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AVYAKT MURLI

18 / 01 / 87

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18-01-87   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

 

 

कर्मातीत स्थिति की निशानियाँ

 

 

बन्धनमुक्त बनाने वाले, स्नेह के सागर बापदादा निमित्त गीता-पाठशालाओं के सेवाधारी बच्चों के सम्मुख बोले

 

आज अव्यक्त बापदादा अपने ‘अव्यक्त स्थिति भव' के वरदानी बच्चों वा अव्यक्ति फरिश्तों से मिलने आये हैं। यह अव्यक्त मिलन इस सारे कल्प में अब एक ही बार संगम पर होता है। सतयुग में भी देव मिलन होगा लेकिन फरिश्तों का मिलन, अव्यक्त मिलन इस समय ही होता है। निराकार बाप भी अव्यक्त ब्रह्मा बाप के द्वारा मिलन मनाते हैं। निराकार को भी यह फरिश्तों की महफिल अति प्रिय लगती है, इसलिए अपना धाम छोड़ आकारी वा साकारी दुनिया में मिलन मनाने आये हैं। फरिश्ते बच्चों के स्नेह की आकर्षण से बाप को भी रूप बदल, वेष बदल बच्चों के संसार में आना ही पड़ता है। यह संगमयुग बाप और बच्चों का अति प्यारा और न्यारा संसार है। स्नेह सबसे बड़ी आकर्षित करने की शक्ति है जो परम-आत्मा, बन्धनमुक्त को भी, शरीर से मुक्त को भी स्नेह के बन्धन में बाँध लेती है, अशरीरी को भी लोन के शरीरधारी बना देती है। यही है बच्चों के स्नेह का प्रत्यक्ष प्रमाण। आज का दिन अनेक चारों ओर के बच्चों के स्नेह की धारायें, स्नेह के सागर में समाने का दिन है। बच्चे कहते हैं - ‘हम बापदादा से मिलने आये हैं'। बच्चे मिलने आये हैं? वा बच्चों से बाप मिलने आये हैं? या दोनों ही मधुबन में मिलने आये हैं? बच्चे स्नेह के सागर में नहाने आये हैं लेकिन बाप हजारों गंगाओं में नहाने आते हैं। इसलिए गंगा-सागर का मेला विचित्र मेला है। स्नेह के सागर में समाए सागर समान बन जाते हैं। आज के दिन को बाप समान बनने का स्मृति अर्थात् समर्थी-दिवस कहते हैं। क्यों?

 

आज का दिन ब्रह्मा बाप के सम्पन्न और सम्पूर्ण बाप समान बनने का यादगार दिवस है। ब्रह्मा बच्चा सो बाप, क्योंकि ब्रह्मा बच्चा भी है, बाप भी है। आज के दिन ब्रह्मा ने बच्चे के रूप में सपूत बच्चा बनने का सबूत दिया, स्नेह के स्वरूप का, समान बनने का सबूत दिया; अति प्यारे और अति न्यारेपन का सबूत दिया; बाप समान कर्मातीत अर्थात् कर्म के बन्धन से मुक्त, न्यारा बनने का सबूत दिया; सारे कल्प के कर्मों के हिसाब-किताब से मुक्त होने का सबूत दिया। सिवाए सेवा के स्नेह के और कोई बन्धन नहीं। सेवा में भी सेवा के बन्धन में बंधने वाले सेवाधारी नहीं। क्योंकि सेवा में कोई बन्धनयुक्त बन सेवा करते और कोई बन्धनमुक्त बन सेवा करते। सेवाधारी ब्रह्मा बाप भी है। लेकिन सेवा द्वारा हद की रॉयल इच्छायें सेवा में भी हिसाबकिताब के बंधन में बाँधती हैं। लेकिन सच्चे सेवाधारी इस हिसाब-किताब से भी मुक्त हैं। इसी को ही - कर्मातीत स्थिति कहा जाता है। जैसे देह का बन्धन, देह के सम्बन्ध का बन्धन, ऐसे सेवा में स्वार्थ - यह भी बन्धन कर्मातीत बनने में विघ्न डालता है। कर्मातीत बनना अर्थात् इस रॉयल हिसाब-किताब से भी मुक्त।

 

मैजारिटी निमित्त गीता-पाठशालाओं के सेवाधारी आये हैं ना। तो सेवा अर्थात् औरों को भी मुक्त बनाना। औरों को मुक्त बनाते स्वयं को बन्धन में बांध तो नहीं देते? नष्टोमोहा बनने के बजाए, लौकिक बच्चों आदि सबसे मोह त्याग कर स्टूडेण्ट से मोह तो नहीं करते? यह बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है, अच्छा-अच्छा समझते मेरे-पन की इच्छा के बन्धन में तो नहीं बंध जाते? सोने की जंजीरें तो अच्छी नहीं लगती हैं ना? तो आज का दिन हद के मेरे-मेरे से मुक्त होने का अर्थात् कर्मातीत होने का अव्यक्ति दिवस मनाओ। इसी को ही स्नेह का सबूत कहा जाता है। कर्मातीत बनना यह लक्ष्य तो सबका अच्छा है। अब चेक करो - कहाँ तक कर्मों के बन्धन से न्यारे बने हो? पहली बात - लौकिक और अलौकिक, कर्म और सम्बन्ध दोनों में स्वार्थ भाव से मुक्त। दूसरी बात - पिछले जन्मों के कर्मों के हिसाब-किताब वा वर्तमान पुरूषार्थ के कमज़ोरी के कारण किसी भी व्यर्थ स्वभाव-संस्कार के वश होने से मुक्त बने हैं? कभी भी कोई कमज़ोर स्वभाव-संस्कार वा पिछला संस्कार-स्वभाव वशीभूत बनाता है तो बन्धनयुक्त हैं, बन्धनमुक्त नहीं। ऐसे नहीं सोचना कि चाहते नहीं हैं लेकिन स्वभाव या संस्कार करा देते हैं। यह भी निशानी बन्धनमुक्त की नहीं लेकिन बन्धनयुक्त की है। और बात - कोई भी सेवा की, संगठन की, प्रकृति की परिस्थिति स्व-स्थिति को वा श्रेष्ठ स्थिति को डगमग करती है - यह भी बन्धनमुक्त स्थिति नहीं है। इस बन्धन से भी मुक्त। और तीसरी बात - पुरानी दुनिया में पुराने अन्तिम शरीर में किसी भी प्रकार की व्याधि अपनी श्रेष्ठ स्थिति को हलचल में लाये - इससे भी मुक्त। एक है व्याधि आना, एक है व्याधि हिलाना। तो आना - यह भावी है लेकिन स्थिति हिल जाना - यह बन्धनयुक्त की निशानी है। स्व-चिन्तन, ज्ञान-चिन्तन, शुभ-चिन्तक बनने का चिन्तन बदल शरीर की व्याधि का चिन्तन चलना - इससे मुक्त। क्योंकि ज्यादा प्रकृति का चिंतन, चिंता के रूप में बदल जाता है। तो इससे मुक्त होना - इसी को ही कर्मातीत स्थिति कहा जाता है। इन सभी बन्धनों को छोड़ना - यही कर्मातीत स्थिति की निशानी है। ब्रह्मा बाप ने इन सभी बन्धनों से मुक्त हो कर्मातीत स्थिति को प्राप्त किया। तो आज का दिवस ब्रह्मा बाप समान कर्मातीत बनने का दिवस है। आज के दिवस का महत्त्व समझा? अच्छा।

 

आज की सभा विशेष सेवाधारी अर्थात् पुण्य आत्मा बनने वालों की सभा है। गीता पाठशाला खोलना अर्थात् पुण्य आत्मा बनना। सबसे बड़े-ते-बड़ा पुण्य हर आत्मा को सदा के लिए अर्थात् अनेक जन्मों के लिए पापों से मुक्त करना - यही पुण्य है। नाम बहुत अच्छा है - ‘गीता पाठशाला'। तो गीता पाठशाला वाले अर्थात् सदा स्वयं गीता का पाठ पढ़ने वाले और पढ़ाने वाले। गीता-ज्ञान का पहला पाठ - अशरीरी आत्मा बनो और अन्तिम पाठ - नष्टोमोहा, स्मृतिस्वरूप बनो। तो पहला पाठ है विधि और अन्तिम पाठ है विधि से सिद्धि। तो गीतापाठ शाला वाले हर समय यह पाठ पढ़ते हैं कि सिर्फ मुरली सुनाते हैं? क्योंकि सच्ची गीता-पाठशाला की विधि यह है - पहले स्वयं पढ़ना अर्थात् बनना फिर औरों को निमित्त बन पढ़ाना। तो सभी गीता-पाठशाला वाले इस विधि से सेवा करते हो? क्योंकि आप सभी इस विश्व के आगे परमात्म-पढ़ाई का सैम्पल हो। तो सैम्पल का महत्त्व होता है। सैम्पल अनेक आत्माओं को ऐसा बनने की प्रेरणा देता है। तो गीता-पाठशाला वालों के ऊपर बड़ी जिम्मेवारी है। अगर जरा भी सैम्पल बनने में कमी दिखाई तो अनेक आत्माओं के भाग्य बनाने के बजाए, भाग्य बनाने से वंचित करने के निमित्त भी बन जायेंगे क्योंकि देखने वाले, सुनने वाला

 

 

 

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- अव्यक्त मिलन के बारे में बाबा ने क्या कहा ?

 प्रश्न 2 :- फरिश्तों की महफ़िल के बारे में बाबा ने क्या कहा ?

 प्रश्न 3 :- बाबा ने संगमयुग की क्या विशेषता बताई ?

 प्रश्न 4 :- बाप अगर स्नेह का सागर है तो बच्चों को बाप ने क्या टाइटल दिया ?

 प्रश्न 5 :- कर्मातीत स्थिति बनाने के लिए बाबा ने क्या शिक्षा दी ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(स्वार्थ, मुक्त, मोह, लौकिक, आदत, स्टूडेंट, विघ्न, संस्कार, निमित्त, अच्छा अच्छा, बंधनमुक्त)

 1   जैसे देह का बंधन देह के सम्बंध बंधन ऐसे सेवा में _______ यह भी कर्मातीत बनने में विघ्न डालता है ।

 2  कर्मातीत बनना अर्थात इस रॉयल हिसाब किताब से _______ मैजारिटी _______ गीता-पाठशालाओं के सेवाधारी आये हैं ना।

 3   लौकिक बच्चों आदि से स्नेह त्याग कर _______ से स्नेह तो नहीं करते ? यह बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है, _______ समझते मेरे-पन की इच्छा के बन्धन में तो नहीं बंध जाते?

 4  ______ और अलौकिक , कर्म और सम्बन्ध दोनों में स्वार्थ भाव से मुक्त।

 5  ऐसे स्वभाव करना नहीं चाहते हैं लेकिन ______ या संस्कार करा देते हैं। यह भी निशानी _______ की नहीं लेकिन बन्धनयुक्त की है।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

  1  :- मुक्त होना इसी को ही कर्मातीत स्थिति कहा जाता है । इन बंधनों से मुक्त ।

 2  :- ब्रह्मा बाप ने इन सभी बंधनो से मुक्त हो कर्मातीत स्थिति को प्राप्त किया ।

 3  :- पुण्य आत्मा बनने वालों की सभा है , गीता पाठशाला खोलना अर्थात परोपकारी आत्मा बनना ।

 4  :-  सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य हर आत्मा को सदा के लिए अर्थात अनेक जन्मों के लिए पापों से मुक्त करना ।

 5 :- नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो , तो पहला पाठ है विधि और अंतिम पाठ है विधि से सिद्धि ।  

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- अव्यक्त मिलन के बारे में बाबा ने क्या कहा ?

   उत्तर 1 :- बाबा कहते यह अव्यक्त मिलन इस सारे कल्प में अब एक ही बार संगम पर होता है। सतयुग में भी देव मिलन होगा लेकिन फरिश्तों का मिलन, अव्यक्त मिलन इस समय ही होता है।

          .. सतयुग में भी देव मिलन होगा लेकिन फ़रिश्तों बाबा फरिश्तों से मिलने आये हैं और फ़रिश्तों से मिलन इसी समय होता है।

          .. निराकार बाप भी अव्यक्त ब्रह्मा के द्वारा मिलन मनाते हैं।

 

 प्रश्न 2 :- फरिश्तों की महफ़िल के बारे में बाबा ने क्या कहा ?

   उत्तर 2 :- संगम पर ही फ़रिश्तों से मिलन होगा । कल्प पहले भी हुआ था ।

           .. अव्यक्त मिलन इस समय ही होता है। निराकार बाप भी अव्यक्त ब्रह्मा बाप के द्वारा मिलन मनाते हैं। निराकार को भी यह फरिश्तों की महफिल अति प्रिय लगती है, इसलिए अपना धाम छोड़ आकारी वा साकारी दुनिया में मिलन मनाने आये हैं।

            .. बाबा कहे स्नेही बच्चों का आकर्षण ही बाप को भेस बदल बच्चों के "संसार में आने पर मजबूर करता ।"

 

 प्रश्न 3 :- बाबा ने संगमयुग की क्या विशेषता बताई ?

   उत्तर 3 :- संगमयुग सर्वप्राप्तियों का युग है । यहीं पर बाप से बच्चों का मिलन होता है ।

             .. यह संगमयुग बाप और बच्चों का अति प्यारा और न्यारा संसार है। स्नेह सबसे बड़ी आकर्षित करने की शक्ति है जो परम-आत्मा, बन्धनमुक्त को भी, शरीर से मुक्त को भी स्नेह के बन्धन में बाँध लेती है, अशरीरी को भी लोन के शरीरधारी बना देती है।

         

 प्रश्न 4 :- बाप अगर स्नेह का सागर है तो बच्चों को बाप ने क्या टाइटल दिया ?

 उत्तर 4 :- बाबा ने गंगा सागर के मेले की याद दिलाते हुए बताया कि बच्चों जैसे वह मेला विचित्र है वैसे ही यह मिलन भी विचित्र है ।

          .. बाबा बच्चों के स्नेह का प्रत्यक्ष प्रमाण देते हुए कहते हैं कि आज का दिन अनेक चारों ओर के बच्चों के स्नेह की धारायें, स्नेह के सागर में समाने का दिन है।

          .. बच्चे कहते हैं - ‘हम बापदादा से मिलने आये हैं'। बच्चे मिलने आये हैं? वा बच्चों से बाप मिलने आये हैं? या दोनों ही मधुबन में मिलने आये हैं? बच्चे स्नेह के सागर में नहाने आये हैं लेकिन बाप हजारों गंगाओं में नहाने आते हैं। इसलिए गंगा-सागर का मेला विचित्र मेला है। स्नेह के सागर में समाए सागर समान बन जाते हैं।

 

 प्रश्न 5 :-  कर्मातीत स्थिति बनाने के लिए बाबा ने क्या शिक्षा दी ?

   उत्तर 5 :- सेवा में भी सेवा के बन्धन में बंधने वाले सेवाधारी नहीं। क्योंकि सेवा में कोई बन्धनयुक्त बन सेवा करते और कोई बन्धनमुक्त बन सेवा करते। सेवाधारी ब्रह्मा बाप भी है। लेकिन सेवा द्वारा हद की रॉयल इच्छायें सेवा में भी हिसाबकिताब के बंधन में बाँधती हैं। लेकिन सच्चे सेवाधारी इस हिसाब-किताब से भी मुक्त हैं। इसी को ही - कर्मातीत स्थिति कहा जाता है।

 

     FILL IN THE BLANKS:-    

(स्वार्थ, मुक्त, मोह, लौकिक, आदत, स्टूडेंट, विघ्न, संस्कार, निमित्त, अच्छा-अच्छा, बंधनमुक्त)

 1   जैसे देह का बंधन देह के सम्बंध बंधन ऐसे सेवा में _______ यह भी कर्मातीत बनने में विघ्न डालता है ।

       स्वार्थ

 

  कर्मातीत बनना अर्थात इस रॉयल हिसाब किताब से _______ मैजारिटी _______ गीता-पाठशालाओं के सेवाधारी आये हैं ना।

    मुक्त / निमित्त

 

 3   लौकिक बच्चों आदि से स्नेह त्याग कर _______ से स्नेह तो नहीं करते ? यह बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है, ________ समझते मेरे-पन की इच्छा के बन्धन में तो नहीं बंध जाते?

      मोह / अच्छा-अच्छा

 

 4  ______ और अलौकिक , कर्म और सम्बन्ध दोनों में स्वार्थ भाव से मुक्त।

    लौकिक

 5  ऐसे स्वभाव करना नहीं चाहते हैं लेकिन ______ या संस्कार करा देते हैं। यह भी निशानी _______ की नहीं लेकिन बन्धनयुक्त की है।

      स्वभाव / बंधनमुक्त

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- मुक्त होना इसी को ही कर्मातीत स्थिति कहा जाता है । इन बंधनों से मुक्त। 【✖】

   मुक्त होना इसी को ही कर्मातीत स्थिति कहा जाता है । इन बंधनों को छोड़ना।

 

2  :- ब्रह्मा बाप ने इन सभी बंधनो से मुक्त हो कर्मातीत स्थिति को प्राप्त किया। 【✔】

 

 3  :- पुण्य आत्मा बनने वालों की सभा है , गीता पाठशाला खोलना अर्थात परोपकारी आत्मा बनना।【✖】

  पुण्य आत्मा बनने वालों की सभा है , गीता पाठशाला खोलना अर्थात पुण्य आत्मा बनना ।

 

 4  :- सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य हर आत्मा को सदा के लिए अर्थात अनेक जन्मों के लिए पापों से मुक्त करना। 【✔】

 

 5   :- नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनो , तो पहला पाठ है विधि और अंतिम पाठ है विधि से सिद्धि।【✔】