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AVYAKT MURLI

05 / 12 / 89

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05-12-89   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

सदा प्रसन्न कैसे रहें?

अव्यक्त बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों को देख रहे थे। क्या देखा? हर एक बच्चा स्वयं हर समय कितना प्रसन्न रहता है, साथ-साथ दूसरों को स्वयं द्वारा कितना प्रसन्न करते हैं। क्योंकि परमात्म सर्व-प्राप्तियों के प्रत्यक्षस्वरूप में प्रसन्नता ही चेहरे पर दिखाई देती है। ‘‘प्रसन्नता'' ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है। अल्पकाल की प्रसन्नता और सदाकाल की सम्पन्नता की प्रसन्नता - इसमें रातदिन का अंतर है। अल्पकाल की प्रसन्नता, अल्पकाल के प्राप्ति वाले के चेहरे पर थोड़े समय के लिए दिखाई जरूर देती है लेकिन रूहानी प्रसन्नता स्वयं को तो प्रसन्न करती ही है परन्तु रूहानी प्रसन्नता के वायब्रेशन अन्य आत्माओं तक भी पहुँचते हैं, अन्य आत्माएं भी शान्ति और शक्ति की अनुभूति करती हैं। जैसे फलदायक वृक्ष अपने शीतलता की छाया में थोड़े समय के लिए मानव को शीतलता का अनुभव कराता है और मानव प्रसन्न हो जाता है। ऐसे परमात्म-प्राप्तियों के फल सम्पन्न रूहानी प्रसन्नता वाली आत्मा दूसरों को भी अपने प्राप्तियों की छाया में तन-मन की शान्ति और शक्ति की अनुभूति कराती है। प्रसन्नता के वायब्रेशन सूर्य की किरणों समान वायुमण्डल को, व्यक्ति को और सब बातें भुलाए सच्चे रूहानी शान्ति की, खुशी की अनुभूति में बदल देते हैं। वर्तमान समय की अज्ञानी आत्माएं अपने जीवन में बहुत खर्चा करके भी प्रसन्नता में रहना चाहती हैं। आप लोगों ने क्या खर्चा किया? बिना पैसा खर्च करते भी सदा प्रसन्न रहते हो ना! वा औरों की मदद से प्रसन्न रहते हो? बापदादा बच्चों का चार्ट चेक कर रहे थे। क्या देखा? एक हैं सदा प्रसन्न रहने वाले और दूसरे हैं प्रसन्न रहने वाले। ‘सदा' शब्द नहीं है।

प्रसन्नता भी तीन प्रकार की देखी - (1) स्वयं से प्रसन्न, (2) दूसरों द्वारा प्रसन्न, (3) सेवा द्वारा प्रसन्न। अगर तीनों में प्रसन्न हैं तो बापदादा को स्वत: ही प्रसन्न किया है और जिस आत्मा के ऊपर बाप प्रसन्न है वह तो सदा सफलतामूर्त हैं ही हैं।

बापदादा ने देखा कई बच्चे अपने से भी अप्रसन्न रहते हैं। छोटी-सी बात के कारण अप्रसन्न रहते हैं। पहला-पहला पाठ ‘मैं कौन' इसको जानते हुए भी भूल जाते हैं। जो बाप ने बनाया है, दिया है - उसको भूल जाते हैं। बाप ने हर एक बच्चे को फुल वर्से का अधिकारी बनाया है। किसको पूरा, किसको आधा वर्सा नहीं दिया है। किसको आधा वा चौथा मिला है क्या? आधा मिला है या आधा लिया है? बाप ने तो सभी को मास्टर सर्वशक्तिवान का वरदान वा वर्सा दिया। ऐसे नहीं कि कोई शक्तियाँ बच्चों को दीं और कोई नहीं दी। अपने लिए नहीं रखी। सर्वगुण सम्पन्न बनाया है, सर्व प्राप्ति स्वरूप बनाया है। लेकिन बाप द्वारा जो प्राप्तियां हुई हैं उसको स्वयं में समा नहीं सकते। जैसे स्थूल धन वा साधन प्राप्त होते भी खर्च करना न आये वा साधनों को यूज करना न आये तो प्राप्ति होते भी उससे वंचित रह जाते हैं। ऐसे सब प्राप्तियां वा खज़ाने सबके पास हैं लेकिन कार्य में लगाने की विधि नहीं आती है और समय पर यूज करना नहीं आता है। फिर कहते - मैं समझती थी कि यह करना चाहिए, यह नहीं करना चाहिए लेकिन उस समय भूल गया। अभी समझती हूँ कि ऐसा नहीं होना चाहिए। उस समय एक सेकण्ड भी निकल गया तो सफलता की मंजल पर पहुँच नहीं सकते क्योंकि समय की गाड़ी निकल गई। चाहे एक सेकण्ड लेट किया चाहे एक घण्टा लेट किया - समय निकल तो गया ना। और जब समय की गाड़ी निकल जाती है तो फिर स्वयं से दिलशिकस्त हो जाते हैं और अप्रसन्नता के संस्कार इमर्ज होते हैं - मेरा भाग्य ही ऐसा है, मेरा ड्रामा में पार्ट ही ऐसा है।

पहले भी सुनाया था - स्व से अप्रसन्न रहने के मुख्य दो कारण होते हैं दिलशिकस्त होना और दूसरा कारण होता है दूसरों की विशेषता को वा भाग्य को वा पार्ट को देख ईर्ष्या उत्पन्न होना। हिम्मत कम होती है, ईर्ष्या ज्यादा होती है। दिलशिकस्त भी कभी प्रसन्न नहीं रह सकता और ईर्ष्या वाला भी कभी प्रसन्न नहीं रह सकता। क्योंकि दोनों हिसाब से ऐसी आत्माओं की इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती और इच्छाएं - ‘अच्छा' बनने नहीं देती। इसलिए प्रसन्न नहीं रहते। प्रसन्न रहने के लिए सदा एक बात बुद्धि में रखो कि ड्रामा के नियम प्रमाण संगमयुग पर हर एक ब्राह्मण आत्मा को कोई-नकोई विशेषता मिली हुई है। चाहे माला का लास्ट 16,000 वाला दाना हो - उसको भी कोई-न-कोई विशेषता मिली हुई है। उनसे भी आगे चलो - नौ लाख जो गाये हुए हैं उन्हें में भी कोई-न-कोई विशेषता मिली हुई है। अपनी विशेषता को पहले पहचानो। अभी तो नौ लाख तक पहुँचे ही नहीं हैं तो ब्राह्मण जन्म के भाग्य की विशेषता को पहचानो। उसको पहचानो और कार्य में लगाओ। सिर्फ दूसरे की विशेषता को देख करके दिलशिकस्त वा ईर्ष्या में नहीं आओ। लेकिन अपनी विशेषता को कार्य में लगाने से एक विशेषता फिर और विशेषताओं को लायेगी। एक के आगे बिंदी लगती जायेगी तो कितने हो जायेंगे? एक को एक बिंदी लगाओ तो 10 बन जाता और दूसरी बिंदी लगाओ तो 100 बन जायेगा। तीसरी लगाओ तो ....., यह हिसाब तो आता है ना। कार्य में लगाना अर्थात् बढ़ना। दूसरों को नहीं देखो। अपनी विशेषता को कार्य में लगाओ।

जैसे देखो, बापदादा सदा ‘‘भोली-भण्डारी'' (भोली दादी) का मिसाल देता है। महारथियों का नाम कभी आयेगा लेकिन इनका नाम आता है। जो विशेषता थी वह कार्य में लगाई। चाहे भण्डारा ही सम्भालती है लेकिन विशेषता को कार्य में लगाने से विशेष आत्माओं के मिसल गाई जाती है। सभी मधुबन का वर्णन करते तो दादियों की भी बातें सुनायेंगे तो ‘भोली' की भी सुनायेंगे। भाषण तो नहीं करती लेकिन विशेषता को कार्य में लगाने से स्वयं भी विशेष बन गई। दूसरे भी विशेष नजर से देखते। तो प्रसन्न रहने के लिए क्या करेंगे? - विशेषता को कार्य में लगाओ। तो वृद्धि हो जायेगी और जब सर्व आ गया तो सम्पन्न हो जायेंगे और प्रसन्नता का आधार है -’सम्पन्नता'। जो स्व से प्रसन्न रहते वह औरों से भी प्रसन्न रहेंगे, सेवा से भी प्रसन्न रहेंगे। जो भी सेवा मिलेगी उसमें औरों को प्रसन्न कर सेवा में नम्बर आगे ले लेंगे। सबसे बड़े-ते-बड़ी सेवा आपकी प्रसन्नमूर्त करेगी। तो सुना, क्या चार्ट देखा! अच्छा!

टीचर्स को आगे बैठने का भाग्य मिला है। क्योंकि पण्डा बनकर आती हैं तो मेहनत बहुत करती हैं। एक को सुखधाम से बुलायेंगे तो दूसरे को विशाल भवन से बुलायेंगे। एक्सरसाइज अच्छी हो जाती है। सेंटर पर तो पैदल करती नहीं हो। जब शुरू में सेवा आरम्भ की तो पैदल जाती थी ना। आपकी बड़ी दादियां भी पैदल जाती थीं। सामान का थैला हाथ में उठाया और पैदल चली। आजकल तो आप सब बने - बनाये पर आये हो। तो लक्की हो ना। बने-बनाये सेंटर मिल गये हैं। अपने मकान हो गये हैं। पहले तो जमुनाघाट पर रही थीं। एक ही कमरा - रात को सोने का, दिन को सेवा का होता था। लेकिन खुशी- खुशी से जो त्याग किया उसी के भाग्य का फल अभी खा रही हो। आप फल खाने के टाइम पर आई हो। बोया इन्होंने, खा आप रही हो। फल खाना तो बहुत सहज है ना। अब ऐसे फल स्वरूप क्वालिटी निकालो। समझा? क्वांटिटी (संख्या) तो है ही और यह भी चाहिए। नौ लाख तक जाना है तो क्वांटिटी और क्वालिटी - दोनों चाहिए। लेकिन 16,000 की पक्की माला तो तैयार करो। अभी क्वालिटी की सेवा पर विशेष अण्डरलाइन करो।

हर ग्रुप में टीचर्स भी आती, कुमारियां भी आती हैं। लेकिन निकलती नहीं हैं। मधुबन अच्छा लगता है, बाप से प्यार भी है। लेकिन समर्पण होना सोचना है। जो स्वयं ऑफर करता है वह निर्विघ्न चलता है और जो कहने से चलता वह रूकता है फिर चलता हैं। वह बार-बार आपको ही कहेंगे - हमने तो पहले ही कहा था सरेण्डर नहीं होना चाहिए। कोई-कोई सोचती हैं - इससे तो बाहर रहकर सेवा करें तो अच्छा है। लेकिन बाहर रह कर सेवा करना और त्याग करके सेवा करना इसमें अंतर जरूर है। जो समर्पण के महत्त्व को जानते हैं वह सदा ही अपने को कई बातों से किनारे हो आराम से आ गये हैं, कई मेहनत से छूट गये। तो टीचर्स अपने महत्त्व को अच्छी रीति जानती हो ना? नौकरी और यह सेवा - दोनों काम करने वाले अच्छे वा एक काम करने वाले अच्छे? उन्हों को फिर भी डबल पार्ट बजाना पड़ता है। भल निर्बन्धन हैं फिर भी डबल पार्ट तो है ना। आपका तो एक ही पार्ट है। प्रवृत्ति वालों को तीन पार्ट बजाना पड़ता - एक पढ़ाई का, दूसरा सेवा का और साथ-साथ प्रवृत्ति को पालने का। आप तो सब बातों से छूट गई। अच्छा!

सर्व सदा प्रसन्नता की विशेषता सम्पन्न श्रेष्ठ आत्माएं, सदा अपनी विशेषता को पहचान कार्य में लगाने वाली सेन्सीबुल और इंसेन्सफुल आत्माओं को, सदा प्रसन्न रहने वाले, प्रसन्न करने की श्रेष्ठता वाली महान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

आगरा – राजस्थान:-

१. सदा अपने को अकालतख्तनशीन श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? आत्मा अकाल है तो उसका तख्त भी अकालतख्त हो गया ना! इस तख्त पर बैठकर आत्मा कितना कार्य करती है। ‘तख्तनशीन आत्मा हूँ' - इस स्मृति से स्वराज्य की स्मृति स्वत: आती है। राजा भी जब तख्त पर बैठता है तो राजाई नशा, राजाई खुशी स्वत: होती है। तख्तनशीन माना स्वराज्य अधिकारी राजा हूँ - इस स्मृति से सभी कर्मेन्द्रियाँ स्वत: ही ऑर्डर पर चलेंगी। जो अकाल-तख्त-नशीन समझ कर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है। क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है। फिर न देह है, न देह के सम्बन्ध हैं, न पदार्थ हैं, एक बाप ही संसार है। इसलिए अकाल-तख्त-नशीन बाप के दिल-तख्त-नशीन भी बनते हैं। बाप की दिल में ऐसे बच्चे ही रहते हैं जो ‘एक बाप दूसरा न कोई' हैं। तो डबल तख्त हो गया। जो सिकीलधे बच्चे होते हैं, प्यारे होते हैं उन्हें सदा गोदी में बिठायेंगे, ऊपर बिठायेंगे नीचे नहीं। तो बाप भी कहते हैं तख्त पर बैठो, नीचे नहीं आओ। जिसको तख्त मिलता है वह दूसरी जगह बैठेगा क्या? तो अकालतख्त वा दिलतख्त को भूल दे..

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- रूहानी प्रसन्नता के प्रति बापदादा ने क्या इशारे दिए ?

 प्रश्न 2 :- परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्माएं दूसरों को शांति और शक्ति का अनुभव कैसे कराती हैं ?

 प्रश्न 3 :- बाबा ने कौन सी तीन प्रकार की प्रसन्नता की बात की है ?

 प्रश्न 4 :- बच्चों की अप्रसन्नता का कारण बाबा ने क्या बताया ?

 प्रश्न 5 :- बाबा ने प्रसन्न रहने के लिए कौन सी एक बात बुद्धि में रखने को कहा ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(बापदादा, विशेषता, मधुबन भाषण, वृद्धि, प्रसन्नता, सेवा, स्व, पण्डा, भाग्य, मेहनत, प्रसन्न)

 1   जैसे देखो, _______ सदा ‘‘भोली-भण्डारी'' (भोली दादी) का मिसाल देता है। चाहे भण्डारा ही सम्भालती है लेकिन ________ को कार्य में लगाने से विशेष आत्माओं के मिसल गाई जाती है।

 2  सभी ________ वर्णन करते तो दादियों की भी बातें सुनायेंगे तो ‘भोली' की भी सुनायेंगे। ______तो नहीं करती लेकिन विशेषता को कार्य में लगाने से स्वयं भी विशेष बन गई। दूसरे भी विशेष नजर से देखते।

 3  विशेषता को कार्य में लगाओ। तो _____ हो जायेगी और जब सर्व आ गया तो सम्पन्न हो जायेंगे और _______ का आधार है -’सम्पन्नता'

 4  जो _______ से प्रसन्न रहते वह औरों से भी प्रसन्न रहेंगे, सेवा से भी ______ रहेंगे। जो भी सेवा मिलेगी उसमें औरों को प्रसन्न कर _______ में नम्बर आगे ले लेंगे।

 5  टीचर्स को आगे बैठने का ______ मिला है। क्योंकि ______ बनकर आती हैं तो _______ बहुत करती हैं।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- जब शुरू में सेवा आरम्भ की तो पैदल जाती थी ना। आपकी बड़ी दादियां भी पैदल जाती थीं।

 2  :- आजकल तो आप सब बने - बनाये पर आये हो। तो लक्की हो ना। बने-बनाये मकान मिल गये हैं।

 3  :- पहले एक ही कमरा होता था, रात को सोने का, दिन को सेवा का होता था। लेकिन खुशी- खुशी से जो छोड़ किया उसी के भाग्य का फल अभी खा रही हो।

 4  :- अकाल-तख्त-नशीन समझ कर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है। क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है।

 5   :- बाप की दिल में ऐसे बच्चे ही रहते हैं जो ‘एक बाप दूसरा न कोई' हैं। तो डबल तख्त हो गया। जो प्यारे बच्चे होते हैं, प्यारे होते हैं उन्हें सदा गोदी में बिठायेंगे, ऊपर बिठायेंगे नीचे नहीं।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- रूहानी प्रसन्नता के प्रति बापदादा ने क्या इशारे दिए ?

   उत्तर 1 :- ‘‘प्रसन्नता'' ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है। अल्पकाल की प्रसन्नता और सदाकाल की सम्पन्नता की प्रसन्नता - इसमें रात-दिन का अंतर है।

          .. अल्पकाल की प्रसन्नता, अल्पकाल के प्राप्ति वाले के चेहरे पर थोड़े समय के लिए दिखाई जरूर देती है लेकिन रूहानी प्रसन्नता स्वयं को तो प्रसन्न करती ही है परन्तु रूहानी प्रसन्नता के वायब्रेशन अन्य आत्माओं तक भी पहुँचते हैं, अन्य आत्माएं भी शान्ति और शक्ति की अनुभूति करती हैं।

          .. रूहानी प्रसन्नता की शीतलता ऐसी होती है, जैसे फलदायक वृक्ष अपने शीतलता की छाया में थोड़े समय के लिए मानव को शीतलता का अनुभव कराता है और मानव प्रसन्न हो जाता है। ऐसे परमात्म-प्राप्तियों के फल सम्पन्न रूहानी प्रसन्नता वाली आत्मा दूसरों को भी अपने प्राप्तियों की छाया में तन-मन की शान्ति और शक्ति की अनुभूति कराती है।

 

 प्रश्न 2 :- परमात्म प्राप्तियों से सम्पन्न आत्माएं दूसरों को शांति और शक्ति का अनुभव कैसे कराती हैं ?

   उत्तर 2 :- परमात्म-प्राप्तियों के फल सम्पन्न रूहानी प्रसन्नता वाली आत्मा दूसरों को भी अपने प्राप्तियों की छाया में तन-मन की शान्ति और शक्ति की अनुभूति कराती है।

          .. प्रसन्नता के वायब्रेशन सूर्य की किरणों समान वायुमण्डल को, व्यक्ति को और सब बातें भुलाए सच्चे रूहानी शान्ति की, खुशी की अनुभूति में बदल देते हैं।

          .. वर्तमान समय की अज्ञानी आत्माएं अपने जीवन में बहुत खर्चा करके भी प्रसन्नता में रहना चाहती हैं। आप लोगों ने क्या खर्चा किया? तुम बिना पैसा खर्च करते भी सदा प्रसन्न रहते हो ना! वा औरों की मदद से प्रसन्न रहते हो?

 

 प्रश्न 3 :- बाबा ने कौन सी तीन प्रकार की प्रसन्नता की बात की है ?

   उत्तर 3 :- प्रसन्नता तीन प्रकार की देखी - (1) स्वयं से प्रसन्न, (2) दूसरों द्वारा प्रसन्न, (3) सेवा द्वारा प्रसन्न। अगर तीनों में प्रसन्न हैं तो बापदादा को स्वत: ही प्रसन्न किया है और जिस आत्मा के ऊपर बाप प्रसन्न है वह तो सदा सफलतामूर्त हैं ही हैं।

 

 प्रश्न 4 :- बच्चों की अप्रसन्नता का कारण बाबा ने क्या बताया ?

   उत्तर 4 :-  बच्चे अपना स्वरूप भूल जाते हैं। कई बच्चे अपने से भी अप्रसन्न रहते हैं। छोटी-सी बात के कारण अप्रसन्न रहते हैं। पहला-पहला पाठ ‘मैं कौन' इसको जानते हुए भी भूल जाते हैं। जो बाप ने बनाया है, दिया है - उसको भूल जाते हैं।

          .. बच्चे बार बार भूल जाते हैं कि बाप ने हर एक बच्चे को फुल वर्से का अधिकारी बनाया है। किसको पूरा, किसको आधा वर्सा नहीं दिया है। किसको आधा वा चौथा मिला है क्या? आधा मिला है या आधा लिया है? बाप ने तो सभी को मास्टर सर्वशक्तिवान का वरदान वा वर्सा दिया ,इसी स्मृति में रहो तो खुशी कभी कम नही होगी।

          .. सर्वगुण सम्पन्न बनाया है, सर्व प्राप्ति स्वरूप बनाया है। लेकिन बाप द्वारा जो प्राप्तियां हुई हैं उसको स्वयं में समा नहीं सकते। जैसे स्थूल धन वा साधन प्राप्त होते भी खर्च करना न आये वा साधनों को यूज करना न आये तो प्राप्ति होते भी उससे वंचित रह जाते हैं।

         .. स्व से अप्रसन्न रहने के मुख्य दो कारण होते हैं दिलशिकस्त होना और दूसरा कारण होता है दूसरों की विशेषता को वा भाग्य को वा पार्ट को देख ईर्ष्या उत्पन्न होना। हिम्मत कम होती है, ईर्ष्या ज्यादा होती है। दिलशिकस्त भी कभी प्रसन्न नहीं रह सकता और ईर्ष्या वाला भी कभी प्रसन्न नहीं रह सकता। क्योंकि दोनों हिसाब से ऐसी आत्माओं की इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती और इच्छाएं - ‘अच्छा' बनने नहीं देती। इसलिए प्रसन्न नहीं रहते।

 

 प्रश्न 5 :- बाबा ने प्रसन्न रहने के लिए कौन सी एक बात बुद्धि में रखने को कहा ?

   उत्तर 5 :- प्रसन्न रहने के लिए सदा एक बात बुद्धि में रखो कि ड्रामा के नियम प्रमाण संगमयुग पर हर एक ब्राह्मण आत्मा को कोई-नकोई विशेषता मिली हुई है।

          .. नौ लाख जो गाये हुए हैं उन्हें में भी कोई-न-कोई विशेषता मिली हुई है। अपनी विशेषता को पहले पहचानो। अभी तो नौ लाख तक पहुँचे ही नहीं हैं तो ब्राह्मण जन्म के भाग्य की विशेषता को पहचानो। उसको पहचानो और कार्य में लगाओ।

          .. विशेषता को कार्य में लगाने से एक विशेषता फिर और विशेषताओं को लायेगी। एक के आगे बिंदी लगती जायेगी तो कितने हो जायेंगे? एक को एक बिंदी लगाओ तो 10 बन जाता और दूसरी बिंदी लगाओ तो 100 बन जायेगा। तीसरी लगाओ तो ....., यह हिसाब तो आता है ना। कार्य में लगाना अर्थात् बढ़ना। दूसरों को नहीं देखो। अपनी विशेषता को कार्य में लगाओ।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(बापदादा, विशेषता, मधुबन, भाषण, वृद्धि, प्रसन्नता, सेवा, स्व, पण्डा, भाग्य, मेहनत, प्रसन्न)

 1   जैसे देखो, _______ सदा ‘‘भोली-भण्डारी'' (भोली दादी) का मिसाल देता है। चाहे भण्डारा ही सम्भालती है लेकिन ________ को कार्य में लगाने से विशेष आत्माओं के मिसल गाई जाती है।

    बापदादा / विशेषता

 

 2  सभी ________ का वर्णन करते तो दादियों की भी बातें सुनायेंगे तो ‘भोली' की भी सुनायेंगे। ______ तो नहीं करती लेकिन विशेषता को कार्य में लगाने से स्वयं भी विशेष बन गई। दूसरे भी विशेष नजर से देखते।

      मधुबन / भाषण

 

 3   विशेषता को कार्य में लगाओ। तो ______ हो जायेगी और जब सर्व आ गया तो सम्पन्न हो जायेंगे और _______ का आधार है -’सम्पन्नता'

      वृद्धि / प्रसन्नता

 

 4  जो _______ से प्रसन्न रहते वह औरों से भी प्रसन्न रहेंगे, सेवा से भी ______ रहेंगे। जो भी सेवा मिलेगी उसमें औरों को प्रसन्न कर _______ में नम्बर आगे ले लेंगे।

     स्व / सेवा / प्रसन्न

 

 5  टीचर्स को आगे बैठने का ______ मिला है। क्योंकि ______ बनकर आती हैं तो ________  बहुत करती हैं।

      भाग्य / पण्डा / मेहनत

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- जब शुरू में सेवा आरम्भ की तो पैदल जाती थी ना। आपकी बड़ी दादियां भी पैदल जाती थीं। 【✔】

 

 2  :- आजकल तो आप सब बने - बनाये पर आये हो। तो लक्की हो ना। बने-बनाये मकान मिल गये हैं। 【✖】

 आजकल तो आप सब बने-बनाये पर आये हो। तो लक्की हो ना। बने-बनाये सेंटर मिल गये हैं।

 

 3  :- पहले एक ही कमरा होता था, रात को सोने का, दिन को सेवा का होता था। लेकिन खुशी- खुशी से जो छोड़ किया उसी के भाग्य का फल अभी खा रही हो।【✖】

  पहले एक ही कमरा होता था, रात को सोने का, दिन को सेवा का होता था। लेकिन खुशी- खुशी से जो त्याग किया उसी के भाग्य का फल अभी खा रही हो।

 

 4  :-  अकाल-तख्त-नशीन समझ कर चलते हैं उनके लिए बाप का भी दिलतख्त है। क्योंकि आत्मा समझने से बाप ही याद आता है।【✔】

 5   :-  बाप की दिल में ऐसे बच्चे ही रहते हैं जो ‘एक बाप दूसरा न कोई' हैं। तो डबल तख्त हो गया। जो सौतेले बच्चे होते हैं, प्यारे होते हैं उन्हें सदा गोदी में बिठायेंगे, ऊपर बिठायेंगे नीचे नहीं।【✖】

  बाप की दिल में ऐसे बच्चे ही रहते हैं जो ‘एक बाप दूसरा न कोई' हैं। तो डबल तख्त हो गया। जो सिकीलधे बच्चे होते हैं, प्यारे होते हैं उन्हें सदा गोदी में बिठायेंगे, ऊपर बिठायेंगे नीचे नहीं।