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AVYAKT MURLI

31 / 03 / 90

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31-03-90   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

रहमदिल और बेहद की वैराग वृत्ति

आप लवफुल और मर्सीफुल बापदादा अपने समान बच्चों को देख रहे हैं। आप बापदादा विश्व के सर्व अंजान बच्चों को देख रहे थे। भले अंजान हैं लेकिन फिर भी बच्चे हैं। बापदादा के सम्बन्ध से सर्व बच्चों को देखते हुए क्या अनुभव किया कि मैजारिटी आत्माओं को समय प्रति समय किसी-न-किसी कारण से जाने-अन्जाने भी वर्तमान समय मर्सी अर्थात् रहम की, दया की आवश्यकता है और आवश्यकता के कारण ही मर्सीफुल बाप को याद करते रहते हैं। तो चारों ओर की आवश्यकता प्रमाण इस समय रहम-दृष्टि की पुकार है। क्योंकि एक तो भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण अपने मन और बुद्धि का संतुलन न होने के कारण मर्सीफुल बाप को वा अपनी-अपनी मान्यता वालों को मर्सी के लिए बहुत दु:ख से, परेशानी से पुकारते रहते हैं। चाहे अंजान आत्माएं बाप को न जानने के कारण अपने धर्म पिताओं वा गुरूओं को वा इष्ट देवों को मर्सीफुल समझकर पुकारते हैं लेकिन आप सब तो जानते ही हो कि इस समय एक सिवाए एक बाप परम आत्मा के और कसी भी आत्मा द्वारा मर्सी मिल नहीं सकती। भले बाप उन्हों की इच्छा पूर्ण करने के कारण भावना का फले देने के कारण किसी भी इष्ट को वा महान आत्मा को निमित्त बना दे लेकिन दाता एक है - इसलिए वर्तमान समय के प्रमाण मर्सीफुल बाप बच्चों को भी कहते हैं कि बाप के सहयोगी साथी भुजाएं आप ब्राह्मण बच्चे हो। तो जिस चीज की आवश्यकता है, वह देने से प्रसन्न हो जाते हैं। तो मास्टर मर्सीफुल बने हो? आपके ही भाई-बहने हैं - चाहे सगे हैं वा लगे हैं लेकिन हैं तो परिवार के। अपने परिवार के अंजान, परेशान आत्माओं के ऊपर रहमदिल बनो। दिल से रहम आये। विश्व की अंजान आत्माओं के लिए भी रहम चाहिए। और साथ-साथ ब्राह्मण-परिवार के पुरूषार्थ की तीव्रगति के लिए वा स्व-उन्नति के लिए रहमदिल की आवश्यकता है। स्व-उन्नति के लिए स्व पर जब रहमदिल बनते हैं तो रहमदिल आत्मा को सदा बेहद की वैराग्यवृत्ति स्वत: ही आती है। स्व के प्रति भी रहम हो कि मैं कितनी ऊंच-ते-ऊंच बाप की वही आत्मा हूँ और वही बाप समाम बनने के लक्ष्यधारी हूँ। उस प्रमाण ओरिज्नल श्रेष्ठ स्वभाव वा संस्कार में अगर कोई कमी है तो अपने ऊपर दिल का रहम कमियों से वैराग्य दिला देगा।

बापदादा आज यही रूहानियत कर रहे थे कि सभी बच्चे नॉलेज में तो बहुत होशियार हैं। प्वाइंट स्वरूप तो बन गये हैं लेकिर हर कमजोरी को जानने की प्वाइंटस हैं, जानत भी है कि यह होना चाहिए, करना नहीं चाहिए यह जानते हुए भी प्वाइंट-स्वरूप बनना और जो कुछ व्यर्थ देखा-सुना और अपने से हुआ उसको फुलस्टाप की प्वांई लगानानहीं आता है। प्वाइंट्स तो हैं लेकिन प्वाइंट स्वरूव बनने के लिए विशेष क्या आवश्यकता है? अपने ऊपर रहम और, औरों को ऊपर रहम। भक्ति-मार्ग में भी सच्चे भक्त होंगे वा आप भी सच्चे भक्त बने हो, आत्मा में रिकॉर्ड भरा हुआ है ना। तो सच्चे भक्त सदा रहमदिल होते हैं इसलिए वे पाप-कर्म से डरते हैं। बाप से नहीं डरते लेकिन पाप से डरते हैं। इसलिए कई पाप-कर्म से बचे हुए रहते हैं। तो ज्ञान-मार्ग में भी जो यथार्थ रहमदिल हैं - उसमें 3 बातों से किनारा करने की शक्ति होती है। जिसमें रहम नहीं होता वे समझते हुए, जानते हुए तीन बातों के पर वश बन जाते हैं। वह तीनों बातें हैं - अलबेलापन, इर्ष्या और घृणा। कोई भी कमजोरी वा कमी का कारण वश यह तीनों बातें होती हैं। और जो रहमदिल होगा वह बाप के साथी धर्मराज की सजा से किनारा करने की शुभ-इच्छा रखते हैं। जैसे भक्त डर के मारे अलबेले नहीं होते, ऐसे ब्राह्मण-आत्माए बाप के प्यार के कारण, धर्मराजपुरी से क्रास न करना पड़े - इस मीठे डर से अलबेले नहीं होते हैं। बाप का प्यार उससे किनारा करा देता है। अपने दिल का रहम अलबेलापन समाप्त कर देता है। और जब अपने प्रति रहम भावना आती है तो जैसी वृत्ति, जैसी स्मृति, वैसी सर्व ब्राह्मण सृष्टि के प्रति स्वत: ही रहमदिल बनते हैं। यह है यथार्थ ज्ञानयुक्त रहम। बिना ज्ञान के रहम कभी नुकसान भी करता है। लेकिन ज्ञानयुक्त रहम कभी भी किसी आत्मा के प्रति ईर्ष्या वा घृणा का भाव दिल में उत्पन्न करने नहीं देगा। ज्ञानयुक्त रहम के साथ-साथ स्वयं का रूहानियत का रूहाब भी अवश्य होता है। अकेला रहम नहीं होता। लेकिन रहम ओर रूहाब दोनों का बैलेंस रहता है। अगर ज्ञानयुक्त रहम नहीं है, साधारण रहम है तो किसी भी आत्मा के प्रति चाहे लगाव के रूप से चाहे किसी भी कमजोरी से उसके ऊपर प्रभावित हो सकते हैं। प्रभावित भी नहीं होना है। न घृणा चाहिए, न प्रभावित चाहिए। क्योंकि आप तन-मन-बुद्धि सहित बाप के ऊपर प्रभावित हो चुके हो। जब मन और बुद्धि एक के तरफ और ऊंचे-ते-ऊंचे तरफ प्रभावित हो चुकी तो फिर दूसरे के ऊपर प्रभावित कैसे हो सकते? अगर दूसरे के ऊपर प्रभावित होते हैं तो उसको क्या कहेंगे? दी हुई वस्तु को फिर से स्वयं यूज़ करना उसको कहा जाता है - अमानत में ख्यानत। जब मन-बुद्धि दे दिया तो फिर आपकी रही कहाँ जो प्रभावित होते हो? बाप के हवाले कर दिया है या आधी रखी है, आधी दी है? जिन्होंने फुल दी है वे हाथ उठाओ। देखो, ब्राह्मण-जीवन का फाउण्डेशन महामंत्र क्या है? मनमनाभव । तो मनमनाभव नहीं हुए हो? तो ज्ञान सहित रहम दिल आत्मा कभी किसी के ऊपर चाहे गुणों के ऊपर, चाहे सेवा के ऊपर, चाहे किसी भी प्रकार के सहयोग प्राप्त होने के कारण आत्मा पर प्रभावित नहीं हो सकती। क्योंकि बेहद की वैरागी होने के कारण बाप बाप के स्नेह, सहयोग, साथ - इनके सिवाए और कुछ उसको दिखाई नहीं देगा। बुद्धि में आयेगा ही नहीं। तुम्हीं से उठूं, तुम्हीं से सोऊं, तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से सेवा करूं, तुम्हीं साथ कर्मयोगी बनूं - यही स्मृति सदा उस आत्मा को रहती है। भले कोई श्रेष्ठ आत्मा द्वारा सहयोग मिलता भी है लेकिन उसका भी दाता कौन? तो एक बाप की तरफ ही बुद्धि जायेगी ना। सहयोग लो, लेकिन दाता कौन है, यह भूलना नहीं चाहिए। श्रीमत एक बाप की है। कोई निमित्त आत्मा आपको बाप की श्रीमत की स्मृति दिलाती है तो उनकी श्रीमत नहीं कहेंगे, लेकिन बाप की श्रीमत को फॉलो कर औरों को भी फॉलो कराने के लिए स्मृति दिलाती है। निमित्त आत्माएं, श्रेष्ठ आत्माएं कभी यही नहीं कहेंगे कि मेरी मत पर चलो। मेरी मत ही श्रीमत है - यह नहीं कहेंगी। श्रीमत की फिर से स्मृति दिलते, इसको कहते हैं यथार्थ सहयोग लेना और सहयोग देना। दादी की दादी की श्रीमत नहीं कहेंगे। निमित्त बनते हैं श्रीमत की शक्ति स्मृति दिलाते हैं। इसलिए कोई भी आत्मा के ऊपर प्रभावित नहीं होना। अगर किसी भी बात में किसी पर प्रभावित होते हैं, चाहे उसके नाम की महिमा पर, रूप पर वा किसी विशेषता पर तो लगाव के कारण, प्रभावित होने के कारण बुद्धि वहाँ अटक जायेगी। अगर बुद्धि अटक गई तो उड़ती कला हो नहीं सकती। अपने ऊपर भी प्रभावित होते हैं - मेरी बहुत अच्छी प्लैनिंग बुद्धि है, मेरा ज्ञान बहुत स्पष्ट है, मेरे जैसी सेवा और कोई कर नहीं सकते। मेरी इन्वेंटर बुद्धि है, गुणवान हूँ - यह अपने ऊपर भी प्रभावित नहीं होना है। विशेषता है, प्लैनिंग बुद्धि है लेकिन सेवा के निमित्त किसने बनाया? मालूम था क्या कि सेवा क्या होती है। इसलिए स्व-उन्न्ति के लिए यथार्थ ज्ञानयुक्त रहमदिल बनना बहुत आवश्यक है। फिर यह ईर्ष्या, घृणा समाप्त हो जाती है। तीव्र गति की कमी का मूल कारण यही है - ईर्ष्या वा घृणा या प्रभावित होना। चाहे अपने ऊपर चाहे दूसरे के ऊपर और चौथी बात सुनाई - अलबेलापन। यह तो होता ही है, टाइम पर तैयार हो जायेंगे, यह है अलबेलापन। बापदादा ने एक हंसी की बात पहले भी सुनाई है। ब्राह्मण-आत्माओं को दूर की नजर बड़ी तेज है। और नजदीक की नजर थोड़ी कमजोर है इसलिए दूसरों की कमी जल्दी दिखाई देती है और अपनी कर्मा देरी से दिखाई देती है। तो रहम की भावना लवफुल भी हो और मर्सीफुल भी हो। इससे दिल से वैराग आयेगा। जिस समय सुनते हैं वा भटठी होती है, रूहरिहान होती है, उस समय तो सब समझते हैं कि ऐसे ही करना है। वह अल्पकाल का वैराग आता है, दिल का नहीं होता। जो बाप को अच्छा नहीं लगता उससे दिल से वैराग आना चाहिए। अपने-आपको भी अच्छा नहीं लगता है लेकिन बेहद की वैराग वृत्ति का हल चलाओ, रहमदिल बनो। कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं। कहते हैं - जब कोई झूठ बोलता है तभी बहुत गुस्सा आता, झूठ पर गुस्सा आता है या कोई गलती करता है तो गुस्सा आता है। वैसे नहीं आता, उसने झूठ बोला यह तो ठीक है, उसको रांग समझते हो और जो आप गुस्स करते हो वह फिर राइट है क्या? रांग, रांग को केसे समझा सकते? उसका असर केसे हो सकता है। उस पर अपनी गलती को नहीं देखते लेकिन दूसरे की झूठ की छोटी बात को भी बड़ा कर देते हैं। ऐसे समय पर रहम दिल बनो। अपनी प्राप्त हुई बाप की शक्तियों द्वारा रहमदिल बनो, सहयोग दो। लक्ष्य अच्छा रखते हैं कि उनको झूठ से बचा रहे हैं, लक्ष्य अच्छा है उसके लिए मुबारक हो। लेकिन रिजल्ट क्या निकली? वह भी फेल, आप भी फेल। तो फेल वाला फेल वाले को क्या पास करायेगा? कई फिर समझते हैं - हमारी जिम्मेवारी है - उसको अच्छा बनाना, आगे बढ़ाना। लेकिन जिम्मेवारी निभाने वाला पहले अपनी जिम्मेवारी उस समय निभा रहे हो जो दूसरे की निभाते हो। कई निमित्त टीचर बनते हैं तो समझते हैं छोटों के लिए हम जिम्मेवार हैं, इनको शिक्षा देनी है, सिखाना है। लेकिन सदैव यह सोचो कि यथार्थ नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम होगी। अगर आपने शिक्षक की जिम्मेवारी से शिक्षा दी तो पहले यह देखो कि उस शिक्षा से दूसरे की कमाई जमा हुई? सोर्स ऑफ इनकम हुआ या सोर्स ऑफ गिरावट हुआ? इसलिए बापदादा सदा कहते हैं कि कोई भी कमz करते हो तो त्रिकालदर्शा स्थिति में स्थित होकर करो। सिर्फ वर्तमान नहीं देखो कि इसने किया - इसलिए कहा। लेकिन उसका भविष्य परिणाम क्या होगा वह भी देखा। जो पास्ट आदि अनादि स्थिति ब्राह्मण आत्माओं की थी, अब भी है और आगे भी रहेगी।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने विश्व के सर्व अंजान किसके लिए प्रयुक्त किया है और क्यों ?

 प्रश्न 2 :- ब्राह्मण बच्चों को मास्टर मर्सिफुल बनने के लिए बाबा ने क्या समझानी दी ?

 प्रश्न 3 :- रहमदिल बनने प्रति बापदादा के क्या इशारे हैं ?

 प्रश्न 4 :- बाबा ने सच्चे भक्तों के प्रति क्या बताया ?

 प्रश्न 5 :- बाबा ने भक्त और ब्राह्मणों में क्या अंतर बताया और क्यों ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(प्यार, अलबेलापन, रहम, रहमदिल, ज्ञान, ज्ञानयुक्त, ईर्ष्या, रूहानियत, रुहाब, बेलेंस, कमज़ोरी)

 1   बाप का _______ उससे किनारा करा देता है। अपने दिल का रहम ________ समाप्त कर देता है।

 2  जब अपने प्रति ______ की भावना आती है तो जैसी वृत्ति, जैसी स्मृति, वैसी सर्व ब्राह्मण सृष्टि के प्रति स्वत: ही _______ बनते हैं।

 3  यह है यथार्थ ज्ञानयुक्त रहम। बिना ______ के रहम कभी नुकसान भी करता है। लेकिन _______ रहम कभी भी किसी आत्मा के प्रति ______ वा घृणा का भाव दिल में उत्पन्न करने नहीं देगा।

 4  ज्ञानयुक्त रहम के साथ-साथ स्वयं का _______ का रूहाब भी अवश्य होता है। लेकिन रहम और ______ दोनों का बैलेंस रहता है।

 5  रहम ओर रूहाब दोनों का ______ रहता है। साधारण रहम है तो किसी भी आत्मा के प्रति चाहे लगाव के रूप से चाहे किसी भी ________ से उसके ऊपर प्रभावित हो सकते हैं।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :- न घृणा चाहिए, न प्रभावित चाहिए। क्योंकि आप तन-मन-बुद्धि सहित बाप के ऊपर प्रभावित हो चुके हो।

 2  :- जब दिल और बुद्धि एक के तरफ और ऊंचे-ते-ऊंचे तरफ प्रभावित हो चुकी तो फिर दूसरे के ऊपर प्रभावित कैसे हो सकते ?

 3  :- हुई वस्तु को फिर से स्वयं यूज़ करना उसको कहा जाता है - अमानत में ख्यानत।

 4  :- जब मन-बुद्धि दे दिया तो फिर आपकी रही कहाँ जो प्रभावित होते हो? बाप सुपुर्द कर दिया है या आधी रखी है, आधी दी है ?

 5   :- सहयोग लो, लेकिन दाता कौन है, यह भूलना नहीं चाहिए। श्रीमत एक बाप की है।

 

 

 

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने विश्व के सर्व अंजान किसके लिए प्रयुक्त किया है और क्यों ?

   उत्तर 1 :- बापदादा जानते हैं कि विश्व के सभी बच्चे उन्हें भूले हुए हैं , अर्थात बाप से अंजान हैं।

          .. रहमदिल और बेहद की वैराग वृत्ति आप लवफुल और मर्सीफुल बापदादा अपने समान बच्चों को देख रहे हैं। आप  विश्व के सर्व अंजान बच्चों को देख रहे थे। भले अंजान हैं लेकिन फिर भी बच्चे हैं।

          .. किसी-न-किसी कारण से जाने-अन्जाने भी वर्तमान समय मर्सी अर्थात् रहम की, दया की आवश्यकता है और आवश्यकता के कारण ही मर्सीफुल बाप को याद करते रहते हैं। तो चारों ओर की आवश्यकता प्रमाण इस समय रहम-दृष्टि की पुकार है।

          .. भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण अपने मन और बुद्धि का संतुलन न होने के कारण मर्सीफुल बाप को वा अपनी-अपनी मान्यता वालों को मर्सी के लिए बहुत दु:ख से, परेशानी से पुकारते रहते हैं। चाहे अंजान आत्माएं बाप को न जानने के कारण अपने धर्म पिताओं वा गुरूओं को वा इष्ट देवों को मर्सीफुल समझकर पुकारते हैं लेकिन आप सब तो जानते ही हो कि इस समय एक सिवाए एक बाप परम आत्मा के और कसी भी आत्मा द्वारा मर्सी मिल नहीं सकती।

 

 प्रश्न 2 :- बाबा ने ब्राह्मण बच्चों को मास्टर मर्सिफुल बनने के लिए क्या समझानी दी ?

   उत्तर 2 :-  बाबा कहते आत्माएं मुझ बाप को न जानने के कारण अपने देहधारियों को या जड़ देवों के चित्रों को मर्सीफुल समझकर पुकारते हैं। लेकिन आप सब तो जानते ही हो कि एक बाप परम आत्मा के और किसी भी आत्मा द्वारा मर्सी मिल नहीं सकती। बाप ही निमित्त बनाते हैं।

          .. बाप उन्हों की इच्छा पूर्ण करने के कारण भावना का फले देने के कारण किसी भी इष्ट को वा महान आत्मा को निमित्त बना दे लेकिन दाता एक है।

          .. वर्तमान समय के प्रमाण मर्सीफुल बाप बच्चों को भी कहते हैं कि बाप के सहयोगी साथी भुजाएं आप ब्राह्मण बच्चे हो। तो जिस चीज की आवश्यकता है, वह देने से प्रसन्न हो जाते हैं। तो मास्टर मर्सीफुल बने हो? आपके ही भाई-बहने हैं - चाहे सगे हैं वा लगे हैं लेकिन हैं तो परिवार के।

 

 प्रश्न 3 :- रहमदिल बनने प्रति बापदादा के क्या इशारे हैं ?

   उत्तर 3 :- रहमदिल बन बच्चों को बाप से मिलाना है । बाप आये हैं तो सबको मर्सिफुल बाप साथ ले जाएँगे। तुम ब्राह्मण बच्चों को बाप के सहयोगी बनना है।

          .. रहमदिल आत्मा को सदा बेहद की वैराग्यवृत्ति स्वत: ही आती है। स्व के प्रति भी रहम हो कि मैं कितनी ऊंच-ते-ऊंच बाप की वही आत्मा हूँ और वही बाप समाम बनने के लक्ष्यधारी हूँ। उस प्रमाण ओरिज्नल श्रेष्ठ स्वभाव वा संस्कार में अगर कोई कमी है तो अपने ऊपर दिल का रहम कमियों से वैराग्य दिला देगा।

         .. बच्चे नॉलेज में तो बहुत होशियार हैं। प्वाइंट स्वरूप तो बन गये हैं लेकिर हर कमजोरी को जानने की प्वाइंटस हैं, जानते भी हैं कि यह होना चाहिए, करना नहीं चाहिए यह जानते हुए भी प्वाइंट-स्वरूप बनना और जो कुछ व्यर्थ देखा-सुना और अपने से हुआ उसको फुलस्टाप की प्वांई लगाना नहीं आता है। तो स्वयं प्रति रहमदिल दिल बन संस्कारो का परिवर्तन करो।

 

 प्रश्न 4 :- सच्चे भक्तों के प्रति बाबा ने  क्या बताया ?

 उत्तर 4 :- स्वरूव बनने के लिए आवश्यक है ,अपने ऊपर रहम और, औरों को ऊपर रहम। भक्ति-मार्ग में भी सच्चे भक्त होंगे वा आप भी सच्चे भक्त बने हो, आत्मा में रिकॉर्ड भरा हुआ है ना। तो सच्चे भक्त सदा रहमदिल होते हैं इसलिए वे पाप-कर्म से डरते हैं। बाप से नहीं डरते लेकिन पाप से डरते हैं। इसलिए कई पाप-कर्म से बचे हुए रहते हैं। तुम्हे भी बाप से सच्चा रहना है और पाप कर्मों से बचना है ।

 

 प्रश्न 5 :- भक्त और ब्राह्मणों में बाबा ने क्या अंतर बताया और क्यों ?

   उत्तर 5 :- भक्त सदा रहमदिल होते हैं इसलिए वे पाप-कर्म से डरते हैं। बाप से नहीं डरते लेकिन पाप से डरते हैं। इसलिए कई पाप-कर्म से बचे हुए रहते हैं। उसमें 3 बातों से किनारा करने की शक्ति होती है। जिसमें रहम नहीं होता वे समझते हुए, जानते हुए तीन बातों के पर वश बन जाते हैं। वह तीनों बातें हैं - अलबेलापन, इर्ष्या और घृणा। कोई भी कमजोरी वा कमी का कारण वश यह तीनों बातें होती हैं। जैसे भक्त डर के मारे अलबेले नहीं होते, ऐसे ब्राह्मण-आत्माए बाप के प्यार के कारण, धर्मराजपुरी से क्रास न करना पड़े - इस मीठे डर से अलबेले नहीं होते हैं।

           ..  उसमें 3 बातों से किनारा करने की शक्ति होती है। जिसमें रहम नहीं होता वे समझते हुए, जानते हुए तीन बातों के पर वश बन जाते हैं। वह तीनों बातें हैं - अलबेलापन, इर्ष्या और घृणा। कोई भी कमजोरी वा कमी का कारण वश यह तीनों बातें होती हैं।

          .. जो रहमदिल होगा वह बाप के साथी धर्मराज की सजा से किनारा करने की शुभ-इच्छा रखते हैं। जैसे भक्त डर के मारे अलबेले नहीं होते, ऐसे ब्राह्मण-आत्माए बाप के प्यार के कारण, धर्मराजपुरी से क्रास न करना पड़े - इस मीठे डर से अलबेले नहीं होते हैं।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(प्यार, अलबेलापन, रहम, रहमदिल, ज्ञान, ज्ञानयुक्त, ईर्ष्या, रूहानियत, रुहाब, बेलेंस, कमज़ोरी)

 1   बाप का _______ उससे  किनारा करा देता है। अपने दिल का रहम _______ समाप्त कर देता है।

    प्यार / अलबेलापन

 

 2  जब अपने प्रति ______ की भावना आती है तो जैसी वृत्ति, जैसी स्मृति, वैसी सर्व ब्राह्मण सृष्टि के प्रति स्वत: ही _______ बनते हैं।

      रहम / रहमदिल

 

 3  यह है यथार्थ ज्ञानयुक्त रहम। बिना ______ के रहम कभी नुकसान भी करता है। लेकिन _______ रहम कभी भी किसी आत्मा के प्रति______ वा घृणा का भाव दिल में उत्पन्न करने नहीं देगा।

    ज्ञान / ज्ञानयुक्त / ईर्ष्या

 

 4  ज्ञानयुक्त रहम के साथ-साथ स्वयं का ________ का रूहाब भी अवश्य होता है। लेकिन रहम और ______ दोनों का बैलेंस रहता है।

      रूहानियत / रुहाब

 

 5  रहम ओर रूहाब दोनों का ______ रहता है। साधारण रहम है तो किसी भी आत्मा के प्रति चाहे लगाव के रूप से चाहे किसी भी ______ से उसके ऊपर प्रभावित हो सकते हैं।

      बेलेंस / कमज़ोरी 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】

 1  :-  न घृणा चाहिए, न प्रभावित चाहिए। क्योंकि आप तन-मन-बुद्धि सहित बाप के ऊपर प्रभावित हो चुके हो।【✔】

 

 2  :-  जब दिल और बुद्धि एक के तरफ और ऊंचे-ते-ऊंचे तरफ प्रभावित हो चुकी तो फिर दूसरे के ऊपर प्रभावित कैसे हो सकते?【✖】

 जब मन और बुद्धि एक के तरफ और ऊंचे-ते-ऊंचे तरफ प्रभावित हो चुकी तो फिर दूसरे के ऊपर प्रभावित कैसे हो सकते?

 

 3  :-  हुई वस्तु को फिर से स्वयं यूज़ करना उसको कहा जाता है - अमानत में ख्यानत।【✔】

 

 4  :-  जब मन-बुद्धि दे दिया तो फिर आपकी रही कहाँ जो प्रभावित होते हो? बाप सुपुर्द कर दिया है या आधी रखी है, आधी दी है?【✖】

  जब मन-बुद्धि दे दिया तो फिर आपकी रही कहाँ जो प्रभावित होते हो? बाप के हवाले कर दिया है या आधी रखी है, आधी दी है?

 

 5   :- सहयोग लो, लेकिन दाता कौन है, यह भूलना नहीं चाहिए। श्रीमत एक बाप की है।【✔】