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AVYAKT MURLI
29 / 10 / 87
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29-10-87 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
तन, मन, धन और सम्बन्ध की शक्ति
‘सदा स्वस्थ भव' का वरदान देने वाले, सर्वशक्तिवान शिवबाबा अपने वत्सों प्रति बोले
आज सर्वशक्तिवान बाप अपने शक्तिशाली बच्चों को देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण आत्मा शक्तिशाली बनी है लेकिन नम्बरवार है। सर्व शक्तियां बाप का वर्सा और वरदाता का वरदान हैं। बाप और वरदाता - इन डबल सम्बन्ध से हरेक बच्चे को यह श्रेष्ठ प्राप्ति जन्म से ही होती है। जन्म से ही बाप सर्व शक्तियों का अर्थात् जन्म-सिद्ध अधिकार का अधिकारी बना देता है, साथ-साथ वरदाता के नाते से जन्म होते ही मास्टर सर्वशक्तिवान बनाए ‘सर्व शक्ति भव' का वरदान दे देते हैं। सभी बच्चों को एक द्वारा एक जैसा ही डबल अधिकार मिलता है लेकिन धारण करने की शक्ति नम्बरवार बना देती है। बाप सभी को सदा और सर्व शक्तिशाली बनाते हैं लेकिन बच्चे यथा-शक्ति बन जाते हैं। वैसे लौकिक जीवन में वा अलौकिक जीवन में सफलता का आधार शक्तियां ही हैं। जितनी शक्तियां, उतनी सफलता। मुख्य शक्तियाँ हैं - तन की, मन की, धन की और सम्बन्ध की। चारों ही आवश्यक हैं। अगर चार में से एक भी शक्ति कम है तो जीवन में सदा व सर्व सफलता नहीं होती। अलौकिक जीवन में भी चारों ही शक्तियाँ आवश्यक है।
इस अलौकिक जीवन में आत्मा और प्रकृति दोनों की तन्दरूस्ती आवश्यक है। जब आत्मा स्वस्थ है तो तन का हिसाब-किताब वा तन का रोग सूली से कांटा बनने के कारण, स्व-स्थिति के कारण स्वस्थ अनुभव करता है। उनके मुख पर, चेहरे पर बीमारी के कष्ट के चिन्ह नहीं रहते। मुख पर कभी बीमारी का वर्णन नहीं होता, कर्मभोग के वर्णन के बदले कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते हैं। क्योंकि बीमारी का वर्णन भी बीमारी की वृद्धि करने का कारण बन जाता है। वह कभी भी बीमारी के कष्ट का अनुभव नहीं करेगा, न दूसरे को कष्ट सुनाकर कष्ट की लहर फैलायेगा। और ही परिवर्तन की शक्ति से कष्ट को सन्तुष्टता में परिवर्तन कर सन्तुष्ट रह औरों में भी सन्तुष्टता की लहर फैलायेगा। अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान बन शक्तियों के वरदान में से समय प्रमाण सहन शक्ति, समाने की शक्ति प्रयोग करेगा और समय पर शक्तियों का वरदान वा वर्सा कार्य में लाना - यही उसके लिए वरदान अर्थात् दुआ दवाई का काम कर देती है। क्योंकि सर्वशक्तिवान बाप द्वारा जो सर्वशक्तियाँ प्राप्त हैं वह जैसी परिस्थिति, जैसा समय और जिस विधि से आप कार्य में लगाना चाहो, वैसे ही रूप से यह शक्तियाँ आपकी सहयोगी बन सकती हैं। इन शक्तियों को वा प्रभु-वरदान को जिस रूप में चाहे वह रूप धारण कर सकते हैं। अभी-अभी शीतलता के रूप में, अभी-अभी जलाने के रूप में। पानी की शीतलता का भी अनुभव करा सकते तो आग के जलाने का भी अनुभव करा सकते; दवाई का भी काम कर सकता और शक्तिशाली बनाने का माजून का भी काम कर सकता। सिर्फ समय पर कार्य में लगाने की अथॉर्टी बनो। यह सर्वशक्तियाँ आप मास्टर सर्वशक्तिवान की सेवाधारी हैं। जब जिसको आर्डर करो, वह ‘हाजर हजूर' कह सहयोगी बनेगी लेकिन सेवा लेने वाले भी इतने चतुर-सुजान चाहिए। तो तन की शक्ति आत्मिक शिक्त के आधार पर सदा अनुभव कर सकते हो अर्थात् सदा स्वस्थ रहने का अनुभव कर सकते हो।
यह अलौकिक ब्राह्मण जीवन है ही सदा स्वस्थ जीवन। वरदाता से ‘सदा स्वस्थ भव' का वरदान मिला हुआ है। बापदादा देखते हैं कि प्राप्त हुए वरदानों को कई बच्चे समय पर कार्य में लगाकर लाभ नहीं ले सकते हैं वा यह कहें कि शक्तियों अर्थात् सेवाधारियों से अपनी विशालता और विशाल बुद्धि द्वारा सेवा नहीं ले पाते हैं। ‘मास्टर सर्वशक्तिवान' - यह स्थिति कोई कम नहीं है! यह श्रेष्ठ स्थिति भी है, साथ-साथ डायरेक्ट परमात्मा द्वारा ‘परम टाइटल' भी है। टाइटल का नशा कितना रखते हैं! टाइटल कितने कार्य सफल कर देता है! तो यह परमात्म-टाइटल है, इसमें कितनी खुशी और शक्ति भरी हुई है! अगर इसी एक टाइटल की स्थिति रूपी सीट पर सेट रहो तो यह सर्वशक्तियाँ सेवा के लिए सदा हाजर अनुभव होंगी, आपके आर्डर की इन्तजार में होगी। तो वरदान को वा वर्से को कार्य में लगाओ। अगर मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वमान में स्थित नहीं होते तो शक्तियों को आर्डर में चलाने के बजाए बार-बार बाप को अर्जा डालते रहते कि यह शक्ति दे दो, यह हमारा कार्य करा दो, यह हो जाए, ऐसा हो जाए। तो अर्जा डालने वाले कभी भी सदा राजी नहीं रह सकते हैं। एक बात पूरी होगी, दूसरी शुरू हो जायेगी। इसलिए मालिक बन, योगयुक्त बन युक्तियुक्त सेवा सेवाधारियों से लो तो सदा स्वस्थ का स्वत: ही अनुभव करेंगे। इसको कहते हैं - तन के शक्ति की प्राप्ति।
ऐसे ही मन की शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प शक्ति। मास्टर सर्वशक्तिवान के हर संकल्प में इतनी शक्ति है जो जिस समय जो चाहे वह कर सकता है और करा भी सकता है क्योंकि उनके संकल्प सदा शुभ, श्रेष्ठ और कल्याणकारी होंगे। तो यहाँ श्रेष्ठ कल्याण का संकल्प है, वह सिद्ध जरूर होता है और मास्टर सर्वशक्तिवान होने के कारण मन कभी मालिक को धोखा नहीं दे सकता है, दु:ख नहीं अनुभव करा सकता है। मन एकाग्र अर्थात् एक ठिकाने पर स्थित रहता है, भटकता नहीं है। जहाँ चाहो, जब चाहो मन को वहाँ स्थित कर सकते हो। कभी मन उदास नहीं हो सकता है, यह है मन की शक्ति जो अलौकिक जीवन में वर्से वा वरदान में प्राप्त है।
इसी प्रकार तीसरी है धन की शक्ति अर्थात् ज्ञान-धन की शक्ति। ज्ञान-धन स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: ही कराता है। जहाँ ज्ञान धन है, वहाँ प्रकृति स्वत: ही दासी बन जाती है। यह स्थूल धन प्रकृति के साधन के लिए है। ज्ञान-धन से प्रकृति के सर्व साधन स्वत: प्राप्त होते हैं। इसलिए ज्ञान-धन सब धन का राजा है। जहाँ राजा है, वहाँ सर्व पदार्थ स्वत: ही प्राप्त होते हैं, मेहनत नहीं करनी पड़ती। अगर कोई भी लौकिक पदार्थ प्राप्त करने में मेहनत करनी पड़ती है तो इसका कारण ज्ञान-धन की कमी है। वास्तव में, ज्ञान-धन पद्मापद्मपति बनाने वाला है। परमार्थ व्यवहार को स्वत: ही सिद्ध करता है। तो परमात्म-धन वाले परमार्थी बन जाते हैं। संकल्प करने की भी आवश्यकता नहीं, स्वत: ही सर्व आवश्यकतायें पूर्ण होती रहतीं। धन की इतनी शक्ति है जो अनेक जन्म यह ज्ञान-धन राजाओं का भी राजा बना देता है। तो धन की भी शक्ति सहज प्राप्त हो जाती है।
इसी प्रकार - सम्बन्ध की शक्ति। सम्बन्ध की शक्ति के प्राप्ति की शुभ इच्छा इसलिए होती है क्योंकि सम्बन्ध में स्नेह और सहयोग की प्राप्ति होती है। इस अलौकिक जीवन में सम्बन्ध की शक्ति डबल रूप में प्राप्त होती है। जानते हो, डबल सम्बन्ध की शक्ति कैसे प्राप्त होती है? एक - बाप द्वारा सर्व सम्बन्ध, दूसरा - दैवी परिवार द्वारा सम्बन्ध। तो डबल सम्बन्ध हो गया ना - बाप से भी और आपस में भी। तो सम्बन्ध द्वारा सदा नि:स्वार्थ स्नेह, अविनाशी स्नेह और अविनाशी सहयोग सदा ही प्राप्त होता रहता है। तो सम्बन्ध की भी शक्ति है ना। वैसे भी बाप, बच्चा क्यों चाहता है अथवा बच्चा, बाप क्यों चाहता है? सहयोग के लिए, समय पर सहयोग मिले। तो इस अलौकिक जीवन में चारों शक्तियों की प्राप्ति वरदान रूप में, वर्से के रूप में है। जहाँ चारों प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं, उसकी हर समय की स्थिति कैसी होगी? सदा मास्टर सर्वशक्तिवान। इसी स्थिति की सीट पर सदा स्थित हो? इसी को ही दूसरे शब्दों में स्व के राजे वा राजयोगी कहा जाता है। राजाओं के भण्डार सदा भरपूर रहते हैं। तो राजयोगी अर्थात् सदा शक्तियों के भण्डार भरपूर रहते,समझा? इसको कहा जाता है - श्रेष्ठ ब्राह्मण अलौकिक जीवन। सदा मालिक बन सर्व शक्तियों को कार्य में लगाओ। यथाशक्ति के बजाए सदा शक्तिशाली बनो। अर्जा करने वाले नहीं, सदा राजी रहने वाले बनो। अच्छा।
मधुबन आने का चांस तो सभी को मिल रहा है ना। इस प्राप्त हुए भाग्य को सदा साथ रखो। भाग्यविधाता को साथ रखना अर्थात् भाग्य को साथ रखना है। तीन जोन के आये हैं। अलग-अलग स्थान की 3 नदियां आकर इकट्ठी हुई - इसको त्रिवेणी का संगम कहते हैं। बापदादा तो वरदाता बन सबको वरदान देते हैं। वरदानों को कार्य में लगाना, वह हर एक के ऊपर है। अच्छा।
चारों ओर के सर्व वर्से और वरदानों के अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व सदा सन्तुष्टता की लहर फैलाने वाले सन्तुष्ट आत्माओं को, सदा परमार्थ द्वारा व्यव्हार में सिद्धि प्राप्त करने वाली महान आत्माओं को बापदादा का स्नेह और शक्ति सम्पन्न यादप्यार और नमस्ते।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- ब्राह्मण आत्माओं को जन्म से ही कौन-सा वरदान प्राप्त है? डबल अधिकार प्राप्त होते हुए भी आत्मायें नम्बरवार क्यों हैं? मुख्य चार शक्तियाँ कौन-सी हैं?
प्रश्न 2 :- आत्मा स्वस्थ होती है तो बीमारी आदि में कैसा महसूस करती है?
प्रश्न 3 :- परमात्मा द्वारा मिला हुआ परम टाइटल कौन-सा है? टाइटल की स्तिथि रूपी सीट पर सेट रहो तो क्या होगा? तन की शक्ति की प्राप्ति का क्या अर्थ है?
प्रश्न 4 :- मन की शक्ति किसे कहा जाता है? मास्टर सर्वशक्तिवान जिस समय जो चाहे वह साकार कर सकता है। कैसे? मास्टर सर्वशक्तिवान होने से क्या होता है?
प्रश्न 5 :- धन की शक्ति किसे कहा जाता है? अगर लौकिक पदार्थ प्राप्त करने में मेहनत लगती है तो किस चीज़ की कमी है? सम्बन्ध की शक्ति को विस्तार में बताये।
FILL IN THE BLANKS:-
(धारण, सहयोग, वृद्धि, अविनाशी, यथा-शक्ति, शक्तियों, शक्तिशाली)
1 हर एक ब्राह्मण आत्मा ______ बनी है लेकिन नम्बरवार है।
2 बाप सभी को सदा और सर्व शक्तिशाली बनाते हैं लेकिन बच्चे ______ बन जाते हैं।
3 बीमारी का वर्णन भी बीमारी की ______ करने का कारण बन जाता है।
4 ______ को वा प्रभु-वरदान को जिस रूप में चाहे वह रूप ______ कर सकते हैं।
5 सम्बन्ध द्वारा सदा नि:स्वार्थ स्नेह, ______ स्नेह और अविनाशी ______ सदा ही प्राप्त होता रहता है।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】
1 :- यह लौकिक ब्राह्मण जीवन है ही सदा स्वस्थ जीवन।
2 :- ज्ञान-धन स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: ही कराता है।
3 :- इस अलौकिक जीवन में केवल तन, मन, धन की शक्तियों की प्राप्ति वरदान रूप में, वर्से के रूप में है।
4 :- वरदानों को कार्य में लगाना, वह बड़ो के ऊपर है।
5 :- भाग्यविधाता को साथ रखना अर्थात् भाग्य को साथ रखना है।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- ब्राह्मण आत्माओं को जन्म से ही कौन-सा वरदान प्राप्त है? डबल अधिकार प्राप्त होते हुए भी आत्मायें नम्बरवार क्यों हैं? मुख्य चार शक्तियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर 1 :- बापदादा ने बताया :-
..❶ सर्व शक्तियाँ बाप का वर्सा और वरदाता का वरदान हैं। बाप और वरदाता - इन डबल सम्बन्ध से हरेक बच्चे को यह श्रेष्ठ प्राप्ति जन्म से ही होती है। जन्म से ही बाप सर्व शक्तियों का अर्थात् जन्म-सिद्ध अधिकार का अधिकारी बना देता है, साथ-साथ वरदाता के नाते से जन्म होते ही मास्टर सर्वशक्तिवान बनाए ‘सर्व शक्ति भव' का वरदान दे देते हैं।
..❷ सभी बच्चों को एक द्वारा एक जैसा ही डबल अधिकार मिलता है लेकिन धारण करने की शक्ति नम्बरवार बना देती है।
..❸ वैसे लौकिक जीवन में वा अलौकिक जीवन में सफलता का आधार शक्तियाँ ही हैं। जितनी शक्तियाँ, उतनी सफलता। मुख्य शक्तियाँ हैं - तन की, मन की, धन की और सम्बन्ध की। चारों ही आवश्यक हैं। अगर चार में से एक भी शक्ति कम है तो जीवन में सदा व सर्व सफलता नहीं होती। अलौकिक जीवन में भी चारों ही शक्तियाँ आवश्यक है।
प्रश्न 2 :- आत्मा स्वस्थ होती है तो बीमारी आदि में कैसा महसूस करती है?
उत्तर 2 :- बापदादा ने बताया :-
..❶ इस अलौकिक जीवन में आत्मा और प्रकृति दोनों की तन्दरूस्ती आवश्यक है। जब आत्मा स्वस्थ है तो तन का हिसाब-किताब वा तन का रोग सूली से कांटा बनने के कारण, स्व-स्थिति के कारण स्वस्थ अनुभव करता है।
..❷ उनके मुख पर, चेहरे पर बीमारी के कष्ट के चिन्ह नहीं रहते। मुख पर कभी बीमारी का वर्णन नहीं होता, कर्मभोग के वर्णन के बदले कर्मयोग की स्थिति का वर्णन करते हैं। वह कभी भी बीमारी के कष्ट का अनुभव नहीं करेगा, न दूसरे को कष्ट सुनाकर कष्ट की लहर फैलायेगा।
..❸ और ही परिवर्तन की शक्ति से कष्ट को सन्तुष्टता में परिवर्तन कर सन्तुष्ट रह औरों में भी सन्तुष्टता की लहर फैलायेगा। अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान बन शक्तियों के वरदान में से समय प्रमाण सहन शक्ति, समाने की शक्ति प्रयोग करेगा।
..❹ समय पर शक्तियों का वरदान वा वर्सा कार्य में लाना - यही उसके लिए वरदान अर्थात् दुआ दवाई का काम कर देती है। क्योंकि सर्वशक्तिवान बाप द्वारा जो सर्वशक्तियाँ प्राप्त हैं वह जैसी परिस्थिति, जैसा समय और जिस विधि से आप कार्य में लगाना चाहो, वैसे ही रूप से यह शक्तियाँ आपकी सहयोगी बन सकती हैं।
..❺ अभी-अभी शीतलता के रूप में, अभी-अभी जलाने के रूप में। पानी की शीतलता का भी अनुभव करा सकते तो आग के जलाने का भी अनुभव करा सकते, दवाई का भी काम कर सकता और शक्तिशाली बनाने का माजून का भी काम कर सकता। सिर्फ समय पर कार्य में लगाने की अथॉर्टी बनो।
..❻ यह सर्वशक्तियाँ आप मास्टर सर्वशक्तिवान की सेवाधारी हैं। जब जिस शक्ति को आर्डर करो, वह ‘हाजर हजूर' कह सहयोगी बनेगी लेकिन सेवा लेने वाले भी इतने चतुर-सुजान चाहिए। तो तन की शक्ति आत्मिक शिक्त के आधार पर सदा अनुभव कर सकते हो अर्थात् सदा स्वस्थ रहने का अनुभव कर सकते हो।
प्रश्न 3 :- परमात्मा द्वारा मिला हुआ परम टाइटल कौन-सा है? टाइटल की स्थिति रूपी सीट पर सेट रहो तो क्या होगा? तन की शक्ति की प्राप्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर 3 :- बापदादा ने कहा कि :-
..❶ वरदाता से ‘सदा स्वस्थ भव' का वरदान मिला हुआ है। बापदादा देखते हैं कि प्राप्त हुए वरदानों को कई बच्चे समय पर कार्य में लगाकर लाभ नहीं ले सकते हैं वा यह कहें कि शक्तियों अर्थात् सेवाधारियों से अपनी विशालता और विशाल बुद्धि द्वारा सेवा नहीं ले पाते हैं।
..❷ ‘मास्टर सर्वशक्तिवान' - यह स्थिति कोई कम नहीं है! यह श्रेष्ठ स्थिति भी है, साथ-साथ डायरेक्ट परमात्मा द्वारा ‘परम टाइटल' भी है। टाइटल का नशा कितना रखते हैं! टाइटल कितने कार्य सफल कर देता है! तो मास्टर सर्वशक्तिवान परमात्म-टाइटल है, इसमें कितनी खुशी और शक्ति भरी हुई है!
..❸ अगर इसी एक टाइटल की स्थिति रूपी सीट पर सेट रहो तो यह सर्वशक्तियाँ सेवा के लिए सदा हाजर अनुभव होंगी, आपके आर्डर की इन्तजार में होगी। तो वरदान को वा वर्से को कार्य में लगाओ।
..❹ अगर मास्टर सर्वशक्तिवान के स्वमान में स्थित नहीं होते तो शक्तियों को आर्डर में चलाने के बजाए बार-बार बाप को अर्जा डालते रहते कि यह शक्ति दे दो, यह हमारा कार्य करा दो, यह हो जाए, ऐसा हो जाए। तो अर्जा डालने वाले कभी भी सदा राजी नहीं रह सकते हैं। एक बात पूरी होगी, दूसरी शुरू हो जायेगी।
..❺ इसलिए मालिक बन, योगयुक्त बन युक्तियुक्त सेवा सेवाधारियों से लो तो सदा स्वस्थ का स्वत: ही अनुभव करेंगे। इसको कहते हैं - तन की शक्ति की प्राप्ति।
प्रश्न 4 :- मन की शक्ति किसे कहा जाता है? मास्टर सर्वशक्तिवान जिस समय जो चाहे वह साकार कर सकता है। कैसे? मास्टर सर्वशक्तिवान होने से क्या होता है?
उत्तर 4 :- बापदादा ने बताया :-
..❶ मन की शक्ति अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प शक्ति। मास्टर सर्वशक्तिवान के हर संकल्प में इतनी शक्ति है जो जिस समय जो चाहे वह कर सकता है और करा भी सकता है क्योंकि उनके संकल्प सदा शुभ, श्रेष्ठ और कल्याणकारी होंगे।
..❷ तो यहाँ श्रेष्ठ कल्याण का संकल्प है, वह सिद्ध जरूर होता है और मास्टर सर्वशक्तिवान होने के कारण मन कभी मालिक को धोखा नहीं दे सकता है, दु:ख नहीं अनुभव करा सकता है।
..❸ मन एकाग्र अर्थात् एक ठिकाने पर स्थित रहता है, भटकता नहीं है। जहाँ चाहो, जब चाहो मन को वहाँ स्थित कर सकते हो। कभी मन उदास नहीं हो सकता है। यह है मन की शक्ति जो अलौकिक जीवन में वर्से वा वरदान में प्राप्त है।
प्रश्न 5 :- धन की शक्ति किसे कहा जाता है? अगर लौकिक पदार्थ प्राप्त करने में मेहनत लगती है तो किस चीज़ की कमी है? सम्बन्ध की शक्ति को विस्तार में बताये।
उत्तर 5 :- बापदादा ने बताया :-
..❶ धन की शक्ति अर्थात् ज्ञान-धन की शक्ति। जहाँ ज्ञान धन है, वहाँ प्रकृति स्वत: ही दासी बन जाती है। यह स्थूल धन प्रकृति के साधन के लिए है।
..❷ ज्ञान-धन से प्रकृति के सर्व साधन स्वत: प्राप्त होते हैं। इसलिए ज्ञान-धन सब धन का राजा है। जहाँ राजा है, वहाँ सर्व पदार्थ स्वत: ही प्राप्त होते हैं, मेहनत नहीं करनी पड़ती।
..❸ अगर कोई भी लौकिक पदार्थ प्राप्त करने में मेहनत करनी पड़ती है तो इसका कारण ज्ञान-धन की कमी है। वास्तव में, ज्ञान-धन पद्मापद्मपति बनाने वाला है। परमार्थ व्यवहार को स्वत: ही सिद्ध करता है। तो परमात्म-धन वाले परमार्थी बन जाते हैं। संकल्प करने की भी आवश्यकता नहीं, स्वत: ही सर्व आवश्यकतायें पूर्ण होती रहतीं।
..❹ धन की इतनी शक्ति है जो अनेक जन्म यह ज्ञान-धन राजाओं का भी राजा बना देता है। तो धन की भी शक्ति सहज प्राप्त हो जाती है।
..❺ इसी प्रकार - सम्बन्ध की शक्ति। सम्बन्ध की शक्ति के प्राप्ति की शुभ इच्छा इसलिए होती है क्योंकि सम्बन्ध में स्नेह और सहयोग की प्राप्ति होती है।
..❻ इस अलौकिक जीवन में सम्बन्ध की शक्ति डबल रूप में प्राप्त होती है। एक - बाप द्वारा सर्व सम्बन्ध, दूसरा - दैवी परिवार द्वारा सम्बन्ध। तो डबल सम्बन्ध हो गया ना - बाप से भी और आपस में भी।
..❼ वैसे भी बाप, बच्चा क्यों चाहता है अथवा बच्चा, बाप क्यों चाहता है? सहयोग के लिए, समय पर सहयोग मिले। तो
जहाँ चारों प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं, उसकी हर समय की स्थिति कैसी होगी? सदा मास्टर सर्वशक्तिवान। इसी को ही दूसरे शब्दों में स्व के राजे वा राजयोगी कहा जाता है।
..❽ राजाओं के भण्डार सदा भरपूर रहते हैं। तो राजयोगी अर्थात् सदा शक्तियों के भण्डार भरपूर रहते। इसको कहा जाता है - श्रेष्ठ ब्राह्मण अलौकिक जीवन। सदा मालिक बन सर्व शक्तियों को कार्य में लगाओ। यथाशक्ति के बजाए सदा शक्तिशाली बनो। अर्जा करने वाले नहीं, सदा राजी रहने वाले बनो।
FILL IN THE BLANKS:-
(धारण, सहयोग, वृद्धि, अविनाशी, यथा-शक्ति, शक्तियों, शक्तिशाली)
1 हर एक ब्राह्मण आत्मा ______ बनी है लेकिन नम्बरवार है।
शक्तिशाली
2 बाप सभी को सदा और सर्व शक्तिशाली बनाते हैं लेकिन बच्चे ______ बन जाते हैं।
यथा-शक्ति
3 बीमारी का वर्णन भी बीमारी की ______ करने का कारण बन जाता है।
वृद्धि
4 ______ को वा प्रभु-वरदान को जिस रूप में चाहे वह रूप ______ कर सकते हैं।
शक्तियों / धारण
5 सम्बन्ध द्वारा सदा नि:स्वार्थ स्नेह, ______ स्नेह और अविनाशी ______ सदा ही प्राप्त होता रहता है।
अविनाशी / सहयोग
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】
1 :- यह लौकिक ब्राह्मण जीवन है ही सदा स्वस्थ जीवन।【✖】
यह अलौकिक ब्राह्मण जीवन है ही सदा स्वस्थ जीवन।
2 :- ज्ञान-धन स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: ही कराता है।【✔】
3 :- इस अलौकिक जीवन में केवल तन, मन, धन की शक्तियों की प्राप्ति वरदान रूप में, वर्से के रूप में है।【✖】
इस अलौकिक जीवन में तन, मन, धन और सम्बन्ध की शक्तियों की प्राप्ति वरदान रूप में, वर्से के रूप में है।
4 :- वरदानों को कार्य में लगाना, वह बड़ो के ऊपर है।【✖】
वरदानों को कार्य में लगाना, वह हर एक के ऊपर है।
5 :- भाग्यविधाता को साथ रखना अर्थात् भाग्य को साथ रखना है।【✔】