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AVYAKT MURLI

22 / 03 / 86

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      22-03-86   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सुख, शांति और खुशी का आधार- “पवित्रता”

पतित पावन शिव बाबा अपने होली, हैपी बच्चों के प्रति बोले

आज बापदादा अपने चारों ओर के सर्व होलीनेस और हैपीनेस बच्चों को देख रहे हैं। इतने बड़े संगठित रूप में ऐसे होली और हैपी दोनों विशेषता वाले, इस सारे ड्रामा के अन्दर और कोई इतनी बड़ी सभा व इतनी बड़ी संख्या हो ही नहीं सकती। आजकल किसी को भल ‘हाइनेस वा होलीनेस’ का टाइटिल देते भी हैं लेकिन प्रत्यक्ष प्रमाण रूप में देखो तो वह पवित्रता, महानता दिखाई नहीं देगी। बापदादा देख रहे थे - इतनी महान पवित्र आत्माओं का संगठन कहाँ हो सकता है। हर एक बच्चे के अन्दर यह दृढ़ संकल्प है कि न सिर्फ कर्म से लेकिन मन- वाणी-कर्म तीनों से पवित्र बनना ही है। तो यह पवित्र बनने का श्रेष्ठ दृढ़ संकल्प और कहाँ भी रह नहीं सकता। अविनाशी हो नहीं सकता, सहज हो नहीं सकता। और आप सभी पवित्रता को धारण करना कितना सहज समझते हो! क्योंकि बापदादा द्वारा नॉलेज मिली और नॉलेज की शक्ति से जान लिया कि मुझ आत्मा का अनादि और आदि स्वरूप है ही ‘पवित्र’। जब आदि अनादि स्वरूप की स्मृति आ गई तो यह स्मृति समर्थ बनाए सहज अनुभव करा रही है। जान लिया कि हमारा वास्तविक स्वरूप ‘पवित्र’ है। यह संग-दोष का स्वरूप ‘अपवित्र’ है। तो वास्तविक को अपनाना सहज हो गया ना!

स्व-धर्म, स्व-देश, स्व का पिता और स्व-स्वरूप, स्व-कर्म सबकी नॉलेज मिली है। तो नॉलेज की शक्ति से मुश्किल अति सहज हो गया। जिस बात को आजकल की महान आत्मा कहलाने वाले भी असम्भव समझते हैं, अननेचुरल समझते हैं लेकिन आप पवित्र आत्माओं ने उस असम्भव को कितना सहज अनुभव कर लिया! पवित्रता को अपनाना सहज है वा मुश्किल है? सारे विश्व के आगे चैलेन्ज से कह सकते हो कि पवित्रता तो हमारा स्व-स्वरूप है। पवित्रता की शक्ति के कारण जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख और शान्ति स्वत: ही है। पवित्रता फाउण्डेशन है। पवित्रता को माता कहते हैं और सुख शान्ति उनके बच्चे हैं। तो जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख-शान्ति स्वत: ही है। इसलिए हैपी भी हो। कभी उदास हो नहीं सकते। सदा खुश रहने वाले। जहाँ होली है तो हैपी भी जरूर है। पवित्र आत्माओं की निशानी - ‘सदा खुशी’ है। तो बापदादा देख रहे हैं कि कितने निश्चय बुद्धि पावन आत्मायें बैठी हैं। दुनिया वाले सुख शान्ति के पीछे भाग दौड़ करते हैं। लेकिन सुख शान्ति का फाउण्डेशन ही पवित्रता है। उस फाउण्डेशन को नहीं जानते हैं। इसलिए पवित्रता का फाउण्डेशन मजबूत न होने के कारण अल्पकाल के लिए सुख वा शान्ति प्राप्त होती भी है लेकिन अभी-अभी है, अभी-अभी नहीं है। सदाकाल की सुख शान्ति की प्राप्ति सिवाए पवित्रता के असम्भव है। आप लोगों ने फाउण्डेशन को अपना लिया है। इसलिए सुख-शान्ति के लिए भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती है। सुख शान्ति, पवित्र-आत्माओं के पास स्वयं स्वत: ही आती है। जैसे बच्चे माँ के पास स्वत: ही जाते हैं ना। कितना भी अलग करो फिर भी माँ के पास जरूर जायेंगे। तो सुख-शान्ति की माता है - ‘पवित्रता’। जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख-शान्ति, खुशी स्वत: ही आती है। तो क्या बन गये? ‘बेगमपुर के बादशाह’। इस पुरानी दुनिया के बादशाह नहीं, लेकिन बेगमपुर के बादशाह। यह ब्राह्मण परिवार बेगमपुर अर्थात् सुख-संसार है। तो इस सुख के संसार बेगमपुर के बादशाह बन गये। हिज होलीनेस भी हो ना। ताज भी है, तख्त भी है। बाकी क्या कमी है! कितना बढ़िया ताज है। लाइट का ताज पवित्रता की निशानी है और बापदादा के दिलतख्तनशीन हो। तो बेगमपुर के बादशाहों का ताज भी न्यारा और तख्त भी न्यारा है। बादशाही भी न्यारी तो बादशाह भी न्यारे हो।

आजकल की मनुष्यात्माओं को इतनी भाग दौड़ करते हुए देख बापदादा को भी बच्चों पर तरस पड़ता है। कितना प्रयत्न करते रहते हैं। प्रयत्न अर्थात् भाग दौड़, मेहनत भी ज्यादा करते लेकिन प्राप्ति क्या? सुख भी होगा तो सुख के साथ कोई न कोई दुख भी मिला हुआ होगा। और कुछ नहीं तो अल्पकाल के सुख के साथ चिंता और भय यह दो चीज़े तो हैं ही है। तो जहाँ चिंता है वहाँ चैन नहीं हो सकता। जहाँ भय है वहाँ शान्ति नहीं हो सकती। तो सुख के साथ यह दुःख-अशान्ति के कारण है ही है। और आप सबको दुख का कारण और निवारण मिल गया। अभी आप समस्याओं को समाधान करने वाले समाधान स्वरूप बन गये हो ना। समस्याएँ आप लोगों से खेलने के लिए खिलौने बन कर आती है। खेल करने के लिए आती हैं, न कि डराने के लिए। घबराने वाले तो नहीं हो ना? जहाँ सर्व शक्तियों का खज़ाना जन्म-सिद्ध अधिकार हो गया तो बाकी कमी क्या रही, भरपूर हो ना! मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे समस्या कोई नहीं। हाथी के पांव के नीचे अगर चींटी आ जाए तो दिखाई देगी? तो यह समस्याएँ भी आप महारथियों के आगे चींटी समान है। खेल समझने से खुशी रहती। कितनी भी बड़ी बात भी छोटी हो जाती। जैसे आजकल बच्चों को कौन से खेल कराते हैं, बुद्धि के। वैसे बच्चों को हिसाब करने दो तो तंग हो जायेंगे। लेकिन खेल की रीति से हिसाब खुशी-खुशी करेंगे। तो आप सबके लिए भी समस्या चींटी समान है ना! जहाँ पवित्रता, सुख शान्ति की शक्ति है वहाँ स्वप्न में भी दुख अशान्ति की लहर आ नहीं सकती। शक्तिशाली आत्माओं के आगे यह दुख और अशान्ति हिम्मत नहीं रख सकती आगे आने की। पवित्र आत्मायें सदा हर्षित रहने वाली आत्मायें हैं, यह सदा स्मृति में रखो। अनेक प्रकार की उलझनों से भटकने से दुख अशान्ति की जाल से निकल आये। क्योंकि सिर्फ एक दुख नहीं आता है। लेकिन एक दुख भी वंशावली के साथ आता है। तो उस जाल से निकल आये। ऐसे अपने को भाग्यवान समझते हो ना!

आज आस्ट्रेलिया वाले बैठे हैं। आस्ट्रेलिया वालों की बापदादा सदा ही तपस्या और महादानी-पन की विशेषता वर्णन करते हैं। सदा सेवा की लगन की तपस्या अनेक आत्माओं को और आप तपस्वी आत्माओं को फल दे रही है। धरनी के प्रमाण विधि और वृद्धि दोनों को देख बापदादा एक्सट्रा खुश हैं। आस्ट्रेलिया हैं ही एक्सट्रा आर्डनरी। त्याग की भावना, सेवा के लिए सभी में बहुत जल्दी आती है इसलिए तो इतने सेन्टर्स खोले हैं। जैसे हमको भाग्य मिला है ऐसे औरों का भाग्य बनाना है। दृढ़ संकल्प करना यह तपस्या है। तो त्याग और तपस्या की विधि से वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। सेवा-भाव अनेक हद के भाव समाप्त कर देता है। यही त्याग और तपस्या सफलता का आधार बना है, समझा। संगठन की शक्ति है। एक ने कहा और दूसरे ने किया। ऐसे नहीं एक ने कहा और दूसरा कहे यह तो हो नहीं सकता। इसमें संगठन टूटता है। एक ने कहा दूसरे ने उमंग से सहयोगी बन प्रैक्टिकल में लाया, यह है संगठन की शक्ति। पाण्डवों का भी संगठन है, कभी तू मैं नहीं। बस, ‘बाबा-बाबा’ कहा तो सब बातें समाप्त हो जाती है। खिटखिट होती ही है - तू मैं, मेरा तेरा में। बाप को सामने रखेंगे तो कोई भी समस्या आ नहीं सकती। और सदा निर्विघ्न आत्मायें तीव्र पुरूषार्थ से उड़ती-कला का अनुभव करती हैं। बहुत काल की निर्विघ्न स्थिति, मजबूत स्थिति होती है। बार-बार विघ्नों के वश जो होते उन्हों का फाउण्डेशन कच्चा हो जाता है और बहुत काल की निर्विघ्न आत्मायें फाउण्डेशन पक्का होने के कारण स्वयं भी शक्तिशाली, दूसरों को भी शक्तिशाली बनाती हैं। कोई भी चीज़ टूटी हुई चीज़ को जोड़ने से वह कमज़ोर हो जाती है। बहुतकाल की शक्तिशाली आत्मा,निर्विघ्न आत्मा अन्त में भी निर्विघ्न बन पास विद आनर बन जाती है या फर्स्ट डिवीजन में आ जाती है। तो सदा यही लक्ष्य रखो कि बहुतकाल की निर्विघ्न स्थिति का अनुभव अवश्य करना है। ऐसे नहीं समझो - विघ्न आया, मिट तो गया ना। कोई हर्जा नहीं। लेकिन बार-बार विघ्न आना और मिटाना इसमें टाइम वेस्ट जाता है। एनर्जी वेस्ट जाती है। वह टाइम और एनर्जी सेवा में लगाओ ते एक का पदम जमा हो जायेगा। इसलिए बहुतकाल की निर्विघ्न आत्मायें, विघ्न विनाशक रूप से पूजी जाती हैं। ‘विघ्न विनाशक’ टाइटिल पूज्य आत्माओं का है। ‘मैं विघ्न विनाशक पूज्य आत्मा हूँ’ - इस स्मृति से सदा निर्विघ्न बन आगे उड़ती कला द्वारा उड़ते चलो और उड़ाते चलो। समझा। अपने विघ्न विनाश तो किये लेकिन औरों के लिए विघ्न विनाशक बनना है। देखो आप लोगों को निमित्त आत्मा भी ऐसी मिली है (निर्मला डाक्टर) जो शुरू से लेकर किसी भी विघ्न में नहीं आये। सदा न्यारे और प्यारे रहे हैं। थोड़ा सा स्ट्रिक्ट रहती। यह भी जरूरी है। अगर ऐसी स्ट्रिक्ट टीचर नहीं मिलती तो इतनी वृद्धि नहीं होती। यह आवश्यक भी होता है। जैसे कड़वी दवाई बीमारी के लिए जरूरी होती है ना। तो ड्रामा अनुसार निमित्त आत्माओं का भी संग तो लगता ही है और जैसे स्वयं आने से ही सेवा के निमित्त बन गये तो आस्ट्रेलिया में आने से सेन्टर खोलने की सेवा में लग जाते। यह त्याग की भावना का वायब्रेशन सारी आस्ट्रेलिया और जो भी सम्पर्क वाले स्थान हैं उनमें उसी रूप से वृद्धि हो रही है। तपस्या और त्याग जिसमें है - वही श्रेष्ठ आत्मा है। तीव्र पुरुषार्थी तो सभी आत्मायें हैं लेकिन पुरुषार्थी होते हुए भी विशेषताएँ अपना प्रभाव जरूर डालती हैं। सम्पन्न तो अभी सब बन रहे हैं ना। सम्पन्न बन गये, यह सार्टिफिकेट किसको भी मिला नहीं है। लेकिन सम्पन्नता के समीप पहुँच गये हैं। इसमें नम्बरवार हैं। कोई बहुत समीप पहुँच गये हैं। कोई नम्बरवार आगे पीछे हैं। आस्ट्रेलिया वाले लकी है। त्याग का बीज भाग्य प्राप्त करा रहा है। शक्ति सेना भी बापदादा को अति प्रिय है। क्योंकि हिम्मत-वाली है। जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की मदद सदा ही साथ है। सदा सन्तुष्ट रहने वाले हो ना। सन्तुष्टता सफलता का आधार है। आप सब सन्तुष्ट आत्मायें हो तो सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। समझा। जो नियरेस्ट और डियरेस्ट होता है उनको अपना समझ, हमेशा पीछे, लेकिन आस्ट्रेलिया वालों के ऊपर एक्स्ट्रा हुज्जत है। अच्छा

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- ज्ञान के आधार पर पवित्रता को अपनाना सहज है। इस संदर्भ में बाबा के क्या महावाक्य हैं?

 प्रश्न 2 :- पवित्र ब्राह्मण आत्माओं की सुख शांति और अन्य मनुष्य आत्माओं की सुख शांति की स्थिति के बारे में बाबा ने क्या कहा है?

 प्रश्न 3 :- समस्याओं को पार करने की बाबा ने क्या सहज विधि बताई है?

 प्रश्न 4 :- सेवा की सफलता में त्याग - तपस्या और संगठन की शक्ति के प्रति बाबा की क्या समझानी है?

 प्रश्न 5 :- बहुत काल की निर्विघ्न स्थिति का क्या महत्व है?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( बादशाह, अशान्ति, सर्टिफिकेट, वंशावली, पवित्रता, टाइटिल, वृद्धि, नम्बरवार, ताज, कड़वी, सम्पन्न, महानता, तख्त, जाल, स्ट्रिक्ट)

 1   आजकल किसी को भल ‘हाइनेस वा होलीनेस’ का  _____ देते भी हैं लेकिन प्रत्यक्ष प्रमाण रूप में देखो तो वह  _____,  _____ दिखाई नहीं देगी।

 2  यह ब्राह्मण परिवार बेगमपुर अर्थात् सुख-संसार है। तो इस सुख के संसार बेगमपुर के  _____ बन गये। हिज होलीनेस भी हो ना।  _____ भी है,  _____ भी है।

 3  अनेक प्रकार की उलझनों से भटकने से दुख  _____ की  _____ से निकल आये। क्योंकि सिर्फ एक दुख नहीं आता है। लेकिन एक दुख भी  _____ के साथ आता है।

 4  अगर ऐसी  _____ टीचर नहीं मिलती तो इतनी  _____ नहीं होती। यह आवश्यक भी होता है। जैसे  _____ दवाई बीमारी के लिए जरूरी होती है ना।

 5  सम्पन्न तो अभी सब बन रहे हैं ना।  _____ बन गये, यह  _____ किसको भी मिला नहीं है। लेकिन सम्पन्नता के समीप पहुँच गये हैं। इसमें  _____ हैं।

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- जहाँ होली है तो अनहैपी भी जरूर है। पवित्र आत्माओं की निशानी - ‘सदा दुखी’ है।

 2  :- तपस्या और त्याग जिसमें है - वही साधारण आत्मा है।

 3  :- तीव्र पुरुषार्थी तो सभी आत्मायें हैं लेकिन पुरुषार्थी होते हुए भी विशेषताएँ अपना प्रभाव जरूर डालती हैं।

 4  :- जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की मदद सदा ही साथ है।

 5   :- आप सब असन्तुष्ट आत्मायें हो तो सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- ज्ञान के आधार पर पवित्रता को अपनाना सहज है। इस संदर्भ में बाबा के क्या महावाक्य हैं?

  उत्तर 1 :- ज्ञान के आधार पर पवित्रता को अपनाना सहज है। इस संदर्भ में बाबा कहते हैं कि:

          .. हर एक बच्चे के अन्दर यह दृढ़ संकल्प है कि न सिर्फ कर्म से लेकिन मन- वाणी-कर्म तीनों से पवित्र बनना ही है।

          .. तो यह पवित्र बनने का श्रेष्ठ दृढ़ संकल्प और कहाँ भी रह नहीं सकता। अविनाशी हो नहीं सकता, सहज हो नहीं सकता। और आप सभी पवित्रता को धारण करना कितना सहज समझते हो!

          .. क्योंकि बापदादा द्वारा नॉलेज मिली और नॉलेज की शक्ति से जान लिया कि मुझ आत्मा का अनादि और आदि स्वरूप है ही ‘पवित्र’। जब आदि अनादि स्वरूप की स्मृति आ गई तो यह स्मृति समर्थ बनाए सहज अनुभव करा रही है।

          .. जान लिया कि हमारा वास्तविक स्वरूप ‘पवित्र’ है। यह संग-दोष का स्वरूप ‘अपवित्र’ है। तो वास्तविक को अपनाना सहज हो गया ना!

          .. स्व-धर्म, स्व-देश, स्व का पिता और स्व-स्वरूप, स्व-कर्म सबकी नॉलेज मिली है। तो नॉलेज की शक्ति से मुश्किल अति सहज हो गया।

          .. जिस बात को आजकल की महान आत्मा कहलाने वाले भी असम्भव समझते हैं, अननेचुरल समझते हैं लेकिन आप पवित्र आत्माओं ने उस असम्भव को कितना सहज अनुभव कर लिया! पवित्रता को अपनाना सहज है वा मुश्किल है?

      सारे विश्व के आगे चैलेन्ज से कह सकते हो कि पवित्रता तो हमारा स्व-स्वरूप है।

 

 प्रश्न 2 :- पवित्र ब्राह्मण आत्माओं की सुख शांति और अन्य मनुष्य आत्माओं की सुख शांति की स्थिति के बारे में बाबा ने क्या कहा है?

   उत्तर 2 :- मनुष्य आत्माओं की सुख शांति की स्थिति के बारे में बाबा कहते हैं कि:

          .. आजकल की मनुष्यात्माओं को इतनी भाग दौड़ करते हुए देख बापदादा को भी बच्चों पर तरस पड़ता है। कितना प्रयत्न करते रहते हैं। प्रयत्न अर्थात् भाग दौड़, मेहनत भी ज्यादा करते लेकिन प्राप्ति क्या?

          .. सुख भी होगा तो सुख के साथ कोई न कोई दुख भी मिला हुआ होगा। और कुछ नहीं तो अल्पकाल के सुख के साथ चिंता और भय यह दो चीज़े तो हैं ही है।

          .. तो जहाँ चिंता है वहाँ चैन नहीं हो सकता। जहाँ भय है वहाँ शान्ति नहीं हो सकती। तो सुख के साथ यह दुःख-अशान्ति के कारण है ही है।

          .. दुनिया वाले सुख शान्ति के पीछे भाग दौड़ करते हैं। लेकिन सुख शान्ति का फाउण्डेशन ही पवित्रता है। उस फाउण्डेशन को नहीं जानते हैं।

          .. इसलिए पवित्रता का फाउण्डेशन मजबूत न होने के कारण अल्पकाल के लिए सुख वा शान्ति प्राप्त होती भी है लेकिन अभी-अभी है, अभी-अभी नहीं है। सदाकाल की सुख शान्ति की प्राप्ति सिवाए पवित्रता के असम्भव है।

पवित्र ब्राह्मण आत्माओं की सुख शांति की स्थिति के बारे में बाबा कहते हैं कि:

          .. आप लोगों ने फाउण्डेशन को अपना लिया है। इसलिए सुख-शान्ति के लिए भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती है।

          .. सुख शान्ति, पवित्र-आत्माओं के पास स्वयं स्वत: ही आती है। जैसे बच्चे माँ के पास स्वत: ही जाते हैं ना। कितना भी अलग करो फिर भी माँ के पास जरूर जायेंगे।

          .. तो सुख-शान्ति की माता है - ‘पवित्रता’। जहाँ पवित्रता है वहाँ सुख-शान्ति, खुशी स्वत: ही आती है।

 

 प्रश्न 3 :- समस्याओं को पार करने की बाबा ने क्या सहज विधि बताई है?

   उत्तर 3 :- समस्याओं को पार करने की बाबा ने निम्नलिखित विधि बताई है:

          .. अभी आप समस्याओं को समाधान करने वाले समाधान स्वरूप बन गये हो ना।

          .. समस्याएँ आप लोगों से खेलने के लिए खिलौने बन कर आती है। खेल करने के लिए आती हैं, न कि डराने के लिए। घबराने वाले तो नहीं हो ना?

          ..  जहाँ सर्व शक्तियों का खज़ाना जन्म-सिद्ध अधिकार हो गया तो बाकी कमी क्या रही, भरपूर हो ना! मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे समस्या कोई नहीं। हाथी के पांव के नीचे अगर चींटी आ जाए तो दिखाई देगी? तो यह समस्याएँ भी आप महारथियों के आगे चींटी समान है।

          ..❹ खेल समझने से खुशी रहती। कितनी भी बड़ी बात भी छोटी हो जाती। जैसे आजकल बच्चों को कौन से खेल कराते हैं, बुद्धि के। वैसे बच्चों को हिसाब करने दो तो तंग हो जायेंगे। लेकिन खेल की रीति से हिसाब खुशी-खुशी करेंगे।

 

 प्रश्न 4 :- सेवा की सफलता में त्याग - तपस्या और संगठन की शक्ति के प्रति बाबा की क्या समझानी है?

   उत्तर 4 :- सेवा की सफलता में त्याग - तपस्या और संगठन की शक्ति के प्रति बाबा की निम्न समझानी है:

          .. त्याग की भावना, सेवा के लिए सभी में बहुत जल्दी आती है इसलिए तो इतने सेन्टर्स खोले हैं। जैसे हमको भाग्य मिला है ऐसे औरों का भाग्य बनाना है।

          .. दृढ़ संकल्प करना यह तपस्या है। तो त्याग और तपस्या की विधि से वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं।

          .. सेवा-भाव अनेक हद के भाव समाप्त कर देता है। यही त्याग और तपस्या सफलता का आधार बना है, समझा।

          .. संगठन की शक्ति है- एक ने कहा और दूसरे ने किया। ऐसे नहीं एक ने कहा और दूसरा कहे यह तो हो नहीं सकता। इसमें संगठन टूटता है।

          .. एक ने कहा दूसरे ने उमंग से सहयोगी बन प्रैक्टिकल में लाया, यह है संगठन की शक्ति।

          .. पाण्डवों का भी संगठन है, कभी तू मैं नहीं। बस, ‘बाबा-बाबा’ कहा तो सब बातें समाप्त हो जाती है। खिटखिट होती ही है - तू मैं, मेरा तेरा में। बाप को सामने रखेंगे तो कोई भी समस्या आ नहीं सकती।

 

 प्रश्न 5 :- बहुत काल की निर्विघ्न स्थिती का क्या महत्व है?

   उत्तर 5 :- बहुत काल की निर्विघ्न स्थिती का महत्व निम्नलिखित है:

          .. बार-बार विघ्नों के वश जो होते उन्हों का फाउण्डेशन कच्चा हो जाता है और बहुत काल की निर्विघ्न आत्मायें फाउण्डेशन पक्का होने के कारण स्वयं भी शक्तिशाली, दूसरों को भी शक्तिशाली बनाती हैं।

          .. कोई भी चीज़, टूटी हुई चीज़ को जोड़ने से वह कमज़ोर हो जाती है। बहुतकाल की शक्तिशाली आत्मा, निर्विघ्न आत्मा अन्त में भी निर्विघ्न बन पास विद आनर बन जाती है या फर्स्ट डिवीजन में आ जाती है।

          .. तो सदा यही लक्ष्य रखो कि बहुतकाल की निर्विघ्न स्थिति का अनुभव अवश्य करना है। ऐसे नहीं समझो - विघ्न आया, मिट तो गया ना। कोई हर्जा नहीं।

          .. लेकिन बार-बार विघ्न आना और मिटाना इसमें टाइम वेस्ट जाता है। एनर्जी वेस्ट जाती है। वह टाइम और एनर्जी सेवा में लगाओ ते एक का पदम जमा हो जायेगा।

          .. इसलिए बहुतकाल की निर्विघ्न आत्मायें, विघ्न विनाशक रूप से पूजी जाती हैं। ‘विघ्न विनाशक’ टाइटिल पूज्य आत्माओं का है।

          .. मैं विघ्न विनाशक पूज्य आत्मा हूँ’ - इस स्मृति से सदा निर्विघ्न बन आगे उड़ती कला द्वारा उड़ते चलो और उड़ाते चलो। समझा। अपने विघ्न विनाश तो किये लेकिन औरों के लिए विघ्न विनाशक बनना है।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( बादशाह, अशान्ति, सर्टिफिकेट, वंशावली, पवित्रता, टाइटिल, वृद्धि, नम्बरवार, ताज, कड़वी, सम्पन्न, महानता, तख्त, जाल स्ट्रिक्ट)

 1   आजकल किसी को भल ‘हाइनेस वा होलीनेस’ का  _____ देते भी हैं लेकिन प्रत्यक्ष प्रमाण रूप में देखो तो वह  _____,  _____ दिखाई नहीं देगी।

    टाइटिल / पवित्रता / महानता

 2  यह ब्राह्मण परिवार बेगमपुर अर्थात् सुख-संसार है। तो इस सुख के संसार बेगमपुर के  _____ बन गये। हिज होलीनेस भी हो ना।  _____ भी है,  _____ भी है।

      बादशाह / ताज / तख्त

 

 3   अनेक प्रकार की उलझनों से भटकने से दुख  _____ की  _____ से निकल आये। क्योंकि सिर्फ एक दुख नहीं आता है। लेकिन एक दुख भी  _____ के साथ आता है।

      अशान्ति / जाल / वंशावली

 

 4  अगर ऐसी  _____ टीचर नहीं मिलती तो इतनी  _____ नहीं होती। यह आवश्यक भी होता है। जैसे  _____ दवाई बीमारी के लिए जरूरी होती है ना।

      स्ट्रिक्ट / वृद्धि / कड़वी

 

 5  सम्पन्न तो अभी सब बन रहे हैं ना।  _____ बन गये, यह  _____ किसको भी मिला नहीं है। लेकिन सम्पन्नता के समीप पहुँच गये हैं। इसमें  _____ हैं।

    सम्पन्न / सर्टिफिकेट / नम्बरवार

 

सही-गलत वाक्यों को चिह्नित करें:-【✔】【✖】

 1  :- जहाँ होली है तो अनहैपी भी जरूर है। पवित्र आत्माओं की निशानी - ‘सदा दुखी’ है। 【✖】

  जहाँ होली है तो हैपी भी जरूर है। पवित्र आत्माओं की निशानी - ‘सदा खुशी’ है।

 

 2  :- तपस्या और त्याग जिसमें है - वही साधारण आत्मा है। 【✖】

  तपस्या और त्याग जिसमें है - वही श्रेष्ठ आत्मा है।

 

 3  : तीव्र पुरुषार्थी तो सभी आत्मायें हैं लेकिन पुरुषार्थी होते हुए भी विशेषताएँ अपना प्रभाव जरूर डालती हैं। 【✔】

 

 4  :- जहाँ हिम्मत है वहाँ बापदादा की मदद सदा ही साथ है। 【✔】

 

 5   :- आप सब असन्तुष्ट आत्मायें हो तो सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। 【✖】

  आप सब सन्तुष्ट आत्मायें हो तो सफलता आपका जन्म सिद्ध अधिकार है।