादियों ने अच्छा दिया है। संगठन की शक्ति का आधार क्या है? सिर्फ यह पाठ पक्का हो जाए कि ‘रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है’। देना लेना है। लेना, लेना नहीं है। लेना अर्थात् गँवाना। देना अर्थात् लेना। कोई दे तो देवें यह कोई बिजनेस नहीं। यह तो दाता बनने की बात है। दाता लेकर फिर नहीं देता। वह तो देता ही जाता। इसलिए इस संगठन की सफलता है। लेकिन अभी कंगन तैयार हुआ है। माला नहीं तैयार हुई है।
आने वाले समय के लिए बापदादा का इशारा वृद्धि न हो तो राज्य किस पर करेंगे। अभी तो वृद्धि की लिस्ट में कमी है। 9 लाख ही तैयार नहीं हुए हैं। किसी भी विधि से मिलेंगे तो सही ना। विधि चेन्ज होती रहती है। जो साकार में मिले और अव्यक्त में मिल रहे हैं। विधि चेन्ज हुई ना। आगे भी विधि चेन्ज होती रहेगी। वृद्धि प्रमाण मिलने की विधि भी चेन्ज होती रहेगी।’’ अच्छा-
प्रश्न - रूहानियत में कमी आने का कारण क्या है?
उत्तर - स्वयं को वा जिनकी सेवा करते हो उन्हें ‘अमानत’ नहीं समझते। अमानत समझने से अनासक्त रहेंगे। और अनासक्त बनने से ही रूहानियत आयेगी। अच्छा-
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- मालिकपन की विशेषतायें क्या हैं?
प्रश्न 2 :- मधुबन वाले और बाहर रहने वालों के बीच क्या अंतर हैं?
प्रश्न 3 :- बापदादा सभी बच्चों से किस श्रेष्ठ आशा रखते हैं? विस्तार कीजिए।
प्रश्न 4 :- गोल्डन जुबली का प्रोग्राम बनाने के समय स्टेज पर कौन सी बात दिखाने केलिए बाबा ने कहा?
प्रश्न 5 :- संगठन की शक्ति के बारे में आज बाबा के महावाक्य क्या है?
FILL IN THE BLANKS:-
(सम्बन्ध, मालिकपन, संस्कार, प्राप्ति, दर्पण, प्रकृति, विश्व, वर्तमान, देह, रचनापन, अधिकारी, भविष्य, सहज, रचना, पुरूषार्थ )
1 पहले-पहले इस देह के _____ का अभ्यास ही _____ का मालिक वा _____ का मालिक बना सकता है!
2 पहले इस देह के _____ और _____ के _____ बनने के आधार पर ही मालिकपन के संस्कार हैं।
3 _____ समय की यह जीवन - भविष्य का _____ है। इसी दर्पण द्वारा स्वयं का _____ स्पष्ट देख सकते हो।
4 _____ रूपी _____ कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर _____ विस्मृत तो नहीं कर देती है?
5 मधुबन निवासियों को कई बातों में _____ _____ और सहज ______ है।
सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】
1 :- जितना स्वयं को स्वयं जान सकते उतना और कोई नहीं जान सकते।
2 :- अगर विश्व के मालिकपन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो देह के मालिकपन में भी सम्पन्न नहीं बन सकते हैं।
3 :- आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है।
4 :- सिर्फ यह पाठ पक्का हो जाए कि ‘रिगार्ड लेना ही रिगार्ड देना है’।
5 :- अमानत समझने से अनासक्त रहेंगे। और अनासक्त बनने से ही रूहानियत आयेगी।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- मालिकपन की विशेषतायें क्या हैं?
उत्तर 1 :- मालिकपन विशेषतायें यह है कि :-
..❶ सम्बन्ध में न्यारा और प्यारापन आना।
..❷ संस्कारों में निर्मान और निर्माण, दोनों विशेषतायें मालिकनपन की निशानी हैं।
..❸ साथ-साथ सर्व आत्माओं के सम्पर्क में आना, स्नेही बनना, दिलों के स्नेह की आशीर्वाद अर्थात् शुभ भावना सर्व के अन्दर से उस आत्मा के प्रति निकले।
..❹ चाहे जाने, चाहे न जाने। दूर का सम्बन्ध वा सम्पर्क हो लेकिन जो भी देखे वह स्नेह के कारण ऐसे ही अनुभव करे कि यह हमारा है स्नेह की पहचान से अपनापन अनुभव करेगा। सम्बन्ध दूर का हो लेकिन स्नेह सम्पन्न का अनुभव करायेगा।
..❺ विश्व के मालिक वा देह के मालिकपन की अभ्यासी आत्माओं की यह भी विशेषता अनुभव में आयेगी कि वह जिसके भी सम्पर्क में आयेंगे उसको उस विशेष आत्मा से दातापन की अनुभूति होगी।
..❻ यह किसी के संकल्प में भी नहीं आ सकता कि यह लेने वाले हैं। उस आत्मा से सुख की, दातापन की वा शान्ति, प्रेम, आनन्द, खुशी, सहयोग, हिम्मत, उत्साह, उमंग - किसी न किसी विशेषता के दातापन की अनुभूति होगी।
..❼ सदा विशाल बुद्धि और विशाल दिल, जिसको आप बड़ी दिल वाले कहते हो - ऐसी अनुभूति होगी।
प्रश्न 2 :- मधुबन वाले और बाहर रहनेवालों के बीच क्या अंतर हैं?
उत्तर 2 :- मधुबन वाले और बाहर रहनेवालों के बीच अंतर यह है कि :-
..❶ मधुबन वाले अपना अधिकार नहीं छोड़ते फिर भी समीप बैठे हो। बहुत बातों से निश्चिन्त बैठे हो।
..❷ जो बाहर रहते उन्हों को फिर भी मेहनत करनी पड़ती है। कमाना और खाना यह कम मेहनत नहीं है।
..❸ मधुबन में कमाने की चिन्ता तो नहीं है ना!
..❹ बापदादा जानते हैं, प्रवृत्ति में रहने वालों को सहन भी करना पड़ता। सामना भी करना पड़ता। हंस बगुलों के बीच में रह अपनी उन्नति करते आगे बढ़ रहे हैं।
..❺ लेकिन आप लोग कई बातों से स्वत: ही न्यारे हो। आराम से रहते हो। आराम से खाते हो और आराम करते हो।
..❻ बाहर दफ्तर में जाने वाले दिन में आराम करते हैं क्या? यहाँ तो शरीर का भी आराम तो बुद्धि का भी आराम।
प्रश्न 3 :- बापदादा सभी बच्चों से किस श्रेष्ठ आशा रखते हैं?विस्तार कीजिए।
उत्तर 3 :- बापदादा सभी बच्चों से यही श्रेष्ठ आशा रखते हैं कि :-
..❶ हर एक बाप समान बने। सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना यही विशेषता है।
..❷ पहली मुख्य बात है स्वयं से अर्थात् अपने पुरूषार्थ से, अपने स्वभाव संस्कार से, बाप को सामने रखते हुए सन्तुष्ट हैं - यह चेक करना है।
..❸ हाँ, मैं सन्तुष्ट हूँ। यथाशक्ति वाला - वह अलग बात है।
..❹ लेकिन वास्तविक स्वरूप के हिसाब से स्वयं से सन्तुष्ट होना और फिर दूसरों को सन्तुष्ट करना - यह सन्तुष्टता की महानता है।
..❺ दूसरे भी महसूस करें कि यह यथार्थ रूप में सन्तुष्ट आत्मा है।
..❻ सन्तुष्टता में सब कुछ आ जाता है। न डिस्टर्ब हो ना डिस्टर्ब करें। इसको कहते हैं - ‘सन्तुष्टता’।
प्रश्न 4 :- गोल्डन जुबली का प्रोग्राम बनाने के समय स्टेज पर कौन सी बात दिखाने केलिए बाबा ने कहा?
उत्तर 4 :- बाबा कहते है कि :-
..❶ डिस्टर्ब करने वाले बहुत होंगे लेकिन स्वयं डिस्टर्ब न हों। आग की सेक से स्वयं को स्वयं किनारा कर सेफ रहें।
..❷ दूसरे को नहीं देखें। अपने को देखें - मुझे क्या करना है।
..❸ मुझे निमित्त बन ओरों को शुभ भावना और शुभ कामना का सहयोग देना है। यह है विशेष धारणा।
..❹ इसमें सब कुछ आ जायेगा। इसकी तो गोल्डन जुबली मना सकते हो ना! निमित्त मधुबन वालों के लिए कहते हैं लेकिन है सभी के प्रति।
..❺ मोह जीत की कहानी सुनी है ना! एसी सन्तुष्टता की कहानी बनाओ। जिसके पास भी कोई जावे, कितना भी क्रास एग्जामिन करे लेकिन सबके मुख से, सबके मन से सन्तुष्टता की विशेषता अनुभव हो।
..❻ यह तो ऐसा है। नहीं। मैं कैसे बनके और बनाऊँ। बस, यह छोटी-सी बात स्टेज पर दिखाओ।
प्रश्न 5 :- संगठन की शक्ति के बारे में आज बाबा के महावाक्य क्या है?
उत्तर 5 :- संगठन की शक्ति के बारे में आज बाबा के महावाक्य निम्न है :-
..❶ और कहॉ भी ऐसी विशेष आत्माओं का संगठन नहीं है। यहाँ संगठन की शक्ति विशेष है। इसलिए इस संगठन पर सबकी विशेष नजर है।
..❷ और सभी डगमगा रहे हैं। गद्दियाँ हिल रही हैं। और यह राज्य गद्दी बन रही है। यहाँ गुरू की गद्दी नहीं है। इसलिए हिलती नहीं।
..❸ स्व राज्य की या विश्व के राज्य की गद्दी है। सभी हिलाने की कोशिश भी करेंगे लेकिन संगठन की शक्ति इसका विशेष बचाव है।
..❹ वहाँ एक-एक को अलग करके यूनिटी को डिसयूनिटी करते, फिर हिलाते हैं। यहाँ संगठन की शक्ति के कारण हिला नहीं सकते। तो इस संगठन की शक्ति की विशेषता को सदा और आगे बढ़ाते चलो।
..❺ यह संगठन ही किला है। इसलिए वार नहीं कर सकते।
..❻ विजय तो हुई पड़ी है। सिर्फ रिपीट करना है। जो रिपीट करने में होशियार बनते वही विजयी बन स्टेज पर प्रसिद्ध हो जाते।
..❼ संगठन की शक्ति ही विजय का विशेष आधार स्वरूप है। इस संगठन ने ही सेवा की वृद्धि में सफलता को प्राप्त कराया है।
FILL IN THE BLANKS:-
(सम्बन्ध, मालिकपन, संस्कार, प्राप्ति, दर्पण, प्रकृति, विश्व, वर्तमान, देह, रचनापन, अधिकारी, भविष्य, सहज, रचना, पुरूषार्थ )
1 पहले-पहले इस देह के _____ का अभ्यास ही _____ का मालिक वा _____ का मालिक बना सकता है!
मालिकपन / प्रकृति / विश्व
2 पहले इस देह के _____ और _____ के _____ बनने के आधार पर ही मालिकपन के संस्कार हैं।
सम्बन्ध / संस्कार / अधिकारी
3 _____ समय की यह जीवन - भविष्य का _____ है। इसी दर्पण द्वारा स्वयं का _____ स्पष्ट देख सकते हो।
वर्तमान / दर्पण / भविष्य
4 _____ रूपी _____ कभी अपने तरफ रचयिता को आकर्षित कर _____ विस्मृत तो नहीं कर देती है?
देह / रचना / रचनापन
5 मधुबन निवासियों को कई बातों में _____ _____ और सहज ______ है।
सहज / पुरूषार्थ / प्राप्ति
सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】
1 :- जितना स्वयं को स्वयं जान सकते उतना और कोई नहीं जान सकते। 【✔】
2 :- अगर विश्व के मालिकपन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो देह के मालिकपन में भी सम्पन्न नहीं बन सकते हैं।【✖】
अगर देह के मालिकपन में सम्पूर्ण सफलता नहीं तो विश्व के मालिकपन में भी सम्पन्न नहीं बन सकते हैं।
3 :- आप सभी रचयिता की विशेष पहली रचना यह देह है।【✔】
4 :- सिर्फ यह पाठ पक्का हो जाए कि ‘रिगार्ड लेना ही रिगार्ड देना है’।【✖】
सिर्फ यह पाठ पक्का हो जाए कि ‘रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है’।
5 :- अमानत समझने से अनासक्त रहेंगे। और अनासक्त बनने से ही रूहानियत आयेगी। 【✔】