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AVYAKT MURLI

09 / 10 / 87

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       09-10-87   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

अलौकिक राज्य दरबार का समाचार

सर्व प्राप्तियों के भण्डार, ऊँचे ते ऊँचे बाप अपने ‘सर्व प्राप्ति भव' के वरदानी बच्चों प्रति बोले

आज बापदादा अपने स्व-राज्य अधिकारी बच्चों की राज्य दरबार देख रहे हैं। यह संगमयुग की निराली, श्रेष्ठ शान वाली अलौकिक दरबार सारे कल्प में न्यारी और अति प्यारी है। इस राज्य-सभा की रूहानी रौनक, रूहानी कमल-आसन, रूहानी ताज और तिलक, चेहरे की चमक, स्थिति के श्रेष्ठ स्मृति के वायुमण्डल में अलौकिक खुशबू अति रमणीक, अति आकर्षित करने वाली है। ऐसी सभा को देख बापदादा हर एक राज्य-अधिकारी आत्मा को देख हर्षित हो रहे हैं। कितनी बड़ी दरबार है! हर एक ब्राह्मण बच्चा स्वराज्य- अधिकारी है। तो कितने ब्राह्मण बच्चे हैं! सभी ब्राह्मणों की दरबार इकट्ठी करो तो कितनी बड़ी राज्य-दरबार हो जायेगी! इतनी बड़ी राज्य दरबार किसी भी युग में नहीं होती। यही संगमयुग की विशेषता है जो ऊँचे ते ऊँचे बाप के सर्व बच्चे स्वराज्य-अधिकारी बनते हैं। वैसे लौकिक परिवार में हर एक बाप बच्चों को कहते हैं कि यह मेरा बच्चा ‘राजा' बेटा है वा इच्छा रखते हैं कि मेरा हर एक बच्चा ‘राजा' बने। लेकिन सभी बच्चे राजा बन ही नहीं सकते। यह कहावत परमात्म बाप की कापी की है। इस समय बापदादा के सब बच्चे राजयोगी अर्थात् स्व के राजे नम्बरवार जरूर हैं लेकिन हैं सभी राज-योगी, प्रजा योगी कोई नहीं है। तो बापदादा बेहद की राज्यसभा देख रहे थे। सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी समझते हो ना? नये-नये आये हुए बच्चे राज्य-अधिकारी हो वा अभी बनना है? नये-नये हैं तो मिलना-जुलना सीख रहे हैं। अव्यक्त बाप की अव्यक्ति बातें समझने की भी आदत पड़ती जायेगी। फिर भी इस भाग्य को अभी से भी समय पर ज्यादा समझेंगे कि हम सभी आत्मायें कितनी भाग्यवान हैं!

तो बापदादा सुना रहे थे - अलौकिक राज्य दरबार का समाचार। सभी बच्चों के विशेष ताज और चेहरे की चमक के ऊपर न चाहते भी अटेन्शन जा रहा था। ताज ब्राह्मण जीवन की विशेषता - ‘पवित्रता' का ही सूचक है। चेहरे की चमक रूहानी स्थिति में स्थित रहने की रूहानियत की चमक है। साधारण रीति से भी किसी भी व्यक्ति को देखेंगे तो सबसे पहले दृष्टि चेहरे तरफ ही जायेगी। यह चेहरा ही वृत्ति और स्थिति का दर्पण है। तो बापदादा देख रहे थे - चमक तो सभी में थी लेकिन एक थे सदा रूहानीयत की स्थिति में स्थित रहने वाले, स्वत: और सहज स्थिति वाले और दूसरे थे सदा रूहानी स्थिति के अभ्यास द्वारा स्थित रहने वाले। एक थे सहज स्थिति वाले, दूसरे थे प्रयत्न कर स्थित रहने वाले। अर्थात् एक थे सहज योगी, दूसरे थे पुरूषार्थी से योगी। दोनों की चमक में अन्तर रहा। उनकी नैचरल ब्यूटी थी और दूसरों की पुरूषार्थ द्वारा ब्यूटी थी। जैसे आजकल भी मेकप कर ब्यूटीफुल बनते हैं ना। नैचरल (स्वाभाविक) ब्यूटी की चमक सदा एकरस रहती है और दूसरी ब्यूटी कभी बहुत अच्छी और कभी परसेन्टेज में रहती है; एक जैसी, एकरस नहीं रहती। तो सदा सहज योगी, स्वत:योगी स्थित नम्बरवन स्वराज्य-अधिकारी बनाती है। जब सभी बच्चों का वायदा है - ब्राह्मण जीवन अर्थात् एक बाप ही संसार है वा एक बाप दूसरा न कोई; जब संसार ही बाप है, दूसरा कोई है ही नहीं तो स्वत: और सहज योगी स्थिति सदा रहेगी ना, वा मेहनत करनी पड़ेगी? अगर दूसरा कोई है तो मेहनत करनी पड़ती है - यहाँ बुद्धि न जाए, वहाँ जाए। लेकिन एक बाप ही सब कुछ है - फिर बुद्धि कहाँ जायेगी? जब जा ही नहीं सकती तो अभ्यास क्या करेंगे? अभ्यास में भी अन्तर होता है। एक है स्वत: अभ्यास है, है ही है, और दूसरा होता है मेहनत वाला अभ्यास। तो स्वराज्य-अधिकारी बच्चों का सहज अभ्यासी बनना - यही निशानी है सहज योगी, स्वत: योगी की। उन्हों के चेहरे की चमक अलौकिक होती है जो चेहरा देखते ही अन्य आत्मायें अनुभव करती कि यह श्रेष्ठ प्राप्तिस्वरूप सहजयोगी हैं। जैसे स्थूल धन वा स्थूल पद की प्राप्ति की चमक चेहरे से मालूम होती है कि यह साहूकार कुल वा ऊँच पद अधिकारी है, ऐसे यह श्रेष्ठ प्राप्ति, श्रेष्ठ राज्य अधिकार अर्थात् श्रेष्ठ पद की प्राप्ति का नशा वा चमक चेहरे से दिखाई देती है। दूर से ही अनुभव करते कि इन्होंने कुछ पाया है। प्राप्तिस्वरूप आत्मायें हैं। ऐसे ही सभी राज्य अधिकारी बच्चों के चमकते हुए चेहरे दिखाई दें। मेहनत के चिन्ह नहीं दिखाई दें, प्राप्ति के चिन्ह दिखाई दें। अभी भी देखो, कोई- कोई बच्चों के चेहरे को देख यही कहते हैं - इन्होंने कुछ पाया है और कोई-कोई बच्चों के चेहरे को देख यह भी कहते हैं कि ऊँची मंज़िल है लेकिन त्याग भी बहुत ऊंचा किया है। त्याग दिखाई देता है, भाग्य नहीं दिखाई देगा चेहरे से। या यह कहेंगे कि मेहनत बहुत अच्छी कर रहे हैं।

बापदादा यही देखने चाहते हैं कि हर एक बच्चे के चेहरे से सहजयोगी की चमक दिखाई दे, श्रेष्ठ प्राप्ति के नशे की चमक दिखाई दे। क्योंकि प्राप्तियों के भण्डार के बच्चे हो। संगमयुग के प्राप्तियों के वरदानी समय के अधिकारी हो। निरन्तर योग कैसे लगावें वा निरन्तर अनुभव कर भण्डार की अनुभूति कैसे करें - अब तक भी इसी मेहनत में ही समय नहीं गँवाओं लेकिन प्राप्तिस्वरूप के भाग्य को सहज अनुभव करो। समाप्ति का समय समीप आ रहा है। अब तक किसी न किसी बात की मेहनत में लगे रहेंगे तो प्राप्ति का समय तो समाप्त हो जायेगा। फिर प्राप्तिस्वरूप का अनुभव कब करेंगे? संगमयुग को, ब्राह्मण आत्माओं को वरदान है ‘‘सर्व प्राप्ति भव''। ‘सदा पुरूषार्थी भव' का वरदान नहीं है, ‘प्राप्ति भव' का वरदान है। ‘प्राप्ति भव' की वरदानी आत्मा कभी भी अलबेलेपन में आ नहीं सकती। इसलिए उनको मेहनत नहीं करनी पड़ती। तो समझा, क्या बनना है?

राज्यसभा में राज्य अधिकारी बनने की विशेषता क्या है, यह स्पष्ट हुआ ना? राज्य अधिकारी हो ना, वा अभी सोच रहे हो कि हैं वा नहीं हैं? जब विधाता के बच्चे, वरदाता के बच्चे बन गये; राजा अर्थात् विधाता, देने वाला। अप्राप्ति कुछ नहीं तो लेंगे क्या? तो समझा, नये-नये बच्चों को इस अनुभव में रहना है। युद्ध में ही समय नहीं गँवाना है। अगर युद्ध में ही समय गँवाया तो अन्त-मति भी युद्ध में रहेंगे। फिर क्या बनना पड़ेगा? चन्द्रवंश में जायेंगे वा सूर्यवंशी में? युद्ध वाला तो चन्द्रवंश में जायेगा। चल रहे हैं, कर रहे हैं, हो ही जायेंगे, पहुँच जायेंगे - अभी तक ऐसा लक्ष्य नहीं रखो। अब नहीं तो कब नहीं। बनना है तो अब, पाना है तो अब - ऐसा उमंग-उत्साह वाले ही समय पर अपनी सम्पूर्ण मंज़िल को पा सकेंगे। त्रेता में राम सीता बनने के लिए तो कोई भी तैयार नहीं है। जब सतयुग सूर्यवंश में आना है, तो सूर्यवंश अर्थात् सदा मास्टर विधाता और वरदाता, लेने की इच्छा वाला नहीं। मदद मिल जाए, यह हो जाए तो बहुत अच्छा, पुरूषार्थ में अच्छा नम्बर ले लेंगे - नहीं। मदद मिल रही है, सब हो रहा है - इसको कहते हैं - ‘स्वराज्य अधिकारी बच्चे'। आगे बढ़ना है या पीछे आये हैं तो पीछे ही रहना है? आगे जाने का सहज रास्ता है - सहजयोगी, स्वत:योगी बनो। बहुत सहज है। जब है ही एक बाप, दूसरा कोई नहीं तो जायेंगे कहाँ? प्राप्ति ही प्राप्ति है फिर मेहनत क्यों लगेगी? तो प्राप्ति के समय का लाभ उठाओ। सर्व प्राप्ति स्वरूप बनो। समझा? बापदादा तो यही चाहते हैं कि एक- एक बच्चा - चाहे लास्ट आने वाला, चाहे स्थापना के आदि में आने वाला, हर एक बच्चा नम्बरवन बने। राजा बनना, न कि प्रजा। अच्छा।

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का ग्रुप आया है। देखो, महा शब्द कितना अच्छा है। महाराष्ट्र स्थान भी महा शब्द का है और बनना भी महान है। महान तो बन गये ना। क्योंकि बाप के बने माना महान बने। महान आत्मायें हो। ब्राह्मण अर्थात् महान। हर कर्म महान, हर बोल महान, हर संकल्प महान है। अलौकिक हो गये ना। तो महाराष्ट्र वाले सदा ही स्मृतिस्वरूप बनो कि महान हैं। ब्राह्मण अर्थात् महान चोटी हैं ना।

मध्य प्रदेश - सदा ‘मद्याजी भव' के नशे में रहने वाले। ‘मन्मनाभव' के साथ ‘मद्याजी भव' का भी वरदान है। तो अपना स्वर्ग का स्वरूप-इसको कहते हैं ‘मद्याजी भव' तो अपने श्रेष्ठ प्राप्ति के नशे में रहने वाले अर्थात् ‘मद्याजी भव' के मन्त्र के स्वरूप में स्थित रहने वाले। वह भी महान हो गये। ‘मद्याजी भव' हैं तो ‘मन्मनाभव' भी जरूर होंगे। तो मध्य प्रदेश अर्थात् महामन्त्र का स्वरूप बनने वाले। तो दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता से महान हैं। समझा, कौन हो?

जब से पहला पाठ शुरू किया, वह भी यही किया कि मैं कौन? बाप भी वही बात याद दिलाते हैं। इसी पर मनन करना। शब्द एक ही है कि ‘मैं कौन' लेकिन इसके उत्तर कितने हैं? लिस्ट निकालना - ‘मैं कौन?' अच्छा।

चारों ओर के सर्व प्राप्ति स्वरूप, श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व अलौकिक राज्यसभा अधिकारी महान आत्माओं को, सदा रूहानियत की चमक धारण करने वाली विशेष आत्माओं को, सदा स्वत: योगी, सहजयोगी, ऊँचे ते ऊँची आत्माओं को ऊँचे ते ऊँचे बापदादा का स्नेह सम्पन्न यादप्यार स्वीकार हो।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- लौकिक में कौन सी कहावत परमात्म बाप की कॉपी की हुई है, स्पष्ट कीजिए ?

 प्रश्न 2 :- ब्राह्मण जीवन की पवित्रता और चेहरे की चमक किसका प्रतीक है ?

 प्रश्न 3 :- सहज योगी व पुरुषार्थी से योगी दोनों में अंतर स्पष्ट कीजिए ?

 प्रश्न 4 :- बापदादा हर एक बच्चे में क्या देखना चाहते है ?

 प्रश्न 5 :- स्वराज्य अधिकारी बच्चो की विशेषताये क्या है ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(चन्द्रवंश, दूसरा, ब्राह्मण, प्राप्ति, जीवन, समाप्ति, ‘मध्याजी भव, युद्ध , महाराष्ट्र, ‘मन्मनाभव, संसार, मेहनत, महान, नशे, गँवाया)

 1   ब्राह्मण _____अर्थात् एक बाप ही _____ है वा एक बाप ______ न कोई।

 2  _____ का समय समीप आ रहा है। अब तक किसी न किसी बात की ______में लगे रहेंगे तो ______ का समय तो समाप्त हो जायेगा।

 3  ______ वाले सदा ही स्मृतिस्वरूप बनो कि ______ हैं। _______ अर्थात् महान चोटी हैं।

 4  मध्य प्रदेश - सदा ______ के _____ में रहने वाले। ______ के साथ ‘मद्याजी भव' का भी वरदान है।

 5  नये-नये बच्चों को _____ में ही समय नहीं गँवाना है। अगर युद्ध में ही समय ______ तो अन्त-मति भी युद्ध में रहेंगे। फिर  युद्ध वाला तो______ में जायेगा।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- इस भाग्य को अभी से भी समय पर ज्यादा समझेंगे कि हम सभी आत्मायें कितनी भाग्यवान हैं!

 2  :- त्रेता में राम सीता बनने के लिए तो सभी तैयार है।

 3  :- संगमयुग को, ब्राह्मण आत्माओं को ‘सदा पुरूषार्थी भव' का वरदान  है ।

 4  :- प्राप्ति भव' की वरदानी आत्मा कभी भी अलबेलेपन में आ नहीं सकती।

 5   :- पीछे जाने का सहज रास्ता है - सहजयोगी, स्वत:योगी बनो।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- लौकिक में कौन सी कहावत परमात्म बाप की कॉपी की हुई है, स्पष्ट कीजिए ?

   उत्तर 1 :- हर एक ब्राह्मण बच्चा स्वराज्य-अधिकारी है।

         .. यही संगमयुग की विशेषता है जो ऊँचे ते ऊँचे बाप के सर्व बच्चे स्वराज्य-अधिकारी बनते हैं।

         .. लौकिक परिवार में हर एक बाप बच्चों को कहते हैं कि यह मेरा बच्चा ‘राजा' बेटा है वा इच्छा रखते हैं कि मेरा हर एक बच्चा ‘राजा' बने। लेकिन सभी बच्चे राजा बन ही नहीं

सकते।

         .. यह कहावत परमात्म बाप की कापी की है। इस समय बापदादा के सब बच्चे राजयोगी अर्थात् स्व के राजे नम्बरवार जरूर हैं लेकिन हैं सभी राज-योगी, प्रजा योगी कोई नहीं है।

 

 प्रश्न 2 :- ब्राह्मण जीवन की पवित्रता और चेहरे की चमक किसका प्रतीक है ?

   उत्तर 2 :- ब्राह्मण अर्थात् महान। हर कर्म महान, हर बोल महान, हर संकल्प महान है, अलौकिक हो गये ना।

         .. ताज ब्राह्मण जीवन की विशेषता - ‘पवित्रता' का ही सूचक है। चेहरे की चमक रूहानी स्थिति में स्थित रहने की रूहानियत की चमक है।

          .. साधारण रीति से भी किसी भी व्यक्ति को देखेंगे तो सबसे पहले दृष्टि चेहरे तरफ ही जायेगी।

         .. यह चेहरा ही वृत्ति और स्थिति का दर्पण है। तो बापदादा देख रहे थे - चमक तो सभी में थी लेकिन एक थे सदा रूहानीयत की स्थिति में स्थित रहने वाले, स्वत: और सहज स्थिति वाले और दूसरे थे सदा रूहानी स्थिति के अभ्यास द्वारा स्थित में रहने वाले।

 

 प्रश्न 3 :- सहज योगी व पुरुषार्थी से योगी दोनों में अंतर स्पष्ट कीजिए ?

  उत्तर 3 :- सहज योगी व पुरुषार्थी से योगी दोनों में निम्न अंतर है:-

         .. सहजयोगी अर्थात सहज स्थिति वाले, दूसरे प्रयत्न कर स्थित रहने वाले।

         .. दोनों की चमक में अन्तर है, उनकी नैचरल ब्यूटी होती है और दूसरों की पुरूषार्थ द्वारा ब्यूटी होती है।

          .. जैसे आजकल भी मेकप कर ब्यूटीफुल बनते हैं ना। नैचरल (स्वाभाविक) ब्यूटी की चमक सदा एकरस रहती है और दूसरी ब्यूटी कभी बहुत अच्छी और कभी परसेन्टेज में रहती है; एक जैसी, एकरस नहीं रहती।

         .. सदा सहज योगी, स्वत:योगी स्थिति नम्बरवन स्वराज्य-अधिकारी बनाती है। एक है स्वत: अभ्यास है, है ही है, और दूसरा होता है मेहनत वाला अभ्यास।

 

प्रश्न 4 :- बापदादा हर एक बच्चे में क्या देखना चाहते है ?

   उत्तर 4 :- बापदादा हर एक बच्चे में यही देखना चाहते हैं कि:-

         .. हर एक बच्चे के चेहरे से सहजयोगी की चमक दिखाई दे, श्रेष्ठ प्राप्ति के नशे की चमक दिखाई दे। क्योंकि प्राप्तियों के भण्डार के बच्चे हो।

         .. संगमयुग के प्राप्तियों के वरदानी समय के अधिकारी हो। निरन्तर योग कैसे लगावें वा निरन्तर अनुभव कर भण्डार की अनुभूति कैसे करें - अब तक भी इसी मेहनत में ही समय नहीं गँवाओं लेकिन प्राप्तिस्वरूप के भाग्य को सहज अनुभव करो।

         .. बापदादा तो यही चाहते हैं कि एक- एक बच्चा - चाहे लास्ट आने वाला, चाहे स्थापना के आदि में आने वाला, हर एक बच्चा नम्बरवन बने। राजा बनना, न कि प्रजा।

 

 प्रश्न 5 :- स्वराज्य अधिकारी बच्चो की विशेषताये क्या है ?

   उत्तर 5 :- स्वराज्य अधिकारी बच्चो की निम्न विशेषताये है:-

          .. स्वराज्य-अधिकारी बच्चों को सहज अभ्यासी बनना है - यही निशानी है सहज योगी, स्वत: योगी की।

         .. उन्हों के चेहरे की चमक अलौकिक होती है जो चेहरा देखते ही अन्य आत्मायें अनुभव करती कि यह श्रेष्ठ प्राप्तिस्वरूप सहजयोगी हैं।

         .. अब नहीं तो कब नहीं। बनना है तो अब, पाना है तो अब - ऐसा उमंग-उत्साह वाले ही समय पर अपनी सम्पूर्ण मंज़िल को पा सकेंगे।

         .. जब सतयुग सूर्यवंश में आना है, तो सूर्यवंश अर्थात् सदा मास्टर विधाता और वरदाता, लेने की इच्छा वाला नहीं।

         .. मदद मिल जाए, यह हो जाए तो बहुत अच्छा, पुरूषार्थ में अच्छा नम्बर ले लेंगे - नहीं। मदद मिल रही है, सब हो रहा है - इसको कहते हैं - ‘स्वराज्य अधिकारी बच्चे'

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(चन्द्रवंश, दूसरा, ब्राह्मण, प्राप्ति, जीवन, समाप्ति, ‘मध्याजी भव, युद्ध, महाराष्ट्र, ‘मन्मनाभव, संसार, मेहनत, महान, नशे, गँवाया)

 1   ब्राह्मण _____अर्थात् एक बाप ही _____ है वा एक बाप ______ न कोई।

    जीवन / संसार / दूसरा

 

 2  _____ का समय समीप आ रहा है। अब तक किसी न किसी बात की ______में लगे रहेंगे तो ______ का समय तो समाप्त हो जायेगा।

      समाप्ति / मेहनत / प्राप्ति

 

 3  ______ वाले सदा ही स्मृतिस्वरूप बनो कि ______ हैं। _______ अर्थात् महान चोटी हैं।

    महाराष्ट्र / महान / ब्राह्मण

 4  मध्य प्रदेश - सदा ______ के _____ में रहने वाले। ______ के साथ ‘मद्याजी भव' का भी वरदान है।

 

    मध्याजी भव'/  नशे / ‘मन्मनाभव'

 

 5  नये-नये बच्चों को _____ में ही समय नहीं गँवाना है। अगर युद्ध में ही समय ______ तो अन्त-मति भी युद्ध में रहेंगे। फिर  युद्ध वाला तो______ में जायेगा।

      युद्ध / गँवाया / चन्द्रवंश

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- इस भाग्य को अभी से भी समय पर ज्यादा समझेंगे कि हम सभी आत्मायें कितनी भाग्यवान हैं! 【✔】

 

 2  :- त्रेता में राम सीता बनने के लिए तो सभी तैयार है।【✖】

   त्रेता में राम सीता बनने के लिए तो कोई भी तैयार नहीं है।

 

3  :-  संगमयुग को, ब्राह्मण आत्माओं को ‘सदा पुरूषार्थी भव' का वरदान  है । 【✖】

   संगमयुग को, ब्राह्मण आत्माओं को ‘प्राप्ति भव' का वरदान है।

 

4  :- प्राप्ति भव' की वरदानी आत्मा कभी भी अलबेलेपन में आ नहीं सकती। 【✔】

 

 5   :- पीछे जाने का सहज रास्ता है - सहजयोगी, स्वत:योगी बनो।【✖】

   आगे जाने का सहज रास्ता है - सहजयोगी, स्वत:योगी बनो।